रविवार, 30 नवंबर 2014

MVDA के ईमानदार VC का भ्रष्‍ट विकास!

महाभारत नायक योगीराज श्रीकृष्‍ण की जन्‍मस्‍थली और विश्‍व विख्‍यात धार्मिक जिला मथुरा में एमवीडीए के उपाध्‍यक्ष पद पर तैनात पीसीएस अधिकारी नागेन्‍द्र प्रताप उसी तरह के ईमानदार हैं जिस तरह पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह हुआ करते थे।
कमिश्‍नर आगरा मण्‍डल प्रदीप भटनागर ने अपने निरीक्षण में मथुरा के चार अवैध निर्माणों को सील करवाकर यह साबित कर दिया कि मथुरा-वृंदावन विकास प्राधिकरण में ऊपर से नीचे तक भ्रष्‍टाचार का बोलबाला है और यहां तैनात अधिकारी अपने-अपने तरीके से इस भ्रष्‍टाचार को भरपूर प्राश्रय दे रहे हैं।
यहां ध्‍यान देने की बात यह है कि कमिश्‍नर प्रदीप भटनागर को इन अवैध निर्माणों पर कार्यवाही करने के लिए मथुरा-वृंदावन विकास प्राधिकरण के अधिकारियों को लगभग खदेड़ कर भेजना पड़ा अन्‍यथा बेहिसाब शिकवा-शिकायतों के बावजूद ये अधिकारी अवैध निर्माण को लेकर आंखें बंद किये बैठे थे।
उल्‍लेखनीय है कि विकास प्राधिकरण मथुरा-वृंदावन के उपाध्‍यक्ष नागेन्‍द्र प्रताप यादव को सत्‍ताधारी समाजवादी पार्टी के परिवार का अंग माना जाता है और कहा जाता है कि वह शासन स्‍तर से कुछ भी कराने में सक्षम हैं।
इसी प्रकार सचिव श्‍याम बहादुर सिंह की भी मथुरा जैसे मलाईदार प्राधिकरण में पोस्‍टिंग तथा उपाध्‍यक्ष नागेन्‍द्र प्रताप यादव से सेटिंग यह साबित करती है कि उनकी शासन स्‍तर पर पहुंच कम नहीं है।
ऐसे में इन दोनों अधिकारियों को लेकर यह सवाल पैदा होना स्‍वाभाविक है कि फिर उक्‍त अधिकारी किसलिए प्राधिकरण के क्षेत्र में अवैध निर्माण पर जिंदा मक्‍खी निगल रहे थे और क्‍यों सारी शिकायतों को पी रहे थे?
जाहिर है कि दोनों अधिकारियों के लगातार ऐसा करने के पीछे कोई न कोई निजी स्‍वार्थ जरूर रहा होगा अन्‍यथा प्राधिकरण के उपाध्‍यक्ष जिन नागेन्‍द्र प्रताप की गिनती ईमानदार अधिकारियों में की जाती है, वह क्‍यों खुद तथा अपने अधीनस्‍थों को भ्रष्‍टाचार की बुनियाद पर एक-दो नहीं अनेक इमारतें खड़ी कराते देखने के बाद भी अब तक चुप्‍पी साधे बैठे रहे।
गौरतलब है कि मथुरा-वृंदावन विकास प्राधिकरण ने कल कमिश्‍नर के आदेश पर जिन चार अवैध निर्माणों के खिलाफ कार्यवाही की है, वह तो मात्र उदाहरण भर हैं। सच तो यह है कि ऐसे अवैध निर्माणों की मथुरा, वृंदावन तथा गोवर्धन में लंबी फेहरिस्‍त है जबकि यह तीनों स्‍थान प्राधिकरण के कार्यक्षेत्र का हिस्‍सा हैं।
मथुरा में राष्‍ट्रीय राजमार्ग नंबर दो पर खड़ी की जा रही कई कॉलोनियों में पास नक्‍शे के इतर काफी अवैध निर्माण कराया जा चुका है और कॉलोनाइजर इस अवैध निर्माण को प्राधिकरण से अप्रूव्‍ड घोषित कर बेच भी चुके हैं पर प्राधिकरण के अधिकारी तमाशबीन बने हुए हैं। बताया जाता है कि इन सबको वैध कराने के लिए अधिकारियों एवं बिल्‍डर्स के बीच लंबे समय से बार्गेनिंग चल रही है। प्रति अवैध फ्लैट के हिसाब से करोड़ों की डील हुई है। प्राधिकरण के ही सूत्र बताते हैं कि कुछ पर मोहर लग चुकी है और कुछ पर लगना बाकी है।
यही हाल वृंदावन का है। वृंदावन में चूंकि फ्लैट, विला तथा भवनों की मांग काफी ज्‍यादा है इसलिए वृंदावन में अवैध निर्माण मथुरा से कहीं अधिक संख्‍या में चल रहा है। यहां कोई बिल्‍डर मल्‍टी स्‍टोरी बिल्‍डिंग की छत पर ही हैलीपैड की सुविधा देने का प्रचार कर रहा है तो कोई अपने प्रोजेक्‍ट को विश्‍व स्‍तरीय सुविधाओं से सुसज्‍जित करने का प्रचार करके लोगों की जेब तराश रहा है लेकिन न कोई देखने वाला है और न सुनने वाला।
