बुधवार, 29 अक्तूबर 2014

प्रदीप बर्मन के स्विस बैंक अकाउंट में हैं 18 करोड़ रुपए

नई दिल्ली। 
एक न्‍यूज़ चैनल ने स्विस बैंक में अकाउंट को लेकर डाबर समूह के पूर्व निदेशक प्रदीप बर्मन के खिलाफ कई खुलासे किए हैं। चैनल का कहना है कि बर्मन के स्विस बैंक अकाउंट में 18 करोड़ रुपए हैं और उन्‍होंने अपने खाते की जानकारी इनकम टैक्स से छिपाई थी। यह भी पता चला है कि बिना स्विट्जरलैंड गए प्रदीप बर्मन का खाता खुल गया था। बर्मन का खाता सिर्फ एक फैक्स औऱ फोन कॉल से ऑपरेट होता था। चैनल ने बर्मन का स्विस बैंक अकाउंट नंबर भी जारी किया है। उनके खिलाफ आयकर विभाग ने जो आरोपपत्र तैयार किया है उसमें ये सारी बातें कही गई हैं। दस्तावेजों के मुताबिक, बर्मन ने 2005-06 की अपनी आय मात्र 66 लाख 34 हजार तीन सौ चालीस रुपए बताई थी और आयकर विभाग को दी जानकारी में उन्‍होंने यह नहीं बताया था कि किसी विदेशी बैंक में उनका खाता है।
गौरतलब है कि सरकार ने 27 अक्‍टूबर को सुप्रीम कोर्ट में जिन कारोबारियों के नाम बताए थे उनमें प्रदीप बर्मन भी शामिल हैं। उस दिन डाबर समूह की ओर से बयान जारी कर कहा गया था कि बर्मन ने एनआरआई की हैसियत से खाता खुलवाया था और उन्‍होंने पूरी रकम पर टैक्‍स भरा है।
उधर, टीवी चैनल के मुताबिक बर्मन ने आयकर विभाग की पूछताछ में कहा कि एक आदमी जो ख्वाजा (अभी तक यह पता नहीं चला पाया है कि यह शख्‍स कौन है) को जानता था, वह एचएसबीसी बैंक ज्यूरिख का फॉर्म लेकर दुबई आया था और उन्‍होंने दुबई में ही इस फॉर्म को भरकर पहचान के तौर पर अपना फोटो और इंडियन पासपोर्ट लगाया था।
यह भी पता चला है कि खाते से पैसा निकालने के लिए बर्मन को कभी ज्यूरिख जाने की जरूरत नहीं पड़ती थी। बर्मन के मुताबिक, उन्‍होंने बैंक को ये निर्देश दिए हुए थे कि जब भी उन्‍हें पैसा जमा कराना होगा या निकालना होगा तो वह बैंक को एक फैक्स कर देंगे। फैक्स पहुंचने के बाद बर्मन के पास एक फोन आता था जिससे इस बात की पुष्टि की जाती थी कि पैसे वही निकाल रहे हैं। उसके बाद उन्‍हें बता दिया जाता था कि वह किस बैंक से पैसे ले सकते हैं। जब आयकर अधिकारियों ने बर्मन से पूछा कि वह किस नंबर पर फैक्स करते थे तो उन्‍होंने कहा कि अब उन्‍हें याद नहीं है।
ब्‍लैक मनी पर सरकार ने किया है समझौता
कालेधन पर लगाम लगाने के लिए भारत ने 13 देशों के साथ टैक्‍स इंफॉर्मेशन एक्‍सचेंज अग्रीमेंट (कर सूचना आदान-प्रदान समझौता) किया है। ये देश हैं- जिब्राल्‍टर, बहामास, बरमूडा, ब्रिटिश वर्जिन आईलैंड, आइल ऑफ मैन, केमैन आईलैंड, जर्सी लाइबेरिया, मोनाको, मकाऊ, अर्जेंटीना, बहरीन और गुर्नसे। माना जाता है कि इन देशों में कई भारतीयों ने काला धन जमा करा रखा है। इस समझौते के तहत दो देश किसी आपराधिक या सिविल टैक्‍स मामले में एक-दूसरे से जानकारियां साझा कर सकते हैं।
 -एजेंसी

