रविवार, 17 अक्तूबर 2021

मथुरा-वृंदावन सीट पर इस बार वैश्‍य समाज भी करेगा बड़ी दावेदारी, कई लोग लाइन में


 उत्तर प्रदेश में विधानसभा चुनावों की विधिवत घोषणा भले ही अभी नहीं हुई है किंतु राजनीति की बिसात पर मोहरे बिछाने का खेल पूरी तरह शुरू हो चुका है।

महाभारत नायक योगीराज भगवान श्रीकृष्‍ण की जन्‍मस्‍थली होने के कारण धार्मिक दृष्‍टि से मथुरा जिले का विश्‍वभर में अपना एक विशिष्‍ट स्‍थान तो है ही, लेकिन राजनीति के क्षेत्र में भी यह जिला कम महत्‍व नहीं रखता।
यही कारण है कि 2014 और 2019 के लोकसभा चुनावों में भारतीय जनता पार्टी ने सिने अभिनेत्री हेमा मालिनी को मथुरा से चुनाव लड़वाया क्‍योंकि किसी भी कीमत पर वह इस सीट को खोना नहीं चाहती थी।
इसी प्रकार 2017 में अखिलेश यादव को यूपी की सत्ता से बेदखल करने के लिए भाजपा ने बहुत सोच-समझकर उम्‍मीदवारों का चयन किया।
अगर बात करें मथुरा जनपद की तो यहां की सर्वाधिक प्रतिष्‍ठित और भाजपा को पिछले कई चुनावों से लगातार हार का मुंह दिखाने वाली मथुरा-वृंदावन विधानसभा सीट पर पार्टी प्रवक्‍ता श्रीकांत शर्मा को उतारा गया।
भाजपा का यह दांव सफल भी रहा और अपराजेय समझे जाने वाले कांग्रेस प्रत्‍याशी प्रदीप माथुर पहली बार चुनाव हार गए, जबकि प्रदीप माथुर ने कांग्रेस के बुरे दिनों में भी इस सीट पर जीत का परचम लहराया था।
श्रीकांत शर्मा शहरी सीट पर चुनाव जीते तो उन्‍हें उनके कद के मुताबिक योगी सरकार ने ऊर्जा जैसे अहम विभाग का मंत्री बनाया। ऊर्जा मंत्री के तौर पर श्रीकांत शर्मा ने अपने क्षेत्र की जनता को बेशक निराश नहीं किया और बिजली की बदहाल व्‍यवस्‍था को न सिर्फ पटरी पर लाए बल्‍कि भविष्‍य के लिए भी कई योजनाओं की नींव रखी।
इस सब के बावजूद श्रीकांत शर्मा एक ओर जहां मथुरा-वृंदावन की जनता से सामंजस्‍य बैठाने में असफल रहे वहीं दूसरी ओर पार्टीजनों के बीच भी अपनी छवि बरकरार नहीं रख सके लिहाजा धीरे-धीरे पार्टी कार्यकर्ता उनसे दूर होते गए।
स्‍थिति‍ यहां तक जा पहुंची कि इसी साल जनवरी माह में 4 दिवसीय प्रवास पर वृंदावन आए संघ प्रमुख मोहन भागवत को मथुरा की 3 सीटों पर प्रत्‍याशी बदलने की सलाह देनी पड़ी।
बताया जाता है कि इन 3 सीटों में मथुरा-वृंदावन विधानसभा क्षेत्र की सीट भी शामिल है क्‍योंकि संघ प्रमुख को अपने सूत्रों से ऐसा ही फीडबैक मिला था। संघ को मिले फीडबैक के मुताबिक पार्टी को स्‍थानीय स्‍तर पर कई-कई गुटों में बांट देने का काम भी श्रीकांत शर्मा ने बखूबी पूरा किया है। ऐसे में यदि इन्‍हें एक मौका और दिया गया तो कोई आश्‍चर्य नहीं कि भाजपा की मथुरा इकाई 2022 के चुनाव में हाथ झटक कर खड़ी हो जाए।
