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रविवार, 25 नवंबर 2018

हिंदुओं को उन्‍मादी बना देने पर कौन आमादा है, कौन है राममंदिर निर्माण के लिए हो रही राजनीति का जिम्‍मेदार?

अयोध्‍या में राम मंदिर के निर्माण की पुरजोर मांग के बीच इस आशय का प्रचार भी किया जा रहा है कि देश का मुसलमान आशंकित है, वह भयभीत है और इसके लिए हिंदुओं की कथित उन्‍मादी सोच जिम्‍मेदार है।
अब सवाल यह उठता है कि मुसलमानों के आशंकित या भयभीत होने का प्रचार कर कौन रहा है ? 
यह प्रचार मुसलमानों के ही नुमाइंदे बनकर टीवी की नियमित बहसों में भाग लेने वाले वो लोग कर रहे हैं जो न सिर्फ प्रधानमंत्री तक के लिए खुलेआम अपशब्‍दों का इस्‍तेमाल करते हैं बल्‍कि बाबर को अपना पूर्वज बताते हुए बहुसंख्‍यकों को मंदिर बना लेने की चुनौती एक चेतावनी के रूप में देते हैं।
‘आज तक’ की एक ऐसी ही डिबेट में मशहूर टीवी एंकर रोहित सरदाना को मुसलमानों के नुमाइंदे और सुप्रीम कोर्ट के वकील महमूद पराचा से कहना पड़ा कि अधिकांश मुसलमान तो कहते हैं हमें बहुसंख्यकों से नहीं, उन मीडिया पैनेलिस्ट मुसलमानों से डर लगता है जो अपनी-अपनी दुकान चलाने के लिए राष्‍ट्रीय टीवी चैनल्‍स पर बैठकर वैमनस्‍यता फैलाने का काम करते हैं।
कौन था बाबर
बाबर के बारे में इतिहास जितनी जानकारी देता है उसके मुताबिक वह मध्य एशिया के समरकंद राज्य की एक बहुत छोटी सी जागीर फरगना में पैदा हुआ। 14 फरवरी 1483 ई. को जन्‍मे बाबर का ताल्‍लुक सीधे तौर पर तैमूर से था।
बाबर का पिता उमर शेख मिर्जा तैमूर का वंशज था जबकि उसकी मां मंगोल चंगेज़ ख़ां के वंशज ख़ान यूनस की पुत्री थी। यूं देखा जाए तो बाबर की नसों में तुर्कों के साथ मंगोलों का भी रक्त था किंतु उसने काबुल पर अधिकार कर स्वयं को मुग़ल घोषित कर दिया। और इस तरह वह भारत में एक मुगल शासक बतौर प्रचलित रहा।
बाबर को बाप से विरासत में मिली थी शराब की लत 
बाबर के पिता उमर शेख को शराब पीने का बड़ा शौक था। अक्सर वह बाबर को भी इसको चखने का न्यौता देता था। साथ ही उसे कबूतर पालने का भी बड़ा चाव था। माना जाता है कि कबूतरों को दाना देते हुए एक हौज में गिर जाने से उसकी मृत्यु हुई थी। पिता की मृत्यु के समय बाबर की आयु केवल बारह वर्ष की थी। शराब की लत और तैमूरवंश उसे अपने पिता से विरासत में मिले किंतु वह खुद को कभी तैमूरवंशी कहलाना पसंद नहीं करता था।
क्‍या कहती है बाबर की आत्‍मकथा
बाबर ने अपनी आत्मकथा ‘तुजुक ए बाबरी’ में लिखा कि उसका पहला शिक्षक शेख मजीद बेग एक बड़ा अय्याश था इसलिए बहुत गुलाम रखता था। उसने अपने दूसरे शिक्षक कुलीबेग के बारे में लिखा कि वह न नमाज पढ़ता था और न रोजा रखता था, वह बहुत कठोर भी था। तीसरे शिक्षक पीर अली दोस्तगोई के बारे में उसने लिखा कि वह बेहद हंसोड़- ठिठोलिया और बदकारी में माहिर था।
अय्याश था बाबर 
“बाबर बताता है कि वह अपने शिक्षकों की करतूतों को बिल्कुल पसंद नहीं करता था परन्तु असल में उसने उनके कई सारे अवगुणों को अपना लिया था। बाबर ने अपनी आत्‍मकथा में यहां तक लिखा है कि वह समलैंगिक था और जब महज 16-17 साल का था, तब उसको बाबुरी नामक एक किशोर के साथ प्रेम हो गया था।
