गुरुवार, 29 दिसंबर 2016

समाजवादी पार्टी के अंदर जल्‍द हो सकता है बड़ा विस्‍फोट, अखिलेश कर सकते हैं नई पार्टी का ऐलान

समाजवादी पार्टी में इन दिनों सतही तौर पर दिखाई दे रही शांति दरअसल उस तूफान का आगाज़ है जो चुनावों की विधिवत घोषणा से पहले किसी भी समय आने वाला है।
पार्टी के ही अति विश्‍वसनीय सूत्रों की मानें तो नोटबंदी के बाद अचानक समाजवादी पार्टी में सुलह का जो दिखावा किया गया, वह सिर्फ रोज-रोज हो रही छीछालेदर से बचने का उपक्रम भर था। हकीकत में कहीं कुछ बदला नहीं था।
बहुत तेजी से यदि कुछ बदल रहा था तो वह थीं निष्‍ठाएं। ये बदली हुई निष्‍ठाएं ही अब राख के ढेर में दबी हुई चिंगारी का काम कर रही हैं।
बताया जाता है कि प्रदेश अध्‍यक्ष की कुर्सी पर काबिज होने के बाद जिस तरह चचा शिवपाल यादव चुन-चुनकर अखिलेश के खास लोगों की टिकट काट रहे हैं, उससे अखिलेश का पारा सातवें आसमान तक जा पहुंचा है।
स्‍थिति-परिस्‍थितियों के मद्देनजर अखिलेश ने पहले भी इस तरह की मांग रखी थी कि उम्‍मीदवारों के चयन में उनका दखल रखा जाए किंतु अखिलेश की मांग को चचा शिवपाल के साथ-साथ नेताजी ने भी तवज्‍जो नहीं दी।
अखिलेश की मांग के विपरीत चचा शिवपाल ने एक ओर जहां उनके नजदीकियों की टिकट काटना शुरू कर दिया वहीं दूसरी ओर उन माफियाओं की उम्‍मीदवारी पर मोहर लगा दी जो अखिलेश को फूटी आंख नहीं सुहाते।
पार्टी सूत्रों के मुताबिक चचा शिवपाल के इस कारनामे ने राख के ढेर में दबी चिंगारियों को हवा देने का काम किया, नतीजतन अखिलेश ने आर-पार की लड़ाई लड़ने का मन बना लिया है।
आमसभाओं में अखिलेश भले ही विवादास्‍पद मुद्दों पर यह कहकर पल्‍ला झाड़ लेते हों कि इन मुद्दों पर निर्णय नेताजी लेंगे किंतु खास मौकों पर अखिलेश यह जताना नहीं भूलते कि उनकी सहमति के बिना कुछ नहीं हो पाएगा। बड़े निर्णय उनकी मोहर लगे बिना किसी मुकाम तक नहीं पहुंच सकते। फिर चाहे बात कांग्रेस के साथ चुनावी गठबंधन की हो अथवा उम्‍मीदवारों को फाइनल करने की।
यही कारण है कि हाल ही में उन्‍होंने एक कार्यक्रम के दौरान यहां तक कह दिया था कि कोई साथ हो या न हो, यदि जनता साथ है तो एकबार फिर मेरी सरकार बनने से कोई नहीं रोक सकता।
पार्टी सूत्रों के अनुसार फिलहाल चचा-भतीजे के बीच प्रतिष्‍ठा का सबसे बड़ा मुद्दा या यूं कहें कि नाक की लड़ाई, पार्टी के प्रदेश अध्‍यक्ष पद को लेकर है।
पार्टी के सूत्र बताते हैं कि अखिलेश ने इस मुद्दे पर पार्टी और परिवार के बीच साफ संदेश भी दे दिया है। अखिलेश ने कह दिया है कि या तो चचा से प्रदेश अध्‍यक्ष का पद छीनकर उसकी कमान उनके हाथों में सौंप दी जाए ताकि वह जिताऊ उम्‍मीदवारों को मैदान में उतारकर दोबारा सपा की सरकार बनाने का मार्ग प्रशस्‍त किया जा सके अन्‍यथा वह अपना अलग मार्ग चुन लेंगे। अखिलेश ने इसके लिए समय भी निर्धारित कर दिया है। यानि जो करना है, वह निर्वाचन आयोग की घोषणा से पहले।
गौरतलब है कि इसी महीने निर्वाचन आयोग द्वारा उत्‍तर प्रदेश में चुनावों की तिथियां घोषित किए जाने की पूरी उम्‍मीद है और उसके बाद आदर्श आचार संहिता लागू हो जाएगी। अखिलेश इससे पहले ही अपने राजनीतिक भविष्‍य की दिशा तय कर लेना चाहते हैं।
