शुक्रवार, 27 जून 2014

सावधान! क्‍या आप भी देख रहे हैं घर का सपना

(लीजेण्‍ड न्‍यूज़ विशेष)
यह खबर उन लोगों के लिए है जो अपनी मेहनत की कमाई से अपने एक अदद आशियाने का सपना पूरा करना चाहते हैं।
यह खबर उन लोगों के लिए भी है जो अपने परिवार का सिर ढंकने की खातिर जिंदगीभर के लिए अपने सिर पर बैंक का ऐसा कर्ज लाद लेते हैं, जिसकी भरपाई करना नामुमकिन न सही लेकिन बहुत कठिन अवश्‍य हो जाता है।

उन लोगों के लिए भी है यह खबर जो डेवलेपमेंट अथॉरिटी से अप्रूवल का विज्ञापन भर देखकर बिल्‍डर या प्रमोटर पर आंख बंद करके भरोसा कर लेते हैं और उसके द्वारा दिखाए जाने वाले सब्‍ज़बागों का कहीं किसी स्‍तर से सत्‍यापन नहीं करते।
हाल ही में देश की सर्वोच्‍च अदालत ने नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल यानि एनजीटी के फैसले पर अपनी मोहर लगाते हुए रीयल एस्‍टेट का बड़ा नाम जेपी इंफ्रास्‍ट्रक्‍चर की याचिका को खारिज कर दिया। यह याचिका ओखला पक्षी विहार के आसपास चल रहे निर्माण कार्य पर एनजीटी द्वारा रोक लगाये जाने के खिलाफ थी। कोर्ट के इस फैसले के बाद करीब 20 हजार लोगों का फ्लैट मिलने का सपना अधर में लटक गया है।
एनजीटी ने 28 अक्टूबर, 2013 को अपने फैसले में कहा था कि ओखला पक्षी विहार के दस किलोमीटर का दायरा पर्यावरणीय और पारिस्थितिकीय दृष्टि से संवेदनशील क्षेत्र में आता है। ऐसे में यहां बन रही इमारतों को कम्प्लीशन सर्टिफिकेट नहीं दिया जाएगा।
जेपी की तरफ से कोर्ट में दलील दी गई थी कि इन इलाकों में करीब चार हजार फ्लैट तैयार हो चुके हैं। ऐसे में अगर नोएडा अथॉरिटी फ्लैट्स के कम्पलीशन सर्टिफिकेट जारी नहीं करता है तो खरीददारों को फ्लैट्स पर कब्जा नहीं मिल सकेगा।
कोर्ट के इस फैसले से नोएडा में जेपी इंफ्रास्‍ट्रक्‍चर के अलावा ओखला पक्षी विहार के दायरे में आने वाले आम्रपाली, एटीएस, लॉजिक्स, गुलशन, सुपरटेक और अजनारा जैसे रीयल एस्‍टेट कंपनियों के प्रोजेक्‍ट प्रभावित होंगे।
इसके अलावा मुंबई की कैंपा कोला सोसायटी का केस भी सामने है जिसमें 25 साल पूर्व बने 96 फ्लैट्स को सुप्रीम कोर्ट ने अवैध मानते हुए उन्‍हें गिराने का आदेश दे दिया। आज वहां रहने वालों की सासें अटकी हुई हैं। उनके पानी, बिजली व गैस के कनैक्‍शन काट दिये गये हैं और वो पूरी तरह शासन व प्रशासन के रहमो-करम पर निर्भर हैं।
भ्रष्‍टाचार से उपजी ऐसी व्‍यवस्‍थागत खामियों के चलते नि:संदेह ये हालात किसी एक शहर या एक प्रदेश के नहीं हैं, पूरे देश के हैं। कोई प्रदेश, कोई जिला और यहां तक कि कोई कस्‍बा इससे अब अछूता नहीं रहा लेकिन खामी लोगों की सोच में भी है।
वह सोच जो ''सब-कुछ चलता है'' के जुमले को आत्‍मसात कर चुकी है और जिसके कारण भ्रष्‍टाचार व बेईमानी का कारोबार दिन दूना व रात चौगुना फल-फूल रहा है। जिसके कारण हर सरकारी मुलाजिम और प्रत्‍येक अफसर रिश्‍वत से अपनी तिजोरी भरने के लिए कानून को ताक पर रखने में कोई गुरेज़ नहीं करता। फिर चाहे उनकी वजह से आम आदमी की जान व माल पर क्‍यों न बन आए।
फिलहाल बात करते हैं विश्‍व के नक्‍शे में एक विशिष्‍ट स्‍थान रखने वाले धार्मिक जनपद मथुरा की।
विकास को परिभाषित करने वाले दूसरे तमाम आयाम भले ही मथुरा में कहीं दिखाई न देते हों परंतु बहुमंजिला इमारतों एवं अप्रूव्‍ड कॉलोनियों के मामले में यह धार्मिक जनपद दिल्‍ली एनसीआर से टक्‍कर लेता प्रतीत होता है।
