स्‍पंदन....कुछ व्‍यंग्‍य

बुधवार, 23 अक्टूबर 2024

...तो डालमिया बाग मामले में 120B के आरोपी बनाए जाएंगे MVDA के कई अधिकारी और कर्मचारी

 


 वैसे तो समूचे उत्तर प्रदेश के विकास प्राधिकरण अपनी भ्रष्ट कार्यप्रणाली को लेकर अच्छे-खासे बदनाम हैं, लेकिन अगर बात करें मथुरा-वृंदावन विकास प्राधिकरण (MVDA) की तो यहां तैनात उसके अधिकारी एवं कर्मचारी बाकायदा अपराधियों के किसी संगठित गिरोह की तरह काम करते हैं। इसमें सबकी अपनी भूमिका और उसके अनुसार सबकी हिस्‍सेदारी भी तय है। कोई किसी के काम में दखल नहीं देता, इसलिए सबकुछ बहुत सहजता के साथ चलता रहता है। 

ताजा मामला वृंदावन के डालमिया बाग का है जिस पर एक रियल एस्‍टेट प्रोजेक्ट खड़ा करने के लिए गुरुकृपा तपोवन के नाम से MVDA में नक्शा मूव किया गया और नक्शा पास हुए बिना ही प्‍लॉट बुक करने शुरू कर दिए। यही नहीं, माफिया ने मात्र एक नक्शे की आड़ में अनुमानत: एक हजार करोड़ रुपया एकत्र कर लिया। चूंकि माफिया ने निवेशकों से एक बड़ी रकम हथिया ली थी इसलिए उसे एक ओर जहां डालमिया बाग पर अपना कब्जा दिखाना था वहीं दूसरी ओर ये भी जाहिर करना था कि उसका काम पूरी प्रगति पर है लिहाजा उसने बाग के साढ़े चार सौ से अधिक हरे वृक्षों को रातों-रात कटवा डाला। हरे वृक्षों के इस अवैध कटान ने माफिया की  बदनीयति सामने लाकर रख दी। 
MVDA की भूमिका पहले दिन से संदिग्ध 
मथुरा-वृंदावन विकास प्राधिकरण ने हालांकि पेड़ कटने के बाद अपना मुंह साफ रखने की कोशिश में प्राधिकरण की रेलिंग काटने का एक केस भी दर्ज कराया किंतु उसका मुंह साफ हो नहीं पा रहा, जिसके कुछ ठोस कारण हैं। 
सबसे पहला और बड़ा कारण तो यह है कि MVDA के जो अधिकारी एवं कर्मचारी अपने क्षेत्र में छोटे से छोटे अवैध निर्माण को सूंघते फिरते हैं और उसके खिलाफ कार्रवाई का भय दिखाकर मनमानी वसूली करने जा धमकते हैं, वो एक ऐसे रियल एस्टेट प्रोजेक्ट की आड़ में की जा रही अवैध बुकिंग पर क्यों मौन साधे रहे जिसका नक्शा उसके यहां विचाराधीन था लेकिन पास नहीं किया गया था। नियमानुसार MVDA को नक्शा पेश किए जाने की सूचना सार्वजनिक करनी चाहिए थी, जो उसने नहीं की। 
ताज्जुब इस बात का भी है कि MVDA आज तक गुरुकृपा तपोवन के नक्शे की असलियत पर चुप्‍पी साधे बैठा है जबकि निवेशक अपनी रकम डूब जाने के भय से माफिया के यहां चक्कर काट रहा है। विकास प्राधिकरण की यही चुप्पी उसकी माफिया से मिलीभगत का दूसरा संकेत है। 
नक्शा पास कराने के लिए पेश सपोर्टिंग पेपर्स की स्थिति तक स्पष्ट नहीं 
यहां गौर करने वाली बात यह है कि किसी भी प्रोजेक्ट, यहां तक कि घर-दुकान या मकान का नक्शा पास कराने के लिए नक्शे के साथ कुछ सपोर्टिंग पेपर्स भी सबमिट करने होते हैं जिनमें सबसे जरूरी होता है मालिकाना हक साबित करना। इसके बाद नंबर आता है विभिन्न विभागों के नो ऑब्जेक्शन सर्टिफिकेट (NOC) लगाने का जो आवश्‍यकता अनुसार लगाने होते हैं। 
ऐसे में एक महत्वपूर्ण सवाल खुद-ब-खुद सामने खड़ा हो जाता है कि गुरुकृपा तपोवन का नक्शा पास कराने के लिए मालिकाना हक साबित करने वाले पेपर्स पेश किए गए हैं या नहीं, और किए गए हैं तो मालिकाना हक किसके पास बताया गया है। 
