शनिवार, 30 जुलाई 2016

बलात्‍कार केस: अब उपमन्‍यु के साथ DGP और SSP भी हाईकोर्ट से खाल बचाने में लगे

– DGP और SSP को भी शपथ पत्र के जरिए जवाब दाखिल करने में छूटे पसीने
– एक-दूसरे के ऊपर थोपा उपमन्‍यु के खिलाफ जांच ट्रांसफर करने का  मामला
मथुरा। बलात्‍कार के केस में पत्रकार कमलकांत उपमन्‍यु को बचाने की कोशिश करने वाले DGP और SSP अब इलाहाबाद हाईकोर्ट से अपनी खाल बचाने का प्रयास करते नजर आ रहे हैं।
इलाहाबाद हाईकोर्ट ने गत 12 जुलाई के अपने आदेश में मुख्‍यमंत्री अखिलेश यादव के स्‍पेशल ऑफीसर इंचार्ज जगजीवन प्रसाद सहित यूपी के तत्‍कालीन डीजीपी आनंद लाल बनर्जी तथा तत्‍कालीन एसएसपी मथुरा मंजिल सैनी से 25 जुलाई तक व्‍यक्‍तिगत शपथपत्र के जरिए जवाब तलब किया था।
हाईकोर्ट के आदेश का पालन करते हुए आनंद लाल बनर्जी व मंजिल सैनी ने तो अपने-अपने जवाब सहित शपथ पत्र दाखिल कर दिए हैं किंतु सीएम के स्‍पेशल ऑफीसर इंचार्ज जगजीवन प्रसाद ने अभी अपना जवाब दाखिल नहीं किया है।
शासन के अनुरोध पर हाईकोर्ट ने जगजीवन प्रसाद को जवाब दाखिल करने के लिए कुछ समय और देते हुए अगली तारीख 08 अगस्‍त मुकर्रर कर दी है।
इन दिनों लखनऊ में वरिष्‍ठ पुलिस अधीक्षक के पद पर तैनात मथुरा की तत्‍कालीन एसएसपी मंजिल सैनी ने इलाहाबाद हाईकोर्ट को भेजे गए अपने जवाब में सिर्फ खुद को बचाने का प्रयास किया है और कमलकांत उपमन्‍यु के खिलाफ बलात्‍कार के केस की जांच स्‍थानांतरित करने का सारा ठीकरा अपने उच्‍चाधिकारियों के सिर फोड़ा है।
मंजिल सैनी ने अपने जवाब में लिखा है कि मैंने बलात्‍कार के आरोपी कमलकांत उपमन्‍यु के खिलाफ जांच को मथुरा से फिरोजाबाद स्‍थानांतरित करने के लिए मुख्‍यमंत्री के ओएसडी की सिफरिश से आए उच्‍चाधिकारियों के आदेश का पालनभर किया था। बतौर एसएसपी मुझे किसी जांच को मथुरा जनपद से बाहर स्‍थानांतरित करने का अधिकार ही नहीं था।
जांच स्‍थानांतरित हो जाने के बाद मथुरा पुलिस ने तत्‍काल इस केस से संबंधित केस डायरी और सभी पेपर्स फिरोजाबाद पुलिस को सौंप दिए।
मंजिल सैनी के जवाब से पहली बार में तो ऐसा लगता है जैसे बलात्‍कार के आरोपी कमलकांत उपमन्‍यु को बचाए रखने में उनकी कोई भूमिका ही न हो किंतु जब किसी जांच को स्‍थानांतरित करने के लिए तय आदेश-निर्देशों पर गौर किया जाए तो पता लगता है कि ऊपर से लेकर नीचे तक बैठे पुलिस अधिकारियों ने किस प्रकार सारे आदेश-निर्देशों की खुली अवहेलना करके कमलकांत उपमन्‍यु को बच निकलने का पूरा मौका उपलब्‍ध कराया।
किसी भी केस की जांच बदलने के लिए उत्‍तर प्रदेश के ही प्रमुख सचिव देवाशीष पण्‍डा द्वारा प्रदेश पुलिस के मुखिया से लेकर हर जिले के पुलिस प्रमुख तथा जिलाधिकारियों तक के लिए 22 अक्‍टूबर 2014 को जो पत्र भेजा गया था, उसके मुताबिक निर्गत किए गए आदेश-निर्देश इस प्रकार हैं:
1- किसी भी केस की जांच को स्‍थानांतरित करने से पहले उस जिले से केस की आख्‍या मंगानी होगी जहां वो केस रजिस्‍टर्ड हुआ हो और उसी आख्‍या के आधार पर जांच ट्रांसफर करने का निर्णय लिया जाएगा।
2- भेजी गई आख्‍या न केवल पूर्णत: स्‍पष्‍ट होनी चाहिए बल्‍कि उस पर जिले के पुलिस प्रमुख की संस्‍तुति उनके अपने हस्‍ताक्षर के साथ की जानी चाहिए। संस्‍तुति करने के लिए भी पुलिस प्रमुख को आख्‍या के साथ संलग्‍न ”चेक लिस्‍ट” के आदेशों पर अमल करना होगा।
3- इस चेक लिस्‍ट में आरोपी के बावत बहुत सी जानकारियों का ब्‍यौरा उपलब्‍ध कराने तथा उस समय के विवेचक का भी जांच ट्रांसफर करने को लेकर अभिमत जानने सहित कुल 15 बिंदु दिए गए हैं जिन्‍हें पूरा करना आवश्‍यक है।
गौरतलब है कि कमलकांत उपमन्‍यु के मामले में न तो तत्‍कालीन डीजीपी आनंद लाल बजर्नी ने ऐसे किसी आदेश-निर्देश का पालन किया और ना ही मथुरा की तत्‍कालीन एसएसपी मंजिल सैनी ने, जबकि प्रमुख सचिव का पत्र इस केस से करीब डेढ़ महीने पहले ही हर जिले के पुलिस प्रमुख तक पहुंच चुका था।
इसके अलावा मंजिल सैनी के पास क्‍या इन प्रश्‍नों का कोई जवाब है कि पीड़िता द्वारा खुद उनसे संपर्क स्‍थापित किए जाने के बावजूद उन्‍होंने जांच के नाम पर कई दिन तक क्‍यों कमलकांत उपमन्‍यु के खिलाफ केस दर्ज नहीं होने दिया ?
क्‍यों इस बीच पीड़िता के भाई और पिता के खिलाफ ही एक केस दर्ज करवा दिया जो बाद में झूठा साबित हुआ ?
06 दिसंबर 2014 को केस दर्ज हो जाने के बाद से जांच स्‍थानांतरित होने के बीच 15 दिनों तक मंजिल सैनी क्‍या करती रहीं। उन्‍होंने आरोपी कमलकांत उपमन्‍यु को गिरफ्तार न करके उसे पीड़िता व उसके परिवार पर दबाव बनाने तथा लखनऊ तक संपर्क साधकर जांच गैर जनपद स्‍थानांतरित कराने का मौका कैसे दिया, वो भी तब जबकि इस बीच पीड़िता का मैडीकल भी हो चुका था और 161 व 164 के तहत बयान भी दर्ज कराए जा चुके थे।
क्‍या मंजिल सैनी को पहले से ज्ञात था कि कमलकांत उपमन्‍यु अपने खिलाफ केस की जांच गैर जनपद ट्रांसफर कराने में सफल होगा।
मंजिल सैनी द्वारा बलात्‍कार के आरोपी कमलकांत उपमन्‍यु को बचाने का यह प्रयास इसलिए और अधिक मायने रखता है क्‍योंकि कमलकांत उपमन्‍यु के साथ मंजिल सैनी की निकटता जगजाहिर थी। वह कमलकांत उपमन्‍यु के घर पर उनके निजी कार्यक्रमों तक में शामिल होती थीं।

