रविवार, 28 फ़रवरी 2016

सांसदों के चंगुल में Parliament

अभिव्‍यक्‍ति की स्‍वतंत्रता, असहिष्‍णुता, धर्मनिरपेक्षता तथा सर्वधर्म समानता जैसे कुछ शब्‍द इन दिनों देश की सारी समस्‍याओं पर हावी हैं। तमाम समस्‍याएं एक तरफ और इन चार शब्‍दों की महत्‍ता एक तरफ। सब-कुछ जैसे इन्‍हीं चार शब्‍दों के इर्द-गिर्द सिमट कर रह गया है। सब-कुछ ठहर गया है, ठप्‍प हो गया है।
लोकसभा ठप्‍प, राज्‍यसभा ठप्‍प और इनके साथ अनेक वो बिल भी ठप्‍प जिनके पास होने का इंतजार देश की जनता पिछले चार संसद सत्रों से कर रही है।
ऐसा लगता है जैसे आमजन के मताधिकार से विशिष्‍टजन की श्रेणी को प्राप्‍त माननीयों ने ही संसद को बंधक बना लिया। वह उनके चंगुल में फंस चुकी है। आश्‍चर्य की बात तो यह है कि जनप्रतिनिधि कहलाने वाले इन लोगों ने उन मुद्दों पर संसद को बंधक बना रखा है जिनका आमजन से दूर-दूर तक कोई वास्‍ता है ही नहीं। आमजन का वास्‍ता है उन समस्‍याओं से जिनका समाधान करने के लिए इन्‍हें संसद के अंदर बैठने का अधिकार उसने दिया था, किंतु आज वही आमजन के लिए समस्‍या बन बैठे हैं।
अभिव्‍यक्‍ति की स्‍वतंत्रता, असहिष्‍णुता, धर्मनिरपेक्षता तथा सर्वधर्म समानता जैसे भारी-भरकम शब्‍दों से आमजन का क्‍या लेना-देना। उसके लिए यह सारे शब्‍द बेमानी हैं। बेमानी इसलिए हैं कि उसका तो सारा समय निजी समस्‍याओं का समाधान करने में बीत जाता है। वो निजी समस्‍याएं जिन्‍हें जन साधारण की भाषा में नून, तेल लकड़ी का बंदोबस्‍त करना कहते हैं। जो अपने घर में ही बीबी-बच्‍चों के सामने भी खुद की भावनाएं अभिव्‍यक्‍त नहीं कर पाते, वह क्‍या जानें अभिव्‍यक्‍ति की भी कोई स्‍वतंत्रता होती है। वह क्‍या समझें कि देश के संविधान ने उन्‍हें अभिव्‍यक्‍ति की स्‍वतंत्रता जैसा कोई अधिकार भी दे रखा है।
असहिष्‍णुता से तो ऐसे लोग ताजिंदगी परिचित ही नहीं होते क्‍योंकि कम खाना और गम खाना उन्‍हें तभी से घुट्टी में पिला दिया जाता है जब वो होश संभालने लायक होते हैं। सहिष्‍णुता ही उनके जीवन का मंत्र बन जाता है। बाकी जो कुछ उनके जीवन में असहिष्‍णु घटता है, वह कानून-व्‍यवस्‍था की समस्‍या होती है न कि सामाजिक समस्‍या।
जैसे-तैसे जीवन जीने की जद्दोजहद में धर्मनिरपेक्षता उनके खून के अंदर इस कदर घुल जाती है कि वह कभी उसके परे जाकर सोचने लायक नहीं रहते। सर्वधर्म समानता ऐसे लोगों की दिनचर्या का हिस्‍सा होती है। उनकी जुबान राम-राम के जवाब में राम-राम और अस्सलामालेकुम के जवाब में वालेकुम सलाम खुद-ब-खुद कह बैठती है।
हां, आम लोगों से इतर इन शब्‍दों के परिपेक्ष्‍य में यदि बात करें खास लोगों की तो उनके लिए ऐसे शब्‍द विशेष अहमियत रखते हैं। विशेष इसलिए कि इनमें से एक-एक शब्‍द संसद ठप्‍प कराने, दंगा भड़काने, आमजन को जाति व धर्म के नाम पर बांटने तथा देश को कई दशकों पीछे ले जाने की ताकत रखता है। और इन सबसे ऊपर भरपूर राजनीति करने का अवसर प्रदान करता है।
यही कारण है कि इन दिनों ऐसे शब्‍दों को उछालकर देश को खूब छला जा रहा है अन्‍यथा कौन नहीं जानता कि इन शब्‍दों की आड़ में खेला जा रहा घिनौना खेल किसी नतीजे तक नहीं पहुंचा सकता।
जिस अभिव्‍यक्‍ति की स्‍वतंत्रता को हथियार बनाकर आज कई राजनीतिक दल संसद को ठप्‍प किए हुए हैं, क्‍या वह नहीं जानते कि कोई भी स्‍वतंत्रता किसी दूसरे को आहत करने का अधिकार नहीं देती। अभिव्‍यक्‍ति की स्‍वतंत्रता के नाम पर किसी एक को दूसरों के लिए गालियां देने का अधिकार नहीं मिल जाता। ऐसी स्‍वतंत्रता फिर कानून-व्‍यवस्‍था का विषय बन जाती है।
माना कि देश के हर नागरिक को अपनी इच्‍छानुसार जीवन जीने तथा खाने-पीने तथा रहने का भी अधिकार संविधान ने दिया है किंतु यदि कोई सड़क पर इसलिए निर्वस्‍त्र घूमना चाहे कि उसे संविधान में जैसे-चाहे रहने का अधिकार प्राप्‍त है तो क्‍या उसकी इस दलील से सहमत हुआ जा सकता है। यही बात खान-पान पर भी लागू होती है। हर व्‍यक्‍ति अपने अधिकारों का इस्‍तेमाल करने के लिए स्‍वतंत्र है लेकिन अपने दायरे में रहकर। तब तक, जब तक कि कोई अन्‍य उससे आहत नहीं होता। दूसरों को आहत करने के लिए प्रयोग किया जाने वाला कोई भी अधिकार, अधिकारों के अतिक्रमण की श्रेणी में आता है। ऐसे में यह कहना कि अभिव्‍यक्‍ति की आजादी के संविधान प्रदत्‍त अधिकार की आड़ लेकर कोई देश को टुकड़े-टुकड़े करने का नारा देने को भी स्‍वतंत्र है…खालिस घटिया, ओछी व बेशर्म राजनीति के अलावा कुछ नहीं है।
संसद पर हमले के सर्वोच्‍च न्‍यायालय से दोष सिद्ध अपराधी की सजा को लेकर उंगली उठाना और देश की कानून-व्‍यवस्‍था को चुनौती देना यदि अभिव्‍यक्‍ति की आजादी है तो ऐसी आजादी हर हाल में छीन लेना ही देश व समाज दोनों के लिए बेहतर है।
घोर आश्‍चर्य की बात है कि कश्‍मीर की आजादी तक जंग जारी रखने का नारा देने वालों का समर्थन वो लोग करते हैं जो कभी लुटियन जोन में अलॉट हुए एक सरकारी बंगले पर हमेशा-हमेशा के लिए अनाधिकृत कब्‍जा बनाए रखना चाहते हैं।
ऐसे लोग अब राष्‍ट्रद्रोह को अपने तरीके से परिभाषित करने में लगे हैं। देश के टुकड़े-टुकड़े करने का नारा देना राष्‍ट्रद्रोह है या नहीं, इसका निर्णय अब कोर्ट को क्‍यों नहीं करने देते। पुलिस को जो उचित लगा, वो उसने किया। यदि पुलिस ने गलत किया है तो कोर्ट उसे भी सबक जरूर सिखायेगी किंतु कोर्ट का निर्णय आने से पहले ही अपने तरीके से राष्‍ट्रद्रोह को परिभाषित करना क्‍या समूची व्‍यवस्‍था पर ही प्रश्‍नचिन्‍ह लगाना नहीं है।
इसी प्रकार असहिष्‍णुता को मुद्दा बनाकर संसद का पूरा एक सत्र बर्बाद कर दिया गया। प्रचारित किया गया कि मोदी राज में देश बहुत असहिष्‍णु हो गया है। दिमाग के दिवालियेपन या उसके शातिर दुरुपयोग का इससे निकृष्‍ट कोई उदाहरण शायद ही दूसरा हो।
पूरे का पूरा कोई देश असहिष्‍णु कैसे हो सकता है। व्‍यक्‍ति विशेष भी किसी खास मामले में असहिष्‍णु हो जाता है तो कई मामलों में वही व्‍यक्‍ति पूरी सहिष्‍णुता का परिचय देता है। एक कोई बात किसी व्‍यक्‍ति को बुरी लगती है लेकिन वही बात दूसरे व्‍यक्‍ति को उतनी बुरी नहीं लगती या बुरी ही नहीं लगती। सहिष्‍णुता और असहिष्‍णुता प्रत्‍येक व्‍यक्‍ति के अपने विचारों पर निर्भर करती है। ज्‍यादा से ज्‍यादा चंद लोगों का समूह किसी बात के प्रति सहिष्‍णु या असहिष्‍णु हो सकता है किंतु पूरा देश कभी किसी मुद्दे पर एकराय नहीं हो सकता।
जिस देश में ओसामा बिन लादेन जैसे कुख्‍यात अंतर्राष्‍ट्रीय आतंकवादी को सम्‍मान पूर्वक संबोधित करने की छूट हो, जिस देश में बटला हाउस के आतंकवादियों को निर्दोष बताने की सुविधा हो, जिस देश में संसद हमले के दोषी अफजल गुरू को मौत की सजा के कई साल बाद भी क्‍लीनचिट देने का अधिकार प्राप्‍त हो, और जिस देश में इतना सब-कुछ करने वाले तत्‍व पूर्ण सम्‍मान के साथ जी रहे हों, उस देश को असहिष्‍णु कहना सहिष्‍णुता को कलंकित करने की असफल कोशिश के अतिरिक्‍त कुछ नहीं माना जा सकता।
जहां किसी एक धर्म से जुड़े व्‍यक्‍ति की हत्‍या पर नजरिया कुछ और हो और दूसरे धर्म के व्‍यक्‍ति की हत्‍या पर नजरिया ही बदल जाए, जहां अपराध व अपराधियों को भी जाति-धर्म व संप्रदाय के अलग-अलग चश्‍मों से देखा जाए और आपराधिक घटनाओं पर पूरी निर्लज्‍जता के साथ राजनीति करने का अवसर हो, वहां धर्मनिरपेक्षता की बातें करना क्‍या किसी षड्यंत्र का हिस्‍सा नहीं। क्‍या ऐसी कोशिश भी राष्‍ट्रद्रोह की श्रेणी में नहीं आनी चाहिए।
बेशक हमारे देश का कानून बहुत पुराना है और कई कानून आउटडेटेड हो चुके हैं लिहाजा वो अपना मकसद पूरा करने लायक नहीं रहे। तो क्‍या इसका मतलब यह है कि हर व्‍यक्‍ति उन्‍हें अपने तरीके से परिभाषित करने लगे और उन्‍हें लेकर न्‍यायपालिका पर भी उंगली उठा सके।
यदि ऐसा है तो निश्‍चित ही उन कानूनों की परिभाषा न सिर्फ स्‍पष्‍ट की जाए और जरूरी हो तो बदली भी जाए ताकि फिर कोई उमर खालिद, कोई कन्‍हैया कुमार या उसके साथी खुलेआम देश के टुकड़े-टुकड़े होने तक जंग जारी रखने का ऐलान न कर सकें। खुलेआम देश की कानून-व्‍यवस्‍था को चुनौती न दे सकें।
ताकि फिर कोई नेता राजनीति का सहारा लेकर या कोई राजनीतिक दल पक्ष-विपक्ष के अधिकारों से अभिव्‍यक्‍ति की स्‍वतंत्रता का हवाला देकर देश के गद्दारों का समर्थन न कर सके। किसी को इतना अधिकार न हो कि जिस कश्‍मीर के लिए अनगिनित बलिदान दिए जा चुके हैं, जिसकी खातिर देश के सैनिक विकट से विकट परिस्‍थितयों में ड्यूटी को अंजाम दे रहे हों, जहां आए दिन आतंकवादी निर्दोष लोगों का खून बहा रहे हों, उस कश्‍मीर की आजादी के सपने देखने वालों के साथ खड़े नजर आ सकें।
अब समय आ गया है कि ऐसे हर कानून की नए सिरे से व्‍याख्‍या हो अन्‍यथा आज देश की संसद ठप्‍प है, कल देश ही पूरी तरह ठप्‍प हो जायेगा।
अभिव्‍यक्‍ति की स्‍वतंत्रता, तथाकथित असहिष्‍णुता, धर्म निरपेक्षता और सर्वधर्म समानता की इतनी बड़ी कीमत नहीं चुकाई जा सकती। पूरे के पूरे राष्‍ट्र को राष्‍ट्रद्रोहियों के हवाले इसलिए नहीं किया जा सकता कि राष्‍ट्रद्रोह को लेकर उनका नजरिया भिन्‍न है और वो खुद को सरकार, कानून-व्‍यवस्‍था और न्‍यायपालिका से भी ऊपर समझते हैं।
-सुरेन्‍द्र चतुर्वेदी

