(लीजेण्ड न्यूज़ विशेष)
यह खबर उन लोगों के लिए है जो अपनी मेहनत की कमाई से अपने एक अदद आशियाने का सपना पूरा करना चाहते हैं।
यह खबर उन लोगों के लिए भी है जो अपने परिवार का सिर ढंकने की खातिर जिंदगीभर के लिए अपने सिर पर बैंक का ऐसा कर्ज लाद लेते हैं, जिसकी भरपाई करना नामुमकिन न सही लेकिन बहुत कठिन अवश्य हो जाता है।
उन लोगों के लिए भी है यह खबर जो डेवलेपमेंट अथॉरिटी से अप्रूवल का विज्ञापन भर देखकर बिल्डर या प्रमोटर पर आंख बंद करके भरोसा कर लेते हैं और उसके द्वारा दिखाए जाने वाले सब्ज़बागों का कहीं किसी स्तर से सत्यापन नहीं करते।
हाल ही में देश की सर्वोच्च अदालत ने नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल यानि एनजीटी के फैसले पर अपनी मोहर लगाते हुए रीयल एस्टेट का बड़ा नाम जेपी इंफ्रास्ट्रक्चर की याचिका को खारिज कर दिया। यह याचिका ओखला पक्षी विहार के आसपास चल रहे निर्माण कार्य पर एनजीटी द्वारा रोक लगाये जाने के खिलाफ थी। कोर्ट के इस फैसले के बाद करीब 20 हजार लोगों का फ्लैट मिलने का सपना अधर में लटक गया है।
एनजीटी ने 28 अक्टूबर, 2013 को अपने फैसले में कहा था कि ओखला पक्षी विहार के दस किलोमीटर का दायरा पर्यावरणीय और पारिस्थितिकीय दृष्टि से संवेदनशील क्षेत्र में आता है। ऐसे में यहां बन रही इमारतों को कम्प्लीशन सर्टिफिकेट नहीं दिया जाएगा।
जेपी की तरफ से कोर्ट में दलील दी गई थी कि इन इलाकों में करीब चार हजार फ्लैट तैयार हो चुके हैं। ऐसे में अगर नोएडा अथॉरिटी फ्लैट्स के कम्पलीशन सर्टिफिकेट जारी नहीं करता है तो खरीददारों को फ्लैट्स पर कब्जा नहीं मिल सकेगा।
कोर्ट के इस फैसले से नोएडा में जेपी इंफ्रास्ट्रक्चर के अलावा ओखला पक्षी विहार के दायरे में आने वाले आम्रपाली, एटीएस, लॉजिक्स, गुलशन, सुपरटेक और अजनारा जैसे रीयल एस्टेट कंपनियों के प्रोजेक्ट प्रभावित होंगे।
इसके अलावा मुंबई की कैंपा कोला सोसायटी का केस भी सामने है जिसमें 25 साल पूर्व बने 96 फ्लैट्स को सुप्रीम कोर्ट ने अवैध मानते हुए उन्हें गिराने का आदेश दे दिया। आज वहां रहने वालों की सासें अटकी हुई हैं। उनके पानी, बिजली व गैस के कनैक्शन काट दिये गये हैं और वो पूरी तरह शासन व प्रशासन के रहमो-करम पर निर्भर हैं।
भ्रष्टाचार से उपजी ऐसी व्यवस्थागत खामियों के चलते नि:संदेह ये हालात किसी एक शहर या एक प्रदेश के नहीं हैं, पूरे देश के हैं। कोई प्रदेश, कोई जिला और यहां तक कि कोई कस्बा इससे अब अछूता नहीं रहा लेकिन खामी लोगों की सोच में भी है।
वह सोच जो ''सब-कुछ चलता है'' के जुमले को आत्मसात कर चुकी है और जिसके कारण भ्रष्टाचार व बेईमानी का कारोबार दिन दूना व रात चौगुना फल-फूल रहा है। जिसके कारण हर सरकारी मुलाजिम और प्रत्येक अफसर रिश्वत से अपनी तिजोरी भरने के लिए कानून को ताक पर रखने में कोई गुरेज़ नहीं करता। फिर चाहे उनकी वजह से आम आदमी की जान व माल पर क्यों न बन आए।
