बुधवार, 6 सितंबर 2023

... उन सभी छद्म धर्मनिरपेक्ष सनातियों को समर्पित, जो स्टालिन जैसों की ऊर्जा के स्त्रोत हैं


सनातन पर स्टालिन का बयान उन सभी छद्म धर्मनिरपेक्ष सनातनियों को समर्पित है, जो स्टालिन जैसों की ऊर्जा के स्त्रोत हैं और जिनके कारण समय-समय पर अनेक "विधर्मी",  सनातन धर्मावलंबियों को सार्वजनिक रूप से अपमानित करने का दुस्‍साहस कर पाते हैं। 

'सनातन' का शाब्दिक अर्थ है- 'शाश्वत' अर्थात 'सदा बना रहने वाला', यानी जिसका न आदि है और न अन्त। सनातन धर्म को हिन्दू धर्म अथवा वैदिक धर्म के नाम से भी जाना जाता है और इसे दुनिया के सबसे प्राचीनतम धर्म होने का गौरव प्राप्‍त है। 

ऐसे में सवाल यही खड़ा होता है कि एक कन्वर्टेड ईसाई, भरी सभा में सनातन धर्म को समाप्‍त करने की घोषणा कर कैसे सकता है? 

वो इसलिए कि प्रथम तो विधर्मियों ने सनातन धर्मावलंबियों की सहिष्‍णुता को 'कायरता' समझ रखा है। दूसरे जिस प्रकार वृक्ष को काटने में कुल्हाड़ी की मदद लकड़ी ही करती है, उसी प्रकार सदियों से कथित धर्मनिरपेक्ष लोग सनातन को समझे बिना उसको नष्‍ट-भ्रष्‍ट करने का ताना-बाना बुनते रहते हैं। 

सच तो यह है कि धर्मनिरपेक्ष जैसा कोई शब्‍द होता ही नहीं, जो होता है वो धर्मसापेक्ष होता है। संभवत: इसीलिए संविधान में भी धर्मनिरपेक्षता को परिभाषित नहीं किया गया है। 

धर्मनिरपेक्षता की प्रचलित परिभाषा को यदि मान भी लिया जाए तो किसी दूसरे धर्म को समाप्‍त करने का आह्वान करने वाला व्यक्ति विशेष या राजनीतिक दल कैसे धर्मनिरपेक्ष हो सकता है। जाहिर है कि यह धर्मनिरपेक्षता की आड़ में कुर्सी के लिए खेला जाने वाला राजनीतिक खेल ही है। 

बेशक हर राजनीतिक खेल हमेशा से ही सत्ता हथियाने का जरिया बना हुआ है और इसीलिए राजनीतिक बयानबाजी के निहितार्थ भी निकाले जाते रहे हैं, किंतु इसका मतलब यह कतई नहीं कि नेतागण मुंह को गटर की तरह इस्‍तेमाल करने लग जाएं। 

राजनीति में प्रतिस्‍पर्धा होना सामान्‍य सी बात है और प्रतिस्‍पर्धा के चलते आरोप-प्रत्‍यारोप भी चलते हैं, परंतु किसी दूसरे धर्म को नेस्‍तनाबूद करने की मानसिकता यह बताती है कि वह व्‍यक्ति समाज में रहने लायक नहीं रहा। उसकी मन: स्‍थिति यह साबित करती है कि वह खुले में घूमने का अधिकार खो चुका है। 

ये बात अलग है कि सैकड़ों साल से दिमागी दिवालियापन के शिकार ऐसे लोग समाज में न सिर्फ रहते आए हैं बल्‍कि धर्म और समाज दोनों को कलंकित भी करते रहे हैं। 

देश पर आक्रांतांओं के आक्रमण का काल हो या गुलामी का कालखंड, हर दौर में ऐसे तत्‍वों की विशेष भूमिका रही है जिनके लिए 'राष्‍ट्रद्रोही' शब्‍द भी छोटा मालूम पड़ता है। 

स्‍टालिन का दुस्‍साहस ऐसे ही तत्वों की करतूत है जो हर हाल में देश को पतन के रास्‍ते पर ले जाने की मंशा पाले बैठे हैं। इनमें नेता भी हैं, और अभिनेता भी। नौकरशाह भी हैं और जनसामान्‍य भी। किसी खास राजनीतिक दल की डोर से बंधे चाटुकार भी हैं और पत्रकार भी।  

इनके अलावा एक वर्ग वो भी है जो खुद को सत्ता का स्‍वाभाविक दावेदार मानता है और जिसकी जहरभरी जुबान के लिए स्‍क्रिप्‍ट कहीं और से लिखी जाती है क्‍योंकि इस वर्ग के लोग अपना मानसिक संतुलन खो चुके हैं। 

तय है कि ऐसे लोगों में सुधार की कोई गुंजाइश तलाशना आत्‍मघाती हो सकता है इसलिए समय रहते उपचार जरूरी है। 

चंद रोज पहले देश की सर्वोच्‍च अदालत ने 'हेट स्‍पीच' को लेकर काफी कड़ी प्रतिक्रिया दी थी। शायद अब वो समय आ गया है कि देश के 80 करोड़ से अधिक लोगों की भावनाओं को आहत करने वाला बयान देकर स्‍टालिन ने हेट स्‍पीच के लिए जो मानदंड स्‍थापित किए हैं, उन्‍हें यदि अब नहीं रोका गया तो उसके दुष्‍परिणाम विधायिका एवं कार्यपालिका के साथ-साथ न्‍यायपालिका को भी भुगतने होंगे। 

-सुरेन्‍द्र चतुर्वेदी

https://www.legendnews.in/single-post?s=dedicated-to-all-those-pseudo-secular-sanatanis-who-are-the-source-of-energy-for-stalin-like-element-11651

शनिवार, 26 अगस्त 2023

नेताजी कहिन: डर की वजह से ISRO के चंगुल से छूटकर चांद पर जा बैठा है चंद्रयान, हम उसे धरती पर लाएंगे

 

डर का डिस्क्लेमर: भय से उपजी अपनी 'सत्यनिष्ठा' के साथ मैं ये स्‍पष्‍ट करता हूं कि जो कुछ लिखूंगा पूरी तरह 'भयभीत' अवस्‍था में लिखूंगा। इसमें नेताओं के प्रति उपजी 'अनैतिक निष्‍ठा' को ठेस पहुंचाने का कोई इरादा नहीं है। किसी खास नेता अथवा पार्टी से कोई ताल्‍लुक न होते हुए भी कुछ नेताओं का भय मुझ पर भी इसलिए हावी है क्‍योंकि उनके अनुसार संपूर्ण देश में भय का वातावरण व्याप्‍त है लिहाजा हर संस्‍था, व्‍यक्ति और यहां तक कि पत्रकार भी 'कंपायमान' हैं। मीडिया समूह जो कहते हैं... सिर्फ झूठ कहते हैं। झूठ के अलावा वो कुछ नहीं कहते। इस खास दौर में लोकतंत्र की सैकड़ों बार हत्या की जा चुकी है लेकिन उसकी आत्मा का साया देश का पीछा नहीं छोड़ रहा। लोकतंत्र की इस भटकती हुई आत्मा को हाज़िर-नाज़िर जानकर कहानी के रूप में पेश हैं भय के वातावरण की कुछ झलकियां- 

