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शुक्रवार, 16 दिसंबर 2022

नगर निकाय चुनाव यूपी: कोर्ट के रुख से बहुत से भाजपाई खुश, लेकिन पार्टी के व्यवहार से क्षुब्ध


 यूपी में नगर निकाय चुनावों के लिए आरक्षण की अधिसूचना पर इलाहाबाद हाई कोर्ट द्वारा फिलहाल रोक लगाए जाने से एक ओर जहां तमाम वो भाजपाई खुश हैं जो सामान्य सीट होने की स्‍थिति में चुनाव लड़ने की योग्‍यता रखते हैं वहीं दूसरी ओर पार्टी पदाधिकारियों के रवैये से कार्यकर्ताओं का एक बड़ा वर्ग नाखुश दिखाई दे रहा है।

दरअसल, नगर निकाय चुनावों के लिए आरक्षित सीटों की घोषणा होने से पहले भाजपा का एक बड़ा वर्ग अपने लिए पार्षद और मेयर के पदों पर चुनाव लड़ने की संभावना तलाश रहा था, किंतु आरक्षण की घोषणा ने उसकी उम्‍मीदों पर पानी फेर दिया। विशेषकर उन जिलों में जहां 2017 के चुनावों में भी मेयर पद आरक्षित था।

ऐसे जिलों में कृष्‍ण की नगरी मथुरा का नाम प्रमुखता से लिया जा सकता है। दरअसल, 2017 के निकाय चुनावों में ही स्‍थानीय लोगों के भारी विरोध को दरकिनार कर मथुरा एवं वृंदावन नगर पालिकाओं को मिलाकर ''मथुरा-वृंदावन नगर निगम'' बना दिया गया। फिर यहां का मेयर पद भी दलित के लिए आरक्षित कर दिया।

अब पार्टीजन ये मानकर चल रहे थे कि 2022 में इस धार्मिक नगरी का मेयर पद सामान्य घोषित कर दिया जाएगा किंतु इस बार इसे ओबीसी (महिला) के लिए आरक्षित कर दिया।

बहरहाल, ओबीसी आरक्षण के खिलाफ दायर एक याचिका पर इलाहाबाद हाई कोर्ट की लखनऊ खंड पीठ द्वारा फिलहाल 20 दिसंबर तक रोक लगाकर सुनवाई की जा रही है जिससे उम्‍मीद बंधी है कि शायद सरकार की घोषणा लागू न हो सके और ओबीसी के लिए पिछले दिनों घोषित सीटों पर भी बिना आरक्षण चुनाव कराने पड़ें। लेकिन इस सबके बीच बीजेपी कार्यकर्ताओं का एक बड़ा वर्ग पार्टी पदाधिकारियों के उपेक्षित रवैये से नाराज है।

उसका कहना है कि सालों-साल मेहनत तो करता है सामान्‍य कार्यकर्ता, किंतु जब बात आती है टिकटों के बंटवारे की तो उसे कोई तरजीह नहीं दी जाती। यहां तक कि उसी के इलाके की उम्‍मीदावारी पर भी उसकी राय लेना जरूरी नहीं समझा जाता और पार्टी पदाधिकारी 'अंधे बांटें रेवड़ी' की कहावत को चरितार्थ करने लगते हैं।

इन कार्यकर्ताओं की मानें तो पार्टी पदाधिकारी अपमान की हद तक उनके साथ रूखा व्‍यवहार करते हैं और अपने-अपने लोगों के नाम आगे बढ़ाने में लगे रहते हैं, जो समर्पित कार्यकताओं के साथ सरासर अन्याय है।

यही नहीं, पार्षद के पद पर चुनाव लड़ने के इच्‍छुक कार्यकर्ताओं द्वारा दावेदारी जताये जाने की स्‍थिति में उन्‍हें उनकी हैसियत का अहसास कराया जाता है ताकि वह चुनाव लड़ने का विचार ही त्याग दें।

उदाहरण के तौर पर यदि बात करें मथुरा की तो इसका प्रमाण तब देखने को मिला जब दो दिन पहले सीएम योगी आदित्यनाथ यहां आए।