फिलहाल बात करते हैं विश्व के नक्शे में एक विशिष्ट स्थान रखने वाले धार्मिक जनपद मथुरा की।
विकास को परिभाषित करने वाले दूसरे तमाम आयाम भले ही मथुरा में कहीं दिखाई न देते हों परंतु बहुमंजिला इमारतों एवं अप्रूव्ड कॉलोनियों के मामले में यह धार्मिक जनपद दिल्ली एनसीआर से टक्कर लेता प्रतीत होता है।
यहां 9 से लेकर 14 मंजिला तक रिहायशी इमारतें निर्माणाधीन हैं और 3 व 6 मंजिला कई इमारतें बनकर खड़ी हो चुकी हैं।
राष्ट्रीय राजधानी दिल्ली से मात्र 146 किलोमीटर दूर और राष्ट्रीय राजमार्ग नंबर दो के किनारे बसे इस धार्मिक जनपद में तरक्की यदि कहीं दिखाई देती है तो इन इमारतों से ही दिखाई देती है।
इनके अलावा भी यहां एक ओर सैंकड़ों एकड़ में फैली गेटबंद कॉलोनियां हैं तो दूसरी ओर व्यावसायिक कॉम्पलेक्स हैं। जाहिर है कि इन सबको डेवलेपमेंट अथॉरिटी से अप्रूव्ड बताया जाता है और यही प्रचार भी किया जाता है। सड़क के दोनों ओर, छतों और खेत खलिहानों के बीच लगे बड़े-बड़े होड्रिंग्स इसकी पुष्टि कर सकते हैं। यह बात अलग है कि इस सबके बावजूद जनपद में ऐसी अवैध रिहायशी एवं व्यावसायिक इमारतों की संख्या सैंकड़ों में है जिन्हें प्रशासन बाकायदा चिन्हित कर चुका है।
इन अवैध इमारतों की बात फिलहाल छोड़ दी जाए और सिर्फ उन इमारतों की बात की जाए जिन्हें मथुरा-वृंदावन विकास प्राधिकरण से अप्रूव्ड प्रचारित करके रीयल एस्टेट के कारोबारी अपनी जेबें भर रहे हैं, तो उन इमारतों की सच्चाई किसी के भी पैरों के नीचे से जमीन खिसका देने को काफी है।
दरअसल जिन रेजीडेंशियल व कॉमर्शियल इमारतों को डेवलेपमेंट अथॉर्टी से अप्रूव्ड प्रचारित किया जाता है, उनका कोई एक हिस्सा ही अप्रूव्ड होता है और बाकी सब प्रस्तावित रहता है। भ्रष्टाचार पर भरोसे के चलते रीयल एस्टेट के कारोबारी न केवल पूरे प्रोजेक्ट को अप्रूव्ड प्रचारित कर देते हैं बल्कि भूकंपरोधी जैसी अनेक खूबियों से सुसज्जित बताते हैं जबकि किसी भी भवन को भूकंपरोधी बनाने की एक जटिल प्रक्रिया है। इस प्रक्रिया में सॉइल टेस्ट (मृदा परीक्षण) से लेकर निर्माण में इस्तेमाल की जाने वाली सामग्री की गुणवत्ता तक शामिल है और इन सबके अलग-अलग विशेषज्ञ होते हैं जो निर्माण के साथ-साथ उसके लिए सर्टीफिकेट जारी करते हैं।
डेवलेपमेंट अथॉर्टी का काम केवल नक्शा पास करने भर का न होकर, वह सब देखना भी है जिसके बारे में बिल्डर विज्ञापनों के जरिए प्रचाारित कर रहा है लेकिन आज तक किसी फर्जी विज्ञापन पर अथॉरिटी ने कोई कार्यवाही की हो, ऐसा संज्ञान में नहीं आया जबकि ऐसे ढेरों विज्ञापन सामने हैं।
मथुरा-वृंदावन विकास प्राधिकरण के ही सूत्र बताते हैं कि अप्रूवल की आड़ में निर्माणाधीन कोई प्रोजेक्ट ऐसा नहीं है जहां अनियमितताएं न बरती जा रही हों।
