शनिवार, 14 नवंबर 2015

पेट्रोल तथा डीजल की तस्‍करी को बढ़ावा दे रही है अखिलेश सरकार

-वैट की असंगत नीति के चलते यूपी में पेट्रोल व डीजल दूसरे राज्‍यों से काफी महंगा
-बॉर्डर के पेट्रोल पंप संचालक भी तस्‍करी का पेट्रोल-डीजल बेचने पर मजबूर
-उत्तर प्रदेश पेट्रोलियम ट्रेडर्स एसोसिएशन ने मुख्य सचिव के सामने उठाया मुद्दा
-जुलाई में भी पेट्रोलियम ट्रेडर्स एसोसिएशन ने की थी हड़ताल
क्‍या आपको मालूम है कि अखिलेश यादव के नेतृत्‍व वाली समाजवादी पार्टी की सरकार ने पेट्रोल और डीजल पर वैल्‍यू एडड टैक्‍स यानि वैट की जिस पॉलिसी को अपना रखा है उसके कारण उत्‍तर प्रदेश में पेट्रोल तथा डीजल की न सिर्फ कीमतें देश के अधिकांश राज्‍यों से काफी अधिक हैं बल्‍कि इसी कारण यहां पड़ोसी राज्‍यों से इन पदार्थों की बड़े पैमाने पर तस्‍करी की जा रही है।
पड़ोसी राज्‍यों हरियाणा, राजस्‍थान और दिल्‍ली में उत्‍तर प्रदेश की अपेक्षा पेट्रोल व डीजल की कीमतें काफी कम होने के कारण इन पदार्थों की सर्वाधिक तस्‍करी इन राज्‍यों से की जा रही है और उसका खामियाजा भुगत रहे हैं इन राज्‍यों की सीमा पर स्‍थापित पेट्रोल व डीजल पंपों के अधिकृत विक्रेता।
गत माह जुलाई में उत्‍तर प्रदेश के करीब 6300 पेट्रोल पंप संचालकों ने इस मुद्दे को लेकर हड़ताल भी की थी किंतु उसका कोई प्रभाव सरकार पर नहीं पड़ा लिहाजा उत्तर प्रदेश पेट्रोलियम ट्रेडर्स एसोसिएशन ने मुख्य सचिव आलोक रंजन के साथ हुई बैठक के दौरान फिर इस मुद्दे को उठाया है।
दरअसल, 22 जुलाई को उत्‍तर प्रदेश सरकार ने अपने एक निर्णय द्वारा पेट्रोल और डीजल पर प्रति लीटर वैट निर्धारित कर दिया जो इन पदार्थों की बेस कीमत का क्रमश: 26.8 प्रतिशत तथा 17. 5 प्रतिशत बैठता है।
इसके अलावा मथुरा रिफाइनरी को कच्‍चे तेल की सप्‍लाई लेने पर 5 प्रतिशत प्रवेश अलग से देना होता है। इस तरह उत्‍तर प्रदेश में पेट्रोल व डीजल उपभोक्‍ताओं को प्रति लीटर क्रमश: करीब 18 प्रतिशत तथा 11 प्रतिशत टैक्‍स देना पड़ता है जो दूसरे राज्‍यों से काफी अधिक है और जिस कारण यहां पेट्रोल व डीजल के दाम पड़ोसी राज्‍यों से भी बहुत ज्‍यादा हैं।
उत्‍तर प्रदेश सरकार की इस नीति का तेल माफिया जमकर लाभ उठा रहे हैं और वो पड़ोसी राज्‍यों से उत्‍तर प्रदेश में पेट्रोल व डीजल की तस्‍करी करके करोड़ों रुपए कमाने में लगे हैं जबकि उत्‍तर प्रदेश के बॉर्डर वाले पेट्रोल पंप संचालक या तो हाथ पर हाथ रखकर बैठने पर मजबूर हैं या फिर तस्‍करी का तेल बेचने को बाध्‍य हैं।
यूपी के बॉर्डर पर पेट्रोल पंप संचालित करने वाले लोगों का कहना है कि वैट की असंगत नीति के कारण पड़ोसी राज्‍यों की तुलना में यूपी के अंदर पेट्रोल और डीजल की कीमतें इतनी अधिक ज्‍यादा हो जाती हैं कि वह हमें प्रति लीटर मिलने वाले कुल लाभ से भी पांच-पांच, छ:- छ: गुना अधिक बैठती हैं। इन हालातों में तेल माफिया का सक्रिय होना तथा पेट्रोल पंप संचालकों का उन्‍हें सहयोग करना स्‍वाभाविक है।
