बुधवार, 30 नवंबर 2016

यूपी के 60 IAS अफसरों ने नहीं दिया अब तक अपनी अचल संपत्‍ति का ब्‍यौरा, कई लापता

यूपी के 60 IAS अफसरों ने एक वर्ष बीत जाने के बावजूद अब तक सरकार को अपनी अचल संपत्ति का ब्यौरा नहीं दिया है। यूपी की नौकरशाही में अफसरों के रवैये को लेकर यह बड़ी जानकारी मिली है। बता दें कि इनमें दो आईएएस आलोक रंजन और जावेद उस्मानी यूपी सरकार में चीफ सेक्रेटरी भी रहे हैं। संपत्ति का ब्यौरा नहीं देने वाले कुछ अफसर कई वर्षों से लापता हैं। कई ऐसे भी हैं जिन्होंने पिछले कुछ वर्षों से अपनी सम्पत्ति का कोई ब्यौरा ही नहीं दिया जबकि 2015 के लिए इन अफसरों को इस वर्ष 31 जनवरी तक सम्पति का ब्यौरा उपलब्ध कराना था।
नीचे पढ़िए सबसे ज्यादा डिफाल्टर यूपी
यूपी में बार-बार आदेश के बावजूद आईएएस अफसर संपत्ति का ब्यौरा देने में आनाकानी कर रहे हैं। सूत्रों के मुताबिक ऐसे अफसरों की संख्या 60 के करीब है।
केन्द्रीय कार्मिक एवं प्रशिक्षण विभाग की रिपोर्ट में कहा गया है कि देश में कुल 166 अफसर ऐसे हैं, जिन्होंने वर्ष 2015 के लिए अपनी संपत्ति का ब्यौरा नहीं दिया है।
इनमें सर्वाधिक अफसर यूपी कैडर के हैं। 2014 में देश भर से ब्यौरा नहीं देने वाले 329 अफसरों में अकेले यूपी से 29 अफसर शामिल हैं।
दिलचस्प है लापता अफसरों की कहानी
संपत्ति का ब्यौरा नहीं देने वाले कई आईएएस अफसर लंबे वक्त से लापता हैं। इनमें एक नाम रीता सिंह का है जो 22 अप्रैल 2003 से छुट्टी पर हैं।
इनकी अनिवार्य सेवानिवृति को लेकर केन्द्रीय कार्मिक एवं प्रशिक्षण मंत्रालय ने राष्ट्रपति को पिछले वर्ष पत्र भी लिखा था।
इनके अलावा संजय भाटिया, अतुल बागई, संजीव आहलुवालिया नाम के आईएएस अफसरों ने भी लंबे वक्त से अपनी सम्पति का ब्यौरा नहीं दिया है।
ये सभी अफसर लापता भी है। आईएएस अनीता श्रीवास्तव, शैलेश कृष्ण, पीवी जगमोहन, संजय भाटिया जैसे कई अफसर हैं, जिन्होंने कई वर्षों का संपत्ति का ब्यौरा उपलब्ध नहीं कराया है।
अखिलेश सरकार के भ्रष्टाचार के खिलाफ आवाज उठाने वाले और हाल ही में राजनीति में उतरे आईएएस डॉ. सूर्य प्रताप सिंह ने भी दो वर्षों से अपनी संपत्ति का ब्यौरा विभाग को उपलब्ध नहीं कराया है।

मथुरा के डॉक्‍टर्स भी आयकर विभाग के निशाने पर, शीघ्र होगी बड़ी कार्यवाही

मथुरा के डॉक्‍टर्स भी आयकर विभाग के निशाने पर हैं और शीघ्र ही विभाग उनका बड़े स्‍तर पर सर्वे कराने की तैयारी कर रहा है। यह जानकारी आयकर विभाग के ही उच्‍च पदस्‍थ सूत्रों से प्राप्‍त हुई है।
आयकर विभाग के सूत्र बताते हैं कि मथुरा के कई नामचीन चिकित्‍सकों ने बड़ी मात्रा में अपनी ब्‍लैक मनी मथुरा से बाहर रियल एस्‍टेट में निवेश की हुई है।