कई बड़े प्रोजेक्ट तो ऐसे हैं जिनका आधे से अधिक हिस्सा अवैध है लेकिन उनके खिलाफ कोई कार्यवाही आज तक अमल में नहीं लाई गई।
राष्ट्रीय राजमार्ग के किनारे शहर में बन रहे ऐसे प्रोजेक्ट्स पर आश्चर्यजनक रूप से बैंके भी फाइनेंस कर रही हैं।
सूत्रों की मानें तो कई प्रोजेक्ट मालिकों ने बैंकों को भी धोखे में रखा हुआ है, यहां तक कि संबंधित विभागों की नकली स्टांप लगाकर फर्जी नक्शा आदि जमा करा दिया गया है और उन्हीं के आधार पर बैंकें फाइनेंस कर रही हैं।
चूंकि हाउसिंग फाइनेंस करने वाली अधिकांश बैंकों के लीगल एडवाजर, फील्ड ऑफीसर एवं मैनेजर आदि सब बिल्डर से सेट होते हैं, साथ ही कर्ज लेने वाले से भी सुविधा शुल्क प्राप्त करते हैं, इसलिए वह किसी डॉक्यूमेंट के असली होने की पुष्टि नहीं करते। विशेष रूप से यह तो कतई नहीं देखते कि जिस जमीन पर प्रोजेक्ट खड़ा किया जा रहा है, उसकी असलियत क्या है।
वह केवल डेवलेपमेंट अथॉरिटी की परमीशन भर देखकर संतुष्ट हो जाते हैं।
दूसरी ओर एक अदद घर अपना होने का सपना पाले बैठा व्यक्ति यह मान लेता है कि जब बैंक को कर्ज देने में आपत्ति नहीं है, तो सब-कुछ ठीक ही होगा।
यदि कभी कोई व्यक्ति बिल्डर से जमीन के कागजातों अथवा नक्शे आदि की मांग करता है तो उससे कह दिया जाता है कि सबके लिए अलग-अलग कहां तक बांटेंगे लिहाजा बैंक में सारे पेपर जमा हैं, आप अपना फाइनेंस कराइए। कोई परेशानी आए, तब बताइयेगा।
उधर दलालों से हर वक्त घिरे रहने वाले विकास प्राधिकरण के अधिकारियों को यह देखने की फुर्सत नहीं मिलती कि अप्रूवल की आड़ के बाद विकास कैसा व कितना हो रहा है।
विकास प्राधिकरण के अधिकारी अपनी जिम्मेदारी सुविधा शुल्क के साथ केवल डेवलेपमेंट चार्ज वसूलने तक निभाते हैं, उसके बाद बिल्डर कितना और क्या घालमेल कर रहा है, इससे उन्हें कोई लेना-देना नहीं। यही कारण है कि कल तक एक जैसे मकानों से सुसज्जित कॉलोनियों में आज लोग मनमाफिक निर्माण बेखौफ कराते जा रहे हैं लेकिन न कोई देखने वाला है और न सुनने वाला।
और तो और बिल्डर्स से भारी भरकम डेवलेपमेंट चार्ज वसूलने वाले विभाग ने आज तक किसी अपनी कॉलोनी में कोई विकास कार्य कराया हो, ऐसी सूचना नहीं मिली है।
प्राधिकरण से अप्रूव्ड पॉश कॉलोनियों का सीवर आस-पास के नालों में समा रहा है और इन कॉलोनियों में बिजली, पानी व सड़क तक की व्यवस्था चरमराने लगी है।
इन सबसे अलग लगभग हर अच्छी कॉलोनी का कोई न कोई हिस्सा विवादित है और उसका विवाद किसी न किसी स्तर पर लंबित है लेकिन अधिकांश लोगों को इसकी जानकारी तक नहीं है। लोगों को बाकायदा एक सुनियोजित तरीके से अंधेरे में रखा जाता है। बाद में यदि किसी हाउस होल्डर को सच्चाई पता भी लगती है तो उसके पास हाथ मलने के अलावा कुछ नहीं रह जाता।
ठीक उसी तरह जिस तरह आज कैंपा कोला सोसायटी के वाशिंदे अथवा नोएडा में नामचीन बिल्डर्स के प्रोजेक्ट में पैसा फंसा चुके लोगों के साथ हो रहा है।
