सोमवार, 23 जनवरी 2023

वैध कॉलोनियों में चल रहे अवैध निर्माण कार्य बने विकास प्राधिकरण की मोटी रिश्वत का जरिया


 











उत्तर प्रदेश में जिन सरकारी विभागों को 'भ्रष्‍टाचार का पर्याय' माना जाता है, उनमें विकास प्राधिकरण का नाम प्रमुखता से लिया जा सकता है। संभवत: इसीलिए आम आदमी की भाषा में इसे 'विनाश प्राधिकरण' कहते हैं। प्रदेश में योगी आदित्यनाथ के नेतृत्व वाली बीजेपी की सरकार बनने के बाद भ्रष्‍टाचार को लेकर 'जीरो टॉलरेंस' की नीति अख्‍तियार करने का ऐलान किया गया। 2017 में पहली बार सीएम की कुर्सी पर काबिज हुए योगी आदित्यनाथ ने 25 मार्च 2022 को दूसरी बार मुख्‍यमंत्री पद की शपथ ली। इस तरह इस साल मार्च में उन्‍हें पूर्ण बहुमत के साथ यूपी की सत्ता संभाले हुए 6 वर्ष पूरे हो जाऐंगे। 

इस दौरान गोरक्ष पीठाधीश्वर महंत अवैद्यनाथ के उत्तराधिकारी योगी आदित्‍यनाथ ने उत्तर प्रदेश को 'उत्तम प्रदेश' बनाने के प्रयास में कोई कसर नहीं छोड़ी, बावजूद इसके भ्रष्‍टाचार को लेकर 'जीरो टॉलरेंस' की नीति प्रभावी दिखाई नहीं देती। 
रिस्क अधिक तो रिश्वत भी अधिक
सच्चाई तो यह है कि तमाम सरकारी विभागों के अधिकारी और कर्मचारियों ने योगीराज की इस नीति को बड़ी चालाकी से अपने पक्ष में करके रिश्वत के रेट बढ़ा दिए हैं। इन विभागों में साफ-साफ कहा जाता है कि अब रिस्क अधिक है इसलिए काम कराने के पैसे भी अधिक देने होंगे। विकास प्राधिकरण इन विभागों में सबसे ऊपर आता है। 
वैसे तो किसी भी अवैध निर्माण को पहले चुपचाप होते देखना और फिर मौका देखते ही उसे भुना लेना विकास प्राधिकरण के अधिकारियों की पुरानी फितरत है, लेकिन अब स्‍थिति यहां तक जा पहुंची है कि 'वैध कॉलोनियों' में किए जा रहे 'अवैध निर्माण' को भी विभाग ने 'दुधारू गाय' बना लिया है। 
 भरपूर भ्रष्‍टाचार के लिए अपनाई गई विकास प्राधिकरण की इस नई नीति का नतीजा है कि आज अप्रूव्‍ड और स्‍थापित पॉश कॉलोनियों में भी लोग बेखौफ होकर अवैध निर्माण कर रहे हैं, जिससे न सिर्फ इन कॉलोनियों की सुंदरता नष्‍ट हो रही है बल्‍कि सड़कें संकरी और पार्क आदि नष्‍ट-भ्रष्‍ट किए जा रहे हैं। 
खबर के साथ दिखाए गए चित्र कृष्‍ण की पावन जन्मस्‍थली मथुरा में स्‍थित पॉश कॉलोनी 'श्री राधापुरम एस्टेट' के हैं। नेशनल हाईवे के किनारे बसी इस कॉलोनी में दो कमरे के एक मकान की कीमत सवा करोड़ रुपए से अधिक है, जिसे खरीद पाना सामान्‍य जन के लिए आसान नहीं। 
मशहूर रियल स्‍टेट कारोबारी 'श्री ग्रुप' द्वारा 15 वर्ष पूर्व करीब 58 एकड़ में विकसित की गई इस कॉलोनी की खूबसूरती तब इसलिए चर्चा का विषय थी कि यहां बनाए गए सभी एक मंजिला मकान रूप-रंग में समान थे और उनके चारों ओर दर्जनों बेहतरीन पार्क बने थे। 
लगभग एक हजार मकानों वाली इस कॉलोनी में आज की स्‍थिति यह है कि दस प्रतिशत मकान ही अपने मूल स्‍वरूप में बचे हैं। नब्बे प्रतिशत मकानों का पूरा नक्शा बदल दिया गया है। कुछ मकान तो पूरी तरह ध्‍वस्‍त करके दोबारा खड़े किए जा रहे हैं लेकिन कोई कुछ बोलने वाला नहीं। नक्शा पास कराए बिना अनेक मकानों का निर्माण एक मंजिल से दो और तीन मंजिल तक जा पहुंचा है परंतु सबकी सेटिंग हो जाती है।    
