गुरुवार, 31 जनवरी 2019

योर ऑनर…मुझे इस देश का नाम “भारत” होने पर आपत्ति है, भावनाएं आहत होती हैं!

योर ऑनर…मुझे इस देश का नाम “भारत” होने पर आपत्ति है, भावनाएं आहत होती हैं! कल को कोई ‘सिरफिरा’ इस दलील के साथ अपनी याचिका लेकर सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटा दे और सुप्रीम कोर्ट उस याचिका को स्‍वीकार भी कर ले तो कोई आश्‍चर्य नहीं, क्‍योंकि ‘सेक्युलर’ शब्‍द तभी मुकम्‍मल होता है अन्‍यथा न्‍यायपालिका भी ‘सांप्रदायिक’ हो सकती है।
न्‍यायपालिका सांप्रदायिक न हो इसके लिए जरूरी है हर उस याचिका को स्‍वीकार कर लेना जिससे ”कुछ तत्‍वों” की भावनाएं आहत होने का दावा किया गया हो।
देश का नाम भारत रहे या न रहे लेकिन Secularism रहना चाहिए अन्‍यथा लोकतंत्र खतरे में पड़ जाएगा, संभवत: इसी धारणा के तहत सुप्रीम कोर्ट ने देशभर के 1125 केंद्रीय विद्यालयों में की जाने वाली इस प्रार्थना- “असतो मा सद्गमय, तमसो मा ज्योतिर्गमय” पर आपत्ति संबंधी याचिका न सिर्फ स्‍वीकार कर ली बल्‍कि केंद्र सरकार को नोटिस भेजकर जवाब भी तलब कर लिया।
दरअसल, केंद्रीय विद्यालय से ही शिक्षा प्राप्‍त जबलपुर के एक वकील विनायक शाह ने सुप्रीम कोर्ट में इस आशय की याचिका दाखिल की थी कि केंद्रीय विद्यालयों में 1964 से “असतो मा सद्गमय, तमसो मा ज्योतिर्गमय” नामक सुबह की जो प्रार्थना कराई जाती है वो पूरी तरह असंवैधानिक है। याचिकाकर्ता ने इसे संविधान के अनुच्छेद 25 और 28 के खिलाफ बताते हुए कहा है कि इसकी इजाजत नहीं दी जा सकती।
वकील विनायक शाह के अनुसार चूंकि इन स्कूलों को सरकार से सहायता दी जाती है ऐसे में उन्हें धार्मिक मान्यताओं और एक संप्रदाय विशेष को बढ़ावा नहीं देना चाहिए। उनके अनुसार इस तरह की प्रार्थनाएं वैज्ञानिक चेतना के विकास में बाधा खड़ी करती हैं।
कोर्ट ने इस पर नोटिस जारी करते हुए केंद्र सरकार और केंद्रीय विद्यालय संगठन से पूछा कि क्या हिंदी और संस्कृत में होने वाली प्रार्थना से किसी धार्मिक मान्यता को बढ़ावा मिल रहा है। जस्टिस आरएफ नरीमन और जस्टिस नवीन सिन्हा की बेंच ने इसे गंभीर संवैधानिक मुद्दा भी बताया।
केंद्र सरकार की ओर से सोमवार को सॉलीसिटर जनरल तुषार मेहता ने कोर्ट में कहा कि केंद्रीय विद्यालयों की प्रार्थना संस्कृत में होने मात्र से किसी धर्म से नहीं जुड़ जाती है। “असतो मा सद्गमय’ धर्मनिरपेक्ष है। यह सार्वभौमिक सत्य के बोल हैं।
इस पर जस्टिस आरएफ नरीमन ने कहा कि संस्कृत का यह श्लोक उपनिषद से लिया गया है। जवाब में मेहता ने कहा कि सुप्रीम कोर्ट के हर कोर्टरूम में लगे चिह्न पर भी संस्कृत में लिखा है- “यतो धर्मस्ततो जय:’’। यह महाभारत से लिया गया है। इसका मतलब यह तो नहीं हुआ कि सुप्रीम कोर्ट धार्मिक है। संस्कृत को किसी धर्म से जोड़कर नहीं देखना चाहिए।
इसके बाद जस्टिस नरीमन ने कहा कि धार्मिक स्वतंत्रता से जुड़े इस मुद्दे पर संविधान पीठ को सुनवाई करनी चाहिए।