देश की प्रमुख तेल कम्पनियों ने भी अपनी रिपोर्ट में इस बात का खुलासा किया है कि उत्‍तर प्रदेश के सीमावर्ती राज्‍यों विशेषकर राजस्‍थान, हरियाणा तथा दिल्‍ली से तेल माफियाओं ने उत्‍तर प्रदेश में खुलेआम पेट्रोल की बिक्री शुरू कर दी है जिससे यूपी के बॉर्डर वाले पंपों पर तेल की बिक्री न के बराबर हो रही है.
गौरतलब है कि उत्‍तर प्रदेश में आने वाला कच्चा तेल सबसे पहले मथुरा रिफाइनरी को मिलता है और इसके बाद यहां से पेट्रोल व डीजल तैयार होकर प्रदेशभर को सप्‍लाई किया जाता है.
पेट्रोल पंपों पर तेल की बिक्री के दौरान उपभोक्‍ताओं से वह पांच फीसदी प्रवेश कर भी वसूला जाता है जिसे मथुरा रिफाइनरी कच्‍चे तेल पर चुकाती है. इस प्रकार उत्‍तर प्रदेश के उपभोक्‍ताओं को पेट्रोल व डीजल की सर्वाधिक कीमत चुकानी पड़ती है.
आश्‍चर्य की बात यह है कि महंगाई नियंत्रित न हो पाने के लिए आये दिन केंद्र सरकार को कठघरे में खड़ा करने वाली यूपी की अखिलेश सरकार इस मामले में न तो उत्तर प्रदेश पेट्रोलियम ट्रेडर्स एसोसिएशन की बात सुन रही है और न इस बात पर ध्‍यान दे रही है कि वैट को लेकर उसकी असंगत नीति के चलते पेट्रोलियम पदार्थों की तस्‍करी बढ़ रही है तथा बॉर्डर पर स्‍थित पेट्रोल पंप संचालकों को उसका बड़ा खामियाजा भुगतना पड़ रहा है।
यही नहीं, वैट की इस असंगत नीति के चलते दूसरे राज्‍यों से हो रही पेट्रोल व डीजल की तस्‍करी के कारण प्रदेश सरकार के खजाने को भी चूना लग रहा है लेकिन लगता है कि अखिलेश सरकार जायज वैट के जरिए अच्‍छा राजस्‍व हासिल करने की जगह नाजायज वैट लगाकर तेल माफियाओं को लाभान्‍वित करना ज्‍यादा मुनासिब समझ रही है।
कहीं ऐसा न हो कि अखिलेश सरकार की तेल माफियाओं को सीधा लाभ पहुंचाने तथा तेल की तस्‍करी को बढ़ावा देने वाली यह नीति 2017 के विधानसभा चुनावों में उसी पर भारी पड़ जाए क्‍योंकि तेल की बढ़ी हुई कीमतों का सीधा संबंध महंगाई से भी है और महंगाई से आम जनता किस कदर आजिज आ चुकी है, इससे अखिलेश सरकार भली-भांति परिचित है।
-सुरेन्‍द्र चतुर्वेदी

शुक्रवार, 6 नवंबर 2015

शर्त की आड़ में विकास प्राधिकरण से करोड़ों के टेंडर का बंदरबांट

सोलह कला अवतार, महाभारत नायक यशोदानंदन श्रीकृष्‍ण की पावन जन्‍मस्‍थली के विकास प्राधिकरण ने इस विश्‍व प्रसिद्ध धार्मिक शहर का कितना विकास कराया है, इसे लेकर एक-दो नहीं अनेक प्रश्‍न खड़े हो सकते हैं किंतु विकास प्राधिकरण में समय-समय पर तैनात रहे अधिकारियों का अपना कितना विकास हुआ है, इसे लेकर सिर्फ एक ही प्रश्‍न खड़ा होता है और वह है कि क्‍या कोई अधिकारी ऐसा रहा है जिसका यहां अपना विकास न हुआ हो ?
