गुरुवार, 10 अक्तूबर 2019

केतु काल में कांग्रेस: जरूरत है महामृत्‍युंजय के जाप की, लेकिन कांग्रेसी हैं कि तुलसी-गंगाजल हाथ में लेकर खड़े हैं

ज्योतिष के अनुसार सूक्ष्‍म में समझें तो किसी की कुंडली पर केतु का प्रभाव अथवा केतु काल या अशुभ केतु होने से उसके सामने जीवन-मरण का संकट उत्‍पन्‍न हो जाता है। उसे बड़ी सर्जरी की जरूरत होती है अन्‍यथा उसके जीवन पर बन आती है।
वैसे कुंडली का अशुभ ‘केतु’ पितृ दोष का सूचक भी होता है, जिसके बहुत गहरे प्रभाव पड़ते हैं। इन प्रभावों का अध्‍ययन और उपचार खुद कांग्रेस ही कर सकती है।
कांग्रेस की दिशा एवं दशा पर गौर करें तो साफ पता लगता है कि उसका केतु काल मनमोहन सरकार के दूसरे टर्म में ही प्रारंभ हो गया था, और 2019 आते-आते उसके प्रभाव स्‍पष्‍ट दिखाई देने लगे थे।
केत छुड़ावै खेत
कहते हैं जब कुंडली में केतु का अंतर आता है तब बड़े परिवर्तन की दरकार होती है। जो इस बात को समझते हुए परिस्‍थितियों के अनुरूप खुद को ढालकर आगे का मार्ग पकड़ लेते हैं वो सफल हो जाते हैं परंतु जो परिवर्तन के लिए तैयार नहीं होते वो उसके दुष्‍परिणाम भोगने को अभिशप्त होते हैं।
2019 के चुनाव परिणाम बताते हैं कि कांग्रेस ने केतु काल के दोष निवारण का कोई प्रबंध नहीं किया। उसने परिस्‍थितिजन्‍य परिवर्तन की बजाय लकीर पीटते रहने का मार्ग चुना, नतीजतन वह आज उस मुकाम पर आकर खड़ी हो गई है जहां महामृत्‍युंजय जैसे मंत्र की आवश्‍यकता है।
राहुल गांधी पलायन के रास्‍ते पर हैं और कांग्रेसी राह भटक रहे हैं, बावजूद इसके कांग्रेस पार्टी है कि समझने को तैयार ही नहीं।
आत्‍मघाती कदम
केतु काल के शुरूआती दौर की बात न भी की जाए तो पिछले दिनों सबसे सीनियर कांग्रेसी नेता जयराम रमेश ने कहा कि केंद्र सरकार के हर कदम को गलत ठहराना आत्‍मघाती साबित हो रहा है। अच्‍छे कार्यों का सकारात्‍मक संदेश देने में कोई हर्ज नहीं है।
उसी समय शशि थरूर ने भी यही कहा कि सरकार के प्रत्‍येक क्रिया-कलाप की सिर्फ और सिर्फ निंदा करना उचित नहीं। जनभावना के अनुरूप कल्‍याणकारी कार्यों के लिए सरकार को प्रोत्‍साहित करना भी विपक्ष की भूमिका का हिस्‍सा है।
कांग्रेस ने अपने इन दोनों नेताओं की सलाह को मानना तो दूर, उन्‍हें परोक्ष और अपरोक्ष रूप से यह बता दिया कि पार्टी के प्रति आपकी निष्‍ठा संदिग्‍ध प्रतीत हो रही है।
दो दिन पहले सलमान खुर्शीद ने एक अंग्रेजी अखबार को दिए अपने इंटरव्‍यू में कहा कि देश का मिज़ाज बदल गया है। देश के सोचने का तरीका बदल चुका है और इस बदले मिज़ाज का पता लगाकर ही समस्या का समाधान निकाला जा सकता है।
सलमान खुर्शीद ने कहा कि देश में और देश की सोच में ऐसे क्या परिवर्तन आए कि हम सिकुड़ कर इतने छोटे हो गए, यह हमें समझना होगा। हमें समझना होगा कि इतने शानदार नेताओं की इतनी शानदार पार्टी का यह हाल क्यों हो गया।
