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शनिवार, 21 अप्रैल 2012

देश और देशवासियों की सुरक्षा भाड़ में

सरकारी विभागों ने जनसूचना अधिकार की अनदेखी शुरू कर दी है। विशेष रूप से ऐसे मामलों में जिनके कारण वह कठघरे में खड़े हो सकते हैं। फिर चाहे उन मामलों का ताल्‍लुक सीधा लोगों के जीवन से क्‍यों न जुड़ा हो। चाहे उसकी अनदेखी से किसी इतनी बड़ी जनहानि की आशंका हो जिसकी कल्‍पना करने पर रूह तक कांपने लगे।
भ्रष्‍टाचार का भस्‍मासुर सब-कुछ निगलता जा रहा है और देश के कर्णधार चुप्‍पी साधे बैठे हैं। गांधीजी के तीन बंदरों में समाहित उनकी आत्‍मा कुछ भी ऐसा देखना और सुनना नहीं चाहती जो उसके लिए बुरा हो। जाहिर है कि फिर उस पर बोलने का तो सवाल ही पैदा नहीं होता।
सर्वशक्‍ितमान कलियुगी महादेवों (नेताओं) से वरदान प्राप्‍त भ्रष्‍टाचारी भस्‍मासुरों ने यमुना और गंगा जैसी जीवनदायिनी नदियों के अस्‍तित्‍व पर गहरा सवालिया निशान लगा दिया है। देश की रक्षा प्रणाली को संदिग्‍ध बना डाला है और किसी प्राकृतिक आपदा की सूरत में आम आदमी का जीवन पूरी तरह भगवान के भरोसे छोड़ दिया है। कहने को कानून का राज है लेकिन उस पर राजनीति व व्‍यवस्‍थागत दोष इस कदर हावी हैं कि कानून-व्‍यवस्‍था मजाक बनकर रह गई है। बने भी क्‍यों नहीं, जब प्रधानमंत्री जैसे पद को सुशोभित करने वाला व्‍यक्‍ित ही नीति व नैतिकता को तिलांजलि देकर राजनीति को व्‍यक्‍ितपूजा मान बैठा हो।
देश को RTI यानि जनसूचना अधिकार कानून देने का श्रेय लेने वाली केन्‍द्र की यूपीए सरकार का प्रधानमंत्री ही अगर उसमें संशोधनों को जरूरी बताकर कमजोर करने का संकेत दे तो उसे कमजोर होने से रोक कौन सकता है।
गौरतलब है कि कुछ माह पूर्व प्रधानमंत्री डॉ. मनमोहन सिंह ने आरटीआई में संशोधन करने जैसी बात कही थी। सीबीआई को आरटीआई के दायरे से बाहर करना सरकार की इसी मंशा का संकेत था। प्रधानमंत्री के इस बयान पर विपक्ष ने जमकर हंगामा किया लिहाजा सरकार ने आरटीआई में संशोधन की बात पर चुप्‍पी साध ली किंतु तमाम सरकारी विभाग सरकार के संकेत को समझ चुके थे। उन्‍होंने अपने स्‍तर से आरटीआई की अनदेखी शुरू कर दी, विशेष रूप से ऐसे मामलों में जिनके कारण वह कठघरे में खड़े हो सकते हैं। फिर चाहे उन मामलों का ताल्‍लुक सीधा लोगों के जीवन से क्‍यों न जुड़ा हो। चाहे उसकी अनदेखी से किसी इतनी बड़ी जनहानि की आशंका हो जिसकी कल्‍पना करने पर रूह तक कांपने लगे।
सरकारी नुमाइंदों की ऐसी ही एक कारगुजारी का उदाहरण तब सामने आया जब आरटीआई के तहत आमजन के जीवन और आंतरिक सुरक्षा से जुड़े मामलों को लेकर सम्‍बन्‍धित विभागों से जानकारी मांगी गई। महीनों बाद दी गई इस जानकारी पर गौर करें तो पायेंगे कि उनका मकसद सिर्फ जानकारी मांगने वाले को गुमराह करना है।
05 अक्‍टूबर 2011 को गृह मंत्रालय से निम्‍नलिखित जानकारियां मांगी गईं-
1- मथुरा स्थि‍त श्रीकृष्ण जन्मस्थान व शाही मस्जि‍द ईदगाह की सुरक्षा के संदर्भ में 6 दिसम्बर सन् 1992 से लेकर अब तक मथुरा-वृंदावन के अंदर बहुमंजिला (तीन मंजिल व उससे अधिक ऊंची) इमारतों के निर्माण को लेकर क्या उत्तर प्रदेश सरकार अथवा आवास विकास परिषद् उत्तर प्रदेश को कोई आदेश-निर्देश जारी किये गये हैं। यदि किये गये हैं तो उन सभी की जानकारी उपलब्ध कराने का कष्ट करें।
2- मथुरा-वृंदावन क्षेत्र में निर्माणाधीन बहुमंजिला (3 से 14 मंजिल तक की) रिहायशी इमारतों से क्या श्रीकृष्ण जन्मस्थान व शाही मस्जिद ईदगाह की सुरक्षा को कोई खतरा नहीं है ? 
