शनिवार, 14 दिसंबर 2019

अबे चल हट…तू 5 हजार रुपए घंटे वाला प्रवक्‍ता, मैं 10 हजार रुपए Per Hour वाला Spokes Person


अबे चल हट…तू 5 हजार रुपए घंटे वाला क्षेत्रीय पार्टी का प्रवक्‍ता, मैं 10 हजार रुपए Per Hour वाला नेशनल पार्टी का Spokes Person……….. तेरी मेरे सामने क्‍या औकात।
चौंकिए मत, अब लगभग दिन-दिनभर चलने वाली Tv debates में पार्टिसिपेट कर रहे लोग एक-दूसरे को यह सब कहते-सुनते नजर आएं तो आश्‍चर्य मत कीजिएगा, क्‍योंकि गंदा है पर धंधा है। पापी पेट का सवाल है।
सरकार किसी की हो, कभी प्‍याज तो कभी पेट्रोल-डीजल की कीमतों को लेकर रोते हुए मुंह मांगे दामों पर पिज्‍जा-बर्गर खाने वाले ‘हम लोग’ फ्री में फाइट देखने के इतने आदी हैं कि ‘नूरा कुश्‍ती’ को भी असलियत मानकर टकटकी लगाए बैठे रहते हैं।
इतना ही नहीं, उसके बाद अपना निठल्‍ला चिंतन लेकर सोशल मीडिया पर आवारा सांड़ों की तरह विचरण करने जा पहुंचते हैं ताकि किसी से भिड़कर सींगों की खुजली मिटा सकें।
वहां मुंह से न सही शब्‍दों से ऐसी जुगाली करते हैं कि भले ही उसकी दुर्गंध संबंधों को तार-तार करके रख दे किंतु पीछे हटने को तैयार नहीं होते।
मजे की बात यह है कि इतना सब-कुछ हम बिना यह जाने करते हैं कि हर डिबेट प्रायोजित है। हर प्रवक्‍ता, हर विशेषज्ञ, हर विश्‍लेषक बिकाऊ है। इन-फैक्‍ट एंकर से लेकर प्रवक्‍ता तक और विशेषज्ञ से लेकर विश्‍लेषक तक सब बिकाऊ हैं।
बहुत जल्‍द डेढ़ सौ करोड़ का आंकड़ा छूने जा रही देश की आबादी के एक बड़े हिस्‍से को शायद ही यह ज्ञान प्राप्‍त हो कि सुबह से शाम तक विभिन्‍न टीवी चैनलों पर बहस का हिस्‍सा बनने वाले लोग हमारी-तुम्‍हारी तरह फोकटिया नहीं हैं। वो हर घंटे की कीमत वसूलते हैं।
National party के Spokes Person को एक घंटे की बहस में भाग लेने का 10 हजार रुपया मिलता है और क्षेत्रीय दलों के प्रवक्‍ता पांच-पांच देकर निपटा दिए जाते हैं।
अब जरा विचार कीजिए कि एक राष्‍ट्रीय पार्टी का प्रवक्‍ता सुबह से शाम तक यदि चार चैनलों को निपटा दे तो 40 हजार रुपए की दिहाड़ी पूरी हो गई।
क्षेत्रीय पार्टी का प्रवक्‍ता भी 20 हजार रुपए दिनभर में पीट लेता है। यानी राष्‍ट्र के नाम पर मात्र एक महीने में एक करोड़ बीस लाख की कमाई और क्षेत्रीय होकर भी राष्‍ट्रभर की दुहाई देकर 60 लाख रुपए महीने की आमदनी। हर्र लगे न फिटकरी, रंग चोखा।
विशेषज्ञ और विश्‍लेषक भले ही अपनी-अपनी औकात के हिसाब से बिकते हों परंतु बिकाऊ सब होते हैं। जनहित में बहस करने की फुरसत किसी को नहीं।
