रविवार, 25 अक्तूबर 2020

पत्रकारों को विशेष संदेश देता है “विजय दशमी” का पर्व, बशर्ते ध्‍यान दें

 विजय दशमी…असत्‍य पर सत्‍य और अत्‍याचार पर सदाचार की विजय का प्रतीक पर्व… आज के दौर की पत्रकारिता तथा पत्रकारों को विशेष संदेश देता है।

मर्यादा पुरुषोत्तम का संदेश बहुत स्‍पष्‍ट है कि मर्यादा में रहकर भी असत्‍य और अत्‍याचार पर विजय हासिल की जा सकती है किंतु शक्‍ति की उपासना के साथ।
शक्‍ति और सामर्थ्‍य का अहसास कराए बिना विजय हासिल कर पाना संभव नहीं है।
“प्रेस” से “मीडिया” और “मीडिया” से “मीडिएटर” में तब्‍दील हो चुके इस एक “शब्‍द” का निहितार्थ समझना और समय की मांग को देखते हुए अपने ‘शब्‍दों’ की ताकत को पुनर्स्‍थापित करना जरूरी हो गया है अन्‍यथा भावी अनर्थ को रोक पाना असंभव हो जाएगा।

 चाटुकारिता कभी पत्रकारिता का पर्याय नहीं होती और मर्यादा कभी शक्‍तिहीन व श्रीहीन नहीं बनाती। यदि ऐसा होता तमाम आसुरी शक्‍तियों का वध करने वाले श्रीराम… ‘मर्यादा पुरुषोत्तम’ नहीं कहलाते।

वो मर्यादा पुरुषोत्तम इसीलिए हैं क्‍योंकि उन्‍होंने शक्‍ति और सामर्थ्‍य का इस्‍तेमाल वहां किया, जहां करना जरूरी था। न खुद उसे किसी पर जाया किया न अपने सहयोगियों को जाया करने दिया।
और जब लंका विजय में बाधा बनकर खड़े समुद्र ने अनेक अनुनय-विनय को अनसुना किया तो लक्ष्‍मण को ये बताने से भी नहीं चूके कि-
विनय न मानत जलधि जड़, गये तीन दिन बीत।
बोले राम सकोप तब, भय बिन होय न प्रीति।।
माना कि आज की पत्रकारिता कोई मिशन ने रहकर व्‍यवसाय बन चुकी है, बावजूद इसके उसका धर्म नहीं बदला।
व्‍यावसायिकता के इस दौर में भी यह समझना होगा कि कर्तव्‍यों का निर्वहन करते हुए और अधिकारों का अतिक्रमण किए बिना किस प्रकार इस धर्म का पालन किया जा सकता है।
“दुम हिलाने वालों के सामने टुकड़ा तो उछाला जाता है किंतु उन्‍हें सम्‍मान नहीं दिया जाता। सम्‍मान के साथ हक हासिल करने के लिए धर्म और कर्म को समझना समय की सबसे बड़ी मांग है।”
कर्तव्‍य के पथ पर भी वहीं निरंतर अग्रसर हो सकता है जो धर्म और कर्म के मर्म को समझे, अन्‍यथा पत्रकारिता की जो गति आज बन चुकी है उसकी दुर्गति कहीं अधिक भयावह हो सकती है।
-सुरेन्‍द्र चतुर्वेदी

शनिवार, 3 अक्तूबर 2020

क्‍या योगी सरकार अवैध खनन में लगे पुलिस-प्रशासन और माफिया के संगठित गिरोह को तोड़ पाएगी?