समाचार चैनल ”आजतक” के समक्ष इस केस से मुतल्‍लिक अपना पक्ष रखते वक्‍त भी बतौर एसएसपी मंजिल सैनी का आरोपी कमलकांत उपमन्‍यु को ”उपमन्‍यु जी” संबोधित करना और प्रतिष्‍ठित पत्रकार बताना इस बात की पुष्‍टि करता है कि मंजिल सैनी का कमलकांत उपमन्‍यु के प्रति सॉफ्टकॉर्नर बरकरार था।

मंजिल सैनी ने कोर्ट को शपथपत्र के माध्‍यम से दिए गए जवाब में इस बात का कोई उल्‍लेख नहीं किया कि पीड़िता के कोर्ट में बयान हो जाने के बाद वह आरोपी की गिरफ्तारी के लिए आखिर किस बात का इंतजार करती रहीं।
इसी प्रकार तत्‍कालीन डीजीपी आनंद लाल बजर्नी ने अपने बचाव में शपथ पत्र के जरिए जो सफाई पेश की है, वह बहुत ही हास्‍यास्‍पद है। जैसे बनर्जी का एक ओर तो यह कहना कि उन्‍हें CrPC की धारा 36 तथा पुलिस एक्‍ट 1861 की धारा 3 के तहत किसी केस की जांच को ट्रांसफर करने का अधिकार है, और दूसरी ओर यह बताना कि उक्‍त जांच उन्‍होंने मुख्‍यमंत्री के स्‍पेशल ऑफीसर इंचार्ज की संस्‍तुति पर ट्रांसफर की है।
बनर्जी संभवत: यह भूल गए कि वह जवाब हाईकोर्ट को भेज रहे हैं, न कि किसी नेता को।

आश्‍चर्य की बात यह है कि डीजीपी के पद से अवकाश ग्रहण करने के मात्र चंद रोज पहले किए गए इस कारनामे के लिए आनंद लाल बनर्जी ने भी जांच ट्रांसफर करने के लिए प्रमुख सचिव द्वारा दिए गए लिखित आदेश-निर्देशों पर गौर करना जरूरी नहीं समझा। आखिर क्‍यों ?
इतने बड़े पद पर बैठे अधिकारी ने कैसे उन आदेश निर्देशों की खुली अवहेलना की और जांच ट्रांसफर करने का आदेश करने से पहले जिले के एसएसपी से आख्‍या क्‍यों नहीं मांगी।
कोर्ट को दिए गए शपथ पत्र में डीजीपी बनर्जी ने लिखा है कि उन्‍होंने आरोपी के भाई की एप्‍लीकेशन पर मुख्‍यमंत्री के स्‍पेशल ऑफीसर इंचार्ज की संस्‍तुति और पीड़िता द्वारा भी जांच बदलने के लिए मुझे दिए गए प्रार्थना पत्र के मद्देनजर अपने अधिकारों का इस्‍तेमाल करते हुए जांच ट्रांसफर की जबकि सच्‍चाई यह है कि आरोपी कमलकांत उपमन्‍यु के भाई पूर्व सूबेदार त्रिभुवन उपमन्‍यु ने मुख्‍यमंत्री के नाम प्रार्थना पत्र 18 दिसंबर 2014 को दिया था और पीड़िता द्वारा डीजीपी को प्रार्थना पत्र 22 दिसंबर 2014 को दिया गया लेकिन जांच बदलने के आदेश 22 दिसंबर को किए जा चुके थे।
अगर पीड़िता के प्रार्थना पत्र को भी जांच बदलने का आधार बनाया गया तो डीजीपी की इस मामले में तेजी बहुत से संदेह पैदा करती है।
जैसे 22 दिसंबर को मिले प्रार्थना पत्र पर उसी दिन बिना आख्‍या मांगे जांच बदलने का आदेश कर देने के पीछे कहीं डीजीपी का अपना कोई स्‍वार्थ तो पूरा नहीं हो रहा था। डीजीपी को यह भी मालूम था कि वह 8 दिन बाद अपने पद से अवकाश ग्रहण करने वाले हैं, फिर ऐसी कौन सी वजह थी कि डीजीपी ने सेम-डे जांच बदलने का आदेश किया।
इस मामले का एक और सबसे महत्‍वपूर्ण पहलू यह है कि मुख्‍यमंत्री के स्‍पेशल ऑफीसर इंचार्ज का पद न तो कोई संवैधानिक पद है और न डीजीपी जैसा अधिकारी उनके किसी आदेश-निर्देश अथवा संस्‍तुति को मानने के लिए बाध्‍य है, ऐसे में डीजीपी बनर्जी का मुख्‍यमंत्री के स्‍पेशल ऑफीसर इंचार्ज जगजीवन की संस्‍तुति पर अपने अधिकारों का इस्‍तेमाल करते हुए जांच ट्रांसफर करने का हवाला देना कानून-व्‍यवस्‍था के साथ भद्दे मजाक से अधिक कुछ नहीं हो सकता।
डीजीपी बनर्जी ने अपने शपथ पत्र में एक दलील इस आशय की भी दी है कि याचिकाकर्ता एडवोकेट विजय पाल तोमर चूंकि इस केस में कोई पक्ष नहीं हैं इसलिए उन्‍हें जनहित याचिका दायर करने का कोई अधिकार भी नहीं है, एक तरह से उच्‍च न्‍यायालय को चुनौती देने के समान है। उच्‍च न्‍यायालय ने जब याचिका स्‍वीकार करके केस की सुनवाई शुरू कर दी और जवाब तलब भी कर लिया तो ऐसी किसी दलील का क्‍या औचित्‍य रह जाता है। यूं भी जनहित याचिका दायर करने का अधिकार किसे है और किसे नहीं, यह देखना कोर्ट का काम है न कि आनंद लाल बनर्जी का।
इन हालातों में लगता तो यह है इलाहाबाद उच्‍च न्‍यायालय आगामी 08 अगस्‍त को इस मामले में कोई बड़ा फैसला सुना सकती है। केस की जांच नए सिरे से सीबीआई को भी सौंप सकती है जैसा कि उसने 12 जुलाई के अपने आदेश में कहा भी है कि क्‍यों न यह मामला सीबीआई के सुपुर्द कर दिया जाए।
यदि ऐसा होता है तो निश्‍चित है कि जांच की आंच सिर्फ पत्रकार कमलकांत उपमन्‍यु, तत्‍कालीन डीजीपी आनंद लाल बनर्जी, तत्‍कालीन एसएसपी मथुरा मंजिल सैनी तथा मुख्‍यमंत्री के स्‍पेशल ऑफीसर इंचार्ज जगजीवन प्रसाद तक सीमित नहीं रह जाएगी।
तब इसकी जांच के दायरे में वह लोग भी होंगे जिन्‍होंने एक मामूली से पत्रकार को इतना अधिक प्रभावशाली बनाने में मदद की कि वह पूरी व्‍यवस्‍था को खुली चुनौती दे सके और मुख्‍यमंत्री के स्‍पेशल ऑफीसर इंचार्ज सहित डीजीपी व महिला एसएसपी अपनी गर्दन फंसाकर भी बलात्‍कार जैसे संगीन अपराध से उसे बच निकलने के लिए पूरा अवसर प्रदान करते रहे।
-सुरेन्‍द्र चतुर्वेदी