कहानी नंबर एक 
बुढ़ापे के कगार पर खड़ा एक 'दागा' हुआ सांड़ हर रोज नए और जवान सांड़ों के सामने खड़ा होकर 'खुर खोदा' करता था। कई दिनों के इस शक्ति प्रदर्शन के बाद एक किशोरवय सांड़ ने बमुश्किल हिम्मत जुटाकर उस सांड़ से पूछा- चचा, आप प्रतिदिन ये हरकत यहां आकर क्यों करते हैं। 
हम तो आपको वंशानुगत मिली आपकी पदवी के लिहाज से यथासंभव मान-सम्मान भी देते हैं। फिर ये मुंह से अजीब-अजीब आवाजें निकालना और नथुने फुलाए रखने का क्या मतलब, जबकि आपके खुरों से खुरची हुई धूल आपके ही सिर पर आकर गिरती है। कुछ स्‍पष्‍ट करेंगे तो समझने की पूरी कोशिश करुंगा। 
टीन एज सांड़ की बातों से कुछ भरोसा सा मिलते देख अधेड़ सांड़ ने पहले कन्फर्म किया कि वह उसकी बताई बातें सार्वजनिक तो नहीं करेगा और आश्‍वासन मिलने के बाद उसने रहस्‍यमयी मुस्‍कान बिखेरते हुए कहा- देखो बरखुरदार, मैं ये सारी ऊट-पटांग हरकतें अपनी इज्‍जत बचाने के लिए करता हूं। 
मुझे हमेशा यह डर सताए रहता है कि अतीत में मेरे पुरखों और मेरे द्वारा किए गए पाप खुलकर कहीं नई पीढ़ी के सामने आ गए तो क्या होगा। आप लोग मेरी दुर्गति न कर दें। ऐसा हुआ तो मेरी 'अधोगति' मुझे कहीं का नहीं छोड़ेगी, बुढ़ापा खराब कर देगी। इसी शंका से मैं आपके सामने नित नई चुनौती पेश करता हूं। ये बात अलग है कि आज तक मेरे ऐसे सारे प्रयास निरर्थक साबित हुए हैं। 
कहानी नंबर दो 
एक टुच्चा सा नेता अपनी 'बदजुबानी' के लिए देश-विदेश में कुख्‍यात हो गया और अपनी उस स्‍थिति को वह अपने तथा अपनी पार्टी के लिए मुफीद मानता था। दरबारी नेताओं से घिरे रहने के कारण उसे यह गुमान भी हो गया कि उसके मुंह से तो हमेशा फूल झड़ते हैं। 
साथ ही उसका 'वैशाख नंदनी' ज्ञान उसे यह आभास कराता रहता था कि राजनीति का जो मैदान उसे दिखाई दे रहा है, वह उसी का 'चारागाह' है। दूसरा जो कोई वहां मौजूद है, वह उसकी कृपा से है और वह उसे जब चाहे बेदखल कर सकता है। इसी नियोजित उपक्रम के तहत उसकी जुबान एक तरह से असंसदीय शब्दों की डिक्शनरी बन गई। वह न बड़े-छोटे का लिहाज करता और न पद की गरिमा देखता। मौका और दस्‍तूर का ध्‍यान रखे बिना वह हर किसी की पगड़ी उछाल देता। संसदीय मर्यादा तो उसके लिए जैसे कोई अहमियत ही नहीं रखती थी क्‍योंकि वह खुद को ही देश का भावी भाग्य विधाता मान बैठा था।    
सिर चढ़कर बोलने वाली इस दशा में बदजुबानी जब हद पार करने लगी तो किसी दुस्‍साहसी पत्रकार ने पूरे प्रोटोकॉल का अनुसरण करते हुए उससे कहा कि सर, सुना है आप बहुत अभद्र भाषा का इस्‍तेमाल करते हैं। आपको हर एक में खोट नजर आता है, और आप ये अहसास कराने का कोई अवसर नहीं चूकते कि आप ही देश की सत्ता के एकमात्र हकदार हैं। सत्ता आपकी विरासत है, इसलिए उस पर काबिज होने का किसी अन्‍य को कोई अधिकार नहीं है। आप जीतें या हारें, सत्ता से अलग रखने की हिमाकत किसी की हो कैसे सकती है। 
आप और आपके दरबारी अभिव्‍यक्‍ति की स्‍वतंत्रता और लोकतंत्र की कथित हत्‍या का ढिंढोरा पीटते हुए हर प्‍लेटफॉर्म पर चुनी हुई सरकार को गरियाते हैं और कहते हैं कि देश में भय का वातावरण है। सांप्रदायिक सौहार्द बिगड़ा हुआ है। एक धर्म विशेष के लोग डरे हुए हैं। उन पर अत्याचार हो रहा है। सारी सरकारी संस्‍थाएं बंधक हैं। कोई संस्‍था अपना काम नहीं कर पा रही। वही हो रहा है जो सरकार चाहती है। 
पत्रकार की इन बातों को अपनी शान में गुस्‍ताखी मानते हुए नेताजी कहने लगे- पहले तुम ये बताओ कि कौन कमीना कहता है मैं गालियां देता हूं। मेरी सरकार बनते ही मैं उस 'हरामी' को कहीं का नहीं छोड़ूंगा। वो 'नीच आदमी' गंदी नाली का 'कीड़ा' होगा। मेरे बारे में ऐसी बातें वो लुच्चे-लफंगे ही कर सकते हैं जिन्‍होंने देश का बंटाधार कर दिया है। दरअसल, जिनकी औकात मेरे सामने खड़े होकर बात करने की नहीं है, वो मेरे रहते कुर्सी पर काबिज हैं। 
धाराप्रवाह अभद्रता का ये आचरण देख पत्रकार ने डरते-डरते एक सवाल और उछाल दिया कि सर... आप तो अब भी गालियां दे रहे हैं। लाइव है सर, सारा देश आपको और आपकी अभद्रता को देख रहा है। आप विदेशों में भी देश के बाबत जो कुछ बोलते रहे हैं, वह भी जनता सुनती है। शीर्ष पदों पर बैठे हुए लोग आपसे अपने लिए नित नए अभद्र शब्‍द सुनकर भी अभिव्‍यक्‍ति की आपकी आजादी को अक्षुण्‍ण बनाए हुए हैं, और आप कहते हैं कि देश में डर का माहौल है। आपको अपने आरोपों में कोई कंट्रोवर्सी महसूस नहीं होती। डरा हुआ आदमी तो किसी के सामने बोलने की हिमाकत नहीं कर सकता। यहां तो देश के पीएम को भी खुलेआम गालियां देने की स्‍वतंत्रता हासिल है। 
ऐरे-गैरे, नत्‍थू-खैरे भी करोड़ों लोगों के सामने टीवी पर पीएम को कुछ भी कहने की आजादी रखते हैं। सांप्रदायिक सद्भाव के दूत सरेआम जहर उगलते देखे जा सकते हैं। ये कैसा डर है सर जी? 
पत्रकार के ऐसे 'आत्मघाती' सवालों को सुनकर नेताजी का मन तो किया कि तत्‍काल प्रभाव से उसका माइक छीन कर उसके मुंह पर दे मारें और उसे अच्‍छा-खासा सबक सिखा दें किंतु मामला लाइव प्रसारण का था इसलिए केवल इतना कहकर बात समाप्‍त की कि तुम बिके हुए लगते हो। किसी की गोद में बैठे हो। सवाल उसके हैं, बस मुंह तुम्‍हारा है। तुम्‍हारे जैसों के लिए ही हमने 'गोदी मीडिया' शब्द ईजाद किया है। 
नेताजी की बातों पर पत्रकार ने जाते-जाते एक सवाल और दाग दिया कि सर, भारतीय मीडिया के 'चीनी संस्‍करण' पर आपकी क्या राय है? 
पत्रकार के सवाल चूंकि चुभने वाले थे इसलिए नेताजी ने उसे सिर्फ घूरकर काम चलाना उचित समझा। ऐसे में पत्रकार ने ये सवाल और उछाल दिया कि सर, क्या आप इस बात से सहमत हैं कि पीवी नरसिंह राव देश में 'भाजपा' के पहले पीएम थे। 
बहरहाल, पत्रकार को भले ही उसके ऐसे किसी प्रश्‍न का उत्तर नहीं मिला लेकिन देश जरूर ये जान गया कि नेताजी को अभद्र आचरण करने में खासी महारत हासिल है और वो इस जन्म में शायद ही अपना आचरण सुधार सकें। 
कहानी नंबर तीन 
इस तीसरी कहानी में कई प्रमुख पात्र हैं और उनका संबंध चंद्रमा पर हो रही गतिविधियों से है। कहते हैं चांद पर होने वाली गतिविधियों से समुद्र ही नहीं, इंसान तक प्रभावित होता है। समंदर में ज्‍वार-भाटे का कारण अगर चंद्रमा है तो इंसान की मानसिक स्‍थिति को भी ये भली-भांति परिभाषित करता है। 
तभी तो एक नेताजी देश में डर के माहौल की थ्‍योरी को सही साबित करने के लिए यहां तक कहने लगे कि गोदी मीडिया नहीं मानेगा लेकिन यह सौ फीसदी सच है कि चंद्रयान-3 लॉन्च नहीं किया गया, वह तो डर के मारे ISRO के चंगुल से छूटकर चांद पर जा बैठा है। छुप गया है चंद्रमा की आड़ में जिससे कहीं उसे भी ED, NIA या CBI उठाकर न ले जाए। हमारी सरकार आने दीजिए, हम चंद्रयान को वापस अपनी धरती पर ले आएंगे। इस सरकार ने सैकड़ों करोड़ रुपए बर्बाद कर दिए। हम उसे म्यूजियम में रखेंगे, उसे देखने-दिखाने पर टिकट लगाएंगे, और इस तरह उसकी पूरी कीमत वसूलेंगे। फिर उस पैसे से 'सांड़ों' के लिए 'अस्‍तबल' बनवाएंगे। सांड़ हमारे न्‍यूज़ आइटम हैं। हम उनके लिए इतना तो कर ही सकते हैं। 
एक अन्‍य नेताजी को चंद्रयान का मामला इतना फिजूल लगा कि वह उससे अंत तक बेखबर बने रहे। गलती से एक पत्रकार पूछ बैठा उसके बारे में तो बगलें झांकने लगे। 
हमेशा मुंह से आग उगलने वाली एक नेत्री ने तो देश को अंतरिक्ष यात्री को मनोरंजन जगत से जोड़ दिया। ये बात अलग है कि उसके बाद से वह खुद मजाक का पात्र बनी हुई हैं। 
खैर, कहानी तो कहानी है। एक कहानी से भी कई कहानियां जन्‍म ले लेती हैं। जैसे एक कहानी यह भी है कि लाल रंग देखकर सांड़ भड़क उठते हैं लेकिन कुछ लोग फिर भी सिर पर लाल टोपी रखकर पूछते हैं कि सांड़ उनके पीछे क्यों पड़े हैं। सच तो ये है कि वो सांड़ों के पीछे पड़ गए हैं। सांड़ तो पहले भी सड़कों पर थे, लेकिन उन्‍हें लाल रंग दिखाकर कोई चिढ़ाता नहीं था। चिढ़ाओगे तो उसके गुस्‍से का शिकार भी बनोगे। 
सांड़ तो सांड़ हैं लेकिन उन 'कालिदासों' का क्‍या जो जिस डाल पर बैठे हैं, उसी पर आरी चलाए जा रहे हैं। सिर की टोपी का रंग नहीं देख रहे, सांड़ को दोष दे रहे हैं। जनता की जगह साड़ों पर नजर रखोगे और फिर पूछोगे कि हमारा नंबर कब आएगा। मुंह भर-भरकर गालियां दोगे और ये भी कहोगे कि डर का माहौल है। अपने 'खुर खोदने' से चुनौती नहीं दी जा सकती। चुनौती देने के लिए चुनौती स्‍वीकार भी करनी पड़ती है। देश के लिए समर्पित होने की चुनौती, कुछ कर गुजरने की चुनौती। पद पीएम का हो या सीएम का, वो किसी की व्‍यक्‍तिगत जागीर नहीं है। ये बात दूसरी है कि राजा-महाराजा भले ही कब के कूच कर गए किंतु उनकी जैसी सोच वाली नस्‍ल अभी बाकी है। 
जय हिंद। जय भारत। 
-सुरेन्‍द्र चतुर्वेदी