आज इन लोगों का साथ देने को न कोई डेवलेपमेंट अथॉरिटी सामने आ रही है और न कोई दूसरी अथॉरिटी। सब अपने-अपने हिस्से का माल मारकर तमाशा देख रहे हैं। न्यायपालिकाएं भी कोई मदद नहीं कर पातीं क्योंकि वह केवल दस्तावेजी सबूत देखती हैं। उनका कहना अपनी जगह सही है कि पैसा फंसाने से पहले बिल्डर के सभी दावों की सच्चाई पता करना, खरीदार का काम है। यदि वह आंखें बंद करके अपनी पूंजी फंसाते हैं तो दोषी वह भी कम नहीं।
यही कारण है कि कैंपा कोला सोसायटी और जेपी ग्रुप के मामले में कोर्ट काफी सख्त नजर आईं।
कोर्ट की ऐसी सख्ती ताकीद करती है कि अपने एक अदद आशियाने का सपना देखने वालों को आंख बंद करके बिल्डर या उसके कथित अप्रूवल एवं प्रचार पर भरोसा करने की बजाय, खुद सारे दस्तावेजों का सत्यापन कर लेना चाहिए अन्यथा एक दिन वह भी सड़क पर खाली हाथ खड़े दिखाई देंगे और तब उनकी मदद करने वाला कोई नहीं होगा।
मथुरा को बेशक समूची दुनिया में एक धर्म नगरी के तौर पर पहचाना जाता है लेकिन याद रहे कि पापकर्मों के लिए धर्म ही सबसे बड़ी आड़ का काम करता है और यह बात न केवल बेईमान कारोबारी भली-भांति जानते हैं बल्कि वो अधिकारी भी जानते हैं जो आने के साथ तो कहते हैं कि वह ब्रजभूमि की सेवा करने आएं हैं लेकिन जैसे ही पहले से मुंह लगा खून सामने नजर आता है, ब्रजभूमि व ब्रजवासी, सबको भुला देते हैं।
यह खबर उन लोगों के लिए है जो अपनी मेहनत की कमाई से अपने एक अदद आशियाने का सपना पूरा करना चाहते हैं।
यह खबर उन लोगों के लिए भी है जो अपने परिवार का सिर ढंकने की खातिर जिंदगीभर के लिए अपने सिर पर बैंक का ऐसा कर्ज लाद लेते हैं, जिसकी भरपाई करना नामुमकिन न सही लेकिन बहुत कठिन अवश्य हो जाता है।
उन लोगों के लिए भी है यह खबर जो डेवलेपमेंट अथॉरिटी से अप्रूवल का विज्ञापन भर देखकर बिल्डर या प्रमोटर पर आंख बंद करके भरोसा कर लेते हैं और उसके द्वारा दिखाए जाने वाले सब्ज़बागों का कहीं किसी स्तर से सत्यापन नहीं करते।
हाल ही में देश की सर्वोच्च अदालत ने नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल यानि एनजीटी के फैसले पर अपनी मोहर लगाते हुए रीयल एस्टेट का बड़ा नाम जेपी इंफ्रास्ट्रक्चर की याचिका को खारिज कर दिया। यह याचिका ओखला पक्षी विहार के आसपास चल रहे निर्माण कार्य पर एनजीटी द्वारा रोक लगाये जाने के खिलाफ थी। कोर्ट के इस फैसले के बाद करीब 20 हजार लोगों का फ्लैट मिलने का सपना अधर में लटक गया है।
एनजीटी ने 28 अक्टूबर, 2013 को अपने फैसले में कहा था कि ओखला पक्षी विहार के दस किलोमीटर का दायरा पर्यावरणीय और पारिस्थितिकीय दृष्टि से संवेदनशील क्षेत्र में आता है। ऐसे में यहां बन रही इमारतों को कम्प्लीशन सर्टिफिकेट नहीं दिया जाएगा।
