जिस तरह भोजन के लिए भूख… सोने के लिए नींद और रोने के लिए भावनाएं या संवेदनाएं होना जरूरी है, उसी तरह आजादी के लिए गुलाम होना भी जरूरी है। जो गुलाम नहीं है, और फिर भी आजादी की मांग करता है तो निश्चित जानिए कि उसका मानसिक संतुलन दुरुस्त नहीं है। अब जरा विचार कीजिए कि भूख होने के बावजूद कोई भोजन नहीं कर पा रहा, नींद आने पर भी सो नहीं पा रहा और भरपूर भावनाओं के बाद भी रो नहीं रहा तो इसका क्या मतलब हो सकता है। इसका सीधा सा मतलब केवल एक है कि वह शारीरिक अथवा मानसिक रूप से बीमार है। दुनिया की हर पैथी का डॉक्टर उसे देखे बिना भी यह बता सकता है कि ये लक्षण किसी न किसी गंभीर बीमारी के हैं। अब बीमारी है तो उसका उपचार आवश्यक है। चूंकि उपचार की पद्धति और प्रक्रियाएं अलग-अलग होती हैं लिहाजा उनका एक्शन तथा रिएक्शन भी अलग-अलग तरीकों से सामने आता है। जैसे कि कुछ लोग धरना-प्रदर्शन करके रिएक्शन दे रहे हैं तो कुछ लोग लोकतंत्र को खतरे में बताकर दे रहे हैं। कोई हिटलरशाही बता रहा है तो कोई मोदी-शाही कह रहा है। हर क्रिया की प्रतिक्रिया होती है, यह वैज्ञानिक तथ्य है। इसलिए उनकी क्रिया पर प्रतिक्रियाएं भी आ रही हैं। बहरहाल, इस सबके बीच सवाल फिर वहीं खड़ा होता है कि आजादी मांगने या छीनने के लिए पहली शर्त है गुलामी। जिस देश में सीएम से लेकर पीएम तक को और लोअर कोर्ट एवं हाईकोर्ट से लेकर सुप्रीम कोर्ट को भी गरियाने की पूरी छूट प्राप्त हो। जहां सजायाफ्ता आतंकियों के पक्ष में न सिर्फ खड़े होने बल्कि आधी रात को भी सर्वोच्च न्यायालय खुलवाने का अधिकार हो। चुनी हुई सरकार को कठघरे में खड़ा करने का अवसर हो और संसद के दोनों सदनों से पारित कानूनों के खिलाफ सड़क पर उतरने से कोई रोक न हो, उस देश में छीन के आजादी लेने का नारा मर्ज को न सही किंतु मरीज को तो पहचान ही रहा है। माना कि अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का अधिकार संविधान प्रदत्त है, किंतु हर अधिकार में कुछ कर्तव्य भी निहित होते हैं। भारतीय संविधान के भाग 4(क) अनुच्छेद 51(क) के तहत नागरिकों के मौलिक कर्तव्य कुछ इस प्रकार हैं: 1. प्रत्येक नागरिक का यह कर्तव्य होगा कि वह संविधान का पालन और उसके आदर्शों, संस्थाओं, राष्ट्र ध्वज व राष्ट्र गान का आदर करे। 2. स्वतंत्रता के लिए हमारे राष्ट्रीय आंदोलन को प्रेरित करने वाले उच्च आदर्शों को हृदय में संजोए रखे और उनका पालन करे। 3. भारत की प्रभुता, एकता और अखंडता की रक्षा करे और उसे अक्षुण्ण रखे। 4. देश की रक्षा करे। 5. भारत के सभी लोगों में समरसता और समान भ्रातृत्व की भावना का निर्माण करे। 6. हमारी सामाजिक संस्कृति की गौरवशाली परंपरा का महत्व समझे और उसका निर्माण करे। 7. प्राकृतिक पर्यावरण की रक्षा और उसका संवर्धन करे। 8. वैज्ञानिक दृष्टिकोण और ज्ञानार्जन की भावना का विकास करे। 9. सार्वजनिक संपत्ति को सुरक्षित रखे। 10. व्यक्तिगत एवं सामूहिक गतिविधियों के सभी क्षेत्रों में उत्कर्ष की ओर बढ़ने का सतत प्रयास करे। 11. अभिवावक/ संरक्षक 6 से 14 वर्ष के बच्चों को प्राथमिक शिक्षा प्रदान करे।