कहने के लिए कॉलोनी का संचालन एक रजिस्‍टर्ड सोसायटी करती है लेकिन वह सिर्फ मेंटीनेंस चार्ज वसूलने तक सीमित है। फिर चाहे कोई मकान का नक्‍शा बदल ले, एक मंजिला से बहु मंजिला बना ले, पार्कों पर कब्‍जा कर ले या उन्‍हें बर्बाद कर दे, सोसायटी के पदाधिकारियों का इससे कोई लेना-देना नहीं। 
यही कारण है कि आज सर्वाधिक पॉश कॉलोनियों में शुमार 'श्री राधापुरम एस्टेट' के अधिकांश निवासी मनमानी करते देखे जा सकते हैं। 
हां, उनकी इस मनमानी का पूरा लाभ विकास प्राधिकरण उठा रहा है। नवधनाढ्यों की यह कॉलोनी आज उनके लिए मोटी अतिरिक्‍त आमदनी का बड़ा जरिया बन चुकी है। 
बात चाहे मकान का नक्शा बदलने की हो या फिर उसे रीसेल करने की। हर हाल में विकास प्राधिकरण के अधिकारियों की बन आती है। वो मौका मुआयना करने के बाद खुद ही बता देते हैं कि गैर कानूनी कार्य को किस तरह 'कानूनी जामा' पहनाना है और उसकी कीमत कितनी होगी। 
उदाहरण के लिए यदि किसी ने अपने दो मंजिला मकान का सौदा पौने दो करोड़ रुपए में किया है लेकिन कागजों पर वह एक मंजिला ही है क्योंकि कॉलोनी केवल एक मंजिला मकानों के लिए अप्रूव्‍ड हुई थी। अब ऐसे में मकान की रजिस्‍ट्री भी उसके मूल स्‍वरूप में संभव है लिहाजा रजिस्‍ट्री ऑफिस यथास्थिति दर्शाने का सुविधा शुल्‍क अपने हिसाब से वसूलता है, वो भी तब जबकि विकास प्राधिकरण से हरी झंडी मिल जाती है। 
हरी झंडी दिखाने से पहले विकास प्राधिकरण के अधिकारी प्रथम तो रीसेल हो रहे मकान का स्‍थलीय निरीक्षण करते हैं, और फिर अवैध निर्माण सहित स्‍टांप ड्यूटी हड़प जाने तक का गुणा-भाग निकाल कर अपनी जेब गरम करते हैं। इस क्रिया में सरकार को लगने वाले चूने का लेखा-जोखा आंक कर सौदेबाजी की जाती है ताकि कोई पक्ष घाटे में न रहे। 
यह एक पॉश कॉलोनी तो योगी सरकार की भ्रष्‍टाचार को लेकर अपनाई गई 'जीरो टॉलरेंस' नीति को भुनाने में अपनाई जा रही इस ट्रिक का उदाहरण भर है, अन्‍यथा ब्रज की दूसरी दर्जनों कॉलोनियों से लेकर प्रदेश भर की वैध कॉलोनियों में इसी ट्रिक से अवैध निर्माण कराया जा रहा है और इससे अपनी तिजोरियां भर रहे हैं विकास प्राधिकरण के अधिकारी तथा कर्मचारी। 
सरकारी खजाने को चूना लगाने की यह ट्रिक चूंकि खरीदने और बेचने वालों के लिए भी मुफीद है इसलिए वो इस पर चुप रहने में ही अपनी भलाई समझते हैं। 
इस ट्रिक का सबसे ज्‍यादा इस्‍तेमाल तब से शुरू हुआ है जब से नई कॉलोनियों के निर्माण में कमी आई है और रियल एस्‍टेट का कारोबार मंदा पड़ा है। 
यदि सरकार अब भी इस ओर ध्‍यान दे तो एक ओर जहां अच्‍छी-खासी वेलडेवलप कॉलोनियां बदसूरत होने से बच सकती हैं वहीं दूसरी ओर वैध व व्‍यवस्‍थित तरीके से निर्माण कराकर सरकारी खजाना भी भरा जा सकता है। वर्ना तो भ्रष्‍टाचार रोकने के लिए बनी जीरो टॉलरेंस नीति इसी तरह सरकारी अधिकारी और कर्मचारियों के लिए वरदान साबित होती रहेगी, साथ ही विकास की बजाय विनाश का कारण भी बनेगी। 
-सुरेन्‍द्र चतुर्वेदी  
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