मुलायम सिंह, शिवपाल सिंह, रामगोपाल और आजम खान जैसी सपाई सूरमाओं से घिरे सूबे के मुख्यमंत्री अखिलेश यादव अपने अधिकारियों के साथ क्रिकेट का मैच खेल रहे हैं जबकि कहीं जेल के अंदर गैंगवार हो रही है तो कहीं कोर्ट के अंदर।
मथुरा में जेल के अंदर हुई गैंगवार का नतीजा जब गैंगेस्टर के अनुकूल नहीं निकलता तो वह पुलिस अभिरक्षा में अपने घायल प्रतिद्वंदी को तब सरेराह मौत के घाट उतार देते हैं जब उसे इलाज के लिए आगरा ले जाया जा रहा था।
मुजफ्फरनगर में अदालत के अंदर नाबालिग लड़का वकील का चोला पहनकर कुख्यात अपराधी को 'माननीय' की आंखों के सामने गोलियां बरसाकर भून देता है।
सहारनपुर में तनिष्क के शोरूम पर डाका पड़ता है और बदमाश करीब दस करोड़ रुपए के गहने ले जाते हैं।
यह आपराधिक वारदातें तो चंद उदाहरण भर हैं, अन्यथा प्रदेश का शायद ही कोई जिला ऐसा हो जहां अपराधी बेखौफ होकर अपने मकसद को अंजाम न दे रहे हों। ऐसा लगता है जैसे प्रदेश में सरकार नाम की कोई चीज है भी नहीं। सरकार के नाम पर जो कुछ व जितना कुछ नजर आ रहा है, वह सिर्फ एक परिवार का आधिपत्य है।
अधिकारी भी रोज-रोज होने वाली अपनी ट्रांसफर-पोस्टिंग्स से परेशान हैं किंतु समाजवादी कुनबे के लिए यह सब एक ऐसा धंधा है जिसमें बिना कुछ लगाये करोड़ों की कमाई हो रही है। प्रदेश में शायद ही कोई ऐसा पुलिस अथवा प्रशासनिक अधिकारी होगा, जिसे कहीं टिकने दिया गया हो।
पुलिस और प्रशासनिक अधिकारी अब दबी जुबान से यह कहने भी लगे हैं कि निर्धारित समय के अंदर जिसने अपनी पोस्टिंग का रिन्यूअल नहीं कराया तो समझो अगली लिस्ट में उसका नप जाना तय है।
घोर आश्चर्य की बात यह है कि इतना सब-कुछ होने के बाद भी मुख्यमंत्री से लेकर सुपर मुख्यमंत्रियों तक की फौज कहती है कि उत्तर प्रदेश की कानून-व्यवस्था दूसरे सभी राज्यों से बेहतर है।
यह स्थिति करीब-करीब वैसी ही है जैसी 2012 से मनमोहन सिंह के नेतृत्व वाली यूपीए
सरकार की हो गई थी। लोकसभा के चुनाव बेशक 2014 में होने थे किंतु सरकार 2012 से ही अपंगता का शिकार बन चुकी थी।
सपा और यूपीए सरकार के बीच एक अन्य समानता भी देखी जा रही है। और यह समानता है आत्मप्रशंसा करने के मामले में। कांग्रेस की दुर्गति पूरे देश को साफ-साफ दिखाई दे रही थी लेकिन कांग्रेसी कहते थे कि उनसे अच्छी सरकार चलाना कोई जानता ही नहीं। आज यही काम अखिलेश के नेतृत्व वाली सरकार कर रही है।
सच तो यह है कि पूरा समाजवादी कुनबा प्रदेश को कुछ इस तरह चला रहा है जैसे कोई अपनी प्राइवेट कंपनी को चलाता है। समाजवादी कुनबा संभवत: इस मुगालते में है कि 2017 के चुनावों का नतीजा उनके अनुकूल रहेगा क्योंकि उनसे अच्छा शासक कोई है नहीं। बेहतर ही रहेगा यदि वह और कुछ समय तक इस मुगालते को पाले रहें क्योंकि उनके ऐसे मुगालते में ही जनता की भलाई छिपी है। जनता को इनके शासन से छुटकारा इनके ऐसे मुगालते से ही मिल सकता है।
इसमें कोई दो राय नहीं कि 2017 के चुनावों तक उत्तर प्रदेश को यह लोग लालू के कार्यकाल का बिहार बना कर रख देंगे लेकिन उत्तर प्रदेश के उत्तम प्रदेश बनने का मार्ग भी तभी प्रशस्त होगा।
आज हालांकि आशा की कोई किरण स्पष्ट नहीं है परंतु 2017 के चुनावों तक जरूर हो जायेगी। यूं भी जनता अब काफी समझदार हो चुकी है। वह राजनेताओं की मनमानी का जवाब देने के लिए अपने समय का इंतजार करती है और मौका मिलते ही वही हाल बना देती है जैसे लोकसभा चुनावों के दौरान यूपी के अंदर कांग्रेस, सपा, बसपा तथा रालोद का किया था, या फिर हाल ही में दिल्ली के अंदर कांग्रेस व भाजपा का किया।
