रविवार, 29 मार्च 2020

कोरोना वायरस से अधिक वायरल होते ‘दानवीर’ और ‘कर्मवीर’


चीन से ‘ग्लोबलाइज’ हुआ ‘कोरोना वायरस’ जितनी तेजी के साथ देश में ‘वायरल’ नहीं हो सका, उससे कहीं अधिक गति से अब हमारे ‘दानवीर’ और ‘कर्मवीर’ वायरल हो रहे हैं। सोशल मीडिया इस समय इन ‘दानवीरों’ और ‘कर्मवीरों’ से अटा पड़ा है।
हो भी क्‍यों नहीं, आखिर देश के प्रधानमंत्री ने कोरोना जैसी महामारी से मिलकर लड़ने का आह्वान जो किया था।
आह्वान को गंभीरता से लेते हुए करोड़ों-अरबों में खेलने वाले ‘दानवीर’ भीड़ एकत्र करके सब्‍जी-पूड़ी के पैकेट बांट रहे हैं और लखपतियों का ग्रुप आटा-दाल-तेल की पुड़िया देकर वाहवाही लूट रहा है।
इसी प्रकार ‘कर्मवीरों’ की फौज ‘सेनिटाइजर’ लेकर मोहल्‍ले-मोहल्‍ले और गली-गली घूम रही है। यह फौज ‘मास्‍क’ और ग्‍लव्‍स वितरण भी करती देखी जा सकती है।
चूंकि इस दौर में अलग से किसी फोटोग्राफर या वीडियो मेकर की आवश्‍यकता तो है नहीं, ये सारे काम स्‍मार्टफोन कर देता है इसलिए ‘दानवीरों’ और ‘कर्मवीरों’ को बड़ी राहत हो गई है।
घटना स्‍थल (मेरा मतलब है ‘मौके’) से ही इनके दूत वाट्सएप, फेसबुक, टि्वटर, इंस्‍टाग्राम आदि पर अपने ‘कारनामे’ तमाम ग्रुप में सेंड कर देते हैं जिससे देश-दुनिया उनके इस दुर्लभ गुण से बखूबी परिचित हो सके।
वैसे प्रिंट मीडिया भी इन्‍हें ‘तरजीह’ देने में कोई कसर नहीं छोड़ रहा। वह इन्‍हें चार-छ: कॉलम में न सही तो डबल कॉलम में तो ‘फोटो विद कैप्‍शन’ जगह दे ही देता है।
कुल मिलाकर इस तरह हमारे मौसमी दानवीर और कर्मवीर प्रिंट मीडिया एवं सोशल मीडिया से लेकर इलैक्‍‍‍‍‍‍ट्रॉनिक मीडिया, यहां तक कि वेब मीडिया में भी छाए हुए हैं।
मीडिया से याद आया कि प्रधानमंत्री जी ने राष्‍ट्र के नाम अपने संबोधन में इस वर्ग से भी अनुरोध किया था कि वह संकट की इस घड़ी में साथ दे।
मीडिया की महत्‍ता को रेखांकित करते हुए माननीय प्रधानमंत्री ने ‘जनता कर्फ्यू’ के दौरान जिन लोगों के प्रति घंटे-घड़ियाल, ताली-थाली आदि बजाकर आभार व्‍यक्‍त करने को कहा था, उनमें मीडिया भी शामिल था।
आभार के बोझ तले मीडिया के एक वर्ग यानि इलैक्‍ट्रॉनिक मीडिया ने अपनी जिम्‍मेदारी का परिचय देते हुए प्रवासी मजूदरों के पलायन को इस कदर हाईलाइट किया कि बाकी मजदूरों को उससे बड़ी प्रेरणा मिली, नतीजतन दिल्‍ली से शुरू हुआ यह सिलसिला देखते-देखते देशव्‍यापी हो गया।
प्रधानमंत्री ने संकट की घड़ी में साथ जो मांगा था। ये थोड़े ही कहा था कि साथ किस तरह देना है।
मीडिया में भी प्रिंट मीडिया को प्राथमिकता देनी होगी क्‍योंकि प्रधानमंत्री जी ने भी सबसे पहले प्रिंट मीडिया का जिक्र किया था कि वह फेक न्‍यूज़ को लेकर जनता को आगाह करे और भ्रम की स्‍थिति पैदा न होने दे।
अब समस्‍या यह है कि प्रिंट मीडिया बेचारा खुद भ्रम का शिकार हो गया। भ्रम की स्‍थिति यह हो गई कि लोगों ने अखबार लेना बंद कर दिया इसलिए फिलहाल प्रिंट मीडिया अपने लिए फैले भ्रम को दूर करने में जुटा है।
खुद के लिए खुद के अखबार में विज्ञापन देकर रिक्‍वेस्‍ट करनी पड़ रही है कि ‘कोरोना से दूर रहिए, अखबार से नहीं’।
कर्मवीरों में शुमार ‘मीडिया हाउस’ इसके अलावा एक काम और कर रहे हैं। उन्‍होंने अखबार को काफी ‘स्‍लिम’ कर दिया है। 18-20-22 और 24 पन्‍नों वाले नामचीन अखबार इन दिनों 12 तथा 14 पन्‍नों तक सिमट कर रह गए हैं।
‘राष्‍ट्रहित’ को मद्देनजर रखते हुए हालांकि इन अखबारों की कीमत उतनी ही कायम रखी गई है जितनी कि सामान्‍य दिनों में रहती है। कुल मिलाकर अखबार के पन्‍ने कम हुए हैं, मूल्‍य नहीं। राष्‍ट्रधर्म ऐसे ही निभाया जाता है।
डिस्‍क्‍लेमर: यहां ‘मीडिया’ से तात्‍पर्य मालिकानों से है, न कि पत्रकारों से इसलिए पत्रकारगण ‘मीडिया’ को लेकर कही गई बातें अपने दिल पर ने लें।
बहरहाल, प्रधानमंत्री ने दानवीरों के साथ-साथ जिन कर्मवीरों से सहयोग मांगा था, उनमें मीडिया के अलावा डॉक्‍टर्स और पुलिसकर्मी प्रमुख थे।
उनका जिक्र अगले दिनों में क्‍योंकि लॉकडाउन चालू आहे, आज तो सिर्फ ‘चौथा’ दिन है।
-सुरेन्‍द्र चतुर्वेदी