सोमवार, 15 फ़रवरी 2016

दूत भेजने भर से UP फतह नहीं होगी मोदी जी

UP में चुनावी किला फतह करने के लिए लगभग सभी राजनीतिक दलों का मिशन-2017 शुरू हो चुका है। बसपा और भाजपा जहां UP में अपनी खोई हुई सत्‍ता पाना चाहती हैं, वहीं समाजवादी पार्टी चाहती है कि उसका कब्‍जा इसी तरह बरकरार रहे।
कांग्रेस की मंशा इस विशाल सूबे में बिहार जैसे चुनावी नतीजे निकालने की है तो राष्‍ट्रीय लोकदल की कोशिश है कि उसकी डूब चुकी नैया को किसी तिनके का सहारा मिल जाए और वह फिर सतह पर आ खड़ी हो।
इसके अलावा बिहार जैसे परिणाम दोहराने के लिए एक अलग प्रयास UP में भी महागठबंधन बनाने का हो रहा है और उसके लिए जेडी-यू के शरद यादव सक्रिय हो चुके हैं।
बहरहाल, एक लंबे समय से यूपी की सत्‍ता पाने में असफल रही भारतीय जनता पार्टी के लिए उत्‍तर प्रदेश के आगामी चुनाव, लगभग जीवन-मरण का प्रश्‍न बन चुके हैं क्‍योंकि बिहार उनके हाथ से पहले ही निकल गया है।
बिहार में करारी हार के बाद यह कहा जाने लगा कि मोदी जी का तिलिस्‍म टूट रहा है और अब जनता सिर्फ नारेबाजी अथवा चुनावी घोषणाओं के झांसे में आकर किसी को सत्‍ता नहीं सौंपने वाली।
मोदी जी का तिलिस्‍म टूटा है या नहीं, यह बता पाना भले ही फिलहाल संभव न हो किंतु एक बात तय है कि भारतीय जनता पार्टी और मोदी सरकार दोनों को बिहार की हार ने सोचने पर मजबूर जरूर कर दिया।
संभवत: यही कारण है कि UP के मिशन 2017 को फतह करने के लिए मोदी सरकार ने जनता के बीच अपने दूत भेजना तय किया।
मोदी सरकार के ये दूत समूचे उत्‍तर प्रदेश में घूम-घूमकर देखेंगे कि यहां केंद्र सरकार की योजनाएं किस स्‍थिति में हैं। योजनाओं की प्रगति संतोषजनक है या नहीं, उनका समुचित क्रियान्‍वयन हो पा रहा है या नहीं, और राज्‍य सरकार उनके क्रियान्‍वयन में अपेक्षित सहयोग कर रही है अथवा नहीं।
दूत के रूप में मोदी सरकार के मंत्री इस कार्य को करेंगे, और इसके लिए प्रत्‍येक मंत्री को दो-दो लोकसभा क्षेत्रों की जिम्‍मेदारी सौंपी गई है। मंत्रीगण 17 फरवरी को सीधे प्रधानमंत्री तक इस बावत अपनी रिपोर्ट पहुंचायेंगे।
इसी जिम्‍मेदारी का निर्वहन करने के लिए कृष्‍ण की जन्‍मस्‍थली मथुरा में केंद्रीय मंत्री गिरिराज सिंह को भेजा जा रहा है।
विश्‍व विख्‍यात धार्मिक जनपद होने का गौरव प्राप्‍त मथुरा, उत्‍तर प्रदेश के ऐसे चुनावी क्षेत्रों में शुमार है जहां से प्राप्‍त रिपोर्ट हांडी के एक चावल की तरह पूरे सूबे का राजनीतिक हाल बता सकती है। बशर्ते की रिपोर्ट लेने और देने में पूरी ईमानदारी बरती जाए।
भाजपा के अति वाचाल नेताओं में शामिल केंद्रीय मंत्री गिरिराज सिंह मिशन 2017 के तहत मथुरा जनपद से क्‍या रिपोर्ट लेकर जाते हैं और प्रधानमंत्री उसे किस रूप में लेते हैं, यह तो आने वाला वक्‍त ही बतायेगा अलबत्‍ता मथुरा की जनता मोदी सरकार के डेढ़ साला कार्य पर क्‍या कहती है, इसकी बानगी अवश्‍य मिलने लगी है।
अगर बात करें मथुरा की सांसद और गुजरे जमाने में बॉलीवुड से ‘ड्रीम गर्ल’ का खिताब प्राप्‍त अभिनेत्री हेमा मालिनी की तो उनसे जनता निश्‍चित तौर पर निराश है।
लोगों की मानें तो हेमा मालिनी के ”दूर-दर्शन” करना जितना आसान है, साक्षात्‍कार करना उतना ही कठिन। दूर-दर्शन पर आरओ सिस्‍टम बेचते उन्‍हें कभी भी और किसी भी चैनल पर देखा जा सकता है लेकिन किसी समस्‍या के लिए उनसे रुबरू होना आसान नहीं है। डेढ़ साल से होटल के एक कमरे को ही बतौर कार्यालय और ऑफिस इस्‍तेमाल करने वाली ‘ड्रीम गर्ल’ वास्‍तव में मथुरा की जनता के लिए अब तक ड्रीम गर्ल ही साबित हुई हैं।
जिस तरह वह पहले अपनी कोई फिल्‍म रिलीज होने के बाद पर्दे पर दिखाई देती थीं, उसी तरह अब मथुरा में किसी विशेष कार्यक्रम होने पर ही दिखाई देती हैं। आम जनता को तो पता ही नहीं चलता कि उनकी सांसद कब आईं और कब गईं।
इस बारे में एक ऐसे व्‍यक्‍ति की टीस काबिले गौर है जिसका कहना था कि उसने मोदी जी के आह्वान पर हेमा मालिनी के लिए यह सोचकर मतदान किया था कि वह इस धार्मिक जनपद को उसका गौरवशाली स्‍थान दिलायेंगी।
इस व्‍यक्‍ति के मुताबिक उसने मथुरा की समस्‍याओं के संदर्भ में सांसद हेमा मालिनी से एक-दो बार नहीं, कई बार मिलने का प्रयास किया किंतु हर बार उसे असफलता ही मिली।
इसी तरह के विचार अन्‍य तमाम लोगों ने व्‍यक्‍त किए और बताया कि मथुरा की जनता ने भले ही सम्‍मान पूर्वक हेमा को अपना प्रतिनिधि चुनकर लोकसभा में भेजा हो लेकिन चुने जाने के बाद हेमा ने मथुरा की जनता के लिए अपना एक ऐसा प्रतिनिधि चुन लिया है जो उन्‍हें जनता से दूर करता है।
जनार्दन शर्मा नामक हेमा मालिनी का यह प्रतिनिधि जनता के लिए किसी भी पैमाने से जनार्दन साबित नहीं हो रहा।
हेमा मालिनी के दूर से ही दर्शन लाभ संभव होने को लेकर कुछ अन्‍य व्‍यक्‍तियों की टिप्‍पणी भी बहुत कुछ कहती है।
उनके अनुसार इस तरह तो हेमा मालिनी को पर्दे पर वह पहले भी देखते रहे हैं, अभिनेत्री के रूप में उन्‍हें पहले से जानते भी हैं और पहचानते भी हैं। फिर उनके सांसद होने का क्‍या लाभ।
सांसद होने के नाते लोग उन्‍हें अपनी समस्‍याओं से अवगत कराना चाहते हैं, मथुरा के विकास की योजनाएं जानना चाहते हैं। वह उनसे पूछना चाहते हैं कि उनके लिए वोट मांगने आए मोदी जी ने यमुना को प्रदूषण मुक्‍त कराने का जो वायदा किया था, उसका क्‍या हुआ।
मथुरा की जनता अपनी सांसद से यह भी पूछना चाहती है कि इलाहाबाद हाई कोर्ट के आदेशों को ताक पर रखकर कृष्‍ण जन्‍मभूमि से चंद कदम दूरी पर घर-घर में पशुओं का अवैध कटान कब तक होता रहेगा। कब तक उन पशुओं का रक्‍त नाले-नालियों के माध्‍यम से सीधे यमुना के जल में समाहित होता रहेगा।
मथुरा में जलभराव की समस्‍या का समाधान होगा भी या नहीं और यहां बिजली, पानी आदि की किल्‍लत कभी खत्‍म हो पायेगी अथवा नहीं। मथुरा की सीमा में पड़ने वाला करीब 90 किलोमीटर लंबा राष्‍ट्रीय राजमार्ग और साथ ही अत्‍याधुनिक यमुना एक्‍सप्रेस वे कभी यात्रियों के लिए सुरक्षित हो पायेगा या नहीं।
जाहिर है कि ऐसी ही तमाम समस्‍याओं के बारे में मथुरा की जनता अपनी सांसद से तभी पूछ पायेगी जब वह उनसे मिल सकेगी, किंतु उनसे मिलना संभव ही नहीं है। सांसद चुने जाने के बाद डेढ़ साल में कभी सांसद महोदया ने मीडिया से भी कोई संपर्क स्‍थापित नहीं किया। कभी कोई प्रेस कॉफ्रेंस नहीं की और ना किसी मीडियाकर्मी के सामने अपनी योजनाओं का खुलासा किया।
हां, इस बीच मुंबई में वह अपनी डांस अकादमी के लिए महाराष्‍ट्र सरकार द्वारा आवंटित करोड़ों रुपए कीमत की जमीन के लिए जरूर मीडिया की सुर्खियां बनीं।
मथुरा में डेढ़ साल के दौरान उन्‍होंने ऐसा कोई काम नहीं किया जिसे रेखांकित करके भारतीय जनता पार्टी मिशन 2017 के लिए वोट मांग सके।
मोदी सरकार के दूत गिरिराज सिंह मथुरा के बावत चाहे जैसी रिपोर्ट प्रधानमंत्री को सौंपें और चाहे जिस रूप में पेश करें किंतु इतना तय है कि प्रधानमंत्री पद के प्रत्‍याशी की हैसियत से मोदी जी ने मथुरा की जनता से जो वायदे किए थे उन्‍हें हेमा मालिनी द्वारा पूरा करना तो दूर, उस दिशा में आगे भी बढ़ती नजर नहीं आ रहीं।
रहा सवाल, केंद्र सरकार द्वारा चलाई जा रहीं करीब एक दर्जन योजनाओं का तो वह भी बदहाली को प्राप्‍त हैं।
मथुरा की जनता का पूर्व में भी बाहरी जनप्रतिनिधियों के संबंध में अनुभव अच्‍छा नहीं रहा। हेमा मालिनी से पूर्व रालोद के युवराज चौधरी जयंत ने भी कृष्‍ण नगरी की जनता को निराश ही किया और उनसे पूर्व भाजपा की ही टिकट पर दो बार सांसद रहे स्‍वामी साक्षी महाराज ने भी।
मथुरा से इतर दूसरे जनपदों से मिल रहीं रिपोर्ट्स भी बताती हैं कि मोदी जी के नाम पर UP की जनता ने उम्‍मीद से कहीं अधिक भाजपा को जितने लोकसभा सदस्‍य दिए, उनमें से अधिकांश की कार्यप्रणाली अब तक जनअपेक्षाओं के अनुरूप नहीं रही है। ज्‍यादातर जनपदों में ऐसे कोई उल्‍लेखनीय विकास कार्य नहीं हुए हैं जो भाजपा की जीत का आधार बन सकें।
यूपी के चुनावों में अब भी करीब एक साल का समय बाकी है इसलिए बेहतर होगा कि भारतीय जनता पार्टी अपने सांसदों को जनअपेक्षाओं के अनुरूप सक्रिय करे और उन्‍हें जनता के बीच भेजकर फीडबैक ले, न कि केंद्रीय मंत्रियों की रिपोर्ट से काम चलाए।
सुरक्षा गार्डों से घिरे केंद्रीय मंत्री न तो एक या दो दिन में दो जनपदों की वास्‍तविक स्‍थिति का आंकलन कर सकते हैं और न केवल अधिकारियों और अपनी पार्टी के पदाधिकारियों से सच्‍चाई जान सकते हैं।
एक-दो दिन में दो जनपदों की जनता के मिजाज का रुख भांपने की कोशिश करना, सिर्फ लकीर पीटने की कोशिश करने जैसा है। ऐसी कोशिशों से मिशन 2017 फतह होने वाला नहीं है। यह बात भाजपा और मोदी जी जितनी जल्‍दी समझ लें, अच्‍छा है अन्‍यथा जिस तरह सांसद बनने के बावजूद हेमा मालिनी मथुरा की जनता के लिए ड्रीम गर्ल ही साबित हो रही हैं उसी तरह UP की जनता भी भाजपा और मोदी सरकार को सपने भले ही दिखा दे किंतु उन्‍हें हकीकत नहीं बनने देगी।
-सुरेन्‍द्र चतुर्वेदी

