सोमवार, 7 नवंबर 2022

होटल अग्निकांड: क्या ''बसेरा ग्रुप'' के मालिक को बचाव का मौका दे रही है मथुरा पुलिस?

 क्या "बसेरा ग्रुप" के मालिक रामकिशन अग्रवाल को मथुरा पुलिस बचाव का मौका दे रही है? 


यह सवाल इसलिए खड़ा होता है कि बसेरा ग्रुप के वृंदावन स्‍थित होटल 'वृंदावन गार्डन' में हुए अग्निकांड को आज पांचवां दिन है, लेकिन अब तक इसके जिम्‍मेदार किसी आरोपी की गिरफ्तारी पुलिस नहीं कर सकी है जबकि इस अग्निकांड ने होटल के ही दो कर्मचारियों की जान ले ली और एक की हालत गंभीर है। 
यह सवाल इसलिए भी किया जा रहा है क्योंकि दुर्घटना वाले दिन पहले तो वृंदावन पुलिस ने FIR में ही लीपापोती करने का प्रयास किया और 'नामजदगी' की जगह 'स्‍वामी प्रबंधक' होटल 'वृंदावन गार्डन' लिखकर सबको गुमराह करने की कोशिश की किंतु 'लीजेण्‍ड न्यूज' ने जब पुलिस की इस 'कारस्तानी' को 'हाईलाइट' किया तब अगले दिन बसेरा ग्रुप ऑफ होटल के मालिक रामकिशन अग्रवाल, प्रबंधक ऋषि कुंतल तथा एक अन्‍य कर्मचारी सतीश पाठक को नामजद किया। 
अग्निशमन अधिकारी की ओर से आईपीसी की धारा 304 और 308 के तहत दर्ज कराए गए इस मामले में 'नामजदगी' के बावजूद पांचवें दिन तक कोई गिरफ्तारी नहीं हुई है। 
पुलिस दे रही है मौका 
बताया जा रहा है कि जिले की पुलिस ही नहीं, प्रशासन को भी विभिन्न माध्‍यमों से ऑब्‍लाइज करने वाला बसेरा ग्रुप का मालिक रामकिशन अग्रवाल लखनऊ तक पहुंच रखता है और इसीलिए पुलिस उस पर हाथ डालने की हिम्मत नहीं कर रही। 
सूत्रों से प्राप्‍त जानकारी के अनुसार सत्ता के गलियारों तक पैठ बना चुका रामकिशन अग्रवाल तीन स्‍तर पर अपने बचाव की कोशिश में लगा है। उसकी पहली कोशिश तो यह है कि पुलिस की तफ्तीश में ही उसे क्लीन चिट मिल जाए और वह साफ बच निकले। रामकिशन अग्रवाल की दूसरी कोशिश है कि हाई कोर्ट से उसे अरेस्‍ट स्‍टे या अग्रिम जमानत प्राप्‍त हो जाए। 
यदि इनमें से कुछ भी संभव नहीं होता तो रामकिशन अग्रवाल राजनीतिक प्रभाव से इस मामले की जांच सीबीसीआईडी के हवाले कराना चाहता है जिससे एक ओर गिरफ्तारी की आशंका से मुक्‍ति मिले तथा दूसरी ओर मामला ठंडे बस्‍ते के हवाले हो जाए क्योंकि सीबीसीआईडी की जांच ऐसे लोगों के लिए बहुत मुफीद साबित होती है, साथ ही उसकी जांच का तरीका किसी केस की गर्मी को शांत करने का पूरा मौका उपलब्‍ध कराता है। 
खबर के साथ लगा वर्ष 2014 का फोटो यह बताने के लिए काफी है कि रामकिशन अग्रवाल की सत्ता में पहुंच कब से तथा किस स्‍तर तक है। इस फोटो में वह किसी कार्यक्रम के दौरान यूपी के तत्‍कालीन राज्यपाल राम नाइक जी को गाय की प्रतिमा भेंट करते दिखाई दे रहा है। 