बताया जाता है कि समय रहते यदि नेताजी ने अखिलेश के मन मुताबिक शिवपाल यादव को किनारे नहीं लगाया और प्रदेश अध्‍यक्ष की कमान अखिलेश को नहीं सौंपी तो अखिलेश अपनी अलग राह पर चलने का ऐलान कर सकते हैं। वह उत्‍तराधिकार की लड़ाई को दरकिनार कर नई पार्टी के गठन की घोषणा कर सकते हैं।
और अगर ऐसा होता है तो निश्‍चित ही समाजवादी पार्टी इन चुनावों में मुख्‍य मुकाबले से बाहर हो जाएगी। यह बात अलग है कि उसके बाद निगाहें पूरी तरह अखिलेश की परफॉरमेंस पर टिकी होंगी और अखिलेश की परफॉरमेंस ही यह तय करेगी कि समाजवादी पार्टी का भविष्‍य क्‍या होगा।
- सुरेंन्‍द्र  चतुर्वेदी

सोमवार, 5 दिसंबर 2016

बलात्‍कार के आरोपी से Chief justice का मिलना बन सकता है बड़े विवाद का कारण

इलाहाबाद हाई कोर्ट के Chief justice दिलीप बाबा साहब भोसले की मथुरा यात्रा के दौरान बलात्‍कार के एक आरोपी से मुलाकात बड़े विवाद का कारण बन सकती है। दरअसल, जिस व्‍यक्‍ति के साथ चीफ जस्‍टिस भोसले को हाथ मिलाते हुए फोटो सोशल साइट पर डाले गए हैं, उसी व्‍यक्‍ति के खिलाफ बलात्‍कार जैसे संगीन अपराध का यह मामला चीफ जस्‍टिस भोसले की ही अदालत में लंबित है।
सोशल साइट पर चीफ जस्‍टिस भोसले से अपनी मुलाकात के फोटो बलात्‍कार के इसी आरोपी द्वारा शेयर किए गए हैं जिनसे साफ जाहिर होता है कि उसका चीफ जस्‍टिस से मुलाकात करने का उद्देश्‍य क्‍या था। हालांकि, यह संभव है कि चीफ जस्‍टिस भोसले को इस मुलाकाती की असलियत और अपने यहां उसके खिलाफ लंबित बलात्‍कार के मामले की जानकारी न हो किंतु विधि विशेषज्ञों के अनुसार चीफ जस्‍टिस भोसले का इस तरह मुलाकात करना न सिर्फ प्रोटोकॉल के खिलाफ है बल्‍कि सुप्रीम कोर्ट द्वारा इस संबंध में जारी गाइड लाइंस की अवहेलना भी है।
cjbhosle-kkउल्‍लेखनीय है कि इलाहाबाद उच्‍च न्‍यायालय के चीफ जस्‍टिस डीबी भोसले गत शनिवार को अपनी पत्‍नी सहित मथुरा आए थे। इस दौरान वह मथुरा में भगवान द्वारिकाधीश तथा वृंदावन में ठाकुर बांके बिहारी के दर्शन करने भी गए।
इसी दौरान चीफ जस्‍टिस से एनयूजेआई के कार्यकारिणी सदस्य, उपजा के प्रदेश उपाध्यक्ष व ब्रज प्रेस क्लब के अध्यक्ष कमलकांत उपमन्यु एडवोकेट ने भी एक कथित प्रतिनिधमंडल के साथ शिष्‍टचार मुलाकात की। एडवोकेट के लिबास काले कोट व कॉलर बैंड में की गई इस मुलाकात के दौरान चीफ जस्‍टिस भोसले, कमलकांत उपमन्‍यु से बड़ी गर्मजोशी के साथ हाथ मिलते हुए दिखाई दिए जबकि बाकी पत्रकारगण हाथ बांधे खड़े नजर आए।
कमलकांत उपमन्‍यु ने उसी दिन शाम को चीफ जस्‍टिस भोसले से अपनी इस मुलाकात के फोटो पूरी न्‍यूज़ सहित अपनी दोनों फेसबुक आईडी पर शेयर भी किए। कमलकांत उपमन्‍यु की एक फेसबुक आईडी कमलकांत उपमन्‍यु के नाम से है जबकि दूसरी कमलकांत उपमन्‍यु II के नाम पर है।
क्‍या है पूरा मामला:
मथुरा में पंजाब केसरी के रिपोर्टर कमलकांत उपमन्‍यु के खिलाफ एक लड़की द्वारा अपने साथ दुराचार तथा यौन उत्‍पीड़न सहित अपने परिचितों को जान से मारने की धमकी देने जैसे संगीन आरोप वर्ष 2014 के दिसंबर माह में लगाये गए। तब मथुरा की एसएसपी मंजिल सैनी हुआ करती थीं। मंजिल सैनी फिलहाल लखनऊ की एसएसपी हैं।