शनिवार, 13 फ़रवरी 2016

यह कथा है या व्‍यथा…दर्शन हैं या प्रदर्शन…मुक्‍ति का उपक्रम अथवा आसक्‍ति का क्रम ?

मृत्‍यु के भय तथा भौतिकता की अंधी दौड़ से मुक्‍ति का मार्ग दिखाने वाली श्रीमद्भागवत कथा  यदि व्‍यासपीठ पर विराजमान कथावाचक व आयोजक के रूप में मौजूद यजमान, दोनों के लिए ही व्‍यवसाय बन जाए और दोनों को ही मृत्‍यु के भय से मुक्‍त न कर सके तो निश्‍चित ही ऐसी ”कथा” सिर्फ ”व्‍यथा” बनकर रह जाती है।
सनातन धर्म में उल्‍लिखित अठारह पुराणों में से एक श्रीमद्भागवत कथा व्‍यासजी के पुत्र शुकदेव ने राजा परीक्षित को तब सुनाई थी जब वह तक्षक नाग से बुरी तरह भयभीत थे और मृत्‍यु का भय उनका किसी प्रकार पीछा नहीं छोड़ रहा था।
पौराणिक कथाओं के अनुसार तक्षक पाताल के आठ नागों में से एक कश्यप नामक नाग का पुत्र था और कद्रु के गर्भ से उत्पन्न हुआ था। श्रृंगी ऋषि का शाप पूरा करने के लिये राजा परीक्षित को अंतत: इसी ने काटा था।
राजा परीक्षित, तक्षक को लेकर इस कदर भयभीत थे कि श्रीमद्भागवत कथा भी उन्‍हें उस भय से मुक्‍त नहीं कर पा रही थी इसलिए कथा के सातवें और अंतिम दिन शुकदेव जी ने राजा परीक्षित को एक दृष्‍टांत सुनाया जो इस प्रकार था-
शुकदेव ने राजा परीक्षित को बताया कि शिकार के लिए निकला एक राजा अचानक आई तेज आंधी व तूफान के कारण जंगल में भटक गया। राजा के सैनिक भी उससे बिछुड़ गए। रात अधिक होने पर किसी एक आसरे की तलाश में राजा जब जंगल के अंदर भटक रहा था तो उसे दूर किसी झोंपड़ी में दीपक की लौ टिमटिमाती दिखाई थी।
थका-हारा और भयभीत राजा जब वहां पहुंचा तो उसने देखा कि झोंपड़ी के अंदर जगह-जगह हाड़-मांस तथा रक्‍त और पीव (मवाद) आदि बिखरा पड़ा है। तेज दुर्गंध फूट रही है। लेकिन कोई दूसरा उपाय न होने के कारण राजा ने आवाज लगाई तो अंदर से कोई कृषकाय वृद्ध बाहर निकला।
राजा ने वृद्ध को अपना परिचय दिया और एक रात झोंपड़ी के अंदर बिताने की इजाजत मांगी।
राजा के अनुरोध पर वृद्ध ने राजा से कहा, राजन मुझे तो आपके यहां ठहरने पर कोई आपत्‍ति नहीं है किंतु क्‍या आप हाड़-मांस तथा रक्‍त व पीव (मवाद) से सनी झोंपड़ी में रात बिता सकेंगे।
राजा के तैयार हो जाने पर वृद्ध ने कहा, ठीक है राजन। लेकिन मेरी एक शर्त है। शर्त यह है कि सूर्योदय होते ही आप यहां से चले जायेंगे। एक पल भी नहीं रुकेंगे।
राजा बोला, कैसी बातें करते हो। मैं कोई दूसरा उपाय न होने के कारण जैसे-तैसे रात काटने के लिए रुक रहा हूं। ऐसे में भला में सुबह क्‍यों ठहरुंगा।
इस वार्तालाव के बाद राजा उस झोंपड़ी में रुक गया। सूर्योदय होने पर राजा को नित्‍य कर्मों से निवृत होने की जरूरत महसूस हुई। थके-हारे राजा ने सोचा क्‍यों न निवृत होकर ही चला जाए, रास्‍ते में पता नहीं हालात कैसे हों।
एक ओर राजा जाने में देरी कर रहा था और दूसरी ओर वृद्ध, राजा से बार-बार अनुरोध कर रहा था कि वह अपने वचन के अनुसार अब झोंपड़ी छोड़ दें क्‍योंकि सूर्योदय कब का हो चुका है।
शुकदेव अभी अपना दृष्‍टांत पूरा भी नहीं कर पाए थे कि राजा परीक्षित ने उन्‍हें बीच में टोकते हुए पूछा- कौन राजा ऐसा मूर्ख था जो हाड़-मांस तथा रक्‍त व पीव (मवाद) से सनी दुर्गंधयुक्‍त झोंपड़ी छोड़ने को तैयार नहीं था। नित्‍यकर्म तो जंगल में कहीं भी निपटाए जा सकते थे।
राजा परीक्षित के इस प्रश्‍न पर शुकदेव जी ने उससे कहा- वह राजा तुम्‍हीं हो परीक्षित।
मनुष्‍य का पूरा शरीर हाड़-मांस से बना है। हाड़-मांस के अंदर रक्‍त व पीव की भरमार है। शरीर के अंदर तमाम दुर्गंधयुक्‍त अवशिष्‍ट मौजूद हैं, बावजूद इसके वह शरीर का मोह नहीं त्‍याग पाता।
वह भली प्रकार जानता है कि जिस प्रकार मनुष्‍य पुराने वस्‍त्र त्‍यागकर नए वस्‍त्र धारण करता है, उसी प्रकार आत्‍मा पुरानी देह त्‍यागकर नई देह धारण करती है किंतु सब-कुछ जानते व समझते हुए वह न तो मृत्‍यु के भय से मुक्‍त हो पाता है और ना ही भौतिकता की अंधी दौड़ से। जबकि मृत्‍यु ही एकमात्र शास्‍वत सत्‍य है। अब राजा परीक्षित समझ चुके थे।
लेकिन इस कलियुग में भागवत कथा के श्रवण को मुक्‍ति का एकमात्र मार्ग बताने वाले कथावाचक और उनके आयोजक यजमान क्‍या वास्‍तव में भागवत कथा का उद्देश्‍य पूरा कर पा रहे हैं। क्‍या वो स्‍वयं भी मृत्‍यु और भौतिकता की अंधी दौड़ से मुक्‍त हो पाते हैं।
गत दिनों वृंदावन में श्री प्रियाकांत जू महाराज मंदिर का भव्‍य लोकार्पण समारोह संपन्‍न हुआ है। यह लोकार्पण समारोह भाजपा के राष्ट्रीय अध्‍यक्ष अमित शाह के कर कमलों से संपन्‍न हुआ। अमित शाह के अतिरिक्‍त भी मंदिर के इस लोकार्पण समारोह में तमाम केंद्रीय मंत्री और प्रदेश के मंत्री शामिल हुए। लोकसभा अध्‍यक्ष सुमित्रा महाजन ने भी आयोजन में शिरकत की। उसके बाद से श्रीमद्भागवत कथा का आयोजन चल रहा है जिसकी व्‍यासपीठ पर देवकी नंदन ठाकुर विराजमान हैं।
