रविवार, 26 जुलाई 2015

व्यापम घोटाले के विसलब्लोअर की पत्नी से 10 लाख रुपए बरामद

इंदौर। मध्य प्रदेश के कुख्यात व्यापम घोटाले के विसलब्लोअर प्रशांत पांडेय की पत्नी मेघना से पुलिस ने शनिवार रात 10 लाख रुपए बरामद किए हैं। पुलिस ने मेघना को हिरासत में लेकर पूछताछ की और उनसे कथित तौर पर हवाला की शंका में करीब 10 लाख रुपए जब्त किए।
पांडेय का आरोप है कि उच्चतम न्यायालय द्वारा उनकी याचिका पर व्यापम घोटाले की सीबीआई जांच का आदेश दिए जाने के बाद प्रदेश सरकार उनके परिवार को परेशान कर रही है।
पुलिस अधीक्षक (पूर्वी क्षेत्र) ओपी त्रिपाठी ने बताया कि पुलिस को जवाहरलाल नेहरू स्टेडियम के सामने स्थित निजी फर्म लक्ष्मी मोटर्स के पास हवाला के लेन-देन के बारे में मुखबिर से सूचना मिली थी।
इस सूचना पर पुलिस जब मौके पर पहुंची, तो मेघना पांडेय इस फर्म के दफ्तर से एक बैग लेकर आते दिखाई दीं। मेघना इस निजी फर्म में एचआर मैनेजर के पद पर काम करती हैं।
त्रिपाठी ने बताया कि एक महिला पुलिस अधिकारी ने जब मेघना के कब्जे से मिले बैग की तलाशी ली, तो इसमें नौ लाख 96 हजार रुपए पाए गए।
इस रकम के बारे में मेघना पुलिस को ‘संतोषजनक जवाब’ नहीं दे सकीं और मामला ‘संदिग्ध’ पाया गया लिहाजा यह रकम दंड प्रक्रिया संहिता (सीआरपीसी) की धारा 102 के तहत जब्त कर ली गई और पूछताछ के बाद मेघना को छोड़ दिया गया।
पुलिस अधीक्षक ने बताया कि पुलिस ने मेघना के कब्जे से जब्त संदिग्ध रकम के बारे में आयकर विभाग और अन्य संबंधित महकमों को सूचना दे दी है। मामले में विस्तृत जांच जारी है।
दूसरी ओर व्यापम घोटाले के विसलब्लोअर प्रशांत पांडेय ने आरोप लगाया कि पुलिस ने प्रदेश सरकार के इशारे पर उनकी पत्नी को अवैध तौर पर हिरासत में रखा और उनके परिवार की ‘मेहनत की कमाई के’ 10 लाख रुपए जबरन जब्त कर लिए।
पांडेय ने कहा, ‘उच्चतम न्यायालय द्वारा मेरी याचिका पर व्यापम घोटाले और इससे जुडे़ लोगों की संदिग्ध हालात में मौत के मामलों की सीबीआई जांच का आदेश दिए जाने के बाद प्रदेश सरकार के इशारे पर मेरे परिवार को परेशान किया जा रहा है।’
उन्होंने कहा कि पुलिस ने उनकी पत्नी के कब्जे से करीब 10 लाख रुपए की जो रकम जब्त की, वह उनके परिवार ने अपनी मेहनत की कमाई से पिछले 10 साल के दौरान बचाई थी। उनके परिवार ने इस रकम के बारे में अपने आयकर रिटर्न में भी जानकारी दी थी। पांडे ने कहा, ‘हम किराए के घर में रहते हैं। हमें एक फ्लैट बुक करने के लिए बिल्डर को करीब 10 लाख रुपए देने थे लेकिन इससे पहले ही पुलिस ने अपनी ताकत का दुरुपयोग करते हुए यह रकम मेरी पत्नी के कब्जे से जब्त कर ली।’
-एजेंसी

शुक्रवार, 24 जुलाई 2015

करोड़ों रुपए की धोखाधड़ी करके भी कानून की पकड़ से दूर हैं ‘जैन रियलटर्स’ के मालिक