शनिवार, 8 जुलाई 2023

चुनाव के बाद भी श्री अग्रवाल शिक्षा मण्‍डल में शह और मात का खेल जारी, यौन उत्पीड़न मामले में जल्द दर्ज हो सकती है FIR

 गुटबाजी की शिकार प्रतिष्‍ठित सामाजिक संस्‍था श्री अग्रवाल शिक्षा मण्‍डल में गत 28 जून को चेयरमैन और वाइस चेयरमैन के पद पर चुनाव तो सपन्न हो गया किंतु अब तक नव निर्वाचित पदाधिकारियों के शपथ ग्रहण समारोह की तारीख तय नहीं हो सकी है। 

इस संबंध में पूछे जाने पर शिक्षा मण्‍डल से जुड़े कुछ व्‍यक्तियों ने नाम न छापने की शर्त पर बताया कि अभी बीएसए कॉलेज ऑफ इंजीनियरिंग एंड टेक्नोलॉजी मथुरा सहित श्री अग्रवाल शिक्षा मण्‍डल की दूसरी अन्‍य संस्‍थाओं में कई पदों पर चुनाव होना बाकी है। इन पदों के लिए फिलहाल चुनावी प्रक्रिया तक अमल में नहीं लाई गई है क्‍योंकि इन पदों को आम सहमति से भरने के प्रयास किए जा रहे हैं ताकि गुटबाजी और अधिक मुसीबत का कारण न बन सके। 
दरअसल, श्री अग्रवाल शिक्षा मण्‍डल से जुड़े संभ्रांत लोगों का शुरू से ये मानना रहा है कि सभी विवादों और गुटबाजी के पीछे संस्‍था की लगभग एक हजार करोड़ रुपए की वो सपत्ति है जिसका अब तक कुछ तत्‍व मिलकर बंदरबांट करते रहे हैं। 
इन लोगों का कहना है कि आम सहमति से बाकी पदों को भरने का मकसद भी यही है कि विरोध के स्‍वरों को दबाकर श्री अग्रवाल शिक्षा मण्‍डल की संपत्ति का बंदरबांट उसी प्रकार होता रहे जिस प्रकार पूर्व में जमीन आदि की खरीद-फरोख्‍त के नाम पर किया जाता रहा है। 
दूसरी ओर 1926 में रजिस्‍टर्ड 'अग्रवाल शिक्षा मंडल' के पदाधिकारियों समेत समाज के कुछ अन्‍य लोग भी 'श्री अग्रवाल शिक्षा मण्‍डल' के 28 जून को संपन्न हुए चुनावों की वैधता को चुनौती दे रहे हैं। उनके अनुसार 'अग्रवाल शिक्षा मंडल' और 'श्री अग्रवाल शिक्षा मण्‍डल' का विवाद न्‍यायालय में लंबित होते हुए चुनाव कैसे कराए जा सकते हैं। उनकी मानें तो विवाद के निपटारे से पहले ऐसे कोई भी प्रयास गैरकानूनी और कोर्ट की अवमानना हैं। 
यौन उत्पीड़न मामले में शीघ्र FIR दर्ज करा सकती है पीड़ित युवती 
उधर दो महीने से न्‍याय की आस में बैठी उस महिला कर्मचारी का धैर्य भी अब जवाब देने लगा है जो GTT की ओर से बीएसए कॉलेज ऑफ इंजीनियरिंग एंड टेक्नोलॉजी के छात्रों को सॉफ्ट स्‍किल्‍स ट्रेनर के तौर पर प्रशिक्षित करने आई थी और इसलिए कॉलेज छोड़कर जाने पर मजबूर हो गईं क्‍योंकि उससे कॉलेज के एक तत्‍कालीन पदाधिकारी ने स्‍पष्‍ट रूप से न केवल कार्य अवधि के उपरांत अपने साथ अतिरिक्त समय बिताने को कहा बल्‍कि उसके सामने कुछ ऐसी बातें रखीं जिन्‍हें स्‍वीकार करना उनके लिए संभव नहीं था। 
यही कारण था कि उसने अपने साथ हुई घटना का पूरा विवरण लिख कर कॉलेज के चेयरमैन को संबोधित एक शिकायती पत्र 27 अप्रैल 2023 के दिन देते हुए प्रबंधतंत्र से ये अपेक्षा की कि वो आरोपी पदाधिकारी के खिलाफ कोई ऐसी सख्‍त कार्रवाई करे जिससे किसी महिला के साथ भविष्‍य में ऐसी घटना की पुनरावृत्ति न हो और कोई महिला ऐसे प्रतिष्‍ठित कॉलेज में खुद को असुरक्षित महसूस न करे, लेकिन प्रबंधतंत्र इस पत्र को दबाकर बैठ गया। 
कॉलेज कैंपस में एक ऐसी गंभीर एवं शर्मनाक घटना होने के बावजूद प्रबंधतंत्र द्वारा कोई सुनवाई न किए जाने से क्षुब्‍ध युवती ने जॉब छोड़ना ज्‍यादा उचित समझा किंतु फिर भी उसे उम्‍मीद थी कि जांच उपरांत शायद समय रहते सुनवाई कर ली जाए। 
युवती को सबसे अधिक धक्‍का तब लगा, जब उसे पता लगा कि उसके साथ अभद्र व अमर्यादित आचरण करने वाले पदाधिकारी को प्रबंधतंत्र ने फिर चुनाव लड़ने की इजाजत दे दी है। 
बताया जाता है कि प्रबंधतंत्र के इस रवैये को देखकर पीड़ित युवती ने अब अपने खिलाफ शर्मनाक हरकत करने वाले तत्‍कालीन पदाधिकारी के खिलाफ कानूनी कार्यवाही करने का मन बना लिया है और वह शीघ्र ही इस मामले की FIR दर्ज कराने पर विचार कर रही है। 
जो भी हो, लेकिन यदि ऐसा होता है तो एक ओर जहां सबसे प्राचीन इंजीनियरिंग कॉलेज की प्रतिष्‍ठा धूमिल होगी वहीं दूसरी ओर एक ऐसी प्रतिष्‍ठित सामाजिक संस्‍था की गरिमा भी प्रभावित होगी जिसे शिक्षा व मेडिकल के क्षेत्र में कृष्‍ण की नगरी को बहुत कुछ देने का श्रेय जाता है और जिससे आज भी बड़ी संख्‍या में वो लोग जुड़े हैं जिनके संस्‍कार तमाम लोगों को प्रेरणा देते हैं। 
-Legend News 

सोमवार, 3 जुलाई 2023

मथुरा में कोर्ट के आदेश से केनरा बैंक के 8 अधिकारी और कर्मचारियों पर भ्रष्‍टाचार की FIR दर्ज


 एक ओर जहां केंद्र सरकार व उसका वित्त मंत्रालय भरसक इस कोशिश में लगा है कि न तो बैंकों पर NPA यानी नॉन-परफॉर्मिंग एसेट्स का बोझ बढ़े और न बैंकें किसी उद्योगपति या व्‍यापारी के सामने ऐसी स्‍थितियां उत्पन्न करें कि वह चाहते हुए भी ऋण की अदायगी कर पाने में खुद को असहाय महसूस करने लगे। लेकिन ऐसा हो रहा है, और लगातार हो रहा है क्‍योंकि बैंकें तथा उसके अधिकांश अधिकारी व कर्मचारी बैंक की बजाय निजी हित साधने में लग जाते हैं। वह उन परिस्‍थितियों का लाभ उठाकर निजी स्‍वार्थ पूरा करने की कोशिश करते हैं जबकि वह चाहें तो सेटलमेंट करके लोन लेने वाले के साथ-साथ बैंक को भी बंधनमुक्त करने का काम कर सकते हैं। 

