कथित तौर पर पार्टी को तोड़ने के जिम्मेदार कांग्रेस के 'चिर कुंवर' राहुल बाबा अब 'भारत जोड़ने' निकल पड़े हैं। अपने जीवन के करीब 150 बहुमूल्य दिन वह भारत जोड़ने में जाया करने वाले हैं। हालांकि उन्होंने फिलहाल यह नहीं बताया कि वह किस भारत को जोड़ने पर आमादा हैं।
राहुल बाबा वर्षों से लोगों को बता रहे हैं कि भारत एक नहीं, दो हैं। एक अमीरों का भारत जिसे वो अडानी-अंबानी का भारत बताते हैं और दूसरा गरीबों का भारत जिसे वो अपना मानकर चलते हैं। जाहिर है कि वो अपने वाले भारत को ही जोड़ने निकले होंगे क्योंकि अंबानी-अडानी वाला भारत मोदी जी का भारत है। उसे वो क्यों जोड़ने लगे।
बहरहाल, मुंह में चांदी की चम्मच लेकर पैदा हुए अरबपति परिवार के उत्तराधिकारी राहुल बाबा को लगता है कि भारत एक खिलौना है जो उनके हाथ से छीन लिया गया है, और जिन्होंने छीना है वो इस खिलौने से खेलने लायक नहीं हैं। वह इसे खंडित कर रहे हैं।
राहुल की सोच वाला एक और तबका है, और वो भी भारत जोड़ने निकला हुआ है। यह तबका है विपक्ष। इस तबके में शामिल लोगों के अनुसार विपक्ष ही असल भारत है, लिहाजा विपक्ष एकजुट हो गया तो समझो भारत जुड़ गया। लेकिन परेशानी यह है कि इस तबके के लोग सिर्फ 'दल' जोड़ने की बात कर रहे हैं, 'दिल' जोड़ने की नहीं। उनके दिलों के बीच 'पीएम पद' आड़े आ रहा है।
जिस प्रकार उच्चकोटि के मनुष्य जीवन पर्यन्त मात्र मोक्ष की कामना में लगे रहते हैं, उसी प्रकार हर नेता की कामना होती है कि येन-केन-प्रकारेण वह एकबार पीएम पद प्राप्त कर ले तो 'इहिलोक' के साथ-साथ शायद 'परलोक' भी सुधर जाएगा। 'पूर्व प्रधानमंत्री' के तमगे वाली कुर्सी वहां भी साथ ले जा सकेंगे। 'चित्रगुप्त' फिर जनसामान्य की तरह व्यवहार नहीं कर पाएंगे। विशिष्टता साथ चिपकी होगी।
यही कारण है कि विपक्ष के भारत जोड़ो अभियान की सफलता में 'नायकों' की संख्या आड़े आ रही है। प्रधानमंत्री का पद एक है किंतु उस पर दावा करने वाले विपक्षी अनेक हैं।
ओलम का पहला अक्षर होने के नाते 'अरविंद' (केजरीवाल) से शुरू करें तो अखिलेश यादव कहते हैं कि मेरा नाम भी 'अ' से प्रारंभ होता है। केसीआर की मानें तो हिंदी वर्णमाला के व्यंजन जहां से शुरू होते हैं वो उनके नाम का पहला अक्षर है। इसलिए वही उचित होगा। ममता बनर्जी कहती हैं कि उनके नाम में पहले आदरणीय आता है, उसके बाद बनर्जी, और फिर अंत में ममता। 'अल्फाबेट' के अनुसार उनका नाम में A के साथ B जुड़ा है इसलिए वही पीएम पद की मौलिक हकदार हैं। उनके सामने न तो 'अरविंद' का 'केजरीवाल' टिकता है और न कल्वाकुंतला चंद्रशेखर राव यानी केसीआर के हिज्जे K C R कहीं मुकाबला कर सकते हैं।
सुशासन बाबू का 'सु' त्यागकर शासन पर काबिज रहने वाले नीतीश कुमार कह तो ये रहे हैं कि उनके मन में पीएम पद की कोई अभिलाषा नहीं है किंतु उनकी यह बात कोई मान नहीं रहा। लोग कह रहे हैं कि पलटी मारने में उनका कोई सानी नहीं है, यह वो बार-बार सिद्ध कर चुके हैं इसलिए जो वो कह रहे हैं, उसका 'पलट' अभी से मानकर चलने में ही भलाई है।
यूं भी राबड़ी पुत्र पहले दिन से माला फेर रहे हैं कि 'चचा नीतेशे बाबू' की नजर दूर की कुर्सी पर अटकी रहे तो वो पास की कुर्सी खिसका लें और देश-दुनिया को बता दें कि 'पलटूराम' के खिताब पर किसी एक का अधिकार नहीं ना है।
कन्याकुमारी से भारत जोड़ने निकले राहुल बाबा का दावा है कि पीएम पद के एकमात्र स्वाभाविक एवं योग्य प्रत्याशी सिर्फ और सिर्फ वही हैं। नेहरू से चलकर गांधी तक के सरनेम देखेंगे तो सबकुछ साफ हो जाएगा। वाड्रा को बाद में देख लीजिएगा।
नेहरू-गांधी ने 3 पीएम देश को दिए हैं। राहुल बाबा पहले भी कई बार पूछ चुके हैं कि मेरे पास तीन-तीन पीएम की विरासत है, तुम्हारे पास क्या है....हैं ?
जो भी हो... कुल मिलाकर पीएम की कुर्सी को खंड-खंड करने में व्यस्त भारत को अखंड कैसे करेंगे, इसका तो पता नहीं किंतु इतना जरूर पता है कि भारत हो या पीएम की कुर्सी, उसका विभाजन जिन्होंने किया है वही अब उसे जोड़ने निकले हैं।
यहां 1947 वाले 'विभाजन' की बात नहीं की जा रही, अमीर-गरीब वाले भारत की बात की जा रही है। वैसे कोई कुछ भी समझने को स्वतंत्र है। परतंत्र हैं तो बस हम और आप जैसे लोग जिन्हें यही नहीं पता कि भारत को तोड़ने और जोड़ने की परिभाषा अलग-अलग क्यों है, और हर दिन लोकतंत्र की हत्या होने के बावजूद वह दुनिया का सबसे बड़ा लोकतंत्र कैसे बना हुआ है।
-सुरेन्द्र चतुर्वेदी