विकास प्राधिकरण के अधिकारियों से जुड़ा उनके निजी विकास का ताजा मामला 12 सितंबर 2015 को अखबारों में जारी उस अल्‍पकालीन निविदा का है जिसके तहत करीब 14 करोड़ के कार्यों का बंटवारा दो दिन पूर्व ऑफिस आवर्स बीत जाने के बाद रात के अंधेरे में कर दिया गया।
शाम ढलने के बाद टेंडर खोले जाने की भनक मिलने पर पहुंचे मीडियाकर्मियों ने जब ऐसा किए जाने की वजह जाननी चाही तो हमेशा की तरह कोई अधिकारी मुंह खोलने को तैयार नहीं हुआ और सिर्फ इतना कहकर मीडिया कर्मियों को टरका दिया गया कि दिन के वक्‍त दूसरे कार्यों में व्‍यस्‍तता के चलते टेंडर नहीं खोले जा सके।
करोड़ों रुपए के इन विकास कार्यों हेतु 12 सितंबर को जारी निविदा तथा 4 नवंबर को किए गए बंटवारे का सबसे महत्‍वपूर्ण पहलू यह है कि यह सारे कार्य मात्र चार ठेकेदारों के बीच बांट दिए गए और उन्‍हें ही काम दिए जाने का पुख्‍ता इंतजाम निविदा निकालने वाले दिन यानि 12 सितंबर 2015 को ही एक शर्त के साथ कर दिया गया।
इस शर्त के मुताबिक निविदा में वर्णित क्रम संख्‍या 1 से लेकर 12 तक के कार्य उसी पंजीकृत ठेकेदार को दिए जायेंगे जिसके पास अपना हॉटमिक्‍स प्‍लांट होगा।
इस शर्त को जोड़ने के पीछे की वजह का पता करने तथा ऐसा कोई नियम, कानून अथवा शासनादेश जारी होने के संबंध में जानकारी करने के लिए विकास प्राधिकरण के सचिव एस बी सिंह तथा चीफ इंजीनियर आर के शर्मा सहित कई अधिकारियों से संपर्क साधने का कई-कई बार प्रयास किया गया किंतु किसी ने बात करने की जहमत नहीं उठाई।
विकास प्राधिकरण में तैनात विकास पुरुषों से कोई जवाब न मिल पाने पर ‘लीजेंड न्‍यूज़’ ने जब अपने स्‍तर से छानबीन की तो बहुत ही चौंकाने वाली बातें सामने आईं।
प्रदेश के दूसरे विकास प्राधिकरणों और अन्‍य सरकारी विभागों से पता लगा कि किसी कार्य को कराने के लिए हॉटमिक्‍स प्‍लांट अथवा दूसरे किन्‍हीं उपकरणों का ठेकेदार के पास होना या न होना जरूरी नहीं है, जरूरी है तो केवल मानकों के अनुरूप कार्य की गुणवत्‍ता।
रहा सवाल निविदा के साथ ऐसी कोई शर्त जोड़ देने का तो उसके पीछे एकमात्र कारण अधिकारियों की बदनीयती ही होती है ताकि वो उसकी आड़ में अपने पसंदीदा ठेकेदारों को काम आवंटित कर सकें क्‍योंकि उन्‍हें पहले से मालूम होता है कि किस ठेकेदार के पास उनकी शर्त को पूरी करने का इंतजाम है और कौन उस शर्त को पूरी कर पाने में असमर्थ साबित होगा।