इसलिए और कुछ समय इंतजार कीजिए, फिर जनता बता देगी कि अखिलेश सरकार कितनी काबिल रही तथा समाजवादी कुनबे की मनमानी का नतीजा क्या रहा।
-लीजेण्ड न्यूज़ विशेष
मथुरा में जेल के अंदर हुई गैंगवार का नतीजा जब गैंगेस्टर के अनुकूल नहीं निकलता तो वह पुलिस अभिरक्षा में अपने घायल प्रतिद्वंदी को तब सरेराह मौत के घाट उतार देते हैं जब उसे इलाज के लिए आगरा ले जाया जा रहा था।
मुजफ्फरनगर में अदालत के अंदर नाबालिग लड़का वकील का चोला पहनकर कुख्यात अपराधी को 'माननीय' की आंखों के सामने गोलियां बरसाकर भून देता है।
सहारनपुर में तनिष्क के शोरूम पर डाका पड़ता है और बदमाश करीब दस करोड़ रुपए के गहने ले जाते हैं।
यह आपराधिक वारदातें तो चंद उदाहरण भर हैं, अन्यथा प्रदेश का शायद ही कोई जिला ऐसा हो जहां अपराधी बेखौफ होकर अपने मकसद को अंजाम न दे रहे हों। ऐसा लगता है जैसे प्रदेश में सरकार नाम की कोई चीज है भी नहीं। सरकार के नाम पर जो कुछ व जितना कुछ नजर आ रहा है, वह सिर्फ एक परिवार का आधिपत्य है।
अधिकारी भी रोज-रोज होने वाली अपनी ट्रांसफर-पोस्टिंग्स से परेशान हैं किंतु समाजवादी कुनबे के लिए यह सब एक ऐसा धंधा है जिसमें बिना कुछ लगाये करोड़ों की कमाई हो रही है। प्रदेश में शायद ही कोई ऐसा पुलिस अथवा प्रशासनिक अधिकारी होगा, जिसे कहीं टिकने दिया गया हो।
पुलिस और प्रशासनिक अधिकारी अब दबी जुबान से यह कहने भी लगे हैं कि निर्धारित समय के अंदर जिसने अपनी पोस्टिंग का रिन्यूअल नहीं कराया तो समझो अगली लिस्ट में उसका नप जाना तय है।
घोर आश्चर्य की बात यह है कि इतना सब-कुछ होने के बाद भी मुख्यमंत्री से लेकर सुपर मुख्यमंत्रियों तक की फौज कहती है कि उत्तर प्रदेश की कानून-व्यवस्था दूसरे सभी राज्यों से बेहतर है।
यह स्थिति करीब-करीब वैसी ही है जैसी 2012 से मनमोहन सिंह के नेतृत्व वाली यूपीए
सरकार की हो गई थी। लोकसभा के चुनाव बेशक 2014 में होने थे किंतु सरकार 2012 से ही अपंगता का शिकार बन चुकी थी।
सपा और यूपीए सरकार के बीच एक अन्य समानता भी देखी जा रही है। और यह समानता है आत्मप्रशंसा करने के मामले में। कांग्रेस की दुर्गति पूरे देश को साफ-साफ दिखाई दे रही थी लेकिन कांग्रेसी कहते थे कि उनसे अच्छी सरकार चलाना कोई जानता ही नहीं। आज यही काम अखिलेश के नेतृत्व वाली सरकार कर रही है।
सच तो यह है कि पूरा समाजवादी कुनबा प्रदेश को कुछ इस तरह चला रहा है जैसे कोई अपनी प्राइवेट कंपनी को चलाता है। समाजवादी कुनबा संभवत: इस मुगालते में है कि 2017 के चुनावों का नतीजा उनके अनुकूल रहेगा क्योंकि उनसे अच्छा शासक कोई है नहीं। बेहतर ही रहेगा यदि वह और कुछ समय तक इस मुगालते को पाले रहें क्योंकि उनके ऐसे मुगालते में ही जनता की भलाई छिपी है। जनता को इनके शासन से छुटकारा इनके ऐसे मुगालते से ही मिल सकता है।
इसमें कोई दो राय नहीं कि 2017 के चुनावों तक उत्तर प्रदेश को यह लोग लालू के कार्यकाल का बिहार बना कर रख देंगे लेकिन उत्तर प्रदेश के उत्तम प्रदेश बनने का मार्ग भी तभी प्रशस्त होगा।
आज हालांकि आशा की कोई किरण स्पष्ट नहीं है परंतु 2017 के चुनावों तक जरूर हो जायेगी। यूं भी जनता अब काफी समझदार हो चुकी है। वह राजनेताओं की मनमानी का जवाब देने के लिए अपने समय का इंतजार करती है और मौका मिलते ही वही हाल बना देती है जैसे लोकसभा चुनावों के दौरान यूपी के अंदर कांग्रेस, सपा, बसपा तथा रालोद का किया था, या फिर हाल ही में दिल्ली के अंदर कांग्रेस व भाजपा का किया।
इसलिए और कुछ समय इंतजार कीजिए, फिर जनता बता देगी कि अखिलेश सरकार कितनी काबिल रही तथा समाजवादी कुनबे की मनमानी का नतीजा क्या रहा।
-लीजेण्ड न्यूज़ विशेष