शनिवार, 13 अप्रैल 2024

बड़े सवाल: क्या पैसे देकर BSP का टिकट लाए हैं सुरेश चौधरी, और क्या वह BJP के डमी उम्मीदवार हैं?


 महाभारत नायक भगवान श्रीकृष्ण की पावन जन्मस्थली से बहुजन समाज पार्टी (BSP) ने चौधरी सुरेश सिंह को चुनाव मैदान में उतारा है। सुरेश सिंह यूं तो एक उच्च शिक्षित पूर्व सरकारी अधिकारी हैं किंतु चुनावी दृष्‍टिकोण से उनकी विशेषता उनका उस जाट समुदाय से होना है जिसके मतदाताओं की मथुरा लोकसभा क्षेत्र में संख्‍या सर्वाधिक है। 

बसपा उम्मीदवार का पूरा परिचय 
विधानसभा क्षेत्र गोवर्धन के नगला अक्खा निवासी लगभग 62 वर्षीय सुरेश सिंह भारत सरकार के राजस्व विभाग सहित कई अन्य दूसरे विभागों में अपनी सेवाएं दे चुके हैं और फिलहाल लंबे समय से एक आवासीय शिक्षण संस्था का संचालन कर रहे हैं। 
इसके अलावा वह विश्व हिंदू परिषद और अंतर्राष्‍ट्रीय हिंदू परिषद के पदाधिकारी रहे हैं तथा राष्‍ट्रीय स्‍वयं सेवक संघ (RSS) से भी उनका गहरा नाता है। 
क्या पैसा देकर BSP का टिकट लाए हैं सुरेश चौधरी?
सुरेश चौधरी ने बीएसपी से अपनी उम्मीदवारी का टिकट क्या पैसा देकर लिया है, यह सवाल अब इस धर्म नगरी में इसलिए खड़ा हो रहा है क्यों कि बसपा के ही एक अन्य नेता और पत्रकार कमलकांत उपमन्‍यु ने पार्टी पर इस तरह के गंभीर आरोप लगाए हैं। 
दरअसल, कमलकांत उपमन्यु वो पहले व्यक्ति हैं जिनका नाम बसपा ने अपनी दूसरी लिस्‍ट में मथुरा से लोकसभा उम्मीदवार के तौर पर घोषित किया। उससे पहले बसपा के राष्‍ट्रीय महासचिव मुनकाद अली सहित कई अन्य प्रदेश स्तरीय पदाधिकारियों की मौजूदगी में बाकायदा कार्यकर्ता सम्मेलन बुलाकर मीडिया के सामने कमलकांत उपमन्‍यु को मथुरा से चुनाव लड़ाने का ऐलान किया गया, और यह खबर प्रकाशित तथा प्रसारित भी हुई। 
चूंकि कमलकांत उपमन्‍यु इससे पहले 1999 में मथुरा से बसपा की ही टिकट पर लोकसभा का चुनाव लड़ चुके थे और तीसरे नंबर पर रहकर अच्‍छे मत प्राप्‍त किए थे इसलिए इस बार उनकी उम्मीदवारी ने किसी को आश्चर्य में नहीं डाला। लोगों को आश्चर्य तब हुआ जब उन्‍हें पता लगा कि बसपा ने उपमन्‍यु का टिकट काटकर चौधरी सुरेश सिंह को टिकट दे दिया है। 
अब क्या कह रहे हैं कमलकांत उपमन्‍यु 
चुनाव लड़ने की पूरी तैयारी कर चुके कमलकांत उपमन्‍यु को अपना टिकट कटने से झटका लगना तो स्‍वाभाविक था ही किंतु उन्‍होंने यह बताकर मथुरा की जनता को भी सोचने पर मजबूर कर दिया कि पार्टी ने उनका टिकट मुंह मांगी रकम न दे पाने के कारण काटा है। 
कमलकांत उपमन्‍यु का आरोप है कि चौधरी सुरेश सिंह ने पार्टी को उनसे कहीं अधिक पैसा देकर लोकसभा की उम्मीदवारी का टिकट खरीदा है। उपमन्‍यु ने दावा किया कि सुरेश सिंह को टिकट देने के बाद भी उनके ऊपर यह कहते हुए दबाव बनाया गया कि यदि वह पार्टी को अब भी पैसा दे देते हैं तो चुनाव उन्‍हें ही लड़वाया जाएगा। 
उपमन्‍यु ने कैमरे के सामने कहा कि एक करोड़ से शुरू की गई पार्टी की डिमांड 70 लाख तक आ गई, किंतु मैं इसके लिए तैयार नहीं हुआ। 
चौधरी सुरेश सिंह का क्या कहना है? 
