रविवार, 5 अक्तूबर 2014

IAS के उत्‍पीड़न में अखिलेश सरकार पर 5 लाख जुर्माना

लखनऊ। 
सुप्रीम कोर्ट ने अखिलेश सरकार पर एक आईएएस अफसर के उत्पीड़न के मामले में पांच लाख रुपए का जुर्माना लगाया है। साथ ही, अफसर को सभी आरोपों से बरी कर दिया।
मामला 1979 बैच के आईएएस विजय शंकर पांडेय से जुड़ा है। उन्हें मायावती सरकार में 16 अप्रैल 2011 को प्रमुख सचिव सूचना, सचिवालय प्रशासन और खाद्य एंव औषधि नियंत्रण विभाग से हटा दिया गया था। उन्हें सदस्य राजस्व परिषद के पद पर तैनात किया गया था। उन पर यह कार्रवाई सिर्फ इसलिए की गई थी क्योंकि वह एक भ्रष्टाचार विरोधी संगठन के संस्थापक सदस्य थे। पांडेय ने इंडिया रिजुवनेशन इनिशिएटिव नाम के भ्रष्टाचार रोधी संगठन बनाया। बाद में, विदेश से कालाधन वापस लाने और टैक्स चोर हसन अली के खिलाफ जांच की सुस्त रफ्तार पर प्रवर्तन निदेशालय के खिलाफ याचिका दाखिल की थी। मायावती सरकार ने इसे आईएएस सेवा नियमों का उल्लंघन माना। विभागीय जांच बिठाई। वह बेदाग निकले। अखिलेश यादव सरकार ने भी जांच बिठाई। इस पर पांडेय कैट गए, जहां उनकी याचिका खारिज हो गई।
फैसले में क्या कहा सुप्रीम कोर्ट
कोर्ट के फैसले में कहा गया कि इस गलत कार्रवाई के लिए उन अफसरों की तलाश होनी चाहिए, जो इसके लिए जिम्मेदार हैं। साथ ही, उनसे जुर्माना भी वसूला जाना चाहिए। इस मामले में सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र सरकार को इसलिए लपेट लिया, क्योंकि केंद्र सरकार ही आईएएस अफसरों का कैडर तय करती है।
कैसे चला संघर्ष
विजय शंकर पांडेय की इस कार्यवाही से उस दौरान मुख्यमंत्री रही मायावती उन पर भड़क उठी थी। उन्होंने इसे आईएएस सर्विस रुल का उल्लंघन माना और  27 फरवरी 2012 को विजयशंकर पर विभागीय जांच बैठा दी। इस जांच की जिम्मेदारी जांच अधिकारी जगन मेथ्यु को सौंपी गईं थी। जगन ने अपनी जांच रिपोर्ट 30 अगस्त को सौंपी। इसमें उन्होंने विजय शंकर पांडेय पर लगाए गए सारे आरोप निराधार पाए।
हालांकि, मायावती की सरकार चले जाने के बावजूद उनका उत्पीड़न बंद नहीं हुआ था। जब जांच में उनके ऊपर आरोप सिद्ध नहीं हुए तो अखिलेश सरकार ने 11 सितंबर को विजय शंकर पांडेय के मामले पर जांच कमिटी बिठा दी। इस कमिटी में तत्कालीन कृषि उत्पादन आयुक्त आलोक रंजन और अनिल कुमार गुप्ता थे।
सरकार के इस फैसले के खिलाफ विजय शंकर ने 26 सितंबर को कोर्ट का दरवाजा खटखटाया। लेकिन 20 दिसंबर 2013 को कोर्ट ने उनकी अर्जी खारिज कर दी। इसके बाद उन्होंने हाईकोर्ट का दरवाजा खटखटाया, लेकिन वहां भी याचिका खारिज हो गई। इसके बाद विजय शंकर पांडेय तीन अप्रैल 2014 को सुप्रीम कोर्ट पहुंच गए। शुक्रवार को उन्हें न्याय मिला, कोर्ट ने अखिलेश सरकार और केंद्र सरकार पर जुर्माना ठोंकते हुए पांच लाख रुपए का जुर्माना लगाया गया। यह जुर्माना दोनों सरकार को मिलकर विजय शंकर पांडेय को देना है।
क्या कहते हैं जानकार
पूर्व आईएएस अफसर एसएन शुक्ला का कहना हैं कि सुप्रीम कोर्ट का यह ऐतिहासिक फैसला है। इसे सिर्फ विजय शंकर पांडेय के लिए नहीं मानना चाहिए, बल्कि यह फैसला उन सभी अफसरों का हौसला बढ़ाने के लिए है, जो सरकार के गलत कामों पर अपनी आवाज बुलंद करना चाहते हैं। यह फैसला सिर्फ सरकारों के साथ उन अफसरों की भी आंख खोलेगा, जो सरकार के कहने पर ईमानदार अफसरों का उत्पीड़न करते हैं।
क्या कहना हैं सरकार में बैठे अफसरों का
सरकार में बैठे कई आईएएस अफसर सुप्रीमकोर्ट के इस फैसले से उत्साहित हैं। नाम नहीं छपने की शर्त पर वह कहते हैं कि इस फैसले से अफसरों का मोरल बढ़ा है। अब जो अधिकारी दबाव में चुप्पी साधे रहते थे, वह अब गलत काम के खिलाफ अपना मुंह खोल सकेंगे। एक वरिष्ठ सीनियर आईएएस अफसर कहते हैं कि सुप्रीम कोर्ट ने अपने इस फैसले से सरकार के गलत कामों के खिलाफ बोलने वाले अफसरों को एक सुरक्षा कवच दे दिया है। 
कौन हैं विजय शंकर पांडेय
1979 बैच के आईएएस विजय शंकर पांडेय उप्र सहकारी कताई मिल संघ में एमडी रहते हुए लिए गए निर्णयों को लेकर चर्चित हुए थे। उनके फैसलों को लेकर सतर्कता जांच तक हुई। इसके बाद भ्रष्ट आईएएस अफसरों को चिन्हित करने को लेकर छेड़ी गई अपनी मुहिम के कारण चर्चा में रहे। इससे तमाम वरिष्ठ आईएएस अफसर उनसे नाराज हुए और तत्कालीन प्रमुख सचिव नीरा यादव का उनसे टकराव हुआ। बसपा शासन में कैबिनेट सचिव के साथ उनकी अंदरखाने में होने वाली खटपट को लेकर भी वह खासे चर्चित रहे।
-एजेंसी
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