गुरुवार, 26 दिसंबर 2013

मुलायम सिंह, मुस्‍लिम और मुंगेरी लाल

(लीजेण्‍ड न्‍यूज़ विशेष) एक ओर सपा सुप्रीमो मुलायम सिंह 2014 में किसी भी तरह प्रधानमंत्री की कुर्सी पर काबिज होना चाहते हैं और उसके लिए अपने कार्यकर्ताओं से साफ-साफ कह भी रहे हैं कि अखिलेश को आप लोगों ने सीएम बनवाया, अब मुझे पीएम बनवाओ लेकिन दूसरी ओर वही कार्यकर्ता अपने कारनामों से प्रदेश की जनता के बीच इतना नकारात्‍मक संदेश दे रहे हैं, जितना आजतक इतनी जल्‍दी किसी सरकार का नहीं दिया गया।
सपा मुखिया ने खुद अपने श्रीमुख से कार्यकर्ता और पदाधिकारियों के कारनामों को गुंडई की संज्ञा दी है और वह पूरी तरह सही भी है।
ऐसे में कुछ सवाल स्‍वत: इस आशय के खड़े हो जाते हैं कि सपा मुखिया को जुबानी जमा खर्च करने की जगह क्‍या पहले अपने प्‍यादों को हद में रखने की व्‍यवस्‍था नहीं करनी चाहिए ?
उन्‍हें प्रधानमंत्री की कुर्सी पर काबिज होने का दिवास्‍वप्‍न देखने की बजाय क्‍या पहले अपने पुत्र तथा प्रदेश के मुख्‍यमंत्री अखिलेश यादव को यह नहीं समझाना चाहिए कि वह ऐसा कुछ करें जिससे उन्‍हें अपनी तारीफ में कसीदे खुद न गढ़ने पढ़ें और यह काम प्रदेश की जनता करे ?
क्‍या सपा मुखिया की यह जिम्‍मेदारी नहीं बनती कि वह जिला स्‍तर पर पार्टी पदाधिकारियों में व्‍याप्‍त फूट व अंतर्कलह को समाप्‍त करें और खेमों में बंटे सपाइयों को जनहित में काम करने की सीख सख्‍ती के साथ दें ?
इन सबके अलावा सपा मुखिया को यह भी समझना होगा कि मुस्‍लिम मतदाता अब भली प्रकार वोटों की राजनीति का खेल समझ चुका है और उनकी हर चाल के पीछे छिपी मंशा को भी भांप लेता है। यही कारण है कि उसका सपा सहित उस कांग्रेस से भी मोहभंग हो गया है जिसे सांप्रदायिक शक्‍तियों को किनारे रखने की आड़ में समाजवादी पार्टी बिना शर्त समर्थन देती रही। मुस्‍लिम समाज जान चुका है कि कांग्रेस ने भी उसके साथ जो घिनौना खेल अब तक खेला, उसमें जाने-अनजाने समाजवादी पार्टी की बड़ी भूमिका रही है।
मुलायम सिंह यादव को समझना होगा कि यदि आंख बंद करके हिंदुत्‍व की दुहाई देना सांप्रदायिकता की श्रेणी में आता है तो बिना वजह और बुद्धि व विवेक को ताक पर रखकर मुसलमानों के तथाकथित हितों की थोथी दुहाई देना भी न सिर्फ एक अलग किस्‍म की सांप्रदायिकता है बल्‍कि प्रदेश व देश के दूसरे तबके के साथ अन्‍याय भी है।
समाजवादी पार्टी हो या कांग्रेस, बहुजन समाज पार्टी हो या राष्‍ट्रीय लोकदल, सबकी राजनीति का तरीका और उनकी फितरत अब उन लोगों के गले नहीं उतर रही जिन्‍हें वो अब तक मात्र वोट बैंक समझकर कुर्सी कब्‍जाने का मकसद बारी-बारी से पूरा करते रहे।
यहां भाजपा का जिक्र करना इसलिए बेमानी है क्‍योंकि भाजपा को तो पहले ही इन्‍होंने सांप्रदायिक पार्टी घोषित कर रखा है। यह बात दीगर है कि मुस्‍लिम समाज अब इनके इस प्रचार के पीछे छिपी असलियत का उद्देश्‍य भी जान चुका है लिहाजा खुलेआम इन्‍हें जवाब दे रहा है।
ताजा उदाहरण मुजफ्फरनगर के शरणार्थी शिविरों में मुलायम सिंह द्वारा कही गई बात से मुस्‍लिमों में उपजे आक्रोश का है। मुस्‍लिम समाज ने मुलायम से अपने उस बयान को लेकर माफी तक मांगने की बात कही है।
मुलायम माफी मांगेंगे या नहीं, यह तो वही जानें अलबत्‍ता एक बात तय है कि मुलायम के मुस्‍लिम प्रेम की असलियत खुद मुस्‍लिम समाज के सामने आ चुकी है और ऐसे में मुलायम सिंह व समाजवादी पार्टी दोनों को भली-भांति समझ लेनी चाहिए कि 2014 में उनका प्रधानमंत्री की कुर्सी के लिए ख्‍वाब देखना मुंगेरी लाल के हसीन सपने सरीखा ही है।
बेहतर होगा कि सपा मुखिया और उनका कुनबा समय रहते यह जान ले कि काठ की हांडी बार-बार नहीं चढ़ती। कहीं ऐसा न हो कि केंद्र की सत्‍ता पर काबिज होने की महत्‍वाकांछा उन्‍हें प्रदेश की राजनीति से भी इतनी दूर ले जाए, जहां से यूपी भी उतनी दूर दिखाई देने लगे जितनी आज दिल्‍ली दूर है। 
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