संघ प्रमुख की सलाह और स्‍थिति‍-परिस्‍थ‍ित‍ियों के मद्देनजर 2022 के लिए मथुरा-वृंदावन विधानसभा सीट पर वैश्‍य समाज बड़ी दावेदारी जताने का मन बना चुका है।
पार्टी के ही सूत्र बताते हैं कि इस समाज के कई प्रभावशाली लोगों ने इसके लिए अपनी-अपनी बिसात बिछानी शुरू कर दी है और उन लोगों तक बात पहुंचाई जाने लगी है जिनकी टिकट वितरण में बड़ी भूमिका होगी।
सूत्रों की मानें तो वैश्‍य समुदाय के लोगों ने पार्टी हाईकमान तक इस आशय का भी संदेश भेजा है कि मथुरा जिले की 5 विधानसभा सीटों में से अनारक्षित 4 सीटों पर किसी वैश्‍य प्रत्‍याशी की दावेदारी नहीं है, किंतु इस समुदाय का उम्‍मीदवार मथुरा-वृंदावन सीट निकालने का माद्दा रखता है इसलिए इसे लेकर विचार किया जाए।
इसके अलावा यह भी माना जा रहा है कि मथुरा-वृंदावन सीट पर एकबार फिर डॉ. अशोक अग्रवाल अपना भाग्‍य आजमाने जा रहे हैं इसलिए उनकी काट के लिए किसी वैश्‍य को मैदान में उतारना मुफीद होगा।
गौरतलब है कि 2022 के चुनावों में चूंकि समाजवादी पार्टी और राष्‍ट्रीय लोकदल मिलकर चुनाव लड़ने जा रहे हैं इसलिए डॉ. अशोक अग्रवाल इस गठबंधन के संयुक्‍त प्रत्‍याशी हो सकते हैं।
वैश्‍य समुदाय के सूत्र बताते हैं कि मथुरा-वृंदावन सीट पर टिकट की दावेदारी के लिए समाज की ओर से चार लोग प्रयासरत हैं और उनमें से दो लोग आरएसएस के माध्‍यम से अपना नाम आगे बढ़ा रहे हैं।
अब देखना यह होगा कि क्या भाजपा हाईकमान इस सीट को लेकर मिली संघ की सलाह को अहमियत देगा, और क्या वाकई श्रीकांत शर्मा के प्रति नाराजगी का फीडबैक काम करेगा, क्‍योंकि भाजपा भी अब अपने पत्ते फेंटने में इतनी माहिर हो चुकी है कि आसानी से उसे ऐसी हर बात हजम नहीं होती।
जो भी हो, लेकिन इतना तय है कि श्रीकांत शर्मा को 2022 का चुनाव लड़ने से पहले पार्टी के अंदर ही उन लोगों से लड़ना होगा जो उनकी स्‍वाभाविक दावेदारी को खुली चुनौती देने की पूरी तैयारी कर चुके हैं और इसके लिए तुरुप का इक्‍का इस्‍तेमाल करने से चूकना नहीं चाहते।
-सुरेन्‍द्र चतुर्वेदी 

सोमवार, 4 अक्तूबर 2021

लखीमपुर खीरी कांड: सूखे में बारिश का मजा, बिन बादल बरसात… यूपी चुनाव के लिए मौका ही मौका…

चुनाव का मौसम हो तो सियासी दल फ्रंटफुट पर खेलते हैं। लोगों के दिलों को छूने वाले वोट बैंक वाले मुद्दों को सूंघकर खुद को जनता का हितैषी साबित करने की होड़ लग जाती है। लखीमपुर खीरी में रविवार को किसानों को कथित तौर पर कुचलकर मार डालने की खबर आई तो देशभर में किसान आंदोलित हो गए लेकिन अगले कुछ ही घंटों में नेताओं ने इतनी आक्रामकता दिखाई कि राजनीतिक पार्टियों ने पूरे विरोध को ‘हाइजैक’ कर लिया। सोशल मीडिया हो या टीवी चैनल, हर जगह पार्टियों के प्रदर्शन छाए हुए हैं।