पार्टी सूत्रों के अनुसार योगी की सभा में भीड़ जुटाने की जिम्‍मेदारी पार्षद का चुनाव लड़ने के इच्‍छुक कार्यकर्ताओं पर थोप दी गई। एक-एक दावेदार से सौ-सौ लोगों को सभा स्‍थल तक पहुंचाने को कहा गया। साथ ही उनसे दो-दो बड़े होर्डिंग लगवाए गए।

चूंकि एक-एक वार्ड से टिकट मांगने वाले कार्यकताओं की संख्‍या दर्जनों तक पहुंच रही है इसलिए भीड़ तो एकत्र हो गई लेकिन उसे जुटाने तथा होर्डिंग लगवाने का खर्चा बहुतों को अखर गया।

ऐसे में जाहिर है कि अनेक ऐसे कार्यकर्ता तो पार्षद का भी चुनाव लड़ने की बात नहीं सोच सकते जिनकी आर्थिक स्‍थिति लाखों रुपए खर्च करने की इजाजत नहीं देती।

यदि वो किसी पदाधिकारी के सामने अपनी इच्‍छा व्‍यक्त करते हैं तो उन्‍हें इसका अहसास करा दिया जाता है कि चुनाव लड़ना उनके बस की बात नहीं।

बेशक आज निकाय चुनाव लड़ना आसान नहीं रहा और इसमें भी दूसरे चुनावों की तरह प्रत्याशी को पैसा पानी की तरह बहाना पड़ता है लेकिन समर्पित कार्यकर्ता तो चुनावों का बेसब्री से इंतजार करते ही हैं क्योंकि उनका अपना राजनीतिक भविष्‍य अंतत: चुनावों पर ही टिका होता है।

ऊपर से अगर पार्टी पदाधिकारी उनके साथ सौतेला व्‍यवहार करते हैं और उन्‍हीं का नाम आगे बढ़ाते हैं जो या तो उनकी गणेश परिक्रमा करने में माहिर होते हैं या फिर पैसा खर्च करने में समर्थ, तो आम कार्यकर्ताओं को ठेस लगना स्‍वाभाविक है।

भारतीय जनता पार्टी को आज जो मुकाम हासिल है, उसके पीछे आम कार्यकर्ता की मेहनत, लगन, निष्‍ठा और समर्पण का भी बहुत बड़ा हाथ है इसलिए उसे किसी षड्यंत्र या सोची-समझी रणनीति के तहत चुनाव लड़ने के उसके अधिकार से वंचित करना तथा टिकट मांगने पर हतोत्‍साहित करना, आज नहीं तो कल पार्टी को भारी पड़ सकता है।

ये बात इसलिए और अहमियत रखती है कि पिछले दिनों जब पार्टी ने मथुरा-वृंदावन का मेयर पद ओबीसी (महिला) के लिए आरक्षित कर दिया था तब भी अधिकांश वही लोग हावी होने की कोशिश कर रहे थे जिन्‍हें सीधे तौर पर टिकट का हकदार नहीं माना जा सकता। इन लोगों में वो लोग प्रमुख थे जिनके पुत्रों ने इस श्रेणी की महिला से शादी की है या जिनकी अपनी पत्नी इस इस वर्ग के आरक्षण की श्रेणी में आती हैं।

नगर निगम बनने के बाद दलित के लिए आरक्षित योगीराज भगवान श्रीकृष्‍ण की पावन भूमि का पहला मेयर तो भाजपा के मुकेश आर्यबंधु को चुना गया लेकिन उनका कार्यकाल ऐसा नहीं रहा जिसमें कोई उल्‍लेखनीय उपलब्‍धि हासिल की गई हो और जनता उनके काम से संतुष्‍ट हो।

माना कि इस दौर में भाजपा के सभी प्रत्याशी मोदी और योगी पर चुनकर आते हैं किंतु फिर भी पब्‍लिक की अपने जनप्रतिनिधि से कुछ तो अपेक्षाएं होती ही हैं। इन अपेक्षाओं पर खरा उतरने के लिए योग्य प्रत्‍याशियों का चयन जरूरी है।

