स्‍पंदन....कुछ व्‍यंग्‍य

रविवार, 18 जनवरी 2015

पुलिस ने ही तो ठिकाने नहीं लगा दिया टोंटा?





मथुरा।  कल दोपहर बाद मथुरा जिला कारागार में जिस अंदाज से गैंगवार का आगाज़ हुआ, उसका अंजाम तो लगभग वही होना था जो देर रात नेशनल हाईवे स्‍थित टोल प्‍लाजा पर कुख्‍यात अपराधी राजेश टोंटा की हत्‍या के साथ हुआ लेकिन किसी को यह अंदाज शायद ही रहा हो कि चंद घंटों के अंतराल में ही यह आगाज़ अपने अंजाम की पहली किश्‍त पूरी कर लेगा।
अभी इस गैंगवार की कितनी पटकथाएं शेष हैं और इसकी समाप्‍ति किस रूप में होगी, यह कहना तो बहुत मुश्‍किल है किंतु इतना अवश्‍य कहा जा सकता है कि न सिर्फ अखिलेश सरकार बल्‍कि उसकी समूची कानून-व्‍यवस्‍था पूरी तरह चरमरा चुकी है। फिर चाहे यूपी सरकार और उसका समाजवादी कुनबा अपना मन बहलाने को दावे-प्रतिदावे चाहे कितने ही क्‍यों न करता रहे।
जिला कारागार के अंदर गैंगवार ने कई सवाल एकसाथ खड़े कर दिये हैं। सबसे बड़ा सवाल तो यही है कि आखिर जेल के अंदर इतनी बड़ी तादाद में असलहा पहुंचा कैसे?
बेशक इसका जवाब हर आम व खास आदमी जानता है किंतु वो व्‍यववस्‍था उसे कभी स्‍वीकार नहीं करती जिसके लिए यह सवाल है और जिससे माकूल जवाब की उम्‍मीद की जाती है।
कौन नहीं जानता कि जिन सरकारी इमारतों के अंदर भ्रष्‍टाचार जैसा शब्‍द बहुत बौना प्रतीत होता है, उनमें जेल की इमारतें प्रमुख हैं। जेल के अंदर एक ओर जहां सारे मानवाधिकार खूंटी पर टंगे मिलते हैं, वहीं दूसरी ओर कानून उसकी चौखट के अंदर पहुंचने के साथ दम तोड़ देता है।
यही कारण है कि जेल में वहां के अधिकारी एवं कर्मचारियों की अपनी समानांतर सत्‍ता कायम रहती है और कुख्‍यात अपराधी उस सत्‍ता के महत्‍वपूर्ण अंग होते हैं। इन्‍हें एक-दूसरे का पूरक भी कह सकते हैं।
इसी प्रकार जेल के बाहर पुलिस की अपनी सत्‍ता है। वह अपनी सत्‍ता में किसी का भी दखल एक लिमिट तक बर्दाश्‍त करती है और जहां लिमिट क्रॉस होती नजर आती है, वह अपनी लिमिट क्रॉस करने से नहीं चूकती।
हाथरस में पश्‍चिमी उत्‍तर प्रदेश के माफिया डॉन ब्रजेश मावी की राजेश टोंटा के घर पर हुई हत्‍या के बाद गैंगवार होने की आशंका सबको थी, बावजूद इसके सारा प्रशासनिक अमला जैसे इसका इंतजार कर रहा था और उन तत्‍वों को मौका दे रहा था जो इसका ताना-बाना बुन रहे थे।
कितने आश्‍चर्य की बात है कि गोली लगने से जख्‍मी राजेश टोंटा को मात्र सात घंटे बाद फिर तब निशाना बनाया जाता है जब उपचार के लिए पुलिस भारी-भरकम सुरक्षा में उसे आगरा ले जा रही थी। इस बार टोंटा बच नहीं पाता और मौके पर ही मारा जाता है जबकि उसके साथ गये अमले में से किसी को चोट नहीं आती।
जिला कारागार से लेकर देर रात टोल प्‍लाजा तक के बीच जो कुछ एवं जितना कुछ हुआ, उसमें न तो जेल प्रशासन की भूमिका पाक-साफ प्रतीत हो रही है और न जिला प्रशासन की। ऐसा ल्रगता है कि जैसे पूरे घटनाक्रम का सूत्रधार इन्‍हीं के इर्द-गिर्द बैठा हो।