बाबुरी के प्रति आसक्‍त बाबर ने आशिकी पर शेर भी लिखे थे। बाबर ने बाबुरी का जिक्र करते हुए बाबर ने बाबरनामा में लिखा है कि एक बार आगरा की गली में हमने उसे देखा परंतु हम उससे आंखें नहीं मिला पाये क्योंकि तब हम बादशाह बन चुके थे।
बाबर के यह किस्से साबित करते हैं कि वह कितना अय्याश किस्म का व्‍यक्‍ति था।
छल-कपट का आदी रहा बाबर
बाबर ने अपने जीवन में छल और कपट का भरपूर इस्‍तेमाल किया। उसने समरकंद को जीतने का प्रयास तीन बार किया पर वह कामयाब नहीं हो सका। जल्दी ही उसने कपट तथा चतुराई से 1504 में काबुल पर कब्जा कर लिया।
भारत पर नजर 
काबुल पर काबिज होने के बाद बाबर ने भारत की ओर ध्यान दिया, जो उसके जीवन की बड़े लंबे समय से लालसा थी। बाबर के भारत आक्रमण का मूल कारण भारत की राजनीतिक परिस्थितियों से भी अधिक स्वयं उसकी दयनीय तथा असहाय अवस्था थी। वह काबुल के उत्तर अथवा पश्चिम में संघर्ष करने की अवस्था में नहीं रहा था और इसलिए भारत की धन संपत्ति लूटना चाहता था। इसके लिए उसने अपने पूर्वजों महमूद गजनवी तथा मोहम्मद गौरी का हवाला देकर भारत को तैमूरिया वंश का क्षेत्र बताया था।
3000 से भी अधिक निर्दोषों को मारा
बाबर की कट्टरता और क्रूरता को इसी से समझा जा सकता है कि उसने अपने पहले आक्रमण में ही बाजौर के सीधे-सादे 3000 से भी अधिक निर्दोष लोगों की हत्या कर दी थी। वो भी सिर्फ इसलिए क्योंकि बाजौर वाले विद्रोही स्‍वभाव के थे। यहां तक कहा जाता है कि उसने इस युद्ध के दौरान एक पुश्ते पर आदमियों के सिरों को काटकर उसका स्तंभ बनवा दिया था। ऐसे ही नृशंस अत्याचार उसने ‘भेरा’ पर आक्रमण करके भी किये।
गुरुनानक ने देखे थे बाबर के अत्याचार
बाबर द्वारा किए गए तीसरे-चौथे व पांचवें आक्रमण जो सैयदपुर व लाहौर तथा पानीपत से जुड़े हैं, को गुरुनानक ने अपनी आंखों से देखा था। बाबर के इन वीभत्स अत्याचारों को गुरुनानक ने पाप की बारात और बाबर को यमराज की संज्ञा दी थी। इन आक्रमणों के वक्‍त बाबर ने किसी के बारे में नहीं सोचा। उसने रास्‍ते में मिले बूढ़े, बच्चे और औरतें का बड़ी बेरहमी से कत्‍ल किया। वह किसी भी कीमत पर भारत की धन-संपदा को लूटकर अपने साथ ले जाना चाहता था।
रामजन्म भूमि विवाद का जनक
बाबर ने मुसलमानों की हमदर्दी पाने के लिए हिन्दुओं का नरसंहार करने के साथ-साथ अनेक मंदिरों को नष्ट किया। इसी कड़ी में बाबर की आज्ञा से मीर बाकी ने अयोध्या स्‍थित राम जन्मभूमि पर निर्मित प्रसिद्ध मंदिर को नष्ट कर मस्जिद बनवाई थी। यही नहीं, ग्वालियर के निकट उरवा में अनेक जैन मंदिरों को भी बाबर ने नष्ट कराया था।
यह कहना गलत नहीं होगा कि क्रूर बाबर का भारत पर आक्रमण हर तरह से महमूद गजनवी या मोहम्मद गौरी जैसा ही था और उन्‍हीं की तरह उसने अपने हितों के खातिर हिन्‍दुओं का कत्‍लेआम व उनकी आस्‍था को नष्‍ट-भ्रष्‍ट करने का काम किया।
कुल मिलाकर निष्‍कर्ष यही निकलता है कि बाबर एक विदेशी आक्रांता था और उसका एकमात्र मकसद भारत के वैभव को समाप्‍त करना तथा उसकी धन-संपदा को लूटकर ले जाना रहा।
वर्तमान हालातों का जिम्‍मेदार कौन ?