यहां 9 से लेकर 14 मंजिला तक रिहायशी इमारतें निर्माणाधीन हैं और 3 व 6 मंजिला कई इमारतें बनकर खड़ी हो चुकी हैं।
राष्‍ट्रीय राजधानी दिल्‍ली से मात्र 146 किलोमीटर दूर और राष्‍ट्रीय राजमार्ग नंबर दो के किनारे बसे इस धार्मिक जनपद में तरक्‍की यदि कहीं दिखाई देती है तो इन इमारतों से ही दिखाई देती है।
इनके अलावा भी यहां एक ओर सैंकड़ों एकड़ में फैली गेटबंद कॉलोनियां हैं तो दूसरी ओर व्‍यावसायिक कॉम्‍पलेक्‍स हैं। जाहिर है कि इन सबको डेवलेपमेंट अथॉरिटी से अप्रूव्‍ड बताया जाता है और यही प्रचार भी किया जाता है। सड़क के दोनों ओर, छतों और खेत खलिहानों के बीच लगे बड़े-बड़े होड्रिंग्‍स इसकी पुष्‍टि कर सकते हैं। यह बात अलग है कि इस सबके बावजूद जनपद में ऐसी अवैध रिहायशी एवं व्‍यावसायिक इमारतों की संख्‍या सैंकड़ों में है जिन्‍हें प्रशासन बाकायदा चिन्‍हित कर चुका है।
इन अवैध इमारतों की बात फिलहाल छोड़ दी जाए और सिर्फ उन इमारतों की बात की जाए जिन्‍हें मथुरा-वृंदावन विकास प्राधिकरण से अप्रूव्‍ड प्रचारित करके रीयल एस्‍टेट के कारोबारी अपनी जेबें भर रहे हैं, तो उन इमारतों की सच्‍चाई किसी के भी पैरों के नीचे से जमीन खिसका देने को काफी है।
दरअसल जिन रेजीडेंशियल व कॉमर्शियल इमारतों को डेवलेपमेंट अथॉर्टी से अप्रूव्‍ड प्रचारित किया जाता है, उनका कोई एक हिस्‍सा ही अप्रूव्‍ड होता है और बाकी सब प्रस्‍तावित रहता है। भ्रष्‍टाचार पर भरोसे के चलते रीयल एस्‍टेट के कारोबारी न केवल पूरे प्रोजेक्‍ट को अप्रूव्‍ड प्रचारित कर देते हैं बल्‍कि भूकंपरोधी जैसी अनेक खूबियों से सुसज्‍जित बताते हैं जबकि किसी भी भवन को भूकंपरोधी बनाने की एक जटिल प्रक्रिया है। इस प्रक्रिया में सॉइल टेस्‍ट (मृदा परीक्षण) से लेकर निर्माण में इस्‍तेमाल की जाने वाली सामग्री की गुणवत्‍ता तक शामिल है और इन सबके अलग-अलग विशेषज्ञ होते हैं जो निर्माण के साथ-साथ उसके लिए सर्टीफिकेट जारी करते हैं।
डेवलेपमेंट अथॉर्टी का काम केवल नक्‍शा पास करने भर का न होकर, वह सब देखना भी है जिसके बारे में बिल्‍डर विज्ञापनों के जरिए प्रचाारित कर रहा है लेकिन आज तक किसी फर्जी विज्ञापन पर अथॉरिटी ने कोई कार्यवाही की हो, ऐसा संज्ञान में नहीं आया जबकि ऐसे ढेरों विज्ञापन सामने हैं।
मथुरा-वृंदावन विकास प्राधिकरण के ही सूत्र बताते हैं कि अप्रूवल की आड़ में निर्माणाधीन कोई प्रोजेक्‍ट ऐसा नहीं है जहां अनियमितताएं न बरती जा रही हों।
कई बड़े प्रोजेक्‍ट तो ऐसे हैं जिनका आधे से अधिक हिस्‍सा अवैध है लेकिन उनके खिलाफ कोई कार्यवाही आज तक अमल में नहीं लाई गई।
राष्‍ट्रीय राजमार्ग के किनारे शहर में बन रहे ऐसे प्रोजेक्‍ट्स पर आश्‍चर्यजनक रूप से बैंके भी फाइनेंस कर रही हैं।
सूत्रों की मानें तो कई प्रोजेक्‍ट मालिकों ने बैंकों को भी धोखे में रखा हुआ है, यहां तक कि संबंधित विभागों की नकली स्‍टांप लगाकर फर्जी नक्‍शा आदि जमा करा दिया गया है और उन्‍हीं के आधार पर बैंकें फाइनेंस कर रही हैं।
चूंकि हाउसिंग फाइनेंस करने वाली अधिकांश बैंकों के लीगल एडवाजर, फील्‍ड ऑफीसर एवं मैनेजर आदि सब बिल्‍डर से सेट होते हैं, साथ ही कर्ज लेने वाले से भी सुविधा शुल्‍क प्राप्‍त करते हैं, इसलिए वह किसी डॉक्‍यूमेंट के असली होने की पुष्‍टि नहीं करते। विशेष रूप से यह तो कतई नहीं देखते कि जिस जमीन पर प्रोजेक्‍ट खड़ा किया जा रहा है, उसकी असलियत क्‍या है।