आश्‍चर्य की बात तो यह है कि प्राधिकरण के क्षेत्र में और कृष्‍ण जन्‍मभूमि के सर्वाधिक संवेदनशील यलो व ग्रीन जोन में निर्माणाधीन इन बहुमंजिला रिहायशी इमारतों के नक्‍शे किस स्‍तर पर और कैसे पास हो रहे हैं, पास हैं भी या नहीं, हैं तो कितनी मंजिल तक के नक्‍शे पास हैं, इन सवालों के जवाब देने वाला कोई नहीं।
दरअसल विकास प्राधिकरण के संरक्षण में भ्रष्‍टाचार की बुनियाद पर इन इमारतों की लंबाई तथा इनकी संख्‍या बढ़ते जाने का एक प्रमुख कारण और है। यह कारण है प्राधिकरण और बिल्‍डर्स को यह पता होना कि मीडिया की कमजोरी क्‍या है।
सर्वविदित है कि मीडिया की कमजोरी हैं विज्ञापन, इसलिए विकास प्राधिकरण और बिल्‍डर्स अपने-अपने स्‍तर से मीडिया को विज्ञापन की पंजीरी बांटकर उसका मुंह बंद करते रहते हैं। चूंकि मीडिया ही उनके इस कारनामे तथा बिल्‍डर्स व अधिकारियों की सांठगांठ को उजागर कर सकता है लिहाजा वह मीडिया की इस कमजोरी का पूरा लाभ उठा  रहे हैं।
मीडिया इसी में खुश रहता है कि उसे बिल्‍डर भी विज्ञापन देता है और प्राधिकरण भी, बाकी जनता जाये भाड़ में। जनता से उसे मिलना भी क्‍या है। यूं भी अब अखबार और अखबार नवीसों का जनहित से कोई सीधा वास्‍ता रह नहीं गया। जनहितकारी होने का ढोंग वह उसी स्‍थिति-परिस्‍थिति में करते हैं जब वैसा करना उनकी बाध्‍यता हो जाती है। जैसे कल कमिश्‍नर के आदेश पर अवैध निर्माण सील करने के बाद तो खबरें प्रकाशित की गईं हैं किंतु इससे पहले मीडिया अपने मुंह पर खुद सील लगाये हुए था जबकि उसे सब-कुछ पता था।
ये बात दीगर है कि जिन इमारतों में अवैध निर्माण चल रहा है उनमें से अधिकांश शहर के उन लोगों की है जिनसे मीडिया व मीडियाकर्मी समय-समय पर ऑब्‍लाइज होते रहते हैं या जिनके लिए ऐसे लाइजनर सक्रिय हैं जो मीडिया को मैनेज करके रखते हैं।
कल भी जो इमारतें सील हुई हैं उनमें से दो इमारतों का स्‍वामित्‍व ऐसे तत्‍वों के पास है जिनकी प्रशासन तथा मीडिया में तूती बोलती है। वह दिन को रात कह दें तो मीडिया वही कहता है और रात को दिन बता दें तो मीडिया वह रटने लगता है।
यही कारण है कि मथुरा में अवैध निर्माण बेहिसाब बढ़ता जा रहा है क्‍योंकि प्रशासन, मीडिया तथा बिल्‍डर्स का गठजोड़ सबको खुली चुनौती देने में सक्षम है।
आज एमवीडीए के उपाध्‍यक्ष नागेन्‍द्र प्रताप हैं तथा सचिव श्‍याम बहादुर सिंह, कल इनकी जगह कोई दूसरे अधिकारी हो सकते हैं लेकिन न तो मीडिया बदलने वाला है और न वो कॉकस जो हर अधिकारी को अपने चंगुल में ले लेता है।
भ्रष्‍ट अधिकारी तो इनकी राह देखते हैं लेकिन ईमानदारी का तमगा लगाये बैठे तथा शासन तक पहुंच रखने वाले नागेन्‍द्र प्रताप जैसे अधिकारी भी इस कॉकस से बच नहीं पाते।
माना कि कमिश्‍नर ने बहुत सी शिकायतों के मद्देनजर चार अवैध निर्माण कार्यों के खिलाफ इन अधिकारियों को कार्यवाही करने पर मजबूर कर दिया लेकिन उन तमाम इमारतों का क्‍या जो अब भी सारे नियम-कानूनों को खुली चुनौती दे रही हैं और आमजन के व्‍यवस्‍था में भरोसे का मजाक उड़ा रही हैं। झूठे प्रचार के जरिए इन्‍हें खड़ा करने वाले आमजन की जेब काट रहे हैं और मीडिया इसमें उनका सहयोग कर जनता के भरोसे का खून कर रहा है।
रीयल एस्‍टेट और प्राधिकरण के गठजोड़ से बने इस कॉकस के हाथ फिलहाल तो कानून से भी अधिक शक्‍तिशाली प्रतीत होते हैं। कमिश्‍नर प्रदीप भटनागर भी इस तल्‍ख सच्‍चाई को भली-भांति जानते होंगे।
हो सकता है इनमें से कल कोई उन्‍हें अपनी ताकत का अहसास कमिश्‍नर साहब को भी करा दे तथा फिर सब-कुछ उसी प्रकार ढर्रे पर चलने लगे जैसा अब तक चला आ रहा था.... बेशक कमिश्‍नर साहब ने एक कंकड़ फैंककर उथल-पुथल मचा दी है।
यदि ऐसा होता है तो कोई आश्‍चर्य नहीं....आश्‍चर्य तो तब होगा जब कल जिन इमारतों को सील किया गया है, उनकी सील न टूट पाए और दूसरी भी ऐसी तमाम इमारतें सील कर दी जाएं।
-लीजेण्‍ड न्‍यूज़ विशेष        
 