जेपी की तरफ से कोर्ट में दलील दी गई थी कि इन इलाकों में करीब चार हजार फ्लैट तैयार हो चुके हैं। ऐसे में अगर नोएडा अथॉरिटी फ्लैट्स के कम्पलीशन सर्टिफिकेट जारी नहीं करता है तो खरीददारों को फ्लैट्स पर कब्जा नहीं मिल सकेगा।
कोर्ट के इस फैसले से नोएडा में जेपी इंफ्रास्ट्रक्चर के अलावा ओखला पक्षी विहार के दायरे में आने वाले आम्रपाली, एटीएस, लॉजिक्स, गुलशन, सुपरटेक और अजनारा जैसे रीयल एस्टेट कंपनियों के प्रोजेक्ट प्रभावित होंगे।
इसके अलावा मुंबई की कैंपा कोला सोसायटी का केस भी सामने है जिसमें 25 साल पूर्व बने 96 फ्लैट्स को सुप्रीम कोर्ट ने अवैध मानते हुए उन्हें गिराने का आदेश दे दिया। आज वहां रहने वालों की सासें अटकी हुई हैं। उनके पानी, बिजली व गैस के कनैक्शन काट दिये गये हैं और वो पूरी तरह शासन व प्रशासन के रहमो-करम पर निर्भर हैं।
भ्रष्टाचार से उपजी ऐसी व्यवस्थागत खामियों के चलते नि:संदेह ये हालात किसी एक शहर या एक प्रदेश के नहीं हैं, पूरे देश के हैं। कोई प्रदेश, कोई जिला और यहां तक कि कोई कस्बा इससे अब अछूता नहीं रहा लेकिन खामी लोगों की सोच में भी है।
वह सोच जो ''सब-कुछ चलता है'' के जुमले को आत्मसात कर चुकी है और जिसके कारण भ्रष्टाचार व बेईमानी का कारोबार दिन दूना व रात चौगुना फल-फूल रहा है। जिसके कारण हर सरकारी मुलाजिम और प्रत्येक अफसर रिश्वत से अपनी तिजोरी भरने के लिए कानून को ताक पर रखने में कोई गुरेज़ नहीं करता। फिर चाहे उनकी वजह से आम आदमी की जान व माल पर क्यों न बन आए।
फिलहाल बात करते हैं विश्व के नक्शे में एक विशिष्ट स्थान रखने वाले धार्मिक जनपद मथुरा की।
विकास को परिभाषित करने वाले दूसरे तमाम आयाम भले ही मथुरा में कहीं दिखाई न देते हों परंतु बहुमंजिला इमारतों एवं अप्रूव्ड कॉलोनियों के मामले में यह धार्मिक जनपद दिल्ली एनसीआर से टक्कर लेता प्रतीत होता है।
यहां 9 से लेकर 14 मंजिला तक रिहायशी इमारतें निर्माणाधीन हैं और 3 व 6 मंजिला कई इमारतें बनकर खड़ी हो चुकी हैं।
राष्ट्रीय राजधानी दिल्ली से मात्र 146 किलोमीटर दूर और राष्ट्रीय राजमार्ग नंबर दो के किनारे बसे इस धार्मिक जनपद में तरक्की यदि कहीं दिखाई देती है तो इन इमारतों से ही दिखाई देती है।
इनके अलावा भी यहां एक ओर सैंकड़ों एकड़ में फैली गेटबंद कॉलोनियां हैं तो दूसरी ओर व्यावसायिक कॉम्पलेक्स हैं। जाहिर है कि इन सबको डेवलेपमेंट अथॉरिटी से अप्रूव्ड बताया जाता है और यही प्रचार भी किया जाता है। सड़क के दोनों ओर, छतों और खेत खलिहानों के बीच लगे बड़े-बड़े होड्रिंग्स इसकी पुष्टि कर सकते हैं। यह बात अलग है कि इस सबके बावजूद जनपद में ऐसी अवैध रिहायशी एवं व्यावसायिक इमारतों की संख्या सैंकड़ों में है जिन्हें प्रशासन बाकायदा चिन्हित कर चुका है।
इन अवैध इमारतों की बात फिलहाल छोड़ दी जाए और सिर्फ उन इमारतों की बात की जाए जिन्हें मथुरा-वृंदावन विकास प्राधिकरण से अप्रूव्ड प्रचारित करके रीयल एस्टेट के कारोबारी अपनी जेबें भर रहे हैं, तो उन इमारतों की सच्चाई किसी के भी पैरों के नीचे से जमीन खिसका देने को काफी है।