बैंक अधिकारी एवं कर्मचारियों की ऐसी ही बदनीयती का एक मामला उत्तर प्रदेश के मथुरा जनपद से सामने आया है, जिसके बाद कोर्ट ने संबंधित बैंक के 8 अधिकारी/कर्मचारियों के खिलाफ गंभीर आपराधिक धाराओं में FIR दर्ज करने के आदेश दिए और अब पुलिस फिलहाल इसकी जांच कर रही है। 
केनरा बैंक की महोली रोड शाखा से जुड़े इस मामले में CJM मथुरा के आदेश पर हाईवे थाना पुलिस ने 17 जून 2023 की रात 8 बजे बैंककर्मियों क्रमश: हिमांशु मित्तल, जीके मेहरा, बी. अनंतराव, नईम अख्‍तर, बीएस सत्यार्थी, पंकज, सीजी पासवान तथा पुनीत गौड़ के खिलाफ IPC की धारा 420, 467, 468, 471, 384, 504, 506 और 120 बी के तहत केस दर्ज कर विवेचना शुरू कर दी है। 
इस संबंध में वादी श्रीमती नीलिमा खंडेलवाल पत्‍नी श्री उमेश खंडेलवाल डायरेक्‍टर WIC-CHEM (P) LTD. निवासी C-38 इंडस्‍ट्रियल एरिया, साइट A, थाना हाईवे जिला मथुरा द्वारा दायर प्रकीर्ण वाद संख्‍या 746/2023 के अनुसार उन्‍होंने और उनके पति उमेश खंडेलवाल ने सिंडीकेट बैंक (सम्‍प्रति केनरा बैंक) की महोली रोड शाखा से 74 लाख 50 हजार रुपए का लोन लिया था। इस लोन के लिए नीलिमा व उमेश खंडेलवाल द्वारा कंपनी की जमीन, बिल्‍डिंग एवं मशीनरी दृष्‍टिबंधक की गई। 
नीलिमा व उमेश खंडेलवाल के अनुसार कुछ समय तक तो उन्‍होंने ऋण की किश्‍तें बैंक को नियमित रूप से अदा कीं किंतु फिर कारोबार में मंदी के चलते वह किश्‍तें देने में असमर्थ रहे। 
इसके लिए उन्‍होंने बैंक से अतिरिक्‍त ऋण की मांग की किंतु बैंक ने यह कहते हुए अतिरिक्‍त ऋण देने से इंकार कर दिया कि प्रोजेक्‍ट की लैंण्‍ड वैल्‍यूएशन काफी कम है। 
ऐसी स्‍थिति में नीलिमा व उमेश खंडेलवाल ने बैंक के सामने लोन के एकमुश्‍त समाधान का प्रस्‍ताव रखा जिसे बैंक ने 1 मार्च 2011 को स्‍वीकार करते हुए 1 करोड़ 6 लाख रुपए चुकाने पर सहमति दे दी, किंतु जब इन्‍होंने एकमुश्‍त लोन चुकाने की व्‍यवस्‍था की तो बैंक के उक्त कर्मचारी समाधान से पहले 10 लाख रुपए की नाजायज मांग करने लगे। 
नीलिमा व उमेश खंडेलवाल का आरोप है कि समाधान की कोशिश में लगे उनके पुत्र अनुराग खंडेलवाल से उक्त बैंक कर्मचारियों ने चौथ वसूली के रूप में कुछ रकम ले भी ली और जब उन्‍होंने इसका विरोध किया तो बैंक के वैल्‍यूअर हिमांशु मित्तल से एक फर्जी मूल्‍यांकन रिपोर्ट तैयार करवा कर हमारा उत्‍पीड़न किया जाने लगा। 
इन लोगों द्वारा इसके बाद इस आशय की धमकी दी जाने लगी कि यादि हमारी मांग पूरी नहीं की जाती तो बैंक से तय रकम की जगह फर्जी मूल्‍यांकन को आधार बनाकर आपसे अधिक रकम की वसूली की जाएगी। 
नीलिमा व उमेश खंडेलवाल का कहना है कि बैंक कर्मचारियों की बदनीयती और नाजायज मांग के मद्देनजर वो न्‍यायालय की शरण में जाने पर मजबूर हुए अन्‍यथा वो आज भी बैंक के साथ पूर्व में हुए एकमुश्‍त समाधान के समझौते पर कायम हैं तथा बैंक का पूरा पैसा चुकाने की नीयत रखते हैं। 
इस संबंध में 'लीजेण्‍ड न्‍यूज़' ने बैंक के वर्तमान सीनियर मैनेजर को फोन करके बैंक का पक्ष जानने की कोशिश की तो उनका कहना था कि वो कुछ समय पहले ही यहां आए हैं इसलिए उन्‍हें इस मामले की कोई जानकारी नहीं है। 
उनका कहना था कि वैसे भी ऐसे मामलों में अपना पक्ष रखने के लिए बैंक का लीगल सेल अधिकृत होता है इसलिए मैं कुछ कहने में असमर्थ हूं। 
बहरहाल, एक बात तय है कि यदि बैंक कर्मचारी चाहते तो संभवत: यह मामला कोर्ट तक नहीं पहुंचता और कानूनी पचड़े में पड़ने की बजाय बैंक की रकम भी अदा हो सकती थी। 
-Legend News 

चुनाव से ठीक पहले श्री अग्रवाल शिक्षा मंडल के पदाधिकारी पर 'यौन शोषण' के आरोपों की एंट्री, समाज सकते में


 मथुरा की प्रतिष्‍ठित सामाजिक संस्‍था 'अग्रवाल शिक्षा मंडल' के आगे 'श्री' जोड़कर खड़ी कर दी गई 'श्री अग्रवाल शिक्षा मंडल' वैसे तो विभिन्न कारणवश एक लंबे समय से विवादों के घेरे में है किंतु ताजा मामला कल यानी 28 जून को होने जा रहे इसके 'प्रबंधतंत्र' के चुनाव से जुड़ा है। 

दरअसल, चुनाव से ठीक पहले सामने आए एक शिकायती पत्र ने न केवल 'श्री अग्रवाल शिक्षा मंडल' को सकते में डाल दिया है बल्‍कि अग्रवाल समाज को सोचने पर मजबूर कर दिया है। 
27 अप्रैल 2023 के इस पत्र में एक महिला कर्मचारी ने बीएसए कॉलेज ऑफ इंजीनियरिंग एंड टेक्नोलॉजी के प्रबंधतंत्र से जुड़े एक व्‍यक्‍ति पर 'यौन शोषण' करने की कोशिश जैसे अत्यंत गंभीर आरोप लगाए हैं। जिस व्‍यक्‍ति पर ये आरोप लगाए गए हैं, वह भी चुनाव मैदान में है। 
आश्‍चर्यजनक यह है कि बीएसए कॉलेज ऑफ इंजीनियरिंग एंड टेक्नोलॉजी के वर्तमान चेयरमैन को संबोधित इस महिला कर्मचारी के पत्र का पिछले दो माह में कोई संज्ञान नहीं लिया गया, जिस कारण महिला कर्मचारी काम छोड़कर जाने पर बाध्‍य हुई लेकिन अब जबकि चुनाव होने थे, तो अचानक वह पत्र सार्वजनिक कर दिया गया जिससे प्रबंधतंत्र और उससे जुड़े लोगों की मंशा पर सवाल खड़े होना स्‍वाभाविक है।
  