सोमवार, 24 नवंबर 2014

ममता हैं सारधा चिटफंड घोटाले की सबसे बड़ी लाभार्थी: कुणाल

कोलकाता। 
तृणमूल कांग्रेस से निलंबित सांसद व सारधा चिटफंड घोटाले के आरोपी कुणाल घोष ने राज्य की मुखिया ममता बेनर्जी पर आरोप लगाते हुए कहा है कि वह इस घोटाले की सबसे बड़ी लाभार्थी हैं। उन्होंने कहा है कि ममता को उनके सामने बैठाकर संयुक्त रूप से पूछताछ की जानी चाहिए। गौरतलब है कि घोष ने कुछ ही दिन पहले जेल में नींद की गोलियां खाकर आत्महत्या करने की कोशिश की।
उन्होंने धमकी दी थी कि अगर सीबीआई ने घोटाले के असली आरोपियों को गिरफ्तार नहीं किया तो वह आत्महत्या कर लेंगे। घोष द्वारा की गई आत्महत्या की कोशिश के बाद राज्य सरकार ने कारागार मंत्री एचए सफवी को पद से हटा दिया था। सारधा घोटाले में नाम आने के बाद कुणाल घोष ही वह शख्स हैं जिन्होंने मामले से बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी का संबंध होने की बात कही थी।