यहां यह गौर करना जरूरी है कि संविधान प्रदत्त अधिकारों का दुरुपयोग करने और छीनकर आजादी लेने की धमकी देने वाले क्या अपने इन 11 संवैधानिक कर्तव्यों का निर्वहन कर रहे हैं। यदि कर रहे हैं तो कितने कर्तव्यों का कर रहे हैं। रही बात अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता अथवा आजादी की, तो उसकी भी सीमा होती है। सीमा रेखा क्रॉस करते ही स्वतंत्रता भी अपराध की श्रेणी में शामिल हो जाती है। उदाहरण के लिए अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के नाम पर किसी को गाली तो नहीं दी जा सकती। पहनने की आजादी के अधिकार से कोई निर्वस्त्र नहीं घूम सकता क्योंकि यह आजादी लोगों को मनमुताबिक लिबास पहनने के लिए है, न कि ‘न पहनने’ के लिए। बहुत से लोगों को तो थूकने की, मूतने की और हगने की भी आजादी चाहिए। मतलब वो जहां चाहें थूक सकें, जिस स्थान पर चाहें लघुशंका निवारण करें और कहीं भी दीर्घशंका से निवृत हो सकें। इनकी अपनी दलीलें हैं। सड़क पर चलते हुए या किसी वाहन में बैठे-बैठे थूकने वाले की मानें तो वह अपने मुंह से अपने देश की सड़क पर थूक रहा है, इससे आपत्ति कैसी। यदि उसका थूक किसी दूसरे के ऊपर गिर भी रहा है तो यह उसकी अपनी समस्या है, उसे अपना मुंह बचाकर खुद चलना चाहिए। सरेआम लघुशंका करने वालों को टोकिए तो वह कहेंगे कि सरकार ने हर चार कदम पर मूत्रालय क्यों नहीं बनवाए, अब नहीं बनवाए तो हम इसके लिए जिम्मेदार थोड़े ही हैं। खुली हवा में नाली-नाले और नदी-तलाब के किनारे या खेत-खलिहान में ‘निपटने’ वालों को घोर आपत्ति है कि सरकार ‘स्वच्छ भारत अभियान’ के तहत घर-घर व गांव-गांव शौचालय क्यों बनवा रही है। उनका घर, उनका गांव, उनके खेत और उन्हीं के खलिहान… लेकिन उन्हीं की स्वतंत्रता का हनन। उन्हें भी मन मुताबिक मल-मूत्र विसर्जन की आजादी चाहिए। सरकार कौन होती है, उन्हें दायरे में बांधने वाली। दिल्ली का शाहीन बाग और लखनऊ का घंटाघर हो या जामिया तथा जेएनयू व एएमयू। यहां प्रदर्शन करने वालों में और खुलेआम थूकने, मूतने एवं हगने की आजादी मांगने वालों में कोई अंतर नहीं है। अंतर इसलिए नहीं है कि ये सब के सब किसी न किसी स्तर पर मानसिक रोगी हैं। इन्हें अपने संविधान प्रदत्त अधिकारों का तो ज्ञान है परंतु कर्तव्यों का नहीं। अधूरा ज्ञान हमेशा नाश की निशानी होता है। या यूं कहें कि पतन के रास्ते पर ले जाता है। सवा सौ करोड़ से अधिक की