वह केवल डेवलेपमेंट अथॉरिटी की परमीशन भर देखकर संतुष्‍ट हो जाते हैं।
दूसरी ओर एक अदद घर अपना होने का सपना पाले बैठा व्‍यक्‍ति यह मान लेता है कि जब बैंक को कर्ज देने में आपत्‍ति नहीं है, तो सब-कुछ ठीक ही होगा।
यदि कभी कोई व्‍यक्‍ति बिल्‍डर से जमीन के कागजातों अथवा नक्‍शे आदि की मांग करता है तो उससे कह दिया जाता है कि सबके लिए अलग-अलग कहां तक बांटेंगे लिहाजा बैंक में सारे पेपर जमा हैं, आप अपना फाइनेंस कराइए। कोई परेशानी आए, तब बताइयेगा।
उधर दलालों से हर वक्‍त घिरे रहने वाले विकास प्राधिकरण के अधिकारियों को यह देखने की फुर्सत नहीं मिलती कि अप्रूवल की आड़ के बाद विकास कैसा व कितना हो रहा है।
विकास प्राधिकरण के अधिकारी अपनी जिम्‍मेदारी सुविधा शुल्‍क के साथ केवल डेवलेपमेंट चार्ज वसूलने तक निभाते हैं, उसके बाद बिल्‍डर कितना और क्‍या घालमेल कर रहा है, इससे उन्‍हें कोई लेना-देना नहीं। यही कारण है कि कल तक एक जैसे मकानों से सुसज्‍जित कॉलोनियों में आज लोग मनमाफिक निर्माण बेखौफ  कराते जा रहे हैं लेकिन न कोई देखने वाला है और न सुनने वाला।
और तो और बिल्‍डर्स से भारी भरकम डेवलेपमेंट चार्ज वसूलने वाले विभाग ने आज तक किसी अपनी कॉलोनी में कोई विकास कार्य कराया हो, ऐसी सूचना नहीं मिली है।
प्राधिकरण से अप्रूव्‍ड पॉश कॉलोनियों का सीवर आस-पास के नालों में समा रहा है और इन कॉलोनियों में बिजली, पानी व सड़क तक की व्‍यवस्‍था चरमराने लगी है।
इन सबसे अलग लगभग हर अच्‍छी कॉलोनी का कोई न कोई हिस्‍सा विवादित है और उसका विवाद किसी न किसी स्‍तर पर लंबित है लेकिन अधिकांश लोगों को इसकी जानकारी तक नहीं है। लोगों को बाकायदा एक सुनियोजित तरीके से अंधेरे में रखा जाता है। बाद में यदि किसी हाउस होल्‍डर को सच्‍चाई पता भी लगती है तो उसके पास हाथ मलने के अलावा कुछ नहीं रह जाता।
ठीक उसी तरह जिस तरह आज कैंपा कोला सोसायटी के वाशिंदे अथवा नोएडा में नामचीन बिल्‍डर्स के प्रोजेक्‍ट में पैसा फंसा चुके लोगों के साथ हो रहा है।
आज इन लोगों का साथ देने को न कोई डेवलेपमेंट अथॉरिटी सामने आ रही है और न कोई दूसरी अथॉरिटी। सब अपने-अपने हिस्‍से का माल मारकर तमाशा देख रहे हैं। न्‍यायपालिकाएं भी कोई मदद नहीं कर पातीं क्‍योंकि वह केवल दस्‍तावेजी सबूत देखती हैं। उनका कहना अपनी जगह सही है कि पैसा फंसाने से पहले बिल्‍डर के सभी दावों की सच्‍चाई पता करना, खरीदार का काम है। यदि वह आंखें बंद करके अपनी पूंजी फंसाते हैं तो दोषी वह भी कम नहीं।
यही कारण है कि कैंपा कोला सोसायटी और जेपी ग्रुप के मामले में कोर्ट काफी सख्‍त नजर आईं।
कोर्ट की ऐसी सख्‍ती ताकीद करती है कि अपने एक अदद आशियाने का सपना देखने वालों को आंख बंद करके बिल्‍डर या उसके कथित अप्रूवल एवं प्रचार पर भरोसा करने की बजाय, खुद सारे दस्‍तावेजों का सत्‍यापन कर लेना चाहिए अन्‍यथा एक दिन वह भी सड़क पर खाली हाथ खड़े दिखाई देंगे और तब उनकी मदद करने वाला कोई नहीं होगा।
मथुरा को बेशक समूची दुनिया में एक धर्म नगरी के तौर पर पहचाना जाता है लेकिन याद रहे कि पापकर्मों के लिए धर्म ही सबसे बड़ी आड़ का काम करता है और यह बात न केवल बेईमान कारोबारी भली-भांति जानते हैं बल्‍कि वो अधिकारी भी जानते हैं जो आने के साथ तो कहते हैं कि वह ब्रजभूमि की सेवा करने आएं हैं लेकिन जैसे ही पहले से मुंह लगा खून सामने नजर आता है, ब्रजभूमि व ब्रजवासी, सबको भुला देते हैं।