'श्री अग्रवाल शिक्षा मंडल' के कल होने जा रहे चुनाव में बीएसए कॉलेज ऑफ इंजीनियरिंग एंड टेक्नोलॉजी के चेयरमैन पद पर शहर के दो प्रसिद्ध अधिवक्ता आमने-सामने हैं। 
इनमें से एक हैं बार एसोसिएशन के पूर्व अध्‍यक्ष उमाशंकर अग्रवाल जो फौजदारी के मशहूर वकील हैं, और दूसरे हैं अरविंद अग्रवाल जो टैक्‍स बार एसोसिएशन मथुरा में प्रेक्‍टिस करते हैं और आयकर के सीनियर वकीलों में शुमार हैं। 
वाइस चेयरमैन के पद पर कन्‍हैया अग्रवाल (कोषदा ज्‍वैलर्स) तथा नितिन मित्तल (सर्राफा व्‍यवसायी) खड़े हैं। 
श्री अग्रवाल शिक्षा मंडल से जुड़े तमाम लोग इस बात की पुष्‍टि करते हैं कि इस प्रतिष्‍ठित सामाजिक संस्‍था में कुछ मछलियां ऐसी प्रवेश कर चुकी हैं जिनके कारण न केवल संस्‍था व समाज कलंकित हो रहा है बल्‍कि प्रबंधतंत्र की अन्‍य शिक्षण संस्‍थाओं पर पकड़ भी ढीली हुई है। 
उनका मानना है कि संस्‍था से जुड़े अधिकांश लोग संस्‍थानों की उन्‍नति चाहते हैं लेकिन कुछ तत्‍व ऐसे हैं जिन्‍हें सिर्फ और सिर्फ 1000 करोड़ रुपए से अधिक की वो संपत्ति दिखाई देती है जिससे संस्‍थाएं संचालित होती हैं। 
ये तत्‍व निजी स्‍वार्थ में इस संपत्ति को खुर्द-बुर्द करना चाहते हैं और इसीलिए किसी भी तरह संस्‍थाओं के महत्‍वपूर्ण पदों पर काबिज होने की कोशिश में लगे रहते हैं। 
गौरतलब है कि टेक्नोलॉजी के क्षेत्र में बीएसए कॉलेज ऑफ इंजीनियरिंग मथुरा जनपद को अग्रवाल समाज द्वारा दी गई सबसे पहली और बड़ी सौगात है किंतु आज कुछ तत्‍वों के कारण समाज अपनी कई संस्‍थाओं से लगभग हाथ धो बैठा है। 
मूल संस्‍था है 'अग्रवाल शिक्षा मंडल'
बताया जाता है कि 1926 में रजिस्‍टर्ड 'अग्रवाल शिक्षा मंडल' ही अग्रवाल समाज की देन है और यही मूल संस्‍था है किंतु कुछ लोगों ने षड्यंत्र पूर्वक 1961 में 'श्री अग्रवाल शिक्षा मंडल' के नाम से एक अलग संस्‍था रजिस्‍टर्ड करवा ली और इस आशय का प्रचार कर दिया कि दोनों में कोई फर्क नहीं है। 
इसे तथ्‍यहीन बताते हुए 'अग्रवाल शिक्षा मंडल' के पदाधिकारियों ने एक ओर जहां आपत्ति दर्ज कराई वहीं दूसरी ओर मामले को हाई कोर्ट तक ले गए क्‍योंकि दोनों संस्‍थाओं का रजिस्‍ट्रेशन नंबर अलग-अलग है। इलाहाबाद हाई कोर्ट में फिलहाल यह मामला लंबित है। 
क्या अवैध हैं 'श्री अग्रवाल शिक्षा मंडल' के चुनाव? 
इस संबंध में अग्रवाल शिक्षा मंडल के पदाधिकारियों का साफ-साफ कहना है कि हाईकोर्ट में मामला पेंडिंग होने के कारण 'श्री अग्रवाल शिक्षा मंडल' की आड़ में कराए जा रहे चुनाव अवैध होने के साथ-साथ कोर्ट की अवमानना भी हैं। 
अग्रवाल शिक्षा मंडल के पदाधिकारी इन चुनावों को भी कोर्ट में चुनौती देने का मन बना चुके हैं। उनका कहना है कि यदि समाज सेवा ही इन चुनावों का उद्देश्‍य है तो फिर इसके लिए इतनी मारामारी तथा षड्यंत्र क्यों रचे जा रहे हैं। 
क्‍यों एक महिला कर्मचारी द्वारा की गई यौन शोषण जैसी गंभीर शिकायत को दो महीने तक दबाए रखा गया और क्‍यों अब सार्वजनिक किया गया, वो भी तब जबकि आरोपी भी चुनाव मैदान में है। 
ऐसे में बड़ा व महत्‍वपूर्ण सवाल यह भी खड़ा होता है कि क्या पीड़ित महिला को 'श्री अग्रवाल शिक्षा मंडल' न्‍याय दिला पाएगा, और यदि आरोपी पदाधिकारी चुनाव जीतकर फिर से प्रबंधतंत्र में शामिल हो जाता है तो क्या बीएसए कॉलेज ऑफ इंजीनियरिंग एंड टेक्नोलॉजी जैसे एक प्रतिष्‍ठित शिक्षण संस्‍थान की साख पर दाग लगाने का काम उसके द्वारा फिर नहीं किया जाएगा। या उसे संरक्षण देने वाले भी खुद उसी के नक्‍शेकदम पर चलने लगेंगे, चाहे अन्‍य महिला कर्मचारी भी काम छोड़ने पर मजबूर ही क्यों न हों। 
सवाल और भी बहुत हैं लेकिन जवाब देने वाला कोई नहीं, क्‍योंकि फिलहाल श्री अग्रवाल शिक्षा मंडल चुनाव कराने में व्‍यस्‍त है। 
-Legend News 

 

शुक्रवार, 9 जून 2023

अमरनाथ विद्या आश्रम विवाद: धीरेन्द्रनाथ भार्गव ने वाजपेयी बंधुओं से मीडिया के सामने आकर जवाब देने को कहा


 प्रदेश की मशहूर आवासीय शिक्षण संस्‍थाओं में शुमार मथुरा के अमरनाथ विद्या आश्रम पर काबिज होने का विवाद कोर्ट से कब तक तय होगा और उसका फैसला क्या आएगा, यह भले की फिलहाल कानूनी पेचीदगियों पर निर्भर हो किंतु इस शिक्षण संस्‍था के संस्‍थापक ट्रस्‍टी अब वाजपेयी बंधुओं का सारा सच सामने लाने का मन बना चुके हैं। 

यही कारण है कि संस्‍था के मूल ट्रस्‍टी धीरेन्‍द्रनाथ भार्गव ने संस्‍था पर काबिज वाजपेयी बंधुओं को मीडिया के सामने आकर तमाम सवालों को जवाब देने की पेशकश की है। 
धीरेन्‍द्रनाथ भार्गव का कहना है कि अब तक अपने खोखले नैतिक मूल्‍यों का ढिंढोरा पीटकर अवैध रूप से संस्‍था को कब्‍जाने वाले वाजपेयी बंधुओं में यदि थोड़ी सी भी नैतिकता बाकी है तो वह इन सवालों के जवाब मीडिया के सामने आकर दें। 
सवाल नंबर 1: अमरनाथ विद्या आश्रम की स्‍थापना के लिए गठित ट्रस्‍ट में कौन-कौन लोग शामिल थे और इसके लिए ट्रस्‍ट द्वारा जो जमीन खरीदी गई, वह किसके नाम थी? 
सवाल नंबर 2: इस शिक्षण संस्‍था का नाम "अमरनाथ विद्या आश्रम" क्यों है और क्या स्‍वर्गीय अमरनाथ भार्गव, वाजपेयी परिवार के पूर्वज थे? 
सवाल नंबर 3: स्वतंत्रता सेनानी तथा अधिवक्ता श्री द्वारिका नाथ भार्गव द्वारा स्‍थापित अमरनाथ विद्या आश्रम में प्रधानाध्‍यक रहे आनंद मोहन वाजपेयी कब एवं किन परिस्‍थितियों में संस्‍था पर काबिज हुए और किस नीयत से उन्‍होंने एक नए ट्रस्‍ट का गठन किया? 
सवाल नंबर 4: अमरनाथ विद्या आश्रम के पार्क में स्‍वर्गीय द्वारिकानाथ भार्गव की मूर्ति क्यों तो लगवाई गई और फिर वर्षों बाद उसे क्यों हटवा दिया गया? 
सवाल नंबर 5: रिलायंस ग्रुप के संस्‍थापक स्‍वर्गीय धीरूभाई अंबानी से लेकर उनके पुत्र अनिल अंबानी तक और स्‍वर्गीय शिवप्रसाद सेठ से लेकर विद्यानाथ भार्गव तक के दान से अमरनाथ विद्या आश्रम में निर्मित विभिन्‍न भवनों के नाम क्यों बदल दिए गए और उनके स्‍थान पर उन भवनों को आनंद मोहन वाजपेयी तथा कमला वाजपेयी के नाम दिए गए?     
सवाल नंबर 6: व्‍यावसायिक रूप से किसी शिक्षण संस्‍था को संचालित करने के लिए जरूरी ट्रस्‍ट में एक ही परिवार के कितने सदस्‍य कानूनन शामिल किए जा सकते हैं? 
सवाल नंबर 7: वाजपेयी बंधुओं द्वारा वर्तमान में गठित ट्रस्‍ट के कितने सदस्‍यों का संबंध स्‍वर्गीय आनंद मोहन वाजपेयी तथा उनके भाइयों के परिवार से है और उनका उनसे रिश्‍ता क्या है? 
सवाल नंबर 8: किसी शिक्षण संस्‍था के ट्रस्‍टी और उनके निकटस्‍थ रिश्‍तेदार क्या उसी शिक्षण संस्‍था में नौकरी कर सकते हैं? 
सवाल नंबर 9: अमरनाथ विद्या आश्रम में वाजपेयी परिवार के कुल कितने सदस्‍य किन-किन पदों पर कार्यरत हैं और क्या वो कहीं अन्‍यत्र भी कोई कार्य करते हैं? 
सवाल नंबर 10: अमरनाथ विद्या आश्रम में वाजपेयी परिवार के सदस्‍य जिन पदों पर कार्यरत हैं, क्या वो उन पदों के लिए जरूरी शैक्षिक योग्‍यता पूरी करते हैं? 
सवाल नंबर 11: अमरनाथ विद्या आश्रम में कार्यरत वाजपेयी परिवार के सदस्‍यों की नियुक्‍ति क्या उसी प्रक्रिया के तहत हुई थी, जिस प्रक्रिया के तहत इस संस्‍था में दूसरे कर्मचारियों की नियुक्‍ति की जाती है। 
सवाल नंबर 12: अमरनाथ विद्या आश्रम में वाजपेयी परिवार के सदस्‍यों की नियुक्‍ति का निर्णय किसके द्वारा लिया गया और क्या उसके लिए निर्धारित मानदंड पूरे किए गए। 
सवाल नंबर 13: वर्तमान में विद्या आश्रम को अपनी सेवाएं देने वाले सभी कर्मचारी, जैसे अध्‍यापक और प्रिंसिपल आदि सीबीएसई द्वारा निर्धारित योग्यता को पूरा करते हैं? 
धीरेन्‍द्रनाथ भार्गव द्वारा पूछे गए इन सवालों पर वाजपेयी बंधुओं का पक्ष जानने के लिए 'LEGEND NEWS' ने एकबार फिर कॉलेज के प्रिंसिपल अरुण वाजपेयी को 25 मई के दिन एक Whatsapp मैसेज भेजकर उनसे अनुरोध किया कि वह यदि अपना पक्ष रखना चाहते हों तो उन्‍हें प्रश्‍नों की सूची भेज दी जाएगी, किंतु आज एक सप्‍ताह में भी उन्‍होंने उसका कोई जवाब नहीं दिया। जिससे साफ जाहिर है कि उनकी जवाब देने में कोई रुचि नहीं है और न वह धीरेन्‍द्रनाथ भार्गव द्वारा उठाए गए प्रश्‍नों पर प्रतिक्रिया देना जरूरी समझते हैं। 
वाजपेयी बंधु ऐसा क्यों कर रहे हैं और इसके पीछे उनकी क्या मंशा है, यह तो वही बेहतर जानते होंगे अलबत्ता उनका मौन धीरेन्‍द्रनाथ भार्गव के आरोपों की स्‍वीकृति का सूचक अवश्‍य लगता है। 