आबादी वाले विश्व के सबसे बड़े लोकतांत्रिक देश में मुठ्ठीभर लोगों का मानसिक रूप से विक्षिप्त हो जाना कोई आश्चर्य नहीं, परंतु आश्चर्य तब होता है जब कुछ ऐसे लोग अपने-अपने स्वार्थों की पूर्ति के लिए इन्हें लगातार बरगलाते रहते हैं, जिन्हें आज तक बुद्धिजीवी माना जाता रहा है। जिन्हें बड़े-बड़े पुरस्कारों से नवाजा गया है। शायद इसीलिए भारत विश्व में अकेला ऐसा देश होगा जहां के नागरिक उस कानून का विरोध कर रहे हैं जो उन्हीं के हित में बनाया गया है। यही नहीं, यह दुनिया का एकमात्र देश होगा जहां के कुछ नागरिक 70 साल से अधिक का समय बीत जाने के बाद भी उस बहुमूल्य आजादी का अपमान कर रहे हैं जिसे पाने के लिए अनगिनत लोग बलिदान हुए। ऐसा न होता तो नक्सलवाद, उग्रवाद, आतंकवाद भी नहीं होते और न ऐसे युवा होते जो गुलामी का स्वाद चखे बिना छीन के आजादी लेने का नारा देकर भी कहते हैं कि देश का लोकतंत्र एवं संविधान खतरे में है। -सुरेन्द्र चतुर्वेदी
वैसे तो कॉरपोरेट लॉबिस्ट नीरा राडिया द्वारा समाजसेवा की आड़ लेकर कृष्ण नगरी मथुरा में खोला गया ‘नयति’ सुपर स्पेशलिटी नामक हॉस्पिटल अपने शुरूआती दिनों से ही विवादित रहा है, किंतु इन दिनों उसकी चर्चा उस घटना के कारण हो रही है जिसका सीधा संबंध सत्ताधारी दल भाजपा के मथुरा महानगर अध्यक्ष विनोद अग्रवाल से है। नीरा राडिया और राजेश चतुर्वेदी के ‘नयति’ हॉस्पिटल में विनोद अग्रवाल के साथ हुई इस घटना के लिए कौन जिम्मेदार है, इसका नतीजा निकालने से पहले उन परिस्थितियों पर गौर किया जाना जरूरी हो जाता है जिन परिस्थितियों में कोई भी व्यक्ति हॉस्पिटल जाता है अथवा उसे जाना पड़ता है। इसके अलावा किसी भी निष्कर्ष तक पहुंचने के लिए यह जानना भी अति आवश्यक है कि कारण जो हों परंतु ‘नयति’ लगातार विवादों में क्यों रहता है ? दरअसल, इसके पीछे हॉस्पिटल संचालकों की हर किसी को दबाब में रखने की मानसिकता है। फिर चाहे वह किसी मरीज के परिजन हों या तीमारदार, अथवा उन्हें देखने के लिए हॉस्पिटल पहुंचने वाले नाते-रिश्तेदार, दोस्त और परिचित। ‘नयति’ के संचालकों की दबाव बनाकर अपने पक्ष में करने की नीति का ही हिस्सा है मीडिया से जुड़े लोगों को भी साम-दाम-दंड और भेद के जरिए अपने अनुकूल लिखने को मजबूर करना। नयति ने यही हथकंडा वर्ष 2018 में ‘लीजेंड न्यूज़’ पर तब अपनाया जब Legendnews.in द्वारा 23 जून 2016 को ”नीरा राडिया के ”नयति” की ”नीयत” में ही खोट लगता है” शीर्षक से एक खबर प्रकाशित की गई। पूरी खबर पढ़ने के लिए नीचे दिए गए लिंक पर क्लिक कीजिए- https://bhrashtindia.blogspot.com/2016/06/blog-post_23.html Legendnews.in पर यह खबर प्रकाशित होने के पूरे दो वर्ष बाद यानी 01 जुलाई 2018 को नीरा राडिया के ‘नयति’ की ओर से उसकी लॉ फर्म ARCINDO Law Advotactes & Solicitors द्वारा यह लीगल नोटिस भेजा गया-