भागवत वक्‍ता देवकी नंदन ठाकुर ही इस अतिभव्‍य प्रियाकांत जू महाराज के सर्वे-सर्वा हैं जिसका निर्माण विश्‍व शांति सेवा चैरिटेबल ट्रस्‍ट द्वारा बेहिसाब पैसा लगाकर किया गया है। लोकार्पण से पूर्व ही लााखों रुपए खर्च करके समारोह का भारी-भरकम प्रचार हुआ और दर्जनों विशिष्‍ट व अति विशिष्‍ट अतिथियों के आगमन की सूचना दी गई।
देवकी नंदन ठाकुर अकेले ऐसे भागवत वक्‍ता नहीं हैं जो अपनी कथा को भव्‍य और दिव्‍य बनाने का उपाय कर रहे हों, सभी प्रमुख भागवत वक्‍ता यही करते हैं। मृत्‍यु के भय और भौतिकता की अंधी दौड़ से मुक्‍ति का मार्ग दिखाकर जीवन के प्रति वैराग्‍य का भाव पैदा करने वाली भागवत कथा इस कलिकाल में बहुत अच्‍छे व्‍यवसाय का रूप धारण कर चुकी है। ऐसे व्‍यवसाय में परिवर्तित हो चुकी है जिसकी सफलता सौ प्रतिशत तय है।
यही कारण है कि देखते-देखते अनेक कथावाचक करोड़पति ही नहीं, अरबपति भी बन चुके हैं। बहुत से भागवत वक्‍ता तो विभिन्‍न व्‍यवसायों में अपना पैसा निवेश करने को बाध्‍य हैं अन्‍यथा उस पर कुदृष्‍टि पड़ने का खतरा मंडराने लगता है।
करोड़ों रुपए कीमत वाली लग्‍जरी गाड़ियों में घूमने, हवाई यात्राएं करने तथा देश-विदेश में भागवत कथा के भव्‍य व दिव्‍य आयोजन कराने वाले भागवत वक्‍ताओं के भौतिक सुख तो सर्वविदित हैं हीं, अब उनकी विशिष्‍ट दिखने की चाह भी सामने आने लगी है।
इसी प्रकार मृत्‍यु के भय से मुक्‍त कराने वाली श्रीमद्भागवत कथा, संभवत: उन्‍हें स्‍वयं को भय से मुक्‍त नहीं करा पा रही।
यदि ऐसा नहीं है तो किसी भागवत कथा के पंडाल से बाहर दर्जनों निजी सुरक्षा गार्डों की तैनाती किसलिए।
गौरतलब है कि देवकी नंदन ठाकुर जिस पंडाल में भागवत कथा कह रहे हैं, उस पंडाल से बाहर दर्जनों निजी सुरक्षा गार्डों की तैनाती की गई है। यह तैनाती किसलिए है और किसके लिए है, इसका जवाब या तो कथा के आयोजक दे सकते हैं या फिर व्‍यासपीठ पर विराजमान देवकी नंदन ठाकुर।
कारण जो भी हो, लेकिन एक बात तो यह तय है कि इस दौर में श्रीमद्भागवत कथा का आयोजन सिर्फ और सिर्फ व्‍यावसायिक रूप धारण कर चुका है और उसका धार्मिक रूप पूरी तरह तिरोहित हो गया है।
जिस तरह व्‍यावसायिक सफलता की गारंटी के कारण जगह-जगह कुकरमुत्‍तों की तरह निजी स्‍कूल व कॉलेज खड़े हो गए हैं, उसी तरह धार्मिक व्‍यवसाय में सफलता की गारंटी के कारण गली-गली और मोहल्‍ले-मोहल्‍ले भागवत कथा वक्‍ता पैदा हो गए हैं।
बहुत समय नहीं बीता जब भागवत कथा पर आये हुए चढ़ावे का खुद के लिए इस्‍तेमाल करना कथा वाचक एक प्रकार का पाप मानते थे लेकिन आज वही कथा वाचक भागवत के चढ़ावे से अपनी तिजोरियां भर रहे हैं। भक्‍ति व वैराग्‍य की ओर उन्‍मुख करने वाला ग्रंथ भौतिक सुखों की प्राप्‍ति का साधन बन गया है।
मृत्‍यु के भय से मुक्‍त कराने वाली कथा के आयोजन में दर्जनों निजी सुरक्षा गार्डों की तैनाती की जाती है।
कथा के आयोजन का ऐसा भव्‍य व दिव्‍य प्रदर्शन किसी परीक्षित को मृत्‍यु के भय से मुक्‍ति के लिए न होकर कथा वाचक में भक्‍ति और तमाम भौतिक सुखों में आसक्‍ति के लिए प्रेरित करता है।
भागवत कथा के व्‍यावसाईकरण का ही परिणाम है कि अब अनेक कथावाचक और आयोजक इसके आयोजन में बाकायदा हिस्‍सेदारी तय करते हैं। लाभ का बंटवारा उसी हिस्‍सेदारी के अनुपात से होता है क्‍योंकि धंधे के लिए भी धर्म से बड़ी कोई आड़ नहीं हो सकती। कालेधन की खपत के लिए धार्मिक आयोजन सबसे अधिक सुरक्षित रहते हैं। न कोई सवाल और न कोई जवाब। प्रायोजक भी खुश और आयोजक भी। ऊपर से चारों ओर जय-जयकार। धर्म की जय हो, अधर्म का नाश हो, प्राणियों में सद्भावना हो, विश्‍व का कल्‍याण हो…क्‍योंकि सभी के कल्‍याण में निहित है आयोजक और प्रायोजक दोनों का कल्‍याण।
ये कलियुग नहीं ये करयुग है…इस हाथ दे, उस हाथ ले। व्‍यासपीठ पर विराजमान कलियुग के शुकदेव और आयोजक के रूप में मौजूद यजमान राजा परीक्षित भली-भांति इस सत्‍य को जान चुके हैं कि यह दौर मुक्‍ति का नहीं आसक्‍ति का है। भौतिक सुखों से आसक्‍ति का दौर।
मुक्‍त होकर क्‍या मिलेगा, जो भी मिलेगा लिप्‍त होकर मिलेगा। इसलिए वह मौका मिलते ही कथा के साथ अपनी व्‍यथा सुनाने में देर नहीं करते ताकि भक्‍ति में लीन श्रोता कथा से अधिक उनकी व्‍यथा सुनकर व्‍यथित हो जाएं और सम्‍मोहित होकर पूरी तरह समर्पित हो सकें। उनके लिए भागवत कथा से बड़ा सत्‍य कथा वाचक की व्‍यथा हो जाए। फिर वो व्‍यथा, प्रियाकांत जू के बेमिसाल मंदिर का निर्माण कराना हो अथवा पंडाल के बाहर निजी सुरक्षा गार्डों की तैनाती हो। मंदिर के लोकार्पण में सत्‍ताधारी नेताओं की मौजूदगी का इंतजाम हो या फिर उनके माध्‍यम से सत्‍ता के गलियारों तक अपनी मजबूत पकड़ का प्रदर्शन करना हो।
इस दर्शन और प्रदर्शन के खेल में भागवत कथा अपना महत्‍व खो रही है या कथा वाचक अपना, फिलहाल यह तो कह पाना संभव नहीं है लेकिन इतना जरूर कहा जा सकता है कि दर्शन व प्रदर्शन का यह तमाशा बहुत दिनों तक नहीं चल पायेगा और जल्‍दी ही धर्म को धंधा बनाने वाले तथाकथित ”ठाकुरों” की यह जमात बेनकाब होगी।
-सुरेन्‍द्र चतुर्वेदी

शनिवार, 6 फ़रवरी 2016

DM बुलंदशहर बी. चन्द्रकला समेत 29 IAS अधिकारी डिफाल्टर, नहीं दिया संपत्‍ति का ब्‍यौरा