पद चाहे मेयर का हो या पार्षद का, न तो आम जनता यह चाहती है कि उसके लिए प्रत्याशी उसके ऊपर थोप दिया जाए और न पार्टी कार्यकर्ता ऐसे प्रत्याशी को पसंद करते हैं। विकल्‍प के अभाव में जनता, तथा अनुशासन की डोर में बंधे होने के कारण कार्यकर्ता बुझे मन से भले ही टिकट पाने वाले प्रत्‍याशी का साथ देते नजर आएं लेकिन कहीं न कहीं उन्‍हें ये बात अखरती जरूर है।

हाल ही में सपन्‍न हुए हिमाचल प्रदेश विधानसभा चुनावों के नतीजे इस बात का प्रमाण है कि असंतुष्‍ट एवं बागी भाजपा प्रत्‍याशियों ने किस तरह पार्टी के जबड़े से जीत छीन ली और वोट प्रतिशत में बहुत मामूली अंतर रहने के बावजूद भाजपा इतिहास बनाने से चूक गई।  

पार्टी के सूत्रों की मानें तो मथुरा-वृंदावन मात्र उदाहरण है अन्‍यथा पूरे प्रदेश में कमोबेश हालात एक जैसे हैं। सामान्य कार्यकर्ता तरसता रह जाता है और प्रभावशाली लोग अपने मोहरे फिट करने में सफल हो जाते हैं।

'मथुरा' के भाजपाइयों को तो इस मामले में यूं भी काफी कटु अनुभव है क्‍योंकि पिछले तीन लोकसभा चुनावों से यहां पार्टी किसी स्‍थानीय को न लड़ाकर, बाहरी प्रत्‍याशी को लड़ा रही है। 2009 में गठबंधन के चलते रालोद के जयंत चौधरी को टिकट दे दिया गया और 2014 तथा 2019 में हेमा मालिनी बाजी मार ले गईं। 2024 के लिए भी कोई स्‍थानीय चेहरा नहीं चमक रहा।

जो भी हो, समय रहते यदि पार्टी ने गंभीर होती इस समस्‍या पर ध्‍यान नहीं दिया और समर्पित भाजपा कार्यकर्ताओं की इसी तरह उपेक्षा की जाती रही तो निश्‍चित ही इसके परिणाम भविष्‍य में अच्‍छे नहीं निकलेंगे।

बेहतर होगा कि नगर निकाय के इन चुनावों में भी प्रत्‍याशियों का चयन योग्‍यता के आधार पर किया जाए, न कि चापलूसी या संबंधों के अधार पर। सीट आरक्षित हो या सामान्‍य, लेकिन जनसामान्‍य के दिलों में जगह बनाने वाले जनप्रतिनिधि ही बड़ी लकीर खींचने में सफल होंगे। वही पार्टी के लिए मुफीद होंगे और वही जनता के लिए। भाजपा के निर्णायक नेता इस पर कम से कम एकबार विचार करके जरूर देखें।

- लीजेण्‍ड न्‍यूज़  

सावधान: आगरा व मथुरा भी शामिल हैं भूकंप के लिहाज से अति संवेदनशील जोन 4 में

 देर रात भूकंप के झटकों से दिल्‍ली-एनसीआर में दहशत फैल गई। 9 नवंबर की रात करीब 1.57 बजे ये झटके लगे। राजधानी से लेकर नोएडागुड़गांवगाजियाबाद और यहां तक कि  मथुरा सहित अन्‍य तमाम इलाकों में भी झटके महसूस किए गए। रात को सर्द मौसम की वजह से बंद पंखे अचानक हिलने लगे। खिड़कियां कड़कड़ाने लगीं। फर्नीचर इधर-उधर होने लगा। सोशल मीडिया पर लोग झटकों के अनुभव बता रहे हैं। नेशनल सेंटर फॉर सीस्‍मोलॉजी (NCS) के अनुसार भूकंप का केंद्र नेपाल में था। अपने ट्वीट में NCS ने कहा कि भूकंप की गहराई जमीन से 10 किलोमीटर नीचे थी। भूकंप के झटके उत्‍तर प्रदेश की राजधानी लखनऊ समेत कई जिलों में भी महसूस हुए। नेपाल में 8 नवंबर को 9.41 बजे और 8.52 पर भी भूकंप आया था। हालांकि इसकी तीव्रता 5 से कम थी।

