सोमवार, 27 जून 2016

चुल्‍लू पर पानी में डूब कर मर क्‍यों नहीं जाते ये जन-प्रतिनिधि!

चुल्‍लू पर पानी में डूब कर मर क्‍यों नहीं जाते ये जन-प्रतिनिधि।!
माफ कीजिए…माननीयों के प्रति ये शब्‍द हमारे नहीं, उस जनता के हैं जिसे जनार्दन यानि भगवान का दर्जा प्राप्‍त है।
जनता का यह आक्रोश इसलिए और मायने रखता है कि यूपी में चुनाव होने जा रहे हैं और लगभग हर राजनीतिक दल मिशन 2017 को फतह करने की पूरी तैयारी में जुटा है।
ऐसे में सवाल यह उठता है कि जिन अपने जन-प्रतिनिधियों को सामान्‍यत: जनता जनार्दन सिर-आंखों पर बैठाए रहती है और उनके लिए पलक पांवड़े बिछाए रहती है, उनके प्रति उसके मन में इतना आक्रोश क्‍यों भर गया?
इस जनआक्रोश की वजह है विश्‍व प्रसिद्ध धार्मिक जनपद मथुरा में अघोषित विद्युत कटौती से उपजे वो हालात जिन्‍होंने लोगों की रातों की नींद तथा दिन का चैन, सब छीन लिया है। न लोग रात में चैन से सो पाते हैं और न दिन में अपना काम सुचारू रख पाते हैं लेकिन जन-प्रतिनिधि हैं कि विकराल होती इस जन समस्‍या के बावजूद पूरी तरह चुप्‍पी साधे बैठे हैं। किसी राजनीतिक दल के किसी जन-प्रतिनिधि ने इस इतनी बड़ी समस्‍या पर कोई आंदोलन, धरना या प्रदर्शन करना जरूरी नहीं समझा लिहाजा बिजली विभाग के अधिकारी पूरी तरह मनमानी पर उतरे हुए हैं।
गांव-देहात की बात तो दूर, जिला मुख्‍यालय में शहर के अंदर प्रतिदिन 10 से 12 घंटे की बिजली कटौती की जा रही है। बिजली का मिनीमन बिल तो हर कनैक्‍शन पर निर्धारित है किंतु मिनीमम सप्‍लाई निर्धारित नहीं है। सप्‍लाई पूरी तरह बिजली अधिकारी एवं कर्मचारियों के रहमो-करम पर निर्भर है।
घोर आश्‍चर्य की बात यह है कि बिजली चाहे आठ घंटे आए अथवा दस घंटे किंतु बिल हर महीने बढ़कर ही आता है। बिजली विभाग का यह कारनामा जनता के जले पर नमक छिड़कने का काम कर रहा है।
अब जरा गौर करें विकराल होती इस जनसमस्‍या को लेकर जन-प्रतिनिधियों के रवैये पर ।
इसमें सबसे पहला नंबर आता है जिले की जन-प्रतिनिधि सांसद हेमा मालिनी का। अभिनेत्री से भाजपा नेत्री बनी हेमा मालिनी अपने संसदीय क्षेत्र मथुरा के लोगों को टीवी पर आरओ सिस्‍टम अथवा बाबा रामदेव के बिस्‍किट बेचते ही नजर आती हैं।
हाल ही में हुए जवाहर बाग कांड का जायजा लेने भी वह तब मथुरा आईं जब उनकी अपनी पार्टी के बड़े नेताओं सहित देशभर से उन्‍हें लानत-मलानत भेजीं जाने लगीं, वर्ना वह तो टि्वटर पर अपनी फिल्‍मी शूटिंग के चित्र शेयर करने में मशगूल थीं।
2014 के लोकसभा चुनावों में भारी बहुमत से जीत दर्ज करने के बाद कभी याद नहीं आता कि बतौर सांसद हेमा मालिनी ने अपने संसदीय क्षेत्र की किसी जनसमस्‍या को लेकर कोई स्‍टैप उठाया हो। मथुरा के लिए सही मायनों में वह आज भी स्‍वप्‍न सुंदरी ही बनी हुई हैं।
