चीन से ‘ग्लोबलाइज’ हुआ ‘कोरोना वायरस’ जितनी तेजी के साथ देश में ‘वायरल’ नहीं हो सका, उससे कहीं अधिक गति से अब हमारे ‘दानवीर’ और ‘कर्मवीर’ वायरल हो रहे हैं। सोशल मीडिया इस समय इन ‘दानवीरों’ और ‘कर्मवीरों’ से अटा पड़ा है।
हो भी क्यों नहीं, आखिर देश के प्रधानमंत्री ने कोरोना जैसी महामारी से मिलकर लड़ने का आह्वान जो किया था।
आह्वान को गंभीरता से लेते हुए करोड़ों-अरबों में खेलने वाले ‘दानवीर’ भीड़ एकत्र करके सब्जी-पूड़ी के पैकेट बांट रहे हैं और लखपतियों का ग्रुप आटा-दाल-तेल की पुड़िया देकर वाहवाही लूट रहा है।
इसी प्रकार ‘कर्मवीरों’ की फौज ‘सेनिटाइजर’ लेकर मोहल्ले-मोहल्ले और गली-गली घूम रही है। यह फौज ‘मास्क’ और ग्लव्स वितरण भी करती देखी जा सकती है।
चूंकि इस दौर में अलग से किसी फोटोग्राफर या वीडियो मेकर की आवश्यकता तो है नहीं, ये सारे काम स्मार्टफोन कर देता है इसलिए ‘दानवीरों’ और ‘कर्मवीरों’ को बड़ी राहत हो गई है।
घटना स्थल (मेरा मतलब है ‘मौके’) से ही इनके दूत वाट्सएप, फेसबुक, टि्वटर, इंस्टाग्राम आदि पर अपने ‘कारनामे’ तमाम ग्रुप में सेंड कर देते हैं जिससे देश-दुनिया उनके इस दुर्लभ गुण से बखूबी परिचित हो सके।
वैसे प्रिंट मीडिया भी इन्हें ‘तरजीह’ देने में कोई कसर नहीं छोड़ रहा। वह इन्हें चार-छ: कॉलम में न सही तो डबल कॉलम में तो ‘फोटो विद कैप्शन’ जगह दे ही देता है।
कुल मिलाकर इस तरह हमारे मौसमी दानवीर और कर्मवीर प्रिंट मीडिया एवं सोशल मीडिया से लेकर इलैक्ट्रॉनिक मीडिया, यहां तक कि वेब मीडिया में भी छाए हुए हैं।
मीडिया से याद आया कि प्रधानमंत्री जी ने राष्ट्र के नाम अपने संबोधन में इस वर्ग से भी अनुरोध किया था कि वह संकट की इस घड़ी में साथ दे।
मीडिया की महत्ता को रेखांकित करते हुए माननीय प्रधानमंत्री ने ‘जनता कर्फ्यू’ के दौरान जिन लोगों के प्रति घंटे-घड़ियाल, ताली-थाली आदि बजाकर आभार व्यक्त करने को कहा था, उनमें मीडिया भी शामिल था।
आभार के बोझ तले मीडिया के एक वर्ग यानि इलैक्ट्रॉनिक मीडिया ने अपनी जिम्मेदारी का परिचय देते हुए प्रवासी मजूदरों के पलायन को इस कदर हाईलाइट किया कि बाकी मजदूरों को उससे बड़ी प्रेरणा मिली, नतीजतन दिल्ली से शुरू हुआ यह सिलसिला देखते-देखते देशव्यापी हो गया।
प्रधानमंत्री ने संकट की घड़ी में साथ जो मांगा था। ये थोड़े ही कहा था कि साथ किस तरह देना है।
मीडिया में भी प्रिंट मीडिया को प्राथमिकता देनी होगी क्योंकि प्रधानमंत्री जी ने भी सबसे पहले प्रिंट मीडिया का जिक्र किया था कि वह फेक न्यूज़ को लेकर जनता को आगाह करे और भ्रम की स्थिति पैदा न होने दे।
अब समस्या यह है कि प्रिंट मीडिया बेचारा खुद भ्रम का शिकार हो गया। भ्रम की स्थिति यह हो गई कि लोगों ने अखबार लेना बंद कर दिया इसलिए फिलहाल प्रिंट मीडिया अपने लिए फैले भ्रम को दूर करने में जुटा है।
खुद के लिए खुद के अखबार में विज्ञापन देकर रिक्वेस्ट करनी पड़ रही है कि ‘कोरोना से दूर रहिए, अखबार से नहीं’।
कर्मवीरों में शुमार ‘मीडिया हाउस’ इसके अलावा एक काम और कर रहे हैं। उन्होंने अखबार को काफी ‘स्लिम’ कर दिया है। 18-20-22 और 24 पन्नों वाले नामचीन अखबार इन दिनों 12 तथा 14 पन्नों तक सिमट कर रह गए हैं।
‘राष्ट्रहित’ को मद्देनजर रखते हुए हालांकि इन अखबारों की कीमत उतनी ही कायम रखी गई है जितनी कि सामान्य दिनों में रहती है। कुल मिलाकर अखबार के पन्ने कम हुए हैं, मूल्य नहीं। राष्ट्रधर्म ऐसे ही निभाया जाता है।
डिस्क्लेमर: यहां ‘मीडिया’ से तात्पर्य मालिकानों से है, न कि पत्रकारों से इसलिए पत्रकारगण ‘मीडिया’ को लेकर कही गई बातें अपने दिल पर ने लें।
बहरहाल, प्रधानमंत्री ने दानवीरों के साथ-साथ जिन कर्मवीरों से सहयोग मांगा था, उनमें मीडिया के अलावा डॉक्टर्स और पुलिसकर्मी प्रमुख थे।
उनका जिक्र अगले दिनों में क्योंकि लॉकडाउन चालू आहे, आज तो सिर्फ ‘चौथा’ दिन है।
-सुरेन्द्र चतुर्वेदी