कृष्‍णानगर क्षेत्र में मेन रोड पर अपना नर्सिंग होम चलाने वाले एक चिकित्‍सक दंपत्‍ति का बड़े रियल एस्‍टेट ग्रुप के नोएडा स्‍थित प्रोजेक्‍ट में करीब 50 करोड़ रुपया लगे होने की जानकारी आयकर विभाग को मिली है। विभाग के अनुसार यह चिकित्‍सक इस रियल एस्‍टेट ग्रुप के साथ पिछले करीब आठ साल से जुड़ा है।
विभाग के अनुसार कृष्‍णानगर का यह चिकित्‍सक दंपत्‍ति तो मात्र एक उदाहरण है अन्‍यथा कृष्‍ण की नगरी में ऐसे डॉक्‍टर्स की संख्‍या दो दर्जन से ऊपर बताई जाती है।
सूत्रों के मुताबिक मोदी सरकार द्वारा 08 नवंबर की रात 12 बजे के बाद से अचानक 1000 और 500 के पुराने नोटों को प्रचलन से बाहर कर देने पर मथुरा का चिकित्‍सा जगत भी काफी प्रभावित हुआ है।
बताया जाता है कि सरकार द्वारा की गई इस अचानक नोटबंदी से प्रभावित मथुरा के कई प्रमुख डॉक्‍टर्स तो अगले 3 दिनों तक अपने नर्सिंग होम्‍स तथा हॉस्‍पीटल पर आए ही नहीं और उनके स्‍टाफ ने मरीजों को डॉक्‍टर साहब के जिले से बाहर होने की जानकारी दी।
इन डॉक्‍टर्स द्वारा अपने मरीजों को कोई पूर्व सूचना दिए बिना इस तरह गायब हो जाने की वजह ”लीजेंड न्‍यूज़” ने जाननी चाही तो पता लगा कि वह पुराने नोटों को ठिकाने लगाने की कवायद में व्‍यस्‍त हैं।
उल्‍लेखनीय है कि मथुरा में नर्सिंग होम्‍स एवं हॉस्‍पीटल संचालक कई दर्जन डॉक्‍टर्स ऐसे हैं जिनकी प्रतिदिन की आय एक लाख रुपए से ऊपर है लेकिन आयकर देने के नाम पर यह मात्र औपचारिकता निभाते हैं और अपनी अधिकांश कमाई रियल एस्‍टेट सहित अन्‍य दूसरे क्षेत्रों में निवेश करते रहे हैं।
चिकित्‍सा जगत के सूत्रों का ही कहना है कि मथुरा में ऐसे डॉक्‍टर्स की कोई कमी नहीं जो नियमित तौर पर अपनी ओपीडी (Outdoor Patient Department) द्वारा ही एक से डेढ़ लाख रुपए तक लेकर घर जाते हैं और इसका कोई ब्‍यौरा उनके इनकम टैक्‍स रिटर्न में नहीं होता।
सूत्रों के अनुसार फिजीशियन से लेकर विशेषज्ञ डॉक्‍टर्स तक ने अपनी फीस खुद निर्धारित की हुई है। सामान्‍य फीस के अतिरिक्‍त इनकी इमरजैंसी फीस अलग है जिसके एवज में यह मात्र परामर्श देते हैं। परामर्श शुल्‍क के अलावा नर्सिंग होम या हॉस्‍पीटल के अंदर ही संचालित मेडिकल स्‍टोर व पैथोलॉजी के माध्‍यम से होने वाली कमाई अलग है।
यही कारण है कि नर्सिंग होम्‍स या हॉस्‍पीटल संचालक अधिकांश डॉक्‍टर्स ने अपने यहां मेडिकल स्‍टोर तथा पैथोलॉजी चलाने का जिम्‍मा अपने निकटतम रिश्‍तेदारों अथवा अत्‍यंत भरोसेमंद व्‍यक्‍ति को ही सौंप रखा है ताकि उससे होने वाली अतिरिक्‍त आमदनी की जानकारी बाहर तक न पहुंचे।
डॉक्‍टर्स की अतिरिक्‍त आमदनी का एक और स्‍त्रोत है दवा कंपनियों से मिलने वाले महंगे-महंगे गिफ्ट और मोटी रकम। ये गिफ्ट और रकम डॉक्‍टर्स को एमआर के माध्‍यम से मिलती है। डॉक्‍टर्स के लिए ये एमआर परिवार सहित देश और देश के बाहर घूमने-फिरने का भी इंतजाम करते हैं।