दरअसल जिन रेजीडेंशियल व कॉमर्शियल इमारतों को डेवलेपमेंट अथॉर्टी से अप्रूव्ड प्रचारित किया जाता है, उनका कोई एक हिस्सा ही अप्रूव्ड होता है और बाकी सब प्रस्तावित रहता है। भ्रष्टाचार पर भरोसे के चलते रीयल एस्टेट के कारोबारी न केवल पूरे प्रोजेक्ट को अप्रूव्ड प्रचारित कर देते हैं बल्कि भूकंपरोधी जैसी अनेक खूबियों से सुसज्जित बताते हैं जबकि किसी भी भवन को भूकंपरोधी बनाने की एक जटिल प्रक्रिया है। इस प्रक्रिया में सॉइल टेस्ट (मृदा परीक्षण) से लेकर निर्माण में इस्तेमाल की जाने वाली सामग्री की गुणवत्ता तक शामिल है और इन सबके अलग-अलग विशेषज्ञ होते हैं जो निर्माण के साथ-साथ उसके लिए सर्टीफिकेट जारी करते हैं।
डेवलेपमेंट अथॉर्टी का काम केवल नक्शा पास करने भर का न होकर, वह सब देखना भी है जिसके बारे में बिल्डर विज्ञापनों के जरिए प्रचाारित कर रहा है लेकिन आज तक किसी फर्जी विज्ञापन पर अथॉरिटी ने कोई कार्यवाही की हो, ऐसा संज्ञान में नहीं आया जबकि ऐसे ढेरों विज्ञापन सामने हैं।
मथुरा-वृंदावन विकास प्राधिकरण के ही सूत्र बताते हैं कि अप्रूवल की आड़ में निर्माणाधीन कोई प्रोजेक्ट ऐसा नहीं है जहां अनियमितताएं न बरती जा रही हों।
कई बड़े प्रोजेक्ट तो ऐसे हैं जिनका आधे से अधिक हिस्सा अवैध है लेकिन उनके खिलाफ कोई कार्यवाही आज तक अमल में नहीं लाई गई।
राष्ट्रीय राजमार्ग के किनारे शहर में बन रहे ऐसे प्रोजेक्ट्स पर आश्चर्यजनक रूप से बैंके भी फाइनेंस कर रही हैं।
सूत्रों की मानें तो कई प्रोजेक्ट मालिकों ने बैंकों को भी धोखे में रखा हुआ है, यहां तक कि संबंधित विभागों की नकली स्टांप लगाकर फर्जी नक्शा आदि जमा करा दिया गया है और उन्हीं के आधार पर बैंकें फाइनेंस कर रही हैं।
चूंकि हाउसिंग फाइनेंस करने वाली अधिकांश बैंकों के लीगल एडवाजर, फील्ड ऑफीसर एवं मैनेजर आदि सब बिल्डर से सेट होते हैं, साथ ही कर्ज लेने वाले से भी सुविधा शुल्क प्राप्त करते हैं, इसलिए वह किसी डॉक्यूमेंट के असली होने की पुष्टि नहीं करते। विशेष रूप से यह तो कतई नहीं देखते कि जिस जमीन पर प्रोजेक्ट खड़ा किया जा रहा है, उसकी असलियत क्या है।
वह केवल डेवलेपमेंट अथॉरिटी की परमीशन भर देखकर संतुष्ट हो जाते हैं।
दूसरी ओर एक अदद घर अपना होने का सपना पाले बैठा व्यक्ति यह मान लेता है कि जब बैंक को कर्ज देने में आपत्ति नहीं है, तो सब-कुछ ठीक ही होगा।
यदि कभी कोई व्यक्ति बिल्डर से जमीन के कागजातों अथवा नक्शे आदि की मांग करता है तो उससे कह दिया जाता है कि सबके लिए अलग-अलग कहां तक बांटेंगे लिहाजा बैंक में सारे पेपर जमा हैं, आप अपना फाइनेंस कराइए। कोई परेशानी आए, तब बताइयेगा।