cj-1-kkमंजिल सैनी से अति घनिष्‍ठता के चलते कमलकांत उपमन्‍यु के खिलाफ पहले तो बलात्‍कार का अपराध पंजीकृत ही नहीं किया गया और पीड़िता द्वारा तहरीर दिए जाने के बावजूद उस पर जांच के आदेश कर दिए गए। शहर में इस मामले को लेकर काफी आक्रोश पैदा होने के उपरांत बमुश्‍किल 06 दिसंबर 2014 को थाना हाईवे में आईपीसी की धारा 376 व 506 मुकद्दमा अपराध संख्‍या 944/ 2014 के तहत एफआई आर दर्ज की गई किंतु आरोपी की गिरफ्तारी फिर भी नहीं हुई।
हां, इतना जरूर हुआ कि पब्‍लिक के दबाव में एसएसपी को पीड़िता का मैडिकल कराना पड़ा और उसके बाद 161 तथा 164 के बयान भी दर्ज कराने पड़े। इस आधार पर आरोपी पत्रकार के खिलाफ 82 की कार्यवाही हुई तथा अदालत से वारंट भी जारी किए गए लेकिन इस सब के बावजूद मथुरा पुलिस कमलकांत उपमन्‍यु की गिरफ्तारी सुनिश्‍चित नहीं कर सकी।
मंजिल सैनी ने तो पीड़िता के परिवार को दबाव में लेने के लिए उसके सगे भाई पर ही एक मुकद्दमा दर्ज करा दिया जो बाद में झूठा साबित हुआ।
बताया जाता है कि एसएसपी मंजिल सैनी आरोपी कमलकांत उपमन्‍यु से अपनी निकटता के चलते उन्‍हें अपने बचाव तथा मामले को रफा-दफा करने का पूरा मौका दे रही थीं।
हुआ भी यही। कमलकांत उपमन्‍यु ने मथुरा पुलिस से मिले इस मौके का लाभ उठाकर तत्‍कालीन डीजीपी आनंद लाल बनर्जी से किसी तरह सेटिंग कर ली और अपने सगे भाई त्रिभुवन उपमन्‍यु के प्रार्थना पत्र पर अपने खिलाफ जांच को फिरोजाबाद ट्रांसफर करा लिया। चूंकि सारा मामला सेटिंग से हुआ था इसलिए फिरोजाबाद पुलिस ने इस मामले में फाइनल रिपोर्ट दाखिल कर दी।
इस बीच मथुरा बार एसोसिएशन के तत्‍कालीन अध्‍यक्ष एडवोकेट विजयपाल तोमर ने जांच ट्रांसफर किए जाने के खिलाफ इलाहाबाद हाईकोर्ट में एक जनहित याचिका दायर की जिसकी सुनवाई तत्‍कालीन चीफ जस्‍टिस डी वाई चंद्रचूढ़ के यहां हुई।
चीफ जस्‍टिस डी वाई चंद्रचूढ़ ने प्रथम दृष्‍ट्या इस मामले की गंभीरता के मद्देनजर बहुत सख्‍त आदेश-निर्देश जारी किए।
डी वाई चंद्रचूढ़ का प्रमोशन हो जाने के बाद यह मामला जस्‍टिस अरुण टंडन तथा जस्‍टिस सुनीता अग्रवाल की डिवीजन बैंच में स्‍थानांतरित हो गया। माननीय टंडन तथा सुनीता अग्रवाल ने इस मामले की सुनवाई करते हुए 12 जुलाई 2016 के अपने आदेश में मुख्‍यमंत्री उत्‍तर प्रदेश अखिलेश यादव के स्‍पेशल ऑफीसर इंचार्ज जगजीवन प्रसाद, डीजीपी उत्‍तर प्रदेश तथा एसएसपी मथुरा को 25 जुलाई तक अपने-अपने शपथपत्र दाखिल करने को कहा। कोर्ट ने अपने आदेश में यह भी पूछा कि जिस तरह से बलात्‍कार पीड़िता के कोर्ट में बयान होने के बावजूद जांच ट्रांसफर कर दी गई, उसे देखते हुए क्‍यों न यह मामला सीबीआई के सुपुर्द कर दिया जाए।
हाईकोर्ट के आदेश का पालन करते हुए तत्‍कालीन डीजीपी आनंद लाल बनर्जी व तत्‍कलीन एसएसपी मथुरा मंजिल सैनी ने तो अपने-अपने जवाब सहित शपथ पत्र दाखिल कर दिए किंतु सीएम के स्‍पेशल ऑफीसर इंचार्ज जगजीवन प्रसाद ने अपना जवाब दाखिल नहीं किया।