ऐसे में यह प्रश्‍न उठना स्‍वाभाविक है कि राम मंदिर निर्माण के लिए आज जो स्‍थिति-परिस्‍थिति बनी है, उसका जिम्‍मेदार वाकई कौन है ?
नि: संदेह राम मंदिर का मुद्दा राजनीति से प्रेरित रहा है किंतु राम को राजनीति के केंद्र में लाने का काम उन कठमुल्‍लाओं ने किया जो कौमपरस्‍ती की आड़ लेकर बाबर को अपना पूर्वज घोषित करने से नहीं सकुचाये। वो हर मंच से बड़ी बेशर्मी के साथ बाबर के ऐसे कुकृत्‍यों की हिमायत करने में लगे रहे जिन्‍हें उनका खुदा भी जायज नहीं ठहराता।
आज के दौर से यदि आकलन करें तो बाबर की मानसिकता सीधे तौर पर आईएसआईएस के सरगना बगदादी, अफगानिस्‍तान के तालिबान या लश्‍करे तैयबा के आतंकी सरगना ओसामा बिन लादेन से मेल खाती है।
बगदादी, लादेन और तालिबान ने भी अपनी कट्टर सोच के चलते एक ओर जहां लाखों निर्दोष लोगों का कत्‍ल किया वहीं दूसरी ओर तमाम ऐतिहासिक, धार्मिक एवं सांस्कृतिक विरासतों को नेस्‍तनाबूद कर डाला।
हो सकता है कि राम मंदिर के निर्माण की मांग या उसका विरोध करने के पीछे भाजपा, कांग्रेस, शिव सेना, सपा-बसपा या अन्‍य दलों के भी अपने-अपने राजनीतिक हित जुड़े हों परंतु इसमें कोई दो राय नहीं कि राम मंदिर को राजनीति के केंद्र में लाने का काम सीधे तौर पर बाबर परस्‍तों ने किया है।
जिस सुप्रीम कोर्ट का हवाला देकर बाबर परस्‍त आज कहते हैं कि मंदिर निर्माण की यह मांग नाजायज है, वह यह भूल जाते हैं सुप्रीम कोर्ट ही नमाज के लिए मस्‍जिद की अनिवार्यता का मुद्दा पूरी तरह खारिज कर चुका है।
अब जबकि नमाज के लिए न तो मस्‍जिद अनिवार्य है और न बाबर किसी भारतीय मुसलमानों का पूर्वज है, फिर उसकी हिमायत में खड़े होना और उसके द्वारा मंदिर तोड़कर बनाई गई मस्‍जिद की पैरवी करना किस तरह जायज है।
सच तो यह है कि कोई भी सच्‍चा मुसलमान यदि मात्र 1400 साल पूर्व हुए इस्‍लाम के प्रवर्तक पैगंबर साहब की जन्‍मस्‍थली पर सवाल खड़े करना बर्दाश्‍त नहीं कर सकता, उसी तरह हिंदू भी मर्यादा पुरुषोत्तम भगवान श्रीराम की जन्‍मस्‍थली को लेकर लगातार उठाए जा रहे सवालों से आहत हैं।
जहां तक बात मंदिर के निर्माण में होने वाले विलंब और उस पर की जा रही राजनीति की है तो स्‍वामी रामदेव का यह कथन सही प्रतीत होता है कि सब्र का बांध अब टूटने लगा है।
कौन नहीं जानता कि चूल्‍हे पर रखा पानी भी एक समय बाद उबल कर बाहर आ जाता है, इसलिए यह प्रश्‍न मुनासिब नहीं कि सैकड़ों साल यदि इंतजार किया है तो अब सुप्रीम कोर्ट के निर्णय का इंतजार क्यों नहीं।
सुप्रीम कोर्ट के निर्णय का इंतजार तो किया ही जा रहा था परंतु जब सुप्रीम कोर्ट ने ही यह कहते हुए बहुसंख्‍यकों के धैर्य की परीक्षा लेनी शुरू कर दी कि उसके लिए राम जन्‍मभूमि का मुद्दा कोई प्राथमिकता नहीं है तो अब सवाल कैसा।
न्‍यायपालिका हो या कार्यपालिका, विधायिका हो या कोई अन्‍य संस्‍था, आखिर ये सब लोगों के लिए बनाए गए तंत्र हैं न कि इन तंत्रों के लिए लोग बने हैं। इसीलिए लोकतंत्र में भी लोक पहले आता है और तंत्र बाद में।