यूं भी किसी इतने बड़े कारोबारी से, जिससे पुलिस-प्रशासन समय-समय पर ऑब्‍लाइज होता रहता हो उसके खिलाफ कड़ी कार्रवाई करना उसके लिए आसान नहीं होता। कारोबारी भी ऐसा, जिसकी सत्ताधारी पार्टी में ऊपर तक पहुंच हो। 
ये भी पता लगा है कि इस बीच पुलिस प्रशासन को इस आशय का संदेश भिजवाया गया है कि अग्निकांड की चपेट में आए होटल कर्मचारियों ने चूंकि शराब का सेवन कर रखा था इसलिए वो अपना बचाव नहीं कर सके। यानी आग का शिकार होने के लिए किसी हद तक वो भी जिम्‍मेदार थे। हालांकि जांच अधिकारी के गले यह बात कितनी उतरती है और क्या पोस्‍टमार्टम रिपोर्ट से ऐसी किसी बात की पुष्‍टि हुई है, इसका पता लगना बाकी है। 
बहरहाल, इतना तो साफ है कि लखनऊ के 'लेवाना' होटल में हुए अग्‍निकांड की तरह कृष्‍ण की नगरी में हुए इस अग्‍निकांड को न तो पुलिस उतनी गंभीरता से ले रही है और न प्रशासन अथवा राज्य सरकार। 
यही कारण है कि बिना एनओसी के चल रहे इस होटल में दो कर्मचारियों की मौत का करण बने अग्‍निकांड की बमुश्‍किल एफआईआर दर्ज किए जाने के अतिरिक्‍त अब तक कोई एक्शन नहीं लिया गया। न तो मथुरा-वृंदावन विकास प्राधिकरण के किसी अधिकारी अथवा कर्मचारी से पूछताछ हुई और न किसी को बिना एनओसी होटल का नक्शा पास करने का जिम्‍मेदार ठहराया गया। 
बस यही फर्क है प्रदेश की राजधानी लखनऊ के एक होटल में हुए अग्निकांड में और मथुरा के वृंदावन स्‍थित होटल के अग्‍निकांड में। वहां न केवल 15 अधिकारी तत्‍काल निलंबित कर दिए गए बल्‍कि 19 अधिकारियों के ख़िलाफ़ सख्त कार्रवाई के निर्देश दिए जिनमें कुछ रिटायर अधिकारी भी शामिल हैं। 
सीएम योगी आदित्‍यनाथ ने लखनऊ मंडल के पुलिस आयुक्त से जांच कराई। इस जांच रिपोर्ट में फायर ब्रिगेड, ऊर्जा विभाग, नियुक्ति विभाग, आवास और शहरी विकास विभाग सहित आबकारी विभाग के कई अधिकारियों की अनियमितता व लापरवाही पाई गई। 
जांच में पाया गया कि होटल 'लेवाना' को अवैध रूप से बनाया गया था। जिसके लिए लखनऊ विकास प्राधिकरण द्वारा 22 इंजीनियरों और जोनल अधिकारियों के खिलाफ कार्रवाई की संस्‍तुति की गई लेकिन वृंदावन में दो मौतों के बाद भी किसी के कान पर जूं नहीं रेंग रही। आखिर लखनऊ, लखनऊ है। प्रदेश की राजधानी है। और मथुरा-वृंदावन एक अदना सा जिला। इसकी बराबरी प्रदेश की राजधानी से कैसे संभव है, चाहे मौत के मामले समान रूप से दुखदायी क्यों न माने जाते हों। 
-Legend News 