मथुरा की रियल एस्‍टेट कंपनी कोशदा बिल्‍डकॉन प्रा. लि. के वृंदावन स्‍थित प्रोजेक्‍ट ‘मंदाकिनी’ में कथित साझेदारी की आड़ लेकर दिल्‍ली बेस्‍ड कंपनी ‘जैन रियलटर्स’ द्वारा विभिन्‍न लोगों के साथ करोड़ों रुपए की धोखाधड़ी करने का मामला सामने आया है
जैन रियलटर्स के मालिकानों ने वृंदावन स्‍थित प्रोजेक्‍ट ‘मंदाकिनी’ में कथित साझेदारी के नाम पर तमाम फ्लैट्स का सौदा कर लिया और विभिन्‍न लोगों से बतौर एडवांस लाखों रुपए ले लिये जबकि जैन रियलटर्स की कोशदा बिल्‍डकॉन से कथित साझेदारी पहले ही विवादित हो गई थी।
जैन रियलटर्स के मालिकानों ने फ्लैट की बुकिंग के नाम पर जिन लोगों से लाखों रुपए हड़प लिये, उनमें से आधा दर्जन लोगों ने जैन रियलटर्स के मालिकानों अजय जैन व विजय जैन पुत्रगण सुरेश चन्‍द्र जैन तथा सुरेश चन्‍द्र जैन पुत्र भिक्‍कीमल जैन निवासीगण 3-4, हिमालयन अपार्टमेंट प्‍लॉट नंबर-10 सैक्‍टर 22 द्वारका नई दिल्‍ली के खिलाफ थाना कोतवाली वृंदावन में मुकद्दमा दर्ज करा रखा है किंतु पुलिस अब तक अजय व विजय जैन को गिरफ्तार नहीं कर सकी है।
पुलिस ने इस मामले में मात्र सुरेश चंद्र जैन की गिरफ्तारी की थी जो कई महीने जेल में रहने के बाद जमानत लेने में सफल रहे।
जैन रियलटर्स की धोखाधड़ी के शिकार बने लोग अब अपने पैसों की वसूली के लिए पुलिस तथा अदालत के चक्‍कर काटने पर मजबूर हैं।
जैन रियलटर्स के शिकार बने एक एनआरआई वृद्ध प्रबल रंजन रे तो अपनी जिंदगीभर की जमा पूंजी अजय व विजय जैन को दे बैठे और अब न्‍याय की उम्‍मीद लगाये बैठे हैं ताकि उनका पैसा उनके जीते जी वापस मिल सके।
जिन लोगों ने जैन रियलटर्स के मालिकानों अजय व विजय जैन तथा उनके पिता सुरेश जैन के खिलाफ एफआईआर कराई है उनमें बनवारी लाल शर्मा निवासी बी-5, टोडरमल मार्ग, बनी पार्क जयपुर (राजस्‍थान), बीना अग्रवाल पत्‍नी संतोष कुमार अग्रवाल निवासी 135 डीडीए फ्लैट, पॉकेट 1-2, द्वारका नई दिल्‍ली, जयवीर जैन पुत्र स्‍व. रायबहादुर जैन, निवासी 807, सैक्‍टर 17 ए, गुड़गांव हरियाणा, श्रीमती सरोज जैन पत्‍नी धर्मवीर जैन निवासी ए 377 इंदिरा नगर, लखनऊ (उप्र), श्रीमती मीरा जैन पत्‍नी जयवीर जैन निवासी 807, सैक्‍टर 17 ए, गुड़गांव हरियाणा तथा खुशीन्‍दर बाली पुत्र यशपाल बाली निवासी स्‍काईलोक, सीजीएचएस लि. सैक्‍टर-6, प्‍लॉट नंबर-35, द्वारका नई दिल्‍ली शामिल हैं।
यह सभी एफआईआर थाना कोतवाली वृंदावन जनपद मथुरा में आईपीसी की धारा 420, 467, 468, 471, 120 बी, 504 व 506 के तहत अलग-अलग अपराध संख्‍या पर दर्ज हैं।
यह भी पता लगा है कि वृंदावन पुलिस ने अजय और विजय जैन के खिलाफ दर्ज मुकद्दमों की तादाद तथा अपराध की गंभीरता के मद्देनजर इन पर गैंगेस्‍टर एवं गुण्‍डा एक्‍ट की कार्यवाही करते हुए ईनाम घोषित कर दिया है, बावजूद इसके वह इन दोनों भाइयों को गिरफ्तार करने में कोई रुचि नहीं दिखा रही जिससे पीड़ित पक्ष काफी निराश हैं।
पुलिस के इस ढीले रवैये का कारण, पुलिस के ही सूत्र इनकी उत्‍तर प्रदेश पुलिस के कुछ बड़े अधिकारियों से नजदीकी बताते हैं।
करोड़ों रुपए की धोखाधड़ी के इस मामले का सबसे दिलचस्‍प पहलू यह है कि जो पुलिस छोटे-छोटे आपराधिक मामलों में पूरी सक्रियता दिखाते हुए आरोपियों की गिरफ्तारी के लिए दविश पर दविश देती है, वह एक रियल एस्‍टेट कंपनी चलाने वाले दो सगे भाइयों को महीनों बीत जाने के बाद भी गिरफ्तार नहीं कर पा रही जबकि वो और उनके परिजन खुलेआम दिल्‍ली स्‍थित अपने ठिकानों पर बेखौफ धंधा करते देखे जा सकते हैं।
यहां सवाल यह नहीं है कि कोशदा बिल्‍डकॉन प्रा. लि. के वृंदावन स्‍थित प्रोजेक्‍ट मंदाकिनी में जैन रियलटर्स की साझेदारी है या नहीं, और है तो कितनी है। सवाल यह है कि इस विवादित साझेदारी के बीच जिस तरह से अजय व विजय जैन तथा उनके पिता सुरेश जैन ने विभिन्‍न लोगों से करोड़ों रुपए की रकम हड़प ली, वो कहां जाएं। वह कैसे अपनी रकम निकलवाएं और यह रकम कब तक निकल पायेगी।
इस संबंध में पूछे जाने पर वृंदावन पुलिस ने इतना जरूर बताया कि जैन रियलटर्स के मालिकानों अजय व विजय जैन तथा उनके पिता सुरेश चन्‍द्र जैन के खिलाफ करोड़ों रुपए की धोखाधड़ी के दर्ज लगभग सभी आधा दर्जन मामलों में चार्जशीट दाखिल की जा चुकी है लिहाजा अब वह बहुत दिनों तक बच नहीं पायेंगे।
रहा सवाल पुलिस द्वारा उनको गिरफ्तार न कर पाने का, तो पुलिस ने उनके पिता को गिरफ्तार किया था और कई महीने वह मथुरा जिला कारागार में निरुद्ध भी रहे।
पुलिस का कहना है कि अजय और विजय जैन के खिलाफ गुण्‍डा एक्‍ट व गैंगेस्‍टर एक्‍ट के तहत कार्यवाही करने का मकसद भी उनको कानून की गिरफ्त में लाने का था और अब चूंकि लगभग सभी मामलों में आरोप पत्र कोर्ट के अंदर दाखिल किये जा चुके हैं इसलिए कोर्ट की मंशा के अनुरूप कार्यवाही अमल में लाई जायेगी।
-लीजेंड न्‍यूज़ विशेष

बुधवार, 22 जुलाई 2015

यूपी: पीसीएस से एसडीएम बनने वाले 86 में 56 यादव कैसे, याचिका दायर

लखनऊ। उत्तर प्रदेश पीसीएस की परीक्षा में पीसीएस से एसडीएम बनने वाले 86 में 56 यादव कैसे, यह जानने के लिए इलाहाबाद हाईकोर्ट में एक याचिका दायर की गई है।
याचिका दायर असफल होने वाले कुछ छात्रों ने की है और यूपीपीसीएस द्वारा आयोजित पिछली तीन परीक्षाओं में अनियमितता और धोखाधड़ी के आरोप लगाए हैं।
छात्रों का आरोप है कि पिछली तीन परीक्षाओं के बाद एसडीएम बनने वाले छात्रों में से आधे एक ही जाति के हैं।
इलाहाबाद हाई कोर्ट में दायर याचिका में दावा किया गया कि एसडीएम बनने वाले 86 लोगों में से 56 एक ही जाति के हैं। साथ ही, पिछले तीन वर्षों में यूपीपीएससी की परीक्षाओं में उत्तीर्ण होने वालों में भी 50 फीसदी इसी एक जाति के हैं।
याचिकाकर्ताओं ने यूपीपीएससी के चेयरपर्सन डॉ. अनिल यादव पर अपनी ही जाति के छात्रों को फायदा पहुंचाने का आरोप लगाते हुए इस मामले की सीबीआई जांच कराने की मांग की है।
याचिका के मुताबिक 2011 में सिलेक्ट हुए 389 पीसीएस ऑफिसर्स में से 72 उनकी ही जाति के हैं। ओबीसी कोटे में पास होने वाले 111 छात्रों में से 45 इसी जाति के हैं। याचिका के मुताबिक यूपीपीएससी की परीक्षाओं में इस तरह की अनियमितता डॉ. अनिल यादव के चेयरपर्सन बनने के बाद ही शुरू हुई। उनके कार्यकाल में 2011, 12 और 13 में परीक्षाएं कराई गईं।
पहुंचाया गया फायदा: याचिकाकर्ताओं में से एक अवधेश पांडेय ने कहा, ‘सामान्यत: पीसीएस परीक्षाएं दो-तीन वर्षों के अंतराल पर आयोजित कराई जाती थीं, लेकिन अपनी जाति के लोगों को लाभ पहुंचाने के लिए डॉ. यादव इन्हें हर साल आयोजित करवाने लगे। हमने हाई कोर्ट में यूपीपीएससी द्वारा आयोजित एक दर्जन से ज्यादा परीक्षाओं के परिणाम सबूत के तौर पर पेश किए, जो एक जाति विशेष को लाभ पहुंचाने की ओर इशारा करते हैं। यह मामला मध्य प्रदेश के व्यापम घोटाले से भी बड़ा हो सकता है और इसकी सीबीआई जांच कराई जानी चाहिए।’
रिपोर्ट के मुताबिक याचिकाकर्ताओं का दावा है कि अपनी जाति के अभ्यर्थियों को लाभ पहुंचाने के लिए यूपीपीएससी के नियम भी बदले गए। अब लिखित परीक्षा में कुछ विषयों में शून्य अंक लाने वाले छात्रों को भी आगे बढ़ा दिया जाता है। अब मेरिट की लिस्ट लिखित परीक्षा और इंटरव्यू के नंबरों को मिलाकर तैयार की जाती है। ऐसे में लिखित परीक्षा में बहुत कम अंक हासिल करने वालों को इंटरव्यू में ज्यादा नंबर दे दिए जाते हैं लेकिन लिखित में ज्यादा नंबर लाने वाले छात्रों को इंटरव्यू में ज्यादा नंबर नहीं मिल पाते।
बदले गए नियम और फैसले: एक याचिकाकर्ता विशाल कुमार ने यूपीपीएससी की उस प्रक्रिया पर भी सवाल उठाया, जिसके तहत एग्जाम की आंसर शीट सार्वजनिक किया जाना बंद कर दिया गया। ऐसे में छात्रों को पता ही नहीं चलता था कि वे कहां गलत थे। हाई कोर्ट में मामला पहुंचने पर इसका भी तोड़ निकाल लिया गया। यूपीपीएससी की परीक्षा में कई ऐसे सवाल मिले, जिनके एक से ज्यादा सही जवाब थे लेकिन पेपर जांचने वाले अपने मन से किसी भी एक जवाब को सही मान लेते थे। यह मामला अभी लंबित है।

