स्‍पंदन....कुछ व्‍यंग्‍य

मंगलवार, 26 अप्रैल 2011

अमर सिंह की सीडी का सच ?

 ''ज्ञानयोग'' में स्‍वामी विवेकानंद ने उद्धृत किया है कि विरोध ही हमारे अस्‍तित्‍व का आधार है। सर्वत्र इन्‍हीं तीव्र विरोधों के बीच से हमें गुजरना होगा। जहां शुभ है, वहीं अशुभ भी है और जहां अशुभ है वहीं कुछ न कुछ शुभ भी अवश्‍य होता है। जहां जीवन है, वहीं मृत्‍यु एक छाया की तरह उसका पीछा कर रही है। जो आज हंस रहा है, उसी को कल रोना भी पड़ेगा और जो आज रो रहा है, वह कल जरूर हंसेगा। यह क्रम बदल नहीं सकता।
''ज्ञानयोग'' के ये शब्‍द मुझे भ्रष्‍टाचार के खिलाफ अन्‍ना हजारे द्वारा शुरू की गई लड़ाई में सार्थक होते दिखाई दे रहे हैं। कांग्रेस द्वारा कूटनीति से बेशक आज अपने ऊपर चल रहे तीरों को न सिर्फ शांतिभूषण व प्रशांत भूषण की ओर मोड़ा गया है बल्‍िक वह अन्‍ना हजारे तक पर अप्रत्‍यक्ष निशाने सधवा रही है लेकिन भविष्‍य में यही तीर आज से ज्‍यादा घातक होकर उसके ऊपर पलटवार करेंगे, इसमें किसी को शक नहीं होना चाहिए।
समाजवादी पार्टी के पूर्व सिपहसालार और कॉरपोरेट राजनीति में लॉबिस्‍ट की केन्‍द्रीय भूमिका निभाने वाले अमर सिंह को जिस तरह कांग्रेस ने एक हथियार बतौर इस्‍तेमाल कर जनलोकपाल विधेयक की मसौदा समिति के सदस्‍यों को टारगेट किया है, उससे एक बात तो साफ हो चुकी है कि विधेयक को लेकर उसकी नीयत उतनी नेक नहीं है जितनी सोनिया गांधी व मनमोहन सिंह प्रदर्शित कर रहे हैं। दिग्‍विजय सिंह की जुबान पर लगाम न लगने से भी इसकी पुष्‍िट होती है।
बहरहाल, यदि हम बात करें उस सीडी की जिसे आधार बनाकर अमर सिंह ने शांतिभूषण व प्रशांत भूषण को कठघरे में खड़ा करने की कोशिश की है तो उसके फर्जी पाये जाने की प्रबल संभावना है, हालांकि सरकार की एक लैब उसे असली होने का सर्टीफिकेट दे चुकी है।
मैं न तो कोई विशेषज्ञ हूं और ना ही मैंने प्रशांत भूषण की तरह उस सीडी का किसी अन्‍य लैब से परीक्षण कराया है लेकिन कुछ तथ्‍य हैं जिनसे यह जाहिर होता है कि सीडी में कहीं न कहीं कुछ ऐसा जरूर है, जो उसकी सत्‍यता पर संदेह उत्‍पन्‍न कराने का आधार है।
यहां 2006 की उस सीडी का जिक्र करना जरूरी हो जाता है जो अमर सिंह से ताल्‍लुक रखती है और जिसके प्रसारण पर सुप्रीम कोर्ट ने प्रतिबंध लगा रखा है। सुप्रीम कोर्ट द्वारा प्रतिबंधित किये जाने से पूर्व वह सीडी लगभग प्रत्‍येक मीडिया हाउस तक पहुंचाई जा चुकी थी इसलिए लगभग सभी ने उसे संभालकर रखा हुआ है ताकि सनद रहे और वक्‍त जरूरत काम आये।
