
पिछले दिनों मशहूर चित्रकार मकबूल फिदा हुसैन ने कतर की नागरिकता स्वीकार कर ली। उनके द्वारा एक लम्बे समय से लगातार हिन्दू देवी-देवताओं के आपत्तिजनक (नग्न) चित्र बनाये जाने के कारण उपजे विवाद ने उन्हें देश छोड़कर जाने पर मजबूर कर दिया था। हिन्दू देवी-देवताओं के प्रति उनकी घृणित सोच बराबर सामने आने की वजह से देशभर की विभिन्न अदालतों में उनके खिलाफ कई केस भी दर्ज हुए। हुसैन अपने खिलाफ दर्ज हुए इन मामलों का सामना करने की बजाय यह कहते हुए देश से भाग खडे़ हुए कि उनसे उनकी अभिव्यक्ित की स्वतंत्रता छीनी जा रही है।
अभिव्यक्ित की स्वतंत्रता को लेकर उनकी संकीर्ण सोच पर यहां कुछ सवाल खडे़ होते हैं। जैसे-
क्या निरंकुशता ही अभिव्यक्ित की स्वतंत्रता है ? क्या किसी सभ्य समाज में वर्ग विशेष की धार्मिक भावनाओं को इरादतन ठेस पहुंचाना अभिव्यक्ित की स्वतंत्रता माना जा सकता है ? क्या कोई भी कला तब कला रह जाती है जब उसके कारण समाज में विघटन की स्िथति उत्पन्न होती हो, वह लोगों के इष्ट देवी-देवताओं के अपमान का कारण बन रही हो, उससे घृणा के बीज बोए जा रहे हों ?
कला या कलाकार तो लोगों की भावनाओं को सार्थक रूप में उकेरने का काम करते हैं, उनमें ऐसे रंग भरते हैं जिनसे समूचा माहौल खुशनुमा बन जाता है। न कि दंगे-फसाद की स्िथति पैदा होती है।
अगर हुसैन यह मानते हैं कि धार्मिक प्रतीकों को बार-बार और लगातार नग्न दर्शाना अभिव्यक्ित की स्वतंत्रता का हिस्सा है तो वह कम से कम ऐसा एक प्रयोग उस ध्ार्म पर करके देखें जिससे उनका स्वयं का ताल्लुक है। उन्होंने अब तक जितने भी धार्मिक चित्र उकेरे हैं उनमें हिन्दू देवी-देवताओं के अतिरिक्त किसी अन्य धर्म के प्रतीकों की मर्यादा से छेड़छाड़ करने का साहस नहीं दिखाया जिससे साफ जाहिर है कि हुसैन केवल एक धर्म विशेष को लेकर पूर्वाग्रह से ग्रसित हैं। संभवत: हुसैन भी इस बात से परिचित हैं और इसीलिए उन्होंने अदालती कार्यवाही का सामना करने के बजाय उससे भागना ज्यादा मुनासिब समझा। सच तो यह है कि हुसैन भले ही अभिव्यक्ित की स्वतंत्रता को अपने बचाव का हथियार बनाना चाह रहे थे लेकिन उनका कृत्य इसका हकदार नहीं है।
कब्र के मुंहाने पर बैठे हुसैन ने अब जिस देश की नागिरकता ली है, वह ऐसी कोई हरकत वहां करके देखें तो उन्हें सब पता लग जायेगा। हुसैन जानते हैं कि सिवाय हिंदू धर्म के किसी भी दूसरे धर्म के प्रतीकों से इतनी बेहूदी हरकत करना सीधे मौत को दावत देना है। मौहम्मद साहब के कार्टून बनाने पर विश्वभर में जिस कदर हंगामा हुआ, उससे क्या कोई अनभिज्ञ है। सलमान रश्दी को अपनी एक किताब का शीर्षक ''शैतान की आयतें'' रखने पर कितनी बड़ी कीमत चुकानी पडी, यह भी सबको मालूम है। रश्दी अपनी जिंदगी बचाये रखने को कहां-कहां नहीं छिपे। और तो और बांग्लादेश की लेखिका तस्लीमा नसरीन आज तक मुस्िलमों (न कि इस्लाम) के खिलाफ जाने की सजा दर-दर भटक कर चुका रही हैं। समूचे विश्व में केवल भारत ही ऐसा देश है जहां हुसैन जैसी गंदी मानसिकता के लोग न केवल दौलत, शौहरत व इज्जत पाते हैं बल्िक जब चाहें तब अभिव्यक्ित की स्वतंत्रता के नाम पर धर्म विशेष के आराध्यों को नंगा कर सकते हैं।
