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रविवार, 11 अगस्त 2013

विकास नहीं, विनाश करा रहा है MVDA

(लीजेण्‍ड न्‍यूज़ विशेष)
क्‍या वाकई विकास प्राधिकरण की इस विश्‍व प्रसिद्ध धार्मिक जनपद के विकास में कोई भूमिका है या ये अथॉरिटी विकास की आड़ में विनाश का ऐसा खेल रच रही है जो सरकार से ज्‍यादा अधिकारियों के लिए मुफीद साबित हो रहा है ?
मथुरा-वृंदावन में तिराहों-चौराहों सहित सभी प्रमुख सड़कों के दोनों ओर निगाहें डालने से तो किसी को भी यह मुगालता हो सकता है कि कृष्‍णकालीन यह जिला तरक्‍की के नित नए आयाम स्‍थापित कर रहा होगा लेकिन हकीकत यह है कि शहर के विकास से कई गुना अधिक विकास मथुरा-वृंदावन विकास प्राधिकरण में तैनात अधिकारियों का हो रहा है और शहरी विकास के नाम पर विनाश की ऐसी इबारत लिखी जा रही है जिसके दुष्‍परिणाम भविष्‍य में अत्‍यंत भयानक साबित होंगे।

यूं तो शहर के जिस हिस्‍से में और मथुरा-वृंदावन से लेकर गोवर्धन तक जहां-जहां नजर दौड़ायेंगे आपको सारी सुख-सुविधाओं युक्‍त एमवीडीए एप्रूव्‍ड कॉलोनियों के होर्डिंग्‍स की भरमार दिखाई देगी परंतु इन एप्रूव्‍ड कॉलोनियों के निर्माण में विकास प्राधिकरण के सहयोग से जिस प्रकार का खेल चल रहा है, उसे जानकर शायद आपके पैरों तले की जमीन खिसक जाए।
इस खेल की शुरूआत पहले दिन यानि तभी से शुरू हो जाती है जब कोई बिल्‍डर एप्रूव्‍ड कॉलोनी बनाने का सपना अपने मन में पालता है।
नियम-कानून की बात करें तो मिट्टी की जांच से लेकर इमारत खड़ी कराने तक में और बिजली-पानी से लेकर प्रदूषणमुक्‍त वातावरण एवं आवश्‍यक जनसुविधाएं मुहैया कराने तक में विकास प्राधिकरण की अहम् भूमिका होती है।
इसे यूं भी समझ सकते हैं कि विकास प्राधिकरण की अनुमति के बिना रीयल एस्‍टेट के क्षेत्र में पत्‍ता भी नहीं फड़क सकता।
ये बात और है कि विकास प्राधिकरण की एक-एक ईंट इसके एवज में कॉलोनाइजर्स से पैसा वसूलती है और ये पैसा जायज कम, नाजायज ज्‍यादा होता है।
इस सबके बावजूद कॉलोनाइजर्स के दिल की धड़कनें तब तक सामान्‍य नहीं होतीं जब तक उसका प्रोजेक्‍ट पूरा नहीं हो जाता क्‍योंकि विकास प्राधिकरण के अधिकारियों की गिद्ध दृष्‍टि उनके काम में चाहे जब इसलिए खामी निकाल देती है ताकि कुछ मांस और नोंचा जा सके।
विकास प्राधिकरण के इस रवैये की वजह किसी न किसी हद तक बिल्‍डर और कॉलोनाइजर्स ही हैं लेकिन काफी हद तक वो व्‍यवस्‍था भी जिम्‍मेदार है जिसने नौकरशाही को कदम-कदम पर लूट करने का अवसर दे रखा है।
उदाहरण के लिए विकास प्राधिकरण से एप्रूव्‍ड हर प्रोजेक्‍ट न केवल भूकंपरोधी तथा फायर प्रूफ होना चाहिए बल्‍कि उसमें सीवर की प्रॉपर व्‍यवस्‍था एवं प्रदूषण रहित वातावरण उपलब्‍ध कराने के मुकम्‍मल इंतजाम भी होने चाहिए।
चूंकि विकास प्राधिकरण किसी भी हाउसिंग अथवा कॉमर्शियल प्रोजेक्‍ट को अनुमति देने के बदले एक मोटी रकम डेवलेपमेंट चार्ज के रूप में वसूलता है इसलिए सभी जनसुविधाओं एवं सुरक्षा के प्रति विकास प्राधिकरण की भी जिम्‍मेदारी बनती है।
जिस प्रकार नगरपालिका एवं नगर पंचायत क्षेत्रों में बिजली-पानी एवं सड़क आदि का निर्माण और उनकी देखरेख का जिम्‍मा इन्‍हीं संस्‍थाओं का होता है, उसी प्रकार विकास प्राधिकरण से एप्रूव्‍ड प्रोजेक्‍ट्स में इन सुविधाओं को उपलब्‍ध कराने की जिम्‍मेदारी विकास प्राधिकरण की होती है लेकिन दर्जनों एप्रूव्‍ड कॉलोनियों में से किसी में विकास प्राधिकरण ने ऐसी कोई सुविधा दी हो, इसकी जानकारी नहीं मिलती। जो कुछ और जितना कुछ किया जाता है, वह कॉलोनाइजर अपने स्‍तर से करता है।