मंगलवार, 21 जुलाई 2015

‘ऐशले मेडिसन’ हैक, शादीशुदा लोगों में हड़कंप

वॉशिंगटन। सबसे बड़ी ऑनलाइन डेटिंग साइट ‘ऐशले मेडिसन’ के हैक हो जाने से शादीशुदा लोगों में हड़कंप मच गया है। दरअसल इससे करोड़ों शादीशुदा लोगों की जिंदगी पर सीधा असर पड़ेगा।
इस साइट की टैगलाइन का हिंदी अर्थ है, ‘जिंदगी छोटी है, बनाएं रिश्ते’,। साइट के हैक होने की पुष्टि कर दी गई है। जानकारी के मुताबिक इस वेबसाइट पर शादीशुदा लोग डेटिंग करने के लिए पार्टनर ढूंढ़ते हैं।
खबर है कि उन लोगों के नाम, पते, तस्वीरें और सभी जरूरी जानकारियां चुरा ली गईं हैं।
एक अनुमान के मुताबिक करीब 37 मिलियन यानी 3.7 करोड़ यूजर्स की निजी जानकारी इससे खतरे में आ गई है। 2005 में शुरू हुई इस वेबसाइट के अब तक करीब 3.7 करोड़ यूजर्स हैं।
अब पर्सनल डेटा को लेकर लोगों में खासा डर है कि यह कहीं उनकी खुशहाल जिंदगी को यह हैकिंग बर्बाद न कर दे।
-एजेंसी