यह मान भी लिया जाए कि MVDA को न तो डालिमया बाग में सैकड़ों हरे वृक्ष खड़े होने की कोई जानकारी थी और न रजिस्ट्री होने-न होने का कुछ पता था तब भी उसे यह स्‍पष्‍ट करना चाहिए कि गुरुकृपा तपोवन का नक्शा पास कराने किसने भेजा तथा किस आधार पर भेजा। 
डालमिया बाग पर उपजे विवाद को अब एक महीने से ऊपर का समय बीत चुका है। जाहिर है कि अब तक तो MVDA को काफी कुछ पता लग चुका होगा, किंतु आज भी MVDA का कोई अधिकारी या कर्मचारी इस मुद्दे पर अपना मुंह खोलने को तैयार नहीं। आखिर क्यों?  
आज भी 'लीजेण्‍ड न्‍यूज़' ने MVDA के उपाध्‍यक्ष श्‍याम बहादुर सिंह को whatsapp मैसेज भेजकर गुरुकृपा तपोवन के नक्शे पर विभाग की स्‍थिति सामने रखने का अनुरोध किया लेकिन मैसेज भेजे हुए कई घंटे बीत जाने के बावजूद कोई प्रतिक्रिया नहीं मिली।     
हजार करोड़ की ठगी में किस-किस की हिस्सेदारी 
मात्र एक फर्जी नक्शा पेश करके पब्‍लिक से करीब हजार करोड़ रुपए ठग लिए गए लेकिन विकास प्राधिकरण मुंह सिल कर बैठ जाए तो इसका क्या अर्थ निकालता है, इसे समझना कोई मुश्‍किल काम नहीं। 
गुरुकृपा तपोवन के नाम पर जो आपराधिक कृत्य किया गया वह सीधे-सीधे IPC की धारा 420, 467, 468 और 471 के अलावा 120B का गंभीर अपराध है क्योंकि एक ऐसे प्रोजेक्ट का सब्‍जबाग दिखाकर हजार करोड़ रुपया ठग लिया गया जिसका मालिकाना हक तो दूर नक्शा तक पास नहीं हुआ। जिसे लेकर कोई एग्रीमेंट नहीं हुआ। जो हुआ, वो सिर्फ और सिर्फ एक Memorandum of understanding (MOU) है यानी कोई सौदा करने के लिए दो पक्षों के बीच अंडरस्‍टेंडिंग। 
चूंकि विकास प्राधिकरण इतना सब हो जाने पर भी अपनी स्‍थिति स्‍पष्‍ट करने को तैयार नहीं है इसलिए इससे यही संदेश जाता है कि उसकी माफिया से मिलीभगत है।  ऐसा न होता तो जनहित में ही सही, वह कम से कम सच्‍चाई तो सामने ला ही सकता है ताकि अपने प्‍लॉट बुकिंग की कच्‍ची पर्ची हाथ में लेकर घूम रहे लोगों को तो पता लग सके कि वास्‍तविकता क्या है। 
यदि वह ऐसा नहीं करता तो साफ है कि उसके भी कई अधिकारी एवं कर्मचारी न केवल हजार करोड़ की ठगी करने वाले गिरोह से मिले हुए हैं बल्‍कि वह उसका हिस्‍सा भी हैं जो उनको IPC की धारा 120B का आरोपी बनाने के लिए पर्याप्त है। 
सबकुछ कमिश्नर द्वारा गठित जांच कमेटी की रिपोर्ट पर निर्भर 
अब जबकि मंडलायुक्त ऋतु माहेश्वरी ने शासन के निर्देश पर इस मामले में मथुरा-वृंदावन विकास प्राधिकरण की भूमिका का पता लगाने को 3 सदस्‍यीय जांच कमेटी का गठन कर दिया है तो सबकुछ उस रिपोर्ट पर निर्भर करता है, लेकिन इतना तय है कि MVDA के अधिकारियों के लिए तमाम प्रश्‍नों के उत्तर देना बहुत मुश्‍किल होगा। 
संभवत: यह पहली बार होगा जब माफिया और अधिकारियों का गठजोड़ बेनकाब होगा और आमजन भी यह जान सकेगा कि कैसे योगी सरकार की तमाम कोशिशों के बावजूद प्रदेश में भ्रष्टाचार एवं भ्रष्‍टाचारी फल-फूल रहे हैं क्योंकि एक ओर कमिश्नर आगरा ऋतु माहेश्‍वरी बहुत सख्त मिजाज अधिकारी हैं तो दूसरी ओर जांच कमेटी में शामिल तीनों उच्‍च अधिकारी भी ईमानदार बताए जाते हैं। बस इंतजार है तो निर्धारित 15 दिन पूरे होने का। 
-Legend News   

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें

कृपया बताते चलें कि ये पोस्‍ट कैसी लगी ?