इस सब के अतिरिक्‍त तमाम डॉक्‍टर्स ने तो गांव-देहात में सक्रिय झोलाछाप डॉक्‍टर्स को भी अपना कमीशन एजेंट बना रखा है। ये झोलाछाप अपनी सेटिंग वाले डॉक्‍टर को गांवों से उसी प्रकार मरीज रैफर करके अपना कमीशन सीधा करते हैं जिस प्रकार मथुरा या अन्‍य छोटे शहरों के डॉक्‍टर महानगरों के डॉक्‍टर्स अथवा मशहूर निजी हॉस्‍पीटल्‍स को अपने यहां से मरीज भेजकर कमीशन लेते हैं।
सच तो यह है कि आज चिकित्‍साजगत एक ऐसे कॉकस का शिकार है जिसके लिए पैसा ही उसका कर्म है और पैसा ही धर्म। पैसे के अलावा उन्‍हें कुछ नहीं सूझता।
यही कारण है कि कभी किसी निजी हॉस्‍पीटल से पैसा न दे पाने में असमर्थ किसी के परिजन का शव उन्‍हें न सौंपे जाने की बात सामने आती है तो कहीं किसी मरीज को ही बंधक बना लिए जाने का पता लगता है।
अंधी कमाई करने में व्‍यस्‍त चिकित्‍सा जगत के इस खेल का पता यूं तो आयकर विभाग को बहुत पहले से था किंतु वह भी कुछ इसके प्रभाव तथा कुछ अपनी कार्यप्रणाली के चलते निष्‍क्रिय पड़ा रहता था। अब जबकि मोदी सरकार ने नोटबंदी के साथ-साथ चिकित्‍सा के क्षेत्र में व्‍याप्‍त काले धन पर पैनी नजर गढ़ाने का फरमान जारी किया है और सार्थक नतीजे सामने लाने को कहा है तो आयकर विभाग ने इस क्षेत्र के माफियाओं की कुंडली खंगालना शुरू कर दिया है।
आयकर विभाग के सूत्र बताते हैं कि मथुरा में काली कमाई करने वाले सर्वाधिक चिकित्‍सक कृष्‍णा नगर क्षेत्र से हैं। यह क्षेत्र पिछले कुछ समय के अंदर ही निजी नर्सिंग होम्‍स तथा हॉस्‍पीटल्‍स का एक ”हब” बन चुका है।
आवासीय क्षेत्र कृष्‍णा नगर में इन चिकित्‍सकों ने सर्किल रेट्स से कई-कई गुना ज्‍यादा कीमत पर जमीनें लेकर अपने नर्सिंग होम्‍स व हॉस्‍पीटल बनाए हैं।
गौरतलब है कि कृष्‍णा नगर फिलहाल मथुरा शहर का सर्वाधिक कीमती क्षेत्र है और यहां जमीन की कीमत गलियों के अंदर भी एक से सवा तथा डेढ़ लाख रुपया प्रति वर्ग गज तक है। मेन रोड पर तो यह कीमत दो से सवा दो लाख रुपया प्रति वर्ग गज तक पहुंच जाती है जो कि सर्किल रेट से करीब पांच गुना अधिक है।
आयकर विभाग के अनुसार कृष्‍णा नगर के बाद काली कमाई करने में दूसरा नंबर आता है नेशनल हाई-वे के किनारे बने हुए नर्सिंग होम्‍स तथा हॉस्‍पीटल्‍स का। नेशनल हाई-वे पर नर्सिंग होम्‍स, हॉस्‍पीटल तथा दूसरी चिकित्‍सा सुविधाएं एवं जांच केंद्र खोले बैठे लोगों की आमदनी का ब्‍यौरा भी आयकर विभाग ने जुटा लिया है और शीघ्र ही इनके खिलाफ कानूनी कार्यवाही अमल में लाने की तैयारी है।
नेशनल हाई-वे के साथ-साथ महोली रोड, भूतेश्‍वर, मथुरा-वृंदावन रोड आदि पर बने नर्सिंग होम्‍स व हॉस्‍पीटल भी आयकर विभाग के टारगेट बताए जाते हैं।
ऐसा नहीं है कि जनसामान्‍य के बीच ईश्‍वर जैसा दर्जा प्राप्‍त सभी चिकित्‍सक सिर्फ और सिर्फ मोटी कमाई करने में लगे हैं तथा उस काली कमाई को इधर-उधर निवेश करते हैं, कई चिकित्‍सक ऐसे भी हैं जो अपना काम न केवल ईमानदारी से करते हैं बल्‍कि कमाई के अनुरूप टैक्‍स भी अदा करते हैं लेकिन ऐसे चिकित्‍सकों की मथुरा में संख्‍या काफी कम है।
