बुधवार, 11 मई 2016

पौने दो करोड़ रुपए के घपले में शामिल Chairman मनीषा गुप्‍ता को आखिर कौन बचा रहा है?

मथुरा नगर पालिका की Chairman मनीषा गुप्‍ता पर करीब पौने दो करोड़ रुपए के घपले में शामिल होने का आरोप है। मनीषा गुप्‍ता पर ये आरोप नीचे से ऊपर तक तमाम जांच पूरी हो जाने के बाद लगे हैं।
जांच करने वाले तीनों अधिकारियों अपर जिलाधिकारी कानून-व्‍यवस्‍था/प्रभारी अधिकारी स्‍थानीय निकाय एस. के. शर्मा, जिलाधिकारी राजेश कुमार तथा कमिश्‍नर आगरा मंडल प्रदीप भटनागर द्वारा पालिका अध्‍यक्ष मनीषा गुप्‍ता सहित घोटाले में लिप्‍त पाए गए सभी अधिकारी व कर्मचारियों के खिलाफ शासन से कार्यवाही की संस्‍तुति भी की जा चुकी है, बावजूद इसके अब तक कार्यवाही नहीं की गई जिससे साफ जाहिर है कि पालिका को करोड़ों रुपए का चूना लगाने वालों के सिर पर किसी न किसी का हाथ जरूर है।
मनीषा गुप्‍ता के खिलाफ कार्यवाही की संस्‍तुति किए जाने के बावजूद अब तक कुछ न किया जाना इसलिए और आश्‍चर्यजनक है क्‍योंकि मनीषा गुप्‍ता भाजपा से हैं जबकि प्रदेश में शासन समाजवादी पार्टी का है तथा प्रदेश के नगर विकास मंत्री वो आजम खां हैं, जो भाजपा के नाम से भी खासी चिढ़ रखते हैं।
नगर पालिका में हुए इस बड़े घोटाले का सच तब सामने आया जब पालिका के ही एक पूर्व सभासद हेमंत अग्रवाल ने घपले की जांच कराने के लिए कमिश्‍नर आगरा मंडल से पत्राचार किया।
इस शिकायती पत्र के मुताबिक यह घपला नगर पालिका परिषद मथुरा द्वारा एसटीपी व एसपीएस के संचालन हेतु उठाए गए ठेके में भारी अनियमितताएं करके किया गया और इसमें पालिका अध्‍यक्ष मनीषा गुप्‍ता के अतिरिक्‍त अधिशासी अधिकारी के. पी. सिंह, अवर अभियंता (जलकल) के. आर. सिंह, सहायक अभियंता उदयराज, लेखाकार विकास गर्ग तथा लिपिक टुकेश शर्मा शामिल थे।
कमिश्‍नर आगरा मंडल प्रदीप भटनागर ने पूर्व सभासद के शिकायती पत्र पर जिलाधिकारी मथुरा को सक्षम अधिकारी से जांच कराने के आदेश कर दिए। इस आदेश के आधार पर जिलाधिकारी मथुरा ने अपर जिलाधिकारी कानून-व्‍यवस्‍था/प्रभारी अधिकारी स्‍थानीय निकाय एस. के. शर्मा को घोटाले की जांच सौंप दी।
अपर जिलाधिकारी ने जांच में पाया कि यमुना किनारे बने नगर पालिका मथुरा के एसटीपी एवं एसपीएस के संचालन हेतु जो निविदा 24 जून 2014 तक आमंत्रित की गई, उसकी बहुत सी शर्तों को दरकिनार कर फरीदाबाद (हरियाणा) की फर्म मै. स्‍टील इंजीनियर्स की 01 करोड़ 74 लाख 13 हजार 400 सौ रुपए की निविदा स्‍वीकार कर ली गई और 30 जून 2014 को कार्यादेश भी जारी कर दिया गया जबकि निविदा डालने वालों में एक फर्म पंप इंजीनियर्स एवं ट्रेडर्स मथुरा से थी तथा एक अन्‍य फर्म मैसर्स लॉर्ड कृष्‍णा एण्‍टरप्राइजेस, लुधियाना (पंजाब) से थी।