जमीयत-उलेमा-ए-हिंद ने भी सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर कर केंद्रीय विद्यालय संगठन के संशोधित एजुकेशन कोड को चुनौती दी है। याचिका में कहा गया है कि केंद्रीय विद्यालयों में प्रार्थना लागू है। इस सिस्टम को नहीं मानने वाले अल्पसंख्यक छात्रों को भी इसे मानना पड़ता है। मुस्लिम बच्चों को हाथ जोड़ने के लिए मजबूर नहीं किया जा सकता। 
ऐसे में सबसे अहम सवाल तो यह उठ खड़ा होता है कि जिस संविधान का हवाला देकर वकील विनायक शाह ने सर्वोच्‍च न्‍यायालय में याचिका दायर की और जिसे प्रथम दृष्‍टया असंवैधानिक मानते हुए जस्टिस आरएफ नरीमन और जस्टिस नवीन सिन्हा की बेंच ने गंभीर संवैधानिक मुद्दा मानकर केंद्र सरकार से जवाब तलब किया, उसकी तो प्रस्‍तावना ही “हम भारत के लोग…से शुरू होती है।
“असतो मा सद्गमय, तमसो मा ज्योतिर्गमय” पर आपत्ति दर्ज कराने और इसे असंवैधानिक बताने वाले पूछ सकते हैं कि इस मुद्दे को देश के नाम “भारत” से क्‍यों जोड़ा जा रहा है और इसका धर्म से क्‍या वास्‍ता है ?
वास्‍ता है और बहुत गहरा वास्‍ता है
भारतवर्ष का नामकरण कैसे हुआ इस संबंध में मतभेद हैं क्‍योंकि भारतवर्ष में तीन भरत हुए। एक भगवान ऋषभदेव के पुत्र, दूसरे राजा दशरथ के और तीसरे दुश्यंत- शकुंतला के पुत्र भरत।
भारत-1 : भारत नाम की उत्पति का संबंध प्राचीन भारत के चक्रवर्ती सम्राट राजा मनु के वंशज भगवान ऋषभदेव के पुत्र भरत से है। श्रीमद् भागवत एवं जैन ग्रंथों में उनके जीवन एवं अन्य जन्मों का वर्णन आता है।
ऋषभदेव स्वयंभू मनु से पांचवीं पीढ़ी में इस क्रम में हुए- स्वयंभू मनु, प्रियव्रत, अग्नीघ्र, नाभि और फिर ऋषभ। राजा और ऋषि ऋषभनाथ के दो पुत्र थे- भरत और बाहुबली।
बाहुबली को वैराग्य प्राप्त हुआ तो ऋषभ ने भरत को चक्रवर्ती सम्राट बनाया। भरत को वैराग्य हुआ तो वो अपने बड़े पुत्र को राजपाट सौंपकर जंगल चले गए।
भारत-2 : राम के छोटे भाई भरत राजा दशरथ के दूसरे पुत्र थे। उनकी माता कैकयी थीं। उनके अन्य भाई थे लक्ष्मण और शत्रुघ्न। परंपरा के अनुसार राम को गद्दी पर विराजमान होना था लेकिन उन्हें 14 वर्ष का वनवास मिला। इस दौरान भरत ने राजगद्दी संभाली और उन्होंने राज्य का विस्तार किया। कहते हैं उन्हीं के कारण इस देश का नाम भारत पड़ा।
भरत-3 : पुरुवंश के राजा दुष्यंत और शकुंतला के पुत्र भरत की गणना ‘महाभारत’ में वर्णित सोलह सर्वश्रेष्ठ राजाओं में होती है। कालिदास कृत महान संस्कृत ग्रंथ ‘अभिज्ञान शाकुंतलम’ के एक वृत्तांत अनुसार राजा दुष्यंत और उनकी पत्नी शकुंतला के पुत्र भरत के नाम से भारतवर्ष का नामकरण हुआ।
मरुद्गणों की कृपा से ही भरत को भारद्वाज नामक पुत्र मिला। भारद्वाज महान ‍ऋषि थे। चक्रवर्ती राजा भरत के चरित का उल्लेख महाभारत के आदिपर्व में भी है।
हालांकि ज्यादातर विद्वान मानते हैं कि ऋषभनाथ के प्रतापी पुत्र भरत के नाम पर ही भारत का नामकरण हुआ।