मुश्‍किल में मनीषा गुप्‍ता: पौने 2 करोड़ के घोटाले में शासन ने थमाया आरोपपत्र

मथुरा। नगर पालिका द्वारा एसटीपी व एसपीएस संचालन के लिए उठाए गए ठेके में पौने 2 करोड़ रुपए के घोटाले पर अब शासन ने भी अपनी मोहर लगाते हुए जिलाधिकारी के माध्‍यम से पालिकाध्‍यक्ष मनीषा गुप्‍ता को आरोप पत्र थमा दिया है।
नगर विकास अनुभाग-2 के सचिव श्रीप्रकाश सिंह तथा उप सचिव श्रवण कुमार सिंह के हस्‍ताक्षरयुक्‍त इस पत्र में जिलाधिकारी कार्यालय मथुरा से पालिकाध्‍यक्ष को तत्‍काल आरोप पत्र तामील कराने तथा तामीली की सूचना 3 दिनों के अंदर शासन को उपलब्‍ध कराने के लिए लिखा गया है।
शासन ने पालिकाध्‍यक्ष मनीषा गुप्‍ता से इस आरोप पत्र पर 15 दिन के अंदर जवाब तलब करते हुए हिदायत दी है कि यदि 15 दिन के अंदर वह अपना स्‍पष्‍टीकरण नहीं देती हैं तो यह मान लिया जाएगा कि उन्‍हें अपने बचाव में कुछ नहीं कहना। इसके बाद शासन इस मामले में उपलब्‍ध अभिलेखों के आधार पर कार्यवाही सुनिश्‍चित करेगा जिसकी पूरी जिम्‍मेदारी पालिकाध्‍यक्ष की होगी।
उत्‍तर प्रदेश शासन के नगर विकास अनुभाग-2 से पत्रांक संख्‍या 860/नौ-2-16-273 सा/15 पर दिनांक 23 जून 2016 को जारी किया गया यह आरोप पत्र कार्यालय जिलाधिकारी मथुरा में 27 जून के दिन प्राप्‍त हुआ।
पालिका प्रशासन से जब इस मामले में पूछा गया तो पता लगा कि जिलाधिकारी कार्यालय से पालिकाध्‍यक्ष को आरोप पत्र तामील हो चुका है और पालिकाध्‍यक्ष ने भी अपना जवाब शासन को भेज दिया है।
कानूनविदों की मानें तो निर्धारित समय के अंदर पालिकाध्‍यक्ष द्वारा स्‍पष्‍टीकरण न देने अथवा उनके स्‍पष्‍टीकरण से संतुष्‍ट न होने की स्‍थिति में नगर पालिका अधिनियम 1916 की धारा 48 के तहत शासन, पालिकाध्‍यक्ष को सीधे बर्खास्‍त कर सकता है।
शासन द्वारा जारी किए गए आरोप पत्र में आयुक्‍त आगरा मण्‍डल के पत्रांक संख्‍या 1234/तेईस-65 (2014-15)/स्‍था. निकाय दि. 20.01.2016 के आधार पर जिन अनियमितताओं को लेकर पालिकाध्‍यक्ष मनीषा गुप्‍ता से जवाब तलब किया गया है वो इस प्रकार है:
1- नगर पालिका परिषद मथुरा के अंतर्गत एसटीपी व एसपीएस के संचालन हेतु ठेके के लिए टेक्‍नीकल बिड एवं फाइनेन्‍शियल बिड अलग-अलग लिफाफों में रखकर एकसाथ डाली जानी थीं। इनमें से टेक्‍नीकल बिड पहले खुलनी चाहिए थी और उसका परीक्षण करने के उपरांत यह सुनिश्‍चित करना अनिवार्य था कि तकनीकी आधार पर अयोग्‍य फर्म कौन सी है क्‍योंकि तकनीकी आधार पर अयोग्‍य फर्म की फाइनेन्‍शियल बिड नहीं खोली जा सकती। इस मामले में टेक्‍नीकल बिड का मात्र तुलनात्‍मक चार्ट बनाकर खानापूरी कर दी गई और उस पर भी शर्त संख्‍या 3 के अनुसार सक्षम अधिकारी या नगर पालिका की ओर से कोई निर्णय नहीं लिया गया जो गंभीर वित्‍तीय अनियमितताओं की श्रेणी का कृत्‍य है।
2- नगर पालिका परिषद मथुरा की संबंधित पत्रावली पर इस आशय का गलत तथ्‍य अंकित किया गया कि एसटीपी व एसपीएस संचालन के ठेके की सभी बिड सफल हुईं जबकि टेक्‍नीकल बिड को स्‍वीकृत करने का कोई आदेश न तो टेंडर कमेटी द्वारा पारित किया गया और ना ही पालिका बोर्ड द्वारा उस पर कोई निर्णय लिया गया। इस प्रकार टेक्‍नीकल बिड के लिए पत्रावली पर गलत तथ्‍यों का उल्‍लेख करते हुए फाइनेन्‍शियल बिड खोल दी गई जिससे स्‍पष्‍ट है कि ठेकेदारों के साथ दुरभि संधि करके अनियमित तरीके से ठेका उठा दिया गया।
3- फरीदाबाद की जिस फर्म ”स्‍टील इंजीनियर्स” को 1 करोड़ 74 लाख 13 हजार 400 रुपए का ठेका दिया गया, उसका उत्‍तर प्रदेश से निर्गत हैसियत व चरित्र प्रमाण पत्र प्रस्‍तुत नहीं किया गया जोकि गंभीर वित्‍तीय अनियमितता की श्रेणी का कृत्‍य और भ्रष्‍टाचार का द्योतक है।
4- आपके द्वारा फरीदाबाद (हरियाणा) की जिस फर्म को ठेका दिया गया, वह नगर पालिका परिषद् मथुरा में पंजीकृत ही नहीं थी। साथ ही अन्‍य फर्म मै. पंप इंजीनियर्स एंड ट्रेडर्स द्वारिकापुरी मथुरा का हैसियत प्रमाण पत्र, वांछित से कम था लिहाजा संपूर्ण वित्‍तीय वर्ष 2014-15 के लिए पर्याप्‍त नहीं था लेकिन आपने उसके द्वारा डाली गई बिड को सफल मान लिया।
इसी प्रकार लुधियाना की फर्म मै. लॉर्ड कृष्‍णा एंटरप्राइजेज ने भी उत्‍तर प्रदेश से निर्गत हैसियत व चरित्र प्रमाण पत्र प्रस्‍तुत नहीं किए थे, बावजूद इसके आपके द्वारा उसकी टेक्‍नीकल बिड को सफल मान लिया गया जबकि उसके प्रमाण पत्र ठेके के लिए मान्‍य ही नहीं थे।
5- इस प्रकार तीनों फर्म्‍स तकनीकी रूप से अयोग्‍य होने के कारण बिड निरस्‍त की जानी चाहिए थी लेकिन बिड खोली गईं।
6- टेक्‍नीकल बिड स्‍वीकृत होने तथा फाइनेन्‍शियल बिड खोले जाने के बीच समय का कोई अंतर नहीं रखा गया और दोनों बिड एकसाथ खोलकर नियमों का घोर उल्‍लंघन किया गया।
7- फरीदाबाद की जिस फर्म ”स्‍टील इंजीनियर्स” को 1 करोड़ 74 लाख 13 हजार 400 रुपए का ठेका दिया गया, उसके अनुबंध हेतु शपथ पत्र तो प्रोपराइटर कर्मवीर मेहता का प्रस्‍तुत किया गया लेकिन हैसियत प्रमाण पत्र उनकी पत्‍नी सुमन मेहता का लगाया गया जो हरियाणा से जारी किया गया था।
आपका यह कृत्‍य पूरी तरह नियम विरुद्ध है और स्‍पष्‍ट करता है कि ”स्‍टील इंजीनियर्स” को ठेका दुरभि संधि करके दिया गया।
8- मै. स्‍टील इंजीनियर्स द्वारा श्रम विभाग को दिए गए प्रपत्र में 16 कर्मचारी दिखाए गए जबकि नगर पालिका परिषद मथुरा में 12 सीवेज पंप के संचालन पर 8-8 घंटे की ड्यूटी के हिसाब से कुल 72 कर्मचारी तथा दो एसटीपी के संचालन के लिए कुल 12 कर्मचारियों की आवश्‍यकता थी। इस प्रकार 84 कर्मचारियों की आवश्‍यकता थी जिनका उल्‍लेख पत्रावली में कर्मचारियों की सूची के अंदर भी नहीं किया गया।
9- एसटीपी व एसपीएस संचालन में अनुरक्षण व सत्‍यापन के लिए उत्‍तर प्रदेश नगर पालिका अधिनियम 1916 की धारा 104 के अनुसार सभासदों की एक कमेटी बनाए जाने का प्रावधान है किंतु आपके द्वारा ऐसी किसी कमेटी का गठन ही नहीं किया गया जोकि नियमों का स्‍पष्‍ट उल्‍लंघन साबित करता है।
10- प्रशासनिक अधिकारियों ने समय-समय पर जब कभी एसटीपी व एसपीएस का निरीक्षण किया तो वह प्राय: बंद पाए गए। 09 फरवरी 2015 को किए गए निरीक्षण में भी स्‍टेशन बंद मिले और गंदा पानी सीधे यमुना में गिरता पाया गया।
उल्‍लेखनीय है कि पौने 2 करोड़ रुपए के इस घोटाले में पालिका अध्‍यक्ष मनीषा गुप्‍ता के अतिरिक्‍त अधिशासी अधिकारी के. पी. सिंह, अवर अभियंता (जलकल) के. आर. सिंह, सहायक अभियंता उदयराज, लेखाकार विकास गर्ग तथा लिपिक टुकेश शर्मा भी आरोपी हैं।
ठेका उठाने में बरती गईं अनियमितताओं तथा भ्रष्‍टाचार का यह मामला अब नेशनल ग्रीन ट्रिब्‍यूनल (NGT) में भी लंबित है और वहां इसकी सुनवाई के लिए इसी महीने की 25 तारीख मुकर्रर की गई है। ऐसे में देखना यह होगा कि पौने 2 करोड़ रुपए का घोटाला करने के इन आरोपियों पर पहले शासन स्‍तर से कार्यवाही की जाती है अथवा एनजीटी इनके खिलाफ कार्यवाही की पहल करता है।
इस पूरे मामले का एक दिलचस्‍प पहलू यह है कि गंगा और यमुना जैसी जिन पवित्र नदियों को प्रदूषण मुक्‍त करने के लिए मोदी सरकार एड़ी से चोटी तक का जोर लगा रही है और अखिलेश सरकार भी उसमें पूरा सहयोग करने का वादा कर चुकी है, उनके एसटीपी व एसपीएस संचालन में घोटाले की आरोपी मथुरा की पालिकाध्‍यक्ष मनीषा गुप्‍ता यूपी के आगामी विधानसभा चुनावों में मथुरा-वृंदावन क्षेत्र से चुनाव लड़ने का ख्‍वाब देख रही हैं। उनके पति और भाजपा नेता राजेश गुप्‍ता ”डब्‍बू” दावा कर रहे हैं कि मनीषा को न केवल टिकट मिलेगा बल्‍कि वह यूपी में बनने वाली अगली सरकार के अंदर मंत्रिपद भी ग्रहण करेंगी।
-लीजेंड न्‍यूज़