इसके बाद नंबर आता है मथुरा-वृंदावन क्षेत्र के कांग्रेसी विधायक प्रदीप माथुर का। इन दिनों जब उनके क्षेत्र की जनता बिजली की किल्‍लत से त्राहि-त्राहि कर रही है, तब वह लखनऊ में मुख्‍यमंत्री अखिलेश यादव के साथ बैठकर इफ्तार पार्टी की दावत खाते तो दिखाई देते हैं लेकिन शहर में या शहर के लिए कुछ करते दिखाई नहीं देते।
कहने को प्रदीप माथुर के कांग्रेसी विधायक होने के बावजूद मुख्‍यमंत्री अखिलेश यादव से बहुत अच्‍छे संबंध हैं और उनके चाचा शिवपाल यादव से घनिष्‍ठता के चलते वह आए दिन कहीं न कहीं नारियल फोड़ते रहते हैं किंतु जब बात आती है विद्युत समस्‍या के समाधान की तो प्रदीप माथुर अचानक विपक्षी दल के विधायक हो जाते हैं।
इसी कड़ी में तीसरा नंबर आता है जिले की राजनीति में चाणक्‍य की उपमा प्राप्‍त पंडित श्‍यामसुंदर शर्मा का। 6 बार के विधायक तथा पूर्व कबीना मंत्री श्‍यामसुंदर शर्मा का चुनाव क्षेत्र भले ही मांट हो लेकिन रहते वो शहर में ही हैं। शहर में रहते हुए शहर की विस्‍फोटक होती बिजली समस्‍या को उन्‍होंने भी कभी गंभीरता से नहीं लिया। ऐसे में यह अंदाज लगाना कोई बहुत मुश्‍किल नहीं कि अपने क्षेत्र मांट की इस समस्‍या को वह कितनी गंभीरता से लेते होंगे। संभवत: यही कारण है कि मांट विधानसभा क्षेत्र में अजेय समझे जाने वाले श्‍यामसुंदर शर्मा को पिछली बार हार का मुंह देखना पड़ा। श्‍याम को शिकस्‍त देने वाले रालोद युवराज जयंत चौधरी ने यदि लोकसभा की सदस्‍यता बनाए रखने के लिए विधानसभा की सदस्‍यता से त्‍यागपत्र न दिया होता और जयंत के इस कदम से नाराजगी के चलते श्‍यामसुंदर शर्मा को उप चुनाव में जीत हासिल न हुई होती आज वह पूर्व विधायक बने बैठे होते। श्‍यामसुंदर शर्मा ने हाल ही में एकबार फिर बसपा ज्‍वाइन की है ताकि 2017 के आगामी चुनावों में कोई ऊंच-नीच न हो जाए किंतु यदि जनसमस्‍याओं के प्रति उनकी उदासीनता इसी प्रकार बनी रही तो चौंकाने वाला निर्णय भी सामने आ सकता है।
चौथा नंबर है राष्‍ट्रीय लोकदल के अब एकमात्र शेष विधायक पूरन प्रकाश का। जनपद की सुरक्षित गोकुल सीट से विधायक पूरन प्रकाश यूं तो काफी अनुभवी व सभ्रांत राजनीतिज्ञ माने जाते हैं लेकिन बिजली जैसी समस्‍या के समाधान हेतु उनका भी कोई योगदान आजतक सामने नहीं आया। अन्‍य विधायकों की तरह रहते वह भी शहर के सबसे महंगे इलाके कृष्‍णा नगर में हैं लेकिन शहर या कृष्‍णा नगर के लिए भी उन्‍होंने ऐसा कुछ नहीं किया जिसका उल्‍लेख किया जा सके। ऐसा लगता है जैसे विरासत में मिली राजनीति का तो पूरन प्रकाश पूरा मजा ले रहे हैं किंतु अपने स्‍वर्गीय पिता मास्‍टर कन्‍हैया लाल की इस सीख पर अमल नहीं कर रहे कि जनसेवा का ही दूसरा नाम राजनीति है। यही कारण है कि पूरन प्रकाश जनता के बीच उतना मान-सम्‍मान कभी हासिल नहीं कर पाए जितना उनके पिता ने बतौर विधायक ताजिंदगी हासिल किया।