सोमवार, 23 मार्च 2020

कोरोना: लड़ाई को कमजोर करने में लगे हैं लापरवाह और अफवाह फैलाने वाले तत्‍व

देश में कोरोना वायरस के संक्रमण की गति तेज होने लगी है। इस बीच कुछ लोग तमाम अपीलों और सुझावों को नजरअंदाज करते हुए लापरवाही की खौफनाक मिसाल पेश कर रहे हैं। कुछ जगहों पर तो लोगों ने रविवार को जनता कर्फ्यू की अपील की भी धज्जियां उड़ा दीं। आज लॉकडाउन के बीच कई जगह भीड़भाड़ की तस्वीरें आने लगीं हैं। इससे खफा प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने ट्वीट कर अपनी नाराजगी जाहिर की। आज जब Cornavirus से होने वाली Covid-19 महामारी से एकजुट होकर मुकाबला करने का वक्त है तो कुछ संदिग्ध अस्पताल से भाग रहे हैं तो कुछ ट्रेनों से यात्रा कर रहे हैं। कोविड-19 महामारी का दुनियाभर में मच रहे तांडव को देखकर भी लोग संभल नहीं रहे हैं। दुख की बात यह है कि ऐसे लोगों में बॉलिवुड की मशहूर हस्ती से लेकर जाने-माने नेता तक शामिल हैं।
आइए जानते हैं, अब तक सामने आई कुछ ऐसी बातें जो वाकई निराशाजनक हैं…
यूपी के कानपुर में सब्जी मंडी में लोगों की भीड़ उमड़ पड़ी जबकि शहर में 25 मार्च तक लॉकडाउन घोषित है।
दिल्ली से सटे नोएडा की तरफ जाने वाली गाड़ियों की कतार लग गई। आखिर पुलिस वालों को इन्हें रोकने की कोशिश करनी पड़ी।
22 मार्च को जनता कर्फ्यू के बावजूद दिल्ली के आलमी मरकज बंगले वाली मस्जिद में मुसलमानों का हुजूम उमड़ा। लोग एक-दूसरे को गले लगाते दिखे।
खचाखच भरी बस तो ऊपर चढ़े लोग
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी खुद लोगों से अपील कर रहे हैं कि जो जहां हैं वहीं रहें क्योंकि उनकी यात्रा से खुद उन पर और दूसरों पर भी कोरोना के संक्रमण का खतरा बढ़ेगा लेकिन लोग यात्रा करने से नहीं बच रहे। बिहार के दरभंगा जा रही बस जब अंदर से खचाखच भर गई तो लोग ऊपर चढ़कर भी यात्रा करने से बाज नहीं आए।
दरअसल, लॉकडाउन के चलते फैक्ट्रियां समेत तमाम कारोबारी संस्थान बंद है। ऐसे में लोगों के पास काम नहीं बचा और वो गांव लौटने को उतावले हो गए हैं।
मूर्खों ने #covididiots टॉप ट्रेंड करवा दिया
ट्विटर पर ऐसे ही लोगों के लिए गुस्से का इजहार हो रहा है। मूर्खता दिखा रहे लोगों की तस्वीरें और वीडियोज शेयर कर रहे लोगों ने #covididiots टॉप ट्रेंड करवा दिया।