दिल्‍ली के 300 जज लैपटॉप घोटाले में शामिल, जांच शुरू

नई दिल्‍ली। 
दिल्ली की निचली अदालतों के करीब 300 जज लैपटॉप खरीदने में बरती गई अनियमितताओं को लेकर जांच की जद में हैं। साल 2013 में दिल्ली सरकार और दिल्ली हाईकोर्ट ने लैपटॉप खरीदने के लिए फंड जारी किया था मगर अधिकांश जजों ने कंप्यूटर और लैपटॉप्स के पैसों से अपने घर के लिए टीवी और होम थिएटर खरीद लिए।
दिल्ली हाईकोर्ट की चीफ जस्टिस जी. रोहिणी ने हाईकोर्ट के 3 जजों का पैनल बनाया है, जो इन जजों द्वारा खर्च किए गए पैसे की जांच कर रहा है। पैनल जजों द्वारा लैपटॉप्स खरीदने के बाद जमा करवाए गए डॉक्यूमेंट्स की जांच कर रहा है।
इस स्कीम के तहत जजों को कंप्यूटर व अन्य इन्फ्रास्ट्रक्चर अपडेट करने के लिए 1 लाख 10 हजार रुपये तक की रकम खर्च करनी थी। इस स्कीम के पीछे विचार यह था कि जज अपनी सुविधा के हिसाब के कंप्यूटर, लैपटॉप्स या आईपैड ले सकें ताकि केसों को निबटाने की रफ्तार बढ़ जाए।
जांच कर रहे पैनल ने न्यायिक अधिकारियों को मेमो जारी किए हैं और पूछा है कि आपने पैसे किस तरह से खर्च किए। एक सूत्र ने बतायाा, 'सभी जज शुरुआत में जांच की जद में थे लेकिन अब करीब 300 जजों पर शक है कि उन्होंने अनियमितता बरती। पाया गया कि इनमें से कुछ ने टीवी या होम थिएटर सिस्टम खरीद लिए।'
यह मामला तब सामने आया जब रुटीन विजिलेंस इन्क्वायरी की गई। चीफ जस्टिस और अन्य सीनियर जजों को सबूत दिखाए गए, तब जाकर हरकत में आते हुए चीफ जस्टिस जी. रोहिणी ने जांच के लिए 3 सीनियर जजों का एक पैनल बनाया।
सूत्रों के मुताबिज जांच पैनल की तरफ से जारी मेमो का जवाब देते हुए कई जजों ने बताया है कि उन्होंने क्या खरीदा है। इसके लिए कुछ ने अपने डेबिट/क्रेडिट कार्ड्स की डीटेल्स भी अटैच की हैं ताकि दिखाया जा सके कि जितने का बिल है उतनी ही पेमेंट भी हुई है। जांच पैनल वेंडर्स की जानकारी भी चेक कर रहा है।