पूरन प्रकाश पर भी वही बात लागू होती है कि जब वो अपने निवास वाले क्षेत्र की विद्युत समस्‍या के समाधान को कुछ नहीं कर रहे तो अपने चुनाव क्षेत्र के लिए क्‍या कर रहे होंगे। जाहिर है उनके भी चुनाव क्षेत्र की बिजली के मामले में स्‍थिति दूसरे देहाती इलाकों से अलग कुछ नहीं होगी।
जनपद के पांचवें जनप्रतिनिधि हैं ठाकुर तेजपाल सिंह। कई बार की विधायकी और मंत्री पद पर भी रह लेने का अनुभव प्राप्‍त छाता क्षेत्र के ये विधायक शहर के दूसरे पॉश इलाके मयूर बिहार स्‍थित अपनी आलीशान कोठी में रहते हैं। ठाकुर तेजपाल सिंह ने आगामी चुनावों में अपनी विधायकी बरकरार रखने के लिए तो काफी समय पहले से ही राजनीतिक गुणा-भाग के तहत रालोद छोड़ बसपा का दामन थाम लिया और उससे भी पहले अपने पुत्र को बसपा ज्‍वाइन करा दी किंतु जन समस्‍याओं से उनका भी सरोकार दूसरे विधायकों की तरह ही है। बिजली की समस्‍या के समाधान को आजतक उन्‍होंने कुछ ऐसा नहीं किया जिसका जिक्र किया जा सके। शहर में रहते हुए वह शहर की इस भीषण समस्‍या से कोई वास्‍ता नहीं रखते। सर्वविदित है कि जनपद के औद्योगिक क्षेत्र से सटा होने के बावजूद उनका अपना छाता चुनाव क्षेत्र आजतक बिजली की समस्‍या से मुक्‍त नहीं हो पाया। तब भी नहीं जब ठाकुर तेजपाल सिंह प्रदेश के कद्दावर मंत्रियों में शुमार किए जाते थे।
जन-प्रतिनिधियों की श्रृंखला में आखिरी नाम आता है गोवर्धन क्षेत्र से बसपा के विधायक राजकुमार रावत का। दो बार के विधायक राजकुमार रावत कहने को तो जिले के सबसे युवा रानीतिज्ञ हैं और इसलिए काफी सक्रिय माने जाते हैं लेकिन यदि बात करें बिजली समस्‍या के समाधान में उनके अपने किसी योगदान की तो बताने को कुछ नहीं है। वह अकेले ऐसे विधायक हैं जो मथुरा के यमुना पार क्षेत्र में रहते हैं लेकिन न तो यमुना पार क्षेत्र की विद्युत समस्‍या आज तक ठीक करा पाए और न अपने चुनाव क्षेत्र गोवर्धन की, जबकि गोवर्धन की गिनती विश्‍व प्रसिद्ध धार्मिक क्षेत्रों में होती है। लक्‍खी मेले का खिताब प्राप्‍त मुड़िया पूर्णिमा के अलावा गोवर्धन को शायद ही कभी अबाध विद्युत आपुर्ति की गई हो अथवा कभी राजकुमार रावत ने वहां की इस समस्‍या के समाधान का कोई गंभीर प्रयास किया हो।