जांच में यह भी पता लगा कि निविदा के लिए 22 फरवरी 2014 को नगर पालिका परिषद की बोर्ड बैठक में जो नियम व शर्तें निर्धारित की गईं थीं, उनके अनुसार निविदा उसी फर्म को दी जा सकती थी जिसका रजिस्‍ट्रेशन मथुरा नगर पालिका में हो अथवा उसके द्वारा निविदा पाने के एक सप्‍ताह में यहां रजिस्‍ट्रेशन करा लिया जाए।
इस शर्त में पर्याप्‍त सुविधा होने पर भी फरीदाबाद (हरियाणा) की फर्म मै. स्‍टील इंजीनियर्स ने निविदा पाने के बाद कभी नगर पालिका मथुरा में अपना रजिस्‍ट्रेशन कराना जरूरी नहीं समझा।
इसके अलावा नियमों के विपरीत फर्म का चरित्र प्रमाण पत्र हरियाणा का था और हैसियत प्रमाण पत्र तथा वाणिज्‍य कर प्रमाणपत्र भी हरियाणा से ही बने थे।
इस दौरान पालिका द्वारा हैसियत की राशि पहले 50 लाख, फिर 25 लाख और उसके बाद फिर 50 लाख रुपए की गई और इसके लिए समाचार पत्रों में विज्ञापन कराया गया।
उल्‍लेखनीय है कि हैसियत व चरित्र प्रमाण पत्र को लेकर जारी शासनादेश के अनुसार दो लाख या उससे अधिक प्रत्‍येक सरकारी कार्य, ठेका अथवा निविदा किसी विभाग द्वारा तब तक स्‍वीकार नहीं की जा सकती जब तक आयकर व व्‍यापार कर विभाग, जिला मजिस्‍ट्रेट तथा पुलिस अधीक्षक की ओर से निविदादाता के पक्ष में अनापत्‍ति प्रमाण पत्र (एनओसी) निर्गत न कर दिया गया हो।
इसी प्रकार निविदादाता के पक्ष में जब तक जिले के पुलिस कप्‍तान द्वारा चरित्र प्रमाण पत्र तथा डीएम द्वारा निविदादाता की आर्थिक क्षमता और पूर्व में उसके द्वारा किए गए कार्यों को लेकर निर्धारित प्रमाण पत्र जारी न कर दिया जाए, तब तक उसके नाम निविदा नहीं की जा सकती।
अपर जिलाधिकारी ने जांच में पाया कि लुधियाना की फर्म मैसर्स लॉर्ड कृष्‍णा एण्‍टरप्राइजेस को हैसियत प्रमाण पत्र न होने तथा चरित्र प्रमाण पत्र भी नौकरी के लिए ही मान्‍य होने के बावजूद उसकी निविदा स्‍वीकार कर ली गई।
इसी प्रकार द्वारिकापुरी कॉलोनी मथुरा की फर्म मै. पंप इंजीनियर्स एंड ट्रेडर्स की हैसियत 35 लाख रुपए तक ही होने पर भी उसकी निविदा भी स्‍वीकार कर ली गई जबकि बोर्ड के प्रस्‍ताव में हैसियत 50 लाख रुपए निर्धारित थी।
इन अनियमितताओं से स्‍पष्‍ट है कि मथुरा तथा लुधियाना की फर्मों ने हरियाणा की फर्म के पक्ष में म्‍यूचुअल अंडरस्‍टेंडिंग के तहत निविदा डालीं और नगर पालिका परिषद ने पूर्व निर्धारित योजना के अनुसार हरियाणा की फर्म को निविदा जारी कर दी। निविदा के लिए निर्धारित हैसियत की राशि में भी बार-बार फेरबदल करना नगर पालिका की मंशा को साफ जाहिर करता है।
यही नहीं, अपर जिलाधिकारी ने जांच में यह भी पाया कि निविदा प्राप्‍त करने वाली फर्म के प्रोप्राइटर तो कर्मवीर मेहता हैं लेकिन निविदा में हैसियत प्रमाण पत्र श्रीमती सुमन मेहता के नाम है जो उनकी पत्‍नी हैं।
निविदा पाने वाली फर्म और निविदा देने वाली संस्‍था नगर पालिका मथुरा की बदनीयत इससे इसलिए स्‍पष्‍ट होती है क्‍योंकि डिफॉल्‍टर होने की स्‍थिति में पत्‍नी होने के बावजूद कानूनन सुमन मेहता, कर्मवीर मेहता के किसी कार्य के लिए उत्‍तरदायी नहीं मानी जा सकतीं।