सरकारी विभागों में ही तैनात दूसरे बड़े अधिकारियों की मानें तो विकास प्राधिकरण सहित दूसरे सभी ऐसे विभागों में ठेकेदारी के लिए पंजीयन और ग्रेडिंग तभी होती है जब संबंधित ठेकेदार उसके लिए जरूरी सभी शर्तों को पूरा करता हो, फिर इस तरह अलग से कोई शर्त थोपने का मकसद सिर्फ और सिर्फ शर्त की आड़ लेकर निजी स्‍वार्थ पूरे करना ही होता है।
कुछ अधिकारियों ने बताया कि इस तरह की शर्तें अब विकास प्राधिकरण ही नहीं, पीडब्‍ल्‍यूडी आदि दूसरे सरकारी विभाग भी थोपने लगे हैं जबकि इसका कोई औचित्‍य नहीं है क्‍योंकि जिसे काम देना होता है उसके लिए अधिकारी इस आशय की छूट भी दे देते हैं कि वह किसी दूसरे ठेकेदार से उस उपकरण संबंधी प्रपत्र अपने नाम लिखवाकर दे सकता है जबकि इस छूट का उल्‍लेख निविदा में नहीं किया जाता।
ईमानदार अधिकारियों का तो यहां तक कहना है कि कल को यदि विकास प्राधिकरण ऐसी भी शर्तें थोपने लगे कि उसके यहां से काम उन्‍हीं ठेकेदारों को आवंटित किया जायेगा जो निर्माण में जरूरी सभी सामग्री का उत्‍पाद खुद करते हों, तो क्‍या यह उचित होगा। ऐसे में क्‍या इस विभाग का काम करने के लिए कोई ठेकेदार उपलब्‍ध होगा।
सच तो यह है कि ऐसी शर्तें थोपकर विकास प्राधिकरण अथवा दूसरे सरकारी विभागों के अधिकारी पूर्व नियोजित योजना के तहत अपने स्‍वार्थ की सिद्धि करते हैं ताकि उनके अपने चहेते ठेकेदार ही टेंडर डाल सकें और उन्‍हीं के बीच सारा काम बांट दिया जाए।
जाहिर है कि ऐसा करने से पहले ”इस हाथ दे, उस हाथ ले” की प्रक्रिया भी पूरी कर ली जाती है और टेंडर डालने से लेकर टेंडर निकालने तक का कार्य मात्र औपचारिकता निभा कर पूरा कर लिया जाता है।
अब यह औपचारिकता ऑफिस आवर्स में दिन के वक्‍त पूरी की जाए अथवा रात के अंधेरे में, इससे क्‍या फर्क पड़ता है।
रहा प्रश्‍न ऐसी प्रक्रियाओं पर चंद मीडियाकर्मियों के सवाल उठाने का तो जहां ऊपर से नीचे तक पूरा विभाग आकंठ भ्रष्‍टाचार में लिप्‍त हो, वहां चंद मीडियाकर्मियों के सवाल उठाने से होता क्‍या है।
जिन्‍हें जवाब देना जरूरी है और जिनके जवाब सुनना भी जरूरी है, वह सब न केवल प्रक्रिया से संतुष्‍ट हैं बल्‍कि अधिकारियों के विकास से भी संतुष्‍ट हैं।
-लीजेंड न्‍यूज़ विशेष

सोमवार, 2 नवंबर 2015

क्‍या अनऑथराइज्‍ड है जेएसआर ग्रुप की अशोका सिटी ?