जो भी हो किंतु इन तीनों राजाओं का ताल्‍लुक सनातन धर्म से है, न कि किसी अन्‍य से। आज के ‘सेक्युलर’ कल यह भी कह सकते हैं कि देश के इस नाम से सांप्रदायिकता की बू आती है इसलिए संविधान में संशोधन कर देश का नाम ‘भारत’ की बजाय कुछ ऐसा रखना चाहिए जिससे Secularism और लोकतंत्र जिंदा रहें।
हिंदुस्‍तान नाम भी ऐसे तत्‍वों को रास नहीं आएगा क्‍योंकि हिंदुस्‍तान के पहले दो अक्षर ही हिंदुइज्‍म के द्योतक हैं।
यूं भी देश का नाम “भारत” होना इसलिए सांप्रदायिक बताया जा सकता है क्‍योंकि राष्‍ट्रवादी लोग तो “भारत” को मां का दर्जा देते हैं और भारत माता की जय बोलते हैं जबकि जिनकी जिनकी भावनाएं आहत होती हैं, उन्‍हें भारत माता की जय बोलने में भी आपत्ति है।
ये बात अलग है कि उन्‍हीं के बीच से निकले प्रसिद्ध शायर मुनव्वर राना ने मां की शान में लिखा है-
”चलती फिरती आंखों से अज़ा देखी है, मैंने जन्‍नत तो नहीं देखी मां देखी है”
हिंदू यानी सनातन धर्मावलंबी तो हमेशा से कहते आए हैं ‘जननी-जन्मभूमिश्च स्वर्गादपि गरीयसी’ अर्थात् जननी (माता) और जन्मभूमि का स्थान स्वर्ग से भी श्रेष्ठ एवं महान है।
माता का प्यार, दुलार व वात्सल्य अतुलनीय है। इसी प्रकार जन्मभूमि की महत्ता हमारे समस्त भौतिक सुखों से कहीं अधिक है। लगभग सभी लेखकों, कवियों व महामानवों ने भी जन्मभूमि की गरिमा और उसके गौरव को जन्मदात्री के तुल्य ही माना है।
बहरहाल, आज के माहौल में ऐसे उदाहरण देना भी सांप्रदायिक सोच का परिचायक हो सकता है इसलिए तथ्‍य परक उदाहरण अधिक अनुकूल हो सकते हैं।
तथ्‍य परक उदाहरण बताते हैं कि आज प्रत्येक उच्च न्यायालय के न्यायाधीश के सामने लगभग 4,500 लंबित मामले हैं, जबकि अधीनस्थ न्यायपालिका के प्रत्येक न्यायाधीश को लगभग 1,300 लंबित मामलों का निपटारा करना है।
राष्ट्रीय न्यायिक डाटा ग्रिड के अनुसार 2018 के अंत में, जिला और अधीनस्थ अदालतों में 2.91 करोड़ मामले लंबित थे जबकि 24 उच्च न्यायालयों में 47.68 लाख मामले लंबित थे। 
आंकड़ों के अनुसार उच्च न्यायालयों में प्रति न्यायाधीश 4,419 मामले लंबित हैं और प्रत्येक निचली अदालत के न्यायाधीश के सामने 1,288 मामले हैं। 
बेशक यह भी कहा जा सकता है कि देश में स्‍वीकृत न्यायिक अधिकारियों की कमी है और इसलिए भी काम प्रभावित होता है किंतु इसका यह मतलब नहीं कि बेतुकी और अप्रासंगिक याचिकाएं स्‍वीकार कर ली जाएं लेकिन लंबित मामले निपटाने में इसलिए कोई रुचि न ली जाए क्‍योंकि उससे किसी एक खास धर्म की भावनाएं आहत नहीं होतीं।
एक धर्म विशेष से जुड़े फांसी की सजा प्राप्‍त आतंकवादियों के लिए तो आधी-आधी रात को भी न्‍यायधीशों के दरवाजे खुल जाएं किंतु दूसरे धर्म की आस्‍था से जुड़ा मुद्दा सुनवाई के लिए भी प्राथमिकता में शुमार न हो।
नामचीन लोगों से जुड़े मामलों पर सेम डे हियरिंग भी हो जाए तथा निर्णय भी सुना दिया जाए लेकिन जनसामान्‍य को दशकों तक तारीख पर तारीख मिलती रहे और उसकी तीन-तीन पीढ़ियां न्‍याय की आस में दिवंगत होती रहें।
बृहदारण्यक उपनिषद के पवमान मन्त्र का प्रसिद्ध श्लोक है- 