मथुरा में नीरा राडिया के प्रभाव का अंदाज इस बात से लगाया जा सकता है कि तमाम स्थानीय अधिवक्ता ”नयति” के इस लीगल नोटिस का जवाब तक देने को तैयार नहीं थे। आखिर युवा और तेज-तर्रार वकील प्रशांत सरीन ने Legendnews.in में प्रकाशित समाचार को बारीकी से पढ़कर जब ARCINDO Law Advotactes & Solicitors काउंटर जवाब दिया तो जैसे सांप सूंघ गया, क्योंकि ‘नयति’ का नोटिस न सिर्फ तथ्यों से परे था बल्कि इस मंशा के साथ भेजा गया था कि लीजेंड न्यूज़ उसका खंडन करके ‘नयति’ की प्रशंसा में समाचार प्रकाशित करने लगे जैसा कि कई तथाकथित बड़े अखबार कर भी रहे हैं। इस पूरे घटनाक्रम का एक रोचक पहलू यह रहा कि लीजेंड न्यूज़ की ओर से एडवोकेट प्रशांत सरीन द्वारा ‘नयति’ की लॉ फर्म को नोटिस का जवाब देते ही नीरा राडिया के अनेक शुभचिंतक संपर्क साधने में जुट गए जिससे मामला ”रफा-दफा” किया जा सके। आखिर किसी तरह बात बनती न देख भविष्य में शिकायतें ठीक करने का आश्वासन देकर काम चला लिया।
बहरहाल, कलेंडर में तारीखें बदलती रहीं किंतु ‘नयति’ की ‘नीयत’ में बदलाव होता दिखाई नहीं दे रहा। आज भी कोई महीना तो क्या, कोई सप्ताह भी शायद ही ऐसा बीतता हो जब ‘नयति’ से जुड़े विवाद सामने न आते हों। ये विवाद बदसलूकी से लेकर लंबा-चौड़ा बिल बनाने सहित अन्य कई तरह के होते है।आश्चर्य की बात यह है कि विवाद किसी किस्म का हो और किसी स्तर से हो लेकिन गलती हमेशा दूसरे पक्ष की होती है। ‘नयति’ हमेशा उसी तरह पाक-साफ होता है जिस तरह उसकी संचालक नीरा राडिया ‘पाक-साफ’ हैं। -Legend News http://legendnews.in/nayati-of-neera-radia-gave-a-legal-notice-to-legend-news-when-the-reply-was-given-it-was-silent/
योगी आदित्यनाथ के नेतृत्व वाली उत्तर प्रदेश की भाजपा सरकार ने यूं तो भ्रष्टाचार को लेकर जीरो टॉलरेंस की पॉलिसी पहले दिन से अपना रखी है किंतु ‘मुंह लग चुके रिश्वत के खून’ को ‘सरकारी मशीनरी’ इतनी आसानी से छोड़ने वाली नहीं है, इस बात को योगी जी शायद स्वयं भी अब ढाई साल बीत जाने के बाद अच्छी तरह समझ पाए हैं। UPPCL का PF घोटाला हो या पुलिस में ट्रांसफर-पोस्टिंग के नाम पर आ रही पैसे के लेन-देन की खबरें, नगर पालिकाओं एवं नगर निगमों में चल रहा खेल हो अथवा विकास प्राधिकरणों की भ्रष्टाचार को पालने-पोषने वाली नीति, इन सभी ने योगी जी को यह समझने में मदद की है कि भ्रष्टाचारियों के कॉकश को तोड़ पाना उतना आसान नहीं है जितना वो समझे बैठे थे। संभवत: इसीलिए गत शुक्रवार को लखनऊ के लोकभवन में आवास एवं शहरी नियोजन विभाग की प्रस्तावित शमन योजना को देखकर सीएम योगी आदित्नाथ ने अधिकारियों से कहा कि वह अलग-अलग टीमें