कालाधन: खेल की दुनिया से लेकर बॉलीवुड तक के लोग

नई दिल्ली। 
केंद्र सरकार ने सुप्रीम कोर्ट को काला धन मामले में 627 खाताधारकों की सूची तो सौंप दी है लेकिन जानकारों के मुताबिक़ काला धन वापस लाने की दिशा में यह नाकाफ़ी है.
नाम भर पता लगने से काला धन वापस आ जाएगा, ऐसा नहीं हैं. हाँ, इतना ज़रूर है कि इससे जांच का रास्ता खुलेगा.
काले धन की वापसी पर अब तक क्या रहा है ख़ास और कितना है काला धन. बता रहे हैं प्रोफ़ेसर आर वैद्यनाथन:
1- कालाधन सबसे अधिक सेक्यूलर हैं. इसमें सिर्फ़ राजनीतिक दल ही नहीं बल्कि सारे वर्ग, संप्रदाय और तबक़े के लोग शामिल हैं. खेल की दुनिया से लेकर बॉलीवुड तक के लोग सब इसमें शामिल हैं, यहां तक कि मीडिया के भी.
2- विदेशों में जमा ये काला धन सिर्फ़ कर चोरी से संबंधित नहीं इसके साथ ड्रग, हवाला, अवैध हथियार और चरमपंथ जैसी चीज़ें जुड़ी हुई हैं.
3- ये काला धन शेयर, बाँन्ड्स के अलावा सोना, क़ीमती पत्थर, हीरा, ज़ेवरात जैसे कई रूपों में कई लॉकरों में मौजूद हैं.
4- मेरे अनुमान के मुताबिक़ ये काला धन 500 अरब डॉलर के बराबर होगा.
5- सोशल मीडिया की भी काला धन लाने में महत्वपूर्ण भूमिका होगी. देश के लोगों की इसे वापस लाने में अब दिलचस्पी है.
6- 2011 में सुप्रीम कोर्ट ने स्पष्ट कहा था कि नामों का ख़ुलासा करने से विदेशों के साथ किसी भी संधि का उल्लंघन नहीं होता है. सरकार का तर्क था कि दोहरा कराधान बचाव संधि (डीटीएए) की वजह से विदेशी बैंकों में जमा काला धन खाताधारकों के नाम उजागर नहीं किए जा सकते हैं.
7- किसी भी चुराए हुए डेटा को लेने में किसी भी तरह की संधि का उल्लंघन नहीं होता है. यह सबके लिए उपलब्ध होता है.
8- अभी तो सिर्फ़ नाम दिए जा रहे हैं, कालाधन वापस लाने में पांच से दस साल लग सकते हैं. हमारे सामने फ़िलीपिंस, पेरू और नाइजीरिया जैसे देशों का उदाहरण है जिन्हें काला धन वापस लाने में काफ़ी वक़्त लग गया था.

गुरुवार, 23 अक्तूबर 2014

मनुजता नहीं पूर्ण तब तक बनेगी...

जलाओ दिए पर रहे ध्यान इतना
अँधेरा धरा पर कहीं रह न जाए...