बलात्‍कार के केस में पत्रकार उपमन्‍यु को इलाहाबाद High Court से तगड़ा झटका

-कोर्ट ने पूछा, क्‍यों न CBI को सौंप दिया जाए केस 
-मुख्‍यमंत्री के स्‍पेशल ऑफीसर इंचार्ज, डीजीपी यूपी तथा एसएसपी मथुरा से 25 जुलाई तक शपथपत्र दाखिल करने को कहा 
मथुरा। एमबीए पास एक लड़की से बलात्‍कार करने के केस में पत्रकार कमलकांत उपमन्‍यु को इलाहाबाद High Court ने तगड़ा झटका दिया है।
इलाहाबाद हाईकोर्ट के विद्वान न्‍यायाधीश माननीय अरुण टंडन तथा माननीय सुनीता अग्रवाल की डिवीजन बैंच ने गत 12 जुलाई के अपने आदेश में इस मामले पर मुख्‍यमंत्री उत्‍तर प्रदेश अखिलेश यादव के स्‍पेशल ऑफीसर इंचार्ज जगजीवन प्रसाद, डीजीपी उत्‍तर प्रदेश तथा एसएसपी मथुरा को अपने-अपने शपथपत्र दाखिल करने को कहा है।
कोर्ट ने अपने आदेश में यह भी पूछा है कि जिस तरह से बलात्‍कार पीड़िता के कोर्ट में बयान होने के बावजूद जांच ट्रांसफर कर दी गई, उसे देखते हुए क्‍यों न यह मामला सीबीआई के सुपुर्द कर दिया जाए।
गौरतलब है कि पीड़िता की तहरीर पर दुराचार का यह मामला 06 दिसंबर 2014 को मथुरा के हाईवे थाने में अपराध संख्‍या 944/2014 धारा 376 व 506 आईपीसी के तहत दर्ज हुआ था।
उत्‍तर प्रदेश जर्नलिस्‍ट एसोसिएशन के प्रदेश उपाध्‍यक्ष, ब्रज प्रेस क्‍लब के अध्‍यक्ष तथा मथुरा छावनी बोर्ड के भी उपाध्‍यक्ष पद पर काबिज रहे कमलकांत उपमन्‍यु ने अपने प्रभाव का इस्‍तेमाल करते हुए पहले तो इस गंभीर आपराधिक मामले की जांच को मथुरा से फिरोजाबाद स्‍थानांतरित करा लिया और फिर उसमें फिरोजाबाद पुलिस से फाइनल रिपोर्ट लगवा दी जबकि जांच स्‍थानांतरित होने से पूर्व न केवल पीड़िता का मेडीकल हो चुका था बल्‍कि मथुरा पुलिस के सामने 161 व कोर्ट में 164 के तहत बयान भी दर्ज कराए जा चुके थे। जिस समय यह जांच स्‍थानांतरित की गई उस समय उत्‍तर प्रदेश पुलिस के डीजी आनंद लाल बनर्जी हुआ करते थे और जिन्‍हें बमुश्‍किल एक सप्‍ताह बाद ही अपने पद से मुक्‍त होना था जबकि मथुरा के एसएसपी पद पर मंजिल सैनी काबिज थीं जो फिलहाल लखनऊ के एसएसपी पद पर काबिज हैं। तत्‍कालीन एसएसपी मंजिल सैनी की आरोपी पत्रकार कमलकांत उपमन्‍यु से नजदीकियां जगजाहिर थीं और मंजिल सैनी के उपमन्‍यु के घर पर उसके साथ खींचे गए फोटो भी उसकी पुष्‍टि कर रहे थे लिहाजा मंजिल सैनी ने पहले तो उपमन्‍यु के खिलाफ एफआईआर ही बड़ी मुश्‍किल से दर्ज होने दी और फिर एफआईआर दर्ज होने के बावजूद उसकी गिरफ्तारी न करके उसे अपने प्रभाव का इस्‍तेमाल करने की पूरी छूट भी दी। एसएसपी का संरक्षण ही था कि बलात्‍कार जैसे संगीन आरोप में और पीड़िता के 164 के बयान हो जाने के बावजूद कमलकांत उपमन्‍यु अपने सगे भाई की एप्‍लीकेशन पर जांच मथुरा से फिरोजाबाद स्‍थानांतरित करने में सफल रहा।
फिरोजाबाद में तब तक एसपी के पद पर पीयूष श्रीवास्‍तव आ चुके थे जो पहले मथुरा में एएसपी रहे थे। पीयूष श्रीवास्‍तव से भी कमलकांत उपमन्‍यु की अच्‍छी सेटिंग थी इसलिए उसे फिरोजाबाद के आईओ को प्रभावित करने में कोई परेशानी नहीं हुई।
केस की गंभीरता और आरोपी पत्रकार कमलकांत उपमन्‍यु के प्रभाव को देखते हुए मथुरा बार एसोसिएशन के तत्‍कालीन अध्‍यक्ष एडवोकेट विजयपाल तोमर इसे इलाहाबाद हाईकोर्ट ले गए और 09 फरवरी 2015 को जनहित याचिका दायर की।
एडवोकेट विजयपाल तोमर की याचिका पर इलाहाबाद हाईकोर्ट के मुख्‍य न्‍यायाधीश माननीय डी. वाई. चंद्रचूढ़ तथा माननीय सुजीत कुमार की बैंच ने संज्ञान लेते हुए 11 फरवरी 2015 के अपने आदेश में संबंधित सभी अधिकारियों तथा सीजेएम मथुरा को आवश्‍यक दिशा-निर्देश दिए।
इलाहाबाद हाइकोर्ट में लंबित होते हुए पत्रकार कमलकांत उपमन्‍यु ने इस बीच फिरोजाबाद पुलिस से इस मामले में फाइनल रिपोर्ट लगवा ली।
बताया जाता है कि आरोपी कमलकांत उपमन्‍यु ने पीड़िता को भी अपना प्रभाव दिखाकर मथुरा कोर्ट के अंदर अपने पक्ष में बयान देने पर बाध्‍य कर दिया।
अब जबकि याचिकाकर्ता एडवोकेट विजयपाल तोमर ने 12 जुलाई 2016 को कोर्ट के समक्ष सारा मामला पेश किया और बताया कि किस तरह आरोपी ने अपने प्रभाव का इस्‍तेमाल कर न केवल जांच बदलवाई बल्‍कि उसमें फाइनल रिपोर्ट लगवाकर पीड़िता के बयान भी अपने पक्ष में करा लिए तो कोर्ट ने केस की गंभीरता के मद्देनजर अब 25 जुलाई तक मुख्‍यमंत्री के स्‍पेशल ऑफीसर इंचार्ज जगजीवन प्रसाद, डीजीपी उत्‍तर प्रदेश तथा एसएसपी मथुरा को अपने-अपने शपथपत्र दाखिल करने करने को कहा है। साथ ही कोर्ट ने अपने आदेश में पूछा है कि क्‍यों न यह मामला सीबीआई के सुपुर्द कर दिया जाए। इलाहाबाद हाईकोर्ट में अब इस मामले की सुनवाई 27 जुलाई को होनी है।
-लीजेंड न्‍यूज़