वृंदावन गार्डन अग्निकांड में FIR तो दर्ज हुई लेकिन आरोपियों के नाम नदारद, इसे कहते हैं प्रभाव


 उत्तर प्रदेश ही नहीं, देश की प्रमुख धार्मिक नगरी मथुरा के वृंदावन धाम स्‍थित जिस होटल 'वृंदावन गार्डन' में कल सुबह भयंकर अग्निकांड हुआ और जिसमें होटल के दो कर्मचारियों ने अपनी जान गंवा दी तथा एक गंभीर रूप से झुलस गया उस होटल के मालिक या प्रबंधक का नाम तक न तो FIR दर्ज कराने वाले अग्निशमन अधिकारी जानते हैं और न स्‍थानीय पुलिस को पता है जबकि वो एक नामचीन बिल्डर है, साथ ही उसके वृंदावन में ही तीन होटल हैं। 

बसेरा ग्रुप के ये होटल 'बसेरा', 'बसेरा ब्रजभूमि' और होटल 'वृंदावन गार्डन' के नाम से संचालित हैं। इनमें से एक फोगला आश्रम के पास, दूसरा अटल्‍ला चुंगी पर तथा तीसरा रामकृष्‍ण मिशन हॉस्‍पिटल के सामने स्‍थित है। 
इसी प्रकार इन्‍होंने वृंदावन में ही कई कॉलोनियां डेवलप की हैं जिनमें से प्रमुख हैं 'बसेरा वैकुंठ', 'हरेकृष्‍णा धाम' और 'गौधूलि पुरम'। इसके अलावा इनके फॉर्म हाउस तथा कोल्ड स्‍टोरेज भी हैं, लेकिन इतना सब होने के बावजूद अग्निशमन विभाग और वृंदावन पुलिस के अधिकारी इनके मालिक का नाम नहीं जानते। है न भद्दा मजाक? 
सबकी आंखों में धूल झोंक कर दो लोगों की मौत के जिम्‍मेदारों को बचाने के इस शर्मनाक कृत्‍य का अंदाज इस बात से लगाया जा सकता है कि कल FIR दर्ज कराने वाले अग्निशमन विभाग ने ही 08 सितंबर 22 को 'अग्नि सुरक्षा' की दृष्‍टि से होटल 'वृंदावन गार्डन' का परीक्षण कर उसमें 6 खामियां पाई थीं और उन्‍हें 30 दिन के अंदर दूर करने का नोटिस दिया था लेकिन तब भी इन्‍होंने मालिक का नाम जानने की आवश्‍यकता तक नहीं समझी।     
जी हां, होटल वृंदावन गार्डन में कल सुबह हुए अग्निकांड की FIR तो कल देर शाम 7 बजकर 23 मिनट पर थाना कोतवाली वृंदावन में दर्ज कर ली गई किंतु इस FIR में आरोपियों की जगह 'स्‍वामी प्रबंधक' होटल 'वृंदावन गार्डन' लिखा गया है। मतलब जिस व्‍यक्ति को मथुरा-वृंदावन का बच्‍चा-बच्‍चा जानता है, उसे मथुरा के अग्निशमन अधिकारी और वृंदावन के कोतवाल नहीं जानते। 
आईपीसी की धारा 304 और 308 के तहत दर्ज इस अग्निकांड की जांच पुलिस इंस्‍पेक्‍टर ज्ञानेन्‍द्र सिंह सोलंकी को सौंपी गई है। 
आखिर क्यों दर्ज नहीं किए गए FIR में आरोपियों के नाम? 
ऐसे में हर व्‍यक्‍ति के मन में यह सवाल उठना स्‍वाभाविक है कि आखिर FIR में आरोपियों की नामजदगी क्यों नहीं की गई? 
इसका सीधा सा उत्तर है कि इसे ही "प्रभाव" कहते हैं। यही होता है अफसरों को समय-समय पर ऑब्‍लाइज करने का प्रतिफल। पुलिस से पूछिए तो कहेगी कि जांच के दौरान या जांच के बाद आरोपियों के नाम जोड़े जा सकते हैं, किंतु उनके पास इस बात का कोई जवाब नहीं हो सकता कि जिसके नाम और काम से सब परिचित हैं, उससे वह कैसे अनजान हैं। 