यदि खतरा है तो उसके लिए क्या-क्या कदम उठाये गये हैं, उनकी जानकारी दी जाए।
3- श्रीकृष्ण जन्मस्थान व शाही मस्जिद ईदगाह की सुरक्षा-व्यवस्था पर अब तक कितना खर्च किया जा चुका है, उसका ब्यौरा तथा यह खर्च किस मद से किया गया है, इसकी जानकारी मुहैया कराई जाए। 
इसी दिन मथुरा-वृंदावन विकास प्राधिकरण से जानकारी मांगी गई कि
1- मथुरा-वृंदावन विकास प्राधिकरण क्षेत्र अंतर्गत प्राधिकरण से एप्रूव्ड सभी निर्माणाधीन तथा जिनका निर्माण कार्य पूरा हो चुका है, ऐसी बहुमंजिला इमारतों (3 मंजिल व इससे अधिक) के एप्रूवल हेतु आवश्यक सभी अनापत्ति प्रमाणपत्रों (एन.ओ.सी.) की प्रतियां।
2- मथुरा-वृंदावन विकास प्राधिकरण को कृष्ण जन्मस्थांन व शाही मस्जिद ईदगाह की सुरक्षा के मद्देनजर भारत सरकार तथा उत्तर प्रदेश सरकार से प्राप्त आदेश-निर्देशों की प्रतियां और उनके अनुपालन में भवन निर्माण को लेकर उठाये गये कदमों की जानकारी।
3- मथुरा-वृंदावन विकास प्राधिकरण से एप्रूव्ड सभी बहुमंजिला (3 मंजिल व इससे अधिक) व्यावसायिक व रिहायशी इमारतों का निर्माण कार्य क्या भूकंपरोधी तकनीक से किया जा रहा है ? 
यदि किया जा रहा है तो उसकी पुष्टि के लिए प्राधिकरण ने कौन-कौन से कदम अब तक उठाये हैं ?    
