मथुरा। राष्ट्रीय लोकदल RLD के अत्यंत भरोसेमंद और अंदरूनी सूत्रों की मानें तो पार्टी ने गठबंधन में मिली मथुरा सीट पर अपना उम्मीदवार फाइनल कर दिया है।
गौरतलब है कि राष्ट्रीय लोकदल RLD को पिछले दिनों ही सपा-बसपा ने अपने साथ गठबंधन का हिस्सा घोषित करते हुए उत्तर प्रदेश में 3 सीटें दी थीं। ये सीटें थीं- मुजफ्फरनगर, मथुरा और बागपत।
उल्लेखनीय है कि इस बार मुजफ्फरनगर से RLD के मुखिया चौधरी अजीत सिंह खुद मैदान में उतरने जा रहे हैं जबकि युवराज जयंत चौधरी का बागपत से लड़ना तय है।
जयंत चौधरी ने 2009 में अपना पहला लोकसभा चुनाव मथुरा से लड़ा था और भारी मतों से जीत दर्ज की थी। किंतु इस जीत का श्रेय भाजपा को भी मिला क्योंकि जाटलेंड होने के बावजूद समर्थन के बगैर पूर्व में चौधरी चरण सिंह की पत्नी गायत्री देवी और पुत्री डॉ. ज्ञानवती भी मथुरा से चुनाव नहीं जीत सकी थीं।
2014 के लोकसभा चुनाव में एकबार फिर इस बात की पुष्टि तब हो गई जब जयंत चौधरी दूसरी बार मथुरा से लोकसभा का चुनाव लड़ने उतरे किंतु भाजपा की हेमा मालिनी से बुरी तरह हारे क्योंकि 2014 में उन्हें किसी का समर्थन प्राप्त नहीं था।
इस बार हालांकि सपा-बसपा ने अपने गठबंधन का हिस्सा घोषित करते हुए राष्ट्रीय लोकदल को मथुरा सहित तीन सीटें छोड़ दीं किंतु मथुरा में न तो सपा आज तक अपना कोई ऐसा जनाधार खड़ी कर सकी जिसके बूते निर्णायक भूमिका अदा कर सके और न बसपा लोकसभा के किसी चुनाव में अपना परचम लहरा पायी।
RLD के मुखिया चौधरी अजीत सिंह तथा युवराज जयंत चौधरी ने इस गणित को बखूबी समझते हुए ही इस बार जयंत का चुनाव क्षेत्र बदलकर बागपत कर दिया और मथुरा से परिवार के इतर किसी अन्य को लड़ाने का निर्णय लिया है ताकि पूरे परिवार की प्रतिष्ठा दांव पर न लग जाए।
दरअसल, माना यह जा रहा था कि मथुरा से चौधरी अजीत सिंह अपनी पुत्रवधू और जयंत की पत्नी चारु सिंह को मथुरा से चुनाव मैदान में उतार सकते हैं किंतु उन्होंने ऐसा न करके इस बार एक ऐसे व्यक्ति को लड़ाने का निर्णय लिया है जिसका नाम चंद रोज पहले तब सामने आया था जब जयंत चौधरी उसके एक कार्यक्रम में दिखाई दिए थे।
खुद को योद्धा पत्रकार बताने वाले यह व्यक्ति हैं विनीत नारायण। वृंदावन को अपना स्थाई निवास बना चुके विनीत नारायण ब्रज फाउंडेशन नामक एक एनजीओ भी चलाते हैं।
विनीत नारायण और उनका एनजीओ यूं तो पिछले कई वर्षों से ब्रज के कुंड एवं सरोवरों का जीर्णोद्धार करने के काम में लगा था लेकिन गत वर्ष जब उस पर उंगलियां उठने लगीं तो जांच भी बैठी और आरोप-प्रत्यारोप का दौर भी चला। फिलहाल मामला एनजीटी में लंबित है।
वैसे विनीत नारायण मथुरा जनपद के ही मूल निवासी हैं और राया कस्बे के वैश्य समुदाय से ताल्लुक रखते हैं लिहाजा जाट बाहुल्य मथुरा लोकसभा क्षेत्र से राष्ट्रीय लोकदल द्वारा उनकी उम्मीदवारी पर मुहर लगाना किसी के गले नहीं उतर रहा।
बताया जाता है कि राष्ट्रीय लोकदल के स्थानीय दिग्गज नेता भी विनीत नारायण की उम्मीदवारी पर मुहर लगने से हतप्रभ हैं और उन्हें समझ में नहीं आ रहा कि पार्टी ने आखिर विनीत नारायण का नाम क्या सोचकर फाइनल किया है।
पार्टी सूत्रों से प्राप्त जानकारी के अनुसार बीते कल RLD मुखिया ने सभी प्रमुख दावेदारों को दिल्ली स्थित अपने आवास पर बुलाया था जहां कुंवर नरेन्द्र सिंह, ठाकुर तेजपाल सिंह, योगेश नौहवार, अनूप चौधरी, डॉ. अशोक अग्रवाल, रामवीर भरंगर, राजेन्द्र सिकरवार तथा विनीत नारायण आदि के नाम पर चर्चा हुई।