मंगलवार, 12 जुलाई 2016

टेकमैन ग्रुप ने भ्रामक विज्ञापन देकर नए Real Estate Bill को दी खुली चुनौती

मथुरा बेस्‍ड रीअल एस्‍टेट कंपनी Techman Buildwell Pvt Ltd द्वारा हाल ही में बने रीअल एस्‍टेट बिल को खुली चुनौती दी गई है। Techman Buildwell ने नए रीअल एस्‍टेट बिल में शामिल कानूनी प्रावधानों को ताक पर रखकर लोगों से पैसा इकठ्ठा करने के लिए ऐसा भ्रामक विज्ञापन दिया है जो यह साबित करता है कि सरकार की मंशा चाहे कितनी ही अच्‍छी क्‍यों न हो और वह कैसा भी कठोर कानून क्‍यों न ले आए किंतु जिन्‍हें कानून से खिलवाड़ करने की आदत है, वह अपनी आदत से बाज नहीं आने वाले।
दरअसल, Techman Group ने आगरा से प्रकाशित दैनिक जागरण अखबार के 10 जुलाई वाले मथुरा संस्‍करण में पृष्‍ठ संख्‍या 4 पर एक क्‍वार्टर पेज कलर्ड विज्ञापन दिया है।
”उधर घर किया बुक, इधर इनकम शुरू” शीर्षक वाले इस विज्ञापन के तहत ”अब तो दोनों हाथों में लड्डू” होने का लालच देते हुए बताया गया है कि किस तरह बुकिंग कराने के साथ ही खरीदार की आमदनी शुरू हो जाएगी जबकि सच यह है कि इस विज्ञापन के झांसे में आने वाला खरीदार आमदनी तो दूर अपने फ्लैट को पाने के लिए भी बिल्‍डर के हाथ की कठपुतली बनकर रह जाएगा।
विज्ञापन कुछ इस प्रकार है- अब Techman लाए हैं Real Estate में Monthly Income Plan (MIP). सिर्फ रु. 1.80 में 2 BHK बुक कराएं और Possession तक Home Loan ब्‍याज समेत हर महीने 15840 रु. तक पाएं।
विज्ञापन के अनुसार Techman Group की यह स्‍कीम उनके प्रोजेक्‍ट नीलगिरी इंडिपेंडेट फ्लोर, हर्ष इंडिपेंडेट फ्लोर, हिमगिरी अपार्टमेंट एंड सिटी कॉम्‍पलेक्‍स में 2BHK सहित 1BHK तथा 3BHK के लिए भी है जो मथुरा में नेशनल हाईवे नंबर-2 पर Techman City के अंदर आते हैं।
विज्ञापन में नीचे लिखा है कि यही स्‍कीम उनके गाजियाबाद (दिल्‍ली एनसीआर) के प्रोजेक्‍ट्स मोती रेजीडेंसी राजनगर Extn. तथा मोती सिटी मोदीनगर पर भी लागू है।
इस संबंध में पूरी जानकारी के लिए जब ‘Legend News’ ने विज्ञापन के नीचे दिए गए एक मोबाइल नंबर 9555632609 पर जानकारी की तो फोन रिसीव करने वाले ने बताया कि प्रथम तो वह खरीदार से बुकिंग एमाउंट 20 प्रतिशत लेंगे न कि 10 प्रतिशत जैसा कि विज्ञापन में लिखा है। इसके अलावा जिस फ्लैट की कीमत विज्ञापन में 18 लाख रु. दर्शायी गई है, उसकी एक्‍चुअल कीमत 20 लाख रुपए होगी।
फ्लैट की शेष रकम के लिए ग्रुप द्वारा खरीदार के नाम स्‍टेट बैंक ऑफ इंडिया, आईसीआईसीआई बैंक तथा एचडीएफसी बैंक से होम लोन कराया जाएगा। विज्ञापन में उक्‍त बैंकों से होम लोन दिलाने की सुविधा का उल्‍लेख किया गया है।
फोन रिसीव करने वाले के मुताबिक ग्रुप की ओर से खरीदार को उसके द्वारा जमा कराए गए बुकिंग एमाउंट पर तो Possession न देने तक 15 प्रतिशत यानि सवा रुपया सैकड़ा के हिसाब से ब्‍याज दिया जाएगा, साथ ही होम लोन की ब्‍याज (न कि किश्‍त)का जो पैसा बनेगा, वह भी देगा।
इस हिसाब से देखें तो बिल्‍डर ने बड़ी चालाकी के साथ घर का सपना दिखाकर खरीदार के अपने पैसे तथा बैंक से उसे दिलाए गए कर्ज को भी तब तक इस्‍तेमाल करने का इंतजाम करने की कोशिश की है जब तक कि उसका प्रोजेक्‍ट तैयार नहीं हो जाता। इस दौरान बैंक का कर्ज रहेगा खरीदार के ऊपर और उसका इस्‍तेमाल बिना किसी जोखिम के बिल्‍डर द्वारा किया जाएगा।
फोन रिसीव करने वाले ने साफ-साफ कहा कि बैंक से होम लोन कराने की पूरी व्‍यवस्‍था उसके यानि ग्रुप के द्वारा की जाएगी, उसके लिए खरीदार को परेशान होने की जरूरत नहीं है।
इस पूरे विज्ञापन में कहीं भी यह नहीं लिखा है कि Techman Group के यह प्रोजेक्‍ट कब तक पूरे होंगे और कब तक खरीदार को उसके सपनों के घर का Possession मिल पाएगा।
अब जरा गौर करें कि केंद्र सरकार द्वारा रीअल एस्‍टेट के क्षेत्र में वर्षों से चली आ रही इसी प्रकार की धोखाधड़ी को रोकने के लिए रीअल एस्‍टेट बिल में किए गए बंदोबस्‍तों पर और जानें कि किस प्रकार Techman Group का यह विज्ञापन ऐसे गंभीर अपराध की श्रेणी में आता है जिसके लिए अच्‍छा-खासा जुर्माना तथा जेल की सजा दोनों मुकर्रर हैं:
1-नए रीअल एस्‍टेट बिल में व्‍यवस्‍था की गई है कि बिल्डर जो पैसा खरीदार अर्थात् उपभोक्‍ता से लेते हैं, उस राशि का 70 प्रतिशत हिस्सा उन्हें अलग बैंक में रखना होगा और इस पैसे का इस्तेमाल सिर्फ उसी प्रोजेक्‍ट में करना होगा जिसके लिए पैसा लिया गया है।