बनाकर अवैध निर्माण को चिन्हित कर शमन शुल्क वसूलें। इसके लिए एक पारदर्शी व्यवस्था बनाई जाए ताकि इसकी आड़ में अवैध कमाई न की जा सके। सीएम योगी ने यह भी कहा कि जिन अधिकारियों के कार्यकाल में अवैध कॉलोनियों बसाई गई हैं और बेखौफ अवैध निर्माण हुए हैं, उनकी जवाबदेही तय की जाए क्योंकि ये निर्माण विवाद के बड़े कारण बने हुए हैं। योगी आदित्नाथ का यह कथन स्पष्ट करता है कि उन्हें आवास एवं शहरी नियोजन विभाग में व्याप्त भ्रष्टाचार की जानकारी तो है ही, वह इतना भी जानते हैं कि इससे जुड़े लोगों के संरक्षण से ही अवैध कॉलोनियां तथा अवैध निर्माण होते हैं। वैसे देखा जाए तो भ्रष्टाचार को लेकर जीरो टॉलरेंस की नीति पर चलने वाली योगी आदित्यनाथ सरकार ने आवास एवं शहरी नियोजन विभाग में व्याप्त भ्रष्टाचार को महसूस करने में जरूरत से ज्यादा वक्त लगा दिया अन्यथा ‘पब्लिक डोमेन’ में विकास प्राधिकरण का नाम बहुत पहले से ‘विनाश प्राधिकरण’ प्रचलित है और नगर पालिकाओं को ‘नरक पालिका’ कहा जाता है। उत्तर प्रदेश इस देश का सबसे बड़ा सूबा है इसलिए इसके एक-एक शहर और कस्बे की कुंडली निकालना थोड़ा जटिल है, लेकिन उन प्रमुख शहरों से प्रदेश की स्थिति को भलीभांति समझा जा सकता है जिन पर योगी सरकार का पूरा ‘फोकस’ बना हुआ है। ऐसे ही शहरों में शुमार है योगीराज भगवान श्रीकृष्ण की पावन जन्मस्थली का गौरव प्राप्त विश्व विख्यात धार्मिक नगरी मथुरा। एक ओर हरियाणा तथा दूसरी ओर राजस्थान की सीमा से लगा एवं राष्ट्रीय राजधानी दिल्ली के करीब और यमुना नदी के किनारे बसा यह तीर्थस्थल चूंकि पर्यटन की दृष्टि से भी अंतर्राष्ट्रीय ख्याति प्राप्त है लिहाजा वर्षभर यहां लोगों का आगमन बना रहता है। इसके अलावा यह जनपद निवेशकों को भी आकर्षित करता रहा है इसलिए यहां जमीनी कारोबार पिछले कुछ वर्षों के अंदर काफी फला-फूला है। किसी भी प्रदेश के विकास में वहां की डेवलपमेंट अथॉरिटी का बड़ा हाथ होता है इसलिए मथुरा-वृंदावन विकास प्राधिकरण का भी दायरा बढ़ाते हुए योगी सरकार ने एक ऐसे अधिकारी को उसका उपाध्यक्ष नियुक्त किया जो ब्रज तीर्थ विकास परिषद उत्तर प्रदेश का मुख्य कार्यपालक अधिकारी यानी CEO भी है। यही नहीं, प्रदेश सरकार ने ब्रज तीर्थ विकास परिषद उत्तर प्रदेश के अध्यक्ष पद पर अवकाश प्राप्त आईपीएस अधिकारी शैलजाकांत मिश्र को तैनात किया। यहां यह जान लेना जरूरी है कि ये दोनों अधिकारी मथुरा के मिजाज से भलीभांति परिचित हैं। पीपीएस अधिकारी नागेन्द्र प्रताप की अब तक की नौकरी का एक बड़ा हिस्सा मथुरा-आगरा में ही कटा है और शैलजाकांत मिश्र भी पूर्व में मथुरा पुलिस के मुखिया रहे हैं। शैलजाकांत मिश्र का ‘देवरहा बाबा’ और उनके आश्रम से भी गहरा नाता रहा इसलिए मथुरा से जाने के बावजूद उनका इस