शुक्रवार, 14 नवंबर 2014

IPL फिक्‍सिंग केस में सुप्रीम कोर्ट ने किया नामों का खुलासा

नई दिल्‍ली। 
सुप्रीम कोर्ट ने आईपीएल में मैच फिक्सिंग को लेकर अहम नामों का खुलासा किया है। सुप्रीम कोर्ट की सुनवाई के दौरान चार नामों का खुलासा हुआ है। सुप्रीम कोर्ट की सुनवाई के दौरान जिन चार नामों का खुलासा हुआ है वे हैं सुंदर रमन, मय्यपन, श्रीनिवासन और राज कुंद्रा। इसके साथ ही बीसीसीआई के चुनावों के लिए होने वाली सालाना बैठक को भी सुप्रीम कोर्ट ने स्‍थागित करने के लिए कहा है। सुप्रीम कोर्ट ने फिलहाल मुदगल कमेटी रिपोर्ट में शामिल खिलाड़ियों के नामों का खुलासा नहीं किया है।
सुप्रीम कोर्ट ने जिन लोगों के नामों का खुलासा किया है। उन लोगों को रिपोर्ट की कॉपी उपलब्‍ध कराई जाएगी। चार हफ्ते के अंदर इन लोगों को अपना जवाब दाखिल करना है।
सुप्रीम कोर्ट आईपीएल में मैच फिक्सिंग को लेकर अब अगली सुनवाई 24 नवंबर को करेगा। अभी इस बात का पता नहीं हो पाया है कि सुप्रीम कोर्ट ने इन नामों का खुलासा किस संदर्भ में किया है।
गौरतलब है कि वर्ष 2011 में वर्ल्ड कप जीतने वाली भारतीय टीम में शामिल एक प्रमुख खिलाड़ी का नाम आईपीएल मैच फिक्सिंग में शामिल है। इस बात का पता जस्टिस मुकुल मुदगल कमेटी की तरफ से सुप्रीम कोर्ट में आईपीएल मैच फिक्सिंग को लेकर जमा की गई फाइनल रिपोर्ट में है।
जस्टिस मुकुल मुदगल कमेटी की रिपोर्ट से पता चला है कि यह खिलाड़ी टीम ‌इंडिया का नियमित खिलाड़ी नहीं है पर उस खिलाड़ी ने अंतिम आईपीएल में एक प्रमुख टीम की तरफ से मैच खेला था।
जांच रिपोर्ट में यह बात सामने आई थी कि जिस खिलाड़ी का नाम रिपोर्ट में सामने आया है। उसका चेन्नई और जयपुर फ्रेंचाइजी से कुछ भी लेना-देना नहीं है। इस मामले में दो अन्य टीमों के खिलाड़ी जांच के दायरे में हैं।
तीन साल पुराने फोन टेप के जरिए इस खिलाड़ी से पूछताछ की गई है। सुप्रीम कोर्ट की तरफ से नियुक्त किए गए आईपीएस अधिकारी बीबी मिश्रा ने इस खिलाड़ी को समन दिया और उससे पूछताछ की है। बीबी मिश्रा को जस्टिस मुकुल मुदगल कमेटी की मदद करने के लिए नियुक्त किया गया है।
इससे पहले भारतीय टीम के कई वरिष्ठ खिलाड़ियों से इस मामले में पूछताछ हो चुकी है। आईसीसी चेयरमैन एन श्रीनिवासन के दामाद मय्यपन की भूमिका को लेकर चेन्नई सुपर किंग्स के कई खिलाड़ियों से पूछताछ की गई थी।
ऑडियो टेप की फॉरेसिंक रिपोर्ट में मय्यपन की आवाज के नमूने सही पाए गए। इस ऑडियो टेप में मय्यपन की तरफ से आईपीएल मैचों सट्टेबाजी को लेकर बातचीत की गई है।
सुप्रीम कोर्ट की तरफ से बनाई गई कमेटी में सॉलिस्टिर जनरल एल नागेश्चर राव, वरिष्ठ अधिवक्ता निलॉय डूटा, बीबी मिश्रा और पूर्व भारतीय कप्तान सौरव गांगुली शामिल है।
जस्टिस मुदगल कमेटी ने अपनी रिपोर्ट में किसी का नाम भी लीक न हो इसके लिए जांच रिपोर्ट में खिलाड़ियों को नाम के बजाए नंबर से संबोधित किया गया है।
-एजेंसी