यूपी में अगले कुछ महीनों के अंदर चुनाव होने हैं, सभी राजनीतिक पार्टियां अपनी टीमें खड़ी करने में जुटी हैं। मुद्दे राष्ट्रीय हों या क्षेत्रीय, पार्टियां संभल-संभलकर आगे बढ़ रही हैं। किसान आंदोलन का वोट बैंक पर असर कम से कम हो, बीजेपी इसके लिए कोई कसर नहीं छोड़ रही थी, तभी लखीमपुर खीरी कांड ने उसके लिए नई चुनौती खड़ी कर दी। ताक में बैठे विपक्ष को अच्‍छा मौका मिल गया। आधी रात के बाद से कांग्रेस ही नहीं, सपा, बसपा, AAP और दूसरे दल भी अपने-अपने तरीके से किसानों के समर्थन में उतर आए हैं। बीजेपी के विजय रथ को रोकने के लिए पार्टियां इस मुद्दे को अपने लिए ‘संजीवनी’ समझ रही हैं क्यों किसानों से ज्यादा पार्टियां लखीमपुर कांड को लपक रही हैं। आइए हर पार्टी के हिसाब से इसे समझते हैं।
पहले बात कांग्रेस की
अंदरूनी कलह में उलझी कांग्रेस पार्टी ने लखीमपुर-खीरी कांड के बाद थोड़ी राहत की सांस ले रही होगी। पहले मीडिया का पूरा फोकस पंजाब और छत्तीसगढ़ पर था, जहां से पार्टी के लिए टेंशन देने वाली खबरें ही आ रही थीं। पंजाब में भी अगले साल चुनाव है, वहां कैप्टन अमरिंदर सिंह को हटाकर कांग्रेस ने दलित नेता चरणजीत सिंह चन्नी को सीएम बनाया। पहले लगा कि यह सिद्धू की सियासी विजय है, पर कुछ ही दिन में ऐसा टकराव बढ़ा कि उन्होंने पंजाब कांग्रेस के अध्यक्ष पद से इस्तीफा दे दिया। कहा गया कि पंजाब में सब कुछ राहुल-प्रियंका गांधी के निर्देश पर हो रहा है। ऐसे में उनकी नेतृत्व क्षमता पर भी सवाल उठने लगे। G-23 के नेता भी खुलकर केंद्रीय नेतृत्व के विरोध में बोलने लगे थे। अब ऐसे में लखीमपुर-खीरी कांड हो गया। यूपी चुनाव से पहले मौका देख महासचिव प्रियंका गांधी ने सुबह का इंतजार किए बगैर रात में ही लखीमपुर जाने का प्लान बना लिया। सुबह जब तक लोगों की नींद खुलती उनके रौद्र रूप वाला वीडियो वायरल हो चुका था।
वीडियो में वह पुलिस अफसर से वह कहती सुनी जा सकती हैं, ‘तुम मेरा अपहरण करोगे… ये है लीगल स्टेटस तुम्हारा। मत समझो कि मैं नहीं समझती। अरेस्ट करो… हम खुशी से जाएंगे तुम्हारे साथ। तुम जो जबरदस्ती ढकेल रहे हो न, इसमें आप फिजिकल असॉल्ट, किडनैप और छेड़छाड़ करने की कोशिश कर रहे हो…. समझती हूं मैं सब कुछ। छूकर देखो मुझे…जाकर अपने अफसरों से और मंत्रियों से जाकर वारंट लाओ।’ ऐसा लगता है कि इस अंदाज से प्रियंका हताश और निराश कांग्रेस कार्यकर्ताओं को ताकत देने की कोशिश कर रही हैं।