जाहिर है कि ऐसे में वह काली कमाई करने वाले अपने हमपेशा लोगों के खिलाफ मुंह खोलने की हिम्‍मत नहीं कर पाते हैं और चुपचाप तमाशबीन बने रहने को मजबूर हैं।
मोदी सरकार द्वारा उठाए गए नोटबंदी के कदम के बाद ऐसे चिकित्‍सक न सिर्फ काफी खुश हैं बल्‍कि दबी जुबान से प्रधानमंत्री के फैसले का समर्थन कर रहे हैं।
इन चिकित्‍सकों का भी यह मानना है कि यदि समय रहते आयकर विभाग चिकित्‍साजगत में मौजूद काले धन पर प्रभावी कार्यवाही करने में सफल रहा और सफेदपोश चिकित्‍सकों का चेहरा बेनकाब कर पाया तो इसका लाभ चिकित्‍साजगत के साथ-साथ उस जनसामान्‍य को भी मिलेगा जो आज इनके हाथों में खेलने पर मजबूर हैं तथा इनकी हर नाजायज बात सिर झुकाकर स्‍वीकार करने को बाध्‍य है।
यह भी ज्ञात हुआ है कि अपने खिलाफ आयकर विभाग की सक्रियता के संकेत कुछ खास चिकित्‍सकों को मिल चुके हैं लिहाजा वह अभी तो किसी भी तरह अपनी काली कमाई व अधिकारियों को मैनेज करने की कोशिश में लगे हैं परंतु मोदी सरकार की सख्‍ती उनके प्रयासों में आड़े आती दिखाई दे रही है।
अब देखना यह है कि धर्म की नगरी में लंबे समय से सक्रिय अधर्म की कमाई करने वाले तथा भगवान का दर्जा प्राप्‍त इन चिकित्‍सकों के खिलाफ आयकर विभाग कब तक कार्यवाही अमल में लाता है और कब आम आदमी को इनकी प्रताड़ित करने वाली कमाई से मुक्‍ति दिलाने में सफल होता है।
कहने को मोदी सरकार ने चिकित्‍सकीय पेशे की मनमानी पर लगाम लगाने ने लिए नर्सिंग होम्‍स एक्‍ट भी बनाया है लेकिन देशभर के नर्सिंग होम्‍स व हॉस्‍पीटल संचालक डॉक्‍टर इस एक्‍ट का विरोध कर रहे हैं और इसलिए अभी नया एक्‍ट प्रभावी नहीं हो सका है।
जो भी हो, इसमें कोई दोराय नहीं कि मोदी सरकार की मंशा के अनुरूप यदि आयकर विभाग चिकित्‍सकीय पेशे में व्‍याप्‍त गंदगी तथा उससे उपजी काली कमाई का सफाया करने में सफल रहा तो निश्‍चित ही इसका बड़ा लाभ मरीज व उनके परिजनों को मिलेगा।
-सुरेन्‍द्र चतुर्वेदी

शुक्रवार, 25 नवंबर 2016

माय लॉर्ड, अंतहीन लाइनें तो अदालतों के बाहर भी लगी हैं

”HELLO सुप्रीम कोर्ट ऑफ इंडिया, अदालतों के सामने अंतहीन लाइनें लगी हुई हैं। 2 करोड़ 70 लाख मामले लंबित हैं, और अब तक कहीं भी कोई दंगा नहीं हुआ है।”
यह ट्वीट जाने-माने स्‍तंभकार तुफैल अहमद का है, जो उन्‍होंने सुप्रीम कोर्ट की उस टिप्‍पणी को लेकर किया है जिसमें उसने कहा था कि नोटबंदी के बाद लोग सड़कों पर हैं और जल्‍दी ही इस स्‍थिति को नहीं संभाला गया तो दंगे भी हो सकते हैं।
दूसरी ओर ट्वीट के जरिए ही आज कांग्रेस के राष्‍ट्रीय उपाध्‍यक्ष राहुल गांधी ने मोदी सरकार पर निशाना साधते हुए पूछा है कि क्‍या अब मोदी सरकार कोर्ट को भी राष्‍ट्रविरोधी कहेगी ?