बेशक आज राजनीतिक परिस्‍थितियां ऐसी हैं कि कांग्रेस सहित दूसरे विपक्षी दल भी राम मंदिर निर्माण का खुलकर विरोध करने की हिमाकत नहीं कर पा रहे परंतु सुप्रीम कोर्ट ने अपनी एक अदद टिप्‍पणी से बॉल राजनीतिज्ञों के खेमे में ही डाल दी है। आज यदि राम मंदिर निर्माण का मुद्दा फिर गर्मा रहा है तो उसके लिए अदालतों की तारीख पर तारीख देने की प्रवृत्ति भी कम जिम्‍मेदार नहीं।
राम जन्‍मभूमि को विवादित बनाए रखने में रुचि लेने वालों को समझना ही होगा कि जब उनके मात्र 1400 साल पुराने धर्म पर सवालिया निशान लगाना उन्‍हें आहत करता है तो हजारों साल पूर्व जन्‍म लेने वाले हिंदुओं के आराध्‍य पर प्रश्‍न खड़े करना कैसे सहन होगा और कब तक सहन होगा।
इतिहास गवाह है कि कोई हिंदू शासक कभी आक्रांता नहीं रहा, हिंदुओं से ज्‍यादा सहिष्‍णु कोई हुआ ही नहीं। फिर भी चूल्‍हे पर रखे हुए पानी के उबलकर बाहर आने का इंतजार करना किसी तरह अक्‍लमंदी नहीं।
गौर करने लायक है डॉ. सैयद रिजवान अहमद की यह टिप्‍पणी कि राम मंदिर अब तक इसलिए नहीं बना क्‍योंकि हिंदू जाग्रत नहीं हुआ, जिस दिन हिंदू जाग गया उस दिन राम मंदिर के निर्माण को कोई रोक नहीं पाएगा।
डॉ. रिजवान के शब्‍दों में कहें तो मुस्‍लिमों की बाबर परस्‍ती यदि अब भी नहीं छूटी तो ‘न खुदा ही मिला न विसाले सनम’ की कहावत चरितार्थ होकर रहेगी। उसके बाद मोहब्‍बत का पैगाम कटोरे में लेकर घूमने के अलावा कुछ हाथ नहीं रह जाएगा।
कौन नहीं जानता कि पूरी दुनिया में मुस्‍लिम यदि कहीं सबसे अधिक महफूज हैं तो वह भारत है। सर्व धर्म समभाव के पोषक समूची कायनात में कोई हैं तो वह हिंदू हैं। विश्‍व के मानवों को कुटुम्‍ब मानकर वसुधैव कुटुम्बकम की अवधारणा में जीने वाले धर्म को यदि बार-बार चेतावनी दी जाएगी और उनके आराध्‍य के वजूद को चुनौती मिलेगी तो सब्र का बांध टूटना स्‍वाभाविक है।
कोर्ट का फैसला, कानून, अध्‍यादेश आदि सब तब तक अहमियत रखते हैं जब तक उनमें विश्‍वास कायम रहता है। जिस दिन इन व्‍यवस्‍थाओं पर से विश्‍वास टूटने लगता है, उस दिन बहुत कुछ टूटने और बिखरने की नौबत आ जाती है।
बेहतर होगा कि एक नया इतिहास कायम किया जाए, इतिहास दोहराया न जाए अन्‍यथा भगवान श्रीकृष्‍ण ने भी अंत तक महाभारत को रोकने के बहुत प्रयास किए थे। संपूर्ण राज-पाठ की जगह पांडवों के लिए मात्र पांच गांव देने की प्रार्थना की थी लेकिन दुर्योधन नहीं माना।
दुर्योधन द्वापर में ही नहीं हुआ था। वह हर युग में होता है, इसलिए आज के दुर्योधनों को पहचानना जरूरी है क्‍यों कि जरूरी है शांति और सद्भाव। यदि दुर्योधनों की चाल काम आ गई तो शांति की स्‍थापाना के लिए भी युद्ध आवश्‍यक हो जाता है।
-सुरेन्‍द्र चतुर्वेदी

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