एक राष्‍ट्रीय हिंदी दैनिक ने 23 अप्रैल के अंक में लीड न्‍यूज़ बनाकर शांतिभूषण व प्रशांत भूषण से कथित तौर पर ताल्‍लुक रखने वाली उस सीडी का मसौदा प्रकाशित किया है जिसे आधार बनाकर अमर सिंह ने इन दोनों पिता-पुत्र को घेरने की कोशिश की है। शब्‍दश: प्रकाशित सीडी बेस्‍ड इस खबर के अनुसार अमर सिंह पहले तो शांतिभूषण का मुलायम सिंह को परिचय देते हैं और बताते हैं कि प्रशांत भूषण इन्‍हीं के पुत्र हैं। उसके बाद वह शांतिभूषण से मुलायम सिंह की बात कराते हैं जिसमें किसी जज को मैनेज करने के लिए सौदेबाजी की जाती है।
इस खबर के मुताबिक जब शांतिभूषण से बात समाप्‍त होती है तब अमर सिंह मुलायम सिंह से पूछते हैं- ठीक हो गया सर? जिसके जवाब में मुलायम सिंह कहते हैं- हां ठीक हो गया, बहुत अच्‍छा।
अमर सिंह फिर कहते हैं- नहीं तो ये मर जायेंगे सब। जवाब में मुलायम कहते हैं- हां, कहीं के नहीं रहेंगे। इतना कहकर मुलायम, अमर सिंह से पूछते हैं- कल प्रकाश करात देंगे?
इस पर अमर सिंह कहते हैं- हां देंगे। फिर कहते हैं-चलिये सर। जवाब में मुलायम कहते हैं-  अच्‍छा।
अमर सिंह कहते हैं- आपका आशीर्वाद बना रहे हम लोगों के सिर पर।
जिसके उत्‍तर में मुलायम कहते हैं- पूरा आशीर्वाद। अमर सिंह इसके बाद दो बार जी...जी कहते हैं। उसके बाद मुलायम पूछते हैं- अमिताभ गये? अमर सिंह जवाब देते हैं- हां वो गये।
मुलायम कहते हैं-अच्‍छा और उसके बाद प्रणाम कहकर अमर सिंह फोन काट देते हैं।
अखबार में इसके बाद मुलायम और अमर सिंह के बीच हुई एक और वार्ता प्रकाशित की गयी है लेकिन उसमें शांतिभूषण का कोई जिक्र न होकर तत्‍कालीन किसी ''राज्‍यपाल'' का जिक्र है जिसे अमर सिंह द्वारा ''द्वारपाल'' संबोधित किया गया है।
अब हम बात करते हैं, उस सीडी की जिसके प्रसारण पर सर्वोच्‍च न्‍यायालय ने प्रतिबंध लगा रखा है। जाहिर है कि उसमें दर्ज वार्तालाप का हवाला तो प्रतिबंध के कारण लिखा नहीं जा सकता लेकिन इतना जिक्र किया जा सकता है कि वह वार्तालाप सिर्फ मुलायम सिंह और अमर सिंह के बीच है। उसमें किसी तीसरे व्‍यक्‍ित की आवाज कहीं नहीं है।
अब इसे ''इत्‍तेफाक'' कहें या ''आश्‍चर्यजनक किंतु सत्‍य'' कि इस वार्तालाप के बाद भी मुलायम और अमर सिंह के बीच वही शब्‍द आये हैं जो शांतिभूषण से कथित तौर पर ताल्‍लुक रखने वाली सीडी के आधार पर 23 तारीख के राष्‍ट्रीय हिंदी दैनिक में प्रकाशित किये गये हैं।
मसलन: ठीक हो गया सर? जिसके जवाब में मुलायम सिंह कहते हैं- हां ठीक हो गया, बहुत अच्‍छा।
अमर सिंह फिर कहते हैं- नहीं तो ये मर जायेंगे सब। जवाब में मुलायम कहते हैं- हां, कहीं के नहीं रहेंगे। इतना कहकर मुलायम, अमर सिंह से पूछते हैं- कल प्रकाश करात देंगे?