जाहिर है कि FIR दर्ज कराने वाले और करने वाले दोनों अधिकारियों की यह मासूमियत उच्‍च अधिकारियों के आदेश-नर्देश पर निर्भर है। अधिकारी चाहते तो यह संभव ही नहीं था कि आरोपियों के नाम इस तरह नदारद कर दिए जाते। पुलिस की एफआईआर से तो यह भी स्‍पष्‍ट नहीं है कि स्‍वामी और प्रबंधक अलग-अलग हैं या दोनों को एक ही मान लिया गया है। 
कानून के जानकारों की मानें तो यह सारा खेल एक गंभीर अपराध के जिम्‍मेदारों को अपने बचाव का पूरा मौका देने और जांच में लीपापोती करने की गुंजाइश रखने के लिए खेला गया है। 
कुछ भी कहें सीएम योगी, लेकिन हकीकत यही है 
प्रदेश के सीएम योगी कुछ भी कहें और कितनी ही सख्‍ती बरतने के आदेश-निर्देश देते रहें किंतु कड़वा सच यही है। तभी तो कहीं गैंगरेप के मामले में सीओ स्‍तर का  कोई अधिकारी 5 लाख रुपए की रिश्‍वत मांगता है और कहीं भ्रष्‍टाचार के पर्याय लोकनिर्माण विभाग के अधिकारी अपनी मनमानी करने से बाज नहीं आते। 
बेशक संज्ञान में आने पर शासन स्‍तर से ऐसे एक-दो लोगों के खिलाफ कभी-कभी कार्रवाई की जाती है परंतु उन अधिकारी एवं कर्मचारियों की संख्‍या काफी अधिक है जो साफ बच निकलते हैं। 
लखनऊ के होटल लेवाना में सरकार की नाक के नीचे आग लगती है तो उसके अवैध निर्माण का भी तुरंत पता लग जाता है और जिम्‍मेदारों के खिलाफ कार्रवाई भी तत्‍काल हो जाती है लेकिन वृंदावन के होटल में आग लगती है तो पुलिस होटल मालिक का नाम तक पता करना जरूरी नहीं समझती। 
इन हालातों में ऐसी कोई उम्‍मीद करना कि मथुरा-वृंदावन सहित प्रदेश भर के तमाम जिलों में बने अवैध होटल, गेस्‍ट हाउस, हॉस्‍पिटल या शॉपिंग कॉम्‍प्‍लेक्‍स के लिए सीधे-सीधे जिम्मेदार 'विकास प्राधिकरण' के अधिकारियों पर कभी कोई सख्‍त कार्रवाई होगी, हसीन सपने देखने जैसा है। 
यही कारण है कि प्रदेश का कोई जिला, कोई कस्‍बा, कोई तहसील ऐसी नहीं होगी जहां अवैध निर्माण न हो और जहां नियम-कानून को ताक पर रखकर खड़ी की गई इमारतें मौत के मंजर पेश करने की वजह न बनें। 
कल लखनऊ का लेवाना बना था, तो आज वृंदावन का वृंदावन गार्डन। लेकिन दावे के साथ कहा जा सकता है कि यह सिलसिला यहीं थमने वाला नहीं, क्‍योंकि जब लखनऊ में अवैध निर्माण संभव है तो मथुरा-वृंदावन जैसे जिलों की अहमियत ही कितनी है। 
बेनामी एफआईआर के आधार पर आरोपियों को गिरफ्तारी की आस लगाना, खुद को धोखे में रखने के अलावा कुछ नहीं। हो सकता है होटल वृंदावन गार्डन का मालिक किसी अधिकारी के पास बैठा दिखाई दे और अधिकारी कहे कि मैं तो उन्‍हें पहचानता ही नहीं था। यह होटल तो किसी और के नाम है, ग्रुप इनका है तो क्या? 
-Legend News 