शुक्रवार, 17 जुलाई 2015

मीडिया जगत: ”काला” धंधा, ”गोरे” लोग

सावधान…होशियार…ये मीडिया जगत के गोरे लोगों का काला धंधा है। इसके नियम भी ये खुद बनाते हैं और शर्तें भी खुद तय करते हैं। इनके सामने जितना असहाय हर आम और खास आदमी है, उतनी ही असहाय वह न्‍याय व्‍यवस्‍था भी है जो बड़े-बड़ों को कठघरे में खड़ा कर लेती है।
बानगी देखिए:
छोटा लिंग, निराश क्‍यों ? जापानी लिंगवर्धक यंत्र फ्री। सेक्‍स धमाका…लिंग को 7-8 इंच लंबा, मोटा, सुडौल तथा ताकतवर बनाएं। लाभ नहीं तो पैसा वापस।
क्‍या आपके पति की आपमें रुचि कम हो रही है? आपमें सेक्‍स इच्‍छा की कमी है…जापानी-M कैप्‍सूल पुरुषों के लिए और जापानी-F कैप्‍सूल महिलाओं के लिए। शौकीन लोग भी इस्‍तेमाल करके असर देखें।
यह मजमून उन विज्ञापनों का है जो हर रोज देश के तथाकथित बड़े अखबारों में छपते हैं।
यह और ऐसे अनेक विज्ञापन जिनमें डेटिंग, मीटिंग, चेटिंग, फ्रेंडशिप कराने से लेकर हर उम्र की महिला से संपर्क कराने का दावा किया जाता है, प्रमुख अखबारों की कमाई का बड़ा जरिया हैं।
इन विज्ञापनों को प्रकाशित करने वाले अखबार अपने बचाव में एक छोटी सी सूचना अथवा परामर्श भी सबसे नीचे कहीं प्रकाशित करते हैं।
यहां सवाल यह है कि समाज के हर वर्ग को दिन-रात नीति और नैतिकता का पाठ पढ़ाने वाले तथा किसी के भी चरित्र का हनन करने को तत्‍पर अखबारों के मालिकान अपने बचाव में मात्र एक चेतावनी जारी करके कुछ भी छापने के लिए अधिकृत हैं या ये भी कानून से बच निकलने के हथकंडे अपनाकर नीति व नैतिकता को ताक पर रख चुके हैं।
आश्‍चर्य की बात तो यह है कि कोई सामाजिक या राजनीतिक संगठन इनके विरोध में आवाज नहीं उठाता जबकि अखबारों के ऐसे विज्ञापन यौन अपराधों की ओर प्रेरित करने का खुला आह्वान कर रहे हैं।
हालांकि इस मामले में न इलैक्‍ट्रॉनिक मीडिया पीछे हैं और न वेब मीडिया। वह जैसे प्रिंट मीडिया से प्रतिस्‍पर्धा को उतावला है, किंतु प्रिंट मीडिया व बाकी मीडिया में एक फर्क है। फर्क यह है कि छपे हुए शब्‍द इंसान को जितना अधिक प्रभावित करते हैं, उतना दूसरे माध्‍यम नहीं करते। इसके अलावा अखबार समाचारों का सबसे पुराना माध्‍यम हैं लिहाजा अखबारों की जिम्‍मेदारी भी औरों से अधिक बनती है लेकिन पैसे की खातिर अखबारों ने जिम्‍मेदारी को लाचारी में तब्‍दील कर लिया है।
अखबार मालिकानों का पैसे के लिए यह नैतिक पतन यदि इसी प्रकार जारी रहा तो वह दिन दूर नहीं जब अखबारों में देह व्‍यापार के लिए लड़कियों की अथवा पुरुष वैश्‍यावृति के इच्‍छुक युवाओं की आवश्‍यकता संबंधी विज्ञापन भी प्रकाशित होने लगेंगे।
ताकत हमेशा अपने साथ तमाम बुराइयां लेकर आती है। चूंकि मीडिया फिलहाल काफी ताकतवर होकर उभरा है इसलिए वह निरंकुश हो चुका है। कहने के लिए मीडिया पर भी लगाम लगाने की व्‍यवस्‍था है किंतु यह व्‍यवस्‍था कुछ वैसी ही है जैसी सांसदों व विधायकों के वेतन-भत्‍ते तय करने की है। यानि मुजरिम ही मुंसिफ है।
तभी तो आलम यह है कि मीडिया हाउसेस को न किसी कानून की परवाह है और न किसी अदालत की। उस सर्वोच्‍च अदालत की भी नहीं जिसके चक्‍कर में फंसने से हर आम और खास आदमी बचने की पूरी कोशिश करता है।
सरकारी विज्ञापनों में मुख्यमंत्रियों, मंत्रियों तथा जनप्रतिनिधियों के फोटो छपवाने पर पिछले दिनों सुप्रीम कोर्ट ने एक आदेश दिया जिसके अनुसार सिर्फ प्रधानमंत्री को ही सरकारी विज्ञापन में फोटो छपवाने का अधिकार होगा। विशेष परिस्‍तिथियों में राष्‍ट्रपति, गवर्नर तथा सुप्रीम कोर्ट के चीफ जस्‍टिस का फोटो सरकारी विज्ञापन का हिस्‍सा बन सकता है।
सुप्रीम कोर्ट के इस आदेश तथा इससे संबंधित निर्देशों की सबसे पहले धज्‍जियां उड़ाईं दिल्‍ली के मुख्‍यमंत्री अरविंद केजरीवाल ने। उसके बाद तमिलनाडु की मुख्‍यमंत्री जे. जयललिता तथा उत्‍तर प्रदेश के मुख्‍यमंत्री अखिलेश यादव ने सुप्रीम कोर्ट के आदेश-निर्देशों को खुली चुनौती देते हुए अपने फोटो सरकारी विज्ञापनों में प्रकाशित व प्रसारित कराये।
बेशक इस मामले में एक याचिका कांग्रेस नेता अजय माकन ने दायर की है और उस पर केंद्र तथा संबंधित राज्‍य सरकारों से जवाब तलब भी किया गया है। केंद्र से यह पूछा गया है कि उसने सुप्रीम कोर्ट के आदेश-निर्देशों का अनुपालन कराने की दिशा में क्‍या कदम उठाये हैं लेकिन उन अखबारों तथा टीवी चैनलों का क्‍या जो नेताओं द्वारा सर्वोच्‍च न्‍यायालय के आदेश-निर्देशों की अवहेलना करने का जरिया बन रहे हैं।
अक्‍सर बात होती है कि नेता, अपराधी तथा पुलिस-प्रशासन का एक ऐसा गठजोड़ बन गया है जो व्‍यवस्‍था पर हावी है और जिसने समाज को भयभीत कर रखा है। हाल ही में पुलिस की कार्यप्रणाली को रेखांकित करते हुए उत्‍तर प्रदेश की कानून-व्‍यवस्‍था के बावत इलाहाबाद हाईकोर्ट ने इसी प्रकार की तल्‍ख टिप्‍पणी की है।
क्‍या ऐसा नहीं लगता कि इस टिप्‍पणी में कुछ छूट गया है, कुछ अधूरा रह गया है। यह टिप्‍पणी तब मुकम्‍मल होती जब इसके साथ मीडिया को भी शामिल किया जाता लेकिन लगता है कि न्‍यायिक व्‍यवस्‍था भी मीडिया से बच कर निकल जाने में भलाई समझती है।
यदि ऐसा नहीं है तो क्‍यों कोई उच्‍च या सर्वोच्‍च न्‍यायालय विज्ञापनों के मामले में दिये गये आदेश-निर्देशों की अवहेलना करने के सहयोगी मीडिया हाउसेस पर कार्यवाही नहीं कर रहा।
क्‍यों इस मामले में वह किसी की याचिका का मोहताज है, क्‍यों वह ऐसे मामले में स्‍वत: संज्ञान नहीं ले रहा जिसका संदेश जनता के बीच काफी गलत जा रहा है। आमजन के मन में यह बात घर कर रही है कि सत्‍ता पर काबिज तथा सामर्थ्‍यवान लोगों के सामने सर्वोच्‍च न्‍यायालय भी बौना है।
कल ही ”हिंदुस्‍तान टाइम्‍स” समूह के हिंदी संस्‍करण ”हिंदुस्‍तान” में उत्‍तर प्रदेश के मुख्‍यमंत्री अखिलेश यादव के चित्रों सहित एक चार पेज का जैकेट विज्ञापन छपा है। महिला शिक्षा और सुरक्षा को लेकर उत्‍तर प्रदेश के बढ़ते कदमों को प्रचारित करने वाले इस विज्ञापन में पढ़ें बेटियां-बढ़ें बेटियां, कन्‍या विद्याधन योजना, कौशल विकास मिशन, वुमेन पॉवर हेल्‍प लाइन, रानी लक्ष्‍मी बाई महिला सम्‍मान कोष तथा समाजवादी पेंशन योजना सहित कृषि में महिलाओं की आर्थिक भागीदारी व महिलाओं के सशक्‍तीकरण का बखान किया गया है।
घर बैठे ऑनलाइन शिकायत (एफआईआर) दर्ज कराने की सुविधा का भी इस विज्ञापन में जिक्र है और एंबुलेंस सेवा का भी। लैपटॉप वितरण का भी और आशा ज्‍योति केंद्रों का भी। विज्ञापन में अखिलेश के साथ उनकी धर्मपत्‍नी व सांसद डिंपल यादव का भी फोटो प्रकाशित किया गया है और प्रदेश के अन्‍य दूसरे मंत्रियों व अधिकारियों का भी।
यह बात अलग है कि जिस दिन 16 जुलाई को अखिलेश सरकार ने ”मीडिया मार्केटिंग इनीशिएटिव” की आड़ लेकर लाखों रुपए का यह विज्ञापन अखबार में छपवाया, उसी दिन मथुरा के जिला अस्‍पताल में भर्ती एक नौ साल की लावारिस व मंदबुद्धि बच्‍ची के साथ गैंगरेप की वारदात सामने आई जिससे विज्ञापन की असलियत खुद-ब-खुद जाहिर हो जाती है।
इसमें कोई दो राय नहीं कि हर किस्‍म के मीडिया की आमदनी का एकमात्र ”वैध” स्‍त्रोत विज्ञापन ही हैं और विज्ञापनों को प्रकाशित किये बिना किसी मीडिया संस्‍थान का सुचारु रुप से संचालन संभव नहीं है किंतु इसका यह मतलब कतई नहीं हो सकता कि आमदनी के लिए भक्ष या अभक्ष में भेद न रखा जाए।
आमदनी जरूरी है लेकिन जिस प्रकार कोई अपनी क्षुदा पूर्ति के लिए नाले-नाली की गंदगी नहीं खाता, उसी प्रकार मीडिया हाउसेस को भी यह तय करना होगा कि आमदनी के लिए अवैध तथा गंदे स्‍त्रोत स्‍वीकार न हों।
यदि समय रहते ऐसा नहीं किया गया तो तोप का मुकाबला करने की क्षमता रखने वाले जिन अखबारों ने कभी नैतिकता के उच्‍च मानदंड स्‍थापित कर देश को स्‍वतंत्र कराने में बड़ी भूमिका निभाई थी, जिनके उच्‍च आदर्श समाज को दिशा देने में महत्‍वपूर्ण भूमिका अदा करते रहे, जिनमें छपने वाले समाचारों के कारण कोई सत्‍ता से बेदखल हुआ तो कोई अप्रत्‍याशित रूप से सत्‍ता पर काबिज होने में सफल रहा, वही अखबार तथा समय के साथ प्रकट हुए मीडिया के दूसरे रूप खुद अपने वजूद को बचा पाने की क्षमता खो देंगे।
माना कि आज मीडिया जगत विज्ञापन ही नहीं, समाचारों के प्रकाशन व प्रसारण में मनमानी करने की ताकत पा चुका है लेकिन यह ताकत ही उसे ऐसे गर्त में ले जाने का माध्‍यम बन सकती है जिससे उबर पाना आसान नहीं होगा।
संभवत: यही कारण है कि आज आमजन के अंदर जिस कदर नेताओं, उनके राजनीतिक दलों तथा उनके लिए भांड़ों का काम कर रहे पुलिस व प्रशासनिक अधिकारियों के प्रति आक्रोश बैठा हुआ है, उसी प्रकार मीडिया के प्रति भी आक्रोश पनप रहा है।
मीडिया और मीडिया कर्मियों को आमजन निश्‍चित ही अब अच्‍छी नजर से तो नहीं देखता।
वैध या अवैध तरीकों से पैसा जुटाने की जुगत में मीडिया ने अपने लिए करवट लेती इस जनभावना को नहीं पहचाना और सरकारों की सांठगांठ से उसका धंधा परवान चढ़ता रहा तो वह दिन दूर नहीं जब उसका भी खेल खत्‍म होते ज्‍यादा देर नहीं लगेगी।
और तब उसके सभी कथित हिमायती या उसकी ताकत के सामने चुप बैठे रहने पर मजबूर संवैधानिक संस्‍थाएं ही उनकी जड़ों में मठ्ठा डालने का काम करेंगी।
-सुरेन्‍द्र चतुर्वेदी