अपनी दबंग छवि की वजह से न सिर्फ यूपी बल्कि देश भर में युवाओं के बीच बेहद लोकप्रिय बुलंदशहर की DM बी. चन्द्रकला समेत 29 IAS अधिकारी अपनी संपत्ति का ब्यौरा देने में डिफाल्टर साबित हुए हैं।
हाल ही में अपने साथ सेल्फी खिंचवाने वाले युवक को जेल भिजवाने पर सुर्खियाँ बटोर रहीं बी. चन्द्रकला के अलावा 6 अन्य महिला आईएएस अधिकारी अपनी संपत्ति का ब्यौरा देने में असफल रही हैं।
गौरतलब है कि सिविल सेवा अधिकारियों को वर्ष 2014 के लिए 15 जनवरी 2015 तक अपनी संपत्ति का रिकॉर्ड प्रस्तुत करना था लेकिन एक वर्ष बीतने के बावजूद अभी तक इन अधिकारियों ने अपना ब्यौरा उपलब्ध नहीं कराया है।
2015 के लिए राज्य सरकार को 28 फरवरी तक सभी पदस्थ आईएएस अधिकारियों को संपत्ति का ब्यौरा उपलब्ध कराना है। ब्यौरा उपलब्ध न कराये जाने के बावत जब डीएम बुलंदशहर से जानकारी लेने की कोशिश की गई तो उधर से जवाब मिला कि मैडम अभी व्यस्त हैं ।
सास ससुर ने लखनऊ में दिया 55 लाख के फ़्लैट का गिफ्ट
अगर केंद्र सरकार के सामान्य प्रशासन एवं प्रशिक्षण विभाग के द्वारा दी गई जानकारी को देखा जाए तो पता चलता है कि बी चन्द्रकला की संपत्ति वर्ष 2011-12 केवल 10 लाख रुपए थी, जो कि वर्ष 2013-14 में लगभग एक करोड़ हो गई। 2011-12 में अपने गहने बेचकर और तनख्वाह के पैसे से चन्द्रकला ने आन्ध्र प्रदेश के उप्पल में 10 लाख का फ़्लैट ख़रीदा था। आज के समय में बी. चन्द्रकला के पास लखनऊ के सरोजिनी नायडू मार्ग पर अपनी बेटी कीर्ति चन्द्रकला के नाम से 55 लाख का फ़्लैट मौजूद है जिसके बारे में उन्होंने दावा किया है कि यह फ़्लैट उनके सास ससुर ने उन्हें गिफ्ट किया है। इसके अलावा आन्ध्र प्रदेश के अनुपनगर में भी उन्होंने 30 लाख का एक मकान अपने पैसे से ख़रीदा है जिससे वो 1.50 लाख रुपए सालाना की कमाई का दावा करती हैं। उनके पति रुमुलू अजमीरा के नाम एक खेती की जमीन भी करीम नगर में है।
पदोन्नति न देने का है प्रावधान
आन्ध्र प्रदेश के उस्मानिया विश्वविद्यालय से स्नातक और इसी विश्वविद्यालय से दूरस्थ शिक्षा के तहत परास्नातक करने वाली बी चन्द्रकला द्वारा संपत्ति का ब्यौरा न दिए जाने को लेकर यूपी कैडर के एक वरिष्ठ अधिकारी कहते हैं कि समय से संपत्ति का ब्यौरा न दिया जाना आश्चर्यजनक है। बी. चन्द्रकला जैसी अधिकारी से इन गंभीर विषयों की अवहेलना करने की उम्मीद कत्तई नहीं थी।
गौरतलब है कि सिविल सेवा नियमावली में यह साफ़ उल्लखित है की जो भी आईएएस अधिकारी प्रतिवर्ष 31 जनवरी तक अपनी संपत्ति का ब्यौरा उपलब्ध नहीं कराएगा उन्हें पदोन्नति नहीं दी जाएगी और अखिल भारतीय सेवा के अंतर्गत वरिष्ठ पदों के लिए उनका नाम भी आगे नहीं बढ़ाया जाएगा।
डिफाल्टर अधिकारियों की यह है सूची
नीचे उन आईएएस अधिकारियों की सूची दी गई हैं जिन्होंने आज की तारीख तक (2014 के लिए) अपनी संपत्ति का ब्यौरा सरकार को उपलब्ध नहीं कराया है।
1 Ms. Loretta Mary Vas (UP:1977)
2 Shri Shailesh Krishna (UP:1980)
3 Shri Rakesh Sharma (UP:1981)
4 Dr. Hari Krishna (UP:1981)
5 Dr. Surya Pratap Singh (UP:1982)
6 Shri Raj Pratap Singh (UP:1983)
7 Shri Atul Bagai (UP:1983)
8 Shri P V Jagan Mohan (UP:1987)
9 Shri Katru Rama Mohana Rao (UP:1994)
10 Shri Pragyan Ram Mishra (UP:1996)
11 Ms. Rita Singh (UP:1997)
12 Shri Anil Raj Kumar (UP:2000)
13 Shri Ajay Deep Singh (UP:2002)
14 Shri Sharad Kumar Singh (UP:2002)
15 Shri Bhagelu Ram Shastri (UP:2003)
16 Smt. Kanak Tripathi (UP:2003)
17 Shri Anita Srivastava (UP:2004)
18 Shri Suresh Kumar-I (UP:2004)
19 Shri Digvijay Singh (UP:2004)
20 Ms. S. Mathu Shalini (UP:2008)
21 Ms. B. Chandrakala (UP:2008)
22 Shri Vaibhav Shrivastava (UP:2009)
23 Shri Ashutosh Niranjan (UP:2010)
24 Ms. Neha Sharma (UP:2010)
25 Shri Andra Vamsi (UP:2011)
26 Ms. Chandni Singh (UP:2013)
27 Shri Raj Kamal Yada (UP:2013)
28 Shri Sunil Kumar Verma (UP:2013)
29 Shri Ravindra Kumar Mander(UP:2013)
-लीजेंड न्‍यूज़

शुक्रवार, 5 फ़रवरी 2016

वाह रे सेलेब्रिटी...UP सरकार से इन्‍हें भी चाहिए 50 हजार रु. की मासिक पेंशन

लखनऊ। क्रिकेट के ज़रिये करोड़ों रुपए कमाने वाले भारतीय क्रिकेट टीम के आल-राउंडर सुरेश रैना, मशहूर फिल्म अभिनेता और सांसद राज बब्बर सहित 100 से अधिक यश भारती सम्मान पाने वालों ने 50 हज़ार रुपये मासिक पेंशन के लिए आवेदन पत्र भेजा है.
उत्तर प्रदेश सरकार ने ये पेंशन योजना यश भारती और पद्म सम्मान पाने वाले उन लोगों के लिए शुरू की थी जिनका जन्मस्थान या कर्मभूमि उत्तर प्रदेश में हो.
यश भारती से सम्मानित 141 लोगों को प्रदेश के संस्कृति विभाग द्वारा पेंशन के लिए आवेदन पत्र का प्रारूप भेजा गया था.
आवेदन की अंतिम तारीख 31 जनवरी थी. इनमे से 108 लोगों ने पेंशन के लिए आवेदन किया है.
अमिताभ बच्चन, जया बच्चन और उनके बेटे अभिषेक बच्चन भी यश भारती से सम्मानित हैं लेकिन वे पेंशन लेने से मना कर चुके हैं.
पेंशन मांगने वाले अन्य लोग में राज बब्बर की पत्नी नादिरा बब्बर, अभिनेता जिमी शेरगिल, नवाज़ुद्दीन सिद्दीकी, शास्त्रीय गायिका गिरिजा देवी, रंगकर्मी राज बिसारिया, लोकगायिका मालिनी अवस्थी, क्रिकेटर मोहम्मद कैफ इत्यादि शामिल हैं.
संस्कृति विभाग की प्रमुख सचिव अनीता मेश्राम ने कहा कि अभी उन्होंने आवेदन पत्र नहीं देखे हैं इसलिए किस-किसने पेंशन के लिए फॉर्म भरा है ये बता पाना अभी मुमकिन नहीं है लेकिन इसी विभाग की अधिकारी अनुराधा गोयल ने इस बात की पुष्टि की है कि सुरेश रैना सहित 108 लोगों ने यश भारती पेंशन योजना के लिए आवेदन पत्र भेजा है.
अनुराधा गोयल ने बताया, “कुछ लोगों का कहना है कि ये लोग अमीर हैं, इन लोगों को पेंशन की क्या ज़रुरत है?
लेकिन इस पेंशन के लिए आर्थिक योग्यता आधार नहीं रखी गई है. इसे पाने के लिए व्यक्ति का गरीब होना ज़रूरी नहीं है.”
पिछले साल शुरू हुई इस योजना के लिए प्रदेश के बजट में अभी तक कोई प्रावधान नहीं था लेकिन अनुपूरक बजट के ज़रिये वो कमी पूरी कर दी गई है.
अनीता मेश्राम के अनुसार पेंशन उस दिन से दी जाएगी जिस दिन से आवेदन पत्र पर आदेश पारित किया जाएगा.
गोयल ने आवेदकों के फॉर्म दिखाने से मना कर दिया.

