बुधवार, 27 अप्रैल 2016

Mission 2017: एक अनार और सौ बीमार की कहावत चरितार्थ कर रही है मथुरा-वृंदावन सीट

मथुरा। Mission 2017 के  तहत बेशक यूपी के विधानसभा चुनाव होने में लगभग पूरा एक साल बाकी है किंतु जहां तक सवाल राजनीतिक सरगर्मियों का है, तो वह काफी तेजी पकड़ती नजर आ रही हैं।
सबसे अधिक तेजी उन लोगों के बीच दिखाई दे रही है जो 2017 में चुनाव लड़ने का मन बना चुके हैं और उसके लिए कुछ भी करने को तैयार हैं। ऐसे लोग किसी खास पार्टी का टिकट पाने की कोशिश में उस पार्टी के पहले से तय उम्‍मीदवारों का टिकट कटवाने के लिए भी बाकायदा बोली लगा रहे हैं।
राजनीति के महारथियों की मानें तो उत्‍तर प्रदेश में इस बार मुख्‍य मुकाबला भाजपा और बसपा के बीच होने जा रहा है। समाजवादी पार्टी चाहे जितना दम भर ले किंतु जनता उसके काम-काज से खुश नहीं है। विशेष तौर पर कानून-व्‍यवस्‍था की बदहाली, भ्रष्‍टाचार, जाति विशेष का दबदबा और बिजली की भारी किल्‍लत ने समाजवादी पार्टी की छवि को काफी प्रभावित किया है।
कांग्रेस तथा राष्‍ट्रीय लोकदल फिलहाल इस परिदृश्‍य में दूर-दूर तक नजर नहीं आ रहीं। कांग्रेस में यही पता नहीं लग पा रहा कि 2017 के लिए यूपी में उम्‍मीदवारों का चयन पार्टी के नए नवेले चुनाव विशेषज्ञ प्रशांत किशोर करेंगे या पार्टी हाईकमान। प्रशांत किशोर कांग्रेस को शायद भाजपा अथवा जद (यू) जैसी डिमांडिंग पार्टी समझ बैठे हैं, जिनके लिए काम करने के बाद वह एक ”ब्रांड” बनकर उभरे जबकि सच यह है कि कांग्रेस की टिकट पर यूपी में तो कोई आसानी से चुनाव लड़ने तक को तैयार नहीं होता।
रही बात चौधरी अजीत सिंह वाले राष्‍ट्रीय लोकदल की तो उसके बावत अभी इतना भी नहीं पता कि उनका ऊंट किस करवट बैठेगा। वह नीतीश के झण्‍डे तले चुनाव लड़ेंगे या अपना झण्‍डा लेकर।
इन हालातों के मद्देजनर राजनीति के महारथियों की यह बात सही प्रतीत होती है कि यूपी में मुख्‍य मुकाबला भाजपा और सपा के बीच ही होना है।
चूंकि कृष्‍ण की नगरी मथुरा का उत्‍तर प्रदेश में अलग महत्‍व है और यहां की राजनीतिक दशा व दिशा से समूचे पश्‍चिमी उत्‍तर प्रदेश का आंकलन किया जाता है इसलिए मथुरा पर एक ओर जहां प्रमुख पार्टियों के हाईकमान की निगाहें केंद्रित रहती हैं, वहीं दूसरी ओर चुनाव लड़ने के इच्‍छुक लोग भी अपनी नजरें गड़ाए रहते हैं।
राजनीतिक नजरिए से मथुरा इस मायने में भी खास है कि कई-कई बार सत्‍ता पर काबिज रहने के बावजूद समाजवादी पार्टी आज तक इस विश्‍व प्रसिद्ध धार्मिक जनपद के अंदर कभी अपना खाता तक नहीं खोल पाई।
पिछले चुनावों में मांट क्षेत्र से सपा ने अखिलेश के परम मित्र संजय लाठर को चुनाव मैदान में उतारा था और उन्‍हें जिताने के लिए पूरी ताकत भी झोंक दी थी, किंतु नतीजा वही ढाक के तीन पात रहा।
यही कारण है कि समाजवादी पार्टी की तमाम कोशिशों के बावजूद मथुरा में सपा का टिकट मांगने वाले ना के बराबर हैं। सपा के इतिहास में सर्वाधिक मत पिछले विधानसभा चुनावों के दौरान मथुरा-वृंदावन क्षेत्र से उम्‍मीदवार डॉ. अशोक को मिले थे लेकिन फिर भी वह सीट नहीं निकाल पाए जबकि पिछले चुनावों में सपा की प्रदेश के अंदर हवा रही।
भाजपा और बसपा के मुख्‍य मुकाबले वाले इस जनपद में बसपा ने मथुरा-वृंदावन की सीट पर अब तक पुष्पा शर्मा के पुत्र योगेश द्विवेदी का नाम फाइनल किया हुआ है जबकि गोवर्धन से सिटिंग विधायक राजकुमार रावत का लड़ना तय है। मांट से श्‍यामसुंदर शर्मा तथा छाता से ठाकुर तेजपाल के नाम पर मोहर लगी हुई है। बल्‍देव (सुरक्षित) से भी नाम लगभग फाइनल किया जा चुका है। इस सबके बाद भी बहुत से लोग इन संभावित उम्‍मीदवारों की दावेदारी को चुनौती देने में लगे हैं और इनकी टिकट कटवाने का भरसक प्रयास कर रहे हैं। इन पांच नामों में भी सारा दारोमदार मथुरा-वृंदावन