सोमवार, 10 नवंबर 2014

फिर एक 'संत' की कानून-व्‍यवस्‍था को खुली चुनौती

हिसार/नई दिल्‍ली।
जूनियर इंजीनियर पद से बर्खास्‍तगी के बाद 'संत' बने रामपाल आज भी कोर्ट में पेश नहीं होंगे। उनकी ओर से कोर्ट को मेडिकल रिपोर्ट भिजवा दी गई है। उनके वकील अदालत को बता रहे हैं कि खराब सेहत की वजह से रामपाल कोर्ट आने की स्थिति में नहीं हैं। रामपाल के निजी गार्ड्स और समर्थकों ने पुलिस को रोकने के लिए रविवार से ही मोर्चाबंदी कर रखी है। जमीन विवाद और हत्‍या के एक मामले में बार-बार समन के बावजूद पेश नहीं होने पर कोर्ट ने रामपाल को 10 नवंबर को पेश करने का आदेश दिया था लेकिन पुलिस ने उनकी गिरफ्तारी के लिए कोई पहल नहीं की। उनके समर्थकों की मोर्चाबंदी के मद्देनजर आश्रम से करीब 25 किलोमीटर दूर पुलिस ने अतिरिक्‍त कंपनियां एहतियातन तैयार रखी थीं लेकिन रामपाल की गिरफ्तारी के लिए पुलिस ने कदम नहीं उठाए।
चंडीगढ़ में पूरी तैयारी
हिसार में बाबा के करीब 50 हजार समर्थक उनके डेरे को घेरा डालकर खड़े हैं। उधर, चंडीगढ़ पुलिस ने अपनी ओर से पूरी तैयारी कर रखी है। सोमवार सुबह 4 बजे से शहर के सारे एंट्री प्वाइंट, रेलवे स्टेशन और हाईकोर्ट में 5 हजार जवान तैनात किए गए हैं। अगर बाबा के समर्थक चंडीगढ़ पहुंचते हैं तो हाउसिंग बोर्ड के पास, रेलवे लाइट प्वाइंट और हाईकोर्ट की सड़क के पास से ट्रैफिक डायवर्ट किया जाएगा। चंडीगढ़ की तरफ से रेलवे स्टेशन की एंट्री ही बंद कर दी जाएगी। स्टेशन पर जीआरपी ने 150 महिला कांस्टेबल और 450 पुरुष कांस्टेबल तैनात किए गए हैं। जीआरपी के 50 अफसर भी तैनात हैं।
सतलोक आश्रम के संचालक रामपाल ने रविवार को शासन और प्रशासन को अपनी ताकत का अहसास कराने में कोई कमी नहीं छोड़ी। बंदूकों से लैस उनके निजी कमांडो आश्रम की छतों के अलावा चंडीगढ़ हाईवे पर घूमते नजर आए। ये कमांडो आश्रम के आसपास एक किलोमीटर के दायरे में फैले हुए थे।
आश्रम ने सशस्त्र युवाओं को दिखाकर पुलिस प्रशासन को डराया, वहीं महिलाओं और बच्चों को टकराव रोकने के लिए ढाल भी बनाया। सैकड़ों महिलाएं अपने बच्चों को गोदी में लेकर आश्रम के मुख्य द्वार पर घंटों बैठी रहीं। रामपाल के अनुयायी बैनर लेकर करौंथा कांड की सीबीआई जांच के साथ कुछ जजों के नाम लिखकर उनके ऊपर कार्यवाही की मांग की कर रहे थे। इस दौरान हाईवे से गुजरने वाला हर शख्स आश्रम के बाहर की गतिविधियों को देखकर चुपके से गुजरता रहा। अगर किसी अनजान शख्स ने आश्रम के सामने रुक कर पड़ताल करने की कोशिश की तो उसे संत के अनुयायियों ने पकड़ लिया और पूछताछ करने के बाद ही छोड़ा। ऐसा दहशत भरा माहौल दोपहर दो बजे तक रहा। फिर महिलाओं को आश्रम के भीतर भेज दिया गया और छतों से कमांडो भी हटा लिए गए।
दोपहर बाद माहौल में बदलाव को लेकर जब आश्रम के प्रवक्ता राजकपूर से बात हुई तो उनका कहना था कि सुबह कुछ ऐसी जानकारी मिली थी, जिससे सुरक्षा प्रबंध बढ़ाए गए थे। वैसे भी साधक टकराने के लिए तैनात नहीं थे बल्कि अपने गुरुजी के लिए जान न्योछावर करने के लिए खड़े थे। गुरुजी अपने उपदेश में कहते भी हैं, मारने से अच्छा मरना है। उनका कहना था कि सुरक्षा में तैनात अनुयायियों को कम करने के पीछे एक वजह यह भी है कि अगर पुलिस कोई कार्यवाही के लिए हिसार से चलेगी तो उन्हें आधा घंटे से अधिक समय लगेगा और हमें तीन से चार मिनट लगेंगे।
रिश्तेदारों के पास ठहरे हैं अनुयायी
संत रामपाल के अनुयायी केवल आश्रम में ही मौजूद नहीं हैं, बल्कि आसपास के गांवों में अपने रिश्तेदारों के पास भी ठहरे हुए हैं। वे टेलीविजन और फोन के माध्यम से आश्रम की जानकारी ले रहे हैं। उन्हें पुलिस से टकराव की स्थिति में तत्काल आश्रम पहुंचने के निर्देश हैं।
मीडिया से बात न करने की हिदायत