गुरुवार, 16 जुलाई 2015

गजब यूपी: भूमाफियाओं ने डीएम का बंगला, रेलवे प्‍लेटफॉर्म ओर सीलिंग ऑफिस बेचा

मुजफ्फरनगर। अखिलेश सरकार में किस कदर माफिया राज कायम है इसका एक उदाहरण तब और देखने में मिला जब भूमाफियाओं ने मुजफ्फरनगर के डीएम का बंगला तक बेच डाला। यही नहीं, इन माफियाओं ने डीएम बंगले के अलावा एक इंटर कॉलेज, एक सेंट्रल स्कूल, सीलिंग ऑफिस, कृषि फार्म और यहां तक कि रेलवे का प्लेटफॉर्म भी बेच दिया।बेची गई इन सरकारी संपत्तियों की कीमत 6 अरब 75 करोड़ रुपए है।
मामले का खुलासा होने पर अब प्रशासन ने पूरे मामले की जांच के आदेश दिए हैं।
फिलहाल इस मामले में 7 लोगों के खिलाफ तहरीर दी गई है, जिनमें से एक मंत्री का भतीजा भी शामिल है।
प्रदेश में भूमाफियाओं का कारोबार कितना अच्छा चल रहा है, इस बात का पता ऐसे चलता है कि कुछ लोगों ने तीन लोगों को डीएम का बंगला बेच दिया।
जिन्हें यह बंगला बेचा गया था, उन्होंने प्रमुख सचिव राजस्व से इस बंगले पर कब्जे की मांग की। इस दावे को जानकर पहले तो प्रशासनिक अधिकारी चौंक गए, डीएम का बंगला खरीदने वाले ने इस खरीदारी के सबूत दिए तो अधिकरियों के सामने इसका खुलासा हुआ।
प्रमुख सचिव (राजस्व) ने तहसीलदार को इस मामले में जांच के आदेश दिए हैं।
तहसीलदार की तहरीर के मुताबिक 26 फरवरी 2003 को चार लोगों ने एक डीड कराई।
इन्होंने आधे दर्जन से ज्यादा सरकारी संपत्तियों के अलावा सड़कों-नालों का शेयर भी अपने पास दिखाया।
इसी डीड के आधार पर मई 2003 में एक और डीड कराई, जिसमें तीन आरोपियों ने अपना पूरा और एक आरोपी ने अपना पांच फीसदी हिस्सा तीन अन्य लोगों को बेच दिया।
इन संपत्तियों की पड़ताल करने पर इनमें से ज्यादातर के सरकारी संपत्ति होने की बात सामने आई। उधर, सरकारी संपत्ति के खरीदार आरोपियों का कहना है कि अगर ये सरकारी संपत्तियां हैं तो इनके दस्तावेज उपलब्ध कराए जाएं।
उन्होंने कहा कि मामला राजस्व परिषद में विचाराधीन है और उसे प्रभावित करने को ही यह कार्यवाही की गई है।

मंगलवार, 14 जुलाई 2015

वसुंधरा सरकार ने भरा था ललित मोदी की ‘वीआईपी उड़ानों’ का बिल

नई दिल्‍ली। मनी लॉन्ड्रिंग के आरोपी ललित मोदी की ‘वीआईपी उड़ानों’ का बिल राजस्थान की वसुंधरा राजे सरकार और बड़ी कंपनियों ने भरा था. प्रवर्तन निदेशालय (ईडी) और राजस्व खुफिया निदेशालय (डीआरआई) ने यह खुलासा किया है.
बॉम्बार्डियर चैलेंजर 300 विमान का बिल कॉरपोरेट कंपनियों ने अपनी जेब से भरा. ललित मोदी, उनका परिवार और दोस्त अकसर इस विमान का इस्तेमाल करते थे. इसके अलावा मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे और अन्य की ओर से इस्तेमाल किए विमान के तीन चार्टर बिलों में से एक का भुगतान राजस्थान सरकार ने किया और बाकी दो अब भी बकाया हैं.
डीआरआई के ‘कारण बताओ’ नोटिस की एक्सक्लूसिव कॉपी से पता चलता है कि कैसे ललित मोदी के निर्देश पर कॉरपोरेट्स और राजस्थान सरकार उनके चार्टर बिलों का भुगतान कर रहे थे .
यात्रियों का रिकॉर्ड रखने वाले दस्तावेज और जीडब्ल्यूपीएल के बिलों से पता चला है कि विमान ने कुल 792 घंटे 50 मिनट का सफर किया. जांच में पता चला है कि विमान का 86 फीसदी इस्तेमाल खुद ललित मोदी ने किया और उनके निर्देश पर ही ये चार्टर बिल दूसरी कंपनियों को भेजे गए.
1. इसमें से 125 घंटे 45 मिनट खुद ललित मोदी, उनके परिवार और दोस्तों ने सफर किया और इसका बिल ललित मोदी के नाम से ही बना.
2. 553 घंटे 10 मिनट तक विमान का इस्तेमाल ललित मोदी, उनके परिवार और दोस्तों ने किया लेकिन इसका बिल दूसरों के नाम से बना.
3. 113 घंटे और 55 मिनट का समय का इस्तेमाल अन्य लोगों ने किया.
ललित मोदी का बिल भरने वाली कंपनियों में हैं- अंसल प्रोपर्टीज, नेट लिंक ब्लू (दुबई की कंपनी है), आनंदा हेरिटे, रेणुका कैलिल, परसेप्ट पिक्चर्स, आदित्य चेलाराम, पवन गोयल, अशोक कुमार गोयल, जूम कम्युनिकेशन, ग्लोबल स्पोर्ट्स ब्रॉडकास्ट सर्विसेस, डीएनए एंटरटेनमेंट नेटवर्क, गो एयरलाइंस प्रा. लि., गेजरी ईस्टर्न लिमिटेड और राजस्थान सरकार.