सत्‍ताधारी दल समाजवादी पार्टी चूंकि आजतक कभी मथुरा में अपना खाता ही नहीं खोल पाई इसलिए उसका कोई जन-प्रतिनिधि यहां नहीं हैं अलबत्‍ता नेताओं की कोई कमी भी नहीं है।
समाजवादी पार्टी के जिलाध्‍यक्ष पद पर काबिज तुलसीराम शर्मा का हाल कुछ ऐसा है जैसा चुनावों के दौरान किसी डमी प्रत्‍याशी का होता है।
वह लिखा-पढ़ी में तो सत्‍ताधारी दल के जिलाध्‍यक्ष पद को सुशोभित कर रहे हैं किंतु जन समस्‍याओं से उनका दूर-दूर तक कोई वास्‍ता कभी रहा नहीं। अलबत्‍ता उनकी कार्यप्रणाली किसी कबीना मंत्री सरीखी है जिनका मोबाइल फोन तक उनके शागिर्द लेकर चलते हैं, और जिससे बात कराना चाहते हैं उससे कराते हैं और जिससे बात नहीं कराना चाहते वह चाहे पूरे दिन कोशिश करता रहे, कराते ही नहीं हैं।
ऐसा लगता है जैसे वह ठान बैठे हों कि मथुरा में समाजवादी पार्टी का खाता इस बार भी खुलने नहीं देंगे। ऐसे में उनसे बिजली की भीषण होती समस्‍या के समाधान हेतु कुछ करने की उम्‍मीद लगाना, अपनी अक्‍ल पर सवालिया निशान लगाने जैसा है।
समाजवादी पार्टी में दूसरे अहम् पद को सुशोभित कर रहे डॉ. अशोक अग्रवाल जरूर हाथ-पैर मारते दिखाई देते हैं किंतु उनके प्रयास फलीभूत होंगे, इसकी संभावना काफी कम है।
सपा के महानगर अध्‍यक्ष पद पर काबिज डॉ. अशोक अग्रवाल चूंकि मथुरा-वृंदावन क्षेत्र से समाजवादी पार्टी के प्रत्‍याशी भी हैं इसलिए वह शहरी जनता को साधने की कोशिश में बिजली की समस्‍या पर भी अधिकारियों से वार्तालाप करते रहते हैं लेकिन उनके वार्तालाप करने का अंदाज यह बताता है कि नतीजा ढाक के तीन पात ही रहना है। अधिकारी उन्‍हें भी इस आशय की मीठी गोली देने से नहीं चूकते कि आप ही की तो सरकार है, आप मथुरा को विद्युत कटौती से मुक्‍त क्‍यों नहीं कराते।
अधिकारियों की मानें तो वह पूरी तरह निर्दोष हैं और जितनी भी बिजली कट रही है, वह लखनऊ से या यूं कहें कि लखनऊ के निर्देश पर कट रही है। वह बेचारे तो आदेश-निर्देशों का बस पालने करते हैं। बात चाहे सख्‍ती से बिल का भुगतान वसूलने की हो अथवा उतनी ही सख्‍ती व बेरहमी से एक बार में लगातार पांच-पांच घंटे बिजली काटने की, वह शासन के निर्देशों का ही अक्षरश: पालने करते हैं।
उधर सूबे के मुखिया अखिलेश यादव की बात पर भरोसा करें तो प्रदेश में बिजली की कोई किल्‍लत नहीं है। उनके आदेश-निर्देशों पर गौर करें तो वह यह भी कहते हैं कि रात के समय शहर को बिजली की कटौती से पूरी तरह मुक्‍त रखा जाए जिससे लोग चैन की नींद ले सकें लेकिन अधिकारी कहते हैं कि हर बार वह लखनऊ के आदेश पर ही बिजली काटते हैं।