दरअसल आमजन के जेहन में इस पूरे घटनाक्रम को लेकर कई प्रश्‍न घूम रहे हैं। जैसे कि यदि राजेश टोंटा को गोली उसकी जांघ में लगी थी और वह खतरे से बाहर था तो फिर घने कोहरे के बावजूद उसे उपचार के नाम पर आगरा ले जाने की जरूरत क्‍या पड़ी?
पुलिस कह रही है कि ऐसा राजेश टोंटा के पिता की जिद पर किया गया।
अब यहां एक और सवाल यह पैदा हो जाता है कि एक कुख्‍यात अपराधी के पिता की जिद को पुलिस ने इतनी गंभीरता से क्‍यों ले लिया जबकि साफ जाहिर था कि उसके ऊपर मंडरा रहा खतरा टला नहीं है।
यूं भी पुलिस जब किसी का पोस्‍टमॉर्टम और यहां तक कि अंतिम संस्‍कार तक अपनी सुविधानुसार कराती है तो फिर टोंटा के मामले में ऐसा क्‍या हुआ कि खतरे के बाहर होने पर भी वह रात को 11 बजे उसे आगरा लेकर चल दी।
महुअन टोल प्‍लाजा पर बदमाशों ने खुद को टोंटा के परिजन बताते हुए एंबुलेंस के अंदर प्रवेश किया और उसे गोलियों से भून डाला।
यह वही पुलिस है जिसने जिला अस्‍पताल में टोंटा की पत्‍नी, पिता व भाई आदि को उससे मिलने तक नहीं दिया और उनसे तीखी झड़प के बाद उसकी पत्‍नी को बमुश्‍किल मिलने दिया गया।
बदमाश आये और टोंटा को इत्‍मीनान के साथ मौत की नींद सुला कर चले गये लेकिन उसके साथ का सुरक्षा अमला तमाशबीन बना रहा। एंबुलेंस में मौजूद अस्‍पताल कर्मी भी सुरक्षित रहे यानि किसी को कोई गंभीर चोट नहीं आई।
जिला जेल के अंदर दोपहर बाद हुई शुरूआत से लेकर हाईवे पर देर रात की वारदात तक का पूरा घटनाक्रम, जेल और जिला प्रशासन की भूमिका को केवल संदिग्‍ध ही साबित नहीं करता, उसकी संलिप्‍तता भी जाहिर कराता है।
संभवत: यही कारण है कि दबी जुबान से ही सही, पर ऐसा कहने वालों की कमी नहीं है कि गैंगवार के आगाज़ से लेकर, कल तक के अंजाम की पटकथा सरकारी नुमाइंदों ने ही लिखी है।
नि: संदेह इस गैंगवार का क्‍लाईमेक्‍स अभी बाकी है क्‍योंकि पर्दे के पीछे बैठे सूत्रधारों का न कभी कुछ बिगड़ा है और न अब बिगड़ेगा।
कुछ सरकारी नुमाइंदे निलंबित होंगे, कुछ का ट्रांसफर हो जायेगा, कुछ जांच की आंच से खुद को तपायेंगे और कुछ दूर बैठकर इस तपिश का आनंद लेंगे। मावी चला गया, अक्षय और टोंटा भी चले गये। राजकुमार शर्मा घायल है। लेकिन यह सब सरकारी मशीनरी के कलपुर्जों की तरह हैं। इन्‍हें कब, कहां और कैसे फिट करना है, किस तरह इनसे काम लेना है और कब इनका 'काम' कर देना है, इस खेल में जेल प्रशासन भी निपुण होता है और जिला प्रशासन भी।
होगा भी क्‍यों नहीं...मावी, टोंटा और अक्षय जैस अपराधी तो आते-जाते रहेंगे किंतु सरकारी वर्दी प्राप्‍त अपराधियों का अधिक से अधिक स्‍थानांतरण होगा। वह जहां जायेंगे, वहां एक नई कहानी का प्‍लॉट बना देंगे ताकि भ्रष्‍टाचार का सिलसिला अनवरत जारी रहे और जारी रहे इसी तरह उनकी अपराध व अपराधियों से दुरभि संधि का भी सिलसिला।
-लीजेण्‍ड न्‍यूज़ विशेष 

