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गुरुवार, 6 जून 2013

अब मैच से पहले छिन जाएंगे क्रिकेटरों के मोबाइल

लंदन। आईसीसी चैम्पियंस ट्राफी के दौरान खेले जाने वाले सभी मैचों से पहले खिलाड़ियों के मोबाइल जमा होंगे। आईपीएल और बांग्लादेश प्रीमियर लीग में स्पॉट फिक्सिंग प्रकरण को देखते हुए आईसीसी गुरूवार से यहां शुरू होने वाली चैम्पियंस ट्राफी के दौरान भ्रष्टाचार के जोखिम को कम से कम करने के लिए अपनी तरफ से हरसंभव प्रयास कर रही है।
खिलाड़ियों को मैचों के लिए अपनी टीम बस में चढ़ने से पहले अपने मोबाइल फोन जमा करने होंगे। इसके अलावा आईसीसी भ्रष्टाचार निरोधक एवं सुरक्षा इकाई के अधिकारी होटल में उनके व्यवहार पर भी निगरानी रखेंगे। टूर्नामेंट में भाग ले रही आठ में से छह टीमों और उनके सहयोगी स्टाफ को एसीएसयू अधिकारियों ने एक घंटे तक चले कार्यक्रम में बताया कि उन्हें किस तरह से खतरे का संकेत भांपना है और उसको लेकर आगाह करना है। न्यूजीलैंड और इंग्लैंड की टीमों को आज के मैच के बाद इन बातों से अवगत कराया गया। बांग्लादेश इस टूर्नामेंट का हिस्सा नहीं है।

धोनी के धंधे का सच

रीति स्पोर्ट्स मैनेजमेंट ने सन 2010 में टीम इंडिया के कप्तान महेंद्र सिंह धोनी के साथ अगले तीन सालों के लिए 210 करोड़ रुपये की डील की घोषणा करके भारत में सिलेब्रिटीज एंडोर्समेंट के सारे रेकॉर्ड ध्वस्त कर दिए थे। इस डील के बूते कैप्टन कूल की गिनती दुनिया के सबसे अमीर खिलाड़ियों होने लगी थी।
इस साल की शुरुआत में एक बिजनस मैगजीन को दिए इंटरव्यू में रीति स्पोर्ट्स के प्रमोटर अरुण पांडे ने कहा था कि धोनी को 210 करोड़ की मिनिमम गारंटी का भुगतान किया जा चुका है। हालांकि, रीति ग्रुप की कंपनियों के फाइनैंशल स्टेटमेंट से सवाल खड़े होते हैं कि इंडियन कैप्टन को इस भारी भरकम रकम की पेमेंट कैसे की गई? 2007 में कंपनी शुरू होने के बाद से अब तक इसकी कुल आय ही 100 करोड़ रुपये के करीब रही है।

अरबों का गुप्‍तदान, फिर क्‍यों न हों परेशान

नई दिल्‍ली । कांग्रेस और बीजेपी जैसे बड़े दल अरबों का चंदा जुटाते हैं लेकिन ये पता करना आसान नहीं कि उनकी थैली भरता कौन है। आरटीआई कानून के तहत लाए जाने का विरोध कर रहे राजनीतिक दलों का दावा है कि वे सारी जानकारी आयकर विभाग को देते हैं लेकिन सच्चाई ये है कि वे 80 से 90 फीसदी दानदाताओं के बारे में वे जानकारी नहीं देते।
कानूनन 20 हजार रुपये से ज्यादा का चंदा होने पर ही दानदाता का नाम बताना जरूरी है और पार्टियां इसी का फायदा उठाती हैं।
यही वजह है कि न सिर्फ कांग्रेस और बीजेपी बल्कि, देश की ज्यादातर राजनीतिक पार्टियां केंद्रीय सूचना आयोग के उस फैसले से सकते में हैं जिसके तहत राजनीतिक दल आरटीआई के तहत आते हैं और उन्हें जनता को अपने आय-व्यय की जानकारी देनी होगी।
2009 से 2011 के बीच केंद्र में सत्तारूढ़ कांग्रेस पार्टी को पौने 8 अरब रुपये की आमदनी हुई। इसमें से पौने 5 अरब रुपये कूपन बेचकर मिले। 1 अरब 11 करोड़ 73 लाख रुपये चंदे से और 44 करोड़ 11 लाख रुपये ब्याज से मिले लेकिन आप ये जानकार दंग रह जाएंगे कि महज 12 फीसदी चंदा ही 20 हजार से ऊपर की रकम के रूप में पार्टी को मिला, जिसमें दानदाताओं की जानकारी देनी होती है। यानी पार्टी ने ये जानकारी नहीं दी कि उसे बाकी के तकरीबन साढ़े छह अरब रुपये कहां से मिले।
पार्टी विद अ डिफरेंस का दावा करने वाली बीजेपी भी कांग्रेस की राह पर है। बीजेपी को इन दो सालों में कुल सवा 4 अरब रुपये की आमदनी हुई। इसमें से तकरीबन साढ़े 3 अरब पार्टी को स्वैच्छिक दान से मिले। आजीवन सहयोग निधि के रूप में उसे तकरीबन 30 करोड़ रुपये और ब्याज से तकरीबन 3 करोड़ रुपये की कमाई हुई। यानी बीजेपी को भी महज 22 फीसदी रकम ही ऐसे दानदाताओं से मिली, जिन्होंने 20 हजार से ज्यादा की रकम चंदे में दी।
जानकारों की मानें तो राजनीतिक पार्टियों को डर है कि अगर सूचना का अधिकार उन पर लागू हो गया, तो नियमों की आड़ में जारी ये खेल खुल सकता है।
गौर करने की बात है कि 2010 और 2011 के बीच में कांग्रेस को महज 417 लोगों ने ही बीस हजार रुपये से अधिक दान दिया। वहीं, बीजेपी में ये संख्या महज 502 है।
तमिलनाडु में राज कर रही अन्नाद्रमुक और पंजाब में सत्ताधारी शिरोमणी अकाली दल और बीएसपी को किसी भी व्यक्ति ने 20 हजार से ज्यादा का चंदा नहीं दिया है। इन सबके बावजूद राजनीतिक दल खुद को पाक-साफ ठहराने में कोई कसर नहीं छोड़ रहे। हर मुद्दे पर एक-दूसरे के खिलाफ दिखने वाले राजनीतिक दलों को केंद्रीय सूचना आयोग के इस फैसले ने एकजुट कर दिया है। सिर्फ भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी यानी सीपीआई अकेली है जो पहले दिन से दलों को आरटीआई कानून के तहत लाने की हिमायत कर रही है।(एजेंसी)