बीती रात भी मथुरा शहर में रात 12 बजे काटी गई लाइट सुबह 4 बजे सुचारु हो सकी। शहर की बिजली व्‍यवस्‍था का यही हाल पिछले एक हफ्ते से है लेकिन किसी के कानों पर जूं तक नहीं रैंग रही। जूं इसलिए नहीं रैंग रही क्‍योंकि मथुरा में बिजली की सप्‍लाई सीधे राजधानी लखनऊ की मोहताज है और मथुरा में सत्‍ताधारी दल का प्रतिनिधित्‍व कोई करता नहीं।
इन हालातों में यदि जनता यह कहे कि चुल्‍लू पर पानी में डूब कर मर क्‍यों नहीं जाते ये जन-प्रतिनिधि…तो और क्‍या कहे। जनता के पास जनप्रतिनिधियों को कोसने के अलावा रह क्‍या जाता है। हालांकि अच्‍छी बात एक यही है कि चुनाव लगभग सिर पर आ चुके हैं और जनता अपने इसी अमोघ अस्‍त्र को इस्‍तेमाल करने का इंतजार कर रही है।
वैसे भी उसके पास इंतजार करने अथवा कोसने के अलावा है ही क्‍या। कभी वोट देने का इंतजार तो कभी वोट देने के बाद होने वाले पछतावे को अगला वोट देकर दूर करने का इंतजार। एकमुश्‍त पांच-पांच घंटे तथा बीच में दो-दो, तीन-तीन घंटे की विद्युत कटौती झेलते हुए हर पांच साल में एकबार सरकार चुनने के अधिकार का इंतजार और उसके बाद सरकार के रहमो-करम का इंतजार।
चुल्‍लूभर पानी में डूब मरने जैसी प्रतिक्रिया क्‍या अब उस खीझ की ओर इशारा कर रही है जहां से कानून हाथ में लेने की प्रक्रिया शुरू होने लगती है। समय रहते इस खीज में छिपे आक्रोश को जन-प्रतिनिधि भांप लें तो बेहतर वर्ना नतीजा भगवान भरोसे तो है ही।
एक छोटी सी कहानी इस स्‍थिति को समझने में शायद कुछ मदद कर सके।
कहानी यूं है कि किसी अदालत में एक व्‍यक्‍ति पर हत्‍या का केस चल रहा था। न्‍यायाधीश ने जब उससे पूछा कि क्‍या उसने यह हत्‍या की है, तो उसने बड़े सहज भाव से अपना जुर्म कबूल कर लिया। जज को उसकी स्‍वीकारोक्‍ति पर काफी आश्‍चर्य हुआ लिहाजा उसने कुछ सहानुभूति दिखाते हुए आरोपी से पूछा कि आखिर उसने हत्‍या की क्‍यों ?
आरोपी का इस पर जवाब था कि क्‍या बताऊं हुजूर, मौसम ही कुछ ऐसा था कि मुझसे कत्‍ल हो गया।
जज को आरोपी के इस उत्‍तर ने और आश्‍यर्च में डाल दिया। जज की उत्‍सुकता पहले से कहीं अधिक बढ़ चुकी थी इसलिए उसने कहा कि मौसम की वजह से तुमने कत्‍ल कर दिया, बात कुछ हजम नहीं हुई। विस्‍तार से पूरी बात बताओ।
आरोपी कहने लगा- माई-बाप, आप तो विद्वान न्‍यायाधीश हैं। मैं इतना पढ़ा-लिखा कहां। बताने को कुछ और नहीं है मेरे पास। क्‍या आप इतना भी नहीं समझ सकते कि जब कोई इंसान मौसम के कारण रोमांटिक हो सकता है, मौसम की वजह से खिन्‍न, चिढ़चिढ़ा और उदास हो सकता है, मौसम के चलते कविता, कहानियां तथा चित्रों की रचना कर सकता है, तो क्‍या मौसम के प्रभाव से हत्‍या नहीं कर सकता।
अब जज की समझ में भी कातिल की बात भली-भांति आ चुकी थी।
-सुरेन्‍द्र चतुर्वेदी
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