अन्‍ना और रामदेव फिर आए साथ, श्री-श्री रविशंकर भी जुड़े

नई दिल्ली। 
समाजसेवी अन्ना हजारे ग्रेट इंडिया मूवमेंट या श्रेष्ठ भारत अभियान से जुड़ गए हैं। 9 अगस्त को भारत छोड़ो आंदोलन की वर्षगांठ पर वह दिल्ली में इसकी शुरुआत करेंगे। इस अभियान में उनके साथ आध्यात्मिक गुरु श्री-श्री रविशंकर तथा योग गुरु बाबा रामदेव भी होंगे। इस गैरराजनीतिक अभियान का मकसद समाज में व्यवस्थित ढंग से परिवर्तन लाना है। इस अभियान की शुरुआत आम आदमी पार्टी के पूर्व नेता और केजरीवाल के विरोधी रहे अश्विनी उपाध्याय ने की है।
इस अभियान की कोर कमेटी में प्रोफेसर जगमोहन राजपूत (एनसीईआरटी के पूर्व निदेशक), जस्टिस डीएस तेवतिया (कलकत्ता हाईकोर्ट के पूर्व चीफ जस्टिस), आईपीएस प्रकाश सिंह (उत्तर प्रदेश के पूर्व डीजीपी), आईपीएस शशिकांत (पंजाब के पूर्व डीजीपी), प्रभात चतुर्वेदी (पूर्व श्रम सचिव), डॉ. वेद प्रताप वैदिक, सुप्रीम कोर्ट के सीनियर वकील राम जेठमलानी, पर्यावरणविद् राजेंद्र सिंह शामिल हैं।
केजरीवाल पर कुछ गंभीर आरोप लगाने के बाद पार्टी ने उपाध्‍याय को बाहर का रास्‍ता दिखा दिया था। वह आप के नेशनल काउंस‍िल के सदस्‍य भी रह चुके हैं। उपाध्‍याय ने पिछले दिनों बेंगलुरु में अभियान शुरू करने की घोषणा की थी। इस मौके पर उन्होंने कहा था कि हमारी योजना केंद्र और राज्य सरकारों के साथ मिलकर काम करने की है लेकिन अगर कहीं गलत हुआ तो हम विरोध भी करेंगे। उपाध्याय के मुताबिक, 'हमने अभियान के तहत सरकारों को सुझाव देने के लिए पांच खास क्षेत्र चुने हैं जिनमें चुनाव, पुलिस, न्यायपालिका, कृषि और शिक्षा शामिल है।' हालांकि, उन्होंने स्पष्ट किया कि यह संगठन गैर-राजनीतिक है और इसका किसी पार्टी से कोई लेना-देना नहीं होगा। साथ ही, संगठन केजरीवाल या उनकी पार्टी के समानांतर दूसरी पार्टी बनाने जैसा बिल्कुल भी नहीं है। दूसरी ओर, उपाध्याय के श्रेष्ठ भारत अभियान में कुछ विशेषज्ञों को भी शामिल किया गया है, जिनमें संतोष हेगड़े भी शामिल बताए जा रहे हैं। दूसरी ओर, पूर्व AAP नेता शाजिया इल्मी के जुड़ने की पुष्टि होना भी अभी बाकी है। बताया गया है कि उन्हें मनाने के लिए अन्ना हजारे ने अपने प्रतिनिधि विनायक राव पाटिल को भेजा था।
उधर, श्री-श्री रविशंकर ने अमेरिका में आयोजित एक कार्यक्रम में मोदी को 'सख्‍त लेकिन नरमदिल इंसान' की संज्ञा दी है। रविशंकर नरेंद्र मोदी के बेहद करीबी माने जाते हैं। वॉशिंगटन में एक थिंक टैंक की ओर से आयोजित कार्यक्रम में रविशंकर को मोदी के बारे में बोलने के लिए कहा गया था। रविशंकर ने कहा, ''हालांकि, मोदी बेहद सख्‍त हैं लेकिन बहुत कम लोग जानते हैं कि वह एक नरमदिल इंसान भी हैं। ''रविशंकर के अलावा रामदेव भी मोदी के बेहद करीबी माने जाते हैं। रामदेव ने तो मोदी को पीएम बनाने के लिए अभियान तक चलाया था। उधर, अन्‍ना हजारे ने भी हाल ही में मोदी की बतौर पीएम तारीफ की थी। अन्‍ना ने अंग्रेजी अखबार इंडियन एक्‍सप्रेस से बातचीत में कहा था कि ऐसा लगता है कि अच्‍छे दिन आने वाले हैं। अन्‍ना, रविशंकर और रामदेव की इस तिकड़ी की मोदी से नजदीकी कांग्रेस और केजरीवाल, दोनों के लिए सिरदर्द साबित हो सकती है।
लोकपाल आंदोलन के बाद यह पहली बार होगा, जब अन्ना हजारे और बाबा रामदेव साथ होंगे। अन्ना के आंदोलन को बाबा रामदेव ने भी अपना समर्थन दिया था। इसी के चलते भ्रष्टाचार के खिलाफ उन्होंने दो साल पहले दिल्ली के रामलीला मैदान पर अनशन भी किया गया, जिसमें उन्होंने काले धन को भारत वापस लाने की सरकार से मांग की थी। हालांकि, आंदोलन का पटाक्षेप बेहद नाटकीय ढंग से हुआ था लेकिन इसके बाद ही केंद्र की यूपीए सरकार और कांग्रेस के खिलाफ बाबा रामदेव ने देश भर में यात्राएं की और कांग्रेस को वोट न देने की अपील भी की। वहीं, अन्ना हजारे अरविंद केजरीवाल द्वारा पार्टी बनाने से नाराज होकर अलग हो गए थे। अब तक वे सिर्फ लोकसभा चुनावों में प. बंगाल में ही सक्रिय दिखे, जहां वे ममता बनर्जी को समर्थन दे रहे थे। इसके अलावा, उनकी दिल्ली दौड़ थम-सी गई थी और वे अपना ज्यादातर समय अपने गांव रालेगणसिद्धि में ही बिता रहे थे।
श्रेष्ठ भारत अभियान की शुरुआत करने वाले आम आदमी पार्टी के ही एक नाराज नेता है, तो निश्चित तौर पर इससे आप के संयोजक अरविंद केजरीवाल को नुकसान उठाना पड़ सकता है। अन्ना पहले ही अरविंद के राजनीतिक कदमों का विरोध करते रहे हैं। ऐसे में, वे इस अभियान के जरिए अपना पुराना जनाधार एकत्र कर सकते हैं। वहीं, अभियान में शामिल अन्य शख्सियतें भी कालांतर में किसी न किसी तरह अरविंद केजरीवाल, लोकपाल आंदोलन या अन्ना हजारे से जुड़े रहे हैं। दूसरी ओर, 'आप' फिलहाल अंदरूनी कलह से जूझ रही है और दिल्ली में भी उसका जनाधार डांवाडोल है। ऐसे में, आप कार्यकर्ताओं और दूसरे नेता श्रेष्ठ भारत अभियान में अन्ना हजारे और अन्य महत्वपूर्ण लोगों की मौजूदगी के चलते 'आप' छोड़ सकते हैं। संभव है कि भविष्य में यह संगठन आप का विकल्प बन जाए।
जहां तक कांग्रेस का सवाल है, रामदेव इस पार्टी को अपना दुश्‍मन नंबर 1 मानते हैं। मोदी के करीबी रामदेव एनडीए के सत्‍ता में होने की वजह से कांग्रेस पर हमला बोलने के मामले में और ज्‍यादा मुखर होकर सामने आ सकते हैं। उधर, अन्‍ना हजारे और रविशंकर की सामाजिक प्रतिष्‍ठा का फायदा बीजेपी को मिल सकता है, जो एक तरह से कांग्रेस और अन्‍य विपक्षी दलों के लिए नुकसान ही साबित होगा।