2-नए बिल में यह सुनिश्‍चित किया गया है कि बिल्डर को प्रोजेक्ट संबंधी संपूर्ण जानकारी जैसे प्रोजेक्ट का ले-आउट क्या है, मंज़ूरी कब व कैसे मिली, ठेकेदार कौन है, इंजीनियर कितने व कौन-कौन हैं, प्रोजेक्ट की मियाद क्या है, काम कब तक पूरा होगा, आदि अनिवार्य तौर पर देनी होगी।
3-बिल्डर अगर पूर्व घोषित समय तक निर्माण कार्य पूरा नहीं करता तो उसे उसी दर पर ख़रीदार को ब्याज़ का भुगतान करना होगा जिस दर पर वो ख़रीदार से भुगतान में किसी चूक के बाद ब्याज़ वसूलता है।
4-कोई भी बिल्डर अपनी सम्पत्ति को ‘सुपर एरिया’ के आधार पर नहीं बेच सकेगा जिसमें फ्लैट के अंदर का हिस्सा और बाहर का साझा भाग जैसे लिफ्ट और कार पार्किंग वगैरह शामिल होते हैं। अब कार्पेट एरिया लिखना अनिवार्य होगा।
5-कोई बिल्डर अगर रियल एस्टेट रेग्यूलेटरी अथॉरिटी के आदेश की अवहेलना करता है तो उसे जेल की सजा हो सकती है और जुर्माना भी भरना पड़ सकता है।
6-इसके अलावा बिल्‍डर को ख़रीदारों के हाथ में फ्लैट आने के तीन महीने के भीतर रेज़ीडेंट वेलफेयर एसोसिएशन का गठन करना होगा ताकि वे सारी सुविधाओं की देखभाल कर सकें।
7-अथॉरिटी की वेबसाइट के माध्यम से प्रोजेक्ट संबंधी वो सभी जरूरी, सामान्‍य तथा महत्वूपर्ण जानकारियां खरीदार को देनी होंगी, जिनके लिए वह अब तक केवल प्रोजेक्ट निर्माता पर निर्भर था।
8-प्रोजेक्ट में तब तक कोई बदलाव नहीं किया जा सकता जब तक की खरीदार की अनुमति न हो। यह सभी व्‍यावसायिक और आवासीय रियल एस्‍टेट परियोजनाओं पर लागू होगा। यह नियम अंडर कंस्‍ट्रक्‍शन एवं 2016 में कंप्‍लीट प्रोजेक्‍ट पर भी लागू होगा।
9-नगर निकाय व अन्‍य प्रशासनिक कार्यालयों से मंजूरी लिये बगैर बिल्‍डर किसी प्रीलॉन्‍च प्रोजेक्‍ट के विज्ञापन नहीं दे सकेंगे। प्रोजेक्ट लॉन्च होते ही बिल्डर्स को प्रोजेक्ट से संबंध‍ित पूरी जानकारी अपनी वेबसाइट पर भी देनी होगी। इसके साथ ही प्रोजेक्ट में रोजाना होने वाले अपडेट के बारे में भी वेबसाइट पर सूचित करना जरूरी कर दिया गया है।
10-बिल्‍डर यदि प्रोजेक्‍ट के विज्ञापन में किए गए किसी वायदे को पूरा नहीं करता है तो उसे 3 से 5 साल तक की जेल और जुर्माना या दोनों एकसाथ भुगतनी पड़ सकती हैं।
नए रीअल एस्‍टेट बिल में की गई इन सभी व्‍यवस्‍थाओं के अनुसार Techman Group ने न तो अपने विज्ञापन में प्रोजेक्‍ट की किसी जानकारी का खुलासा किया है और न उसकी समय सीमा का जिक्र किया है।
ग्रुप ने अपनी वेबसाइट पर भी नए बिल के अनुसार जरूरी जानकारियां उपलब्‍ध नहीं कराई हैं। जिस हर्ष प्रोजेक्‍ट का विज्ञापन में उल्‍लेख है, उसके बारे में तो वेबसाइट पर COMING SOON का बोर्ड लटका है।
विज्ञापन में लिखा है कि MIP में HOME LOAN ब्‍याज के साथ Allottee की हर महीने इनकम भी। Allottee को यह इनकम कैसे होगी, यह समझ से परे है।
जब Allottee के ही बुकिंग एमाउंट पर सवा रुपया सैकड़ा के हिसाब से ब्‍याज दिया जाएगा और उसी को दिलाए गए होम लोन की ब्‍याजभर उसे दी जाएगी तो उसकी अपनी इनकम कैसे हुई ?
इस विज्ञापन का सबसे महत्‍वपूर्ण और ध्‍यान देने लायक पहलू यह है कि विज्ञापन में Allottee की मासिक आय बैंक की FD से दोगुनी होने का दावा किया गया है जो पूरी तरह भ्रामक और गुमराह करके लोगों को अपने जाल में फंसाने का प्रयास है।
ऐसा लगता है कि नए रीअल एस्‍टेट बिल और उसमें निहित नियम-कानून को ताक पर रखकर Techman Group द्वारा दिए गए इस भ्रामक विज्ञापन में उन बैंकों की भी पूरी सहमति है जिनके लोगो इस्‍तेमाल करते हुए ग्रुप ने इनसे लोन कराने की सुविधा का हवाला दिया है। अन्‍यथा यह कैसे संभव है कि जिस विज्ञापन में बैंक की एफडी से अधिक आमदनी कराने का दावा किया गया हो, उस विज्ञापन पर संबंधित बैंकों को कोई आपत्‍ति ही न हो।
सच तो यह है कि इस पूरे विज्ञापन का मकसद Techman Group द्वारा लोगों को अपने जाल में फंसाना और बैंक की एफडी से अधिक आमदनी का लालच देकर उनकी खुद की पूंजी को अपने प्रोजेक्‍ट में इस्‍तेमाल करना है।
यदि ग्रुप की नीयत साफ होती तो वह नए नियमों का पालन करते हुए विज्ञापन में सभी बातों का खुलासा करता तथा बताता कि कौन सा प्रोजेक्‍ट कब तक पूरा होगा, साथ ही यह भी साफ करता कि Allottee के अपने बुकिंग एमाउंट पर सवा रुपए सैकड़े की ब्‍याज तथा होम लोन की ब्‍याज का मासिक भुगतान किस तरह उसकी आमदनी हुई।
-सुरेन्‍द्र चतुर्वेदी