उधर कमलकांत उपमन्‍यु के आरोपों पर चौधरी सुरेश सिंह का पक्ष जानने के लिए काफी प्रयास किए गए किंतु उन्‍होंने कोई जवाब नहीं दिया। सुरेश सिंह ने मोबाइल पर सिर्फ इतना मैसेज भेज दिया कि ''मुझे इस बारे में कोई जानकारी नहीं है। मैंने कोई पैसा नहीं दिया।'' 
क्‍या BJP के डमी उम्मीदवार हैं BSP उम्मीवार चौधरी सुरेश सिंह? 
चौघरी सुरेश सिंह पर एक आरोप यह भी लग रहा है कि वह BJP के डमी उम्मीदवार की हैसियत से चुनाव लड़ रहे हैं। इस तरह का आरोप लगाने वाले लोग सुरेश सिंह की विश्व हिंदू परिषद (VHP), अंतर्राष्‍ट्रीय हिंदू परिषद तथा राष्‍ट्रीय स्‍वयं सेवक संघ (RSS) से जुड़ी पृष्‍ठभूमि को अपने तर्क का आधार बनाते हैं जिसे पूरी तरह खारिज भी नहीं किया जा सकता। 
कांग्रेस के टिकट पर बॉक्सर विजेंदर सिंह का नाम आना भी एक कारण 
बताया जाता है कि उपमन्‍यु को बसपा की टिकट पर चुनाव लड़ाने की घोषणा के बाद सुरेश सिंह को सामने लाने का एक बड़ा कारण कांग्रेस के टिकट पर अंतर्राष्‍ट्रीय ख्‍याति प्राप्‍त बॉक्सर विजेंदर सिंह का कांग्रेस उम्‍मीदवारी के लिए नाम चर्चा में आना रहा। 
बॉक्सर विजेंदर सिंह भी जाट बिरादरी से ताल्‍लुक रखते हैं इसलिए कहा जाने लगा कि वो भाजपा के जाट वोट में सेंध लगा सकते हैं। मथुरा से दो बार की सांसद भाजपा उम्‍मीदवार हेमा मालिनी अभिनेता धर्मेन्द्र की पत्नी होने के कारण खुद को जाट बिरादरी से जोड़ती तो हैं लेकिन मथुरा का मतदाता इससे अधिक प्रभावित नहीं होता। वह मोदी के मैजिक का लाभ उठाकर इस धर्म नगरी में जीत का रिकॉर्ड कायम करती रही हैं, और इस बार भी वही मैजिक उनके काम आने की उम्मीद लगाई जा रही है। 
यही कारण है कि बॉक्सर विजेंदर सिंह का नाम कांग्रेस से उछलने के साथ ही भाजपा में भी हलचल दिखाई दी लिहाजा भाजपा की पूरी लॉबी सक्रिय हो गई। 
सूत्रों की मानें तो समय रहते भाजपा की सक्रियता का परिणाम चौधरी सुरेश सिंह के रूप में निकल कर आया ताकि यदि बॉक्सर विजेंदर सिंह कांग्रेस की टिकट पर ताल ठोकने उतर भी जाएं तो जाट वोट बंट जाए और इसका सीधा लाभ हेमा मालिनी को मिले। हालांकि सुरेश सिंह का नाम घोषित होने के बाद बॉक्सर विजेंदर सिंह ने कांग्रेस का ही 'हाथ' झटक दिया और वह भाजपा में शामिल हो गए। ऐसे में कांग्रेस को नामांकन के अंतिम दिन एक ऐसे कार्यकर्ता मुकेश धनकर को मथुरा से उम्मीदवार घोषित करना पड़ा जिसे कांग्रेस शायद सामान्‍य परिस्‍थितियों में कोई चुनाव नहीं लड़वाती। 
क्या बसपा का कैडर वोट भी सुरेश चौधरी की उम्मीदवारी से नाराज है? 
