मंगलवार, 26 मई 2020

डूबने के कगार पर ‘नयति’, वेंटिलेटर‍ तक पहुंचा ‘नीरा राडिया’ का मल्टी सुपर स्पेशलिटी हॉस्पिटल

28 फरवरी 2016 को नयति हॉस्‍पिटल का उद्घाटन करते उद्योगपति रतन टाटा, साथ हैं चेयरपरसन नीरा राडिया
बहुत दिन नहीं हुए जब देश के प्रमुख उद्योगपति रतन टाटा ने ”2G स्‍पैक्‍ट्रम” घोटाला फेम और ”पनामा लीक्‍स” चर्चित महिला लाइजनर ”नीरा राडिया” के हॉस्‍पिटल ‘नयति’ का मथुरा में भव्‍य उद्घाटन किया था।

राष्‍ट्रीय राजमार्ग नंबर- 2 के किनारे बने इस हॉस्‍पिटल के प्रमोटर्स में चार्टर्ड एकाउंटेंट दीनानाथ चतुर्वेदी के पुत्र राजेश चतुर्वेदी का नाम भी शामिल है। दीनानाथ चतुर्वेदी मूल रूप से मथुरा के ही निवासी हैं।


अब बताते हैं कि खोटी नीयत के चलते ‘नयति’ ही अपनी ‘नियति’ के करीब है और वेंटिलेटर‍ पर पहुंच चुका है।
रविवार 28 फरवरी 2016 को नयति के उद्घाटन समारोह में पद्म विभूषण रतन टाटा ने कहा था कि इसके पीछे व्यक्तिगत बलिदान के साथ समाज सेवा का एक जुनून है और सच्ची चाहत है।
नयति हेल्थकेयर की चेयरपरसन नीरा राडिया ने भी कहा था कि पश्चिमी उत्तर प्रदेश के लोगों को उनके क्षेत्र में ही विश्वस्तरीय स्वास्थ्य देखभाल की सुविधा प्रदान करने का अवसर हमारे लिए बहुत महत्वपूर्ण है।
हमारा उद्देश्य छोटे शहरों में मरीजों को उपचार की सुविधा प्रदान कर आम लोगों पर बीमारी की वजह से पड़ने वाले शारीरिक, भावनात्मक और आर्थिक बोझ को कम करना है।
नयति द्वारा विधिवत् काम शुरू कर देने के बाद पता लगा कि मथुरा के लोगों की सेवा करने तथा उन्‍हें अत्‍याधुनिक सुविधाएं मुहैया कराने के प्रचार सहित खोले गए इस हॉस्‍पिटल में चिकित्‍सा काफी महंगी है और जनसामान्‍य के लिए तो वहां उपचार कराना संभव ही नहीं है।
देखते-देखते नयति से ऐसी खबरें भी बाहर आने लगीं कि वहां लोगों से पैसे वसूलने के लिए वो सारे हथकंडे अपनाए जा रहे हैं, जिनके लिए दूसरे मशहूर अस्‍पताल पहले से बदनाम हैं।
मसलन मरीज की नाजुक स्‍थिति का हवाला देकर मोटी रकम जमा करा लेना, विशेषज्ञ चिकित्‍सकों की आड़ में मनमानी फीस वसूलना, पैसा जमा करने में जरा सी भी देरी हो जाने पर मरीज व उसके परिजनों के साथ अभद्र भाषा का प्रयोग करना तथा कैजुअलिटी हो जाने पर पूरा बिल वसूल किए बिना ‘लाश’ तक पर कब्‍जा कर लेना आदि।
मात्र चार साल में नयति और उसकी खोटी नीयत एक-दूसरे के पूरक बन गए, नतीजतन आए दिन झगड़े होना और बात पुलिस-प्रशासन तक पहुंचना आम बात हो गई।
हालांकि ऊंची पहुंच और मथुरा से लेकर लखनऊ और दिल्‍ली तक शासन एवं प्रशासन में गहरी पैठ होने के कारण पीड़ितों को हर बार मुंह की खानी पड़ी।
नीरा राडिया के हाईप्रोफाइल स्‍टेटस का अंदाज इस बात से लगाया जा सकता है कि प्रमुख मीडिया संस्‍थान भी उसके या नयति के खिलाफ एक शब्‍द लिखने अथवा बोलने की हिमाकत नहीं करते।
मौके-बेमौके प्रमुख अखबारों में नयति के छपने वाले बड़े-बड़े विज्ञापन और उसकी प्रशंसा में लिखे जाने वाले समाचार यह समझाने के लिए काफी हैं कि कोई ऐरा-गैरा तो क्‍या, विशिष्‍ट कहलाने वाले लोग भी नयति की शान में गुस्‍ताखी करने वाला समाचार नहीं छपवा सकते।