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भी ऐसे लोगों के प्रति नाराजगी का इजहार किया 



अस्पताल से भाग रहे संदिग्ध
दिल्ली के लोकनयाक जयप्रकाश नारायण (LNGP) अस्पताल से 19 मार्च को कोरोना के छह संदिग्ध भाग गए। उन्हें अगले दिन उनके घरों से ढूंढकर अस्पताल लाया गया। 14 मार्च को महाराष्ट्र के अहमदनगर जिले के एक सरकारी अस्पताल से कोरोना वायरस के तीन संदिग्ध बिना सूचना दिए भाग गए। इनमें दो महिलाएं भी शामिल थीं।
ट्रेनों से बेखौफ यात्रा कर रहे कोरोना से संदिग्ध
रेलवे ने बताया कि पिछले दिनों कोरोना वायरस के 12 मरीजों ने रेल यात्रा की। इससे उनके संपर्क में आने वाले लोगों में वायरस फैलने का खतरा पैदा हो गया
रेलवे के मुताबिक ये यात्राएं 13 से 16 मार्च के बीच की गई हैं। रेलवे के मुताबिक आंध्र प्रदेश संपर्क क्रांति ट्रेन में 13 मार्च को यात्रा करने वाले 8 लोग कोरोना पॉजिटिव पाए गए हैं।
जर्मनी-इटली से घूमकर आए, सबको किया संक्रमित
पंजाब के नवांशहर जिला स्थित पठलवा गांव के निवासी बल्‍देव सिंह की लापरवाही ने न केवल उनकी जान ले ली बल्कि परिवार के चार सदस्यों की जान को भी खतरे में डाल दिया। बल्देव अपने साथियों के साथ जर्मनी और इटली गए थे। उन सभी ने देश लौटने के बाद न अपनी जांच करवाई और न ही किसी तरह की सतर्कता बरती। बल्देव का कोविड-19 से 18 मार्च को देहांत हो गया। बल्देव के साथ जर्मनी और इटली गए संत गुरबचन सिंह आनंदपुर साहिब में होला मोहल्ला समारोह में भी शामिल हुए। उनके तीसरे साथी दलजिंदर सिंह विदेश से लौटकर लोगों से खूब घुलते-मिलते रहे। नतीजा है कि गांव के सरपंच भी संक्रमित हो गए हैं।
​​SP नेता रामाकांत यादव
समाजवादी पार्टी के नेता रामाकांत यादव ने तो हद कर दी। उन्होंने कोरोना को केंद्र की मोदी सरकार और बीजेपी की तरफ से उड़ाया गया अफवाह बता दिया।
उन्होंने कहा कि केंद्र एनआरसी, सीएए, एनआरपी, महंगाई जैसे मुद्दों से ध्यान भटकाने के लिए कोरोना का शोशा छोड़ दिया। उन्होंने यहां तक कहा कि अगर किसी को कोरोना है तो वह उसे गले तक लगाने को तैयार हैं।
उन्होंने कहा, ‘बड़ी शर्म है लगती है कि कोरोना के लिए इमर्जेंसी लगाई जा रही है।’ रामाकांत यादव के खिलाफ उचित धाराएं लगाकर मुकदमा दर्ज कर लिया गया है।
गायिका कनिका कपूर