इससे पहले 25 अप्रैल 2015 को आये भूकंप ने नेपाल में बर्बादी का जैसा मंजर दिखाया जिसे कभी भुलाया नहीं जा सकता। और कल फिर जिस तरह लोगों को भी कांपने पर मजबूर कर दिया उसके बाद अब भारत में भी इस पर खासी चर्चा की जाने लगी है कि यदि कभी कोई तीव्रता का भूकंप भारत के उन क्षेत्रों में आया जो भूकंप के प्रति अति संवेदनशील जोन 4 में आता है तो स्‍थिति क्‍या होगी।

आगरा व मथुरा भी शामिल हैं भूकंप के प्रति अति संवेदनशील जोन 4 में

यहां यह जान लेना जरूरी है कि राष्‍ट्रीय राजधानी दिल्‍ली और उसके आसपास का "ब्रज वसुंधरा" कहलाने वाला सारा क्षेत्र जिसमें मथुरा व आगरा भी शामिल हैं भूकंप के प्रति अति संवेदनशील जोन 4 में आता है।

दिल्‍ली से आगरा जहां करीब 200 किलोमीटर दूर है जबकि मथुरा 146 किलोमीटर की दूरी पर है। आगरा एक एतिहासिक शहर है और वहां ताजमहल सहित अनेक विश्‍व प्रसिद्ध इमारत हैं जबकि मथुरा को भगवान श्रीकृष्‍ण की जन्‍मस्‍थली का गौरव प्राप्‍त है। इन दोनों ही शहरों का पुराना रिहायशी इलाका न सिर्फ काफी घना है बल्‍कि इस इलाके में खड़ी तमाम इमारतें, दुकान तथा मकान जर्जर अवस्‍था को प्राप्‍त हो चुके हैं।

मथुरा में तो अंदर का एक बड़ा हिस्‍सा मिट्टी के टीलों पर बसा है और इस हिस्‍से में ढाई-ढाई, तीन-तीन सौ साल पुराने मकान भी देखे जा सकते हैं।

जाहिर है कि इन पुराने व जर्जर मकानों व इमारतों में इतनी सामर्थ्‍य शेष नहीं है कि वह किसी बड़े भूकंप को झेल सकें।

इन रिहायशी हिस्‍सों में शासन-प्रशासन भी कुछ कर पाने में असमर्थ है किंतु यदि बात करें आगरा और मथुरा के उस बाहरी हिस्‍से की जो तरक्‍की की दौड़ में शामिल होकर बहुमंजिला इमारतों से तो भरता जा रहा है किंतु उनके भी निर्माण में भूकंपरोधी तकनीक का इस्‍तेमाल नहीं किया जा रहा। हां, उसका प्रचार करके लोगों को गुमराह अवश्‍य किया जा रहा है।

क्या आगरा और मथुरा के नव निर्माण में अपनाई जा रही है भूकंपरोधी तकनीक?

अब सवाल यह खड़ा होता है कि आखिर कैसे बनती है कोई इमारत भूकंपरोधी, क्‍या कहता है इस बारे में हमारा कानून और सच्‍चाई के धरातल पर हो क्‍या रहा है?

इन सब बातों के जवाब जानने के लिए ''लीजेण्‍ड न्‍यूज़'' ने जब विशेषज्ञों से बात की तो चौंकाने वाले तथ्‍य सामने आये।