सोमवार, 23 जून 2014

टैक्‍स चोरी को 'भारत रत्‍न' का झूठ: मैं क्रिकेटर नहीं, एक्‍टर हूं

नई दिल्‍ली। 
क्रिकेट के भगवान की उपाधि प्राप्‍त सचिन तेंदुलकर को लेकर एक RTI के जरिए ये सवाल पूछा गया है कि मास्टर ब्लास्टर सचिन तेंदुलकर एक्टर हैं या क्रिकेटर। जिसका जवाब प्रथम अपीलीय प्राधिकार (सीपीआईओ) ने दिया है। सीपीआईओ ने कहा है कि इस सवाल का जवाब आयकर विभाग केंद्र की ओर से दिया जा चुका है जिसमें सुप्रीम कोर्ट के एक फैसले का हवाला देते हुए कहा गया था कि आयकर रिटर्न संबंधी सूचना निजी है। उसे तब तक सार्वजनिक नहीं किया जा सकता, जब तक कि जनहित का बड़ा मसला शामिल न हो। उधर आरटीआई कार्यकर्ता इस फैसले के खिलाफ मुख्य सूचना आयोग में अपील करने की तैयारी कर रहा है।
सचिन के मामले में यह आरटीआई सुप्रीम कोर्ट के अधिवक्ता प्राणेश की ओर से उस आधार पर की गई थी, जिसमें आयकर बचाने के लिए सचिन ने अपना मुख्य काम क्रिकेट खेलना नहीं, बल्कि एक्टिंग बताया था।
यह आरटीआई राष्ट्रपति भवन भेजी गई थी और वहां से जवाब मुहैया कराने के लिए केंद्रीय वित्त मंत्रालय और राजस्व विभाग भेज दी गई। मंत्रालय ने इसके बाद आरटीआई को जवाब देने के लिए आयकर विभाग को भेज दिया। आयकर विभाग ने टैक्स संबंधी सूचना को निजी करार देते हुए सूचना मुहैया कराने से इंकार कर दिया।
आरटीआई कार्यकर्ता ने इसके खिलाफ सीपीआईओ के समक्ष अपील की लेकिन सीपीआईओ ने इसका निपटारा करते हुए कहा कि आरटीआई से जुड़े सवाल का जवाब दिया जा चुका है। हालांकि सचिन की ओर से एक्टर होने के दावे की पुष्टि मुंबई में आयकर विभाग के सहायक आयुक्त के सामने की गई अपील करती है। इसमें खुद तेंदुलकर ने 2008 में यह दावा करते हुए किया था कि उनका मुख्य कार्य एक्टिंग है, क्रिकेट खेलना नहीं।
सचिन की ओर से यह अपील अक्टूबर, 2003 में आयकर रिटर्न भरने के बाद समीक्षा अधिकारी की ओर से उनके एक्टर होने के दावे को खारिज किए जाने के बाद दायर की गई थी। दरअसल आयकर अधिनियम की धारा 80-आरआर के तहत एक्टर होने पर उन्होंने एक कलाकार होने के आधार पर छूट का दावा किया था। समीक्षा अधिकारी की ओर से एक्टर होने का दावा खारिज होने पर उन्हें छूट नहीं मिलती।
ऐसे में उनकी अपील पर आयकर विभाग के सहायक आयुक्त ने सचिन के एक्टर होने के दावे को स्वीकार कर लिया लेकिन विभाग ने इसके बाद हाईकोर्ट में अपील की या नहीं, इस बारे में विभाग के अधिकारियों ने चुप्पी साध ली थी। इसके बाद ही ये आरटीआई दायर हुई।
-एजेंसी