बॉलिवुड की पार्श्व गायिका कनिका कपूर की लापरवाही तो बेहद शर्मनाक है। कनिका 9 मार्च को लंदन से मुंबई लौटीं, फिर फ्लाइट से 11 मार्च को लखनऊ गईं। वहां से कानपुर में अपने रिश्तेदार के घर चली गईं। 13 मार्च को दोबारा लखनऊ आईं। वह तीन पार्टियों में गईं, जहां करीब 160 लोग उनके संपर्क में आए थे। सांसद दुष्यंत सिंह भी एक पार्टी में उनके साथ थे जो संसद और राष्ट्रपति भवन गए। कनिका की रिपोर्ट पॉजिटिव पाई गई तो अस्पताल में भर्ती कराया गया जहां उन्होंने खूब नखरे दिखाए। आखिरकार स्वास्थ्यकर्मियों को उन्हें कहना पड़ा कि वो अस्पताल में खुद को सिलेब्रिटी की तरह नहीं, एक मरीज के तौर पर पेश हों।
फोन पर शेखी बघारता शख्स
एक व्यक्ति ने यह दावा किया कि विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) ने भारत सरकार से खतरनाक कोरोना वायरस के चलते 15 अप्रैल से 15 जून तक देश को पूरी तरह से बंद कर देने की सिफारिश की है। फोन पर शेखी बघारते उसका ऑडियो वॉट्सऐप वायरल हो गया।
आखिरकार, केंद्र सरकार के जनसंपर्क कार्यालय को स्थिति स्पष्ट करनी पड़ी। उसने ट्वीट कर इस दावे को झूठ और फर्जी बताया।
झूठ बोला कि एनएसए लगा
कुछ ऐसे भी लोग हैं जो इस भयावह परिस्थिति में खुद और अपने परिवार की चिंता किए बिना ड्यूटी पर तैनात हैं। कुछ लोग ऐसे भी हैं जो ऐसे ‘कोरोना कमांडर्स’ के प्रति आभार जताने की जगह झूठ फैलाने में जुटे हैं। इन्हीं में एक निकला गुजरात का अभिमन्यु आचार्य। वह 21 मार्च को टोरंटो से आबू धाबी होते हुए भारत लौटा था। उसने दावा किया अहमदाबाद के सरदार वल्लभभाई इंटरनेशनल एयरपोर्ट पर उसकी कोई थर्मल स्क्रीनिंग नहीं हुई थी और उसे सिर्फ एक सेल्फ डेक्लेरेशन फॉर्म भरने को कहा गया था। हालांकि, एयरपोर्ट अथॉरिटी द्वारा शेयर किए गए सीसीटीवी फुटेज में उसका आरोप गलत निकला। अब गुजरात पुलिस ने इस अभिमन्यु के खिलाफ राष्ट्रीय सुरक्षा कानून (एनएसए) के तहत मामला दर्ज कर लिया है।
शाहीन बाग की जिद्दी औरतें
कोरोनो वायरस पर दिल्ली में लॉकडनाउन के बावजूद शाहीन बाग की जिद्दी औरतें धरने पर अड़ी हुई हैं। हालांकि उनकी जिद के कारण प्रदर्शनकारियों में मतभेद भी सामने आने लगे हैं। रविवार को जनता कर्फ्यू के दौरान प्रदर्शनकारी दो गुटों में बंट गए थे और उनके बीच मारपीट भी हुई थी। हालांकि, अब वहां से शिफ्टों में धरना देने की खबर आई है।