हर चार में से एक महिला देखती है पोर्न फिल्‍म

पोर्न फिल्में देखने वाले हर चार लोगों में से एक महिला होती है. हालिया हुए एक सर्वे में ये बात सामने आई है. सर्वे में कहा गया है कि दुनिया की सबसे बड़ी पोर्नोग्राफी साइट्स पर लॉग-इन करने वालों में हर चौथी यूजर एक महिला होती है. पोर्न फिल्मों का एक बड़ा दर्शक वर्ग 35 साल से कम उम्र की महिलाओं का है.
पोर्न हब साइट्स पर जाकर फिल्में देखने वाले लोगों में 24 प्रतिशत महिलाएं होती हैं, जिससे ऐसे वीडियोज के व्यू 78 बिलियन तक पहुंच जाते हैं. रिसर्च में कहा गया है कि स्मार्टफोन इसकी एक प्रमुख वजह है. मौजूदा दौर की लगभग हर महिला के पास स्मार्टफोन है जिस पर पोर्न फिल्में देखना काफी आसान है.
ये आंकड़े वेबसाइट्स के ट्रैफिक और एनालिटिक्स डाटा के आधार पर तैयार किए गए हैं. स्टडी में पाया गया है कि इन वेबसाइट्स पर 60 प्रतिशत यूजर मोबाइल से आता है. 7 प्रतिशत लोग अपने टैबलेट पर और 33 फीसदी लोग कंप्यूटर पर पोर्न फिल्में देखते हैं. वेबसाइट्स से प्राप्त डाटा के मुताबिक, सोमवार के दिन महिला यूजर्स सबसे अधिक होती हैं जबकि शनिवार को उनकी संख्या तुलनातमक रूप से काफी कम होती है.
पोर्न साइट के 60 प्रतिशत व्यूअर्स 35 साल से कम उम्र के हैं. वे रात को 11 बजे के बाद इन साइट्स को खोलते हैं और 10 मिनट तक इन साइट्स पर बने रहते हैं. वहीं 35 से ऊपर के लोग एक घंटे पहले इन साइट्स पर लॉग इन करते हैं लेकिन वे 35 से कम उम्र वालों की तुलना में ज्यादा वक्त तक साइट पर बने रहते हैं.
साइट पर सर्च किए जाने वाले नामों में रिएलिटी स्टार किम करदाशियां सबसे आगे हैं. उनके सेक्स टेप वीडियो को अब तक 93 मिलियन से ज्यादा बार देखा जा चुका है और ये अब भी साइट का सबसे ज्यादा देखा जाने वाला वीडियो है. 2007 में उनका ये वीडियो लीक हुआ था. अपने पति केन्या वेस्ट के साथ उनका न्यूड फोटोशूट भी काफी मशहूर हुआ था.
पोर्नहब के मुताबिक, यूरोप में सबसे अधिक ब्रिटेन के लोग पोर्न फिल्में देखते हैं. यूजर्स के मामले में अमेरिका और कनाडा ही इससे आगे हैं. क्विट पोर्न एडिक्शन जोकि यूके की एक काउंसलिंग कंपनी है उसने भी कुछ ऐसे ही डाटा दिए हैं. सर्विस कंपनी का कहना है कि उनके पास आने वाली हर तीसरी क्‍लाइंट एक महिला होती है.

रविवार, 12 जुलाई 2015

दिल्‍ली में 27 सरकारी आवास कब्‍जा रखे हैं कलाकारों ने

नई दिल्ली। सरकारी आवासों पर देश के बुजुर्ग और दिग्गज कलाकारों ने कब्जा जमा रखा है, इनमें कथक सम्राट पंडित बिरजू महाराज, संतूर वादक भजन सोपोरी जैसे नाम शामिल हैं। तीन साल के लिए आवंटित होने वाले टाईप-4 और 5 श्रेणी के इन सरकारी आवासों पर 36 सालों से कलाकारों का कब्जा है। कई पुराने कलाकारों की मौत के बाद भी परिजनों ने आवास खाली नहीं किया है।
सरकारी आवासीय व्यवस्था की देखरेख करने वाला शहरी विकास मंत्रालय भी इन कलाकारों से घर खाली कराने की हिम्मत नहीं जुटा पा रहा है। इतना जरूर है कि हर छह माह में मंत्रालय इन मकानों को खाली करने का एक नोटिस जरूर जारी कर देता है। पुराने लोगों के मकान न छोड़ने से नई पीढ़ी के कलाकारों को सरकारी आवास मयस्सर नहीं हो पा रहा है।
प्रतिष्ठित कलाकारों के लिए दिल्ली में 40 मकानों का कोटा है। इनमें से 27 पर कलाकार या उनके परिजनों का डेरा है। मकान उन्हीं कलाकारों को देने का प्रावधान है, जिनके पास राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र में घर नहीं है। उन्हें यह घर तीन साल के लिए दिया जाता है। विशेष हालात में अवधि तीन साल बढ़ाई जा सकती है। कलाकारों की मासिक आमदनी 20 हजार से अधिक नहीं होनी चाहिए।
2008 में कैबिनेट की आवासीय समिति ने शर्त जोड़ दी कि कलाकार की उम्र 40-60 साल के बीच होनी चाहिए। उनकी मृत्यु होने पर परिजन छह माह में घर खाली कर देंगे। नए कलाकारों के लिए मकान आवंटन को कमेटी हर छह माह पर बैठक करेगी। समिति की अध्यक्षता संस्कृति मंत्रालय के सचिव करते हैं। मंत्रालय के संयुक्त सचिव (संगीत नाटक अकादमी), ललित कला अकादमी, साहित्य अकादमी के सचिव, नेशनल स्कूल आफ ड्रामा और संपत्ति विभाग के निदेशक सदस्य हैं।
इन कलाकारों का कब्जा
भजन सोपोरी – संतूर (11 साल)
भारती शिवाजी – मोहिनीयट्टम (27 साल)
पंडित बिरजू महाराज – कथक (36 साल)
डी देवराज – प्रिंट मेकिंग (24 साल)
एफडब्ल्यू डागर – ध्रुपद (16 साल)
गीतांजलि लाल – कथक (26 साल)
जीआर इरान्ना – पेंटर (11 साल)
गुलाम सिद्दीक खान – गायन (24 साल)
गुरु जितेंद्र – कथक (26 साल)
एचके बेहरा – ओडिसी (26 साल)
जतिन दास – पेंटर (26 साल)
गुरु जयारामा राव – कुचिपुड़ी (16 साल)
जॉय माइकल – थिएटर (25 साल)
कमलिनी – कथक (11 साल)
केआर सुब्बाना – पेंटर (11 साल)
मायाधर राउत – ओडिसी (26 साल)
मोहन महर्षि – थिएटर (11 साल)
राजा रेड्डी – कुचिपुड़ी (21 साल)
रानी सिंहल – भरतनाट्यम (11 साल)
रीता गांगुली – गजल (25 साल)
एस कनक – भरतनाट्यम (11 साल)
सुनील कोठारी – क्रिटिक (11 साल)
सुरजीत सेन – ब्राडकास्टर (24 साल)
साबरी खान – सारंगी (24 साल)
स्वर्गवासी हो चुके उस्ताद
असद अली खान – रुद्रवीणा (20 साल रहे और चार साल से परिवार के लोग रहते हैं)
उस्ताद आरएफके डागर – ध्रुपद (9 साल रहे और अब चार साल से परिवार के लोग रहते हैं)
उस्ताद अली विलायत – सितार (24 साल रहे और अब 11 साल से परिवार के लोग रहते हैं)