उधर दलालों से हर वक्त घिरे रहने वाले विकास प्राधिकरण के अधिकारियों को यह देखने की फुर्सत नहीं मिलती कि अप्रूवल की आड़ के बाद विकास कैसा व कितना हो रहा है।
विकास प्राधिकरण के अधिकारी अपनी जिम्मेदारी सुविधा शुल्क के साथ केवल डेवलेपमेंट चार्ज वसूलने तक निभाते हैं, उसके बाद बिल्डर कितना और क्या घालमेल कर रहा है, इससे उन्हें कोई लेना-देना नहीं। यही कारण है कि कल तक एक जैसे मकानों से सुसज्जित कॉलोनियों में आज लोग मनमाफिक निर्माण बेखौफ कराते जा रहे हैं लेकिन न कोई देखने वाला है और न सुनने वाला।
और तो और बिल्डर्स से भारी भरकम डेवलेपमेंट चार्ज वसूलने वाले विभाग ने आज तक किसी अपनी कॉलोनी में कोई विकास कार्य कराया हो, ऐसी सूचना नहीं मिली है।
प्राधिकरण से अप्रूव्ड पॉश कॉलोनियों का सीवर आस-पास के नालों में समा रहा है और इन कॉलोनियों में बिजली, पानी व सड़क तक की व्यवस्था चरमराने लगी है।
इन सबसे अलग लगभग हर अच्छी कॉलोनी का कोई न कोई हिस्सा विवादित है और उसका विवाद किसी न किसी स्तर पर लंबित है लेकिन अधिकांश लोगों को इसकी जानकारी तक नहीं है। लोगों को बाकायदा एक सुनियोजित तरीके से अंधेरे में रखा जाता है। बाद में यदि किसी हाउस होल्डर को सच्चाई पता भी लगती है तो उसके पास हाथ मलने के अलावा कुछ नहीं रह जाता।
ठीक उसी तरह जिस तरह आज कैंपा कोला सोसायटी के वाशिंदे अथवा नोएडा में नामचीन बिल्डर्स के प्रोजेक्ट में पैसा फंसा चुके लोगों के साथ हो रहा है।
आज इन लोगों का साथ देने को न कोई डेवलेपमेंट अथॉरिटी सामने आ रही है और न कोई दूसरी अथॉरिटी। सब अपने-अपने हिस्से का माल मारकर तमाशा देख रहे हैं। न्यायपालिकाएं भी कोई मदद नहीं कर पातीं क्योंकि वह केवल दस्तावेजी सबूत देखती हैं। उनका कहना अपनी जगह सही है कि पैसा फंसाने से पहले बिल्डर के सभी दावों की सच्चाई पता करना, खरीदार का काम है। यदि वह आंखें बंद करके अपनी पूंजी फंसाते हैं तो दोषी वह भी कम नहीं।
यही कारण है कि कैंपा कोला सोसायटी और जेपी ग्रुप के मामले में कोर्ट काफी सख्त नजर आईं।
कोर्ट की ऐसी सख्ती ताकीद करती है कि अपने एक अदद आशियाने का सपना देखने वालों को आंख बंद करके बिल्डर या उसके कथित अप्रूवल एवं प्रचार पर भरोसा करने की बजाय, खुद सारे दस्तावेजों का सत्यापन कर लेना चाहिए अन्यथा एक दिन वह भी सड़क पर खाली हाथ खड़े दिखाई देंगे और तब उनकी मदद करने वाला कोई नहीं होगा।
मथुरा को बेशक समूची दुनिया में एक धर्म नगरी के तौर पर पहचाना जाता है लेकिन याद रहे कि पापकर्मों के लिए धर्म ही सबसे बड़ी आड़ का काम करता है और यह बात न केवल बेईमान कारोबारी भली-भांति जानते हैं बल्कि वो अधिकारी भी जानते हैं जो आने के साथ तो कहते हैं कि वह ब्रजभूमि की सेवा करने आएं हैं लेकिन जैसे ही पहले से मुंह लगा खून सामने नजर आता है, ब्रजभूमि व ब्रजवासी, सबको भुला देते हैं।
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