तीर्थस्थल तथा ब्रजवासियों से संबंध कभी टूटा नहीं। ‘योगीराज’ में इन दोनों अधिकारियों को पर्याप्त अधिकार मिले हुए हैं, साथ ही मथुरा-वृंदावन विकास प्राधिकरण और ब्रज तीर्थ विकास परिषद एक-दूसरे के पूरक हैं। बावजूद इसके जनपद का कितना व कैसा विकास हुआ है, इसके बारे में कुछ बताने की जरूरत नहीं रह जाती। ब्रज तीर्थ विकास परिषद के दोनों आला अधिकारियों ने मथुरा-वृंदावन-गोवर्धन या बरसाना का कोई उल्लेखनीय विकास भले ही न किया हो परंतु आरोप-प्रत्यारोप में बराबर जरूर उलझे हुए हैं। जहां तक सवाल विकास प्राधिकरण का है तो सैकड़ों अवैध कॉलोनियों का जाल इस धर्मनगरी में फैला हुआ है। अधिकृत पॉश कॉलोनियों में भी मनमाना निर्माण कार्य कराने के लिए बिल्डर और मकान मालिक स्वतंत्र हैं। यदि किसी बिल्डर को तीन मल्टी स्टोरी इमारत खड़ी करने की इजाजत मिली है तो उसने विकास प्राधिकरण की मिलीभगत से छ: मल्टी स्टोरी इमारतें खड़ी कर ली हैं लिहाजा उन्हें लेकर वैसे ही विवाद लंबित हैं जिनका जिक्र सीएम योगी आदित्यनाथ ने अपनी मीटिंग में अधिकारियों से किया। होटल, गेस्ट हाउस, मैरिज होम्स, अत्याधुनिक आश्रम, व्यावसायिक शोरूम आदि का निर्माण धड़ल्ले से वाहन पार्किंग की जगह छोड़े बिना हो रहा है। नया बस अड्डा क्षेत्र, पुराने बस अड्डे का इलाका, मसानी-हाईवे लिंक रोड, वृंदावन का रमणरेती रोड, गोवर्धन-मथुरा मार्ग तथा आन्यौर परक्रिमा मार्ग सहित शहर का व्यस्ततम इलाका और नेशनल हाईवे व शहर दोनों से सटा हुआ कृष्णा नगर का मार्केट इसका प्रत्यक्ष उदाहरण हैं। समूचा शहर और यहां तक कि मथुरा की सीमा के अंदर वाला नेशनल हाईवे भी इसी कारण पूरे-पूरे दिन जाम से जूझता रहता है। सर्वविदित है कि जेब भारी हो तो मथुरा-वृंदावन विकास प्राधिकरण से कैसा भी नक्शा पास कराना कोई मुश्किल काम नहीं है। रिहायशी इलाके में टू व्हीलर, थ्रीव्हीलर, फोर व्हीलर और यहां तक कि ट्रैक्टर्स तक के शोरूम बने खड़े हैं क्योंकि विकास प्राधिकरण के अधिकारी सिर्फ और सिर्फ अपना विकास करने में मस्त हैं। इन शोरूम्स में परमीशन के बिना अपनी जरूरत के हिसाब से परिवर्तन होते भी हर कोई देख सकता है सिवाय विकास प्राधिकरण के। मॉल, इंस्टीट्यूट एवं शिक्षण संस्थाएं हों या व्यावसायिक इमारतें, किसी के लिए एनओसी लिए बिना विकास प्राधिकरण से परमीशन लेना आसान है। तकरीबन यही स्थिति नगर पालिकाओं एवं नगर निगमों की है। प्रदेशभर में इनकी कार्यप्रणाली बदनाम है क्योंकि यहां की ईंट-ईंट पैसा मांगती है। मथुरा-वृंदावन जैसे विश्व प्रसिद्ध धार्मिक स्थल का विकास प्राधिकरण, हड़िया के चावल की तरह उदाहरण मात्र है वरना पूरे प्रदेश की स्थिति इससे कुछ अलग नहीं है। यूपी के “राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र” (एनसीआर) से