4- जिन स्थानों पर प्राधिकरण ने बहुमंजिला इमारतों के निर्माण की इजाजत दी है, क्या इजाजत देने से पूर्व सम्बन्धित विशेषज्ञ (सिविल इंजीनियर) से उन स्थानों की सॉइल टेस्ट (मिट्टी का परीक्षण) रिपोर्ट विभाग ने ली थी। यदि ली है तो सभी बहुमंजिला इमारतों की सॉइल टेस्ट रिपोर्ट उपलब्ध करायें। 
5- मथुरा-वृंदावन विकास प्राधिकरण क्षेत्र में प्राधिकरण से एप्रूव्ड बहुमंजिला (3 मंजिल व इससे अधिक) व्यावसायिक एवं रिहायशी इमारतों का ब्यौरा।
6- मथुरा-वृंदावन विकास प्राधिकरण से एप्रूव्ड सभी व्याववसायिक तथा रिहायशी इमारतों में क्या उनकी क्षमता के अनुसार पर्याप्त अग्निशमन संयंत्र लगे हैं। यदि लगे हैं तो उनका विवरण तथा क्या विभाग ने उनकी मॉनिटरिंग के लिए कोई व्यवस्था की हुई है। यदि की हुई है तो उसकी जानकारी।
उल्‍लेखनीय है कि मांगी गई अधिकांश सूचनाओं का सम्‍बन्‍ध लोगों के जीवन से जुड़ा है इसलिए यह सूचना का अधिकार अधिनियम 2005 के तहत भी विशेष श्रेणी में आता है और जिसके अंतर्गत एप्लीकेशन प्राप्त होने के 48 घण्टों में सूचना दिये जाने का प्राविधान है।
विशेष श्रेणी के अंतर्गत आने वाली इन सूचनाओं पर अब जरा पहले तो गृह मंत्रालय का जवाब देखिये। गृह मंत्रालय के मानव संसाधन विभाग ने आवेदक को लिखा कि हमारा विभाग केवल रामजन्‍मभूमि/बाबरी मस्‍जिद से सम्‍बन्‍धित मामलों को ही देखता है। दूसरे सभी धार्मिक स्‍थानों की सुरक्षा का सम्‍बन्‍ध वीआईपी सुरक्षा विभाग के पीपी डिवीजन से है अत: आपके द्वारा मांगी गई सूचनाओं को सेक्‍शन 6 (3) (।) ऑफ द आरटीआई एक्‍ट 2005 के तहत आवश्‍यक जानकारी उपलब्‍ध कराने के लिए सम्‍बन्‍धित विभाग के पास फॉरवर्ड किया जा चुका है।
इसके बाद होम मिनिस्‍ट्री के अंतर्गत ही आने वाले पीपी डिवीजन ने आवेदक को सूचित किया कि आपके द्वारा मांगीं गईं किसी भी सूचना की जानकारी इस यूनिट के पास उपलब्‍ध नहीं हैं।
जहां तक सवाल श्रीकृष्‍ण जन्‍मस्‍थान/शाही मस्‍जिद ईदगाह की सुरक्षा-व्‍यवस्‍था का है तो उसकी जिम्‍मेदारी राज्‍य सरकार की है लिहाजा आप इससे सम्‍बन्‍धित जानकारियों के लिए राज्‍य सरकार के पीआईओ को आवेदन भेजें।
गृह मंत्रालय ने इस तरह अपना पल्‍ला समय रहते झाड़ लिया लेकिन मथुरा-वृंदावन विकास प्राधिकरण ने पहले तो अधिकतम निर्धारित अवधि में जवाब देना ही जरूरी नहीं समझा। फिर जब आयुक्‍त आगरा मण्‍डल के यहां अपील की गई तो चार महीने बाद 07 फरवरी 2012 को जो जवाब दिया, वह इस प्रकार है-
प्राधिकरण में इस तरह की कोई सूचना संकलित नहीं है।
उ. प्र. सरकार/शासन द्वारा समय-समय पर जारी शासनादेशों/निर्देशों के क्रम में तथा भवन निर्माण एवं विकास उपविधि 2008 के अनुसार आवश्‍यक कार्यवाही की जाती है।
मानचित्र स्‍वीकृति के समय आवेदक द्वारा प्रस्‍तावित भवन के मानचित्रों में नियमानुसार आवश्‍यक भूकंपरोधी तकनीक से निर्माण किये जाने का स्‍ट्रक्‍चर स्‍टेविलिटी सर्टिफिकेट प्रस्‍तुत किया जाता है जिसके अनुसार निर्माण कराने की जिम्‍मेदारी आवेदक की होती है।