राहुल ने अपने ट्वीट के साथ एक अंग्रेजी अखबार की खबर भी टैग की है। इस खबर के अनुसार कलकत्ता हाईकोर्ट ने सरकार से कहा है कि उसने कदम उठाने से पहले पूर्व तैयारी नहीं की जबकि सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि इससे आगे संकट की स्थिति पैदा हो सकती है।
पहले बात करते हैं तुफैल अहमद के ट्वीट की। तुफैल अहमद ने सुप्रीम कोर्ट के सामने जो सवाल उठाया है, क्‍या उसका कोई जवाब कोर्ट के पास है ?
क्‍या सुप्रीम कोर्ट के पास इस सवाल का भी कोई जवाब है कि विभिन्‍न न्‍यायालयों में लंबित मुकद्दमों की यह संख्‍या आज अचानक पैदा हो गई अथवा इसमें पूर्ववर्ती सरकारों तथा न्‍यायपालिकाओं की कार्यप्रणाली ने भी कोई भूमिका निभाई है?
जहां तक सवाल नोटबंदी के बाद बैंकों के सामने लगने वाली लंबी-लंबी लाइनों और लोगों को हो रही परेशानी का है तो इसका अंदेशा खुद प्रधानमंत्री ने 8 नवंबर की रात राष्‍ट्र के नाम अपने संबोधन में भी जताया था। साथ ही प्रधानमंत्री ने कहा था कि देशहित में उठाए जा रहे इस कड़े कदम से थोड़ी परेशानी के बाद बहुत सी समस्‍याओं से मुक्‍ति मिल जाएगी।
सुप्रीम कोर्ट ने प्रधानमंत्री के कथन पर गौर न करके और सिर्फ याचिकाओं को आधार बनाकर जो कुछ कहा, उसकी अपेक्षा तो देश की सबसे बड़ी अदालत से नहीं थी क्‍योंकि सर्वोच्‍च अदालत का कथन लोगों के बीच भय का वातावरण बनाने में सहायक हो सकता है।
प्रधानमंत्री नरेन्‍द्र मोदी ने काले धन और नकली नोटों के खात्‍मे की दिशा में जो कदम उठाया है, वह निश्‍चित ही किसी बड़ी सर्जिकल स्‍ट्राइक से कम नहीं कहा जा सकता लिहाजा उसका असर तो होना ही था।
फिजीकली, मैंटली अथवा सोशली…कोई भी ऑपरेशन बिना थोड़ी-बहुत तकलीफ के पूरा नहीं होता। फिर यह तो एक ऐसा ऑपरेशन था जिसकी जरूरत कई दशकों से महसूस की जा रही थी।
बेशक मोदी जी द्वारा दिखाया गया 500 और 1000 के नोटों को प्रचलन से बाहर करने का दुस्‍साहस भी काले धन के समूल नाश में मात्र एक पहल ही है, परंतु किसी भी मुकाम तक पहुंचने के लिए किसी न किसी स्‍तर से पहल तो करनी ही पड़ती है।
अगर बात करें नोट बंदी से बैंकों के सामने उपजी लंबी-लंबी लाइनों तथा आम लोगों के समक्ष खड़ी हो रहीं परेशानियों की, तो सवा सौ करोड़ की आबादी वाले इस देश में कहां लाइन नहीं लगी हैं। रेल और बस की टिकट लेने से लेकर सिनेमा की टिकट लेने तक, हर जगह लाइन में लगना पड़ता है। सड़क पर दो पहिया और चार पहिया वाहन सवार भी बिना कतार में लगे मंजिल तक नहीं पहुंच पाते। श्‍मशान घाट भी अब तो लाइन लगने से नहीं बचे।
नोट बंदी से उपजी भीड़ के मद्देनजर दंगे-फसाद हो जाने की आशंका जाहिर करने वाले माननीय न्‍यायाधीश क्‍या देश को यह बताएंगे कि उन्‍हीं के किसी साथी ने कभी देर से मिलने वाले न्‍याय को अन्‍याय की जो संज्ञा दी थी, उस पर कोर्ट कब विचार करेगा?
