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बुधवार, 26 फ़रवरी 2014

ओपिनियन पोल की खुली पोल: पैसे लेकर किए जाते हैं सर्वे

ओपिनियन पोल फिक्स होते हैं। पोल करवाने वाले अपने मनमुताबिक नतीजों को प्रभावित कर सकते हैं। यह खुलासा किया है एक टीवी चैनल के स्टिंग ऑपरेशन ने। चैनल का दावा है कि सी-फोर समेत देश की 11 नामी ओपिनियन पोल कंपनियां इस तरह का फर्जी काम कर रही हैं। इस ऑपरेशन के बाद इंडिया टुडे समूह ने सी-वोटर के साथ करार निलंबित कर दिया है। हालांकि, नीलसन इकलौती ऐसी कंपनी है, जिसने पैसे लेकर नतीजे बदलने से इनकार कर दिया।
न्यूज चैनल ने 'ऑपरेशन प्राइम मिनिस्टर' नामक स्टिंग ऑपरेशन में दावा किया है कि अखबारों, वेबसाइट्स और न्यूज चैनल्स पर दिखाए जाने वाले ओपिनियन पोल्स सही नहीं होते। इस ऑपरेशन के दौरान चैनल के रिपोर्टर्स ने सी-वोटर, क्यूआरएस, ऑकटेल और एमएमआर जैसी 11 कंपनियों से संपर्क किया। स्टिंग ऑपरेशन में दिखाया गया है कि कंपनियों के अधिकारी पैसे लेकर आंकड़ों को इधर-उधर करने को राजी हो गए हैं। ये कंपनियां मार्जिन ऑफ एरर के नाम पर आंकड़ों में घालमेल करती हैं। पैसे का लेन-देन भी पारदर्शी नहीं है। काला धन बनाया जा रहा है। चैनल के एडिटर-इन-चीफ विनोद कापड़ी का कहना है कि 4 अक्टूबर 2013 को चुनाव आयोग ने ओपिनियन पोल पर राजनीतिक दलों से उनकी राय मांगी थी।
उसके बाद ही हमने इन सर्वे की सच्चाई का पता लगाने के बारे में सोचा। इंडिया टुडे समूह ने तोड़ा सी-वोटर का साथ: स्टिंग ऑपरेशन का असर भी तुरंत दिखा। इंडिया टुडे समूह ने सी-वोटर के साथ करार निलंबित कर दिया है। सी-वोटर को कारण बताओ नोटिस भी जारी किया है।
वहीं सी-वोटर के यशवंत देशमुख ने कहा कि 'यह मेरी 20 सालों की विश्वसनीयता को नुकसान पहुंचाने और छवि खराब करने की कोशिश की गई है। यदि चैनल ने बातचीत की पूरी स्क्रिप्ट नहीं दिखाई तो हम उनके खिलाफ कानूनी कार्यवाही पर करेंगे।'
'ऑपरेशन प्राइम मिनिस्टर' के दस अहम निष्कर्ष
1. पैसे लेकर सर्वे कंपनी दो रिपोर्ट देती है। एक वास्तविक, दूसरी मनचाही।
2. मार्जिन ऑफ एरर (घट-बढ़ की संभावना) के सहारे आंकड़ों में की जाती है गड़बड़ी। (उदाहरण के लिए 40 से 60 सीटें मिल रही हैं तो वे दिखाएंगे 60 सीटें)
3. पैसे लेकर बढ़ाते-घटाते हैं पार्टियों की सीटें। प्रभावित करते हैं जनमत।
4. चुनावों में पैसे बांटकर डमी कैंडीडेट खड़े करने का किया दावा।
5. एक कंपनी का दावा: फर्जी आंकड़ों पर बना था दिल्ली में आप को 48 सीटों वाला सर्वे।
6. हर बड़ी कंपनी से जुड़ी है दो से ज्यादा छद्म कंपनियां।
7. सभी सर्वे कंपनियां ब्लैक मनी लेने को तैयार। आधा कैश, आधा चेक से लेते हैं पैसा।
8. सी-वोटर जैसी बड़ी कंपनियां छोटी कंपनियों से जुटाती हैं आंकड़े।
9. एक बार आंकड़े जुटाकर मनमुताबिक निकाल सकते हैं कई निष्कर्ष।
10. एमएमआर का दावा, हर्षवर्धन को सीएम प्रत्याशी नहीं बनाते तो बनती भाजपा की सरकार।
-एजेंसी

फतवा थोपा नहीं जा सकता

नई दिल्ली। 
सुप्रीम कोर्ट ने मुस्लिम समुदाय द्वारा संचालित शरियत अदालतों में हस्तक्षेप करने के प्रति अपनी आशंका जताते हुए कहा कि मुस्लिम धर्मगुरूओं द्वारा जारी फतवा लोगों पर थोपा नहीं जा सकता। कोर्ट ने यह व्यवस्था देते हुए सरकार से कहा कि वह ऎसे व्यक्तियों को संरक्षण दे, जिन्हें ऎसे फतवों का पालन नहीं करने पर परेशान किया जाता है। जस्टिस सीके प्रसाद की अध्यक्षता वाली खंडपीठ ने कहा कि फतवा स्वीकार करना या नहीं करना लोगों की इच्छा पर निर्भर करता है।
अदालत ने कहा कि दारूल कजा और दारूल-इफ्ता जैसी संस्थाओं का संचालन धार्मिक मसला है और अदालतों को सिर्फ उसी स्थिति में हस्तक्षेप करना चाहिए, जब उनके फैसले से किसी के अधिकारों का उल्लंघन हो रहा हो। जजों ने कहा कि हम लोगों को उनकी परेशानियों से संरक्षण दे सकते हैं। जब एक पुजारी दशहरे की तारीख देता है तो वह किसी को उसी दिन त्यौहार मनाने के लिये बाध्य नहीं कर सकता। यदि कोई आपको बाध्य करता है तो हम आपको संरक्षण दे सकते हैं। अधिवक्ता विश्वलोचन मदन ने शरियत अदालतों की संवैधानिक वैधानिकता को चुनौती देते हुए जनहित याचिका में कहा था कि ये देश में कथित रूप से समानांतर न्यायिक प्रणाली चला रहे हैं।
अदालत ने कहा कि धर्मगुरूओं द्वारा फतवा जारी करने या पंडितों द्वारा भविष्यवाणी करने से किसी कानून का उल्लंघन नहीं होता है इसलिए अदालतों को इसमें हस्तक्षेप करने से बचना चाहिए। उन्होंने सवाल किया कि कौन सा कानून फतवा जारी करने का अधिकार देता है और कौन सा कानून पंडित को जन्मपत्री बनाने का अधिकार देता है!
अदालत सिर्फ यही कह सकती है कि यदि किसी को फतवा के कारण परेशान किया जा रहा है तो सरकार लोगों को संरक्षण देगी। कोर्ट ने कहा कि ये राजनीतिक और धार्मिक मुद्दे हैं और हम इसमें पडना नहीं चाहते हैं। अखिल भारतीय पर्सनल लॉ बोर्ड ने कहा कि फतवा लोगों के लिए बाध्यकारी नहीं है और यह सिर्फ मुफ्ती की राय है तथा उसे इसे लागू कराने का कोई अधिकार नहीं है। बोर्ड की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता राजू रामचन्द्रन ने कहा कि यदि किसी व्यक्ति की इच्छा के खिलाफ उस पर फतवा लागू किया जाता है तो वह ऎसी स्थिति में अदालत जा सकता है।
-एजेंसी