महाभारत नायक योगीराज श्रीकृष्ण की
जन्मस्थली और विश्व विख्यात धार्मिक जिला मथुरा में एमवीडीए के
उपाध्यक्ष पद पर तैनात पीसीएस अधिकारी नागेन्द्र प्रताप उसी तरह के
ईमानदार हैं जिस तरह पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह हुआ करते थे।
कमिश्नर आगरा मण्डल प्रदीप भटनागर ने अपने निरीक्षण में मथुरा के चार अवैध निर्माणों को सील करवाकर यह साबित कर दिया कि मथुरा-वृंदावन विकास प्राधिकरण में ऊपर से नीचे तक भ्रष्टाचार का बोलबाला है और यहां तैनात अधिकारी अपने-अपने तरीके से इस भ्रष्टाचार को भरपूर प्राश्रय दे रहे हैं।
यहां ध्यान देने की बात यह है कि कमिश्नर प्रदीप भटनागर को इन अवैध निर्माणों पर कार्यवाही करने के लिए मथुरा-वृंदावन विकास प्राधिकरण के अधिकारियों को लगभग खदेड़ कर भेजना पड़ा अन्यथा बेहिसाब शिकवा-शिकायतों के बावजूद ये अधिकारी अवैध निर्माण को लेकर आंखें बंद किये बैठे थे।
उल्लेखनीय है कि विकास प्राधिकरण मथुरा-वृंदावन के उपाध्यक्ष नागेन्द्र प्रताप यादव को सत्ताधारी समाजवादी पार्टी के परिवार का अंग माना जाता है और कहा जाता है कि वह शासन स्तर से कुछ भी कराने में सक्षम हैं।
इसी प्रकार सचिव श्याम बहादुर सिंह की भी मथुरा जैसे मलाईदार प्राधिकरण में पोस्टिंग तथा उपाध्यक्ष नागेन्द्र प्रताप यादव से सेटिंग यह साबित करती है कि उनकी शासन स्तर पर पहुंच कम नहीं है।
ऐसे में इन दोनों अधिकारियों को लेकर यह सवाल पैदा होना स्वाभाविक है कि फिर उक्त अधिकारी किसलिए प्राधिकरण के क्षेत्र में अवैध निर्माण पर जिंदा मक्खी निगल रहे थे और क्यों सारी शिकायतों को पी रहे थे?
जाहिर है कि दोनों अधिकारियों के लगातार ऐसा करने के पीछे कोई न कोई निजी स्वार्थ जरूर रहा होगा अन्यथा प्राधिकरण के उपाध्यक्ष जिन नागेन्द्र प्रताप की गिनती ईमानदार अधिकारियों में की जाती है, वह क्यों खुद तथा अपने अधीनस्थों को भ्रष्टाचार की बुनियाद पर एक-दो नहीं अनेक इमारतें खड़ी कराते देखने के बाद भी अब तक चुप्पी साधे बैठे रहे।
गौरतलब है कि मथुरा-वृंदावन विकास प्राधिकरण ने कल कमिश्नर के आदेश पर जिन चार अवैध निर्माणों के खिलाफ कार्यवाही की है, वह तो मात्र उदाहरण भर हैं। सच तो यह है कि ऐसे अवैध निर्माणों की मथुरा, वृंदावन तथा गोवर्धन में लंबी फेहरिस्त है जबकि यह तीनों स्थान प्राधिकरण के कार्यक्षेत्र का हिस्सा हैं।
मथुरा में राष्ट्रीय राजमार्ग नंबर दो पर खड़ी की जा रही कई कॉलोनियों में पास नक्शे के इतर काफी अवैध निर्माण कराया जा चुका है और कॉलोनाइजर इस अवैध निर्माण को प्राधिकरण से अप्रूव्ड घोषित कर बेच भी चुके हैं पर प्राधिकरण के अधिकारी तमाशबीन बने हुए हैं। बताया जाता है कि इन सबको वैध कराने के लिए अधिकारियों एवं बिल्डर्स के बीच लंबे समय से बार्गेनिंग चल रही है। प्रति अवैध फ्लैट के हिसाब से करोड़ों की डील हुई है। प्राधिकरण के ही सूत्र बताते हैं कि कुछ पर मोहर लग चुकी है और कुछ पर लगना बाकी है।