विश्‍व प्रसिद्ध धार्मिक शहर मथुरा में प्राइम लोकेशन पर बनाया गया जेएसआर ग्रुप का होम प्रोजेक्‍ट ”अशोका सिटी” क्‍या अनऑथराइज्‍ड और गैरकानूनी है ?यह सवाल आज फिर इसलिए खड़ा हुआ क्‍योंकि ”जेएसआर ग्रुप” द्वारा आज सभी प्रमुख समाचार पत्रों में अपने आवासीय प्रोजेक्‍ट ”अशोका सिटी” का जो विज्ञापन दिया गया है, उसमें कहीं इस बात का उल्‍लेख नहीं है कि यह प्रोजेक्‍ट डेवलपमेंट अथॉर्टी से अप्रूव्‍ड है।
चूंकि पूर्व में भी जेएसआर ग्रुप के इस प्रोजेक्‍ट को लेकर भ्रांतियां उत्‍पन्‍न होती रही हैं और उन भ्रान्‍तियों का किसी स्‍तर पर कहीं से निराकरण नहीं किया गया लिहाजा आज उनका विज्ञापन भी नए सिरे से लोगों के बीच भ्रांति उत्‍पन्‍न कर रहा है।
दीपावली जैसे बड़े त्‍यौहार से ठीक 10 दिन पहले दिये गए इस विज्ञापन में बुकिंग एमाउंट 2 लाख 70 हजार रुपए लिखा है, जिससे जेएसआर ग्रुप का मकसद तो साफ हो जाता है किंतु यह साफ नहीं है कि वह किस आधार पर अपने इस आवासीय प्रोजक्‍ट के लिए लोन सुविधा उपलब्‍ध करा रहे हैं।
बताया जाता है कि देश की राजधानी दिल्‍ली को ताज नगरी आगरा से जोड़ने वाले राष्‍ट्रीय राजमार्ग नंबर दो पर मथुरा में गोवर्धन चौराहे के अति निकट बनाया गया बहुमंजिला आवासीय परिसर ”अशोका सिटी” तभी से विवादित रहा है जब इसकी बुनियाद रखी गई थी और इसीलिए न केवल समय-समय पर इसके मालिकाना हक बदलते रहे बल्‍कि मालिकों के खिलाफ अपहरण जैसे संगीन मामले भी दर्ज हुए।
”अशोका सिटी” के निर्माण पर शक के बादल इसलिए और गहरा जाते हैं कि इसकी असलियत के बारे में कोई कुछ बताने को तैयार नहीं होता। यहां तक कि डेवलेपमेंट अथॉर्टी ”मथुरा-वृंदावन विकास प्राधिकरण” भी चुप्‍पी साधे हुए है।
हालांकि विभागीय सूत्र बताते हैं कि इसके अनधिकृत निर्माण और उसे अधिकृत बनाने के प्रयास में अपनाए गए गैरकानूनी हथकंडों से कमिश्‍नर आगरा मंडल तथा जिलाधिकारी मथुरा भी भली-भांति परिचित हैं और उन्‍होंने अपने-अपने स्‍तर से काफी सख्‍ती बरत रखी है किंतु फिलहाल ऐसी कोई कार्यवाही अमल में नहीं लाई जा सकी जिससे जनसामान्‍य के बीच स्‍थिति स्‍पष्‍ट हो सके।
इन हालातों में विज्ञापन को देखकर बहुत से लोगों का उलझ जाना स्‍वाभाविक है। तमाम लोग तो इस उम्‍मीद पर बुकिंग एमाउंट भी जमा करा बैठेंगे कि बाकी रकम का इंतजाम उन बैंकों और फाइनेंस एजेंसियों से हो ही जायेगा जिनका हवाला जेएसआर ग्रुप ने अपने विज्ञापन में दिया है।
अब यहां एक और महत्‍वपूर्ण सवाल यह खड़ा होता है कि क्‍या किसी अनधिकृत और गैरकानूनी होम प्रोजेक्‍ट पर कोई बैंक अथवा फाइनेंस कंपनी ऋण उपलब्‍ध करा सकती है?