प्रसिद्ध कवि गोपाल दास 'नीरज' ने यह कविता कब लिखी थी, इतना तो नहीं मालूम परंतु इतना जरूर मालूम है कि यह कविता आज भी उतनी ही सार्थक है, जितनी अपने रचनाकाल में रही होगी।
2014 की यह दीवाली कई मायनों में देश तथा देशवासियों के लिए विशिष्‍ट है। अच्‍छे दिन लाने का वायदा करके सत्‍ता पर काबिज होने वाले नरेंद्र मोदी सरकार की यह पहली दीवाली है जबकि रोशनी के बीच कश्‍मीरियों के लिए एक उदास दिन से अधिक कुछ नहीं। हालांकि नरेंद्र मोदी अपनी ओर से उनकी दीवाली को खुशनुमा बनाने की कोशिश में उनके पास गये हैं।
पद्मश्री और पद्मभूषण डॉ. नीरज की इस कविता में और जो लाइनें हैं, वह कश्‍मीर के वर्तमान हालातों पर पूरी तरह सटीक बैठती हैं।
नीरज ने इस कविता में आगे कहा है-
सृजन है अधूरा अगर विश्‍व भर में
कहीं भी किसी द्वार पर है उदासी
मनुजता नहीं पूर्ण तब तक बनेगी
कि जब तक लहू के लिए भूमि प्यासी
चलेगा सदा नाश का खेल यूँ ही
भले ही दिवाली यहाँ रोज आए

उधर राजनीतिक नजरिए से भी 2014 की दीवाली का बहुत महत्‍व है। इस दीवाली से मात्र चार दिन पहले आये महाराष्‍ट्र और हरियाणा के चुनाव परिणामों ने कांग्रेस का तो जैसे दिवाला ही निकाल दिया।
ऊपर से मोदी सरकार ने जिस काले धन की सुप्रीम कोर्ट को फिलहाल जानकारी देने में असमर्थता जाहिर की थी, उस पर भी कांग्रेस का दांव ऐन दीवाली तक उल्‍टा पड़ता दिखाई देने लगा क्‍योंकि मोदी सरकार ने न केवल 136 लोगों के नाम सुप्रीम कोर्ट को शीघ्र बताने का ऐलान कर दिया बल्‍कि वित्‍तमंत्री ने यह और कह दिया कि इस खुलासे के बाद कांग्रेस शर्मसार हो सकती है।
जाहिर है ऐसे में कई उन कांग्रेसियों का हाजमा खराब हो गया होगा, जिन पर वित्‍तमंत्री ने निशाना साधा है।
नीरज ने इस कविता की आखिरी लाइनों में कहा है कि-
मगर दीप की दीप्ति से सिर्फ जग में
नहीं मिट सका है धरा का अँधेरा
उतर क्यों न आयें नखत सब नयन के
नहीं कर सकेंगे ह्रदय में उजेरा
कटेंगे तभी यह अँधरे घिरे अब
स्वयं धर मनुज दीप का रूप आए
जलाओ दिए पर रहे ध्यान इतना
अँधेरा धरा पर कहीं रह न जाए