दूसरी ओर एप्रूव्‍ड प्रोजेक्‍ट्स में निर्माण कार्य अप्रूवल की शर्तों के अनुसार हो रहा है या नहीं, इसे देखना विकास प्राधिकरण का काम है। विकास प्राधिकरण के अधिकारी इस पर निगाह तो रखते हैं पर केवल इसलिए कि हर छोटी-बड़ी खामी का खामियाजा बिल्‍डर से वसूला जाए, न कि इसलिए कि काम  नियमानुसार हो रहा है या नहीं।
यही कारण है कि आये दिन इस तरह की शिकायतें सामने आती हैं जिनसे पता लगता है कि किसी कॉलोनाइजर ने 42 फ्लैट पास करा रखें हैं लेकिन मौके पर निर्माण करा लिया है 82 या 120 का। चार मंजिलों का नक्‍शा पास है और मंजिलें 9 खड़ी की जा चुकी हैं।
प्रचार किया जा रहा है भूकंपरोधी तकनीक के इस्‍तेमाल का, लेकिन निर्माण सामग्री ऐसी इस्‍तेमाल की जा रही है जो भूकंप के झटके तो क्‍या पटरियों पर गुजरने वाली ट्रेन की धड़धड़ाहट नहीं झेल पाती। ट्रेन के गुजरने पर पूरी इमारत कांपने लगती है। किसी बड़ी आपदा के समय इनका क्‍या हाल होगा, इसका अनुमान सहज लगाया जा सकता है।
संभवत: इसीलिए जनसूचना अधिकार अधिनियम (आरटीआई) जिन विभागों में सर्वाधिक बेअसर साबित हो रहा है, उनमें विकास प्राधिकरण सबसे ऊपर है। मथुरा-वृंदावन विकास प्राधिकरण से तो कोई सूचना निकलवाना रेत से तेल निकालने जितना कठिन है।
आश्‍चर्य की बात यह है कि विकास प्राधिकरण में आने वाला हर अधिकारी खुद को ईमानदार और अपने पूर्ववर्ती अधिकारी को भ्रष्‍ट बताता है लेकिन बाद में पता लगता है कि वह तो भ्रष्‍टाचार के पिछले सारे रिकॉर्ड तोड़ने की मंशा पाले बैठा है लिहाजा ऐसे किसी मुद्दे की जानकारी देना तो दूर उस पर बात तक करना पसंद नहीं करता जिससे भ्रष्‍टाचार की बू आ रही हो।
पॉश कॉलोनियों में शुमार तमाम गेटबंद एप्रूव्‍ड हाउसिंग प्रोजेक्‍ट्स में सीवर व्‍यवस्‍था का ना होना, आगजनी की संभावित घटनाओं से बचाव के इंतजामात का अभाव तथा भूकंपरोधी तकनीक के इस्‍तेमाल को ताक पर रखकर खड़े मकान इसके उदाहरण हैं।
कृष्‍ण जन्‍मस्‍थान व शाही मस्‍जिद ईदगाह की सुरक्षा के मद्देनजर उसके लिए बनाये गये रेड, यलो एवं ग्रीन जोन में भी लोग बेखौफ होकर अवैध निर्माण कर रहे हैं लेकिन न कोई देखने वाला है और ना सुनने वाला।
एक ओर नियम-कानून को ताक पर रखकर चौदह-चौदह मंजिला इमारतें खड़ी की जा रही हैं तो दूसरी ओर उनकी छत पर हैलीपेड बनाने का भी प्रचार किया जा रहा है ताकि उसमें रहने वाले सीधे इमारत की छत पर ही लैंड कर सकें।
रही जन एवं धन हानि की बात, तो वह सब भगवान भरोसे है क्‍योंकि विकास प्राधिकरण के अधिकारी पूर्ण सुरक्षित हैं और सुरक्षित है उनका दुधारू विभाग।
अधिकारी चाहे जो करें उनका बाल बांका नहीं हो सकता। होगा भी क्‍यों, विकास प्राधिकरण जैसे कमाऊ विभाग की मलाईदार पोस्‍ट पर किसी अधिकारी को ऐसे ही तैनात नहीं कर दिया जाता। उसके पीछे या तो अधिकारी की अपनी राजनीतिक ताकत होती है या होता है धनबल।
जो भी हो, मथुरा-वृंदावन विकास प्राधिकरण को सुशोभित करने वाला हर अधिकारी बाहुबली होता है और उसके द्वारा उठाया जाने वाला हर कदम खुद-ब-खुद नियम बन जाता है।
इन हालातों में धर्म नगरी के विकास को लेकर उनसे कोई सार्थक उम्‍मीद की भी कैसे जा सकती है और कैसे यह संभव है कि वह किसी आरटीआई का उत्‍तर देने या नियम विरुद्ध किये जा रहे निर्माण कार्य पर जवाब देने को बाध्‍य होंगे।

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