इससे पहले जब 2019 में सोनभद्र हत्याकांड हुआ था तो प्रियंका गांधी पीड़ितों से मिलने पर अड़ गई थीं। उस समय उनके इस कदम को दादी इंदिरा गांधी से जोड़कर देखा गया था। ‘बेलछी नरसंहार’ की घटना से जोड़कर तुलना की जा रही थी। समझा जाता है कि आपातकाल के बाद जनता का विश्वास खो चुकी इंदिरा गांधी जब 1977 का चुनावी हारीं तो बेलछी की घटना के बाद उनका वहां जाना एक बार फिर से उनके राजनीतिक कद को बढ़ाने वाला साबित हुआ। सोनभद्र कांड के बाद अब लखीमपुर कांड के लिए भी जिस तरह से प्रियंका गांधी ने तेवर दिखाए हैं, उससे कांग्रेस के लोग काफी जोश में आ गए हैं।
कुछ समय पहले पंजाब में सीएम पद के दावेदार माने जा रहे वरिष्ठ कांग्रेसी नेता सुनील जाखड़ ने 3 अक्टूबर 2021 को प्रियंका गांधी को हिरासत में लेने के मामले की तुलना 3 अक्टूबर 1977 के घटनाक्रम से कर डाली। दरअसल, तब जनता पार्टी की सरकार में 3 अक्टूबर के दिन इंदिरा गांधी को भ्रष्टाचार के आरोप में गिरफ्तार कर लिया था। हालांकि बाद में सबूतों के अभाव में कोर्ट ने उन्हें बरी कर दिया। जाखड़ ने लिखा, ‘अगर श्रीमती इंदिरा गांधी की 3 अक्टूबर 1977 को गिरफ्तारी से जनता पार्टी सरकार की विदाई का मार्ग प्रशस्त हुआ तो 3 अक्टूबर 2021 को प्रियंका गांधी को हिरासत में लेना बीजेपी सरकार के सफाये की शुरुआत बनेगी।’ यह साफ-साफ बताता है कि इतिहास दोहराने का सपना पालकर किसान आंदोलन के मुद्दे को पूरी तरह भुनाना चाहती है।
यही वजह है कि यूपी के प्रभारी बनाए गए छत्तीसगढ़ के सीएम भूपेश बघेल को फौरन रायपुर से और पंजाब के उप मुख्यमंत्री रंधावा को चंडीगढ़ से लखनऊ के लिए उड़ने को कहा गया। यह बात अलग है कि किसी भी नेता के प्लेन को लखनऊ में लैंड करने की इजाजत नहीं मिली। कांग्रेस की पूरी कोशिश है कि जनता और मीडिया का पूरा फोकस लखीमपुर और किसानों के मुद्दों पर केंद्रित रखा जा सके जिससे बीजेपी को घेरने का उसे मौका मिल सके। वैसे भी उसे आंतरिक संकट से नुकसान ही हो रहा था।
…और सपा के लिए एक सुनहरी मौका
समाजवादी पार्टी के अध्यक्ष अखिलेश यादव योगी सरकार पर लगातार हमले करते रहे हैं। लखीमपुर जाने के उनके प्लान की आहट मिलते ही पुलिस प्रशासन ने उन्हें और दूसरे सपा नेताओं को नजरबंद कर लिया। अखिलेश नहीं माने और सड़क पर आकर कार्यकर्ताओं के साथ धरने पर बैठ गए। उधर, उनके घर के बाहर पुलिस की एक जीप में आग लगा दी गई। तड़के से प्रियंका लाइमलाइट में थीं, लेकिन 10 बजते-बजते मीडिया के सारे कैमरे अखिलेश पर फोकस कर चुके थे। अखिलेश यादव ने मांग थी कि केंद्रीय गृह राज्य मंत्री अजय मिश्रा को इस्तीफा देना चाहिए और पीड़ितों के परिजनों को 2 करोड़ रुपये की मदद दी जानी चाहिए। इतना ही नहीं, लखनऊ में आवास से जब पुलिस ने अखिलेश को हिरासत में लिया तो सैकड़ों की संख्या जमे समर्थकों ने पुलिस की गाड़ी को घर लिया। सपा के झंडे और टोपी के साथ पहुंचे लोगों ने एक तरफ जिंदाबाद के नारे लगाए तो दूसरी तरफ मीडिया के सामने झंडे भी लहराते दिखे जिससे टीवी के सामने बैठी करोड़ों जनता को यह संदेश जाए कि सपा के लोग सड़क पर उतरकर किसानों का समर्थन कर रहे हैं।