की सीट पर है। कई लोग तो योगेश द्विवेदी का टिकट कटवाने के लिए बहिनजी के दरबार में बाकायदा बोली लगाने को तैयार हैं। वह उन्‍हें इसके लिए मुंह मांगी कीमत अदा करने को तत्‍पर हैं। हालांकि पार्टी सूत्रों से बताया यह जा रहा है कि योगेश द्विवेदी का टिकट कटना आसान नहीं होगा क्‍योंकि योगेश द्विवेदी की माताजी तथा वृंदावन नगर पालिका की पूर्व अध्‍यक्ष पुष्‍पा शर्मा ने बहिनजी के दरबार में गहरी पैठ बना रखी है और लगातार वह पार्टी को अपने योगदान से सींचती रही हैं जिस कारण बहिनजी भी उनकी मुरीद हैं।
लोकसभा चुनाव 2014 के दौरान मोदी लहर में मथुरा का दबदबा रहने के कारण 2017 के विधान सभा चुनावों के लिए भाजपा से उम्‍मीदवारी का दावा करने वालों की फेहरिस्‍त सर्वाधिक लंबी है। इस फेहरिस्‍त में भी मथुरा-वृंदावन सीट से चुनाव लड़ने के इच्‍छुकों की संख्‍या चौंकाने वाली है।
यहां भी मथुरा-वृंदावन यानि शहरी सीट पर दावेदारी करने वालों की संख्‍या सबसे अधिक है। पिछली बार बहुत कम मतों से इस सीट को गंवाने वाले डॉ. देवेन्‍द्र शर्मा की दावेदारी तो स्‍वाभाविक है ही, उनके अलावा पूर्व मंत्री रविकांत गर्ग भी इस बार चुनाव लड़ने का पूरा मन बना चुके हैं।
इधर नगर पालिका अध्‍यक्ष मनीषा गुप्‍ता भी मथुरा-वृंदावन से टिकट मांग रही हैं। इस मामले में एक रोचक पहलू हालांकि यह जुड़ा हुआ है कि मथुरा के अंदर किसी पार्टी का कोई ऐसा नेता कभी विधायक नहीं बन पाया है जिसने नगर पालिका की अध्‍यक्षी कर ली हो किंतु मनीषा गुप्‍ता फिर भी स्‍वयं को प्रबल दावेदार मान रही हैं।
वरिष्‍ठ भाजपा नेता एस. के. शर्मा भी टिकट के दावेदारों में प्रमुख हैं और भाजपा छोड़कर रालोद का दामन थाम लेने वाले मुरारी अग्रवाल भी एक बार फिर दूसरे दावेदारों को चुनौती दे रहे हैं।
इनके अतिरिक्‍त हर विधानसभा चुनाव में मथुरा-वृंदावन से एक नाम सोहन लाल कातिब का भी उछलता है। बताया जाता है कि इस बार भी सोहन लाल कातिब पूरा जोर लगा रहे हैं।
वृंदावन से भी कुछ नाम दावेदारों की सूची में शामिल हैं और यही कारण है कि प्रदेश भाजपा अध्‍यक्ष बनने के बाद जब पहली बार केशव प्रसाद मौर्य बिहारी जी मंदिर के दर्शनार्थ यहां आए तो भाजपा की मथुरा व वृंदावन इकाई में साफ-साफ पाले खिंचे हुए दिखाई दिए। यहां तक कि केशव प्रसाद मौर्य को बाहर निकलने के लिए रास्‍ता बदलना पड़ा और उसके बाद वृंदावन की इकाई ने जिला अध्‍यक्ष डॉ. डी पी गोयल के खिलाफ बाकायदा मोर्चा खोल दिया। बताया जाता है कि डी पी गोयल खुद भी विधानसभा चुनाव लड़ने के इच्‍छुक हैं।
भारतीय जनता पार्टी का अब तक का इतिहास यह बताता है कि वह अपने उम्‍मीदवार ऐन वक्‍त पर तय करती है किंतु इस मर्तबा हवा का रुख कुछ और कह रहा है। हो सकता है कि इस बार उम्‍मीदवारों की घोषणा पहले की अपेक्षा जल्‍दी कर दी जाए।
जो भी हो, लेकिन भाजपा और बसपा में मथुरा-वृंदावन सीट के लिए टिकट पाने वालों ने अपनी-अपनी बिसात बि‍छानी शुरू कर दी हैं। उनके लिए शह और मात का खेल शुरू हो चुका है। ऐसा भी कह सकते हैं कि उनके लिए हार और जीत की पहली लड़ाई तो अभी से जारी है क्‍योंकि टिकट मिलेगा तभी चुनाव लड़ पायेंगे। टिकट नहीं मिला तो पूरे पांच साल के लिए लाइन में लगे रहने के अलावा कोई चारा नहीं रह जायेगा।
अब देखना यह है कि उठा-पटक और पटखनी देने तथा दिलाने के इस खेल में अंतत: जीत किसकी होती है और कौन अपना भाग्‍य आजमाने की टिकट पाने में सफल रहता है।
दिलचस्‍प यह है कि इन दिनों भाजपा तथा बसपा में तो एक अनार और सौ बीमार वाली कहावत पूरी तरह चरितार्थ हो रही है। 2017 आते-आते यह अनार किसके हाथ लगता है और कौन मन मारकर चुप बैठने के लिए मजबूर होता है, यह नजारा भी काफी रोचक रहने वाला है।
-Legendnews
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