सूत्रों की मानें तो बतौर ठाकुर उम्मीदवार मथुरा के लिए चौधरी अजीत सिंह की पहली पसंद ठाकुर तेजपाल थे किंतु उनके और कुंवर नरेन्द्र सिंह के बीच में सामंजस्य न बैठ पाने के कारण ठाकुर तेजपाल के नाम पर मुहर नहीं लग सकी।
दूसरी ओर ये दोनों ही नेता पार्टी की ओर से रखी गई उस शर्त को भी पूरा करने को तैयार नहीं थे जो हर ‘क्षेत्रीय पार्टी’ अपनी गुप्त बैठकों में टिकट के दावेदारों के सामने रखती है।
इनके अतिरिक्त प्रमुख जाट दावेदारों में जो नाम शुमार थे उनमें जाट समुदाय से योगेश नौहवार, अनूप चौधरी, रामवीर भरंगर, राजेन्द्र सिकरवार, चेतन मलिक आदि सबसे ऊपर थे तो वैश्य समुदाय से सबसे ऊपर नाम मशहूर बाल रोग विशेषज्ञ डॉ. अशोक अग्रवाल का चल रहा था।
पार्टी के सूत्रों ने बताया कि विनीत नारायण के नाम पर वीटो का इस्तेमाल जयंत चौधरी ने किया क्योंकि विनीत नारायण ”जयंत चौधरी” की ”अपेक्षा” पर पूरी तरह खरे उतर रहे थे। हालांकि उनके नाम पर मुहर लगती देख दूसरे प्रमुख दावेदारों ने यह भी कहा कि यदि किसी वैश्य को ही चुनाव लड़वाना है तो डॉ. अशोक अग्रवाल को क्यों नहीं लड़वाया जा सकता किंतु इस बात को भी अनसुना कर दिया गया।
पता लगा है कि वर्षों से पार्टी के लिए दिन-रात एक करने एवं तन, मन, धन से साथ देने वाले दावेदारों में अपने नेताओं के इस निर्णय को लेकर भारी आक्रोश है और वो अपनी नाराजगी सार्वजनिक करने का मन बना रहे हैं।
अब देखना यह है पार्टी अपने इन हर तरह से सक्षम दावेदारों की नाराजगी कैसे दूर करती है और कैसे अचानक सामने लाए गए विनीत नारायण के पक्ष में वोट मांगने के लिए उन्हें तैयार करती है।
-सुरेन्द्र चतुर्वेदी
गौरतलब है कि राष्ट्रीय लोकदल RLD को पिछले दिनों ही सपा-बसपा ने अपने साथ गठबंधन का हिस्सा घोषित करते हुए उत्तर प्रदेश में 3 सीटें दी थीं। ये सीटें थीं- मुजफ्फरनगर, मथुरा और बागपत।
उल्लेखनीय है कि इस बार मुजफ्फरनगर से RLD के मुखिया चौधरी अजीत सिंह खुद मैदान में उतरने जा रहे हैं जबकि युवराज जयंत चौधरी का बागपत से लड़ना तय है।
जयंत चौधरी ने 2009 में अपना पहला लोकसभा चुनाव मथुरा से लड़ा था और भारी मतों से जीत दर्ज की थी। किंतु इस जीत का श्रेय भाजपा को भी मिला क्योंकि जाटलेंड होने के बावजूद समर्थन के बगैर पूर्व में चौधरी चरण सिंह की पत्नी गायत्री देवी और पुत्री डॉ. ज्ञानवती भी मथुरा से चुनाव नहीं जीत सकी थीं।
2014 के लोकसभा चुनाव में एकबार फिर इस बात की पुष्टि तब हो गई जब जयंत चौधरी दूसरी बार मथुरा से लोकसभा का चुनाव लड़ने उतरे किंतु भाजपा की हेमा मालिनी से बुरी तरह हारे क्योंकि 2014 में उन्हें किसी का समर्थन प्राप्त नहीं था।
इस बार हालांकि सपा-बसपा ने अपने गठबंधन का हिस्सा घोषित करते हुए राष्ट्रीय लोकदल को मथुरा सहित तीन सीटें छोड़ दीं किंतु मथुरा में न तो सपा आज तक अपना कोई ऐसा जनाधार खड़ी कर सकी जिसके बूते निर्णायक भूमिका अदा कर सके और न बसपा लोकसभा के किसी चुनाव में अपना परचम लहरा पायी।
RLD के मुखिया चौधरी अजीत सिंह तथा युवराज जयंत चौधरी ने इस गणित को बखूबी समझते हुए ही इस बार जयंत का चुनाव क्षेत्र बदलकर बागपत कर दिया और मथुरा से परिवार के इतर किसी अन्य को लड़ाने का निर्णय लिया है ताकि पूरे परिवार की प्रतिष्ठा दांव पर न लग जाए।
