स्‍पंदन....कुछ व्‍यंग्‍य

शुक्रवार, 23 अक्टूबर 2015

कल्‍पतरू ग्रुप का खेल खत्‍म, देश से भागने की कोशिश में है जयकृष्‍ण राणा

मथुरा बेस्‍ड कल्‍पतरू ग्रुप का खेल खत्‍म हो गया लगता है, हालांकि ग्रुप से जुड़े कुछ लोग अब भी विभिन्‍न स्‍तर पर सफाई देने की कोशिश में लगे हैं किंतु अधिकांश लोगों ने ग्रुप का खेल खत्‍म होने की बात स्‍वीकार करनी शुरू कर दी है।
ग्रुप का मथुरा से प्रकाशित एकमात्र सुबह का अखबार कल्‍पतरू एक्‍सप्रेस तो इस महीने की शुरूआत में ही बंद हो गया था किंतु अब बाकी प्रोजेक्‍ट भी बंद होने लगे हैं। अधिकांश प्रोजेक्‍ट के कर्मचारियों ने भी ऑफिस आना छोड़ दिया है और जितने लोग ऑफिस पहुंच भी रहे हैं, वह सिर्फ इस प्रयास में हैं कि किसी भी तरह अपना रुका हुआ वेतन हासिल कर लिया जाए।
ग्रुप से जुड़े सूत्रों के मुताबिक ग्रुप के विभिन्‍न प्रोजेक्‍ट्स तथा कंपनियों में अब तक कार्यरत तमाम लोग ऐसे हैं जिन्‍हें पिछले छ:-छ: महीने से वेतन नहीं मिला। ऐसे लोगों के लिए परिवार का गुजर-बसर करना तक मुश्‍किल हो चुका है। 50-50 हजार रुपया प्रतिमाह के वेतन पर कार्यरत एक-एक व्‍यक्‍ति का इस तरह ग्रुप पर तीन-तीन लाख रुपया बकाया है लेकिन न कोई उनकी ओर देखने वाला है और न सुनने वाला।
बताया जाता है कि ग्रुप का जहाज डूबने की आंशका होते ही ग्रुप के चेयरमैन जयकृष्‍ण राणा की अब तक चमचागीरी करने में लिप्‍त रहे अधिकांश लोग गायब हो चुके हैं। ये वो लोग हैं जिन्‍हें जयकृष्‍ण राणा द्वारा अपना विश्‍वस्‍त तथा वफादार मानते हुए न केवल अच्‍छा खासा वेतन दिया जाता था बल्‍कि लग्‍ज़री गाड़ियां भी उपलब्‍ध करा रखी थीं। जयकृष्‍ण राणा के मुंहलगे कई कर्मचारी तो खुद टाटा सफारी इस्‍तेमाल किया करते थे और परिवार के लिए ग्रुप से ही छोटी गाड़ियां ले रखी थीं।
सूत्रों का कहना है चमचागीरी पसंद करने वाला जयकृष्‍ण राणा अब खुद भी अपने चुरमुरा (फरह) स्‍थित उस ऑफिस में नहीं बैठ रहा जहां कभी पूरे लाव-लश्‍कर तथा निजी सुरक्षा गार्ड्स सहित रुतबे के साथ बैठा करता था।
बताया जाता है कि कल्‍पतरू ग्रुप का जहाज डूबने की जानकारी उसके मथुरा से बाहर के निवेशकों को भी हो चुकी है और वो लोग चुरमुरा पहुंचने लगे हैं।
बताया जाता है कि इन लोगों ने वहीं एक किस्‍म का धरना दे रखा है और यही कारण है कि जयकृष्‍ण राणा चुरमुरा नहीं जा रहा।
दरअसल, उसे मालूम है कि एक ओर कर्मचारी तथा दूसरी ओर निवेशक उससे पैसों की मांग करेंगे जो वह देना नहीं चाहता।
पता लगा है कि मथुरा की चंदन वन कॉलोनी में जयकृष्‍ण राणा ने कोई ऑफिस जैसा गोपनीय निवास बना रखा है, जहां वह अपने खास गुर्गों तथा सुरक्षा बलों के साथ बैठता है। यहां उसके गुर्गों तथा सुरक्षाबलों की इजाजत के बिना परिन्‍दा भी पर नहीं मार सकता। इस ऑफिसनुमा घर की जानकारी बहुत ही कम लोगों को है।
यदि कोई कर्मचारी या निवेशक किसी तरह जानकारी हासिल करके वहां तक पहुंचने का दुस्‍साहस करता है तो राणा के गुर्गे उसे फिर उस ओर मुंह न करने की चेतावनी के साथ लौटा देते हैं। साथ ही यह भी समझा देते हैं कि यदि फिर कभी इधर आने की जुर्रत की तो गंभीर परिणाम भुगतना पड़ सकता है।
राणा के अति निकटस्‍थ सूत्रों का तो यहां तक कहना है कि राणा सहाराश्री की तरह कानून की गिरफ्त में नहीं आना चाहता और इसके लिए अपने खास लोगों से सलाह-मशविरा कर रहा है।
सूत्रों का कहना है कि जयकृष्‍ण राणा इस फिराक में है कि किसी भी तरह एकबार देश से बाहर निकल लिया जाए और फिर कभी इधर मुड़कर न देखा जाए। इसके लिए राणा ने अपने पसंदीदा एक मुल्‍क में पूरा बंदोबस्‍त भी कर लिया है, बस उसे इंतजार है उस मौके का जिससे वह सबको चकमा देकर बाहर निकल सके।
एक ओर सीक्‍यूरिटीज एंड एक्‍सचेंच बोर्ड ऑफ इंडिया (सेबी) का गले तक कस चुका शिकंजा, दूसरी ओर निवेशकों का दबाव और इसके अलावा कर्मचारियों का हर दिन बढ़ता वेतन…इन सबसे निपटने की क्षमता अब कल्‍पतरू ग्रुप और उसके चेयरमैन जयकृष्‍ण राणा में बची नहीं है लिहाजा अब उसके लिए दो ही रास्‍ते शेष हैं।
पहला रास्‍ता है सारी स्‍थिति को सामने रखकर कानूनी प्रक्रिया का सामना करे और दूसरा रास्‍ता है कि सबकी आंखों में धूल झोंककर भाग खड़ा हो।
अब देखना यह है कि जयकृष्‍ण राणा को इनमें से कौन सा रास्‍ता रास आता है, हालांकि उसके गुर्गे अब भी यही कहते हैं कि अखबार भी शुरू होगा और कर्मचारियों को उनका पूरा वेतन भी दिया जायेगा परंतु हालात कुछ और बयां कर रहे हैं।
-लीजेंड न्‍यूज़