इसके अलावा अपर जिलाधिकारी ने जांच में यह निष्‍कर्ष निकाला कि टेक्‍नीकल बिड तथा फाइनेन्‍सियल बिड के नियमों में भी घपला किया गया और टेक्‍नीकल बिड को स्‍वीकृत करने का कोई भी आदेश न तो टेंडर कमेटी द्वारा पारित किया गया और ना ही पालिका परिषद अथवा पालिका बोर्ड द्वारा उस पर कोई निर्णय लिया गया।
जांच के दौरान एक और अत्‍यंत महत्‍वपूर्ण बात यह पता लगी कि निविदा पाने वाली हरियाणा की फर्म मै. स्‍टील इंजीनियर्स ने श्रम विभाग में अपने कर्मचारियों की कुल संख्‍या 16 दिखा रखी है जो मथुरा की एसटीपी व एसपीएस संचालन के लिहाज से काफी कम थी।
मथुरा नगर पालिका क्षेत्र में कुल एक दर्जन एसपीएस हैं और दो एसटीपी हैं। आठ-आठ घंटे की शिफ्ट के अनुसार चौबीसों घंटे इनका संचालन करने के लिए कुल 84 कर्मचारियों की जरूरत पड़ती है। ऐसे में मात्र 16 कर्मचारियों वाली फर्म को ठेका दे देना अपने आप में सवाल खड़े करता है। वो भी तब जबकि ठेका पाने वाली फर्म की पत्रावली पर कर्मचारियों की संख्‍या का कोई उल्‍लेख ही न किया गया हो।
जांच अधिकारी एडीएम के अनुसार, ठेका उठाने की तारीख 30 जून 2014 से लेकर जांच रिपोर्ट देने की तिथि 13 अप्रैल 2015 तक, प्रशासनिक अधिकारियों ने कई बार एसटीपी व एसपीएस के संचालन का निरीक्षण किया लेकिन इस दौरान प्राय: स्‍टेशन बंद पाए गए तथा गंदगी सीधे यमुना में गिरती मिली।
नगर पालिका ने एसटीपी व एसपीएस संचालन के लिए किसी कमेटी का भी गठन नहीं किया जबकि नगर पालिका अधिनियम 1916 की धारा 104 के अनुसार पालिका कार्यों के अनुरक्षण व सत्‍यापन हेतु सभासदों की एक कमेटी बनाया जाना जरूरी है।
जांच अधिकारी ने जिलाधिकारी को प्रेषित अपनी रिपोर्ट में साफ-साफ लिखा है कि इन हालातों के चलते 01 करोड़ 74 लाख 13 हजार 400 सौ रुपए की बड़ी धनराशि का दुरुपयोग होना संभावित प्रतीत होता है और जिसके लिए नगर पालिका परिषद मथुरा की अध्‍यक्ष श्रीमती मनीषा गुप्‍ता, अधिशाषी अधिकारी के. पी. सिंह सहित अवर अभियंता (जलकल) के. आर सिंह, सहायक अभियंता उदयराज, लेखाकार विकास गर्ग, तथा लिपिक टुकेश शर्मा समान रूप से दोषी हैं।
जांच अधिकारी के मुताबिक ठेकेदार को भुगतान की गई 01 करोड़ 74 लाख 13 हजार 400 सौ रुपए की बड़ी धनराशि संबंधित लोगों से वसूल किया जाना उचित प्रतीत होता है।
अपर जिलाधिकारी एस. के. शर्मा की इस जांच और दोषियों से पैसा वसूलने की संस्‍तुति को क्रमश: जिलाधिकारी राजेश कुमार एवं कमिश्‍नर आगरा मंडल प्रदीप भटनागर ने भी सही पाया तथा शासन से दोषियों के खिलाफ सख्‍त कार्यवाही करने की सिफारिश की लेकिन एक साल से ऊपर का समय बीत जाने के बाद भी किसी दोषी के खिलाफ अब तक कोई कार्यवाही नहीं हुई जिससे इतना तो पता लगता है कि दोषियों को अखिलेश की सरकार में किसी न किसी का संरक्षण अवश्‍य मिला हुआ है।