शुक्रवार, 20 जून 2014

ऑगस्टा वेस्टलैंड घोटाले में दो राज्‍यपालों से पूछताछ होगी

नई दिल्‍ली। 
सीबीआई डायरेक्टर रणजीत सिन्हा ने पहली बार माना है कि ऑगस्टा वेस्टलैंड वीवीआईपी हेलिकॉप्टर की खरीद से जुड़े घोटाले में पश्चिम बंगाल के राज्यपाल एम. के. नारायणन और गोवा के राज्यपाल बी. वी. वांचू से पूछताछ हो सकती है। जांच एजेंसी अगले कुछ दिनों में इन दोनों से पूछताछ कर सकती है। अगर ऐसा होता है, तो बीजेपी सरकार को इन राज्यपालों का इस्तीफा लेने का बेहतर मौका मिल जायेगा।
सिन्हा ने बताया कि जांच एजेंसी पहले ही दोनों राज्यपालों के लिए सवाल तैयार कर चुकी है और जल्द ही अधिकारियों की एक टीम को पूछताछ के लिए भेजा जाएगा। उन्होंने बताया, 'ऑगस्टा वेस्टलैंड घोटाले में जांच को और नहीं रोका जा सकता। पूछताछ इस महीने के आखिर तक होगी। हम राज्यपालों से पूछताछ गवाह के तौर पर कर रहे हैं और हमें इसके लिए सरकार से मंजूरी लेने की कोई जरूरत नहीं है।'
यह पूछे जाने पर क्या सीबीआई की योजना दिल्ली की पूर्व मुख्यमंत्री और केरल की गवर्नर शीला दीक्षित से भी पूछताछ करने की है, सिन्हा का कहना था कि ऐसी कोई योजना फिलहाल नहीं है। शीला दीक्षित का नाम दिल्ली जल बोर्ड (डीजेबी) घोटाले में आया है, जिसकी जांच भी सीबीआई के जिम्मे है। उन्होंने बताया, 'हमारे पास अब तक तत्कालीन मुख्यमंत्री के खिलाफ कोई सामग्री नहीं है लेकिन जांच अब भी जारी है।'
मुख्यमंत्री होने के नाते शीला दीक्षित दिल्ली जल बोर्ड की चेयरपर्सन भी थीं। सीबीआई ने दिल्ली जल बोर्ड में पब्लिक-प्राइवेट पार्टनरशिप प्रॉजेक्ट के सिलसिले में पिछले साल 3 शुरूआती जांच की थी। इस मामले में दिल्ली जल बोर्ड ने दिल्ली में बेरोकटोक पानी की सप्लाई के लिए यूरोपीय फर्म से समझौता किया था।
नारायणन, वांचू और दीक्षित को कांग्रेस की अगुवाई वाली यूपीए-2 सरकार में गवर्नर बनाया गया था। बीजेपी की अगुवाई वाली मौजूदा सरकार 7 राज्यपालों को हटाना चाहती है। छत्तीसगढ़ के राज्यपाल शेखर दत्त पहले ही इस्तीफा दे चुके हैं और कुछ ने जल्द ही ऐसा करने के संकेत दिए हैं।
होम मिनिस्ट्री के एक सीनियर अधिकारी ने बताया कि अगर सीबीआई इस घोटाले में नारायणन और वांचू से पूछताछ करती है तो दोनों के लिए संवैधानिक स्थिति को सही ठहरना मुश्किल हो जाएगा। एक सीनियर अधिकारी ने बताया, 'इस हाई ऑफिस की गरिमा को कायम रखने के लिए इन लोगों को पूछताछ होने से पहले ही खुद से इस्तीफा दे दिया जाना चाहिए।'
यूपीए-1 सरकार में राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार रह चुके नारायणन ने इस्तीफा देने के संकेत दिए हैं जबकि एसपीजी के पूर्व हेड वांचू इस मामले पर चुप हैं। हालांकि, सीबीआई अधिकारियों ने साफ किया है कि पूछताछ की टाइमिंग का सरकार और राज्यपालों के बीच चल रहे टकराव से कोई लेना-देना नहीं है।
-एजेंसी