जिस विवादित कोलेजियम सिस्‍टम को अपनी प्रतिष्‍ठा का प्रश्‍न बनाकर माननीय उच्‍च न्‍यायालय लंबित होते मुकद्दमों की संख्‍या बढ़ने का हवाला दे रहा है, क्‍या वह हमेशा से वजूद में था, और क्‍या वही मुकद्दमों के बढ़ते बोझ का एकमात्र कारण है ?
कौन नहीं जानता कि आज देश की न्‍यायिक व्‍यवस्‍था को भी उसी प्रकार घुन लग चुका है जिस प्रकार दूसरी व्‍यवस्‍थाओं विधायिका व कार्यपालिका को लगा हुआ है। किसे पता नहीं है कि जिला अदालतों से लेकर उच्‍च और उच्‍चतम न्‍यायालय तक में भ्रष्‍टाचार का बोलबाला है। नि:संदेह यहां भी हर पायदान पर ईमानदार अधिकारी एवं कर्मचारी भी हैं किंतु उनकी स्‍थिति बेहद दयनीय है। वह खुद को 32 दांतों के बीच में ”जीभ” के होने जैसा महसूस करते हैं।
यहां पूर्व कानून मंत्री शांतिभूषण द्वारा की गई वह टिप्‍पणी भी काबिले गौर है जिसके तहत उन्‍होंने सर्वोच्‍च न्‍यायालय के अधिकांश मुख्‍य न्‍यायाधीशों की ईमानदारी पर बड़ा सवाल खड़ा किया था। प्रसिद्ध वकील शांतिभूषण की उस टिप्‍पणी ने तब न्‍यायपालिका तथा माननीय विद्वान न्‍यायाधीशों को हिला कर रख दिया था लिहाजा एकबार तो ऐसा लगने लगा था जैसे शांतिभूषण किसी भी वक्‍त अदालत की अवमानना के आरोप में अदालतों के चक्‍कर काटते दिखाई देंगे लेकिन उनके खिलाफ कार्यवाही करने की हिम्‍मत न सर्वोच्‍च न्‍यायालय ने दिखाई और न किसी न्‍यायाधीश ने।
लिखने को तो बहुत कुछ है लेकिन यह बहुत कुछ लिखा नहीं जा सकता। अगर कोई लिखने बैठ जाए तो उसका भी अंत शायद कभी नहीं होगा क्‍योंकि सुप्रीम कोर्ट से लेकर सुप्रीम पॉवर तक सब अपने आप को जायज ठहराने की जिद पाले बैठे हैं।
प्रधानमंत्री मोदी ने तो कम से कम इतना साहस दिखाया कि पहले दिन ही अपने निर्णय से परेशानियां उत्‍पन्‍न होने की आशंका जताई और फिर यह भी कहा कि 50 दिनों बाद मेरा निर्णय गलत लगे तो जो सजा चाहो मुझे दे देना, लेकिन विपक्षी पार्टियां दो-तीन दिन बाद सन्‍निपात से उभरते ही कुतर्कों के सहारे प्रधानमंत्री को मुजरिम साबित करने पर आमादा हैं।
कांग्रेस के राष्‍ट्रीय उपाध्‍यक्ष जिस तरह से सुप्रीम कोर्ट और कलकत्ता हाईकोर्ट की टीका-टिप्‍पणियों को आधार बनाकर मोदी सरकार को निशाना बना रहे हैं, उससे साफ जाहिर है कि उनके अपने पास कोई विजन है ही नहीं। उनकी बुद्धि को लेकर अक्‍सर उठाए जाने वाले सवालों के पीछे संभवत: उनके द्वारा की जाती रही ऐसी ही ओछी राजनीति है। दुर्भाग्‍य की बात यह है कि कांग्रेस की चापलूसी वाली संस्‍कृति उन्‍हें आइना दिखाने का माद्दा नहीं रखती लिहाजा वह मौके-बेमौके भोंडा प्रदर्शन करते रहते हैं।
चार हजार रुपयों के लिए अपनी भारी-भरकम सुरक्षा-व्‍यवस्‍था के साथ बैंक जाकर तमाशा खड़ा करने से बेहतर होता कि वह लोकसभा में यह बताते कि नोट बंदी से उपजी समस्‍या के समाधान का उनके पास भी कोई उपाय है और उससे आमजनता को राहत मिल सकती है।