शुक्रवार, 20 मार्च 2020

अंतत: दोषी फांसी पर लटका दिए गए, लेकिन यक्ष प्रश्‍न अब भी कायम

अंतत: आज सुबह साढ़े पांच बजे ‘निर्भया’ के चारों दोषियों को फांसी के फंदे पर लटका दिया गया, बावजूद इसके यक्ष प्रश्‍न अब भी बना हुआ है। हो सकता है कि इस प्रश्‍न का उत्तर फिलहाल मिले भी नहीं किंतु मिलना है बहुत जरूरी। जरूरी इसलिए है क्‍योंकि इससे एक पेशे की प्रतिष्‍ठा दांव पर लग गई और उसे दांव पर लगाने वालों को कोई अफसोस तक नहीं हुआ। दोषियों को उनकी सजा बेशक मिल गई किंतु उन अपराधियों का क्‍या, जिन्‍होंने एक घिनौने अपराध को अंजाम देने वालों के लिए कानून का मजाक बनाकर रख दिया। अब वह प्रश्‍न भी जान लें जो दोषियों की फांसी के बाद भी अनुत्तरित है।
प्रश्‍न यह है कि एक अत्‍यंत जघन्‍य अपराध को अंजाम देने वाले इन दोषियों के वकीलों को उनकी फीस कौन दे रहा था?
सब जानते हैं कि अत्‍यंत मामूली पारवारिक पृष्‍ठभूमि से आने वाले इन दोषियों की आर्थिक स्‍थिति किसी एक सामान्‍य वकील को भी फीस देने की नहीं है, फिर ‘बाल की खाल’ निकालने वाले वकीलों की फौज इन्‍हें कैसे उपलब्‍ध होती रही, और कौन यह फौज मुहैया कराता रहा ?
सत्र न्‍यायालय से लेकर उच्‍च और उच्‍चतम न्‍यायालय तक जिस तरह वकील इन चारों दोषियों के लिए कानूनी लड़ाई लड़े, वो बहुत कुछ कहती है।
ये लड़ाई एक ओर जहां बताती है कि न्‍याय की देवी की आंखों पर पट्टी बांधने का आशय क्‍या रहा होगा, वहीं इतना भी स्‍पष्‍ट करती है कि जो दिखाई देता है वही अंतिम सत्‍य नहीं होता।
बहरहाल, यक्ष प्रश्‍न एकबार फिर वहीं आकर खड़ा हो जाता है कि निर्भया के दोषियों को फांसी के फंदे से लौटाने की जिद पर अड़े वकीलों को “हायर” किया किसने ?
जिस देश की अधिकांश जेलें भीड़ से सिर्फ इसलिए भरी पड़ी हैं क्‍योंकि तमाम लोगों के पास अपने लिए वकील करने की सामर्थ्‍य नहीं है, उस देश में एक वीभत्‍स अपराध के दोषियों की पैरवी करने के लिए कुछ वकील दिन-रात एक किए रहे तो कैसे ?
यदि कोई ये कहे कि वकील इतना सब-कुछ केवल मानवता के नाम पर, या फिर बिना फीस लिए करते रहे तो ऐसी बात शायद ही किसी के भी गले उतरे।
जाहिर है कि कोई तो है जो एक असहाय लड़की के बलात्‍कारी हत्‍यारों को बचाने की मुहिम चला रहा था, और इस मुहिम का मकसद मात्र इन्‍हें बचाने का प्रयास करना नहीं बल्‍कि कानून-व्‍यवस्‍था पर हमेशा हमेशा के लिए गहरा सवालिया निशान लगवाना था।
संभवत: इसी मकसद की पूर्ति के लिए इंटरनेशनल कोर्ट ऑफ जस्‍टिस यानी ICJ तक गुहार लगाई गई।
ऐसे में इस प्रश्‍न का उत्तर जरूर मिलना चाहिए कि वकालत के जिस पेशे में निजी संबंधों का भी तरजीह बहुत “रेअर” दी जाती है, उस पेशे से जुड़े एक से एक काबिल लोग एक घृणित अपराध को अंजाम देने वालों के साथ इतनी सिद्दत के साथ कैसे खड़े रहे ? कौन इनके लिए फंडिंग कर रहा था, और क्‍यों?
इन प्रश्‍नों के जवाब मिलना इसलिए भी जरूरी हैं कि यदि इनके सही-सही जवाब मिल जाते हैं, तो देश की बहुत सी समस्‍याओं के जवाब खुद-ब-खुद सामने आ जाएंगे।
-सुरेन्‍द्र चतुर्वेदी
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