शुक्रवार, 3 जुलाई 2015

मथुरा एआरटीओ से खुलेआम चौथ मांग रहे हैं एक स्‍थानीय विधायक

मथुरा। एक स्‍थानीय विधायक जनपद में तैनात एक एआरटीओ से चौथ मांग रहे हैं। चौथ वसूली के लिए माननीय विधायक पिछले काफी समय से लगातार एआरटीओ का न सिर्फ मानसिक उत्‍पीड़न कर रहे हैं बल्‍कि उनके खिलाफ शासन में लगातार झूठी शिकायतें भी कर रहे हैं। विधायक महोदय इस एआरटीओ पर आयेदिन इस बात का दबाव भी बनाते हैं कि वह उनसे उनकी कोठी पर आकर मिले अन्‍यथा जपनद से अपना बोरिया-बिस्‍तर समेटने की तैयारी कर ले।
फिलहाल नाम न छापने की शर्त पर एआरटीओ ने बताया कि विधायक द्वारा उनसे चौथ वसूल करने की कोशिश का सिलसिला उस दिन से शुरू हुआ जिस दिन उन्‍होंने उनकी एक लग्‍जरी गाड़ी के रजिस्‍ट्रेशन में कम पैसे दिये जाने पर उसका तकादा उनके घर तक भेज दिया था।
एआरटीओ के मुताबिक अभी तो वह इस कोशिश में हैं कि विधायक जी को अपने स्‍तर से मामले की गंभीरता समझा सकें किंतु यदि विधायक जी अपनी हरकतों से बाज नहीं आये और जिद पर अड़े रहे तो वह सार्वजनिक रूप से विधायक जी की असलियत बताने के साथ-साथ उनके खिलाफ एफआईआर कराने से भी नहीं चूंकेंगे, जिसके लिए पर्याप्‍त साक्ष्‍य एकत्र कर लिये गये हैं।
एआरटीओ ने ”लीजेंड न्‍यूज़” को बताया कि करीब एक साल पहले विधायक जी ने उनसे अपनी एक लग्‍जरी गाड़ी का रजिस्‍ट्रेशन कराने को कहा। इस गाड़ी के लिए उन्‍होंने एक खास ”फेंसी नंबर” (जैसे 4200, 4300, 4400 या 4500) की मांग की जो उन्‍हें उपलब्‍ध करा दिया गया।
बताया जाता है कि विधायक जी के पास जो गाड़ियां हैं या जो अब तक रही हैं, उन सभी गाड़ियों का नंबर वही रहा है जिसकी मांग उन्‍होंने एआरटीओ से की थी।
यहां तक तो सब ठीक था किंतु बात तब बिगड़ी जब विधायक जी ने गाड़ी का रजिस्‍ट्रेशन कराने के लिए जो पैसे दिये वह काफी कम थे।
एआरटीओ द्वारा यह बताये जाने पर कि जो पैसे आपको बताये गये हैं उनमें एक भी पैसा अतिरिक्‍त नहीं है और सारे पैसों की रसीद आपको दी जायेगी, विधायक जी भड़क गये और पचास हजार रुपयों की एक गड्डी फेंक कर यह कहते हुए चले आये कि रजिस्‍ट्रेशन पेपर मेरी कोठी पर भिजवा देना।
एआरटीओ ने गाड़ी का रजिस्‍ट्रेशन तो करा दिया और विधायक जी का सम्‍मान रखते हुए गाड़ी का रजिस्‍ट्रेशन पेपर भी उनकी कोठी पर भेज दिया लेकिन उनका गुनाह यह था कि उन्‍होंने साथ ही करीब साढ़े बाईस हजार रुपए बकाया होने की वो स्‍लिप भी भेज दी जो विधायक जी कम दे आये थे।
कई महीने तक चक्‍कर कटवाने के बाद विधायक जी ने एआरटीओ के कर्मचारी को गाड़ी के रजिस्‍ट्रेशन का बकाया साढ़े बाईस हजार रुपया तो दे दिया लेकिन यहीं से उन्‍होंने एआरटीओ को सबक सिखाने का मन बना लिया।
इसके बाद विधायक जी ने पहले तो मुख्‍यमंत्री अखिलेश यादव की सचिव के रूप में परिवहन विभाग को देख रहीं आईएएस अनीता सिंह से एआरटीओ की झूठी शिकायत की और मथुरा से उनका तबादला करने को कहा, जिस पर अनीता सिंह ने इस आशय के आदेश कर दिये कि जांच के उपरांत कार्यवाही कर अवगत करायें।
बताया जाता है कि एआरटीओ का उत्‍पीड़न करने की बात संज्ञान में आने पर जनपद के ही एक अन्‍य विधायक और पूर्व मंत्री ने एआरटीओ का तबादला रुकवाने में सहयोग किया तथा मुख्‍यमंत्री की सचिव को सच्‍चाई से अवगत कराया।
यहां यह भी जान लेना जरूरी है कि मथुरा जनपद में सत्‍ताधारी दल समाजवादी पार्टी का कोई विधायक नहीं है। जो पांच विधायक मथुरा जपनद से हैं, उनमें दो राष्‍ट्रीय लोकदल से, एक कांग्रेस से, एक बहुजन समाज पार्टी से जबकि एक निर्दलीय हैं।
जाहिर है कि एआरटीओ का उत्‍पीड़न करने तथा उनसे चौथ वसूलने की कोशिश करने वाले विधायक जी भी विपक्ष से ताल्‍लुक रखते हैं।
खुद की पंचम तल तक सीधे एप्रोच बताने वाले विधायक जी जब एआरटीओ का तबादला कराने में सफल नहीं हुए तो उन्‍होंने एआरटीओ को आये दिन कोई न कोई काम बताना और उनकी आड़ में विभागीय उच्‍च अधिकारियों से उनकी शिकायत करना शुरू कर दिया।
बताया गया कि एक विभागीय उच्‍च अधिकारी ने एआरटीओ से कहा कि विधायक जी तुम्‍हारे पीछे पड़े हैं, उनसे सीधे बात क्‍यों नहीं कर लेते कि वो क्‍या चाहते हैं।
एआरटीओ ने अधिकारी की सलाह मानते हुए विधायक जी के एक खास आदमी से संपर्क साधकर कहा कि विधायक जी बेवजह नाराज हैं और मेरी शिकायत करते रहते हैं, उनसे पूछो कि आखिर क्‍या चाहते हैं।
विधायक जी के इस खास आदमी ने जब उनसे बात की तो विधायक जी ने कहा कि उसने मेरी गाड़ी के रजिस्‍ट्रेशन का पूरा पैसा वसूल लिया, अब जब तक मैं उससे उसका दस गुना नहीं वसूल लूंगा चैन से नहीं बैठूंगा। उससे कहो कि खैर चाहता है तो कोठी पर आकर मिल ले।