ॐ असतो मा सद्गमय। तमसो मा ज्योतिर्गमय। मृत्योर्मामृतं गमय।। 
अर्थात-
मुझे असत्य से सत्य की ओर ले चलो।
मुझे अन्धकार से प्रकाश की ओर ले चलो।
मुझे मृत्यु से अमरता की ओर ले चलो॥ 
अब बताइए कि ये शब्‍द क्‍या किसी धर्म को परिभाषित करते हैं अथवा किसी धर्म विशेष से ताल्‍लुक रखने वाले व्‍यक्‍ति की भावनाएं आहत करते हैं।
असत्‍य से सत्‍य की ओर, अन्धकार से प्रकाश की ओर तथा मृत्यु से अमरता की ओर ले चलने की प्रार्थना कौन सा धर्म अथवा धार्मानुयायी नहीं करता।
ये तो मानव मात्र के कल्‍याण की कामना करने वाली प्रार्थना है। इसका किसी धर्म विशेष से क्‍या वास्‍ता।
और अगर इस प्रार्थना को लेकर भी आपत्ति है और कहा जा रहा है कि यह किसी एक धर्म का प्रतिनिधित्‍व करती है तथा दूसरे धर्म की भावनाएं आहत करती है तो फिर तय जानिए कि न धर्म बचेगा, न धर्मानुयायी। न संविधान बचेगा न लोकतंत्र।
फिर तो विधायिका और न्‍यायपालिका भी अपना मकसद खो देंगी। जैसा कि जस्टिस आरएफ नरीमन को जवाब देते हुए सॉलीसिटर जनरल तुषार मेहता ने कहा कि सुप्रीम कोर्ट के हर कोर्टरूम में लगे चिह्न पर भी संस्कृत में लिखा है- “यतो धर्मस्ततो जय:’। यह महाभारत से लिया गया है। इसका मतलब यह तो नहीं हुआ कि सुप्रीम कोर्ट धार्मिक है।
लोकतंत्र के किसी भी पिलर की अहमियत तब तक है जब तक वह उस औचित्‍य को सिद्ध करता रहे जिसके लिए उसका निर्माण किया गया था। यह औचित्‍य तब सिद्ध होता है जब सभी संस्‍थाएं अपनी-अपनी जिम्‍मेदारी अन्‍य संस्‍थाओं के काम में दखल न देते हुए पूरी करती रहें। एक-दूसरे के काम में हस्‍तक्षेप और अधिकारों का अतिक्रमण किसी भी संस्‍था को बर्बाद करने की दिशा में उठाया गया पहला कदम हो सकता है।
विधायिका हो या कार्यपालिका, अथवा न्‍यायपालिका ही क्‍यों न हो, अधिकारों का अतिक्रमण और कार्यक्षेत्र में हस्‍तक्षेप किसी के हित में नहीं।
जिस तरह Secularism को अब तक कोई ठीक-ठीक परिभाषित नहीं कर सका है, उसी तरह धार्मिक भावनाओं के भी आहत होने को परिभाषित करना बड़ा मुश्‍किल है। आज जिनकी भावनाएं ‘असतो मा सद्गमय’ से आहत हो रही हैं, क्‍या गारंटी है कि कल उनकी भावनाएं देश का नाम ”भारत” होने से आहत नहीं होंगी। तो क्‍या कल कोर्ट ऐसी भी किसी याचिका को स्‍वीकार करके सरकार को नोटिस भेज देगा।
-सुरेन्‍द्र चतुर्वेदी

सोमवार, 14 जनवरी 2019

मथुरा में #metoo: यूनिवर्सिटी, कॉलेज और तकनीकी शिक्षण संस्‍थाओं में हो रहा है महिलाओं का “यौन शोषण”

मथुरा। यौन शोषण के खिलाफ महिलाओं के एक वर्ग द्वारा शुरू किया गया #metoo अभियान बेशक बॉलीवुड एवं राजनीति सहित कॉर्पोरेट जगत में भी काफी चर्चित रहा तथा कई नामचीन हस्‍तियों को बेनकाब करने में कामयाब हुआ, किंतु उन स्‍थानों से फिलहाल दूर है जिन्‍हें शिक्षा का मंदिर कहा जाता है और जिनके ऊपर देश का भविष्‍य कहे जाने वाले युवाओं को तैयार करने की जिम्‍मेदारी है।