गुरुवार, 3 नवंबर 2022

ये आग कब बुझेगी: 'लेवाना' के बाद अब मथुरा के होटल 'वृंदावन गार्डन' में लगी आग, 2 कर्मचारियों की मौत और 3 गंभीर रूप से झुलसे

 

अभी दो महीने ही बीते हैं जब प्रदेश की राजधानी लखनऊ के हजरतगंज स्‍थित 30 कमरों वाले होटल 'लेवाना' में आग लगने से 4 लोगों की मौत हो गई थी जबकि कई घायल हुए थे। उत्तर प्रदेश के मुख्‍यमंत्री योगी आदित्‍यनाथ और लखनऊ से सांसद रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह ने इस अग्‍निकांड को गंभीरता से लिया था जिस कारण न केवल 15 अधिकारी तत्‍काल निलंबित कर दिए गए बल्‍कि 19 अधिकारियों के ख़िलाफ़ सख्त कार्रवाई के निर्देश दिए जिनमें कुछ रिटायर अधिकारी भी शामिल हैं। 

सीएम योगी ने लखनऊ मंडल के पुलिस आयुक्त से जांच कराई। इस जांच रिपोर्ट में फायर ब्रिगेड, ऊर्जा विभाग, नियुक्ति विभाग, आवास और शहरी विकास विभाग सहित आबकारी विभाग के कई अधिकारियों की अनियमितता व लापरवाही पाई गई। 
इसके अलावा जांच में पाया गया कि होटल 'लेवाना' को अवैध रूप से बनाया गया था। जिसके लिए लखनऊ विकास प्राधिकरण द्वारा 22 इंजीनियरों और जोनल अधिकारियों के खिलाफ कार्रवाई की संस्‍तुति की गई। 
एलडीए ने हजरतगंज थाने में बंसल कंस्ट्रक्शन के मुकेश जसनानी और उनके सहयोगियों के खिलाफ आवासीय भूखंड पर होटल चलाने के लिए एफआईआर भी दर्ज कराई। पुलिस ने भी इस मामले में अपनी तरफ से एक मुकद्दमा दर्ज किया। 
इतना सब-कुछ किए जाने के बावजूद सारा सिस्‍टम किस तरह उसी ढर्रे पर चल रहा है, इसका उदाहरण आज तब देखने को मिला जब कृष्‍ण की लीला स्‍थली वृंदावन (मथुरा) के होटल वृंदावन गार्डन में सुबह के समय आग लगने से दो कर्मचारियों उमेश तथा बीरी सिंह की मौत हो गई और तीन झुलस गए जिनमें से एक 45 वर्षीय बिजेन्द्र की हालत गंभीर बताई जाती है लिहाजा उसे आगरा रैफर किया गया है। 
क्या अवैध है होटल 'वृंदावन गार्डन'?
जिस तरह लखनऊ के होटल 'लेवाना' में अग्‍निकांड के बाद पता लगा कि उसका निर्माण ही अवैध था, उसी तरह अब पता लग रहा है कि मथुरा का यह होटल भी अवैध रूप से बना है और मथुरा-वृंदावन विकास प्राधिकरण से इसका नक्शा एक मैरिज होम के तौर पर पास है। हालांकि हमेशा की तरह फिलहाल इसकी पुष्‍टि करने वाला कोई नहीं है क्‍योंकि होटल मालिक रामकिशन अग्रवाल काफी प्रभावशाली व्‍यक्‍ति है और इसके अलावा भी वह कई होटलों का मालिक है जो बसेरा ग्रुप के तहत संचालित हैं। 