गुरुवार, 4 फ़रवरी 2016

बचे-खुचे खुरों से जमीन खोदते Mulayam singh

akhilesh yadav and mulayam singh yadav
समाजवादी पार्टी के मुखिया Mulayam singh क्‍या पार्टी में अब खुद को हाशिए पर महसूस करने लगे हैं, क्‍या वो उपेक्षित महसूस कर रहे हैं, अथवा पार्टी का राजनीतिक भविष्‍य उन्‍हें डराने लगा है?
कभी शेर की तरह दहाड़ने वाले मुलायम सिंह, अब अपनी पूरी ताकत लगाकर दहाड़ते भी हैं तो ऐसा लगता है जैसे बस गुर्रा रहे हैं और गुर्रा कर ही अपनी खीझ मिटा रहे हैं।
मुलायम सिंह की यह स्‍थिति यूं तो काफी समय से दिखाई दे रही है किंतु हाल ही में उनके द्वारा अखिलेश सरकार के मंत्रियों को दी गई चेतावनी से तो कुछ ऐसा ही साफ जाहिर हो रहा है।
गत दिनों समाजवादी नेता कर्पूरी ठाकुर की जयंती पर लखनऊ के पार्टी कार्यालय में आयोजित कार्यक्रम के दौरान मुलायम सिंह ने कहा कि प्रदेश के कुछ मंत्री सिर्फ पैसा कमाने में लगे हैं।
मंत्रियों के रवैये पर घोर नाराजगी जताते हुए सपा मुखिया ने यहां तक कहा कि पैसा ही कमाना था राजनीति में नहीं आना चाहिए था।
इस मौके पर उन्‍होंने अपने पुत्र और प्रदेश के मुख्‍यमंत्री अखिलेश यादव को भी चुगलखोरों से आगाह किया और कहा कि सुनो भले ही सबकी लेकिन निर्णय खुद लो।
उन्‍होंने यह भी स्‍वीकारा कि खुद उनके द्वारा कई मंत्रियों को विभिन्‍न अवसरों पर समझाया गया है लेकिन वह नहीं सुधर रहे।
इससे पहले भी मुलायम सिंह कई मर्तबा कभी अखिलेश को टारगेट करके तो कभी सीधे-सीधे ऐसी बातें कह चुके हैं किंतु प्रदेश सरकार के ढर्रे में कोई परिवर्तन दिखाई नहीं दिया नतीजतन कानून-व्‍यवस्‍था का हाल दिन-प्रतिदिन खराब ही हुआ है।
ऐसे में हर कोई जानना चाहता है कि क्‍या मुलायम सिंह अब अपने ही कुनबे के सामने इस कदर बेबस हो चुके हैं कि उन्‍हें अपनी पीड़ा जाहिर करने के लिए किसी न किसी मंच की दरकार होती है, या फिर वह सार्वजनिक मंच को माध्‍यम बनाकर बताना चाहते हैं कि पार्टी की नैया डूब रही है अगर बचा सको तो बचा लो।
वैसे तो राजनीति के ऊंट की करवट का अंदाज लगाना बड़े-बड़े दिग्‍गजों को मुश्‍किल में डाल देता है लेकिन मुलायम सिंह को इस मामले में महारथ हासिल है। मुलायम के फेंके हुए पासे राजनीति के धुरंधरों पर भारी पड़े हैं लेकिन बिहार को लेकर मुलायम सिंह का दांव उल्‍टा क्‍या पड़ा, पार्टी और परिवार में ही उनके खिलाफ अंदरखाने बगावती सुर उठने की खबरें हैं।
बताया जाता है कि परिवार ने ही मुलायम सिंह को अब चुका हुआ राजनेता मान लिया है और उनकी सोचने-समझने की शक्‍ति पर सवाल खड़े किए जाने लगे हैं।
इसका एक उदाहरण विगत माह तब भी देखने को मिला जब मथुरा में पत्रकारों के राष्‍ट्रीय संगठन IFWJ की राष्‍ट्रीय कार्यकारिणी का दो दिवसीय अधिवेशन हुआ था।
इस अधिवेशन में सपा सुप्रीमो के भाई और प्रदेश के कद्दावर नेता शिवपाल यादव ने भी बतौर मुख्‍य अतिथि शिरकत की थी।
अधिवेशन के दौरान IFWJ के राष्‍ट्रीय अध्‍यक्ष के. विक्रम राव ने शिवपाल यादव की राजनीतिक सूझ-बूझ को जहां सराहा वहीं बिहार को लेकर मुलायम सिंह यादव द्वारा लिए गए निर्णय पर जमकर निशाना साधा।
के. विक्रम राव के अनुसार शिवपाल यादव बिहार चुनाव में मुलायम सिंह द्वारा महागठबंधन से अलग होने के निर्णय पर अप्रसन्‍न थे लेकिन मुलायम सिंह ने उनकी बाात नहीं सुनी लिहाजा नतीजा सबके सामने है।
के. विक्रम राव ने देशभर से आये हजारों पत्रकारों के सामने कहा कि यदि मुलायम सिंह ने शिवपाल यादव की बात सुनी होती तो बिहार में आज उनकी और समाजवादी पार्टी की ऐसी दुर्गति नहीं हुई होती।
यहां सवाल यह नहीं है कि IFWJ के राष्‍ट्रीय अध्‍यक्ष के. विक्रम राव ने शिवपाल यादव की शान में कसीदे क्‍यों पढ़े, सवाल यह है कि हजारों पत्रकारों के सामने शिवपाल यादव यह सब मुस्‍कुराते हुए सुनते रहे और जब उनके बोलने की बारी आई तब भी इस विषय पर एक शब्‍द नहीं बोले।
मौन स्‍वीकृति का सूचक होता है, यह सर्वमान्‍य सत्‍य है। तो क्‍या शिवपाल यादव यह मानने लगे हैं कि मुलायम सिंह यादव की राजनीतिक समझ-बूझ अब चुक गई है।
शिवपाल यादव का मौन तो यही कह रहा था।
अखिलेश की कैबिनेट के मंत्रियों पर कर्पूरी ठाकुर के जयंती समारोह में सीधे-सीधे आरोप लगाने वाले मुलायम सिंह यादव यदि उन मंत्रियों को लेकर कोई निर्णय नहीं ले पा रहे तो साफ है कि कहीं न कहीं वह खुद को कमजोर मान रहे हैं। उन्‍हें लग रहा है कि अब उनकी एक आवाज पर तूफान आने का दौर बीत गया है। अब वह अपने बचे-खुचे खुरों से जमीन खोदकर अपनी मौजूदगी का अहसास तो करा सकते हैं किंतु टकराने का माद्दा नहीं रखते।
जमीन भी इसलिए खोद रहे हैं ताकि इतने बड़े कुनबे में कहीं मान-सम्‍मान शेष बना रहे वर्ना तो वह भी दांव पर लगते देर नहीं लगेगी।
शायद यही वजह है कि कभी वह रामजन्‍म भूमि के लिए आंदोलनरत रामभक्‍तों पर गोलियां चलवाने का प्रायश्‍चित करते प्रतीत होते हैं तो कभी अखिलेश के मंत्रियों की धनलोलुपता पर खीझ निकालते हैं। कभी कहते हैं कि राजनीति, व्‍यापार नहीं है और कभी बताते हैं कि उन्‍होंने तो जनता से ही पैसे मांगकर चुनाव लड़ा था।
कुल जमा ऐसा लगता है कि वह अपने ही परिवार में पनप चुकी दौलत और शौहरत की भूख पर लगाम लगाना चाहते हैं किंतु परिवार है कि पूरी तरह बेलगाम हो चुका है।
मुलायम सिंह पर बेशक उम्र का प्रभाव पड़ रहा हो, भले ही उनकी समझ-बूझ पर उंगली उठाई जाने लगी हों लेकिन इसमें कोई दो राय नहीं कि उनमें भविष्‍य को बांचने की समझ नए जमाने के नेताओं से कहीं अधिक है।
हो सकता है कि मुलायम सिंह आज अपने ही परिवार के फ्रेम में पूरी तरह फिट न बैठ पा रहे हों परंतु समाजवादी कुनबे का राजनीतिक भविष्‍य हमेशा उनकी तस्‍वीर का मोहताज रहेगा और जिस दिन उनकी तस्‍वीर को किसी कोने में टांग कर काम चलाने की कोशिश की गई, उस दिन पार्टी का ही काम तमाम हो जायेगा क्‍योंकि समाजवादी पार्टी में फिलहाल मुलायम सिंह यादव का स्‍थान लेने की योग्‍यता किसी के अंदर नजर नहीं आती…फिलहाल ही क्‍यों, दूर-दूर तक नजर नहीं आती।
-लीजेंड न्‍यूज़