क्या होती है भूकंपरोधी तकनीक और कैसे किसी इमारत को बनाया जाता है भूकंपरोधी

किसी बिल्‍डिंग को भूकंपरोधी बनाने लिए सबसे जरूरी है सॉइल टेस्टिंग रिपोर्ट। यह रिपोर्ट बताती है कि उस जगह की मिट्टी में बिल्डिंग का कितना वजन सहन करने की क्षमता है। इलाके की मिट्टी की क्षमता के आधार पर ही बिल्डिंग में मंजिलों की संख्या तय की जाती है और डिजाइन तैयार किया जाता है। तकनीकी शब्दों में इसे सॉइल की 'बियरिंग कैपेसिटीकहा जा सकता है। इस रिपोर्ट से ही यह पता चलता है कि नेचुरल ग्राउंड लेवल के नीचे कितनी गहराई तक जाकर भूकंप के प्रति बियरिंग कैपेसिटी मिल सकती है। मान लीजिए यदि रिपोर्ट बताती है कि हमें तीन मीटर नीचे जाकर बियरिंग कैपेसिटी मिलेगी, तो यहां से स्ट्रक्चरल इंजीनियर का काम शुरू होता है। वह रिपोर्ट के आधार पर वहां डेढ़ बाई डेढ़ मीटर की फाउंडेशन तैयार करेगा। इसके बाद स्ट्रक्चरल इंजीनियर का काम बिल्डिंग का डिजाइन तैयार करना होता है। आजकल भूकंपरोधी मकान बनाने के लिए लोड बियरिंग स्ट्रक्चर की बजाय फ्रेम स्ट्रक्चर बनाए जाते हैंजिनसे पूरी बिल्डिंग कॉलम पर खड़ी हो जाती है। कॉलम को जमीन के नीचे दो-ढाई मीटर तक लगाया जाता है। फ्लोर लेवललिंटेल लेवलसेमी परमानेंट लेवल (टॉप) और साइड लेवल (दरवाजे-खिड़कियों के साइड) में बैंड (बीम) डालने जरूरी होते हैं।

कौन करेगा जांच

- मिट्टी की जांच की जिम्मेदारी सेमी गवर्नमेंट और कई प्राइवेट एजेंसी संभालती हैं। इसके लिए इंश्योरेंस सर्वेयर्स की तरह इंडिपेंडेंट सर्वेयर भी होते हैं।

- इसके लिए वे बाकायदा एक निर्धारित फीस चार्ज करते हैं।

- जांच के बाद एक सर्टिफिकेट जारी किया जाता है।

क्या पता चलेगा

- मिट्टी प्रति स्क्वेयर सेंटीमीटर कितना लोड झेल सकती है?

- यह जगह कंस्ट्रक्शन के लिए ठीक है या नहीं?

- इलाके में वॉटर लेवल कितना है?

- वॉटर लेवल और बियरिंग कैपेसिटी का सही अनुपात क्या है?

- मिट्टी हार्ड है या सॉफ्ट?

कितना आएगा खर्च

90 गज के प्लॉट के लिए करीब 25 हजार रुपये।

बिल्डिंग के लिए जिम्मेदारी

- टेस्टिंग के बाद सर्वेयर और बिल्डिंग डिजाइन करने के बाद स्ट्रक्चरल इंजीनियर एक सर्टिफिकेट जारी करता हैं। बिल्डिंग को कोई नुकसान पहुंचने पर इसकी भी जवाबदेही तय की जा सकती है।

क्या है सेफ

- कॉलम में सरिया कम-से-कम 12 मिमी. मोटाई वाला हो।

- फाउंडेंशन कम-से-कम 900 बाई 900 की हो।

- लिंटेल बीम (दरवाजों के ऊपर) में कम-से-कम 12 मिमी मोटाई का स्टील इस्तेमाल किया जाए।

- पुटिंग में कम-से-कम 10-12 मिमी. मोटाई वाले स्टील का प्रयोग हो।

- स्टील की मोटाई कंक्रीट की थिकनेस के आधार पर कम या ज्यादा की जा सकती है।

- स्टील की क्वॉलिटी बेहतर होनी चाहिएज्यादा इलास्टिसिटी वाले स्टील से बिल्डिंग को मजबूती मिलती है।