अब जबकि सुरेश चौधरी द्वारा बसपा उम्मीदवार के तौर पर नामांकन दाखिल किया जा चुका है तो पता लग रहा है कि बसपा का कैडर वोट भी पार्टी के इस परिवर्तन से नाराज है। वोटर का कहना है कि सुरेश चौधरी का झुकाव हमेशा से भाजपा की ओर रहा है और अब भी वह भाजपा को ही लाभ पहुंचाने के लिए चुनाव मैदान में उतरे हैं। 
गौरतलब है कि कभी बसपा को भर-भरकर वोट देने वाला अल्पसंख्‍यक समुदाय बसपा से छिटक चुका है। इंडी गठबंधन का हिस्‍सा होने के कारण मथुरा की लोकसभा सीट कांग्रेस के हिस्‍से में आई है जिस पर कांग्रेस का 'मजबूर' प्रत्याशी मैदान में है। गठबंधन के चलते सपा का कुछ वोट यदि कांग्रेस प्रत्याशी को मिल भी जाए तो वह सिर्फ वोटों की गिनती ही बढ़ा सकेगा क्योंकि सपा का अपना जनाधार मथुरा में कभी नहीं रहा। 
कुल मिलाकर यह कहा जा सकता है क‍ि एक ओर जहां कोई उल्‍लेखनीय काम न कर पाने के बाद भी हेमा मालिनी की किस्‍मत का सितारा बुलंदी पर है वहीं दूसरी ओर बसपा अपने आरोप-प्रत्यारोप से ही निजात नहीं पा रही। 
बाकी कसर उसके उम्‍मीदवार सुरेश चौधरी सहित पूरी पार्टी की चुप्पी पूरी कर दे रही है, जो अपनी ही पार्टी पर लग रहे आरोपों का माकूल जवाब तक देने को तैयार नहीं है। वह और उनके मुनकाद अली जैसे बाकी बड़े नेता सिर्फ आरोपों से पल्‍ला झाड़ते नजर आ रहे हैं जबकि कमलकांत उपमन्‍यु पार्टी पर खुलकर गंभीर आरोप लगा रहे हैं। 
चौधरी सुरेश सिंह को शायद अभी इस बात का इल्म नहीं कि चुनावों के दौर में इस तरह के आरोप किसी के पूरे राजनीतिक करियर को प्रभावित करते हैं। ये बात और है कि बसपा ऐसे आरोपों की आदी है। 
चौधरी सुरेश सिंह अपनी 'एक लाइना' सफाई से आरोपों का जवाब देने की कोशिश जरूर कर रहे हैं लेकिन बसपा पर टिकट बेचने के आरोप पहली बार नहीं लग रहे। चुनाव किसी स्‍तर का हो, कहते हैं कि बसपा बिना अपनी मांग पूरी कराए किसी को टिकट नहीं देती। 
और जहां तक सवाल सुरेश चौधरी को BJP के डमी उम्‍मीदवार की हैसियत से चुनाव लड़ाने के आरोप का है, तो इस आरोप में उनकी अपनी पृष्‍ठभूमि ही सहायक साबित हो ही रही है, साथ ही बसपा सुप्रीमो पर भी पहले से ये आरोप चस्‍पा हैं कि वह ईडी तथा सीबीआई के भय से अब हर चुनाव में वही निर्णय लेती हैं जो कहीं न कहीं बीजेपी को लाभ पहुंचाता प्रतीत होता है। 
-सुरेन्द्र चतुर्वेदी

फिर एक बार सामने आई कुशल राजनीतिज्ञ श्रीकृष्‍ण के जन्मस्थान की राजनीतिक दरिद्रता