लखीमपुर खीरी जिले के तिकोनिया क्षेत्र में रविवार को उत्तर प्रदेश के उपमुख्यमंत्री केशव प्रसाद मौर्य के केंद्रीय गृह राज्य मंत्री अजय मिश्रा के पैतृक गांव जाने के दौरान हुए संघर्ष में चार किसानों समेत आठ लोगों की मौत हुई है।
सच तो यह है कि चुनाव में काफी कुछ अब नैरेटिव पर सेट होने लगा है। ऐसे में सभी पार्टियां जनता का परसेप्शन अपने प्रति पॉजिटिव रखना चाहती हैं। 2012-17 के कार्यकाल के दौरान युवाओं को लैपटॉप, गोमती रिवर फ्रंट, एक्सप्रेसवे जैसे कई मुद्दों पर चर्चा बटोरने वाली सपा की ओर से ये आरोप लगाया जाता रहा है कि यूपी में योगी सरकार ने उसके ही शुरू किए गए कामों को अपना नाम दे दिया है। अखिलेश के सामने इस चुनाव में चुनौती बढ़ने वाली है क्योंकि उसका कोर वोट बैंक समझे जाने वाले मुस्लिम और यादव वोटों में भी सेंध लगाने की बीजेपी और ओवैसी की पार्टी कोशिश कर रही हैं। ऐसे में सपा किसान आंदोलन के सहारे अपने पक्ष में माहौल बनाने की तैयारी में है।
यूपी के मैदान में इस बार AAP भी हैं…
यूपी में इस बार आम आदमी पार्टी भी चुनाव लड़ रही है। 24 घंटे आपूर्ति के साथ घरेलू उपभोक्ताओं को 300 यूनिट फ्री बिजली का वादा किया गया है। AAP के नेता दिल्ली के मॉडल को यूपी में लागू करने की बात कर रहे हैं। दिल्ली जैसी फ्री बिजली, बेहतर शिक्षा और फ्री इलाज की बात कर केजरीवाल-सिसोदिया की टीम चुनाव में करिश्मा करने का दावा कर रही है। ऐसे में उनके नेताओं के लिए लखीमपुर कांड में खुद को जनता के करीब ले जाने का बेहतर मौका दूसरा नहीं हो सकता था। केजरीवाल से लेकर सिसोदिया और संजय सिंह सभी नेता एक्टिव हो गए और ट्विटर पर वीडियो लाकर योगी सरकार पर बरसने लगे।
यूपी के सुल्तानपुर से ताल्लुक रखने वाले संजय सिंह रात में ही लखीमपुर के लिए निकल चुके थे। उन्हें विसवां चुंगी सीतापुर के पास 2.30 बजे गिरफ्तार कर लिया गया। संजय सिंह ने इस जानकारी को ट्वीट भी किया। रात में पुलिस से नोकझोंक का उनका वीडियो भी ट्विटर पर छा गया। आप के नेता और कार्यकर्ता रीट्वीट करने लगे। AAP के ट्विटर हैंडल से सीधे बीजेपी पर हमला करते हुए कहा गया, ‘किसानों के परिवार के ये आंसू भारी पड़ेंगे BJP वालो!’।
AAP की कोशिश है कि अगले चुनाव में दिल्ली मॉडल, किसान आंदोलन के सहारे ज्यादा से ज्यादा सीटें अपनी झोली में लाई जा सकें क्योंकि पार्टी को पता है कि जातिगत समीकरण साधने में सभी पार्टियां लगी हैं और वह तरीके उनके काम नहीं आएगा। वैसे भी दिल्ली बॉर्डर पर किसानों के हित में व्यवस्था कर आप ने आंदोलन के पहले दिन से समर्थन दे रखा है। उसे यूपी के साथ-साथ पंजाब भी देखना है।