यही कारण है कि धार्मिक नगरी के रूप में विश्‍व विख्‍यात मथुरा के कई निजी शिक्षण संस्‍थानों में महिला कर्मचारियों सहित छात्राओं तक का यौन शोषण किए जाने की जानकारी मिली है।
विश्‍वस्‍त सूत्रों से प्राप्‍त जानकारी के अनुसार मथुरा-भरतपुर रोड पर स्‍थित शिक्षा के कुछ ऐसे ही मंदिरों में महिला कर्मचारियों तथा छात्राओं के यौन शोषण का खेल लंबे समय से चल रहा है। 
बताया जाता है कि कई-कई शिक्षण संस्‍थाओं का संचालन करने वाले एक ऐसे ही व्‍यक्‍ति की किसी पीड़ित फीमेल कर्मचारी ने ही पिछले दिनों वीडियो क्‍लिप तैयार की है। 
कॉलेज की इस फीमेल कर्मचारी का कहना है कि वह संस्‍थान में कार्यरत दूसरी महिलाओं तथा छात्राओं के सहयोग से शीघ्र ही शिक्षण संस्‍थान के मालिक का घिनौना चेहरा सामने लाएगी और कानूनी कार्यवाही करेगी ताकि शिक्षा व्‍यवसाइयों का पर्दाफाश हो सके। 
इस महिला का यह भी कहना है कि वह अपने साथ हुए यौन उत्‍पीड़न के अलावा दूसरी महिलाओं और छात्राओं के साथ लंबे समय से किए जा रहे दुष्‍कर्म को भी सार्वजनिक करेगी जिससे कि शिक्षा व्‍यवसाई को किसी एक महिला पर कीचड़ उछालने का मौका न मिले। 
पीड़ित महिला का दावा है कि मथुरा-भरतपुर रोड पर शिक्षण संस्‍थाएं चलाने वाले इस व्‍यक्‍ति को संस्‍थान खुलने से लेकर बंद होने तक अपने कार्यालय में एक खास महिला कर्मचारी के साथ बैठेे देखा जा सकता है। यह वही महिला है जिसके इस शिक्षा व्‍यवसाई से संबंध संदिग्‍ध बताए जाते हैं और जिसे लेकर उसके सभी शिक्षण संस्‍थानों में चर्चा का बाजार गर्म रहता है। 
संस्‍थान के सूत्र बताते हैं कि कर्मचारियों और शिक्षकों के साथ-साथ छात्र-छात्राओं के बीच भी संचालक के रंगीन मिजाज एवं रंगरेलियां मनाने के किस्‍से चर्चित हैं किंतु आदत से मजबूर संचालक पर फिलहाल कोई असर होता दिखाई नहीं देता। 
सूत्रों के अनुसार महिला कर्मचारियों और छात्राओं के यौन शोषण का यह मामला सिर्फ शिक्षण संस्‍थाओं के अंदर तक ही सीमित नहीं है, इसके बाहर भी शिक्षा व्‍यवसाइयों द्वारा उनका विभिन्‍न काम कराने के लिए उपयोग किया जाता है।
वैसे महिला कर्मचारियों एवं छात्राओं के साथ किए जा रहे खेल में मथुरा-भरतपुर रोड पर संचालित शिक्षण संस्‍थान के मालिक की संलिप्‍तता का यह एकमात्र मामला भी नहीं है। कई दूसरे शिक्षण संस्‍थान संचालक भी ऐसे घिनौने कृत्‍य कर रहे हैं जिनमें डीम्‍ड यूनिवर्सिटी तक चलाने वालों के नाम शामिल हैं।
एक मामला तो पिछले दिनों अदालत तक जा पहुंचा था और फिलहाल वहां लंबित है। दूसरे मामले में स्‍कूल के संचालक की गिरफ्तारी हो चुकी है।
इसके अतिरिक्‍त आश्‍चर्यचकित कर देने वाला एक अन्‍य मामला 14 जनवरी 2008 के दिन तब सामने आया था जब शहर के एक नामचीन होटल के अंदर न्‍यायपालिका से जुड़े चार अधिकारी अलग-अलग कमरों में चार छात्राओं के साथ पकड़े गए थे। 
ये छात्राएं भी एक स्‍थानीय तकनीकी शिक्षण संस्‍था में अध्‍ययनरत थीं और इन्‍होंने पूछताछ के दौरान बाकायदा पुलिस को बताया कि शिक्षण संस्‍था के मालिक ने उन्‍हें करियर बनाने का आश्‍वासन देकर अधिकारियों को “एंटरटेन” करने के लिए बाध्‍य किया था। 