इस पर अमर सिंह कहते हैं- हां देंगे। फिर कहते हैं-चलिये सर। जवाब में मुलायम कहते हैं-  अच्‍छा।
अमर सिंह कहते हैं- आपका आशीर्वाद बना रहे हम लोगों के सिर पर।
जिसके उत्‍तर में मुलायम कहते हैं- पूरा आशीर्वाद। अमर सिंह इसके बाद दो बार जी...जी कहते हैं। उसके बाद मुलायम पूछते हैं- अमिताभ गये? अमर सिंह जवाब देते हैं- हां वो गये।
अब प्रश्‍न यह पैदा होता है कि इस वार्तालाप और 2006 की प्रतिबंधित सीडी के वार्तालाप जिसमें शांतिभूषण कहीं नहीं हैं, इस कदर समानता क्‍या संभव है या फिर ''अमिताभ गये, जैसे प्रश्‍न मुलायम सिंह का कोई ''तकिया कलाम'' है जिनका इस्‍तेमाल मुलायम सिंह अपनी हर टेलीफोनिक वार्ता सम्‍पन्‍न करने के बाद उसी प्रकार करते हैं जैसे कोई ''राम-राम'' कहकर अथवा ''नमस्‍कार'' कहकर पूरी करता है।
और जैसा कि अमर सिंह का कथन है कि 2006 की वह सीडी तथा यह सीडी जिसमें शांतिभूषण से उन्‍होंने मुलायम सिंह की वार्तालाप कराई है, दोनों एक हैं और प्रशांत भूषण व मीडिया ने उसे सार्वजनिक करके सर्वोच्‍च न्‍यायालय की अवमानना भी की है तो सवाल यह पैदा होता है कि फिर उस सीडी में शांतिभूषण की मुलायम सिंह से वार्तालाप तो दूर, उसकी चर्चा तक क्‍यों नहीं है?
वर्तमान सीडी का सरकारी लैब से परीक्षण हो जाने तथा उसे असली बताये जाने के बावजूद क्‍यों दिल्‍ली पुलिस ने उसका पुन: परीक्षण कराना जरूरी समझा और क्‍यों केन्‍द्र सरकार को उस पर कोई आपत्‍ति नहीं है?
यही नहीं, दिल्‍ली पुलिस का यह भी कथन है कि वह 2006 की प्रतिबंधित सीडी को प्राप्‍त करने का प्रयास कर रही है ताकि दोनों का मिलान किया जा सके।
दिल्‍ली पुलिस को जांच की शुरूआत में ही ऐसा क्‍यों लग रहा है कि जांच के लिए उसे 2006 की सीडी प्राप्‍त करना आवश्‍यक है और वो जांच में महत्‍वपूर्ण हो सकती है।
इन सब प्रश्‍नों का एक ही जवाब है कि अमर सिंह जिस सीडी के जिन्‍न को बाहर निकालकर लाये हैं, उसमें कोई न कोई रहस्‍य अवश्‍य है और निष्‍पक्ष जांच के लिए उसकी जानकारी करना बेहद जरूरी है।
अगर दिल्‍ली पुलिस अपने मकसद में कामयाब हो जाती है और निष्‍पक्ष जांच कर पाती है तो यह तय समझिये कि बहुत से दूसरे ऐसे रहस्‍यों पर से भी पर्दा उठ जायेगा जिनकी जरूरत जनता और जनता की लड़ाई छेड़ने वाले समाजसेवी अन्‍ना हजारे को है।
भ्रष्‍टाचार के खिलाफ शुरू की गई इस लड़ाई का सही मायनों में आगाज़ शायद तभी होगा क्‍योंकि तब निशाना साधने वाले खुद निशाना बनते नजर आयेंगे।

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