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सोमवार, 26 फ़रवरी 2018

लोकतंत्र के चौथे स्‍तंभ का भ्रष्‍टाचार: कल संपन्‍न हो चुकी बरसाने की ‘लठामार होली’, और आज छप रहा है उसका फुल पेज रंगीन विज्ञापन

मथुरा। केंद्र की राजग सरकार के मुखिया और प्रधानमंत्री नरेन्‍द्र मोदी तथा उत्तर प्रदेश के मुख्‍यमंत्री योगी आदित्‍यनाथ भ्रष्‍टाचार को लेकर बेशक ‘जीरो टॉलरेंस’ का दम भरते हों, किंतु सच्‍चाई कुछ और ही है।
सच्‍चाई यह है कि ‘भ्रष्‍टतंत्र’ आज भी एक सांठगांठ के तहत पूरी तरह अपनी मनमानी कर रहा है और यह मनमानी हर क्षेत्र में व्‍याप्‍त है। फिर चाहे यह क्षेत्र सबके ऊपर उंगली उठाने वाले ‘मीडिया’ का क्षेत्र ही क्‍यों न हो।
मीडिया और सरकारी विभागों की सांठगांठ से सरकारी खजाने को चूना लगाने का एक उदाहरण तब सामने आया, जब बीते कल 24 फरवरी को संपन्‍न हो चुकी बरसाना की लठामार होली का एक फुल पेज रंगीन विज्ञापन आगरा से प्रकाशित प्रसिद्ध अखबार अमर उजाला में आज देखा गया।
मतलब कि कल बरसाना की होली संपन्‍न हो जाने के एक दिन बाद 25 फरवरी को ‘बरसाना की होली 24 फरवरी के दिन’ मनाए जाने का यह फुल पेज विज्ञापन ‘अमर उजाला’ में आज 19वेंं पेज पर प्रकाशित हुआ है।
यह विज्ञापन उत्तर प्रदेश के पर्यटन विभाग द्वारा प्रकाशित कराया गया है और इसमें कल संपन्‍न हो चुके सभी कार्यक्रमों की उसी प्रकार सूचना दी गई है जिस प्रकार पूर्व में प्रकाशित इसी प्रकार के दूसरे विज्ञापनों में दी जा चुकी थी।
आगरा परिक्षेत्र में सर्वाधिक प्रसार वाले ‘अमर उजाला’ के इस फुल पेज रंगीन विज्ञापन की कीमत का अंदाज अमर उजाला के विज्ञापन टैरिफ से लगाया जा सकता है।
जाहिर है कि यह विज्ञापन लाखों रुपए का होगा और चूंकि यह ‘डीएवीपी’ की ओर से नहीं दिया गया है लिहाजा इसके पैसे भी कॉमर्शियल एड टैरिफ के मुताबिक ही वसूले गए होंगे।
गौरतलब है कि विज्ञापनों के जरिए मनमाने तरीके से प्रचार प्रसार करने पर राष्‍ट्रीय राजधानी दिल्‍ली की अरविंद केजरीवाल के नेतृत्‍व वाली आम आदमी पार्टी की सरकार अब तक सवालों के घेरे में है क्‍योंकि सरकारी विज्ञापनों पर आने वाले भारी-भरकम खर्च का भुगतान भी सरकारें जनता की गाढ़ी कमाई के पैसों से करती हैं।
ऐसे में यह सवाल उठना स्‍वाभाविक है कि एक दिन पहले संपन्‍न हो चुकी बरसाना की विश्‍व प्रसिद्ध लठामार होली का फुल पेज रंगीन विज्ञापन आज क्‍या पर्यटन विभाग से ‘सांठगांठ’ के बिना छप पाना संभव है।
वैसे यह तो एक उदाहरण भर है, क्‍योंकि सरकारी मुलाजिमों की मिली भगत से अखबारों के मालिकान सरकारी खजाने को भरपूर चूना पहले भी लगाते रहे हैं।
देखने की बात बस इतनी है कि क्‍या योगी राज में भी अखबार मालिकों और सरकारी विभागों की बड़े-बड़े विज्ञापनों के लिए चल रही सांठगांठ जारी रहेगी और क्‍या सरकारी पैसे का दुरुपयोग होता रहेगा।
कोई भी सामान्‍य व्‍यक्‍ति इस बात से भली-भांति वाकिफ होगा कि सरकारी खजाने से एक रुपया तक निकलवाना कितना दुरूह काम है, फिर चाहे वह पैसा उस व्‍यक्‍ति का अपना ही क्‍यों न हो, लेकिन यदि सांठगांठ कर रखी हो तो लाखों रुपए भी हड़पे जा सकते हैं।
कुल मिलाकर यह कहना मुनासिब होगा कि केवल नीरव मोदी, मेहुल चौकसी, विक्रम कोठारी और राहुल कोठारी जैसे उद्योगपति और व्‍यापारी ही सरकारों को खोखला नहीं कर रहे, उनकी दिन-रात खबरें दिखाने वाले मीडिया समूह भी सरकारी खजाने को चट कर रहे हैं।
आश्‍चर्य की बात यह भी है कि ईमानदार सरकारों को मीडिया में व्‍याप्‍त इस तरह का भ्रष्‍टाचार क्‍यों दिखाई नहीं देता जबकि मीडिया द्वारा किया जाने वाला भ्रष्‍टाचार इसलिए कहीं अधिक गंभीर हो जाता है क्‍योंकि उसके ऊपर सबका ‘छिद्रान्‍वेषण’ करने की जिम्मेदारी है और वह लोकतंत्र का कथित रूप से ही सही, लेकिन चौथा स्‍तंभ तो है ही।
-सुरेन्‍द्र चतुर्वेदी