 


भ्रष्‍टाचार के मामले में जीरो टॉलरेंस की नीति पर काम करने का दावा करने वाले योगीराज में भ्रष्‍टाचार की शिकायतें क्‍यों आम हो गई हैं और क्‍यों इन पर अंकुश नहीं लग पा रहा, इसके पीछे यदि देखा जाए तो पुलिस-प्रशासन और माफिया का ऐसा संगठित गिरोह है जिसे किसी का खौफ नहीं रहा।

महोबा के संदर्भ में इस बात की पुष्‍टि करते हुए खुद मुख्‍यमंत्री आदित्‍यनाथ ने यह कहा है कि ऐसा लगता है जैसे पूरा गिरोह बनाकर भ्रष्‍टाचार को अंजाम दिया जा रहा है।
यहां सवाल किसी एक क्षेत्र से मिल रही शिकायत का नहीं है, हर सरकारी क्षेत्र का है क्‍योंकि कोई क्षेत्र ऐसा बाकी नहीं है जिसमें भ्रष्‍टाचार की गंध न बसी हो।
अगर बात करें अवैध खनन की तो शासन भी उसके सामने हारता दिखाई देता है, शायद इसीलिए प्रदेश का कोई हिस्‍सा खनन माफिया की सक्रियता से अछूता नहीं रहा।
वो जिले भी उनकी मनमानी से त्रस्‍त हैं जिनके बारे में कहा जाता है कि योगी आदित्‍यनाथ की उन पर सीधी निगाह रहती है।
ऐसा ही एक जिला है भगवान श्रीकृष्‍ण की पावन जन्‍मस्‍थली मथुरा। मथुरा से योगी आदित्‍यनाथ की कैबिनेट में दो ताकतवर मंत्री हैं और जनपद की कुल पांच विधानसभा सीटों में से चार पर भाजपा काबिज है। यहां की सांसद हेमा मालिनी भाजपा के विशिष्‍ट सांसदों में से एक हैं जबकि जिला पंचायत से लेकर नगर निगम तक पर भाजपा का परचम लहरा रहा है।
कुल मिलाकर यदि यह कहा जाए कि योगी आदित्‍यनाथ और भाजपा की नाक, आंख और कान यहां सब सक्रिय हैं तो कुछ गलत नहीं होगा परंतु आश्‍चर्यजनक रूप से यहां का जिला प्रशासन निष्‍क्रिय है।
उत्तर प्रदेश के तमाम दूसरे जिलों की तरह अवैध खनन मथुरा जनपद की एक बड़ी समस्‍या है। कृष्‍ण की पटरानी कालिंदी को खनन माफिया ने यहां पूरी तरह खोखला कर दिया है। अवैध खनन की शिकायतें आए दिन सक्षम अधिकारियों तक पहुंचाई जाती हैं लेकिन वो एक कान से सुनकर दूसरे कान से निकाल देते हैं।
अधिकारी ऐसा क्‍यों करते हैं, इससे कोई अनभिज्ञ नहीं है लेकिन मजबूरी यह है कि आम आदमी शिकायत करे तो किससे करे।
नियम कानूनों का हवाला देकर खनन माफिया पर हाथ न डालने वाली पुलिस भी तब उनके खिलाफ कार्यवाही करती है जब उसे उनसे मिलने वाली महीनेदारी में कमी दिखाई देने लगती है।
प्रशासनिक अधिकारी ये कहकर पल्‍ला झाड़ लेते हैं कि खनन माफिया को पुलिस का संरक्षण प्राप्‍त है लिहाजा वो उन्‍हें पकड़ने में उनका सहयोग नहीं करती।
सच तो यह है कि पुलिस-प्रशासन और माफिया के संगठित गिरोह ने जिले के कोयला अलीपुर, करनावल और अगरपुरा जैसे खादर के क्षेत्र को जेसीबी मशाीनों से छलनी कर दिया है।
बाढ़ के पानी को रोकने में सहायक इन इलाकों में अब इतने गहरे-गहरे गड्ढे बन गए हैं कि कई-कई हाथी एक के ऊपर एक खड़े किए जा सकते हैं। कृषि कार्य में उपयोगी ट्रैक्‍टर-ट्रालियां यहां भोर होने से पहले खनन करने में लगा दी जाती हैं जिससे अधिकतम खुदाई की जा सके।