भवन निर्माण करने से पूर्व साइट प्‍लान आदि तैयार करना भवन निर्माताओं की स्‍वयं की जिम्‍मेदारी होती है।
प्राधिकरण का गठन वर्ष 1977 में किया गया था अत: तब से अब तक की इस तरह की सूचना संकलित नहीं है। किसी प्रकरण विशेष के बारे में सूचना मांगे जाने पर उसका उत्‍तर दिया जा सकता है।
किसी भी व्‍यावसायिक अथवा रिहायशी भवन का मानचित्र स्‍वीकृत करते समय नियमानुसार एवं निर्माण पूर्ण हो जाने के पश्‍चात् सम्‍पूर्ति प्रमाण पत्र निर्गत करने से पूर्व अग्‍निशमन अधिकारी से अनापत्‍ति प्रमाण पत्र प्राप्‍त किया जाता है।
विकास प्राधिकरण द्वारा दिये गये जवाब का कुल मिलाकर आशय यह निकलता है कि उसकी कोई जिम्‍मेदारी नहीं है। उसकी जिम्‍मेदारी केवल डेवलेपमेंट चार्ज वसूलने या नक्‍शा पास करने तक सीमित है। भवन स्‍वामी नियमानुसार निर्माण कार्य करा रहा है या नहीं, उसने सुरक्षा के आवश्‍यक इंतजाम किये हैं या नहीं, यह देखना विकास प्राधिकरण का काम नहीं है। बाकी सूचनाएं उसके पास संकलित ही नहीं हैं।
यह हाल तो तब है जबकि विश्‍व के किसी न किसी हिस्‍से में आये दिन भूकंप आ रहे हैं। गत दिनों जिन 28 देशों में एकसाथ पृथ्‍वी हिली, उनमें भारत के दिल्‍ली सहित कई राज्‍य शामिल थे। मथुरा में भी इन झटकों को महसूस किया गया।
ज्ञात रहे कि दिल्‍ली से लेकर मथुरा और आगरा भी भूकंप के खतरे वाले सर्वाधिक संवेदनशील क्षेत्र में शामिल है।
इसी प्रकार जिन धार्मिक इमारतों पर आतंकवादी हमलों की आश्‍ांका बनी हुई है, जिनकी सुरक्षा पर 06 दिसम्‍बर सन् 1992 से सरकार लगातार करोड़ों रुपया खर्च कर रही है और जिनकी सुरक्षा के लिए मथुरा-वृंदावन क्षेत्र में बहुमंजिला इमारतों के निर्माण को लेकर विशेष सतर्कता बरतने के आदेश-निर्देश हैं, उनके बारे में मथुरा-वृंदावन विकास प्राधिकरण को कोई चिंता नहीं है।
उसे इस बात से भी संभवत: कोई वास्‍ता नहीं है कि तीव्र भूकंप आने की स्‍थिति में जानमाल का कितने बड़े पैमाने पर नुकसान हो सकता है और 9 से 14 मंजिला इमारतें कृष्‍ण जन्‍मस्‍थान व शाही मस्‍जिद ईदगाह पर संभावित आतंकी हमले के लिए कितनी मुफीद साबित हो सकती हैं।
सच तो यह है कि स्‍वतंत्र भारत के 64 सालों में भ्रष्‍टाचार को जिस तरह पॉलिटीशियन व ब्‍यूरोक्रेट्स ने पाला-पोसा है, उसका खामियाजा अंतत: देश व देशवासियों को भुगतना होगा।
बात चाहे किसी प्राकृतिक आपदा की हो या सीमापार के शत्रुओं और आतंकवाद के कारण उत्‍पन्‍न आंतरिक सुरक्षा को लेकर खतरे की, भुगतेगा तो देश व देशवासी ही। नेता और ब्‍यूरोक्रेट्स का क्‍या बिगड़ेगा। वह तब भी इसी प्रकार अपनी जिम्‍मेदारियों से बच निकलने का रास्‍ता तलाश लेंगे जिस प्रकार अब जनसूचना अधिकार को दरकिनार करने के तरीके तलाश लिये हैं। देश और अपनी सुरक्षा को लेकर आम आदमी की चिंता जाए भाड़ में। वह कब तक और कितने विभागों से जानकारी मांगेगा। 

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