रही बात एंकर की तो उसे चैनल की पॉलिसी मेंटेन रखते हुए ‘मैढ़ा’ लड़ाने का ही वेतन मिलता है। उसका अपना कोई दीन-धर्म नहीं होता। वह ‘जैसी ढपली वैसा राग’ का अनुकरण कर अपने कर्तव्‍य की पूरे दिन इतिश्री करता रहता है।
जो कल तक किसी चैनल पर ‘ताल ठोक’ रहा था वह आज ‘दंगल’ करा रहा है। जो ‘आर-पार’ कर रहा था, वो ‘हल्‍ला बोल’ रहा है। किसी चैनल पर ‘मास्‍टर स्‍ट्रोक’ लगाया जा रहा है तो कोई ‘ललकार’ रहा है।
नाम भी ऐसे कि भोजपुरिया फिल्‍मों के टाइटिल तक लजा जाएं। सबका अपना-अपना ‘एजेंडा’ है, बस नाम का फर्क है।
कह भले ही लो कि नाम में क्‍या रखा है, लेकिन बंधु नाम में ही बहुत कुछ रखा है तभी तो ऐसे बेढंगे नाम ढूंढ-ढूंढकर रखे जाते हैं और फिर उन नामों को सार्थक करते हुए उनके अनुरूप बहसें कराई जाती हैं। पैसा फेंककर तमाशा देखने और दिखाने का यह चलन कितने दिन और चलेगा, यह बता पाना तो मुश्‍किल है किंतु यह जरूर बताया जा सकता है कि जल्‍द ही इन बहसों का रूप परिवर्तन होने वाला है।
ढर्रे पर चल रही बहसों से पब्‍लिक को ऊब होने लगी है। खट्टी डकारें आने लगी हैं। जायका नजर नहीं आता, इसलिए वह चेंज चाहती है।
चैनल भी जनता की बेहद मांग पर अति शीघ्र इन बहसों में गाली-गलौज का तड़का लगाने की जुगत भिड़ा रहे हैं। बस मौके की तलाश है।
‘कुछ मीठा हो जाए’ की तर्ज पर ‘कुछ तीखा हो जाए’ टीवी मार्केट में उतारने की योजना है। गाली-गलौज न सही लेकिन इतना तो हो कि प्रवक्‍ताओं, विशेषज्ञों एवं विश्‍लेषकों के पैकेज की भरपाई की जा सके।
ऐसा ही कुछ कि अबे चल हट…बहुत देखे तेरे जैसे पांच-पांच हजार रुपल्ली पर बिकने वाले। जिस दिन मेरी तरह दस हजार रुपए घंटे मिलने लगें उस दिन मुझसे बात करना। अभी तेरी औकात नहीं है मुझसे बहस करने की।
विशेषज्ञ और विश्‍लेषक भी इसी अंदाज में एक-दूसरे की औकात बताते हुए रिटायरमेंट का लुत्फ लेते रहेंगे।
मार-पिटाई के सीन अगली प्‍लानिंग के लिए छोड़े जा सकते हैं क्‍योंकि उसके बाद चैनलों के पास कुछ बचेगा नहीं।
जाते-जाते एकबार और जान लो। ये घंटे-घंटेभर में हजारों रुपए छापकर ले जाने वाले जो लोग आपको चैनलों पर एक-दूसरे के जानी दुश्‍मन दिखाई देते हैं वो कैमरा ऑफ होते ही साथ बैठकर कॉफी सिप करने लगते हैं।
दिमाग पर बिना यह जोर डाले कि ‘चार पैसे’ देकर मेंढ़े लड़ाने वाले चैनल भी आपनी-अपनी टीआरपी के लिए सारे देश को लड़ा रहे हैं।
हो सके तो आप ही अपने दिमाग पर जोर डाल लेना कि आपको इस सबसे आखिर क्‍या मिल रहा है।
-सुरेन्‍द्र चतुर्वेदी
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