इस संबंध में जब ”लीजेंड न्‍यूज़” ने जानकारी की तो कई चौंकाने वाली बातें सामने आईं।
इन बातों में सबसे अहम बात तो यह है कि हर बैंक और हर फाइनेंस कंपनी ने होम लोन के मामले में अपने-अपने निजी नियम बना रखे हैं। स्‍टेट बैंक ऑफ इंडिया को छोड़कर कई बैंकें अनधिकृत तथा गैरकानूनी होम प्रोजेक्‍ट पर भी लोन केवल यह देखकर उपलब्‍ध करा देती हैं कि ऋण लेने वाले से वसूली हो जाने का उन्‍हें पूरा भरोसा है। फिर चाहे ऋण लेने वाला अनधिकृत प्रोजेक्‍ट के कारण बुरी तरह फंस जाए और उसका एक अदद अपने घर का सपना सिर्फ सपना बनकर रह जाए।
बताया जाता है कि अनधिकृत होम प्रोजेक्‍ट पर ऋण देने के मामले में सबसे उदार नियम निजी बैंकों तथा निजी फाइनेंस कंपनियों ने बना रखे हैं। संभवत: इसीलिए ”जेअएआर ग्रुप” की ”अशोका सिटी” पर ऋण उपल्‍ब्‍ध कराने वालों में एक भी राष्‍ट्रीय बैंक का नाम नहीं है।
जो नाम दिए गए हैं उनमें आईसीआईसीआई तथा एचडीएफसी जैसी निजी बैंकें तथा इंडिया बुल्‍स, डीएचएफएल तथा टाटा केपीटल जैसी फाइनेंस कंपनियां शामिल हैं।
”जेएसआर ग्रुप” की ”अशोका सिटी” के विज्ञापन में उसके अधिकृत या अनधिकृत होने का कोई उल्‍लेख न होने के संदर्भ पर जब विज्ञापन के अंदर दिए गए कांटेक्‍ट नंबर से संपर्क साधा गया तो किसी पूजा नाम की लड़की ने फोन रिसीव किया किंतु वह कोई भी संतोषजनक जवाब देने में असमर्थ रही।
दरअसल, अशोका सिटी तो एक उदाहरण है अन्‍यथा कृष्‍ण की इस पावन भूमि में ऐसे होम प्रोजेक्‍ट की संख्‍या अच्‍छी-खासी है जो आकर्षक विज्ञापनों तथा आसानी से ऋण उपलब्‍ध कराने की आड़ में आमजन के सपनों से खिलवाड़ करके अपनी जेबें भर रहे हैं और बैंकें ही नहीं डेवलेपमेंट अथॉर्टी भी चुप्‍पी साधकर इसमें उनका पूरा सहयोग कर रही हैं। चूंकि बैंकों का अपना स्‍वार्थ है और डेवलेपमेंट अथॉर्टी में ऊपर से लेकर नीचे तक स्‍वार्थ ही स्‍वार्थ है इसलिए कोई कुछ बोलने या सुनने को तैयार नहीं होता।
रही बात उस जन सामान्‍य की जो बिल्‍डर्स और बैंकों की चाल में फंसकर एक ओर जहां अपनी जिंदगीभर की जमा पूंजी लुटा बैठता है और दूसरी ओर अपने एक अदद घर के सपने को बिखरते देखता है तो उससे किसी को कोई वास्‍ता नहीं।
फिर चाहे वह ताजिंदगी उस ऋण की किश्‍तें अदा करता रहे जिसे लेने के बाद उसने अपने घर का सपना देखा था।
-लीजेंड न्‍यूज़ विशेष
Related Posts Plugin for WordPress, Blogger...