शुक्रवार, 13 जून 2014

LTC घोटाले में 6 राज्यसभा सांसदों के खिलाफ केस दर्ज

नई दिल्ली। 
CBI ने एलटीसी घोटाले में शुक्रवार को राज्यसभा के 6 सांसदों के खिलाफ धोखाधड़ी और फर्जीवाड़े का केस दर्ज किया। इस घोटाले में पहली बार केस दर्ज हुआ है। CBI ने तीन मौजूदा और तीन पूर्व राज्यसभा सांसदों के खिलाफ धारा 420 और 13 (1) डी के तहत केस दर्ज किया गया है। सांसदों के ठिकानों पर छापे भी मारे गए हैं। जिन तीन मौजूदा सांसदों के खिलाफ केस दर्ज किया गया है उनमें डी. बंधोपाध्याय (तृणमूल कांग्रेस), ब्रजेश पाठक (बसपा) और लाल मिंग लियाना (एमपीएफ) शामिल है। जिन तीन पूर्व सांसदों के खिलाफ मामला दर्ज किया गया है उनमें जेपीएन सिंह (भाजपा), रेणु बाला (बीजू जनता दल) और महमूद एल. मदनी (राष्ट्रीय जनता दल) शामिल है।
सभी सांसदों ने फर्जी टिकटें और बोर्डिंग पास बनवाए और अपने दौरों के लिए भुगतान लिया। हैरानी की बात यह है कि सांसदों ने यह एक बार नहीं बल्कि तीन-चार बार किया। टैक्स चुकाने पर ही सांसदों को कंपेनियन टिकट दिए जाते हैं। नवंबर 2013 में इस तरह के मामले में सीबीआई ने जदयू सांसद अनिल शर्मा के खिलाफ केस दर्ज किया गया था।
-एजेंसी

सोमवार, 2 जून 2014

इंडिया बुल्‍स चला रहा था एक्‍स कमिश्‍नर के यहां सेक्‍स रैकेट

मुंबई। 
मुंबई पुलिस की सोशल सर्विस ब्रांच ने अंधेरी इलाके के एक फ्लैट में छापा मारकर सेक्स रैकेट का भंडाफोड़ करने का दावा किया है। इस मामले में एक शख्स को गिरफ्तार किया है, जबकि दो महिलाओं को देह व्यापार के दलदल से निकालकर शेल्टर हाउस में भेज दिया गया है। यह फ्लैट मुंबई पुलिस के पूर्व कमिश्‍नर और बीजेपी सांसद सत्यपाल सिंह का है। जिस सोसायटी में छापेमारी की गई उसमें कई वरिष्ठ पुलिस अधिकारियों के फ्लैट हैं।
सत्यपाल सिंह ने कहा है कि उन्होंने फ्लैट किराए पर इंडिया बुल्स को दे दिया था और काफी समय से उस फ्लैट में गए भी नहीं हैं। मुंबई पुलिस के प्रवक्ता और पुलिस उपायुक्त महेश पाटिल ने बताया कि फ्लैट में देह व्यापार की शिकायत मिली थी जिसके बाद छापा मारा गया। प्राप्त जानकारी के मुताबिक, गिरफ्तार किए गए शख्स का नाम वकील शाह है और वह कंपनी का ही कर्मचारी है। सोशल सर्विस ब्रांच ने आगे की जांच के लिए केस वर्सोवा पुलिस को सौंप दिया है।
इस बारे में संपर्क किए जाने पर सत्यपाल सिंह ने मीडिया को बताया, 'मैंने करीब चार साल पहले इंडिया बुल्स को फ्लैट किराए पर दिया था और कॉन्ट्रैक्ट सितंबर में खत्म होने वाला है। मैं कंपनी का कॉन्ट्रैक्ट खत्म करने पर विचार कर रहा हूं। इसके अलावा कॉन्ट्रैक्ट की शर्तों के उल्लंघन के लिए कंपनी पर केस भी करूंगा।' इंडिया बुल्स के प्रवक्ता ने कहा, 'आरोपी शाह गेस्ट हाउस का केयरटेकर है और हमें उसकी करतूतों के बारे में कोई जानकारी नहीं थी। उसे नौकरी से निकाल दिया गया।'
-एजेंसी
 

रविवार, 1 जून 2014

मामला देश के काले धन का: बड़े कांटे हैं इस राह में...