इन आखिरी लाइनों को सार्थक करने की कोशिश में नरेंद्र मोदी कश्‍मीर गये हैं और ऐसा ही प्रयास उन्‍होंने कुछ दिन पहले आंध्र प्रदेश जाकर किया था जहां हुदहुद नामक तूफान के कारण भारी तबाही हुई।
राजनीति की बिसात पर बेशक नरेंद्र मोदी के हर कदम को उनके विरोधी अपने-अपने तरीके से परिभाषित करें किंतु आम जनता के मन में उन्‍होंने उम्‍मीद की किरण जगाई है। पिछले एक दशक से जिस तरह पूरे देश को दूर-दूर तक कोई रोशनी नजर नहीं आ रही थी, आज वहां दूर से ही सही परंतु दिए टिमटिमाते दिखाई देने लगे हैं।
बात चाहे स्‍वच्‍छ भारत के लिए अभियान की हो या फिर भ्रष्‍टाचार मुक्‍त शासन-प्रशासन मुहैया कराने के प्रयासों की, सीमा पर पाकिस्‍तान को मुंहतोड़ जवाब देने की हो अथवा चीन की आंखों में आंख डालकर रेल लाइन बिछाने की प्रक्रिया शुरू करने की, देशवासियों को कतरा-कतरा रोशनी सुकून जरूर दे रही है।
दलगत राजनीति से इतर यदि सोचें तो मात्र 6 महीने से भी कम के इस कार्यकाल में यह उपलब्‍धियां कम नहीं कही जा सकतीं।
दलगत राजनीति अपनी जगह है लेकिन देश अपनी जगह। क्‍या यह ज्‍यादा उचित नहीं होगा कि दलगत राजनीति से ऊपर उठकर इस दीवाली हम कुछ अलग नजरिया अपनाएं। हम स्‍वस्‍थ राजनीति करें। जहां विरोध जरूरी न हो, वहां विरोध न करें और सरकार के उन कार्यों के लिए उसे अवश्‍य प्रोत्‍साहित करें जिनसे आमजन का हित जुड़ा हो... जिनसे देश का हित जुड़ा हो... क्‍योंकि दीवाली सिर्फ अपने-अपने घरों में झालरें लटका कर आतिशबाजी कर लेने भर का त्‍यौहार नहीं है। दीवाली सबको साथ लेकर चलने, सबको खुशियां बांटने और सबके दुखदर्द में शरीक होने का नाम है। संभवत: इसीलिए दीवाली पर तोहफे बांटने का रिवाज कायम है।
नीरज की इसी कविता में बीच की पंक्‍तियां इसी ओर इशारा करती हैं-
नई ज्योति के धर नए पंख झिलमिल
उड़े मर्त्य मिट्टी गगन स्वर्ग छू ले
लगे रोशनी की झड़ी झूम ऐसी
निशा की गली में तिमिर राह भूले
खुले मुक्ति का वह किरण द्वार जगमग
ऊषा जा न पाए, निशा आ ना पाए
जलाओ दिए पर रहे ध्यान इतना
अँधेरा धरा पर कहीं रह न जाए