अग्‍निशमन विभाग ने दे रखा है नोटिस 
 विकास प्राधिकरण की चुप्‍पी के बीच इतनी जानकारी जरूर सामने आई है कि अग्‍निशमन विभाग कोसीकलां के प्रभारी जसराम सिंह ने ''होटल वृंदावन गार्डन'' वृंदावन का 8 सितंबर 2022 को सुरक्षा की दृष्‍टि से निरीक्षण किया था और इस दौरान उन्‍होंने होटल में तमाम खामियां पाईं। 
उन्‍होंने इसी दिन होटल के स्‍वामी/प्रबंधक को एक नोटिस जारी कर उत्तर प्रदेश फायर सर्विस अधिनियम 1944 की धारा 1 व 2 के अंतर्गत जनहित में सभी कमियां 30 दिन के अंदर दूर कराने को कहा था लेकिन होटल स्‍वामी/प्रबंधक के कानों पर जूं नहीं रेंगी, जिसके परिणाम स्‍वरूप दो कर्मचारियों को जान से हाथ धोना पड़ा और तीन अपनी जिंदगी के लिए लड़ रहे हैं। 
अग्‍निशमन विभाग कोसीकलां के प्रभारी द्वारा जारी नोटिस से स्‍पष्‍ट है कि होटल वृंदावन गार्डन में अग्‍निसुरक्षा के नाम पर कुछ नहीं था, बावजूद इसके वो नोटिस देने के अतिरिक्‍त कुछ और कर भी नहीं सकते थे। 
अग्‍निशमन विभाग की मानें तो उसके पास इससे अधिक कोई अधिकार हैं ही नहीं। वो नोटिस-नोटिस खेलने के बाद ज्‍यादा से ज्‍यादा 'कोर्ट' मूव कर सकते हैं किंतु सीधे कोई कार्रवाई नहीं कर सकते।  
सड़क पर कराई जाती है 'पार्किंग' 
मथुरा-वृंदावन रोड पर स्‍वामी रामकृष्‍ण मिशन हॉस्‍पिटल के सामने बने होटल वृंदावन गार्डन द्वारा भी मथुरा जनपद के अन्‍य अनेक होटलों की तरह पार्किंग के लिए सड़क को इस्‍तेमाल किया जाता है जबकि होटल में 5-7 नहीं करीब 25 कमरे हैं और प्रदेश ही नहीं, देश का प्रमुख धार्मिक स्‍थल होने के कारण यहां के सभी कमरे शायद ही कभी खाली रहते हों। 
आश्‍चर्य की बात यह है कि सीएम योगी समेत प्रदेश के अन्‍य बहुत से मंत्री तथा उच्‍च अधिकारियों का वृंदावन आना-जाना अक्‍सर लगा रहता है और उनकी यहां के विकास पर भी निगाहें केंद्रित हैं, बावजूद इसके सरकारी मशीनरी है कि सुधरने का नाम नहीं लेती। 
ऑब्‍लाइज रहते हैं अधिकांश अधिकारी 
होटल, मैरिज होम, गेस्‍ट हाउस, हॉस्‍पिटल, नर्सिंग होम तथा शॉपिंग कॉम्प्लेक्स आदि के अवैध निर्माण का एक बड़ा कारण अधिकांश अधिकारियों का इनके मालिकों से ऑब्‍लाइज रहना भी बताया जाता है। कहीं ये ऑब्लिगेशन 'कैश' के रूप में होता है तो कहीं 'काइंड' के रूप में। 
कुछ होटल और गेस्‍ट हाउस मालिकों ने नाम न छापने की शर्त पर बताया कि उन्‍हें कई कमरे तो हमेशा अधिकारियों की 'बेगार' के लिए खाली रखने पड़ते हैं जिससे अधिकारी खुद या उनके मेहमान जब चाहें आकर रुक सकें। ऐसा न करने पर प्रताड़ित किया जाता है। 
इसी प्रकार हॉस्‍पिटल और नर्सिंग होम संचालकों का भी अधिकारी भरपूर 'दुर-उपयोग' करते देखे जा सकते हैं। राष्‍ट्रीय राजमार्ग पर बने हॉस्‍पिटल और नर्सिंग होम इसके प्रत्यक्ष प्रमाण हैं जहां खुलेआम सर्विस रोड को घेरकर 'पार्किंग' बना दिया गया है और यहां तक कि अपने स्‍तर पर उसका निजी ठेका भी उठा दिया गया है लेकिन न कोई बोलने वाला है और न सुनने वाला। यही हाल शहर के शॉपिंग कॉम्प्लेक्स का है। 
बहरहाल, कृष्‍ण की नगरी कितनी ही महत्‍वपूर्ण क्यों न हो लेकिन यह प्रदेश की राजधानी लखनऊ नहीं है इसलिए यहां के होटल में अग्‍निकांड के जिम्‍मेदार लोगों पर तत्‍काल प्रभाव से किसी एक्शन की उम्‍मीद करना बेमानी है। होटल के दो कर्मचारी मर चुके हैं तथा तीन जिंदगी के लिए जूझ रहे हैं किंतु सरकारी सिस्‍टम कुछ दिनों बाद इसे भी ठीक वैसे ही भूल जाएगा जैसे लखनऊ के होटल लेवाना के हादसे को भूल गया। कुल मिलाकर यही कहा जा सकता है कि सिस्‍टम की लगाई इस आग में कभी लखनऊ झुलसेगा तो कभी मथुरा, किंतु सिस्‍टम शायद ही कभी झुलस पाएगा। उसके हाथ में हमेशा तुरुप का पत्ता रहेगा क्योंकि जांच भी उसी को करनी है और रिपोर्ट भी उसी को सौंपनी है। 
होटल वृंदावन गार्डन में आग कैसे लगी, अभी तो यही पता नहीं लगा। फिर यह पता कैसे लगेगा कि इस 'आग' की भेंट चढ़े लोगों की मौत का जिम्‍मेदार कौन-कौन है। लखनऊ के लेवाना होटल की आग ठंडी पड़ चुकी है। वृंदावन गार्डन की भी आग जल्‍द ठंडी पड़ जाएगी, लेकिन सिस्‍टम का खेल बदस्‍तूर जारी रहेगा। 
-Legend News 

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