करीब पौने दो करोड़ रुपए के घोटाले में लिप्‍त इन प्रभावशाली दोषियों के खिलाफ शासन स्‍तर से कार्यवाही न होने पर 12 दिसंबर 2015 को नागरिक कल्‍याण समिति (रजि.) मथुरा के अध्‍यक्ष उमेश भारद्वाज तथा सचिव राजीव कुमार सिंह ने प्रदेश के मुख्‍यमंत्री को भी एक पत्र लिखा और भ्रष्‍टाचार, अनियमितता एवं पद के दुरूपयोग के इस पूरे प्रकरण की जांच सतर्कता विभाग अथवा सीबीआई से कराने की मांग की क्‍योंकि जांच में दोषी पाए गए अधिशाषी अधिकारी के. पी. सिंह बिना किसी कार्यवाही के अवकाश प्राप्‍त कर चुके हैं। जिलाधिकारी कार्यालय से मूल जांच पत्रावली गायब कर दी गई है, नगर पालिका परिषद ने निविदा पाने वाली फर्म मै. स्‍टील इंजीनियर्स को ब्‍लैकलिस्‍टेड तक नहीं किया है और चालू वित्‍त वर्ष में बिना ठेका उठाए उसी से न केवल कार्य कराए जा रहे हैं बल्‍कि उसे भुगतान भी किया जा रहा है। जांच में दोषी पाए गए सहायक अभियंता लगातार अपना कार्य कर रहे हैं जिसमें करोड़ों रुपए के भुगतान शामिल हैं।
जहां तक सवाल एसटीपी व एसपीएस के संचालन का है तो वह अब भी जांच रिपोर्ट की स्‍थिति को प्राप्‍त हैं, जिस कारण गंदगी सीधे यमुना में गिर रही है।
12 दिसंबर 2015 को मुख्‍यमंत्री के नाम प्रेषित इस शिकायती पत्र पर भी कोई कार्यवाही न होने से क्षुब्‍ध नागरिक कल्‍याण समिति (रजि.) मथुरा ने इलाहाबाद उच्‍च न्‍यायालय की शरण ली, जिस पर उच्‍च न्‍यायालय ने याचियों से नेशनल ग्रीन ट्रिब्‍यूनल (NGT) में जाने का परामर्श दिया है।
अब नागरिक कल्‍याण समिति कानून-व्‍यवस्‍था की इस बदहाली, उच्‍च अधिकारियों की जांच रिपोर्ट तथा लोकतंत्र को मजाक बनाकर रख देने वाली व्‍यवस्‍था के खिलाफ नेशनल ग्रीन ट्रिब्‍यूनल (NGT) में जाने की तैयारी कर रही है।
पौने दो करोड़ रुपए के घपले में दोषी पाई गईं नगर पालिका अध्‍यक्ष मनीषा गुप्‍ता से जब ”लीजेंड न्‍यूज़” ने अपना पक्ष रखने को कहा तो उनके पति राजेश गुप्‍ता ने सारे प्रकरण को राजनीति से प्रेरित बताया किंतु तकनीकी तौर पर सफाई देने में असमर्थता प्रकट की।
राजेश गुप्‍ता की मानें तो उनके व उनकी पत्‍नी के राजनीतिक विरोधी इस मामले को अब इसलिए तूल दे रहे हैं क्‍योंकि उनकी पत्‍नी मथुरा-वृंदावन विधानसभा सीट से भाजपा के संभावित उम्‍मीदवारों में प्रबल दावेदार हैं। उनकी पत्‍नी ने चूंकि मथुरा नगर पालिका का संचालन काफी बेहतर तरीके से किया है इसलिए पूरी उम्‍मीद है कि वह भाजपा की टिकट पर मथुरा-वृंदावन विधानसभा क्षेत्र से 2017 का चुनाव लड़ेंगी।
दूसरी ओर नगर पालिका में हुए इस बड़े घोटाले की शिकायत करने वालों का कहना है कि मनीषा गुप्‍ता के पास अभी करीब सवा साल का कार्यकाल शेष है, ऐसे में यदि उनके खिलाफ समय रहते ठोस कार्यवाही नहीं की गई तो वह मथुरा नगर पालिका को पता नहीं कितने करोड़ का चूना और लगा देंगी क्‍योंकि केंद्र व प्रदेश सरकार से मथुरा नगर पालिका क्षेत्र में सैकड़ों करोड़ रुपए के विकास कार्य कराया जाना प्रस्‍तावित है।
