रविवार, 1 जून 2014

मामला देश के काले धन का: बड़े कांटे हैं इस राह में...

नई दिल्‍ली। 
मोदी सरकार ने ब्लैक मनी की जांच के लिए स्पेशल इन्वेस्टिगेशन टीम (एसआईटी) बनाने का ऐलान कर दिया है। एसआईटी के प्रमुख सुप्रीम कोर्ट के पूर्व जज एम. वी. शाह को बनाया गया है। सुप्रीम कोर्ट के ही पूर्व जज अरिजीत पासायत एसआईटी के वाइस चेयरमैन होंगे। सदस्यों के रूप में सीबीआई, रॉ, आईबी, ईडी, सीबीडीटी के टॉप अफसर रहेंगे। एसआईटी यह पता लगाएगी कि देश में कितनी ब्लैक मनी है और साथ ही इसे वापस लाने के तरीकों पर सरकार को सुझाव भी देगी। यहां अहम सवाल यह है कि एसआईटी के अधिकारों का दायरा क्या होगा? क्या इसके जरिये विदेशों में जमा भारतीयों का कालाधन वापस लाया जा सकेगा? इस बारे बता रहे हैं जोसफ बर्नाड
क्या है मामला
स्विस बैंक, जर्मनी, सिंगापुर से लेकर मॉरिशस में भारतीयों की ब्लैक मनी होने की खबरें हैं लेकिन अभी तक किसी भी विदेशी या भारतीय एजेंसी के पास यह पुख्ता जानकारी नहीं है कि भारतीयों की कितनी ब्लैक मनी विदेशों में है। सुप्रीम कोर्ट में वकील राम जेठमलानी के अनुसार, कई भारतीय एजेंसियों ने इस बारे में स्टडी की है। इससे यह संकेत मिलता है कि भारतीयों की करीब 1500 अरब डॉलर (करीब 90 लाख करोड़ रुपये) की ब्लैक मनी विदेशों में है, जो हमारी कुल जीडीपी 1800 अरब डॉलर से कुछ ही कम है।
एसआईटी के मायने
सुप्रीम कोर्ट के कहने पर ही एसआईटी का गठन किया गया है। यह टीम यह पता करेगी कि ब्लैक मनी देश में कितनी है, कितनी विदेशों में जा रही है और किस रूट से जा रही है। ब्लैक मनी के बाहर जाने का एक रास्ता हवाला कारोबार भी है। यदि कोई स्विस बैंक में पैसे जमा कराता है, तो वह किस तरह हुआ है। क्या इसकी जानकारी इनकम टैक्स विभाग को है? यदि नहीं है, तो उस पर टैक्स चोरी का मामला भी बनता है।
अधिकारों पर नजरें
मार्केट एक्सपर्ट्स का कहना है, अहम बात यह है कि एसआईटी को कितने अधिकार दिए जाते हैं। क्या एसआईटी को किसी के खिलाफ वित्तीय आपराधिक मामला दर्ज करने, सरकार से पूछे बगैर दूसरे देशों की जांच एजेंसियों के साथ सीधे बात करने, उनसे ब्योरा लेने और उस पर कार्यवाही करने का अधिकार दिया जाता है? क्या इसे शेयर मार्केट रेग्युलेटर की तरह ब्लैक मनी के मामले बैंक खाते बंद करने या संपत्ति सील करने का अधिकार मिलता है? मार्केट एक्सपर्ट सुशील अग्रवाल का कहना है कि ब्लैक मनी या टैक्स चोरी का मामला काफी संवेदनशील होता है। इसमें जल्द कार्यवाही करने की जरूरत होती है। यदि एसआईटी को पूरी तरह से स्वतंत्र नहीं बनाया गया तो रिजल्ट ज्यादा पॉजिटिव नहीं हो सकता।
जुटाएंगे सारा ब्यौरा
एसआईटी के प्रमुख एम. वी. शाह के मुताबिक भारत और दूसरे देशों में कहां-कहां और कितनी ब्लैक मनी है, यह जानने के लिए छह महीने लग सकते हैं। इसका मतलब है कि एसआईटी पहले तो ब्लैक मनी से जुड़े आंकड़े जमा करेगी। इसके बाद इसकी रिपोर्ट सरकार को दी जाएगी और फिर इसको किस तरह से देश में लाया जाए, इसके तरीकों पर विचार होगा।
क्या है मुश्किलें
स्विस प्रशासन को पूर्व वित्त मंत्री पी. चिदंबरम ने ब्लैक मनी को लेकर चार चिट्ठियां लिखीं। जबाव मिला कि स्विस प्रशासन ने फैसला किया है कि 2011 के बाद के भारतीयों के खाते के बारे में सूचना दी जाएगी। वह भी इस शर्त पर कि भारत सरकार को लिखित रूप से यह आग्रह करना होगा कि उसे इसकी सूचना चाहिए। इसके अलावा यदि किसी भी देश की सरकार को किसी भी व्यक्ति के बारे में शक है कि उसका खाता स्विस बैंक में है तो सरकार को पहले उस व्यक्ति के खि‌लाफ आपराधिक मामला दर्ज करना होगा, तभी उस व्यक्ति के बारे में कोई जानकारी दी जाएगी। जर्मनी ने हाल ही में विदेशी बैंकों में जमा ब्लैक मनी को लेकर कुछ जानकारियां जमा की हैं, लेकिन इसके आंकड़ों को लेकर कुछ संदेह है।
कई हैं कानूनी पेच
भारत दो तरीकों से ब्लैक मनी को वापस ला सकता है। पहला, उसे इन लोगों के खिलाफ वित्तीय आपराधिक मामला दर्ज करना होगा और साबित करना होगा कि यह ब्लैक मनी है यानि इस पर टैक्स नहीं दिया गया है। दूसरा, उन लोगों के नाम सार्वजनिक करने होंगे और स्विस प्रशासन को तकनीकी रूप से यह बताना होगा कि जो धन उसके पास जमा है, वह ब्लैक मनी के दायरे में आता है। ऐसे में सरकार को वह धन जब्त करने का हक है।
क्या सरकार ऐसा कर पाएगी?
मार्केट एक्सपर्ट के. के. मदान का कहना है कि अमेरिका तक यह कर नहीं पाया, भारत के लिए यह करना और मुश्किल होगा। साल 2008 में जब अमेरिका में इकॉनमिक स्लोडाउन था, तब उसने स्विस प्रशासन से उन धनी अमेरिकियों के नाम मांगे थे, जिनकी ब्लैक मनी स्विस बैंकों में जमा है। लिस्ट मिली, पर अमेरिका ने उनके खिलाफ कोई केस दर्ज नहीं किया। उन्होंने कहा कि अमेरिकी मार्केट में नकदी का अभाव है। वे अपना धन स्विस बैंकों से निकालकर अमेरिकी मार्केट में लगाएं, जब मनी फ्लो बढ़ जाए तो नकदी वापस निकाल लें। अमेरिका ने साफ तौर पर कहा कि कानूनी पेच इतने ज्यादा हैं कि स्विस बैंकों में जमा ब्लैक मनी है, इसे साबित करने में ही काफी वक्त खराब हो जाएगा और फिर लोगों पर वित्तीय आपराधिक केस चलाना पड़ेगा। लिहाजा उसने दूसरा रास्ता अपनाया।
-एजेंसी
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