दरअसल, माना यह जा रहा था कि मथुरा से चौधरी अजीत सिंह अपनी पुत्रवधू और जयंत की पत्नी चारु सिंह को मथुरा से चुनाव मैदान में उतार सकते हैं किंतु उन्होंने ऐसा न करके इस बार एक ऐसे व्यक्ति को लड़ाने का निर्णय लिया है जिसका नाम चंद रोज पहले तब सामने आया था जब जयंत चौधरी उसके एक कार्यक्रम में दिखाई दिए थे।
खुद को योद्धा पत्रकार बताने वाले यह व्यक्ति हैं विनीत नारायण। वृंदावन को अपना स्थाई निवास बना चुके विनीत नारायण ब्रज फाउंडेशन नामक एक एनजीओ भी चलाते हैं।
विनीत नारायण और उनका एनजीओ यूं तो पिछले कई वर्षों से ब्रज के कुंड एवं सरोवरों का जीर्णोद्धार करने के काम में लगा था लेकिन गत वर्ष जब उस पर उंगलियां उठने लगीं तो जांच भी बैठी और आरोप-प्रत्यारोप का दौर भी चला। फिलहाल मामला एनजीटी में लंबित है।
वैसे विनीत नारायण मथुरा जनपद के ही मूल निवासी हैं और राया कस्बे के वैश्य समुदाय से ताल्लुक रखते हैं लिहाजा जाट बाहुल्य मथुरा लोकसभा क्षेत्र से राष्ट्रीय लोकदल द्वारा उनकी उम्मीदवारी पर मुहर लगाना किसी के गले नहीं उतर रहा।
बताया जाता है कि राष्ट्रीय लोकदल के स्थानीय दिग्गज नेता भी विनीत नारायण की उम्मीदवारी पर मुहर लगने से हतप्रभ हैं और उन्हें समझ में नहीं आ रहा कि पार्टी ने आखिर विनीत नारायण का नाम क्या सोचकर फाइनल किया है।
पार्टी सूत्रों से प्राप्त जानकारी के अनुसार बीते कल RLD मुखिया ने सभी प्रमुख दावेदारों को दिल्ली स्थित अपने आवास पर बुलाया था जहां कुंवर नरेन्द्र सिंह, ठाकुर तेजपाल सिंह, योगेश नौहवार, अनूप चौधरी, डॉ. अशोक अग्रवाल, रामवीर भरंगर, राजेन्द्र सिकरवार तथा विनीत नारायण आदि के नाम पर चर्चा हुई।
सूत्रों की मानें तो बतौर ठाकुर उम्मीदवार मथुरा के लिए चौधरी अजीत सिंह की पहली पसंद ठाकुर तेजपाल थे किंतु उनके और कुंवर नरेन्द्र सिंह के बीच में सामंजस्य न बैठ पाने के कारण ठाकुर तेजपाल के नाम पर मुहर नहीं लग सकी।
दूसरी ओर ये दोनों ही नेता पार्टी की ओर से रखी गई उस शर्त को भी पूरा करने को तैयार नहीं थे जो हर ‘क्षेत्रीय पार्टी’ अपनी गुप्त बैठकों में टिकट के दावेदारों के सामने रखती है।
इनके अतिरिक्त प्रमुख जाट दावेदारों में जो नाम शुमार थे उनमें जाट समुदाय से योगेश नौहवार, अनूप चौधरी, रामवीर भरंगर, राजेन्द्र सिकरवार, चेतन मलिक आदि सबसे ऊपर थे तो वैश्य समुदाय से सबसे ऊपर नाम मशहूर बाल रोग विशेषज्ञ डॉ. अशोक अग्रवाल का चल रहा था।
पार्टी के सूत्रों ने बताया कि विनीत नारायण के नाम पर वीटो का इस्तेमाल जयंत चौधरी ने किया क्योंकि विनीत नारायण ”जयंत चौधरी” की ”अपेक्षा” पर पूरी तरह खरे उतर रहे थे। हालांकि उनके नाम पर मुहर लगती देख दूसरे प्रमुख दावेदारों ने यह भी कहा कि यदि किसी वैश्य को ही चुनाव लड़वाना है तो डॉ. अशोक अग्रवाल को क्यों नहीं लड़वाया जा सकता किंतु इस बात को भी अनसुना कर दिया गया।
पता लगा है कि वर्षों से पार्टी के लिए दिन-रात एक करने एवं तन, मन, धन से साथ देने वाले दावेदारों में अपने नेताओं के इस निर्णय को लेकर भारी आक्रोश है और वो अपनी नाराजगी सार्वजनिक करने का मन बना रहे हैं।
अब देखना यह है पार्टी अपने इन हर तरह से सक्षम दावेदारों की नाराजगी कैसे दूर करती है और कैसे अचानक सामने लाए गए विनीत नारायण के पक्ष में वोट मांगने के लिए उन्हें तैयार करती है।
-सुरेन्द्र चतुर्वेदी