रहा सवाल भाजपा की टिकट पर मथुरा-वृंदावन विधानसभा क्षेत्र से चुनाव लड़ने के ख्‍वाब संजोने का, तो उनका यह ख्‍वाब शायद ही कभी पूरा हो। हां, यह जरूर हो सकता है कि उससे पहले मनीषा गुप्‍ता और उनके सहयोगी जेल यात्रा कर लें क्‍योंकि लखनऊ अभी बहुत दूर है।
-सुरेन्‍द्र चतुर्वेदी

”गिफ्ट” के सहारे ”हाथी” की सवारी का सपना कितना सच

इस चित्र में बसपा सुप्रीमो मायावती को जो हाथी ”गिफ्ट” किया जा रहा है, वह सोने का है या चांदी का अथवा किसी अन्‍य धातु का…इसका तो पता नहीं लेकिन चित्र देखने से लगता है कि उक्‍त हाथी निश्‍चित ही बहिनजी की पसंद वाला और उनकी गरिमा के अनुकूल रहा होगा क्‍योंकि न तो मायावती को ऐरा-गैरा हाथी देने की हिमाकत कोई कर सकता है और न मायावती किसी ऐरे-गैरे के हाथों से हाथी की भेंट ले सकती हैं। आखिर वो हाथी ही तो है जिसने मायावती को चार-चार बार सूबे की सवारी करवा दी और बड़ों-बडों को धूल फांकने पर मजबूर कर दिया।
यह हाथी अष्‍टधातु का भी हो सकता है क्‍योंकि इसे देने वाले की भी हैसियत कम नहीं है।
बहिनजी को हाथी भेंट करने वाले सज्‍जन से मथुरा जनपद भली-भांति परिचित है क्‍योंकि यह बहिन मायवती के अति करीबियों में शुमार वृंदावन नगर पालिका की पूर्व अध्‍यक्ष पुष्‍पा शर्मा के पुत्र योगेश द्विवेदी हैं। वही योगेश द्विवेदी जो बसपा की ही टिकट पर 2014 का लोकसभा चुनाव मथुरा से लड़े थे किंतु जीत नहीं पाए।
इस बार वह मथुरा-वृंदावन विधानसभा क्षेत्र से अब तक बसपा की उम्‍मीदवारी का दावा कर रहे हैं। बसपा ने भी अब तक कुछ ऐसे ही संकेत दे रखे हैं कि योगेश द्विवेदी मथुरा-वृंदावन से उनके उम्‍मीदवार होंगे। हालांकि बसपा के संकेत कितने भरोसेमंद होते हैं, इसे डॉ. अशोक अग्रवाल अच्‍छे से जानते हैं। वही डॉ. अशोक अगवाल जो योगेश द्विवेदी की ही तरह आज सपा के मथुरा-वृंदावन सीट से उम्‍मीदवार हैं किंतु कभी बसपा के निष्‍ठावान सिपाही माने जाते थे। बसपा ने उन्‍हें भी योगेश द्विवेदी की ही तरह अंत तक अपना संभावित प्रत्‍याशी बनाए रखा। यहां तक कि डॉ. अशोक अग्रवाल ने नामांकन भरने की पूरी तैयारी के साथ विश्रामघाट जाकर अपने लाव-लश्‍कर के साथ यमुना पूजन भी कर डाला।
यमुना पूजन के बाद अचानक लखनऊ से आकाशवाणी हुई कि मथुरा-वृंदावन से बसपा के टिकट पर चुनाव डॉ. अशोक अग्रवाल की जगह देवेन्‍द्र गौतम उर्फ गुड्डू भइया चुनाव लड़ेंगे। डॉ. अशोक अग्रवाल ने इस आकाशवाणी के खिलाफ यथासंभव प्रयास किया लेकिन उनकी पतंग लखनऊ से काटकर गुड्डू भइया के हाथ में थमा दी गई थी लिहाजा डॉ. साहब के सारे प्रयास बेकार साबित हुए। डॉ. साहब, गुड्डू भइया की चरखी पकड़कर उनकी पतंग के पैंच देखते रह गए।
कहा जाता है कि पार्टी से चुनाव लड़ने की हरी झंडी पाने के लिए डॉ. अशोक अग्रवाल ने भी बहिनजी को इसी तरह कई हाथी भेंट किए थे जिस तरह योगेश द्विवेदी कर रहे हैं लेकिन कोई हाथी फिर काम नहीं आया। पार्टी के लोगों का कहना है कि बहिनजी ने सारे हाथियों का डॉ. अशोक अग्रवाल को किश्‍तों में ”रिटर्न गिफ्ट” दे दिया।