बसपा के मिश्रा जी भी आक्रामक
बीएसपी ने भी ट्वीट कर बीजेपी सरकार को घेरा। बसपा सुप्रीमो मायावती ने सिलसिलेवार ट्वीट कर सुप्रीम कोर्ट से स्वत: संज्ञान लेने की मांग की। पार्टी के राष्ट्रीय महासचिव और राज्यसभा सांसद एससी मिश्र को रविवार देर रात लखनऊ में उनके निवास पर नजरबंद कर दिया गया। यूपी में अनुसूचित जाति और जनजाति के इर्द-गिर्द घूमती बसपा की राजनीति इस बार अपने पुराने समीकरण पर लौटती दिख रही है। ब्राह्मणों को साधने के लिए बसपा ने प्रबुद्ध सम्मेलन शुरू किया है। बसपा को 2014 लोकसभा चुनाव के बाद 2017 विधानसभा और फिर 2019 लोकसभा चुनाव की तरह 2022 में जातिगत समीकरण के फेल होने का डर सता रहा है। केंद्र में मोदी सरकार बनने के बाद जातीय ऐंगल फेल रहे हैं। ऐसे में मायावती की कोशिश है कि वह खुद को किसानों के समर्थन में खड़ा दिखाएं और अगले चुनाव में पार्टी के लिए जीत की राह प्रशस्त हो सके।
ओवैसी और दूसरे दल भी मैदान में
मुसलमानों के बड़ी भूमिका में आने की बात करते हुए ओवैसी की पार्टी AIMIM भी यूपी चुनाव में कूद चुकी है। अयोध्या से चुनावी दौरे का आगाज हो या मुसलमानों का हितैषी बनने की कोशिश, ओवैसी यूपी की सियासत में एक मजबूत किरदार बनना चाहते हैं। ऐसे में उन्होंने लखीमपुर घटना पर फौरन ट्वीट कर न्यायिक जांच की मांग कर डाली। उन्होंने कहा कि जान गंवाने वाले 8 लोगों के परिवारों को मुआवज़ा दिया जाए। इसके साथ ही उन्होंने तीनों कृषि कानून को जल्द से जल्द वापस लेने की मांग की है।
मुश्किल में बीजेपी
किसान आंदोलन के बीच लखीमपुर में किसानों की हत्या पर राजनीतिक दल बड़े हों या छोटे, इस समय सबके निशाने पर बीजेपी है। विपक्षी ही नहीं, कुछ अपने भी योगी सरकार के लिए मुश्किल बढ़ाने वाले साबित हो रहे हैं। इनमें से एक हैं बीजेपी सांसद वरुण गांधी। उन्होंने एक लंबा लेटर लिखकर योगी सरकार से सख्त कार्रवाई की मांग की है। उन्होंने लेटर में साफ लिखा कि एक दिन पहले अहिंसा के पुजारी महात्मा गांधी की जयंती मनाई गई और दूसरे दिन लखीमपुर खीरी में जिस तरह से ”हमारे अन्नदाताओं” की हत्या की गई, वह सभ्य समाज में अक्षम्य है। इससे बीजेपी पर प्रेशर बढ़ रहा है। वह इस मुद्दे को ज्यादा खींचना नहीं चाहती।
ऐसे में हो सकता है किसानों से जुड़ा मामला होने के कारण पार्टी और केंद्रीय नेतृत्व निष्पक्ष जांच का हवाला देते हुए आरोपी मोनू मिश्रा के पिता केंद्रीय गृह राज्य मंत्री अजय मिश्रा टेनी का इस्तीफा भी ले ले। हालांकि बड़ा सवाल फिर भी यही है कि क्या किसान आंदोलन से बीजेपी विरोध की भड़की आग चुनाव तक शांत हो पाएगी?

- सुरेन्‍द्र चतुर्वेदी
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