ब्रजभूमि में भी सक्रिय हो रहा है Notorious अंतर्राष्‍ट्रीय आतंकी संगठन ISIS

http://legendnews.in/the-isis-notorious-international-terrorist-organization-has-been-active-in-brajbhumi/
-SIMI के पुराने सक्रिय सदस्‍यों और पदाधिकारियों से संपर्क साध रहे हैं Notorious ISIS के एजेंट
-LIU, IB तथा MI को भी भनक लेकिन नहीं उठाए जा रह कठोर कदम
-स्‍थानीय मीडिया, पुलिस-प्रशासन और सत्‍ताधारी पार्टी में अच्‍छी घुसपैठ बना चुके हैं संदिग्‍ध तत्‍व
विश्‍व का Notorious आतंकवदी संगठन ”इस्‍लामिक स्‍टेट ऑफ इराक एंड सीरिया” (ISIS) क्‍या ब्रजभूमि में भी सक्रिय हो रहा है?
क्‍या कृष्‍ण की नगरी में भी उसने अपनी गतिविधियां शुरू कर दी हैं?
इन सवालों के स्‍पष्‍ट उत्‍तर भले ही आज न मिल सकें किंतु इस विश्‍व प्रसिद्ध धार्मिक जनपद में ऐसी आशंकाएं पूरी तरह नजर आती हैं।
विश्‍वस्‍त सूत्रों से प्राप्‍त जानकारी के अनुसार ISIS ने मथुरा सहित समूचे ब्रज मंडल में उन तत्‍वों से संपर्क साधना शुरू कर दिया है जो पहले कभी किसी आतंकी संगठन का हिस्‍सा रहे हैं अथवा जिनकी रुचि ऐसे किसी संगठन में कभी रही है।
उल्‍लेखनीय है कि मथुरा शहर और जनपद में कुछ वर्ष पहले तक Students Islamic Movement of India (SIMI) काफी सक्रिय रहा है और यहां बाकायदा उसके पदाधिकारी भी हुआ करते थे। इन पदाधिकारियों की समय-समय पर धरपकड़ भी हुई और इस संगठन से जुड़े लोगों पर पुलिस-प्रशासन की पैनी नजर बनी रही।
शासन स्‍तर से प्रतिबंधित कर दिए जाने तथा कड़ाई बरते जाने के बाद इस धार्मिक जनपद में सिमी की गतिविधियां कुछ ठंडी जरूर पड़ीं किंतु पूरी तरह समाप्‍त कभी नहीं हुईं।
सिमी से जुड़े मथुरा के संदिग्‍धों ने इस दौरान अपना चोला बदल लिया लेकिन उनकी फितरत वही रही लिहाजा चोला बदल लेने के बावजूद वह संदिग्‍ध गतिविधियों में किसी न किसी प्रकार लिप्‍त रहे।
यही कारण है कि देश के किसी भी हिस्‍से में हुई आतंकी वारदातों के तार ब्रजभूमि से जुड़े, चाहे उसमें पुलिस को कोई बड़ी सफलता नहीं मिल पाई।
हाल ही में मथुरा से सटी हरियाणा की सीमा के मेवात क्षेत्र से एनआईए ने एक ऐसे कुख्‍यात आतंकवादी की गिरफ्तारी की थी जो अपने साथियों के साथ गणतंत्र दिवस पर किसी बड़ी वारदात को अंजाम देने की फिराक में था।
एनआईए ने उससे मिली जानकारी के बाद देश के तमाम दूसरे हिस्‍सों से भी आतंकवादियों की धरपकड़ की। फिलहाल उनसे पूछताछ जारी है।
मथुरा से हरियाणा का मेवात इलाका न केवल राष्‍ट्रीय राजमार्ग नंबर-2 के जरिए सीधे-सीधे जुड़ा है बल्‍कि मथुरा जनपद के ही थाना बरसाना क्षेत्र का गांव हाथिया भी मेवात से जुड़ा हुआ है। हाथिया अपने आपराधिक चरित्र के लिए देशभर में कुख्‍यात है और बड़े अपराधियों व आतंकवादियों की शरणस्‍थली के रूप में पहचाना जाता है।
हाथिया में एक ओर जहां टटलू काटने का काम बड़े स्‍तर पर होता है वहीं दूसरी ओर हर किस्‍म के अत्‍याधुनिक अवैध हथियारों का बड़ा अड्डा है। हाथिया में AK सीरीज के हथियार हर वक्‍त बिक्री के लिए उपलब्‍ध रहते हैं और दूसरे घातक हथियारों की खेप यहां से देश के विभिन्‍न क्षेत्रों को भेजी जाती है।
इस सबके अलावा चाहे मामला बड़े पैमाने पर हर तरह के वाहनों की चोरी का हो अथवा भैंस आदि को चुराकर उनकी फिरौती वसूलने का, हर मामले में हाथिया नंबर एक पर आता है। हाथिया के आपराधिक चरित्र वाले मेवात समुदाय का हरियाणा के मेवातों से रोटी-बेटी का संबंध है। इनकी यहां अच्‍छी-खासी रिश्‍तेदारियां हैं।
हाथिया और मेवात के अपराधी अपनी जुगलबंदी से मथुरा की सीमा में पड़ने वाले करीब 90 किलोमीटर लंबे NH-2 को हर वक्‍त दहलाए रहते हैं।
यह लोग वारदात को अंजाम देने के लिए खुलेआम लाल और नीली बत्‍ती वाली गाड़ियों का इस्‍तेमाल करते हैं और पुलिस इनके सामने पूरी तरह असहाय बनी रहती है।
हाथिया के अपराधियों का पुलिस में कितना खौफ है यह अंदाज इस बात से लगाया जा सकता है कि पुलिस हाथिया के अंदर किसी वांछित की गिरफ्तारी के लिए भी आसानी से नहीं जाती।
यदा-कदा जब जाती है तो इतनी बड़ी तादाद में कि समूचा हाथिया पुलिस की छावनी दिखाई देने लगता है। उसके बाद भी हाथिया के अपराधी पुलिस से टकराने में कतई नहीं चूकते।
हाथिया के अलावा मथुरा शहर में भी कुछ खास बस्‍तियां इस तरह की हैं जहां हर किस्‍म का अपराध तथा अपराधी संरक्षण पाते हैं और पुलिस यह बात बहुत अच्‍छी तरह जानती भी है किंतु वह कभी वहां दविश देने की हिमाकत नहीं करती।
अगर कभी पुलिस ने इन बस्‍तियों में घुसने का प्रयास भी किया है तो उसे मुंह की खानी पड़ी है। यह वही बस्‍तियां हैं जिनमें सिमी के पदाधिकारी भी रहते हैं और पड़ोसी मुल्‍क के लिए स्‍लीपर सैल की तरह काम करने वाले तत्‍व भी।
बताया जाता है IS ने बाकायदा ऐसे तत्‍वों की अपने स्‍तर से जानकारी एकत्र की है और उसके एजेंट अब इन्‍हें ISIS के लिए काम करने को तैयार कर रहे हैं।
सूत्रों के मुताबिक इस बात की भनक मथुरा की लोकल इंटेलीजेंस यूनिट सहित यहां तैनात आईबी के अधिकारियों को भी लग चुकी है और मिलेट्री इंटेलीजेंस को भी किंतु अभी तक उन्‍हें कोई बड़ी कामयाबी नहीं मिल सकी है।
इंटेलीजेंस ऐजेंसियों को कामयाबी न मिल पाने की एक वजह यह बताई जाती है कि नापाक इरादे वाले तत्‍व बड़े पैमाने पर पहले से ही पुलिस के अंदर तक अपनी पकड़ बनाए हुए हैं।
ऐसे तत्‍व पुलिस प्रशासन के आला अधिकारियों, सत्‍ताधारी पार्टी के नेताओं तथा आर्मी इंटेलीजेंस तक में घुसपैठ कर चुके हैं। कई तत्‍वों ने तो इसके लिए ‘मीडिया’ को आड़ बना रखा है। मीडियाकर्मी के रूप में यह लोग बड़ी आसानी से पुलिस, प्रशासन, शासन और यहां तक कि आर्मी में भी अंदर तक घुसे हुए हैं।
IS के एजेंट भी इन बातों से भली प्रकार वाकिफ हैं और इसीलिए उन्‍हें इनसे संपर्क साधने में कोई खास परेशानी नहीं होती।
आश्‍चर्य की बात यह है कि किसी दूसरे प्रदेश या राष्‍ट्रीय राजधानी क्षेत्र में एक गाड़ी भी चोरी हो जाती है तो हाई अलर्ट घोषित कर दिया जाता है किंतु ब्रजक्षेत्र में हर दिन बेहिसाब गाड़ियों की चोरी तथा लूट होती है किंतु यहां हाई अलर्ट घोषित करना तो दूर सेम डे एफआईआर भी दर्ज नहीं की जाती।
ऐसे में यह उम्‍मीद कैसे की जा सकती है कि स्‍थानीय पुलिस-प्रशासन IS जैसे अंतर्राष्‍ट्रीय आतंकी संगठन की गतिविधियों को समय रहते रोक पायेगा और उसके मंसूबों पर पानी फेरने में सफल होगा।
कहीं ऐसा न हो कि अब तक ”भेड़िया आया…भेड़िया आया” की रट को अपनी चिर-परिचित कार्यशैली से सुनने व देखने वाला पुलिस प्रशासन तभी चेते जब भेड़िया अपने नापाक मंसूबे पूरे कर पाने में सफल हो जाए और विश्‍व प्रसिद्ध यह धार्मिक स्‍थल भेड़ियों का शिकार बन चुका हो।
चूंकि मथुरा की भौगोलिक स्‍थिति हर किस्‍म के अपराध और अपराधियों के लिए काफी मुफीद है इसलिए बेहतर होगा कि शासन-प्रशासन समय रहते यहां मंडरा रहे खतरे को कठोर कार्यवाही करते हुए IS के मंसूबों पर पानी फेर दे अन्‍यथा स्‍थिति को हाथ से निकलने में बहुत देर नहीं लगेगी।
-लीजेंड न्‍यूज़