रविवार, 21 मई 2023

अमरनाथ विद्या आश्रम पर अवैध कब्जे का विवाद गहराया, ट्रस्टी धीरेन्‍द्र भार्गव ने वाजपेयी परिवार पर लगाए गंभीर आरोप

 


 शहर ही नहीं, प्रदेश की नामचीन शिक्षण संस्‍था 'अमरनाथ विद्या आश्रम' पर अवैध कब्‍जे का विवाद अब और अधिक गहरा गया है। यूं तो इस विवाद की शुरूआत करीब 32 वर्ष पहले तभी हो गई थी जब इस विद्यालय के प्रथम प्रधानाचार्य आनंद मोहन वाजपेयी ने एक नए ट्रस्‍ट का गठन कर विद्यालय पर अपना आधिपत्‍य स्‍थापित कर लिया, लेकिन ताजा विवाद तब शुरू हुआ जब पिछले महीने की 30 तारीख को अमरनाथ विद्या आश्रम की ओर से 'अमर उजाला' अखबार में एक विज्ञापन प्रकाशित कराया गया। 

स विज्ञापन से इस आशय का संदेश देने की कोशिश की गई कि अमरनाथ विद्या आश्रम की स्‍थापना स्‍वर्गीय आनंद मोहन वाजपेयी ने की। इस विज्ञापन में कहीं भी विद्या आश्रम के संस्‍थापक स्‍वर्गीय द्वारिकानाथ भार्गव का जिक्र तक नहीं किया गया। 

जाहिर है कि यह बात अमरनाथ विद्या आश्रम के मूल ट्रस्‍टियों को नागवार गुजरी और ट्रस्‍टी धीरेन्‍द्रनाथ भार्गव ने इसके जवाब में एक पैम्फलेट छपवाकर जनता के बीच प्रसारित कराया। जिसके अनुसार विद्या आश्रम के संस्‍थापक स्‍वर्गीय द्वारिकानाथ भार्गव और उनके परिवार के साथ वाजपेयी परिवार ने धोखाधड़ी करके विद्यालय पर अवैध कब्‍जा कर रखा है। इस संबंध में एक वाद एसडीम कोर्ट मथुरा में लंबित है। 

 

धीरेन्‍द्रनाथ भार्गव के अनुसार वाजपेयी परिवार ने विद्यालय पर अपना कब्‍जा दिखाने के उद्देश्‍य से एक ओर जहां तमाम दानदाताओं की ओर से कराए गए निर्माण कार्य के सबूत मिटा दिए वहीं दूसरी ओर विद्यालय में गेट के ठीक सामने पार्क में लगी उन स्‍वर्गीय 'द्वारिकानाथ भार्गव' की मूर्ति भी नष्‍ट कर दी जिन्‍होंने विद्यालय की स्‍थापना की थी। 

ट्रस्‍टी धीरेन्‍द्रनाथ भार्गव द्वारा दी गई लिखित जानकारी के अनुसार अमरनाथ विद्या आश्रम को लेकर एक लम्बे समय से वाजपेयी बंधुओं द्वारा भ्रामक और गलत जानकारियाँ देकर जनता को गुमराह किया जा रहा है जबकि सच्चाई यह है कि अमरनाथ विद्या आश्रम की स्थापना सन् 1961 में स्वतंत्रता सेनानी और अधिवक्ता श्री द्वारिका नाथ भार्गव ने स्वर्गीय अमरनाथ भार्गव की स्मृति में एक ट्रस्ट के जरिए की थी। 
आनन्द मोहन वाजपेयी को तब इस शिक्षण संस्था में बतौर प्रधानाध्यापक नियुक्त किया गया था। सन् 1990 तक आनन्द मोहन वाजपेयी इस शिक्षण संस्था के प्रधानाध्यापक रहे। उसके बाद ट्रस्‍ट ने उन्‍हें स्कूल का निदेशक घोषित कर दिया लेकिन उन्होंने संस्था के ट्रस्टियों का भरोसा तोड़कर एक नया फर्जी ट्रस्ट रजिस्टर्ड करवा लिया और पूरी संस्था पर अपने भाई-भतीजों सहित काबिज हो गए।
आनन्द मोहन वाजपेयी ने खुद को अमरनाथ विद्या आश्रम का आजीवन ट्रस्टी दर्शाते हुए सन् 1995 में ट्रस्ट का नवीनीकरण करा लिया। जब इस बात की जानकारी हमें हुई तो हमने उपनिबंधक फर्म, सोसायटी एवं चिट्स आगरा के यहाँ उनके इस कृत्य को चुनौती दी। जिसके उपरांत उपनिबंधक ने माना कि आनन्द मोहन वाजपेयी न तो ट्रस्ट के लिए गठित कार्यकारिणी के चुनाव सम्बन्धी कोई रजिस्टर प्रस्तुत कर सके और न ही ट्रस्ट की वैधता साबित कर सके। 
उपनिबंधक आगरा द्वारा 2 जून 1995 को दिए गए अपने आदेश में स्पष्ट रूप से लिखा गया है कि आनन्द मोहन वाजपेयी की ओर से प्रस्तुत 30 अक्टूबर 1993 को दर्शाये गए कार्यकारिणी के चुनावों की वैधता संदिग्ध है और 1988 में हुआ चुनाव ही अंतिम चुनाव था। 
धीरेन्‍द्रनाथ भार्गव के अनुसार उपनिबंधक आगरा के यहाँ से मिली इस राहत के आधार पर हम जल्द न्याय पाने की मंशा से माननीय उच्च न्यायालय इलाहाबाद की शरण में गए। माननीय उच्च न्यायालय ने केस की गंभीरता पर गौर करते हुए एसडीएम सदर (मथुरा) को इसका निस्तारण 90 दिन में करने का निर्देश दिया। 
इस बीच कोरोना की महामारी फैल जाने की वजह से माननीय उच्च न्यायालय इलाहाबाद के निर्देश का पालन नहीं हो सका लिहाजा अब भी यह मामला एसडीएम सदर (मथुरा) के यहाँ लंबित व विचाराधीन है। ऐसे में अमरनाथ विद्या आश्रम जैसी एक प्रतिष्ठित शिक्षण संस्था को लेकर भ्रामक संदेश देना वाजपेयी बंधुओं की बदनीयति साबित करता है। 
धीरेन्‍द्रनाथ भार्गव ने लिखा है कि अमरनाथ विद्या आश्रम पर मूल रूप से श्री द्वारिका नाथ भार्गव द्वारा गठित ट्रस्ट का ही अधिकार है और वही इसके संचालन का हकदार है। उन्‍होंने मीडिया से भी अनुरोध किया है कि वाजपेयी बंधु अखबारों का सहारा लेकर आम जनता में भ्रामक सन्देश देते रहते हैं जिससे अखबारों की बदनामी होती है लिहाजा मीडिया से अपेक्षा की जाती है कि भविष्य में ऐसे भ्रामक सन्देश फैलाने में वाजपेयी बंधुओं की सहायता न करें। 
धीरेन्‍द्रनाथ भार्गव द्वारा लगाए गए आरोपों के संबंध में 'लीजेण्‍ड न्‍यूज़' ने अमरनाथ विद्या आश्रम के प्रधानाचार्य अरुण वाजपेयी से 7 एवं 8 मई और फिर 18 मई को वाट्सएप मैसेज भेजकर विद्यालय का पक्ष जानने की कोशिश की किंतु उन्‍होंने कोई जवाब देना उचित नहीं समझा। 
दूसरी ओर ट्रस्‍टी धीरेन्‍द्रनाथ भार्गव का कहना है कि वाजपेयी परिवार पर कहने के लिए कुछ है ही नहीं इसलिए वो कोई प्रतिक्रिया व्‍यक्‍त नहीं कर सकते। 
धीरेन्‍द्रनाथ भार्गव का दावा है कि शीघ्र ही एसडीएम के यहां लंबित वाद का निर्णय उसी प्रकार उनके पक्ष में आएगा जिस प्रकार उपनिबंधक फर्म, सोसायटी एवं चिट्स आगरा के यहाँ से आया है। और उसके बाद स्‍पष्‍ट हो जाएगा कि तथाकथित नैतिकता की आड़ में वाजपेयी परिवार ने एक ऐसे परिवार के साथ विश्‍वासघात किया जिसने उन्‍हें प्रधानाध्‍यपक पद पर नियुक्‍त किया था। इसके साथ ही वाजपेयी परिवार ने अवैध रूप से काबिज होकर यह भी सिद्ध कर दिया कि उनके द्वारा छात्रों को नैतिकता की शिक्षा देने का दावा करना कितना खोखला और दिखावटी है जबकि वो खुद अनैतिक रूप से विद्यालय का संचालन कर रहे हैं। 
-Legend News