मामला न्‍यायपालिका से जुड़ा होने के कारण पुलिस ने उसे रफा-दफा तो कर दिया परंतु तत्‍कालीन जिला जज को मौके पर बुलाने के बाद, जिससे संशय की कोई गुजाइश न रहे। 
जिला जज ने जनवरी 2008 को एक पत्र भेजकर उच्‍च न्‍यायालय के मुख्‍य न्‍यायाधीश तथा रजिस्‍ट्रार को पूरे घटनाक्रम से अवगत कराया और शिक्षण संस्‍थान के उस मालिक का नाम भी उजागर किया जिसके बारे में छात्राओं ने स्‍पष्‍ट जानकारी दी थी। 
हमेशा की तरह हालांकि शिक्षण संस्‍था के मालिक ने अपने राजनीतिक प्रभाव का इस्‍तेमाल कर मामले को दबवा दिया परंतु तत्‍कालीन जिला जज का इलाहाबाद उच्‍च न्‍यायालय के मुख्‍य न्‍यायाधीश एवं रजिस्‍ट्रार को भेजा गया पत्र असलियत सामने लाने के लिए काफी है। 
ऐसी ही एक डीम्‍ड यूनिवर्सिटी के युवा संचालक को तो कुछ समय पूर्व उनकी पत्‍नी ने ही संस्‍थान की महिला कर्मचारी के साथ देर शाम ऑफिस में रंगरेलियां मनाते रंगेहाथ पकड़ लिया था। 
बताया जाता है कि यूनिवर्सिटी के मालिक की इस घिनौनी हरकत से यूनिवर्सिटी के सभी मेल व फीमेल कर्मचारी वाकिफ हैं किंतु नौकरी पर आंच आने के डर से मुंह नहीं खोलते। यूनिवर्सिटी के दिन-प्रतिदिन गंदे होते माहौल के कारण गत दिनों कुछ लोग दूसरे संस्‍थानों में व्‍यवस्‍था होते ही यहां से जॉब छोड़कर जा चुके हैं।
सूत्र बताते हैं कि शिक्षा मंदिरों के संचालक और हवस के इन पुजारियों का भांडा फूटने में अब ज्‍यादा समय नहीं लगेगा क्‍योंकि पीड़िताओं ने अब बदनामी की परवाह किए बिना उनके कुकृत्‍य सामने लाने का मन बना लिया है।
जो भी हो, लेकिन इसमें कोई दो राय नहीं कि एक विश्‍व विख्‍यात धार्मिक नगरी से एजुकेशन हब के रूप में पहचान बनाने वाली कृष्‍ण की नगरी आज शिक्षा के मंदिरों में किए जा रहे यौन शोषण के लिए भी बदनामी हासिल करने लगी है और इसकी चर्चा कॉलेज एवं यूनिवर्सिटी कैंपस की दीवारों से बाहर तक हो रही है। 
इन हालातों में यदि कभी किसी सफेदपोश शिक्षा व्‍यवसाई का घृणित चेहरा अचानक सामने आ जाए तो आश्‍चर्य नहीं क्‍योंकि दुष्‍कर्म किया भले ही बंद कमरों में जाता हो परंतु उसकी दुर्गंध को ज्‍यादा दिनों तक दबाए रखना संभव नहीं होता।
-सुरेन्‍द्र चतुर्वेदी

सोमवार, 7 जनवरी 2019

IAS बी चंद्रकला के मथुरा में हैं कई राखीबंद भाई, इसके अलावा जानिए और बहुत कुछ…

कभी मथुरा में जिलाधिकारी के पद पर काबिज़ रहीं महिला IAS बी चंद्रकला के कृष्‍ण की पावन जन्‍मस्‍थली में भी कई राखीबंद भाई हैं। मजे की बात यह है कि बी चंद्रकला के ये भाई अलग-अलग कार्यक्षेत्रों से हैं और अलग-अलग फन में माहिर हैं।
इस बात का खुलासा दरअसल तब हुआ जब बी चंद्रकला के मथुरा में तैनाती के दौरान रक्षाबंधन का पर्व आया। बस फिर क्‍या था, बी चंद्रकला से राखी बंधन कराने को उनके तथाकथित भाई न सिर्फ लाइन लगाकर जिलाधिकारी आवास व कार्यालय पर जा खड़े हुए बल्‍कि तत्‍काल अपने राखीबंद भाई होने का सुबूत तत्‍काल सोशल साइट्स और विशेषकर फेसबुक पर पोस्‍ट भी कर दिया।