यमुना किनारे के किसानों ने अवैध खनन को ही अपनी आमदनी का मुख्‍य जरिया बना लिया है और वो इसलिए अपने खेत की मिट्टी का भी सौदा करने से नहीं हिचकिचाते। स्‍थिति यह है कि जिले में जितना खनन यमुना की बालू का हो रहा है, उतना ही खेतों का सीना भी बड़ी बेदर्दी से चीरा जा रहा है।
मजे की बात यह है कि जिन क्षेत्रों में बाकायदा जेसीबी के साथ सैकड़ों की संख्‍या में ट्रैक्‍टर-ट्रॉली लगाकर खनन किया जा रहा है, उनके बारे में भी शिकायत करने पर पुलिस-प्रशासन कहता है कि उनकी जानकारी में ऐसा कुछ नहीं है।
यह हाल तो तब है जबकि बिना सेटिंग किए जा रहे खनन को पुलिस द्वारा सड़क पर रोककर वसूली करते कभी भी देखा जा सकता है।
दिन-रात चल रहे अवैध खनन के इस खेल ने सरकार द्वारा बनाई जाने वाली कई सड़कों का तो सत्‍यानाश किया ही है, लोगों के स्‍वास्‍थ्‍य पर भी प्रभाव डाला है क्‍योंकि दिन-रात उड़ने वाली रेत और धूल उन्‍हें गंभीर बीमारियों की सौगात दे रही है।
खनन माफिया के वाहन चूंकि हर वक्‍त बहुत जल्‍दी और तेजी में रहते हैं इसलिए उनके कारण आए दिन सड़क दुर्घटनाएं होना आम बात है।
राजस्‍व विभाग, खनन विभाग, पुलिस विभाग, परिवहन विभाग आदि सबकी चुप्‍पी यह बताती है कि कोई भी इस अवैध धंधे से होने वाली अतिरिक्‍त आमदनी का मोह त्‍यागने को तैयार नहीं है।
सच तो यह है कि यदा-कदा यदि इन्‍हें किसी शिकायत पर कार्यवाही करने को बाध्‍य होना भी पड़ता है तो ये अपने नेटवर्क के माध्‍यम से माफिया तक पहले ही सूचना भेज देते हैं नतीजतन शिकायतकर्ता सबके सामने झूठा साबित हो जाता है, साथ ही वह सबके निशाने पर भी आ जाता है। फिर एक लाइन से सबके सब शिकायतकर्ता से दुश्‍मनी निकालने में जुट जाते हैं ताकि दोबारा वह वैसी हिमाकत न करे।
यही कारण है कि वह शिकायतकर्ताओं को खुलेआम धमकी देने से बाज नहीं आते, यहां तक कि मीडिया को धमकाने से भी नहीं हिचकते क्‍योंकि उन्‍हें मालूम है कि उनके वर्चस्‍व को चुनौती देना इतना आसान नहीं है।
खनन माफिया के बुलंद हौसलों का अंदाज इस बात से भी लगाया जा सकता है कि यदि कभी कोई ईमानदार पुलिस या प्रशासनिक अधिकारी उसके काम में बाधक बने हैं तो उन्‍होंने उस पर प्राणघातक हमला करने में जरा भी देरी नहीं की।
समूचे उत्तर प्रदेश में रह-रहकर होने वाली ऐसी घटनाएं खनन माफिया के दुस्‍साहस की तस्‍दीक करती हैं।
विश्‍व के प्रमुख धार्मिक स्‍थानों में शुमार कृष्‍ण की जन्‍मभूमि मथुरा के एक ओर तो चूंकि यमुना बहती है और दूसरी ओर पवित्र अरावली पर्वत श्रृंखला है इसलिए खनन माफिया के लिए यह अन्‍य जिलों से कहीं अधिक मुफीद है। साथ ही मुफीद है, उन अफसरों के लिए भी जिनके लिए खनन माफिया किसी दुधारू गाय से कम नहीं।
अब देखना यह होगा कि भ्रष्‍टाचार एवं भ्रष्‍टाचारियों पर इन दिनों सख्‍त कार्यवाही करने में लगे योगी आदित्‍यनाथ कृष्‍ण की नगरी में चल रहे इस सुनियोजित अवैध धंधे की कड़ी तोड़ पाते हैं या पुलिस-प्रशासन और माफिया का संगठित गिरोह उन्‍हें फिर गुमराह करने में सफल हो जाता है।
-सुरेन्‍द्र चतुर्वेदी
Related Posts Plugin for WordPress, Blogger...