शनिवार, 13 मई 2023

नमक से नमक खाने और भ्रष्‍टाचार से भ्रष्‍टाचार मिटाने की कोशिश करते केजरीवाल


 देश की राजनीति बदलने चले अरविंद केजरीवाल इन दिनों नमक से नमक खाने और भ्रष्‍टाचार से भ्रष्‍टाचार मिटाने की कोशिश करते दिखाई दे रहे हैं। अन्ना आंदोलन की उपज आम आदमी पार्टी के नेताओं ने जिस तेजी के साथ चाल-चरित्र तथा चेहरा बदला है, उसे देखकर खुद अन्ना भी कई बार आश्‍चर्य जता चुके हैं। 

आम जनता को तो समझ में ही नहीं आ रहा कि वो इन नेताओं के 'गिरगिटी' अंदाज पर हंसे, रोए या फिर सिर पीट ले। यूं तो अलग-अलग आरोपों में केजरीवाल सरकार के कई मंत्री जेल में हैं और उन्‍हें जमानत तक नहीं मिल पा रही, किंतु ताजा मामला उनके द्वारा अपने सरकारी आवास की साज-सज्जा पर खर्च की गई 45 करोड़ रुपए की उस भारी-भरकम धनराशि का है जिसे लेकर वह बुरी तरह फंस चुके हैं। 
'टाइम्‍स नाउ नवभारत' ने जब पहली बार केजरीवाल के मुख्‍यमंत्री आवास से जुड़े 'ऑपरेशन शीश महल' का प्रसारण किया था तो लोगों को यकीन नहीं हो पा रहा था कि झोलाछाप शर्ट, मामूली सी पतलून तथा साधारण सैंडल धारण करके पांच रुपए की कीमत का प्‍लास्‍टिक पेन ऊपर वाली जेब में लगाकर चलने वाला शख्‍स इस कदर विलासी प्रवृत्ति का होगा। 
केजरीवाल के कारनामे पर यकीन दिलाने में 'टाइम्‍स नाउ नवभारत' को पहले तो एड़ी-चोटी का जोर लगाना पड़ा लेकिन फिर उसका यह काम केजरीवाल एंड कंपनी ने खुद पूरा कर दिया। संभवत: इसीलिए एक मीडिया हाउस के खुलासे को आज दूसरे मीडिया हाउस भी तरजीह देने पर मजबूर हैं वर्ना सामान्‍यत: वह इसे अपनी तौहीन समझते हैं और उस पर चर्चा तक करना गवारा नहीं करते।
केजरीवाल एंड कंपनी और आम आदमी पार्टी को पहले तो शायद ये समझ में ही नहीं आया कि वह इस इतने बड़े खुलासे पर अपना बचाव करे तो करे कैसे। फिर राघव चड्ढा, संजय सिंह और सौरभ भारद्वाज जैसे नेता सामने आने पर मजबूर हुए किंतु उनकी दलीलें न सिर्फ बेहद खोखली व रटी-रटाई रहीं बल्‍कि उसी कहावत को पुष्‍ट करती दिखाई दीं जिसका जिक्र ऊपर किया गया है। यानी नमक से नमक खाने और भ्रष्‍टाचार से भ्रष्‍टाचार मिटाने की कोशिश।  
उनके पास कहने के नाम पर इतना भर था कि दिल्‍ली के एलजी आवास पर हुए खर्च का ब्‍यौरा क्यों नहीं मांगा जाता, या नए पीएम आवास पर किए जा रहे खर्च का हिसाब कोई क्यों नहीं मांगता। 
उनकी ऐसी बेहूदी दलीलों को सुनकर आम जनता के साथ-साथ बाकी मीडिया को भी भरोसा हो गया कि केजरीवाल ने वो कारनामा कर दिखाया है जिससे करने के लिए बड़े से बड़े घाघ और भ्रष्‍टाचारी नेता दस बार सोचने के बाद भी हिम्‍मत नहीं जुटा पाएंगे। 
केजरीवाल की कलंक कथा में नया अध्‍याय जोड़ने वाले 'टाइम्‍स नाउ नवभारत'  के 'ऑपरेशन शीश महल' की तुलना एलजी या नए पीएम आवास से करना ही प्रथम तो अत्‍यंत हास्‍यास्‍पद है, दूसरे उससे यह भी जाहिर होता है कि केजरीवाल एंड कंपनी संभवत: अपने अलावा बाकी सब को बुद्धिहीन समझ बैठी है। 
जरा विचार कीजिए कि क्या किसी अदालत में कोई हत्यारा, बलात्‍कारी, चोर, डाकू, लुटेरा या भ्रष्‍टाचारी इस तरह की दलील देकर बच सकता है कि देशभर में तमाम लोग यह सब कर रहे हैं इसलिए मैंने भी कर दिया। मुझे कठघरे में खड़ा करने से पहले बाकी सब को पकड़ कर लाइए अन्‍यथा मुझ पर उंगली भी मत उठाइए। 
माना कि राजनीति में कोई पूरी तरह दूध का धुला नहीं है और सभी राजनीतिक दलों के बहुत से नेता विभिन्‍न आपराधिक आरोपों से घिरे हैं, लेकिन इसका यह मतलब तो नहीं कि दूसरों के कुकृत्यों को कोई अपने बचाव का हथियार बना ले और उसकी आड़ में देश को लूट लेने का सुनियोजित षड्यंत्र रच डाले। 
अरविंद केजरीवाल एंड कंपनी ने जब आम आदमी पार्टी का गठन किया, तब उसका दावा था कि वो राजनीति की परिभाषा बदल देगी। जनसामान्‍य के मन में बैठी राजनेताओं की इमेज को तोड़ देगी और ऐसी परिभाषा गढ़ेगी जिसकी कल्‍पना तक लोगों ने नहीं की होगी। यह सब हुआ भी, किंतु जो हुआ वो अप्रत्‍याशित रहा।  
यही कारण है कि जनता को यह समझते देर नहीं लगी कि राजनीति की राह में अन्ना के चेले भ्रष्‍टाचार के नित नए आयाम स्‍थापित करने आए हैं। वह राजनीति बदलने नहीं, उसे कलंकित करने आए हैं। वो ऐसा सब-कुछ करने पर आमादा हैं जिसके बाद न तो कोई अन्ना किसी पर भरोसा कर सकेगा और न आमजन के मन में बैठी यह धारणा पर्याप्‍त होगी कि उसे धोखा देने के लिए किसी का नेता होना जरूरी है। 
केजरीवाल एंड कंपनी ने साबित कर दिया कि साधारण से दिखने वाला व्‍यक्‍ति भी असाधारण भ्रष्‍ट तथा बेईमान हो सकता है और कट्टर ईमानदारी का ढिंढोरा पीटकर आठ-आठ लाख के पर्दे, चार-चार लाख की टॉयलेट सीट के साथ घर को वियतनाम के मार्बल से सुसज्‍जित करवा सकता है। 
यही नहीं, ऊपर से बेशर्मी की सारी हदें पार करके यह कह सकता है कि जब हमाम में सभी नंगे हैं तो केवल मुझे ही क्यों घूरा जा रहा है। मेरे शीश महल... मेरे किचन... मेरे ड्राइंग रूम और मेरे वॉशरूम पर कैमरे की आंखें क्यों लगी हैं। 
केजरीवाल एंड कंपनी की इन दलीलों ने साबित कर दिया कि राजनीति में नीचे गिरने का शायद कोई स्‍तर होता ही नहीं। बस एक बार किसी तरह जनता को मूर्ख बनाने का मौका मिल तो जाए। 
-सुरेन्‍द्र चतुर्वेदी