-Legendnews  

बुधवार, 15 अक्तूबर 2014

अनेक गलगोटियाओं से भरा पड़ा है शिक्षा व्‍यवसाय

122 करोड़ रुपए की धोखाधड़ी के मामले में गलगोटिया यूनीवर्सिटी के मालिकानों का फंसना तो शिक्षा के क्षेत्र में माफिया की सक्रियता का एक उदाहरण भर है। सच तो यह है कि एक वर्ग विशेष ने निजी शिक्षण संस्‍थाएं संचालित करने की आड़ में शिक्षा के क्षेत्र को अवैध पैसा कमाने की खान बना लिया है।
आश्‍चर्य की बात तो यह है कि शिक्षा का व्‍यवसायीकरण करके उसके माध्‍यम से बेहिसाब अवैध संपत्‍ति अर्जित करने वाला शिक्षा माफिया अब खुलेआम खुद को शिक्षाविद् कहता है।
विचारणीय है यह स्‍थिति कि चंद वर्षों पहले तक जहां किसी अच्‍छे-खासे शहर में बमुश्‍किल एक-दो शिक्षण संस्‍थान ऐसे होते थे जिनमें आधुनिक शिक्षा लिया जाना संभव था, वहां अचानक शिक्षण संस्‍थाओं की फेहरिस्‍त इतनी लंबी कैसे हो गई?
वह भी तब जबकि पहले अधिकांश शिक्षण संस्‍थाएं किसी न किसी संस्‍था द्वारा संचालित की जाती थीं न कि व्‍यक्‍ति विशेष द्वारा और आज एक-एक व्‍यक्‍ति दर्जन या आधा दर्जन शिक्षण संस्‍थाओं का मालिक बन बैठा है।
जाहिर है कि शिक्षा के व्‍यवसाय में कमाई का कोई न कोई ऐसा वैध अथवा अवैध स्‍त्रोत तो है जिससे बहुत कम समय के अंदर करोड़ों नहीं, अरबों रुपए की लागत वाले अत्‍याधुनिक शिक्षण संस्‍थान खड़े किये जा सकते हैं।
अगर हम बात करें मथुरा की तो करीब डेढ़ दशक पहले तक यहां किशोरी रमण महाविद्यालय तथा बीएसए यानि बाबू शिवनाथ अग्रवाल महाविद्यालय के रूप में मात्र दो ही डिग्री कॉलेज हुआ करते थे और इन दोनों महाविद्यालयों का संचालन अलग-अलग संस्‍थाएं करती थीं। दूसरे स्‍कूल-कॉलेज भी इन्‍हीं संस्‍थाओं से संचालित होते थे लेकिन डेढ़ दशक के अंदर यह धार्मिक नगरी अचानक न सिर्फ टेक्‍नीकल एजुकेशन का हब बन गई बल्‍कि गली-गली और मोहल्‍ले-मोहल्‍ले कंम्‍प्‍यूटर इंस्‍टीट्यूट भी खुल गये।
कल तक इनमें से किसी पर भू माफिया का तो किसी पर चांदी और क्रिकेट के सट्टेबाज का ठप्‍पा लगा था, आज वह अपने नाम से पहले बड़े फख्र के साथ शिक्षाविद् जोड़ रहे हैं।
यही नहीं, राजनीति में असफल लोग भी जब शिक्षा के व्‍यवसाय में उतरे तो वह सफल हो गये और आज कई-कई शिक्षण संस्‍थाओं के मालिक बनकर देश के भविष्‍य से खिलवाड़ कर रहे हैं।
कई बड़े शिक्षा व्‍यवसाई तो ऐसे हैं जिनकी संतानें होटलों में अय्याशी करती पकड़ी गई हैं लेकिन आज वही इन बड़ी शिक्षण संस्‍थाओं में बड़े-बड़े पदों को सुशोभित कर रहे हैं। ठीक उसी तरह जिस तरह गलगोटिया यूनीवर्सिटी के मालिक सुनील गलगोटिया का पुत्र ध्रुव गलगोटिया शिक्षा की इस अपनी दुकान में डायरेक्‍टर के पद पर काबिज़ था।