दरअसल हुसैन जैसी रूग्ण मानसिकता के लोग केवल भारत में इसलिए फलते-फूलते हैं कि क्यों कि यहां अल्पसंख्यकों (कथित) को भरपूर राजनीतिक संरक्षण प्राप्त है। यहां के नेता वोट की राजनीति के लिए किसी भी अल्पसंख्यक व्यक्ित और वस्तु का राजनीतिकरण कर सकते हैं। उनके अपने स्वार्थ यदि पूरे होते हों तो राष्ट्र व राष्ट्रीयता उसमें कहीं आडे़ नहीं आती। यदि सवाल राष्ट्रीयता का होता तो हुसैन को कानून से भागकर दूसरे मुल्क की नागरिकता पाने का मौका इतनी आसानी से नहीं मिल पाता।
आश्चर्य तो इस बात पर होता है कि फिल्मों के पोस्टर बनाने वाला मामूली सा व्यक्ित दौलत, शौहरत व इज्जत की हिंदुस्तान से इकठ्ठी की गई अकूत कमाई को लेकर अरब में जा बसता है और यहां के नेता उसके खिलाफ एक शब्द नहीं बोलते। वह समूचे देश पर तोहमत लगाकर अपना भारतीय पासपोर्ट लौटा देता है लेकिन कोई उस पर लानत नहीं भेजता। यहां तक कि मीडिया भी उसकी इस हरकत के लिए एक शब्द नहीं लिख्ाता। आखिर यह कैसी धर्मनिरपेक्ष्ाता है कि जहां एक व्यक्ित दौलत व शौहरत की अपनी हवस पूरी करने के लिए ताजिंदगी एक धर्म के आराध्यों को निर्वस्त्र करता रहा और पूरा देश केवल इसलिए उसकी हिमायत में खड़ा रहा क्योंकि उसका ताल्लुक ऐसे दूसरे धर्म से है जो राजनेताओं को उनकी लिप्सा पूरी कराने में अहम् भूमिका निभाता है। यदि एम. एफ. हुसैन को लेकर हम इतने पजेसिव हैं तो तस्लीमा नसरीन को लेकर क्यों नहीं। मुस्लिम तो वह भी हैं, पर हम उन्हें इसिलए संरक्षण नहीं दे रहे क्योंकि वह हमारी वोट की राजनीति का मोहरा बनकर काम नहीं आ सकतीं जबकि उन्होंने तो बांग्लादेशी मुस्िलमों के काले कारनामे 'लज्जा' नामक अपनी किताब के माध्यम से विश्व समुदाय के सामने उजागर किये थे। अयोध्या का विवादास्पद ढांचा ध्वस्त किये जाने के बाद उन्होंने जो कुछ लिखा वह सभी धर्मों को आजतक आइना दिखा रहा है।
ईमानदारी से कहा जाए तो देश में रहकर की गईं हुसैन की हरकतें और अब देश से बाहर जा बसने के बाद के उनके कारनामे हमारे लिए शर्मनाक हैं परन्तु हम बेशर्मी की सारी हदें पार कर चुके हैं। हमारे लिए अब न राष्ट्र अहमियत रखता है, न राष्ट्रवाद। हमारे लिए अहमियत रखते हैं तो केवल ऐसे निजी स्वार्थ जिनके सहारे हम सत्ता के सोपानों पर चढ़ते रहें और वहां बैठकर देश की अस्िमता को तार-तार होते देखते रहें। -सुरेन्द्र चतुर्वेदी