रविवार, 3 जुलाई 2016

राजनीति: सफलता की शत-प्रतिशत गारंटी वाला कारोबार

भारत में राजनीति ही एक ऐसा कारोबार है जो शत-प्रतिशत सफलता की गारंटी देता है। राजनीति के अलावा दूसरा कोई ऐसा कारोबार नहीं जो किसी को सीधे फर्श से अर्स पर बैठाने की गारंटी देता हो।
यकीन न हो तो गौर करें हाल ही में आई इस रिपोर्ट पर:
स्‍वतंत्रता मिलने के 68 सालों बाद तक जिस देश में करोड़ों लोग दो जून की रोटी कमाने के लिए हाड़तोड़ मेहनत करते हों और उसके लिए भी मनरेगा की दिहाड़ी पर निर्भर हों…जिस देश में रोटी, कपड़ा तथा मकान जैसी आवश्‍यक आवश्‍यकताओं की पूर्ति भी कुल जनसंख्‍या के एक बड़े हिस्‍से के लिए कोई बड़ा सपना साकार हो जाने के बराबर हो…जिस देश की आबादी के एक बड़े हिस्‍से को स्‍वच्‍छ पेयजल तक मुहैया कराने में सरकारें असमर्थ हों और जिस देश के लाखों गांव आज तक बिजली की रौशनी से महरूम हों, उस देश में किसी एक व्‍यक्‍ति के पास सैकड़ों करोड़ रुपए की संपत्‍ति होने का पता लगने पर कैसा महससूस होता है, यह वही बता सकता है जो सरकारी सस्‍ते गल्‍ले की दुकान से सस्‍ता राशन खरीदने के लिए उम्र के चौथे पड़ाव में कभी राज्‍य स्‍तरीय नेताओं के घर पर धरना देता है तो कभी केंद्रीय गृहमंत्री के दर पर जाकर बैठ जाता है क्‍योंकि उसका राशन कार्ड नहीं बना।
हाल ही में एसोसिएशन फॉर डेमोक्रेटिक रिफॉर्म द्वारा कराए गए एक सर्वे से पता लगा है कि गत दिनों राज्‍यसभा के लिए चुने गए लगभग सभी 57 सदस्‍य करोड़पति हैं। इनमें से 13 सदस्यों के खिलाफ आपराधिक केस चल रहे हैं।
करोड़पति सदस्‍यों की इस लिस्‍ट में ऐसे भी हैं जिनकी संपत्‍ति सैकड़ों करोड़ रुपए है। मसलन कांग्रेसी नेता प्रफुल्‍ल पटेल 252 करोड़ रुपए की संपत्‍ति के स्‍वामी हैं जबकि कांग्रेस के ही कपिल सिब्‍बल 212 करोड़ रुपए की संपत्‍ति के मालिक हैं। बहुजन समाज पार्टी के नेता सतीश मिश्रा के पास 193 करोड़ रुपए की संपत्‍ति है। सतीश मिश्रा के साथ एक और खासियत यह जुड़ी हुई है कि उनकी संपत्‍ति में 698 प्रतिशत का इजाफा हुआ है। मिश्रा की संपत्ति पहले 24.18 करोड़ थी।
भाजपा के अनिल दवे की संपत्‍ति में रिकॉर्ड तोड़ इजाफा हुआ है। इनकी संपत्‍ति 2,111 प्रतिशत बढ़ी है, बावजूद इसके अनिल दवे सबसे गरीब सदस्‍य हैं। इनकी कुल संपत्‍ति 60.97 लाख है जो पूर्व में 2 लाख 75 हजार रुपए हुआ करती थी। शिवसेना के संजय राउत की संपत्ति में 841 प्रतिशत की बढ़ोत्‍तरी हुई है। राउत की संपत्‍ति 1.51 करोड़ से बढ़कर 14.22 करोड़ हो गई है।
इस सर्वेक्षण में सामने आया कि राज्यसभा के 13 सदस्यों के खिलाफ आपराधिक केस दर्ज हैं। इनमें से सात लोगों के खिलाफ गंभीर अपराध जैसे मर्डर, धोखाधड़ी, प्रॉपर्टी से जुड़ी बेईमानी और चोरी जैसे केस दर्ज हैं। भाजपा के 3, सपा के 2, कांग्रेस, बीजेडी, बसपा, आरजेडी, डीएमके, शिवसेना और वाईएसआरसीपी के एक सदस्यों के खिलाफ आपराधिक केस दर्ज हैं।
यूपी के 11 राज्यसभा सदस्यों में 4 के खिलाफ केस दर्ज हैं, बिहार के 5 सदस्यों में से 2, महाराष्ट्र के 6 सदस्यों में से 1, तमिलनाडु के 6 सदस्यों में से एक, कनार्टक के 4 सदस्यों में से 1, आंध्रप्रदेश के 4 सदस्यों में से 1, मध्यप्रदेश के 3 सदस्यों में से 1, उड़ीसा के 3 सदस्यों में से 1 और हरियाणा के 2 सदस्यों में से 1 के खिलाफ केस दर्ज हैं।
बताया जाता है कि पेशे से वकील और कांग्रेस के नेता पूर्व केंद्रीय मंत्री कपिल सिब्‍बल की देश में कई पशु वधशालाएं हैं। वह मांस का बड़े पैमाने पर निर्यात करते हैं। मांस का यह कारोबार खुद उनके नाम है अथवा पत्‍नी या बच्‍चों के नाम, इसका तो पता नहीं अलबत्‍ता 212 करोड़ रुपए की जो संपत्‍ति सामने आई है वह उनके अपने नाम है।
इसी प्रकार दूसरे कांग्रेसी नेता प्रफुल्‍ल पटेल का भी निश्‍चित ही कोई न कोई करोबार होगा और उन्‍होंने उस पार्ट टाइम कारोबार में राजनीति के फुल टाइम व्‍यापार से कमाया गया पैसा निवेश किया होगा। हालांकि यह मात्र अंदाज है क्‍योंकि सर्वेक्षण में इसका कहीं कोई जिक्र नहीं है कि इन माननीयों की संपत्‍ति का स्‍त्रोत आखिर क्‍या है। बसपा के जिन माननीय राज्‍यसभा सदस्‍य सतीश मिश्रा के संपत्‍ति में 698 प्रतिशत का इजाफा हुआ है और वह 24.18 करोड़ की संप्‍पति से छलांग लगाकर सीधे 193 करोड़ रुपए की संपत्‍ति के मालिक बन गए हैं, उनके बारे में प्राप्‍त जानकारी के अनुसार वह भी पेशेवर वकील हैं और बसपा की नाक के बाल बनने से पहले कानपुर में वकालत ही किया करते थे।
एक ओर देश में कालेधन को लेकर अकसर चर्चाएं होती रहती हैं और 2014 के उस चुनावी वायदे को मुद्दा बनाया जाता है जिसके तहत भाजपा नेताओं ने कालेधन को देश में लाकर प्रत्‍येक भारतीय के खाते में 15 लाख रुपए से ऊपर की रकम आने की बात कही थी लेकिन दूसरी ओर माननीयों की संपत्‍ति पर किसी स्‍तर से कोई टीका-टिप्‍पणी तक नहीं होती।
कालेधन पर शोर मचाने वालों में आज के विपक्षी नेताओं से लेकर सत्‍ताधारी भाजपा के वो नेता भी शामिल हैं जो कभी विपक्षी हुआ करते थे किंतु माननीयों की संपत्‍ति पर सवाल पूछने वाला कोई नहीं।
अगर यह मान भी लिया जाए कि माननीयों ने यह संपत्‍ति अपने फुल टाइम कारोबार राजनीति से पार्ट टाइम किसी उद्योग या व्‍यापार में निवेश करके कमाई है, तो भी बड़ा सवाल यह खड़ा होता है कि आखिर यह कौन सा ऐसा उद्योग-व्‍यापार करते हैं जो इनके लिए सोने की खान साबित होता है।
दिमाग में सवाल यह भी कौंधता है कि जहां विजय माल्‍या जैसे लिकर किंग को कारोबार में घाटे के चलते देश छोड़कर भागना पड़ता है, सुब्रत राय सहारा जैसों को पब्‍लिक का पैसा न लौटा पाने के कारण 2 साल से अधिक का समय तिहाड़ जेल में गुजारना पड़ता है, रिलायंस के मालिक अंबानियों से लेकर जेपी ग्रुप के स्‍वामियों तक का बाल-बाल कर्ज में डूबा हुआ है, वहां राजनीति के इन कारोबारियों का व्‍यापार इतनी तेजी से छलांग कैसे लगा रहा है कि किसी की संपत्‍ति 698 प्रतिशत बढ़ गई तो किसी की 2,111 प्रतिशत।