तैयार मकान

अगर आप प्लॉट पर अपना मकान बनवाने की बजाय पहले से ही तैयार कोई मकान लेने जा रहे हैंतो उसकी जांच करने के लिए आपके पास विकल्प सीमित हो जाते हैं। इसके लिए ठीक ब्लड टेस्ट की तरह थोड़े-थोड़े सैंपल लेकर जांच की जा सकती हैलेकिन यह काम भी कोई आम आदमी नहीं कर सकता। इसके लिए किसी स्ट्रक्चरल इंजीनियर की सर्विस लेनी पड़ती है। उदाहरण के लिएतैयार मकान के कॉलम को किसी जगह से छीलकर सरिये की मोटाई और संख्या का पता लगाया जा सकता है। इसके लिए खास मशीन भी आती हैजो एक्स-रे की तरह कॉलम को नुकसान पहुंचाए बिना सरिये की स्थिति बता देती है। इसी तरहप्लिंथ (फ्लोर) लेवल पर कंक्रीट की थिकनेस और एरिया देखकर उसका मिलान मिट्टी की बियरिंग कैपेसिटी से कर सकते हैं। अगर कोई कमी पाई जाती है और लगता है कि मकान भूकंप नहीं सह सकता तो अतिरिक्त कॉलम खड़े करके उसे मजबूत बनाया जा सकता है। वैसे कंस्ट्रक्शन मटीरियल की जांच भी कुछ राहत दे सकती है।

मटीरियल की जांच

जमीन की मिट्टी ठीक होना ही बिल्डिंग की सुरक्षा के लिए काफी नहीं हैजरूरी है कि बिल्डिंग को तैयार करने में क्वॉलिटी मटीरियल भी लगाया गया हो। इस मटीरियल में कंक्रीटसीमेंटईंटसरिया आदि शामिल होता है। मटीरियल के ठीक होने या नहीं होने के संबंध में ज्यादातर संतुष्टि केवल डेवलपर के ट्रैक रिकॉर्ड और उसकी साख को देखकर ही की जाती है। फिर भी कुछ हद तक सावधानी बरती जा सकती है।

बिल्डिंग मटीरियल टेस्टिंग

- किसी प्रोफेशनल एजेंसी से भी बिल्डिंग मटीरियल की टेस्टिंग कराई जा सकती है।

- ये एजेंसियां पूरी बिल्डिंग या आपकी इच्छानुसार किसी खास हिस्से के मटीरियल की टेस्टिंग करेंगी।

- अलग-अलग तरह की जांच के लिए अलग-अलग फीस ली जाती है।

- जांच के बाद 10-15 दिनों में रिपोर्ट मिल जाती है।

प्रोफेशनल सर्टिफिकेट

- आरसीसी फ्रेमवर्क के तहत आने वाली चीजों की जांच किसी प्रोफेशनल से कराई जा सकती है।

- इस फ्रेमवर्क के अंतर्गत पिलरनींवस्लैब्स आदि आते हैं।

- प्रोफेशनल के रूप में स्ट्रक्चरल इंजीनियर से सटिर्फिकेट लिया जा सकता है।

साइट विजिट

- अंडर कंस्ट्रक्शन प्रॉपर्टी में फ्लैट बुक कराया है तो साइट विजिट जरूर करें।

- वहां मौजूद एक्सपर्ट/प्रोजेक्ट इंचार्ज से मटीरियल की जानकारी लें।

- आम आदमी को भी मौके पर रखे सामान को देखकर क्वॉलिटी का अंदाजा हो जाता है।

थर्ड पार्टी क्वॉलिटी चेक

- इस प्रक्रिया के अंतर्गत बिल्डर मिट्टी समेत सभी मटीरियल की क्वॉलिटी चेक कराता है।

- यह जांच प्राइवेट एजेंसियां निर्धारित मानकों के आधार पर करती हैंजिन्हें मानना बिल्डर के लिए जरूरी होता है।

- सभी चीजों की जांच के बाद सर्टिफिकेट दिए जाते हैंजिन्हें एक बार जरूर देख लेना चाहिए।

मल्टी स्टोरी फ्लैट

मल्टी स्टोरी फ्लैट भूकंपरोधी हैं या नहींयह जांच करने के ज्यादा मौके आपके पास नहीं होते। इसके लिए बिल्डर पर भरोसा कर लेना ही आमतौर पर उपलब्ध विकल्प होता है। एक्सपर्ट्स के अनुसारकिसी भी फ्लैट में इंडिविजुअल रूप से यह नहीं जांचा जा सकता कि वह भूकंपरोधी है या नहींइसके लिए पूरी बिल्डिंग की ही टेस्टिंग की जाती है। हांडेवलपर से बिल्डिंग और फ्लैट का स्ट्रक्चरल डिजाइन मांगकर उसे किसी एक्सपर्ट से चेक कराया जा सकता है।