छात्रा रेप केस की जांच ट्रांसफर होने पर भारी रोष 'बार एसोसिएशन ने लिखा UP के DGP को पत्र'







मथुरा। 
बार एसोसिएशन मथुरा ने एमबीए की छात्रा से बलात्‍कार करने के मामले में आरोपी पत्रकार कमलकांत उपमन्‍यु के भाई की एप्‍लीकेशन पर जांच को गैर जनपद स्‍थानांतरित कर दिये जाने के खिलाफ पुलिस महानिदेशक लखनऊ को एक प्रार्थनापत्र भेजा है।
बार के अध्‍यक्ष विजयपाल सिंह तोमर के हस्‍तक्षरयुक्‍त इस पत्र में डीजीपी उत्‍तर प्रदेश से अनुरोध किया गया है कि वह कमलकांत उपमन्‍यु के खिलाफ आईपीसी की धारा 376 और 506 के केस की विवेचना को पुन: मथुरा जनपद स्‍थानांतरित कर आरोपी की गिरफ्तारी सुनिश्‍चित करें।
उल्‍लेखनीय है कि उत्‍तर प्रदेश के पूर्व डीजीपी आनंद लाल बनर्जी ने सेवा निवृत होने से मात्र एक सप्‍ताह पूर्व आरोपी कमलकांत उपमन्‍यु के भाई त्रिभुवन उपमन्‍यु के प्रार्थना पत्र पर बलात्‍कार जैसे संगीन अपराध की विवेचना मथुरा से फिराजाबाद जनपद स्‍थानांतरित कर दी थी जो न सिर्फ नियम विरुद्ध है बल्‍कि ऐसे मामलों में सर्वोच्‍च न्‍यायालय द्वारा दिये गये आदेश-निर्देशों का खुला उल्‍लंघन है।
इस संबंध में आज जब 'लीजेण्‍ड न्‍यूज़' ने इस मामले के नये विवेचक और फिरोजाबाद की क्राइम ब्रांच में तैनात इंस्‍पेक्‍टर सत्‍यपाल सिंह से उनके सीयूजी नंबर 9412861327 पर बात की तो उन्‍होंने विवेचना खुद को सौंपे जाने की पुष्‍टि करते हुए यह भी स्‍वीकार किया कि बलात्‍कार जैसे संगीन आरोप की जांच सामान्‍यत: इस तरह तब्‍दील नहीं की जाती। उन्‍होंने कहा कि मैं अपनी जिम्‍मेदारी पूरी निष्‍पक्षता के साथ और ईमानदारी पूर्वक निभाऊंगा तथा तथ्‍यों का ध्‍यान रखूंगा।
गौरतलब है कि पत्रकार कमलकांत उपमन्‍यु के खिलाफ दर्ज बलात्‍कार और जान से मारने की धमकी देने के इस मामले की जांच इससे पहले मथुरा में ही तैनात महिला सब इंस्‍पेक्‍टर रीना द्वारा की जा रही थी। उप निरीक्षक रीना ने ही पीड़िता से 161 के बयान लिए थे और उन्‍होंने ही मैडिकल कराने के उपरांत कोर्ट में 164 के बयान कराकर कमलकांत उपमन्‍यु के खिलाफ गैर जमानती वारंट हासिल करके 82 की कार्यवाही कराई थी।
यह मामला पीड़िता द्वारा 3 दिसंबर को प्रार्थना पत्र देने पर एसएसपी मंजिल सैनी ने जांच के उपरांत 6 दिसंबर को थाना हाईवे में दर्ज कराया था, बावजूद इसके आरोपी कमलकांत की गिरफ्तारी नहीं की गई और उसे पीड़िता व उसके परिवार पर समझौते के लिए दबाव बनाने का पूरा मौका दिया गया।
यही नहीं, एसएसपी मंजिल सैनी से पर्याप्‍त सहयोग मिलने के कारण ही बलात्‍कार जैसे संगीन केस की विवेचना को आरोपी कमलकांत गैर जनपद स्‍थानांतरित कराने में सफल रहा।
आश्‍चर्य की बात यह है कि जिस तारीख यानि 22 दिसंबर को इस केस की विवेचना फिरोजाबाद स्‍थानांतरित किये जाने के आदेश तत्‍कालीन डीजीपी उत्‍तर प्रदेश आनंद लाल बनर्जी के हस्‍ताक्षर से हुए हैं, उस तारीख में आनंद लाल बनर्जी गंभीर अस्‍वस्‍थ्‍य बताये गये और उपचार के लिए हॉस्‍पीटल में एडमिट थे। ऐसे में उनके द्वारा विवेचना स्‍थानांतरित करना किसी बड़े षड्यंत्र की ओर इशारा करता है।
जाहिर है कि इस मामले में मथुरा की एसएसपी से लेकर तत्‍कालीन डीजीपी आनंद लाल बनर्जी की भूमिका से सूबे के पुलिस महकमे की छवि काफी धूमिल हुई है और आमजन के बीच इस आशय का संदेश भी गया है कि हाईप्रोफाइल मामलों में पुलिस की भूमिका कुछ और रहती है जबकि जनसमान्‍य के लिए कुछ और। कमलकांत उपमन्‍यु जैसे शासन व प्रशासन के लाइजनर्स, नियम-कानून तथा आदेश-निर्देशों की धज्‍जियां उड़ाकर किस तरह समूची व्‍यवस्‍था का मजाक उड़ाते प्रतीत होते हैं और आम आदमी छोटे से छोटे मामलों में प्रताड़ित किया जाता है।
बार एसोसिएशन ने डीजीपी को लिखे पत्र में इस आशय की चेतावनी भी दी है कि यदि समय रहते इस मामले में आरोपी की गिरफ्तारी नहीं की जाती और विवेचना को निष्‍पक्ष तरीके से निस्‍तारित करने में बाधा उत्‍पन्‍न की जाती है तो शीघ्र ही अधिवक्‍तागण इसे उच्‍च न्‍यायालय तक ले जाने को बाध्‍य होंगे क्‍योंकि इस तरह आरोपी के भाई की एप्‍लीकेशन पर संगीन अपराध की विवेचना गैर जनपद स्‍थानांतरित की जा सकती है तो यह अधिकार सभी मामलों में आरोपी अथवा उसके परिजनों को दिया जाना चाहिए ताकि कानून सबके लिए समान होने की बात केवल सुनाई न दे, बल्‍कि दिखाई भी दे।
-लीजेण्‍ड न्‍यूज़ विशेष