लेकर प्रदेश की राजधानी लखनऊ तक के हालात कमोबेश एक जैसे हैं और इसीलिए मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने शहरी नियोजन विभाग की बैठक में अधिकारियों को स्पष्ट आदेश दिए कि अवैध निर्माण ध्वस्त करने या शमन शुल्क वसूलने की आड़ में अनैतिक कमाई का धंधा और जोर-शोर से शुरू न हो। सीएम योगी आदित्यनाथ ने भले ही अधिकारियों को कितने ही सख्त आदेश-निर्देश क्यों न दिए हों, परंतु जमीनी हकीकत इससे बदलने वाली नहीं हैं। शिकायत और जांच से शुरू होने वाला सिलसिला जब तक किसी नतीजे पर पहुंचता है तब तक तो सरकारें बदल जाती हैं। नोएडा के बुद्धा सर्किट में लगी मूर्तियों के भ्रष्टाचार की जांच हो या फिर गोमती रिवर फ्रंट के निर्माण में हुए घोटाले की, नतीजा सबके सामने है। सरकार बनने पर मायावती को जेल भेजने का ऐलान करने वाले सपा के तत्कालीन मुखिया मुलायम सिंह आज किसी लायक नहीं रहे तथा पिता की कृपा से अपरिपक्व उम्र में मुख्यमंत्री बनने वाले अखिलेश यादव पिछले विधानसभा चुनाव में मायावती की उंगली पकड़ कर सत्ता पाने का ख्वाब पालते दिखे। इससे पहले पूर्ण बहुमत के साथ यूपी की बागडोर संभालने वाली बसपा प्रमुख मायावती ने कल्पना भी नहीं की थी कि पूर्ण बहुमत के साथ ही कभी सपा भी सरकार बना सकती है। इनमें से किसी ने शायद ही यह सोचा हो कि सपा-बसपा के नायाब गठबंधन को धता बताकर जनता भाजपा का पूरे सम्मान के साथ राजतिलक कर देगी। और शायद ही किसी के दिमाग में यह बात भी आई हो कि गेरुआ वस्त्र पहननने वाला गोरखनाथ मंदिर का एक महंत देश के सबसे बड़े प्रदेश की सत्ता संभालेगा। राजनीति में उलटबांसियों का यह खेल ही उसे जितना रोचक बनाता है, उतना ही चौंकाता भी है। ढाईसाल से अधिक का ”योगीराज” बीत चुका है। इसे आधा गिलास भरा और आधा गिलास खाली जैसी स्थिति भी कह सकते हैं। आधे से अधिक का समय बीत जाने पर भी यदि भ्रष्टाचार के मामले में जीरो टॉलरेंस की नीति परवान नहीं चढ़ पाई तो इतना तय है कि आगे आने वाले ढाई साल बहुत आसान नहीं होंगे। योगी आदित्यनाथ को यदि वाकई भ्रष्टाचारियों पर प्रभावी अंकुश लगाना है तो उन्हें ‘सत्ता के मठ’ से स्वयं बाहर आना होगा। हड़िया के पूरे चावल न सही, किंतु कुछ चावलों को देखकर पता करना होगा कि अधिकारी उनके आदेश-निर्देशों की तपिश महसूस कर भी रहे हैं या नहीं। कहीं ऐसा तो नहीं तो भ्रष्टाचार की जीरो टॉलरेंस वाली उनकी नीति को ही हथियार बनाकर अधिकारी व कर्मचारी दोनों हाथों से लूट करने में लगे हों। सख्ती का असर कई मर्तबा इस रूप में भी सामने आता है, यह कोई रहस्योद्घाटन नहीं है। योगी सरकार को समय रहते यह भी समझना होगा रेत की तरह समय हाथ से फिसलता जा रहा है जबकि अभी बहुत सी चुनौतियों शेष हैं। -सुरेन्द्र चतुर्वेदी