इतनी जानकारी मिलते ही एआरटीओ ने समझदारी से काम लेना शुरू कर दिया और उनके आदमी से कहा कि इतनी सी बात के लिए विधायक जी नाराज हो रहे हैं। जो पैसा मैंने लिया था, वो गाड़ी के रजिस्‍ट्रेशन का था जिसकी पूरी रसीद कटती है। बाकी उनकी सेवा करने को हमने कहां मना किया, वह सीधे बताएं कि उन्‍हें क्‍या चाहिए।
इसके बाद विधायक जी ने खुद फोन करके एआरटीओ से कहा कि कोठी पर आकर मिल लो। शाम 4 से 5 बजे के बीच आ जाओ।
इस बीच एआरटीओ ने विधायक के खास आदमी से पूछा कि विधायक जी यह तो बताएं कि कितना पैसा चाहते हैं, ताकि मैं इंतजाम करके ला सकूं। खास आदमी द्वारा यह बताये जाने पर कि कितने का तो मुझे पता नहीं लेकिन वह कह रहे थे कि पार्टी फंड के नाम पर लेना है।
दरअसल, विधायक की मंशा का पता लगते ही एआरटीओ ने उनकी व उनके खास आदमी की कॉल रिकॉर्ड करना शुरू कर दिया, जिससे सारी बातें स्‍पष्‍ट हो सकें।
विधायक द्वारा निर्धारित किये गये समय से थोड़ा लेट हो जाने पर एआरटीओ ने उनके खास आदमी को फोन करके बताया कि नोएडा चले जाने की वजह से वह इंग्‍लिश टाइम पर नहीं पहुंच सके, थोड़ा लेट हो गये हैं। विधायक जी से पूछ लें कि अब आ जाएं। इसके बाद विधायक जी के खास आदमी ने उनसे दस मिनट में जवाब देने को कहा। यह सारा वाकया बीते कल यानि 2 जुलाई का है।
दस मिनट से पहले ही खास आदमी ने बताया कि विधायक जी रात को दस बजे या सुबह 9 बजे मिलने को कह रहे हैं। बाकी समय आगन्‍तुकों की भीड़ रहती है इसलिए मिलना संभव नहीं होगा।
इस बातचीत के तुरंत बाद खुद विधायक जी ने खुद करीब पौने पांच बजे एआरटीओ को फोन किया और कहा कि उनके घर पर इस समय सत्‍यनारायण की पूजा चल रही है लिहाजा वह रात 10 बजे या सुबह 9 बजे आ जाएं।
रात में बहुत देर से पहुंच पाने में असमर्थता जताने तथा आज यानि 3 जुलाई को सुबह 10 बजे से डीएम साहब के साथ कोई मीटिंग में व्‍यस्‍त होने संबंधी जानकारी देने पर विधायक जी ने एआरटीओ से कहा कि मैं तुम्‍हारे लिए रात का समय आधा घंटा पहले का रख देता हूं लेकिन आज ही मिल लो।
एआरटीओ ने विधायक से रात साढ़े नौ बजे मिलने को कह तो दिया लेकिन मिलने नहीं पहुंचे क्‍योंकि वह उनकी मंशा जान चुके थे।
रात ठीक साढ़े नौ बजे फिर विधायक जी ने एआरटीओ को फोन किया और पूछा कि वह आये क्‍यों नहीं। इस पर एआरटीओ ने आने में असमर्थता जाहिर करते हुए कहा कि वह किसी और दिन मिल लेंगे।
इस संबंध में जब ”लीजेंड न्‍यूज़” ने उत्‍तर प्रदेश के परिवहन मंत्री और मथुरा जनपद के प्रभारी मंत्री दुर्गाप्रसाद यादव से बात की तो उन्‍होंने कहा कि सत्‍ता पक्ष या विपक्ष का कोई जनप्रतिनिधि किसी अधिकारी से पार्टी फंड में पैसा लेने का हकदार नहीं है। माननीय विधायक जो कर रहे हैं, वह सीधे-सीधे चौथ वसूली की परिभाषा में आता है।
यह निश्‍चित ही एक गंभीर मामला है और यदि एआरटीओ इसकी शिकायत करते हैं तो उस पर पूरा संज्ञान लिया जायेगा। एआरटीओ चाहें तो विधायक के खिलाफ एफआईआर भी दर्ज करा सकते हैं।
उल्‍लेखनीय है कि उत्‍तर प्रदेश के ही जनपद मिर्जापुर में 12 जून के दिन आरटीओ चुन्‍नीलाल को अपने कैंप कार्यालय में बुलाकर दुर्व्‍यवहार करने तथा मारपीट करने के मामले में प्रदेश के बाल विकास पुष्‍टाहार राज्‍य मंत्री कैलाश चौरसिया सहित तीन लोगों के खिलाफ केस रजिस्‍टर्ड करने का आदेश वहां की सीजेएम कोर्ट ने हाल ही में दिया है।
आरटीओ से मंत्री महोदय द्वारा दुर्व्‍यवहार व मारपीट करने के इस मामले में परिवहन विभाग के कर्मचारियों ने कई दिन तक आंदोलन भी किया था लेकिन कटरा कोतवाली पुलिस ने मंत्री महोदय के खिलाफ एफआईआर दर्ज नहीं की। मजबूरीवश आरटीओ को कोर्ट की शरण लेनी पड़ी और तब वहां से एफआईआर दर्ज करने के आदेश हुए।
जो भी हो, लेकिन इसमें कोई दो राय नहीं कि कृष्‍ण की जन्‍मस्‍थली से सत्‍ताधारी समाजवादी पार्टी का कोई विधायक न होने तथा संगठन में भी कोई दमदारी न होने के कारण उक्‍त विधायक इसका भरपूर दुरुपयोग कर रहे हैं।
मथुरा जनपद में हर विकास कार्य का श्रेय लेने के लिए पहचान बना चुके उक्‍त विधायक का दावा है कि अखिलेश सरकार में भी वह सब-कुछ करा सकते हैं। पंचम तल के दरवाजे उनके लिए हर वक्‍त खुले रहते हैं और मुख्‍यमंत्री अखिलेश यादव हों या सपा के कद्दावर मंत्री शिवपाल सिंह तथा प्रोफेसर रामगोपाल यादव, कोई उनकी बात नहीं टाल सकता। यहां तक कि मुलायम सिंह भी उनका अतिरिक्‍त सम्‍मान करते हैं।
अब देखना यह है कि पंचम तल तक पहुंच रखने वाले ये विधायक जी चौथ न देने की कसम खा चुके एआरटीओ से अपनी कथनी के मुताबिक अपनी गाड़ी के रजिस्‍ट्रेशन का दस गुना पैसा वसूल पाते हैं या फिर उन्‍हें एआरटीओ के सामने मुंह की खानी पड़ती है।
डर ये भी है कि विधायक जी की जिद भरी हरकत कहीं उन्‍हें और नीचा न दिखा दे और अब तक जो कथित छवि उन्‍होंने अपनी बना रखी है, वह राजनीति के चौथेपन में मटियामेट न हो जाए।
-लीजेंड न्‍यूज़ विशेष
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