2008 बैच से यूपी कैडर की IAS बी चंद्रकला के इन सभी भाइयों ने उनसे संबंधों की निकटता का बढ़-चढ़कर प्रचार प्रसार किया और अपने कर्तव्‍य को तिलांजलि देकर राखीबंंद भाई होने का धर्म निभाने में जुट गए।
इन भाइयों का अपनी बहना से भावनात्‍मक लगाव किस हद तक है, इसकी जानकारी बी चंद्रकला के यहां खनन घोटाले में पड़ी सीबीआई की रेड के बाद भी दिखाई दिया।
बी चंद्रकला के कुछ भाई तो उनके यहां रेड पड़ने के साथ ही यह कहते हुए सुने गए कि मोदी सरकार उनकी बहना को परेशान कर रही है और उनकी बहना तो गंगा की तरह पवित्र तथा यमुना की तरह पावन रही है।
इसके अलावा कुछ भाइयों ने यह भी कहा कि कौन अधिकारी आज के दौर में दूध का धुला है, हमारी बहना ने कुछ किया भी है तो ऐसा क्‍या कर दिया।
एकआध भाई को मलाल है कि यदि आय से अधिक संपत्ति में से बहना ने उनके नाम भी कुछ कर दिया होता तो वह फंसती नहीं और वो मौका आते ही उनका पाई-पाई का हिसाब कर देते। वो जानते हैं कि बहना के माल पर बुरी नजर रखने वाले का मुंह काला होता है।
अपने इन भाइयों की भावना का लाभ उठाते हुए बी चंद्रकला ने मथुरा में यथासंभव अपने पद का ‘उपयोग’ किया।
बताया जाता है कि बी चंद्रकला अकेली अधिकारी नहीं हैं जिन्‍होंने मथुरा वासियों को कच्चे धागे के रिश्‍ते में बांधा हो। पूर्व में यहां तैनात रहे पुरुष आला अधिकारी भी ऐसा करते रहे हैं, और उन्‍होंने अपनी सुविधा से कई-कई ‘भाई’ बनाए हैं।
अपने मेड इन मथुरा भाइयों से प्राप्‍त ठोस सूचना के आधार पर तत्‍कालीन आबकारी अधिकारी को लखनऊ जाते वक्‍त बीच रास्‍ते से लौटने के लिए मजबूर करके उनकी नोटों से भरी अटैची छीन लेने जैसी इस पुरुष अधिकारी की ”अजब कला” का ज्ञान बहुत से आम व खास लोगों को भी है किंतु मुंह खोलने की हिम्‍मत नहीं है क्‍योंकि भाई अब भी आगरा में जमे हैं। पता नहीं कब जरूरत पड़ जाए।
उक्‍त अधिकारी पड़ोसी जनपद आगरा में तैनाती के चलते अपनी करामाती कार्यप्रणाली से योगीराज में भी मलाई मार रहे हैं।
ये बात दीगर है कि उन्‍होंने अपने संबंधों का ऐसा प्रचार नहीं किया जैसा बी चंद्रकला ने किया।
ऑनलाइन चार्ज लेकर बनाया रिकार्ड
अखिलेश सरकार के ताकतवर IAS अधिकारियों में शुमार बी चंद्रकला ने मथुरा से तबादला हो जाने के बाद दुबई में बैठे-बैठे ऑनलाइन बुलंदशहर के जिलाधिकारी का चार्ज लेकर तथा मेल के जरिए वहां के नए सीडीओ की ज्‍वाइनिंग कराकर सबको आश्‍चर्य में डाल दिया था।
ब्‍यूरोक्रेट्स की मानें तो ऐसा कारनामा करने वाली वह पहली आईएएस अधिकारी थीं।
मेरठ में बनाया सबसे लंबी पेंटिंग का वर्ल्ड रिकॉर्ड 
मेरठ में डीएम रहते हुए बी चंद्रकला ने 14 नवंबर को पूर्व प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू के जन्मदिवस पर विश्व की सबसे लंबी पेंटिंग बनवाकर विश्व रिकॉर्ड बनवाया था। ये पेंटिंग 1400 मीटर लंबी थी। इसे बनाने में 3500 कलाकार लगे थे। इसके लिए डीएम के तौर पर उनका नाम गिनीज बुक ऑफ वर्ल्ड रिकॉर्ड में दर्ज है।