माना कि आगामी लोकसभा चुनाव पूरी तरह 'मोदी की गारंटी' पर लड़ा जाएगा और मैदान में मुखौटा चाहे कोई हो, पर पीएम मोदी ही हर उम्मीदवार का चेहरा होंगे। बावजूद इसके कुशल राजनीतिज्ञ भगवान श्रीकृष्‍ण के जन्मस्थान से हेमा मालिनी को तीसरी बार टिकट मिलना यहां की राजनीतिक दरिद्रता को पूरी तरह उजागर करता है। 
दरअसल, नटवर नागर कृष्‍ण को अपना इष्‍ट बताने वाली सिने अभिनेत्री हेमा मालिनी ने उनके जन्मस्थान का लोकसभा में प्रतिनिधत्व करते हुए पिछले 10 वर्षों में ऐसा कोई उल्लेखनीय काम यहां नहीं किया जिससे उनकी तीसरी बार चुनाव लड़ने की दावेदारी पुख्‍ता होती, किंतु दुर्भाग्य से नेताओं का इस धर्म नगरी में इतना अधिक अकाल है कि भाजपा के शीर्ष नेतृत्व को कोई अन्य दिखाई ही नहीं दिया होगा। 
इस बात का थोड़ा अंदाजा तीन बार के सांसद रहे चौधरी तेजवीर सिंह को पार्टी द्वारा राज्यसभा भेजने से भी लगाया जा सकता है, अन्यथा तेजवीर सिंह तो भरी जवानी में कभी उतने सक्रिय नजर नहीं आए जितना भाजपा के किसी सांसद को होना चाहिए था। तेजवीर सिंह का कार्यकाल जिन्होंने देखा है, वह भलीभांति जानते होंगे कि चौधरी साहब किस मिट्टी के बने हैं।    
बहरहाल, इस विश्व विख्यात धार्मिक नगरी की ऐसी राजनीतिक दरिद्रता का एकमात्र कारण यही है कि यहां ऐसा कोई दमदार नेता है ही नहीं, जिसे लेकर पार्टी या जनता आश्वस्‍त हो सके। 
किसी बाहरी उम्मीदवार को तीसरी बार मथुरा से मौका मिलने पर भाजपा का एक बड़ा वर्ग निश्चित रूप से निराश होगा किंतु गौर करेंगे तो ये वर्ग काफी हद तक अपनी इस दशा या कहें कि दुर्दशा के लिए खुद भी जिम्मेदार है। 
RLD का NDA में आना भी एक बड़ा कारण 
इसमें कोई दो राय नहीं कि हेमा मालिनी को तीसरी बार मथुरा से चुनाव लड़ाने का साहस भाजपा शायद इसलिए भी कर सकी क्योंकि वह RLD को NDA का हिस्‍सा बनाने में सफल रही। यदि जयंत चौधरी NDA गठबंधन का हिस्‍सा न होते तो भाजपा को जरूर विचार करना पड़ता, लेकिन अब तो ऐसा लगता है कि जैसे हेमा मालिनी की किस्मत में ही एक तरह से 'निर्विरोध राजयोग' लिखा है। 
दूसरे दलों से भी कोई चुनौती नहीं 
हेमा मालिनी की किस्मत का सितारा किस कदर बुलंद है इसे यूं भी समझा जा सकता है कि उनकी अपनी पार्टी भाजपा के साथ-साथ विपक्षी दल में भी ऐसा कोई नेता नहीं है जो उन्‍हें टक्कर देने का माद्दा रखता हो।
अगर बात करें सबसे पुरानी पार्टी कांग्रेस की तो उसका अब यहां कोई धनी-धोरी ही नहीं रहा। कहने को वह एक राष्‍ट्रीय दल है, लेकिन मथुरा के पिछले चुनाव नतीजे बताते हैं कि अब वह यहां से चुनाव लड़ने की सिर्फ लकीर पीटती है। 