बेशक कुछ मीडियाकर्मी समय-समय पर नयति के कारनामों को उजाकर करने की हिम्‍मत दिखाते रहे हैं किंतु उन्‍हें उसकी कीमत कभी लीगल नोटिस के जरिए तो कभी ब्‍लैकमेलर प्रचारित करके चुकानी पड़ी है।
मीडिया को साधने वाले नयति के जनसंपर्क विभाग की बात करें तो हर विवाद में हॉस्‍पिटल प्रशासन ही सही होता है और शिकायतकर्ता तथा पीड़ितों के परिजन गलत। शायद ही कभी किसी मामले में नयति के प्रबंधतंत्र ने ये स्‍वीकार किया हो कि चूक उनसे भी हो सकती है।
बहरहाल, हाल ही में नयति के अमानवीय आचरण से जुड़े ऐसे दो मामले फिर सामने आए हैं जिनमें मरीजों को जान गंवानी पड़ी है किंतु नयति ने इन दोनों मामलों में भी खुद को सही ठहराते हुए सारा दोष पीड़ित परिजनों के सिर थोप दिया है।
हॉस्‍पिटल से जुड़े अत्‍यंत भरोसमंद सूत्रों का कहना है कि सेवा की आड़ में मनमानी करने के नयति के रवैए की एक बड़ी वजह उसका जहाज डूबने की नौबत आना है।
सूत्रों के अनुसार नयति अब अपना ही बोझ ढो पाने में खुद को असहाय महसूस कर रहा है। कई बड़े डॉक्‍टर पिछले कुछ समय के अंदर नयति छोड़कर जा चुके हैं। स्‍टाफ को समय से वेतन न मिलना तथा तय वेतन में से कटौती करना आम बात हो गई है।
पांच साल से भी कम समय में ‘नयति’ की यह ‘नियति’ बताती है कि नीरा राडिया और उसके लोग चाहे कैसे भी दावे करें परंतु आम आदमी उसकी नीयत पहचान चुका है। यही कारण है कि किसी मरीज के ठीक होने का समाचार जहां नयति के प्रशासन को प्रेस विज्ञप्‍ति भेजकर छपवाना पड़ता है वहीं विवाद होने पर साम, दाम दण्‍ड भेद की नीति अपनाकर समाचारों को छपने से रोकना पड़ जाता है।
आगे आने वाले समय में नयति किस गति को प्राप्‍त होगा, इस बात को यदि ‘नियति’ पर छोड़ दिया जाए तो जरूरी है कि उसकी शुरूआत से लेकर अब तक उसके हर क्रिया-कलाप को जांच के दायरे में लाया जाए और पता किया जाए कि आखिर क्‍यों अत्‍याधुनिक उपकरणों से सुसज्‍जित कृष्‍ण की नगरी के इस हॉस्‍पिटल में जितने लोगों को जीवनदान नहीं मिला, उससे अधिक लोगों को अकाल मौत प्राप्‍त हुई?
नयति की स्‍थापना से लेकर अब तक वहां हुई मौतों का आंकड़ां यदि देखा जाए तो बहुत सी बातें खुद-ब-खुद साफ हो जाती हैं।
इस सबके बावजूद चूंकि कानूनी पहलुओं के लिए सबूतों की दरकार होती है इसलिए जरूरी है कि नयति के कारनामों की जांच किसी केंद्रीय एजेंसी से कराने की पुरजोर मांग ब्रजवासियों के स्‍तर से की जाए अन्‍यथा यदि नीरा राडिया का जहाज डूब भी गया तो चार वर्ष से अधिक समय में किए गए उसके कृत्‍यों का हिसाब अधूरा रह जाएगा।
ब्रजवासियों को चाहिए कि बाकायदा अभियान चलाकर नयति की नीयत सार्वजनिक करें और विभिन्‍न कारणों से आवाज उठाने में असमर्थ रहे लोगों को न्‍याय दिलाएं ताकि फिर कोई नीरा राडिया कृष्‍ण की नगरी के नागरिकों की भावनाओं का इतनी बेहरहमी के साथ दोहन न कर सके।
-सुरेन्‍द्र चतुर्वेदी
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