शिक्षा के व्‍यवसायीकरण का इससे बड़ा दुर्भाग्‍य और क्‍या हो सकता है कि तमाम बड़ी शिक्षण संस्‍थाओं के मालिक अंगूठा टेक हैं और उनकी अय्याश औलादें बमुश्‍किल हाईस्‍कूल व इंटरमीडियेट तक की शिक्षा ग्रहण कर पाने में सफल हुई हैं। जिन्‍होंने डिग्रियां हासिल की हैं, उनकी डिग्रियां भी संदिग्‍ध हैं क्‍योंकि वह अपनी शिक्षण संस्‍थाएं खुलने के बाद जुगाड़ करके हासिल की हैं।
जहां तक सवाल इन शिक्षा व्‍यवसाइयों की नैतिकता का है, तो गलगोटियाओं का कारनामा साबित करता है कि नैतिकता उनके लिए कोई मायने नहीं रखती। अपने कॉलेज और यूनीविर्सिटीज में शिक्षा के साथ-साथ उच्‍च नैतिक शिक्षा देने का ढिंढोरा पीटने वाले ये शिक्षा व्‍यवसाई व्‍यक्‍तिगत जिंदगी में कितने नैतिक हैं, इससे शायद ही कोई अपरिचित हो।
मथुरा के एक नामचीन शिक्षा व्‍यवसाई का अपने ही संस्‍थान में बड़े पद पर काबिज की हुई अधेड़ महिला से क्‍या रिश्‍ता है और वह उस संस्‍थान में इस मुकाम तक कैसे पहुंची,  यह सर्वविदित है लेकिन आज ऐसे चरित्रहीन लोग शिक्षाविद् तथा समाजसेवी का तमगा लगाये हुए हैं।
छात्रों के साथ स्‍कॉलरशिप से लेकर प्‍लेसमेंट तक के नाम पर खुली धोखाधड़ी करने तथा उनके अभिभावकों को जमकर लूटने वाले इन तथाकथित शिक्षाविदों के बीच इन दिनों खुद को पुरस्‍कृत कराने की एक होड़ और चल पड़ी है। एक शिक्षा माफिया कहीं से एक सम्‍मान हासिल करके लाता है तो दूसरा शिक्षा माफिया दूसरे दिन कहीं किसी और से कोई सम्‍मान ले आता है। इस तरह एक-एक शिक्षा माफिया, दर्जनों पुरस्‍कार तथा सम्‍मान प्राप्‍त है जबकि यह सम्‍मान व पुरस्‍कार कैसे लिए जाते हैं, किसी से छिपा नहीं है।
आज भले ही गलगोटिया का ही सच सामने आया हो, लेकिन वह दिन दूर नहीं जब पता लगेगा कि दो दूनी चार करने में अधिकांश शिक्षा माफिया एक-दूसरे से पीछे नहीं हैं।
शिक्षा के क्षेत्र में माफियाराज के पनपने की सूचना चूंकि अब केंद्र सरकार से भी छिपी नहीं रही इसलिए केंद्र की भी इस पर नजरें लगी हैं। निकट भविष्‍य में अब शिक्षा माफिया यदि सरकार के निशाने पर हो और हर जिले में गलगोटियाओं व उनके परिजनों की धरपकड़ शुरू हो जाए तो कोई आश्‍चर्य नहीं क्‍योंकि हर गलगोटिया अंत तक आखिरी दांव फेंकने में माहिर होता है। वह व्‍यवस्‍था की आंखों में धूल झोंकने के सभी इंतजाम करता है। यह बात दीगर है कि भ्रष्‍टाचार के इस दौर में भी कानून जब अपना शिकंजा कसता है तो न कोई गलगोटिया बचता है और न आसाराम बापू व तरुण तेजपाल जैसे सामाजिक अपराधी और न सुब्रत राय सहारा जैसे आर्थिक अपराधी।
बस देखना यह होता है कि किसका नंबर कब आता है।
-लीजेण्‍ड न्‍यूज़ विशेष