इससे पहले सबसे लंबी पेंटिंग चीन के हॉग कांग वेटलेंड पार्क की ओर 17 अक्टूबर 2009 में बाई नंबर बनाई गई थी। यह पेंटिंग 959.35 मीटर लंबी और 1.2 मीटर ऊंची थी। बर्ड्स एंड वेटलेंड्स थीम पर बनायी गई इस पेंटिंग को 2041 लोगों ने बनाया था।
CBI के छापे से 9 दिन पहले खरीदी थी प्रॉपर्टी 
नई जानकारी के अनुसार खनन घोटाले में सीबीआई (CBI) का छापा पड़ने से महज नौ दिन पहले ही बी चंद्रकला ने अपने गृह राज्‍य तेलंगाना में एक प्रॉपर्टी खरीदी थी। यह प्रॉपर्टी एक आवासीय प्लॉट के रूप में है। बी चंद्रकला ने 107 नंबर के इस प्लॉट की रजिस्‍ट्री तेलंगाना के मलकाजगिरी जिला अंतर्गत ईस्ट कल्याणपुरी इलाके में 27 दिसंबर 2018 को करवाई है।
खास बात ये है कि इस प्लॉट को उन्होंने बिना किसी बैंक लोन के खरीदा है। छापे से तीन दिन पहले ही चंद्रकला की ओर से एक जनवरी 2019 को आईपीआर (Immovable Property Return) दाखिल किया गया था। वर्ष 2018 की संपत्तियों के ब्योरे के लिए भरे इस रिटर्न में उन्होंने अपनी कुल सैलरी 91,400 रुपये महीना बताई।
इस सबमें चौंकाने वाली बात यह रही कि एक जनवरी 2019 को भरे इस रिटर्न में IAS बी चंद्रकला ने अपने पास सिर्फ इसी प्रॉपर्टी की जानकारी दी है। उसके पूर्व के वर्षों में भरे रिटर्न में उन्होंने जिन संपत्तियों की सूचना दी थी, उसके बारे में नए रिटर्न में कोई सूचना नहीं दी है।
ऐसे में सवाल यह उठता है कि क्या चंद्रकला (IAS Chandrakala) ने पूर्व की सारी प्रॉपर्टीज बेच दीं या फिर किन वजहों से उन्होंने नए रिटर्न में उसकी सूचना नहीं दी। एक ब्यूरोक्रेट की मानें तो हर साल के रिटर्न में अपनी सभी संपत्तियों की जानकारी देनी होती है, जो संबंधित अफसर और उसके परिवार के पास होती हैं, भले ही इसकी सूचना आप पूर्व में क्‍यों न दे चुके हों।
अखिलेश यादव सरकार में हमीरपुर, मथुरा, बुलंदशहर, मेरठ सहित पांच प्रमुख जिलों में डीएम रहने के बाद बी चंद्रकला ने नई सरकार आते ही दिल्ली में प्रतिनियुक्ति मांग ली।
योगी आदित्यनाथ सरकार बनने के बाद यूपी के बजाए दिल्ली में काम करने के उनके फैसले की चर्चा रही थी।
बहरहाल, मार्च 2017 में ही वह दिल्ली पहुंचीं और स्वच्छ भारत मिशन की निदेशक बन गईं। फिर केंद्रीय मंत्री साध्वी निरंजन ज्योति की निजी सचिव बनीं। इसके बाद फिर वह पिछले साल ही दोबारा यूपी लौटीं और माध्यमिक शिक्षा विभाग में विशेष सचिव का चार्ज लेने के बाद ही स्टडी लीव (शैक्षिक अवकाश) पर चली गईं। हमीरपुर में डीएम रहते चंद्रकला और सपा एमएलसी रमेश मिश्रा सहित कुल 10 लोगों के खिलाफ अवैध खनन का आरोप है। इलाहाबाद हाईकोर्ट के आदेश पर जांच में जुटी सीबीआई ने शनिवार (5 जनवरी) को उनके अलावा अन्य आरोपियों के ठिकानों पर छापेमारी की। एक जनवरी 2019 को उनके खिलाफ सीबीआई के डिप्टी एसपी केपी शर्मा ने खनन मामले में केस दर्ज किया है।
-Legend News
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