रविवार को सत्संग का आखिरी दिन होने से आश्रम में श्रद्धालुओं की संख्या लगातार बढ़ रही थी। इस पर आश्रम के सामने माहौल को देखने के लिए 11 बजे के बाद मीडियाकर्मियों की आवाजाही शुरू हो गई। आश्रम प्रबंधन ने सभी श्रद्धालुओं और अपने कमांडोज को मीडिया से बातचीत नहीं करने की हिदायत दी ताकि आश्रम की जानकारी प्रशासन तक न पहुंच सके।
सत्संग के बाद डटे रहे श्रद्धालु
बरवाला आश्रम में पिछले तीन दिनों से चल रहा सत्संग रविवार रात 10 बजे खत्म हो गया। पर इसके बाद भी श्रद्धालु आश्रम में ही डटे रहे। रात को काफी अनुयायी आश्रम से निकल गए। इसके बावजूद देर रात तक हजारों लोग आश्रम में मौजूद थे।
लिस का एक भी अधिकारी नहीं पहुंचा आश्रम
वैसे तो पुलिस प्रशासन ने संत रामपाल की गिरफ्तारी के लिए जिलेभर में पैरा मिलिट्री फोर्स सहित हरियाणा पुलिस की 35 कंपनियां तैनात की है लेकिन गिरफ्तारी से संबंधित बातचीत को लेकर एक भी पुलिसकर्मी रविवार को आश्रम नहीं पहुंचा। आश्रम के प्रवक्ता राजकपूर ने बताया कि कोई भी पुलिस अधिकारी आश्रम में नहीं आया है।
प्रवक्ता बोले : कोर्ट को लेकर दुविधा में
आश्रम के प्रवक्ता राजकपूर ने कहा कि गुरुजी के सामने अजीब समस्या पैदा हो गई है। अगर वह कोर्ट में जाते हैं तो अवमानना का नोटिस आ जाता है और पेश नहीं होते हैं तो गैर जमानती वारंट जारी कर दिया जाता है।
एसपी बोले:  हर हलचल पर नजर
रामपाल की गिरफ्तारी के लिए सभी प्रयास किए जा रहे हैं। हर हलचल पर नजर है। हाईकोर्ट के निर्देशों की पालना होगी।
- सतेंद्र गुप्ता, एसपी।
सतलोक आश्रम के बाहर हिसार-चंडीगढ़ हाईवे पर करीब एक किलोमीटर तक संत रामपाल के अनुयायियों का जमावड़ा रहा।
आश्रम के अंदर आने वाले भक्तों पर भी पैनी नजर रखी जा रही है। आश्रम के मेन गेट पर भारी संख्या में संत के अनुयायी हर आदमी पर नजर रखे हुए हैं। वहीं, एसडीएम प्रशांत अटकान सहित अन्य स्थानीय आश्रम के मौजूदा हालात पर नजर रखे हैं।
सतलोक आश्रम और पुलिस-प्रशासन के बीच टकराव की आशंका के चलते आश्रम के नजदीक से सरकारी बसों को गुजरने नहीं दिया गया। फिर भी पूरे दिन संत के अनुयायियों का आना-जाना जारी रहा। आश्रम की बसें अनुयायियों को लाने और ले जाने में लगातार जुटी रहीं।
जिला प्रशासन ने सतलोक आश्रम के संचालक संत रामपाल की गिरफ्तारी के वारंट जारी होने के मामले में बरवाला पुलिस स्टेशन में दमकल विभाग की गाड़ियां, एंबुलेंस और क्रेन को तैनात किया गया है। गौरतलब है कि पंजाब-हरियाणा हाईकोर्ट ने तथाकथित संत रामपाल के खिलाफ गैरजमानती वारंट जारी करते हुए उन्हें 10 नवंबर को अदालत में पेश करने का निर्देश दिया है। उनके अनुयायियों ने संत को अस्वस्थ बताते हुए उनकी गिरफ्तारी का आदेश मानने से साफ मना कर दिया है। ऐसे में प्रशासन व अनुयायियों में टकराव की आशंका है।
संत पर अदालती काम में दखल देने का आरोप है। इसी मामले में उन्हें कई बार पेशी के आदेश हो चुके हैं मगर वह पेश नहीं हुए। पंजाब एवं हरियाणा उच्च न्यायालय ने लगातार तीसरी पेशी में हाजिर न होने के मामले में रोहतक के करौंथा गांव स्थित आश्रम के संत रामपाल के खिलाफ गैर जमानती वारंट जारी किए हैं क्योंकि वे तीसरी पेशी पर भी नहीं पहुंच सके।
सतलोक आश्रम के श्रद्धालुओं की संस्था राष्ट्रीय समाजसेवा कमेटी के अध्यक्ष राम कुमार ढाका के खिलाफ भी गैर जमानती वारंट जारी किए थे लेकिन वे कोर्ट में पेश हो गए हैं। ढाका ने अदालत में शपथ-पत्र देकर हिसार अदालत के बाहर हंगामे की जिम्मेदारी ली थी और कहा था कि हंगामे से संत रामपाल को कोई लेना-देना नहीं है।
न्यायालय ने हरियाणा के पुलिस महानिदेशक तथा गृह सचिव को 10 नवंबर को अपनी मौजूदगी में आदेश की पालना सुनिश्चित कराने के निर्देश दिए हैं। संत रामपाल की आज न्यायालय में पेशी होनी थी और ऐहतियाती तौर पर पुलिस ने कड़े सुरक्षा के इंतजाम किए। करीब तीन हजार पुलिसकर्मी ड्‍यूटी पर तैनात किये गये। पेशी को देखते हुए प्रशासन ने धारा 144 लगा रखी है ताकि संत के समर्थक कोई बवाल न मचाएं। जीरकपुर, मोहाली और पंचकूला में चंडीगढ़ प्रवेश द्वारों पर नाके लगाए हुए थे।
-Legendnews