मंगलवार, 14 अक्तूबर 2014

गलगोटिया यूनीवर्सिटी के डायरेक्टर और उनकी मां गिरफ्तार

122 करोड़ रुपये की धोखाधड़ी के मामले में थाना हरीपर्वत पुलिस ने गलगोटिया विश्वविद्यालय के निदेशक ध्रुव गलगोटिया और पद्मिनी गलगोटिया को गुड़गांव से गिरफ्तार कर लिया।
पद्मिनी, शंकुतला एजुकेशनल सोसाइटी के चेयरमैन सुनील गलगोटिया की पत्नी हैं। उनके खिलाफ मुख्य न्यायिक मजिस्ट्रेट की कोर्ट ने गैर जमानती वारंट जारी किया था।
बता दें कि संजय प्लेस स्थित एसई इन्वेस्टमेंट कंपनी के असिस्टेंट मैनेजर गिर्राज किशोर शर्मा ने एक महीने पहले थाना हरीपर्वत में मुकद्दमा दर्ज कराया था।
शर्मा की शिकायत थी कि नोएडा की शकुंतला एजुकेशनल एवं वेलफेयर सोसाइटी ने कंपनी से सन 2010 से 2012 के बीच में 80 लाख रुपये के 10 लोन स्वीकृत कराए। इनमें संस्था से जुड़े गलगोटिया विश्वविद्यालय के नाम से भी लोन शामिल था।
स्वीकृत लोन का पैसा संस्था को 24 किस्तों में ब्याज के साथ अदा करना था लेकिन कुछ किश्‍तों के भुगतान के बाद अदायगी बंद कर दी गई। इसके बाद इन्वेस्टमेंट कंपनी ने संस्था को नोटिस जारी ‌किया।
कंपनी को ब्याज समेत करीब 122 करोड़ रुपये का बकाया अदा करना है। मुकद्दमे में एजुकेशनल सोसाइटी के चेयरमैन सुनील गलगोटिया, डायरेक्टर पद्मिनी गलगोटिया, ध्रुव गलगोटिया और श्रीमती जुगनू गलगोटिया को नामजद किया गया।
ऋण अदायगी बंद करने के बाद शकुंतला एजुकेशन सोसाइटी ने दिल्ली हाईकोर्ट में आरविटेशन दाखिल किया, जिसमें सोसाइटी को भारी घाटे में‌ दिखाया गया। साथ ही गलगोटिया विश्वविद्यालय को अलग संस्थान बताया गया।
जांच कर रही थाना हरीपर्वत पुलिस ने आरोपियों की गिरफ्तारी नहीं होने पर सीजेएम खलीकुज्जमा की अदालत में गैर जमानती वारंट जारी करने का प्रार्थना पत्र दिया गया था।
अदालत ने चारों आरोपियों को वारंट जारी किए थे। इसके बाद सुनील गलगोटिया ने हाईकोर्ट से गिरफ्तारी पर स्थगनादेश ले लिया था, बाकी लोगों को स्थगनादेश नहीं मिल सका था।
सोमवार को थाना हरीपर्वत पुलिस की टीम ने डायरेक्टर ध्रुव गलगोटिया और उनकी मां पद्मिनी गलगोटिया को गुड़गांव से गिरफ्तार कर लिया। टीम दोपहर तक दोनों को आगरा लेकर आएगी।
-Legendnews