'इंडी' अलायंस के तहत समाजवादी पार्टी से सीटों के बंटवारे में यूं तो मथुरा की सीट कांग्रेस को मिली है परंतु यहां वोट बैंक के नाम पर समाजवादी का सूखा जग जाहिर है। कौन नहीं जानता कि समाजवादी पार्टी के तत्कालीन मुखिया मुलायम सिंह यादव अपने उस दौर तक में यदुवंशी कृष्‍ण की नगरी से कभी किसी एक उम्‍मीदवार को विधानसभा चुनाव नहीं जिता सके, जिस दौर में उनकी प्रदेशभर के अंदर तूती बोलती थी। 
वर्तमान सपा सुप्रीमो अखिलेश यादव ने भी मथुरा की मांट सीट से अपने मित्र और पार्टी के कद्दावर नेता संजय लाठर को दो बार चुनाव मैदान में उतारा किंतु उसे जीत नहीं दिला सके। अखिलेश के हाथ में कमान आज भी है परंतु मथुरा से सपा का सूखा खत्म नहीं हुआ। शायद इसलिए भी उन्‍होंने सीटों के बंटवारे में मथुरा की सीट कांग्रेस के मत्थे मढ़ने में अपनी भलाई समझी। 
शेष रह गई बहिनजी की बहुजन समाज पार्टी, तो उसका ग्राफ जब से नीचे आया है तब से ऊपर आने का नाम नहीं ले रहा। हालांकि पहले भी कभी बसपा का मथुरा से कोई सांसद तो नहीं रहा लेकिन विधायक कई रहे हैं। ये बात अलग है कि आज उसके पास मथुरा में न कोई विधायक है और न चुनाव में टक्कर देने लायक कोई नेता। 
कुल मिलाकर यह कहा जा सकता है कि हेमा मालिनी के लिए 2024 का लोकसभा चुनाव जितना आसान बन गया है, उतने आसान तो उनके लिए पहले दो चुनाव भी नहीं रहे। सतही तौर पर देखें तो किसी दल या नेता के लिए इससे बेहतर स्‍थिति कोई और नहीं हो सकती परंतु यही स्‍थिति न केवल भाजपा के लिए बल्‍कि मथुरा की जनता के लिए भी चिंता का विषय अवश्‍य कही जा सकती है। 
मथुरा का धार्मिक और राजनीतिक दृष्‍टि से एक विशिष्‍ट स्थान है। यमुना को प्रदूषण मुक्त कराने से लेकर कृष्ण जन्मस्‍थान के लिए लड़ी जा रही लड़ाई तक में यहां के जनप्रतिधियों की भूमिका रेखांकित होती है, लेकिन हेमा मालिनी उसमें अब तक फिट नहीं बैठीं। इन प्रमुख मुद्दों के अलावा यह धार्मिक नगरी अपनी गरिमा के अनुरूप विकास का लंबे समय से इंतजार कर रही है। ऐसे में यहां के लोगों को पार्ट टाइम नहीं, फुल टाइम राजनेताओं की दरकार है। हेमा मालिनी ने पिछले दस वर्षों में यहां कितना विकास कराया है और कितना समय यहां की जनता को दिया है, इसका जिक्र करने की संभवत: अब जरूरत भी नहीं रह गई। जाहिर है तीसरा कार्यकाल कुछ अलग होने की कोई उम्मीद लगाना व्‍यर्थ होगा। 
अंत में यह कह सकते हैं कि नेताओं के लिए राजनीति, कर्म से कहीं अधिक भाग्य का ऐसा खेल है कि वो जब जोर मारता है तो सारे पांसे खुद-ब-खुद फिट बैठ जाते हैं। हेमा मालिनी के पांसे कुछ यही इशारा कर रहे हैं। 
-सुरेन्‍द्र चतुर्वेदी

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