राहुल गांधी ही क्‍यों…सपा, बसपा, माकपा और ममता की टीएमसी सहित मोदी सरकार में शामिल शिवसेना तक मोदी सरकार के फैसले को लेकर हायतौबा मचा रही है। दिल्‍ली के मुख्‍यमंत्री अरविंद केजरीवाल तो जैसे प्रधानमंत्री से निजी दुश्‍मनी पालकर बैठे हैं। ऐसे में वह नोट बंदी पर चुप कैसे रह सकते थे।
प्रधानमंत्री को टारगेट करने वाली इन पार्टियों और इनके स्‍वयंभू मुखियाओं की हकीकत से वह जनता अच्‍छी तरह वाकिफ है जिसके कंधे पर बंदूक रखकर यह अपना-अपना हित साधना चाहती हैं।
आज सड़क चलता कोई राहगीर भी बता देगा कि प्रधानमंत्री के नोटबंदी वाले निर्णय ने इन पार्टियों के आकाओं की हजारों करोड़ की गड्डियों को रद्दी में तब्‍दील करके रख दिया। अब इन्‍हें समझ में नहीं आ रहा कि आखिर करें तो करें क्‍या ?
कैसे मोदी के इस मास्‍टर स्‍ट्रोक से मुक्‍ति पाएं और कैसे आगामी विधानसभा चुनावों के लिए काले धन का इंतजाम करें।
अचानक की गई इस सर्जिकल स्‍ट्राइक ने कांग्रेस सहित लगभग सभी राजनीतिक पार्टियों और उनके नेताओं की बुद्धि को लकवाग्रस्‍त कर दिया है। इनमें से कोई यह तक बताने को तैयार नहीं है कि यदि पीएम का निर्णय इतना ही जनविरोधी है तो उन्‍होंने खुद अपने ही पैरों पर कुल्‍हाड़ी मारने का काम किया है। उसके लिए विपक्ष इतना चिंतित क्‍यों है। आगामी चुनावों में विपक्ष के मन की मुराद बिना कुछ किए पूरी होने वाली है।
मोदी का कदम आत्‍मघाती है तो विपक्ष चुपचाप तमाशा देखे और आगामी चुनावों के लिए हसीन सपने पालते हुए मोदी और उनकी पार्टी को मुंह चिढ़ाए।
कल की ही रिपोर्ट है कि शिवसेना को विडियोकॉन कंपनी ने एक वर्ष में 85 करोड़ रुपए का चंदा दिया है जबकि इस दौरान उसे मिली कुल चंदे की रकम 87 करोड़ है। कहने का तात्‍पर्य यह है कि कुल 87 करोड़ के चंदे में 85 करोड़ अकेले विडियोकॉन ने दिए हैं। इससे आप अंदाज लगा सकते हैं कि सरकार में शामिल होते हुए शिवसेना, मोदी जी के निर्णय पर क्‍यों लालपीली हो रही है और क्‍यों ममता, मुलायम, मायावती व अरविंद केजरीवाल के साथ खड़ी है। नोट बंदी ने इन सबके पैरों की बिवाइयां को इतनी बुरी तरह चटका दिया है कि उनसे खून टपकने लगा है लेकिन वह उन्‍हें किसी को दिखा तक नहीं सकते।
कांग्रेस का तो जैसे समूचा बेड़ा गर्क हो गया। राहुल गांधी की खाट यात्रा और ”27 साल यूपी बदहाल” की टैग लाइन को मोदी के एक निर्णय ने किनारे लगा दिया। खाट यात्रा की खाटों का तो पता नहीं क्‍या हुआ, अलबत्‍ता कांग्रेस की खाट फिलहाल ऐसी खड़ी हुई है कि उसके रणनीतिकारों की भी बुद्धि का दिवाला निकल गया है।