सलमान खुर्शीद के राहुल गांधी पर दिए बयान से कांग्रेस नेता राशिद अल्वी इतने खफा हो गए कि उन्होंने इशारों-इशारों में खुर्शीद को घर (कांग्रेस पार्टी) में आग लगाने वाला और पार्टी का दुश्मन तक बता दिया। बावजूद इसके सलमान खुर्शीद ने राहुल गांधी के अध्यक्ष पद से इस्तीफे पर दिए गए अपने बयान को दोहराते हुए कहा कि ऐसे वक्त में जब देश का मिज़ाज बदल गया है, राहुल का ‘छोड़ जाना’ कांग्रेस के लिए बड़ी मुसीबत है।
सलमान खुर्शीद के सुर में सुर मिलाते हुए पार्टी के राष्ट्रीय महासचिव ज्योतिरादित्य सिंधिया ने दोहराया कि कांग्रेस को आत्म-अवलोकन की जरूरत है। वर्तमान में कांग्रेस की जो स्थिति है, उसमें आत्‍मचिंतन ही एकमात्र उपचार है। उन्होंने स्‍पष्‍ट कहा कि कांग्रेस फिलहाल महाराष्ट्र और हरियाणा के चुनाव में जीत दर्ज नहीं करा पाएगी।
यही बात कांग्रेस के महाराष्‍ट्र में कद्दावर नेता संजय निरुपम ने भी कही। हालांकि उनकी नाराजगी के अन्‍य कारण भी थे।
संजय निरुपम ने तो पार्टी छोड़ने की धमकी देते हुए यहां तक कह दिया कि कांग्रेस में राहुल गांधी के वफादारों को इरादतन निशाना बनाया जा रहा है ताकि उनका राजनीतिक भविष्‍य चौपट किया जा सके।
संजय निरुपम से पहले हरियाणा कांग्रेस के प्रदेश अध्‍यक्ष अशोक तंवर ने अपने पद से इस्‍तीफा देते हुए यही आरोप लगाए थे। उन्‍होंने सीधे सीधे पार्टी हाईकमान यानी सोनिया गांधी पर निशाना साधते हुए कहा कि धीरे-धीरे उन सभी का सफाया करने की साजिश रची जा रही है जो राहुल गांधी की टीम में थे।
अशोक तंवर के अनुसार अभी बहुत सी राजनीतिक हत्याएं होना बाकी है। मैं अकेला नहीं हूं, बहुत लंबी लाइन है।
राशिद अल्‍वी ने संजय निरुपम और अशोक तंवर दोनों पर निशाना साधा। उन्होंने कहा कि कोई महाराष्ट्र से बोल रहा है तो हरियाणा से बोल रहा है। ऐसा लग रहा है कि हमें बाहर के दुश्मनों की जरूरत ही नहीं रह गई है। घर को आग लग गई, घर के ही चिराग से।
राहुल बनाम प्रियंका
कांग्रेस के तमाम नेताओं की बयानबाजी यह इशारा करती है कि कहीं न कहीं पार्टी के अंदर राहुल बनाम प्रियंका चल रहा है।
याद कीजिए कि 2019 के लोकसभा चुनावों से ठीक पहले जब प्रियंका गांधी को अचानक कांग्रेस में बड़ा पद देते हुए बड़ी जिम्‍मेदारी भी सौंपी गई थी तब इसे गेम चेंजर बताया गया था। कोई प्रियंका गांधी वाड्रा में इंदिरा गांधी की छवि देख रहा था तो कोई उन्‍हें कांग्रेस के लिए तारनहार घोषित करने पर आमादा था।
इस सबसे परे पार्टी के कुछ बड़े नेता दीवार पर लिखी उस इबारत को पढ़ पाने में सफल रहे थे, जो राहुल-प्रियंका की कथित जुगलबंदी के पीछे से नजर आ रही थी। ये नेता बहन-भाई के दर्शनीय प्रेम पर संदेह के बादल महसूस कर रहे थे परंतु नतीजों के इंतजार में थे।
नतीजे आए तो बहुत कुछ अपने आप सामने आ गया। अटकलों के दौर व किंतु-परंतु के बीच राहुल गांधी ने अंतत: पलायन का मार्ग चुना जिससे एकबार फिर पार्टी की कमान सोनिया गांधी के हाथों में आ गई।
इधर भाई राहुल गांधी के पलायन से ठीक विपरीत प्रियंका की सक्रियता में इजाफा हो गया। उन्‍होंने न तो राहुल की तरह अपने पद से इस्‍तीफा देने की पेशकश की और न हार के लिए जिम्‍मेदारी ओढ़ी। सोनिया गांधी ने भी एक समय बाद राहुल गांधी को लेकर प्रतिक्रिया देना बंद कर दिया।