आश्‍चर्य की बात यह है कि सामान्‍य तौर पर जनता के सामने परस्‍पर कुत्‍ते-बिल्‍ली जैसे स्‍वाभाविक व प्राकृतिक वैर-भाव का प्रदर्शन करने वाले विभिन्‍न राजनीतिक दलों के नेता अपनी संपत्‍ति के मामले में चोर-चोर मौसेरे भाई की कहावत को चरितार्थ करते हैं।
यहां इनका प्रेम उसी तरह दिखाई देता है जिस तरह वेतन-भत्‍ते बढ़ाने के मामले में संसद अथवा विधानसभाओं के अंदर दिखाई देता रहा है। तब इनके बीच न कोई मतभेद होता है और न मनभेद। उस समय इनका आचार-व्‍यवहार उस सहोदर जैसा हो जाता है जिनके बीच उम्र व अनुभव का फासला भले ही हो किंतु जिन्‍होंने जन्‍म एक ही मां की कोख से लिया हो।
राज्‍यसभा के लिए नव निर्वाचित इन माननीयों की संपत्‍ति का ब्‍यौरा सामने आने पर यह पता जरूर लगता है कि क्‍यों कोई बड़ा वकील अपनी अच्‍छी-खासी प्रेक्‍टिस छोड़कर मौका मिलते ही फुलटाइमर राजनीतिज्ञ बन जाता है क्‍यों करोड़ों-अरबों का व्‍यापार करने वाले भी करोड़ों खर्च करके राजनीति का हिस्‍सा बनने को बेताब रहते हैं।
दरअसल, आज की राजनीति न केवल आर्थिक रुप से संपन्‍न होने की गारंटी देती है बल्‍कि तमाम ऐसे कार्यों से भी साफ बच निकलने का आश्‍वासन देती है जो गंभीर अपराध की श्रेणी में आते हैं।
तभी तो सामान्‍य तौर पर जहां 323, 504 या 506 की धाराओं का आरोपी भी तत्‍काल पुलिस की हिरासत का हकदार बन जाता है वहीं रॉबर्ट वाड्रा, ललित मोदी तथा विजय माल्‍या जैसे आर्थिक अपराधी तमाम जांचों का हिस्‍सा होने के बावजूद फेसबुक व टि्वटर के माध्‍यम से कानून के साथ खेलते रहते हैं और उन्‍हें छूने तक की हिमाकत कोई नहीं कर पाता।
देश का विदेशों में छिपा काला धन जब बाहर आयेगा, तब आयेगा किंतु यदि देश के अंदर छिपे काले धन का ही पता लगा लिया जाए और उसके उन स्‍त्रोतों की जानकारी सार्वजनिक कर दी जाए जिनसे किसी की संपत्‍ति में 698 प्रतिशत का इजाफा हो जाता है तो किसी की संप्‍पति 2,111 प्रतिशत के अनुपात से बढ़ जाती है, तो निश्‍चित ही जनसामान्‍य को कुछ न मिलकर भी बहुत कुछ मिल जायेगा।
यूं भी समय-समय पर यह चर्चा का विषय रहा है कि बाहर छिपे कालेधन से अधिक देश के अंदर ही कालाधान मौजूद है, बस जरूरत है तो उसे बाहर निकालने के लिए दृढ़ इच्‍छाशक्‍ति की और दलगत राजनीति से ऊपर उठकर ठोस कानूनी कार्यवाही करने की।
हाल ही में प्रधानमंत्री मोदी ने एक चैनल को दिए गए इटरव्‍यू के दौरान कहा था कि देश के अंदर खुशहाली लाने तथा कानून-व्‍यवस्‍था को पूरी तरह चुस्‍त-दुरुस्‍त बनाने तक का मंत्र विकास में छिपा है। विकास होगा तो लोग सुखी व संपन्‍न होंगे…और लोग सुखी व संपन्‍न होंगे तो देश खुशहाल होगा।
हो सकता है प्रधानमंत्री का कथन कुछ हद तक सही हो लेकिन यह शत-प्रतिशत सफलता की गारंटी नहीं देता। यदि ऐसा होता तो पूर्ण विकसित कहलाने वाले देशों में कभी कोई अपराध होता ही नहीं और उनके सामने किसी किस्‍म की कोई समस्‍या भी कभी खड़ी नहीं होती।
देश को खुशहाल बनाने की गारंटी केवल ऐसी ही व्‍यवस्‍था दे सकती है जिसमें आय के स्‍त्रोत पूरी तरह पारदर्शी हों। लोगों के बीच की आय में जमीन-आसमान का अंतर न हो और यदि हो तो उसके कारण ज्ञात हों, सार्वजनिक हों। जनसामान्‍य को भी पता हो कि यदि किसी की आय में अप्रत्‍याशित वृद्धि हुई है तो कैसे हुई है। वह प्रति वर्ष सरकार को कितना राजस्‍व देता रहा है। उसकी आमदनी का जरिया गैरकानूनी तो नहीं है।
यदि ऐसा होता है तो निश्‍चित ही देश विकास के मार्ग पर दौड़ेगा और कानून-व्‍यवस्‍था की स्‍थिति में भी उल्‍लेखनीय सुधार होगा।
हाल ही में राज्‍यसभा के लिए चुने गए ये 57 माननीय तो फर्श से अर्स तक की द्रुतगति से यात्रा करने वालों की नजीर भर हैं, कड़वा सच तो यह है कि राजनीति आज देश के सबसे सुरक्षित व सफल कारोबार में तब्‍दील हो चुकी है। ऐसा न होता तो कल तक साइकिल या स्‍कूटर पर घूमने वाला कोई शख्‍स एक बार की विधायकी के बाद ही अचानक कैसे करोड़ों की संपत्‍ति का मालिक बन जाता है। कैसे बिना कोई वेतन भत्‍ता पाए किसी नगर पालिका का कोई अध्‍यक्ष और यहां तक कि मामूली सा उसका कोई सदस्‍य भी अपने कार्यकाल का एक टर्म पूरा करते ही करोड़ों में खेलने लगता है।
यही हाल नगर पंचायतों व जिला पंचायतों तक पहुंचने वाले माननीयों का है। कश्‍मीर से लेकर कन्‍या कुमारी तक फैले देश में बहुत सी विविधताएं देखने को मिल सकती हैं किंतु राजनीति से प्राप्‍त ऐसी सुव्‍यवस्‍था में कहीं कोई अंतर दिखाई नहीं देता।
मोदी जी को चाहिए कि यदि वास्‍तव में देश को खुशहाल देखना है और कानून का राज स्‍थापित करना है तो सबसे पहले ऐसी बड़ी मछलियों के खिलाफ कार्यवाही करने की ठोस व्‍यवस्‍था करें जो समाज के सामने अव्‍यवस्‍था का प्रत्‍यक्ष उदाहरण बनी हुई हैं। जिनकी संपत्‍ति के बारे में जानकर जनसामान्‍य का मुंह आश्‍चर्य से खुले का खुला रह जाता है।
लाख रुपया कभी अपनी आंखों से न देख पाने वाला देश का एक बड़ा तबका जब अपने ही माननीयों पर सैकड़ों करोड़ की संपत्‍ति का समाचार पढ़ता है और किसी की तरक्‍की का प्रतिशत 698 तो किसी का 2111 सुनता है तो उसके दिल में कहीं न कहीं टीस जरूर पैदा होती है। यही वो टीस है जिससे राजनेताओं के प्रति घृणा का भाव पैदा होता है और कानून सबके लिए बराबर है के रटे-रटाए जुमले पर से भरोसा उठना शुरू होता है।
विकास को ही सुख का एकमात्र मंत्र मानने वाले मोदी जी, विनाश का कारण बने इस आर्थिक भेद पर भी ध्‍यान दें तो संभवत: तरक्‍की का मार्ग तेजी से प्रशस्‍त होगा अन्‍यथा उनके सारे प्रयास पानी को तलवार से काटने की कोशिश बनकर रह जायेंगे क्‍योंकि समस्‍या पैसा नहीं, पैसे से पैदा होने वाला वह भेदभाव है जो अनेक विसंगतियों का वाहक है तथा जिसके कारण समाज का हर वर्ग येन-केन प्रकारेण सिर्फ और सिर्फ पैसा कमाना चाहता है।

-Surendra chaturvedi
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