रविवार, 2 नवंबर 2014

ये क्‍या, नमामि गंगे की 1 मीटिंग 43 लाख की ?

नब्बे के दशक से ही हिंदुस्तान की सरकारें गंगा की सफाई के बहाने हजारों करोड़ बहा चुकी हैं और ऐसा लगता है कि आने वाले सालों में भी ये सिलसिला थमेगा नहीं. बड़े बड़े वादों से गंगा और जनता को नमामि गंगे के जरिए स्वच्छता की नई उम्मीद देने वाले मोदी के मंत्री भी गंगा की सफाई के नाम पर एक बैठक में लाखों रुपये निगल रहे हैं.
लोकसभा चुनावों में काशी से जीतकर प्रधानमंत्री बने नरेंद्र मोदी का गंगा की सफाई का सपना खर्चीला साबित होने जा रहा है. एक बैठक पर लाखों रुपये खर्च किए जा रहे हैं.
आरटीआई कार्यकर्ता गोपाल प्रसाद की ओर से सूचना के अधिकार के तहत मांगी गई जानकारी के आधार पर सरकार ने विज्ञान भवन में स्वच्छ गंगा के लिए आयोजित राष्ट्रीय मिशन की एक बैठक पर 43.85 लाख रुपये खर्च किए.
बैठक के लिए खर्च किए पैसों के आंकड़े चौंकाने वाले हैं, क्योंकि बैठक के लिए आए अतिथियों की सुविधाओं पर 26.7 लाख रुपये खर्च किए गए जबकि अधिकारियों की यात्रा पर 8.8 लाख रुपये बहा दिए गए.
इसके साथ ही गंगा की सफाई के लिए प्रचार पर 5.1 लाख रुपये खर्च किए गए.
दिलचस्प है कि सरकार ने इस बैठक के लिए 75 हजार रुपये सिर्फ साज सज्जा पर खर्च किए. इसके अलावा दूसरी सुविधाओं के लिए 2.3 लाख रुपये खर्च हुए.
गौरतलब है कि बीजेपी नीत केंद्र सरकार ने समेकित गंगा संरक्षण मिशन के लिए नमामि गंगे अभियान की घोषणा की है. इसके लिए केंद्रीय बजट से 2,037 करोड़ आवंटित किया गया है.
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