सोमवार, 23 जनवरी 2023

वैध कॉलोनियों में चल रहे अवैध निर्माण कार्य बने विकास प्राधिकरण की मोटी रिश्वत का जरिया


 











उत्तर प्रदेश में जिन सरकारी विभागों को 'भ्रष्‍टाचार का पर्याय' माना जाता है, उनमें विकास प्राधिकरण का नाम प्रमुखता से लिया जा सकता है। संभवत: इसीलिए आम आदमी की भाषा में इसे 'विनाश प्राधिकरण' कहते हैं। प्रदेश में योगी आदित्यनाथ के नेतृत्व वाली बीजेपी की सरकार बनने के बाद भ्रष्‍टाचार को लेकर 'जीरो टॉलरेंस' की नीति अख्‍तियार करने का ऐलान किया गया। 2017 में पहली बार सीएम की कुर्सी पर काबिज हुए योगी आदित्यनाथ ने 25 मार्च 2022 को दूसरी बार मुख्‍यमंत्री पद की शपथ ली। इस तरह इस साल मार्च में उन्‍हें पूर्ण बहुमत के साथ यूपी की सत्ता संभाले हुए 6 वर्ष पूरे हो जाऐंगे। 

इस दौरान गोरक्ष पीठाधीश्वर महंत अवैद्यनाथ के उत्तराधिकारी योगी आदित्‍यनाथ ने उत्तर प्रदेश को 'उत्तम प्रदेश' बनाने के प्रयास में कोई कसर नहीं छोड़ी, बावजूद इसके भ्रष्‍टाचार को लेकर 'जीरो टॉलरेंस' की नीति प्रभावी दिखाई नहीं देती। 
रिस्क अधिक तो रिश्वत भी अधिक
सच्चाई तो यह है कि तमाम सरकारी विभागों के अधिकारी और कर्मचारियों ने योगीराज की इस नीति को बड़ी चालाकी से अपने पक्ष में करके रिश्वत के रेट बढ़ा दिए हैं। इन विभागों में साफ-साफ कहा जाता है कि अब रिस्क अधिक है इसलिए काम कराने के पैसे भी अधिक देने होंगे। विकास प्राधिकरण इन विभागों में सबसे ऊपर आता है। 
वैसे तो किसी भी अवैध निर्माण को पहले चुपचाप होते देखना और फिर मौका देखते ही उसे भुना लेना विकास प्राधिकरण के अधिकारियों की पुरानी फितरत है, लेकिन अब स्‍थिति यहां तक जा पहुंची है कि 'वैध कॉलोनियों' में किए जा रहे 'अवैध निर्माण' को भी विभाग ने 'दुधारू गाय' बना लिया है। 
 भरपूर भ्रष्‍टाचार के लिए अपनाई गई विकास प्राधिकरण की इस नई नीति का नतीजा है कि आज अप्रूव्‍ड और स्‍थापित पॉश कॉलोनियों में भी लोग बेखौफ होकर अवैध निर्माण कर रहे हैं, जिससे न सिर्फ इन कॉलोनियों की सुंदरता नष्‍ट हो रही है बल्‍कि सड़कें संकरी और पार्क आदि नष्‍ट-भ्रष्‍ट किए जा रहे हैं। 
खबर के साथ दिखाए गए चित्र कृष्‍ण की पावन जन्मस्‍थली मथुरा में स्‍थित पॉश कॉलोनी 'श्री राधापुरम एस्टेट' के हैं। नेशनल हाईवे के किनारे बसी इस कॉलोनी में दो कमरे के एक मकान की कीमत सवा करोड़ रुपए से अधिक है, जिसे खरीद पाना सामान्‍य जन के लिए आसान नहीं। 
मशहूर रियल स्‍टेट कारोबारी 'श्री ग्रुप' द्वारा 15 वर्ष पूर्व करीब 58 एकड़ में विकसित की गई इस कॉलोनी की खूबसूरती तब इसलिए चर्चा का विषय थी कि यहां बनाए गए सभी एक मंजिला मकान रूप-रंग में समान थे और उनके चारों ओर दर्जनों बेहतरीन पार्क बने थे। 
लगभग एक हजार मकानों वाली इस कॉलोनी में आज की स्‍थिति यह है कि दस प्रतिशत मकान ही अपने मूल स्‍वरूप में बचे हैं। नब्बे प्रतिशत मकानों का पूरा नक्शा बदल दिया गया है। कुछ मकान तो पूरी तरह ध्‍वस्‍त करके दोबारा खड़े किए जा रहे हैं लेकिन कोई कुछ बोलने वाला नहीं। नक्शा पास कराए बिना अनेक मकानों का निर्माण एक मंजिल से दो और तीन मंजिल तक जा पहुंचा है परंतु सबकी सेटिंग हो जाती है।    
कहने के लिए कॉलोनी का संचालन एक रजिस्‍टर्ड सोसायटी करती है लेकिन वह सिर्फ मेंटीनेंस चार्ज वसूलने तक सीमित है। फिर चाहे कोई मकान का नक्‍शा बदल ले, एक मंजिला से बहु मंजिला बना ले, पार्कों पर कब्‍जा कर ले या उन्‍हें बर्बाद कर दे, सोसायटी के पदाधिकारियों का इससे कोई लेना-देना नहीं। 
यही कारण है कि आज सर्वाधिक पॉश कॉलोनियों में शुमार 'श्री राधापुरम एस्टेट' के अधिकांश निवासी मनमानी करते देखे जा सकते हैं। 
हां, उनकी इस मनमानी का पूरा लाभ विकास प्राधिकरण उठा रहा है। नवधनाढ्यों की यह कॉलोनी आज उनके लिए मोटी अतिरिक्‍त आमदनी का बड़ा जरिया बन चुकी है। 
बात चाहे मकान का नक्शा बदलने की हो या फिर उसे रीसेल करने की। हर हाल में विकास प्राधिकरण के अधिकारियों की बन आती है। वो मौका मुआयना करने के बाद खुद ही बता देते हैं कि गैर कानूनी कार्य को किस तरह 'कानूनी जामा' पहनाना है और उसकी कीमत कितनी होगी। 
उदाहरण के लिए यदि किसी ने अपने दो मंजिला मकान का सौदा पौने दो करोड़ रुपए में किया है लेकिन कागजों पर वह एक मंजिला ही है क्योंकि कॉलोनी केवल एक मंजिला मकानों के लिए अप्रूव्‍ड हुई थी। अब ऐसे में मकान की रजिस्‍ट्री भी उसके मूल स्‍वरूप में संभव है लिहाजा रजिस्‍ट्री ऑफिस यथास्थिति दर्शाने का सुविधा शुल्‍क अपने हिसाब से वसूलता है, वो भी तब जबकि विकास प्राधिकरण से हरी झंडी मिल जाती है। 
हरी झंडी दिखाने से पहले विकास प्राधिकरण के अधिकारी प्रथम तो रीसेल हो रहे मकान का स्‍थलीय निरीक्षण करते हैं, और फिर अवैध निर्माण सहित स्‍टांप ड्यूटी हड़प जाने तक का गुणा-भाग निकाल कर अपनी जेब गरम करते हैं। इस क्रिया में सरकार को लगने वाले चूने का लेखा-जोखा आंक कर सौदेबाजी की जाती है ताकि कोई पक्ष घाटे में न रहे। 
यह एक पॉश कॉलोनी तो योगी सरकार की भ्रष्‍टाचार को लेकर अपनाई गई 'जीरो टॉलरेंस' नीति को भुनाने में अपनाई जा रही इस ट्रिक का उदाहरण भर है, अन्‍यथा ब्रज की दूसरी दर्जनों कॉलोनियों से लेकर प्रदेश भर की वैध कॉलोनियों में इसी ट्रिक से अवैध निर्माण कराया जा रहा है और इससे अपनी तिजोरियां भर रहे हैं विकास प्राधिकरण के अधिकारी तथा कर्मचारी। 
सरकारी खजाने को चूना लगाने की यह ट्रिक चूंकि खरीदने और बेचने वालों के लिए भी मुफीद है इसलिए वो इस पर चुप रहने में ही अपनी भलाई समझते हैं। 
इस ट्रिक का सबसे ज्‍यादा इस्‍तेमाल तब से शुरू हुआ है जब से नई कॉलोनियों के निर्माण में कमी आई है और रियल एस्‍टेट का कारोबार मंदा पड़ा है। 
यदि सरकार अब भी इस ओर ध्‍यान दे तो एक ओर जहां अच्‍छी-खासी वेलडेवलप कॉलोनियां बदसूरत होने से बच सकती हैं वहीं दूसरी ओर वैध व व्‍यवस्‍थित तरीके से निर्माण कराकर सरकारी खजाना भी भरा जा सकता है। वर्ना तो भ्रष्‍टाचार रोकने के लिए बनी जीरो टॉलरेंस नीति इसी तरह सरकारी अधिकारी और कर्मचारियों के लिए वरदान साबित होती रहेगी, साथ ही विकास की बजाय विनाश का कारण भी बनेगी। 
-सुरेन्‍द्र चतुर्वेदी  
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