रविवार, 5 अक्तूबर 2014

IAS के उत्‍पीड़न में अखिलेश सरकार पर 5 लाख जुर्माना

लखनऊ। 
सुप्रीम कोर्ट ने अखिलेश सरकार पर एक आईएएस अफसर के उत्पीड़न के मामले में पांच लाख रुपए का जुर्माना लगाया है। साथ ही, अफसर को सभी आरोपों से बरी कर दिया।
मामला 1979 बैच के आईएएस विजय शंकर पांडेय से जुड़ा है। उन्हें मायावती सरकार में 16 अप्रैल 2011 को प्रमुख सचिव सूचना, सचिवालय प्रशासन और खाद्य एंव औषधि नियंत्रण विभाग से हटा दिया गया था। उन्हें सदस्य राजस्व परिषद के पद पर तैनात किया गया था। उन पर यह कार्रवाई सिर्फ इसलिए की गई थी क्योंकि वह एक भ्रष्टाचार विरोधी संगठन के संस्थापक सदस्य थे। पांडेय ने इंडिया रिजुवनेशन इनिशिएटिव नाम के भ्रष्टाचार रोधी संगठन बनाया। बाद में, विदेश से कालाधन वापस लाने और टैक्स चोर हसन अली के खिलाफ जांच की सुस्त रफ्तार पर प्रवर्तन निदेशालय के खिलाफ याचिका दाखिल की थी। मायावती सरकार ने इसे आईएएस सेवा नियमों का उल्लंघन माना। विभागीय जांच बिठाई। वह बेदाग निकले। अखिलेश यादव सरकार ने भी जांच बिठाई। इस पर पांडेय कैट गए, जहां उनकी याचिका खारिज हो गई।
फैसले में क्या कहा सुप्रीम कोर्ट
कोर्ट के फैसले में कहा गया कि इस गलत कार्रवाई के लिए उन अफसरों की तलाश होनी चाहिए, जो इसके लिए जिम्मेदार हैं। साथ ही, उनसे जुर्माना भी वसूला जाना चाहिए। इस मामले में सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र सरकार को इसलिए लपेट लिया, क्योंकि केंद्र सरकार ही आईएएस अफसरों का कैडर तय करती है।
कैसे चला संघर्ष
विजय शंकर पांडेय की इस कार्यवाही से उस दौरान मुख्यमंत्री रही मायावती उन पर भड़क उठी थी। उन्होंने इसे आईएएस सर्विस रुल का उल्लंघन माना और  27 फरवरी 2012 को विजयशंकर पर विभागीय जांच बैठा दी। इस जांच की जिम्मेदारी जांच अधिकारी जगन मेथ्यु को सौंपी गईं थी। जगन ने अपनी जांच रिपोर्ट 30 अगस्त को सौंपी। इसमें उन्होंने विजय शंकर पांडेय पर लगाए गए सारे आरोप निराधार पाए।
हालांकि, मायावती की सरकार चले जाने के बावजूद उनका उत्पीड़न बंद नहीं हुआ था। जब जांच में उनके ऊपर आरोप सिद्ध नहीं हुए तो अखिलेश सरकार ने 11 सितंबर को विजय शंकर पांडेय के मामले पर जांच कमिटी बिठा दी। इस कमिटी में तत्कालीन कृषि उत्पादन आयुक्त आलोक रंजन और अनिल कुमार गुप्ता थे।
सरकार के इस फैसले के खिलाफ विजय शंकर ने 26 सितंबर को कोर्ट का दरवाजा खटखटाया। लेकिन 20 दिसंबर 2013 को कोर्ट ने उनकी अर्जी खारिज कर दी। इसके बाद उन्होंने हाईकोर्ट का दरवाजा खटखटाया, लेकिन वहां भी याचिका खारिज हो गई। इसके बाद विजय शंकर पांडेय तीन अप्रैल 2014 को सुप्रीम कोर्ट पहुंच गए। शुक्रवार को उन्हें न्याय मिला, कोर्ट ने अखिलेश सरकार और केंद्र सरकार पर जुर्माना ठोंकते हुए पांच लाख रुपए का जुर्माना लगाया गया। यह जुर्माना दोनों सरकार को मिलकर विजय शंकर पांडेय को देना है।
क्या कहते हैं जानकार
पूर्व आईएएस अफसर एसएन शुक्ला का कहना हैं कि सुप्रीम कोर्ट का यह ऐतिहासिक फैसला है। इसे सिर्फ विजय शंकर पांडेय के लिए नहीं मानना चाहिए, बल्कि यह फैसला उन सभी अफसरों का हौसला बढ़ाने के लिए है, जो सरकार के गलत कामों पर अपनी आवाज बुलंद करना चाहते हैं। यह फैसला सिर्फ सरकारों के साथ उन अफसरों की भी आंख खोलेगा, जो सरकार के कहने पर ईमानदार अफसरों का उत्पीड़न करते हैं।
क्या कहना हैं सरकार में बैठे अफसरों का
सरकार में बैठे कई आईएएस अफसर सुप्रीमकोर्ट के इस फैसले से उत्साहित हैं। नाम नहीं छपने की शर्त पर वह कहते हैं कि इस फैसले से अफसरों का मोरल बढ़ा है। अब जो अधिकारी दबाव में चुप्पी साधे रहते थे, वह अब गलत काम के खिलाफ अपना मुंह खोल सकेंगे। एक वरिष्ठ सीनियर आईएएस अफसर कहते हैं कि सुप्रीम कोर्ट ने अपने इस फैसले से सरकार के गलत कामों के खिलाफ बोलने वाले अफसरों को एक सुरक्षा कवच दे दिया है। 
कौन हैं विजय शंकर पांडेय
1979 बैच के आईएएस विजय शंकर पांडेय उप्र सहकारी कताई मिल संघ में एमडी रहते हुए लिए गए निर्णयों को लेकर चर्चित हुए थे। उनके फैसलों को लेकर सतर्कता जांच तक हुई। इसके बाद भ्रष्ट आईएएस अफसरों को चिन्हित करने को लेकर छेड़ी गई अपनी मुहिम के कारण चर्चा में रहे। इससे तमाम वरिष्ठ आईएएस अफसर उनसे नाराज हुए और तत्कालीन प्रमुख सचिव नीरा यादव का उनसे टकराव हुआ। बसपा शासन में कैबिनेट सचिव के साथ उनकी अंदरखाने में होने वाली खटपट को लेकर भी वह खासे चर्चित रहे।
-एजेंसी
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