तब से डॉ. अशोक अग्रवाल समाजवादी हो गए, और समाजवादी पार्टी की ओर से पिछला विधानसभा चुनाव भी लड़ लिए। ये बात अलग है कि मुलायम के कुनबे की इस पार्टी के लिए कृष्‍ण की भूमि अब तक ऊसर साबित हुई है लिहाजा डॉ. अशोक बहुत कम मतों से तीसरे नंबर पर रहे। इस बार वह फिर पूरी तैयारी में हैं।
यह सर्वविदित है कि बहिनजी के दरबार में इस पुरानी कहावत पर पूरी तरह अमल होता है कि समझदार लोग राजा, गुरू और तीर्थस्‍थान से मुलाकात करने कभी खाली हाथ नहीं जाते। अपनी हैसियत के अनुसार पत्र-पुष्‍प की भेंट लेकर ही मिलते हैं। ऐसे में योगश द्विवेदी बहिनजी से खाली हाथ मिलते भी कैसे। हाथी चूंकि पार्टी का चुनाव चिन्‍ह भी है और बहिनजी को अति प्रिय भी है इसलिए हाथी से अच्‍छी भेंट कोई हो नहीं सकती थी।
योगेश द्विवेदी ने बहिनजी को जो हाथी भेंट किया, पता नहीं उसका नंबर कौन सा था लेकिन फोटो देखकर इतना अवश्‍य पता लग रहा है कि इस हाथी की भेंट तब चढ़ाई गई थी जब मथुरा के कद्दावर जाट नेता चौधरी लक्ष्‍मीनारायण भी हाथी की पूंछ पकड़कर अपनी राजनीतिक वैतरणी पार करने में लगे थे।
इन दिनों चौधरी लक्ष्‍मीनारायण कमल का फूल लेकर चल रहे हैं और उसी के बल पर उनकी धर्मपत्‍नी ममता चौधरी मथुरा जिला पंचायत की अध्‍यक्ष बनी बैठी हैं।
राजनीति की बिसात पर खेले जाने वाले शतरंज के खेल में प्‍यादों की अहमियत तो बहुत होती है किंतु उनके ”सिर” हमेशा खेल खेलने वालों के हाथ रहते हैं।
यही कारण है कि कभी बसपा के निष्‍ठावान कार्यकर्ता डॉ. अशोक अग्रवाल आज समाजवादी पार्टी के निष्‍ठावान सिपाही हैं और थोड़े दिनों पहले तक हाथी के झंडे वाली हूटर लगी गाड़ी पर लालबत्‍ती लगाए मंत्री पद को सुशोभित करने वाले चौधरी लक्ष्‍मीनाराण के कंधों पर भाजपा का कमल खिलाने की जिम्‍मदारी है।
खैर, योगेश द्विवेदी का हाथी यूपी के विधानसभा चुनावों तक किस करवट बैठता है, यह तो बता पाना फिलहाल संभव नहीं है लेकिन उनका बहिन जी को हाथी भेंट करता हुआ चित्र यह जरूर बताता है कि उम्‍मीदवारी की घोषणा चाहे जिस समय भी होती हो लेकिन उम्‍मीदवारी की प्रत्‍याशा में पता नहीं कितने हाथी और कब-कब भेंट करने पड़ते हैं।
ऊंट तो किसी पार्टी का चुनाव चिन्‍ह है नहीं इसलिए ”ऊंट के मुंह में जीरा” वाली कहावत यहां बेमानी है परंतु नई कहावत यह जरूर बनती है कि हाथी की सवारी के लिए हाथी को केले या गन्‍ना खिलाने का मतलब टिकट पाने की गारंटी कतई नहीं है।
हाथी का पेट बहुत बड़ा होता है, हाथी की भूख भी बहुत बड़ी होती है। ऐसे में जो उसके पेट की भूख समय पर पूरी तरह शांत कर सके, उसकी क्षुधा मिटा सके, हाथी उसका होता है। बाकी तो अंतिम सत्‍य वही है कि ”जाकौ हाथी, वाकौ नाम…चाहे घूम-फिर आवै गांव-गांव।
-लीजेंड न्‍यूज़
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