Corruption पर जस्‍टिस चौधरी की टिप्‍पणी: नमक से नमक खाने जैसी नसीहत

justice arun chaudhary of Bombay high court nagpur bench commented over Corruption
अदालत के दरवाजे पर मुकद्दमों की सुनवाई के लिए आवाज लगाने से लेकर अदालत के अंदर बैठे मोहर्रिर और पेशकार तक कौन सा ऐसा कर्मचारी है जो हर व्‍यक्‍ति से रिश्‍वत नहीं वसूलता। फिर चाहे वह वादी हो या प्रतिवादी
बॉम्बे हाई कोर्ट की नागपुर बेंच ने Corruption के एक मामले में सुनवाई के दौरान कल इस आशय की गंभीर टिप्‍पणी की कि यदि सरकारी तंत्र Corruption को रोकने में असफल है तो लोगों को टैक्‍स अदा न करके असहयोग आंदोलन छेड़ देना चाहिए।
चूंकि जस्टिस अरुण चौधरी ने यह टिप्‍पणी केस की सुनवाई के चलते की थी इसलिए इसे हाईकोर्ट का आदेश तो नहीं माना जा सकता लेकिन यह जरूर माना जा सकता है कि भ्रष्‍टाचार अब ऐसे पद पर बैठे लोगों को भी लाइलाज बीमारी लगने लगा है जो बहुत कुछ करने में सक्षम हैं। जिनका हर शब्‍द ध्‍यान आकृष्‍ट कराता है और हर टिप्‍पणी अहमियत रखती है।
बेशक न्‍यायालय और न्‍यायाधीशों को सरकारी तंत्र में व्‍याप्‍त खामियों पर टिप्‍पणी करने और आदेश-निर्देश देने का पूरा अधिकार है लेकिन क्‍या कोई न्‍यायालय अथवा न्‍यायाधीश ऐसी ही तल्‍ख टिप्‍पणी अपने यहां फैले बेहिसाब भ्रष्‍टाचार को लेकर करने की हिम्‍मत दिखायेगा।
न्‍यायपालिका इस देश के आम नागरिक की अंतिम आशा है। जब लोगों को चारों ओर से निराशा हाथ लगती है तब भी उसे न्‍यायपालिका से उम्‍मीद बंधी रहती है।
ऐसे में यदि न्‍यायपालिका भी उसी भ्रष्‍टाचार की शिकार हो, जिसे लेकर नागपुर बेंच के जस्‍टिस अरुण चौधरी ने एक गंभीर टिप्‍पणी की है तो लोग क्‍या करें और उससे कैसे निपटें।
कौन नहीं जानता कि आज आम आदमी के लिए किसी भी स्‍तर की न्‍यायपालिका से समय रहते फैसले करा पाना कितना मुश्‍किल है। वो भी तब जबकि तमाम विद्वान न्‍यायाधीश यह मान चुके हैं कि देर से किया गया न्‍याय, किसी अन्‍याय से कम नहीं है। ऐसा न्‍याय न केवल अपनी सार्थकता खो चुका होता है बल्‍कि अनेक सवाल भी खड़े करता है।
माना कि जरूरत से ज्‍यादा काम का बोझ, हर दिन बढ़ता जाता फाइलों का ढेर और व्‍यवस्‍थागत खामियों के कारण समय पर निर्णय देना इतना आसान नहीं है किंतु यदि लाइलाज बीमारी का रूप धारण कर चुके चारों ओर व्‍याप्‍त भ्रष्‍टाचार पर यदि कोई जस्‍टिस इतनी गंभीर टिप्‍पणी कर सकते हैं तो न्‍याय व्‍यवस्‍था की खामियों पर भी जरूर कर सकते हैं क्‍योंकि उन खामियों को दूर करना भी उसी तंत्र का काम है, किसी दूसरे का नहीं।
यदि बात करें जिला स्‍तरीय निचली अदालतों की तो वहां भी भ्रष्‍टाचार उसी अनुपात में व्‍याप्‍त है जिस अनुपात में दूसरे भ्रष्‍टतम सरकारी विभागों में फैला हुआ है।
अदालत के दरवाजे पर मुकद्दमों की सुनवाई के लिए आवाज लगाने से लेकर अदालत के अंदर बैठे मोहर्रिर और पेशकार तक कौन सा ऐसा कर्मचारी है जो हर व्‍यक्‍ति से रिश्‍वत नहीं वसूलता। फिर चाहे वह वादी हो या प्रतिवादी
क्‍या विद्वान न्‍यायाधीश उस एक कमरे में व्‍याप्‍त भ्रष्‍टाचार के इस खुले खेल से अनभिज्ञ हैं जिसे अदालत कहा जाता है और जो न्‍याय का मंदिर कहलाता है।
अपने एकदम बगल में बैठकर खुलेआम रिश्‍वत वसूले जाने का इल्‍म क्‍या विद्वान न्‍यायाधीश को नहीं होता, और यदि नहीं होता तो क्‍या उनके न्‍यायाधीश होने की योग्‍यता पर प्रश्‍नचिन्‍ह नहीं लगाता।
यदि अपने बगल में और एक कमरे के अंदर वसूली जा रही रिश्‍वत को न्‍यायाधीश नहीं रोक सकते तो क्‍या उन्‍हें देश में व्‍याप्‍त भ्रष्‍टाचार पर टिप्‍पणी करने का कोई नैतिक अधिकार रह जाता है। क्‍या ऐसी न्‍याय व्‍यवस्‍था से न्‍याय की उम्‍मीद की जा सकती है जो अपनी नाक के नीचे हो रहे भ्रष्‍टाचार को रोक पाने में असमर्थ है।
अधिकांश न्‍यायाधीश भी निचली अदालतों से प्रमोशन पाकर उच्‍च और उच्‍चतम न्‍यायालयों तक पहुंचते हैं इसलिए यह नहीं माना जा सकता कि वह निचली अदालतों की भ्रष्‍ट व्‍यवस्‍था से वाकिफ नहीं होते। वह भली-भांति जानते व समझते हैं कि तारीख पर तारीख के खेल का रहस्‍य क्‍या है और कैसे कोई सामर्थ्‍यवान व्‍यक्‍ति किसी मामले को अपने पक्ष में वर्षों-वर्षों तक लटकाये रखने में सफल रहता है।
जिला अदालतों की इस व्‍यवस्‍था से भी शायद ही कोई न्‍यापालिका या न्‍यायाधीश अनभिज्ञ हो जिसके तहत क्‍लैरीकल स्‍टाफ का एक बड़ा हिस्‍सा अवैध रूप से ठेके पर रख लिया जाता है और यह काम कोई अन्‍य नहीं, न्‍यायपालिका के ही कर्मचारी अपनी सुविधा के लिए करते हैं।
यह संभव नहीं है कि अवैध रूप से ठेके पर स्‍टाफ रखने जैसा निर्णय न्‍यायपालिका के द्वितीय श्रेणी कर्मचारी अपने स्‍तर से ले लेते हों, निश्‍चत रूप से इसमें संबंधित न्‍यायाधीशों की मूक सहमति शामिल होती होगी अन्‍यथा आज तक किसी न्‍यायाधीश ने कभी इस पर टिप्‍पणी क्‍यों नहीं की।
आम आदमी से इस बावत यदि कोई न्‍यायाधीश उसकी प्रतिक्रिया पूछने बैठें तो उन्‍हें साफ-साफ पता लग सकता है कि वो क्‍या सोचता है।
अदालत की चारदीवारी से बाहर किसी को भी यह कहते सुना जा सकता है कि यहां की तो ईंट-ईंट पैसा मांगती है…और यह भी कि कर्मचारियों द्वारा अदालत के अंदर उगाहे गए पैसों से ”साहब” की भी किचन का खर्चा चलता है।
जो भी हो, लेकिन इसमें शायद ही किसी की राय भिन्‍न होगी कि अदालतों की ईंट-ईंट पैसा मांगती है और तारीख लेने से लेकर न्‍याय पाने तक के लंबे रास्‍ते में पैसों का ढेर ही अंतत: काम आता है। फिर चाहे यह पैसा वकीलों के माध्‍यम से आता-जाता हो अथवा किसी अन्‍य माध्‍यम से।
ऐसा नहीं है कि समूची न्‍यायपालिकाएं और हर वकील इस व्‍यवस्‍था का हिस्‍सा हों या वो इसे स्‍वेच्‍छा से स्‍वीकार कर रहे हों। न्‍यायाधीशों और अधिवक्‍ताओं का एक हिस्‍सा भी इस व्‍यवस्‍था से बेहद दुखी और परेशान है लेकिन वह संख्‍याबल के सामने मजबूर हैं।
संख्‍याबल का अंदाज इस बात से लगाया जा सकता है कि आज यदि कोई किसी जिला अदालत में मौजूद कुल न्‍यायाधीशों की संख्‍या में से ईमानदार अधिकारियों का नाम पूछने बैठ जाए तो पता लगेगा कि एक हाथ की कुल चार उंगलियों तक पहुंचना मुश्‍किल हो जायेगा। ज्‍यादातर जिला अदालतों में वर्तमान भ्रष्‍ट व्‍यवस्‍था के हिमायतियों की संख्‍या, ईमानदार अधिकारियों को बहुत पीछे छोड़ देगी। जाहिर है कि ऐसे अधिकारियों से न्‍याय पाने के लिए अधिवक्‍ताओं को भी उन्‍हीं के ढर्रे पर चलना पड़ता है अन्‍यथा न वकालत चलेगी और न वकील। दोनों के लिए काले कोट की पहचान बना पाना असंभव हो जायेगा।
भ्रष्‍टाचार के इस खेल में रही-सही कसर वहां पूरी हो जाती है जहां न्‍यायाधीशों के विशेष अधिकार, उनका विवेक और चुनौतियों से परे उनके कर्तव्‍य आड़े आ जाते हैं। वहां आम आदमी हो या खास, सब बेबस होते हैं।
कहने के लिए पूरी न्‍याय प्रक्रिया वादी और प्रतिवादी के लिए तय नियम-कानूनों से भरी पड़ी है किंतु जब बात आती है न्‍यायाधीशों के विशेष अधिकार की, स्‍व विवेक से निर्णय लेने की तो वहां किसी की नहीं चलती। इन्‍हीं विशेषाधिकारों तथा स्‍व विवेकी निर्णयों में ”बहुत कुछ” निहित है। वो न्‍याय व्‍यवस्‍था भी जिसकी अंतिम आशा प्रत्‍येक वादी-प्रतिवादी को होती तो है किंतु जो उसे हासिल नहीं है।
जहां तक प्रश्‍न Bombay high court की नागपुर बेंच के न्‍यायाधीश अरुण चौधरी की Corruption को लेकर की गई टिप्‍पणी का है तो नि:संदेह उनकी टिप्‍पणी व्‍यवस्‍थागत खामियों की भयावहता को उजागर करती है लेकिन उसमें उनकी निजी भावनाओं का समावेश अधिक है, अपेक्षाकृत वास्‍तविकता के क्‍योंकि वास्‍तव में न आम आदमी टैक्‍स देना बंद कर सकता है और न वर्तमान व्‍यवस्‍थाएं भ्रष्‍टाचार के भस्‍मासुर से निपटने की क्षमता रखती हैं।
हो सकता है तो केवल इतना कि आम आदमी के असहयोग आंदोलन से रही-सही व्‍यवस्‍थाओं पर भी अव्‍यवस्‍थाएं हावी हो जाएं। समाज निरंकुश हो जाए और अराजकता पूरे सिस्‍टम पर हावी हो जाए।
व्‍यवस्‍था से आजिज कोई भी शख्‍स या संस्‍था जब कानून-व्‍यवस्‍था को अपने हाथ में ले लेता है अथवा अपने हिसाब से उसका आंकलन करने लगता है तो उसके गंभीर परिणाम देश व समाज दोनों को भुगतने पड़ते हैं।
बेहतर होगा कि न्‍यायपालिकाएं और न्‍यायाधीश भी भ्रष्‍टाचार जैसी गंभीर समस्‍या को न तो सिर्फ सरकारी तंत्र तक सीमित करके देखें और न सिर्फ टिप्‍पणी करके अपने कर्तव्‍य की इतिश्री कर लें।
यदि वाकई भ्रष्‍टाचार को लेकर वो व्‍यथित हैं और इसे कम करना चाहते हैं तो शुरूआत अपने अधिकार और कर्तव्‍यों से करें।
सरकार का हर तंत्र और तंत्र की छोटी से छोटी इकाई जब तक इसकी शुरूआत अपने यहां से नहीं करेगी, तब तक जस्‍टिस अशोक चौधरी जैसे अधिकारियों की टिप्‍पणियों के कोई मायने नहीं होंगे। कोई परिवर्तन नहीं आयेगा। किसी के कानों पर जूं नहीं रेंगेगी, क्‍योंकि एक कड़वा सच यह भी है कि नमक से नमक नहीं खाया जा सकता।
भ्रष्‍टाचार में आकंठ डूबकर भ्रष्‍टाचार मिटाने की बात करना हास्‍यास्‍पद प्रतीत होता है, चाहे वह बात न्‍यायपालिका के स्‍तर से ही क्‍यों न कही गई हो।
-सुरेन्‍द्र चतुर्वेदी
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