क्या है स्ट्रक्चरल इंजीनियरिंग

स्ट्रक्चरल इंजीनियरिंग सिविल इंजीनियरिंग का एक हिस्सा है। इसके अंतर्गत किसी बिल्डिंगब्रिजडैम या किसी अन्य निर्माण का स्ट्रक्चर और कंस्ट्रक्शन का कार्य आता है। बिल्डिंग के स्ट्रक्चर को डिजाइन करते समय बिल्डिंग कैसे खड़ी होगी और इस पर कितना लोड आयेगाइसका आंकलन सबसे पहले किया जाता है। बिल्डिंग कितने लोगों के लिए तैयार की जा रही हैयह बिल्डिंग कॉमर्शियल होगी या रेजीडेंशियलजमीन किस तरह की हैमिट्टी की क्षमता कितनी हैउस स्थान पर भूकंपबाढ़ व अन्य प्राकृतिक आपदाओं का कितना डर है आदि बातों को ध्यान में रखकर बिल्डिंग का डिजाइन तैयार किया जाता है। यह सारा कार्य स्ट्रक्चरल इंजीनियरिंग के अंतर्गत आता है। इसके अंतर्गत कॉलमबीमफ्लोरस्लैब आदि की मोटाई जैसे मुद्दों पर भी गंभीर रूप से ध्यान दिया जाता है। स्ट्रक्चरल इंजीनियरिंग में ब्यूरो ऑफ इंडियन स्टैंडर्ड और इंडियन बिल्डिंग कोड के मानकों का ध्यान रखा जाता हैजिससे मकान या बिल्डिंग सालों-साल सुरक्षित रहते हैं।

स्ट्रक्चरल इंजीनियर और सावधानियां

- घर या बिल्डिंग बनवाने से पहले ही नहींफ्लैट खरीदते वक्त भी स्ट्रक्चरल इंजीनियर से सलाह लें।

- यह सलाह ड्रॉइंग डिटेल बनवाने तक ही सीमित न रहे। उस डिटेल पर पूरी तरह अमल भी करें।

- घर बनवाते वक्त/साइट पर स्ट्रक्चरल इंजीनियर से यह चेक करवाते रहें कि निर्माण सही हो रहा है या नहीं?

- आर्किटेक्ट और स्ट्रक्चरल इंजीनियर का आपसी मेल-जोल होना भी बहुत जरूरी है।

- अगर खुद घर बनवा रहे हैं तो कंस्ट्रक्शन पर आने वाली कुल लागत का अनुमान लगाना आसान हो जाता है।

गौरतलब है कि समय के अभाव और रेडीमेड के चलन ने मकानों का निर्माण खुद कराने की परंपरा को लगभग समाप्‍त सा कर दिया है। अधिकांश लोग निजी बिल्‍डर या डेवलेपमेंट अथॉरिटी द्वारा निर्मित कॉलोनियों में मकान खरीदने को प्राथमिकता देते हैं। निजी बिल्‍डर को अपनी कॉलोनी का डेवलेपमेंट अथॉरिटी से अप्रूवल लेने के लिए न सिर्फ सभी जरूरी कानूनी औपचारिकताएं पूरी करनी होती हैं बल्‍कि इसके लिए भारी-भरकम रकम भी देनी पड़ती है।

क्‍या कहते हैं बिल्‍डर

इस बारे में बिल्‍डर्स का कहना है कि यदि वह किसी प्रोजेक्‍ट का नियमानुसार अप्रूवल लेना चाहें तो कभी प्रोजेक्‍ट खड़ा ही नहीं कर सकते। फिर भूकंपरोधी इमारत बनाने के मामले में तो अप्रूवल के बाद भी गुणवत्‍ता को चेक करने का प्रावधान शामिल है।

उनका कहना है कि किसी इमारत को भूकंपरोधी बनाने के लिए सबसे अहम् और बेसिक चीज सॉइल टेस्टिंग रिपोर्ट की बात करें तो उसी पर कोई खरा नहीं उतरेगा।

