गुरुवार, 7 जुलाई 2022

अग्‍निपथ… अग्‍निपथ… अग्‍निपथ, कौन कहता है ‘नाम में क्या रखा है’… नाम में ही सब कुछ रखा है

अग्‍निपथ… अग्‍निपथ… अग्‍निपथ। देशभर में इन दिनों ‘अग्‍निपथ’ की ही चर्चा है। कुछ लोग कहते हैं कि ‘नाम में क्या रखा है’, लेकिन यहां तो लग रहा है कि नाम में ही सब कुछ रखा है।

बेहतर होता कि केंद्र सरकार की इस योजना का नाम होता ‘शौर्य पथ’, और इस पर चलकर आने वाले कहलाते ‘शूरवीर’… न कि ‘अग्‍निवीर’।
‘अग्‍नि’ का तो धर्म ही जलना और जलाना होता है। हालांकि वह भी राहत प्रदान करती है, बशर्ते उसका उपयोग समय और परिस्‍थितियों के अनुकूल हो। अग्‍नि से खेलने वाले अक्‍सर अपने हाथ जला बैठते हैं। फिलहाल कुछ अराजक तत्‍व अग्‍नि से खेल रहे हैं। वो देश जलाने पर आमादा हैं। राजनीतिज्ञ उन्‍हें पेट्रोल की तरह यूज कर रहे हैं, और वो यूज हो रहे हैं।
ये बात अलग है कि आज नहीं तो कल, उनकी समझ में जरूर आएगा कि पवित्रता की प्रतीक अग्‍नि का ‘दुरूपयोग’ किस कदर उनके ‘भविष्‍य पर भारी’ पड़ गया।
कमियां किसी भी योजना में हो सकती हैं… या कहें कि निकाली जा सकती हैं इसलिए केंद्र सरकार की अग्‍निपथ योजना अपवाद नहीं हो सकती लेकिन इसके विरोध की आड़ में देश को जला डालने की मंशा सिर्फ और सिर्फ देश द्रोह है, इसके अलावा कुछ नहीं।
आम आदमी के पैसों से जुटाई गई सरकारी संपत्ति को मात्र इसलिए फूंक डालना कि कोई योजना पसंद नहीं आई या उसे समझने व समझाने में कोई चूक हो गई, कहां की समझदारी है।
आमजन की सुविधा के लिए दौड़ रही बसों और ट्रेनों को आग के हवाले कर देने वाले कैसे कभी ‘शूरवीर’ हो सकते हैं। अपनी बुद्धि और विवेक को गिरवी रखकर सड़कों पर अराजकता फैला रहे राजनीतिक साजिश के शिकार इन तत्वों की शर्मनाक हरकतें इन्‍हें आत्‍मघाती रास्‍ते पर ले जा रही हैं।
बेशक…बेशक पिछले कुछ वर्षों से देश को किसी न किसी षड्यंत्र में उलझाने की कोशिशें लगातार जारी हैं। बात चाहे नागरिकता (संशोधन) कानून (सीएए) की हो या फिर राष्ट्रीय नागरिक रजिस्टर (एनआरसी) की, नए कृषि कानूनों की हो अथवा कश्‍मीर से धारा 370 और अनुच्‍छेद 35A के प्रावधानों को निरस्‍त करने की, सबके विरोध का तरीका कमोबेश एक जैसा ही रहा है। मकसद ये कि किसी भी तरह ऐसी अराजक स्‍थितियां पैदा कर दी जाएं कि लोगों को सोचने-समझने का मौका ही न मिले और वो सबके लिए सरकार को कठघरे में खड़ा कर दें।
जो कुछ आज एक खास तबके द्वारा ‘अग्‍निपथ योजना’ के लिए कहा जा रहा है कि किसी को भरोसे में नहीं लिया… किसी से पूछा नहीं… युवाओं को समझाया नहीं, ठीक यही बातें उन सभी सरकारी योजनाओं के लिए कही गई थीं जिनका हिंसक विरोध सड़कों पर उतर कर किया गया। उद्देश्‍य केवल यही रहा कि किसी भी तरह अपने हिंसक प्रदर्शनों और देश की जनता को बंधक बनाने की अपनी शर्मनाक करतूतों को जायज ठहराया जा सके। कभी किसी सड़क को महीनों नहीं, साल-दोसाल के लिए घेरकर तो कभी राष्‍ट्रीय राजमार्गों तथा अन्‍य सड़कों पर अराजकता फैलाकर।
एक बार को यह मान भी लिया जाए कि सरकार का हर निर्णय गलत है, और उसे जनहित की समझ नहीं हैं। विशेष रूप से वर्तमान सरकार को तो कतई नहीं है। तो भी क्या विरोध का वो रास्‍ता सही कहा जा सकता है जिससे करोड़ों की आबादी बेवजह न सिर्फ परेशान होती हो, बल्‍कि उसकी जान इसलिए सांसत में फंसी रहती हो कि कब किस जगह कुछ असामाजिक तत्‍व हाथों में डंडे लेकर खड़े मिल जाएंगे।
कब कहीं से पथराव होने लगेगा और कब बसों और ट्रेनों को फूंकने का सिलसिला शुरू हो जाएगा। सड़कों पर जलते हुए टायर तथा वाहन, दुकानों में तोड़फोड़ और यहां तक कि बूढ़े- बच्‍चे व बीमार राहगीरों के साथ मारपीट का खौफनाक मंजर दिखाई देने लगेगा।
लोकतंत्र पर खतरे की दुहाई देने और संविधान एवं कानून-व्‍यवस्‍था में आस्‍था का ढोंग करने वाले खास तत्‍व इन दिनों न्‍यायालयों के उन निर्णयों पर भी सवाल उठाने से परहेज नहीं करते, जो उनके माफिक न हों।
अग्‍निपथ हो या कोई अन्‍य सरकारी योजना, यदि उसमें खामी दिखाई दे रही है तो उसे संवैधानिक तरीकों से चुनौती दी जा सकती है। उस पर कोर्ट के जरिए रोक भी लगवाई जा सकती है। ऐसे अनेक उदाहरण हैं। फिर इतना हंगामा क्‍यों?
रही बात अग्‍निपथ योजना की, तो शूरवीर अपने शौर्य का प्रदर्शन करने के लिए हमेशा मौके की तलाश में रहते हैं। फिर वो मौका किसी रास्‍ते से मिले। शूरवीर न तो सड़क पर निर्दोष लोगों को परेशान करते हैं और न राष्‍ट्र की संपदा को आग के हवाले करने जैसे किसी कृत्‍य को अंजाम देते हैं। सच तो यह है कि वो सैनिक बनने लायक हैं ही नहीं, जो ऐसा कर रहे हैं। सैनिक तो सपने भी राष्‍ट्ररक्षा के देखता है।
सच्‍चे सैनिक के लिए कोई पथ ‘अग्‍निपथ’ नहीं होता। जो होता है वो शौर्यपथ होता है। वो अग्‍निवीर भी नहीं हो सकता, हां शूरवीर हो सकता है इसलिए सरकार को पुनर्विचार ही करना है तो योजना के नाम पर करे क्‍योंकि नाम में बहुत कुछ रखा है।
– सुरेन्‍द्र चतुर्वेदी
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