नई दिल्‍ली। 
मोदी सरकार ने ब्लैक मनी की जांच के लिए स्पेशल इन्वेस्टिगेशन टीम (एसआईटी) बनाने का ऐलान कर दिया है। एसआईटी के प्रमुख सुप्रीम कोर्ट के पूर्व जज एम. वी. शाह को बनाया गया है। सुप्रीम कोर्ट के ही पूर्व जज अरिजीत पासायत एसआईटी के वाइस चेयरमैन होंगे। सदस्यों के रूप में सीबीआई, रॉ, आईबी, ईडी, सीबीडीटी के टॉप अफसर रहेंगे। एसआईटी यह पता लगाएगी कि देश में कितनी ब्लैक मनी है और साथ ही इसे वापस लाने के तरीकों पर सरकार को सुझाव भी देगी। यहां अहम सवाल यह है कि एसआईटी के अधिकारों का दायरा क्या होगा? क्या इसके जरिये विदेशों में जमा भारतीयों का कालाधन वापस लाया जा सकेगा? इस बारे बता रहे हैं जोसफ बर्नाड
क्या है मामला
स्विस बैंक, जर्मनी, सिंगापुर से लेकर मॉरिशस में भारतीयों की ब्लैक मनी होने की खबरें हैं लेकिन अभी तक किसी भी विदेशी या भारतीय एजेंसी के पास यह पुख्ता जानकारी नहीं है कि भारतीयों की कितनी ब्लैक मनी विदेशों में है। सुप्रीम कोर्ट में वकील राम जेठमलानी के अनुसार, कई भारतीय एजेंसियों ने इस बारे में स्टडी की है। इससे यह संकेत मिलता है कि भारतीयों की करीब 1500 अरब डॉलर (करीब 90 लाख करोड़ रुपये) की ब्लैक मनी विदेशों में है, जो हमारी कुल जीडीपी 1800 अरब डॉलर से कुछ ही कम है।
एसआईटी के मायने
सुप्रीम कोर्ट के कहने पर ही एसआईटी का गठन किया गया है। यह टीम यह पता करेगी कि ब्लैक मनी देश में कितनी है, कितनी विदेशों में जा रही है और किस रूट से जा रही है। ब्लैक मनी के बाहर जाने का एक रास्ता हवाला कारोबार भी है। यदि कोई स्विस बैंक में पैसे जमा कराता है, तो वह किस तरह हुआ है। क्या इसकी जानकारी इनकम टैक्स विभाग को है? यदि नहीं है, तो उस पर टैक्स चोरी का मामला भी बनता है।
अधिकारों पर नजरें
मार्केट एक्सपर्ट्स का कहना है, अहम बात यह है कि एसआईटी को कितने अधिकार दिए जाते हैं। क्या एसआईटी को किसी के खिलाफ वित्तीय आपराधिक मामला दर्ज करने, सरकार से पूछे बगैर दूसरे देशों की जांच एजेंसियों के साथ सीधे बात करने, उनसे ब्योरा लेने और उस पर कार्यवाही करने का अधिकार दिया जाता है? क्या इसे शेयर मार्केट रेग्युलेटर की तरह ब्लैक मनी के मामले बैंक खाते बंद करने या संपत्ति सील करने का अधिकार मिलता है? मार्केट एक्सपर्ट सुशील अग्रवाल का कहना है कि ब्लैक मनी या टैक्स चोरी का मामला काफी संवेदनशील होता है। इसमें जल्द कार्यवाही करने की जरूरत होती है। यदि एसआईटी को पूरी तरह से स्वतंत्र नहीं बनाया गया तो रिजल्ट ज्यादा पॉजिटिव नहीं हो सकता।
जुटाएंगे सारा ब्यौरा
एसआईटी के प्रमुख एम. वी. शाह के मुताबिक भारत और दूसरे देशों में कहां-कहां और कितनी ब्लैक मनी है, यह जानने के लिए छह महीने लग सकते हैं। इसका मतलब है कि एसआईटी पहले तो ब्लैक मनी से जुड़े आंकड़े जमा करेगी। इसके बाद इसकी रिपोर्ट सरकार को दी जाएगी और फिर इसको किस तरह से देश में लाया जाए, इसके तरीकों पर विचार होगा।
क्या है मुश्किलें
स्विस प्रशासन को पूर्व वित्त मंत्री पी. चिदंबरम ने ब्लैक मनी को लेकर चार चिट्ठियां लिखीं। जबाव मिला कि स्विस प्रशासन ने फैसला किया है कि 2011 के बाद के भारतीयों के खाते के बारे में सूचना दी जाएगी। वह भी इस शर्त पर कि भारत सरकार को लिखित रूप से यह आग्रह करना होगा कि उसे इसकी सूचना चाहिए। इसके अलावा यदि किसी भी देश की सरकार को किसी भी व्यक्ति के बारे में शक है कि उसका खाता स्विस बैंक में है तो सरकार को पहले उस व्यक्ति के खि‌लाफ आपराधिक मामला दर्ज करना होगा, तभी उस व्यक्ति के बारे में कोई जानकारी दी जाएगी। जर्मनी ने हाल ही में विदेशी बैंकों में जमा ब्लैक मनी को लेकर कुछ जानकारियां जमा की हैं, लेकिन इसके आंकड़ों को लेकर कुछ संदेह है।
कई हैं कानूनी पेच
भारत दो तरीकों से ब्लैक मनी को वापस ला सकता है। पहला, उसे इन लोगों के खिलाफ वित्तीय आपराधिक मामला दर्ज करना होगा और साबित करना होगा कि यह ब्लैक मनी है यानि इस पर टैक्स नहीं दिया गया है। दूसरा, उन लोगों के नाम सार्वजनिक करने होंगे और स्विस प्रशासन को तकनीकी रूप से यह बताना होगा कि जो धन उसके पास जमा है, वह ब्लैक मनी के दायरे में आता है। ऐसे में सरकार को वह धन जब्त करने का हक है।
क्या सरकार ऐसा कर पाएगी?
मार्केट एक्सपर्ट के. के. मदान का कहना है कि अमेरिका तक यह कर नहीं पाया, भारत के लिए यह करना और मुश्किल होगा। साल 2008 में जब अमेरिका में इकॉनमिक स्लोडाउन था, तब उसने स्विस प्रशासन से उन धनी अमेरिकियों के नाम मांगे थे, जिनकी ब्लैक मनी स्विस बैंकों में जमा है। लिस्ट मिली, पर अमेरिका ने उनके खिलाफ कोई केस दर्ज नहीं किया। उन्होंने कहा कि अमेरिकी मार्केट में नकदी का अभाव है। वे अपना धन स्विस बैंकों से निकालकर अमेरिकी मार्केट में लगाएं, जब मनी फ्लो बढ़ जाए तो नकदी वापस निकाल लें। अमेरिका ने साफ तौर पर कहा कि कानूनी पेच इतने ज्यादा हैं कि स्विस बैंकों में जमा ब्लैक मनी है, इसे साबित करने में ही काफी वक्त खराब हो जाएगा और फिर लोगों पर वित्तीय आपराधिक केस चलाना पड़ेगा। लिहाजा उसने दूसरा रास्ता अपनाया।
-एजेंसी
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