शायद ही कोई बिल्‍डर हो जिसने अप्रूवल से पूर्व डेवलेपमेंट अथॉरिटी को नियमानुसार सॉइल टेस्टिंग रिपोर्ट दी हो जबकि अप्रूवल सबको दे दिया जाता है क्‍योंकि वहां अप्रूवल के लिए सॉइल टेस्टिंग रिपोर्ट की नहींकदम-कदम पर मोटे सुविधा शुल्‍क की दरकार होती है।

बिल्‍डर्स के कथन की पुष्‍टि इस बात से भी होती है कि अनेक प्रयास करने के बावजूद आज तक विकास प्राधिकरण का कोई अधिकारी इस मामले में मुंह खोलने को तैयार नहीं हुआ।

रही बात निर्माण कार्य शुरू हो जाने के बाद प्राधिकरण के अधिकारियों तथा तकनीकी विशेषज्ञों द्वारा चेक करने की, तो उसका सवाल ही पैदा नहीं होता। पैदा होती है तो केवल हर सुविधा देने की कीमत जिसे वह इमारत के निर्माण की गति बढ़ने के साथ वसूलते रहते हैं।

विश्‍व प्रसिद्ध धार्मिक जनपद मथुरा और उसके उपनगर वृंदावन में इन दिनों तमाम मल्‍टी स्‍टोरी बिल्‍डिंग्‍स का निर्माण कार्य जोरों पर है। इनमें 3 मंजिला से लेकर 14 मंजिला इमारत तक शामिल हैं।

इन बहुमंजिला इमारतों को बनाने की इजाजत किस स्‍तर से और किस तरह दी गई हैयह जानकारी देने वाला भी कोई नहीं। अलबत्‍ता यह बात जरूर कही जा रही है कि मथुरा में 4 मंजिल से अधिक ऊंची इमारत को बनाने की परमीशन देने का अधिकार स्‍थानीय अधिकारियों के पास नहीं है।

निर्माणाधीन इन तमाम हाइट्स में से कई तो भर्त की जमीन पर खड़ी की जा रही हैं यानि जहां ये बन रही हैं, वह जगह पहले गड्ढे के रूप में थी जिसे बाद में मिट्टी भरवाकर समतल किया गया है जबकि इस तरह की जगह पर मल्‍टी स्‍टोरी बनाने की इजाजत नहीं दी जा सकती। सामान्‍य मकान बनाने से पहले भी भर्त करने की एक जटिल प्रक्रिया अपनाने के बाद ऐसी जगह के लिए परमीशन दी जाती है।

इन हालातों में ब्रज वसुंधरा पर जगह-जगह बन रहीं मौत की ये हाइट्स जमीन के अंदर होने वाली जरा सी हलचल से कैसे ताश के पत्‍तों की तरह ढह जायेंगीइसका अंदाज लगाना बहुत कठिन नहीं है है। तब इन ऊंची-ऊंची अट्टालिकाओं और उनमें रहने वालों का हाल क्‍या होगाइसका भी अंदाज बखूबी लगाया जा सकता है... लेकिन अभी तो सब उसी तरह आंखें बंद किये बैठे हैं जैसे बिल्‍ली द्वारा देख लिए जाने पर भी कबूतर इस झूठी उम्‍मीद में अपनी आंखें बंद कर लेता है कि उसके ऐसा कर लेने से शायद मौत टल जायेगी।

कबूतर फिर भी बेवश होता है लेकिन यहां तो सब-कुछ जानते हुए लोग मौत को खुला निमंत्रण दे रहे हैं जो एक प्रकार से आत्‍महत्‍या का प्रयास ही है। भ्रष्‍टाचार की रेत और गारे पर टिकी इन तमाम हाइट्स को मौत की हाइट्स में तब्‍दील होते उतनी भी देर नहीं लगेगी जितनी कि पलक झपकने में लगती है लेकिन फिलहाल तो तरक्‍की का पैमाना बन चुकी इन हाइट्स की बुनियाद में झांकने का वक्‍त किसी के पास नहीं।

-लीजेण्ड न्यूज़ विशेष