शासन के अनुरोध पर हाईकोर्ट ने जगजीवन प्रसाद को जवाब दाखिल करने के लिए कुछ समय और देते हुए अगली तारीख 08 अगस्‍त मुकर्रर कर दी।
इसके बाद चीफ जस्‍टिस के पद पर दिलीप बाबा साहब भोसले की नियुक्‍ति हो जाने के कारण यह मामला स्‍वाभाविक रूप से उनकी अदालत में आ गया, और काफी दिनों तक अनलिस्‍टेड रहा ताकि इसकी सुनवाई प्राथमिकता के आधार पर की जा सके किंतु विभिन्‍न कारणों से इसकी सुनवाई प्राथमिकता के आधार पर नहीं की जा सकी।
प्राप्‍त जानकारी के अनुसार गत माह इसे मार्च 2017 के लिए लिस्‍टेड किया गया है लेकिन पेंडिंग मुकद्दमों की तादाद तथा अदालती प्रक्रिया को देखते हुए इस बात की संभावना काफी कम है कि मार्च 2017 में भी इस मामले की सुनवाई हो पाएगी।
इसी सबके चलते अब आरोपी कमलकांत उपमन्‍यु का मथुरा में चीफ जस्‍टिस से मिलना और चीफ जस्‍टिस का उससे बड़ी गर्मजोशी के साथ हाथ मिलाते हुए फोटो सार्वजनिक होना बड़े विवाद का विषय बन सकता है क्‍योंकि चीफ जस्‍टिस की ऐसी कोई मुलाकात किसी के साथ होना उनके कार्यक्रम का हिस्‍सा नहीं था। आरोपी कमलकांत उपमन्‍यु चूंकि खुद को पत्रकार के साथ-साथ वकील भी मानता है इसलिए वह चीफ जस्‍टिस से मुलाकात के वक्‍त वकालत का चोगा भी धारण किए था किंतु चीफ जस्‍टिस की न तो पत्रकारों से कोई वार्ता पूर्व निर्धारित थी और ना ही वकीलों से। संभवत: इसीलिए मथुरा बार एसोसिएशन का कोई पदाधिकारी अथवा प्रेक्‍टिशनर वकील चीफ जस्‍टिस से मिलने नहीं पहुंचा, अलबत्‍ता नॉन प्रेक्‍टिश्‍नर वकील होते हुए आरोपी पत्रकार कमलकांत उपमन्‍यु वकालत के चोगे में उनसे मिला।
ऐसी स्‍थिति में यह सवाल उठना स्‍वाभाविक है कि कमलकांत उपमन्‍यु की चीफ जस्‍टिस से मुलाकत कराने में किसी न किसी ने मध्‍यस्‍थ की भूमिका जरूर अदा की होगी और निश्‍चित तौर पर वह व्‍यक्‍ति न्‍यायपालिका का ही हिस्‍सा होगा क्‍योंकि हाई कोर्ट के चीफ जस्‍टिस जैसी हस्‍ती से बिना किसी तय कार्यक्रम के इस तरह मुलाकात होना संभव नहीं होता।
प्रोटोकॉल को ताक पर रखकर की गई इस मुलाकात और इसके पीछे छिपे उद्देश्‍य की जांच यूं भी जरूरी है कि इससे कानून का भरोसा जुड़ा हुआ है। चीफ जस्‍टिस भोसले की आदलत में ही आगे कमलकांत उपमन्‍यु के खिलाफ सुनवाई होनी है।
आरोपी कमलकांत उपमन्‍यु ने जिस तरह चीफ जस्‍टिस भोसले से हुई अपनी मुलाकात को एक ओर जहां अपनी फेसबुक प्रोफाइल से प्रचारित व प्रसारित किया है और दूसरी ओर प्रमुख समाचार पत्रों में प्रकाशित कराया है, उससे उसकी मंशा तो साफ जाहिर होती ही है।
इन हालातों में चीफ जस्‍टिस भोसले द्वारा बलात्‍कार के आरोपी पत्रकार कमलकांत उपमन्‍यु से हाथ मिलाते हुए फोटो प्रकाशित होने पर सवाल खड़े होंगे ही।
उधर इलाहाबाद हाई कोर्ट में इस मामले को ले जाने वाले याची अधिवक्‍ता विजयपाल तोमर का कहना है कि वह चीफ जस्‍टिस व आरोपी की मुलाकात का मुद्दा सुप्रीम कोर्ट तक ले जाएंगे जिससे इसके पीछे छिपे उद्देश्‍य और मुलाकात तय कराने वाले तत्‍वों का पर्दाफाश हो सके।
-सुरेन्‍द्र चतुर्वेदी
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