जाहिर है कि इतना सबकुछ केवल इत्तिफाकन नहीं हुआ होगा। इसके पीछे कोई योजना जरूर काम कर रही थी। शायद इसी योजना की ओर इशारा करते हुए जहां संजय निरुपम और अशोक तंवर जैसे नेता खुलकर बोल रहे हैं वहीं सलमान खुर्शीद तथा ज्‍योतिरादित्‍य सिधिंया पॉलिश्ड तरीके से बता रहे हैं।
सलमान खुर्शीद और ज्‍योतिरादित्‍य सिंधिया का यह कहना कहां गलत है कि हमें देश का मिज़ाज समझना होगा। हमें आत्‍मचिंतन और आत्‍मावलोकन करना होगा।
सलमान खुर्शीद को संभवत: यह भान भी था कि उनके कहे पर हंगामा होगा और उनकी पार्टी के प्रति निष्‍ठा को लेकर सवाल उठाए जाएंगे, इसीलिए उन्‍होंने लगेहाथ यह कह दिया कि वो कांग्रेस छोड़कर कहीं जाने वाले नहीं हैं। वह कांग्रेसी हैं और कांग्रेसी ही रहेंगे।
किसी के भी दुर्दिनों की एक विशेषता यह होती है कि वह अपने हितैषियों को पहचान नहीं पाता। वह अपने और पराये के भेद को समझने में सक्षम नहीं रहता। इस स्‍थिति‍ को कोई मतिभ्रष्‍ट होना कहता है तो कोई ग्रहों का प्रभाव बताता है।
कांग्रेस के संदर्भ में लक्षण देखकर निष्‍कर्ष निकाला जाए तो दोनों बातें सही प्रतीत होती हैं।
तभी तो यह हाल है कि इस स्‍थिति‍ में जब पार्टी के लिए मृत-संजीवनी कहे जाने वाले महामृत्‍युंजय मंत्र का जाप करने की जरूरत है तब पार्टी के कुछ बड़े नेता तुलसी-गंगाजल हाथ में लेकर खड़े हैं।
उन्‍हें इंतजार है उस आखिरी हिचकी का जिसके बाद तुलसी-गंगाजल डालकर अपना धर्म व कर्म पूरा करते हुए शेष सांसें भी थम जाने की दुहाई दे सकें। बता सकें कि मृत देह से चिपके रहने का कोई औचित्‍य नहीं।
जो भी हो, लेकिन कांग्रेस का यह हाल देश और देशवासी दोनों के लिए नुकसानदेह है।
उस लोकतंत्र के लिए नुकसानदेह है जिसे अब तक कायम रखने के लिए कई बलिदान दिए गए। लोकतंत्र के लिए एक परिपक्‍व व मजबूत विपक्ष का होना अत्‍यन्‍त आवश्‍यक है। परिपक्‍व व मजबूत विपक्ष नहीं रहेगा तो लोकतंत्र पर खतरा मंडराने लगेगा।
कांग्रेस की समस्‍या यह है कि वह विपक्ष की भूमिका स्‍वीकार नहीं कर पा रही। निजी स्‍वार्थों से उठकर वह यह भी नहीं सोच पा रही कि विपक्ष की भूमिका निभाना भी देशहित में उतना ही महत्‍वपूर्ण है जितना सत्ता में रहकर सरकार चलाना।
यदि वह अपनी इस जिम्‍मेदारी का निर्वहन नहीं करती तो देश व देशवासियों की गुनाहगार कही जाएगी। उसका गौरवशाली अतीत इतिहास में दफन हो जाएगा और आने वाली पीढ़ी उसके स्‍वर्णिम काल को भुला बैठेगी।
खतरा यह भी है कि आगे आने वाले समय में उसका उल्‍लेख एक ऐसे गुनाहगार के तौर पर किया जाने लगे जिसने विपक्षी दल का अपना धर्म न निभाकर निजी स्‍वार्थों को तरजीह दी और उसके नेता उन्‍हीं स्‍वार्थों की पूर्ति के लिए परस्‍पर लड़ते रहे।
यदि ऐसा हुआ तो तय जानिए कि ये देश कभी नेहरू-गांधी के इन वारिसों को माफ नहीं करेगा।
-सुरेन्‍द्र चतुर्वेदी
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