कांग्रेस और अन्‍य कई पार्टियों के सामने सबसे बड़ी समस्‍या उत्‍तर प्रदेश जैसे बड़े राज्‍य में चुनाव लड़ने की खड़ी हो गई है। कांग्रेस के लिए यह स्‍थिति जहां मरे पर मार वाली कहावत को चरितार्थ कर रही है वहीं मुलायम तथा मायावती अकेले में सिर पकड़ कर सोचने पर मजबूर हो गए हैं।
आश्‍चर्य की बात है कि मीडिया द्वारा कराए गए सर्वे में मोदी के इस कदम को जनसमर्थन मिलने की बातें सामने आ रही हैं। परेशानियों के बावजूद लोग यह मानने को तैयार नहीं कि मोदी का कदम गलत है।
यह वही मीडिया है जिसके अपने घर भी शीशे के हैं। जो बैंकों के सामने लगने वाली लाइनों को दिखाकर भय का वातावरण उत्‍पन्‍न करने में रत्‍तीभर पीछे नहीं रहना चाहता क्‍योंकि मोदी के मास्‍टर स्‍ट्रोक ने आखिर इनके हित भी तो प्रभावित किए हैं। चार चूहे मरने से लेकर एक आदमी की मौत को भी चीख-चीख कर ब्रेकिंग न्‍यूज़ बताने वाला मीडिया आज खामोशी के साथ खून के आंसू पीने को बाध्‍य है।
हर कोई जानता है कि लगभग सारे बड़े मीडिया हाउस काले धन के बल पर अपना अस्‍तित्‍व बचाए हुए थे। मोदी की सर्जिकल स्‍ट्राइक ने उन्‍हें खुद एक ऐसी ब्रेकिंग न्‍यूज़ बना दिया जिसका खामोश क्रंदन सुनाई भले ही न दे रहा हो लेकिन कोने में बैठकर रुला जरूर रहा है। मीडिया में व्‍याप्‍त जिस काले धन ने एक-एक एंकर को सैकड़ों करोड़ का मालिक बना दिया और जिसने कल के कई एंकर्स को न्‍यूज़ चैनल्‍स का मालिक बनवा दिया, वह भले ही प्रधानमंत्री के निर्णय पर सार्वजनिक रूप से बुक्‍का फाड़कर रो नहीं सकते लेकिन उनके निर्णय को देश की बर्बादी वाला साबित करने की कोशिश तो कर ही सकते हैं।
मीडिया के पास इस सवाल का भी कोई जवाब नहीं है कि चुनाव लड़ने में जो परेशानियां विपक्षी पार्टियों के सामने खड़ी होने वाली हैं, क्‍या भाजपा उनसे अछूती रह जाएगी…और रह जाएगी तो कैसे ?
यदि चंदे से हुए धंधे पर चोट पड़ी है तो वह चोट भाजपा को भी पड़ी होगी, फिर रोना किस बात का।
हां, विधान सभा चुनावों के टिकट बेचने से हुई आमदनी को कागज के टुकड़ों में तब्‍दील होते देखने का कुछ खास पार्टियों का दुख जरूर समझ में आता है क्‍यों कि इसके परिणाम टिकट वितरण सहित चुनावों की तिथि घोषित होने पर ज्‍यादा बड़ी परेशानी का कारण बन सकते हैं।
सबका अपना-अपना दुख है। सुप्रीम कोर्ट का अपना और पार्टी सुप्रीमोज का अपना। दुख भी ऐसा कि जिसे सार्वजनिक तौर पर बयां करना संभव नहीं।
ऐसे में जनता के कांधे का ही सहारा है। 125 करोड़ की आबादी कुछ पार्टियों और चंद नेताओं के दुख का पहाड़ तो ढो ही सकती है, इसलिए ढो रही है। यह जानते व समझते हुए भी उनके आंसू घड़ियाली हैं और उनकी सहानुभूति निजी शोक संवेदना से उपजी ऐसी अनुभूति है जिसका सहानुभूति से दूर-दूर तक कोई वास्‍ता नहीं। वास्‍ता है तो नोट व वोट की उस राजनीति से जिस पर फिलहाल तो पाला पड़ ही गया है। आगे की राम जाने।
-सुरेन्‍द्र चतुर्वेदी
Related Posts Plugin for WordPress, Blogger...