यही हाल वृंदावन का है। वृंदावन में चूंकि फ्लैट, विला तथा भवनों की मांग काफी ज्यादा है इसलिए वृंदावन में अवैध निर्माण मथुरा से कहीं अधिक संख्या में चल रहा है। यहां कोई बिल्डर मल्टी स्टोरी बिल्डिंग की छत पर ही हैलीपैड की सुविधा देने का प्रचार कर रहा है तो कोई अपने प्रोजेक्ट को विश्व स्तरीय सुविधाओं से सुसज्जित करने का प्रचार करके लोगों की जेब तराश रहा है लेकिन न कोई देखने वाला है और न सुनने वाला।
आश्चर्य की बात तो यह है कि प्राधिकरण के क्षेत्र में और कृष्ण जन्मभूमि के सर्वाधिक संवेदनशील यलो व ग्रीन जोन में निर्माणाधीन इन बहुमंजिला रिहायशी इमारतों के नक्शे किस स्तर पर और कैसे पास हो रहे हैं, पास हैं भी या नहीं, हैं तो कितनी मंजिल तक के नक्शे पास हैं, इन सवालों के जवाब देने वाला कोई नहीं।
दरअसल विकास प्राधिकरण के संरक्षण में भ्रष्टाचार की बुनियाद पर इन इमारतों की लंबाई तथा इनकी संख्या बढ़ते जाने का एक प्रमुख कारण और है। यह कारण है प्राधिकरण और बिल्डर्स को यह पता होना कि मीडिया की कमजोरी क्या है।
सर्वविदित है कि मीडिया की कमजोरी हैं विज्ञापन, इसलिए विकास प्राधिकरण और बिल्डर्स अपने-अपने स्तर से मीडिया को विज्ञापन की पंजीरी बांटकर उसका मुंह बंद करते रहते हैं। चूंकि मीडिया ही उनके इस कारनामे तथा बिल्डर्स व अधिकारियों की सांठगांठ को उजागर कर सकता है लिहाजा वह मीडिया की इस कमजोरी का पूरा लाभ उठा रहे हैं।
मीडिया इसी में खुश रहता है कि उसे बिल्डर भी विज्ञापन देता है और प्राधिकरण भी, बाकी जनता जाये भाड़ में। जनता से उसे मिलना भी क्या है। यूं भी अब अखबार और अखबार नवीसों का जनहित से कोई सीधा वास्ता रह नहीं गया। जनहितकारी होने का ढोंग वह उसी स्थिति-परिस्थिति में करते हैं जब वैसा करना उनकी बाध्यता हो जाती है। जैसे कल कमिश्नर के आदेश पर अवैध निर्माण सील करने के बाद तो खबरें प्रकाशित की गईं हैं किंतु इससे पहले मीडिया अपने मुंह पर खुद सील लगाये हुए था जबकि उसे सब-कुछ पता था।
ये बात दीगर है कि जिन इमारतों में अवैध निर्माण चल रहा है उनमें से अधिकांश शहर के उन लोगों की है जिनसे मीडिया व मीडियाकर्मी समय-समय पर ऑब्लाइज होते रहते हैं या जिनके लिए ऐसे लाइजनर सक्रिय हैं जो मीडिया को मैनेज करके रखते हैं।
कल भी जो इमारतें सील हुई हैं उनमें से दो इमारतों का स्वामित्व ऐसे तत्वों के पास है जिनकी प्रशासन तथा मीडिया में तूती बोलती है। वह दिन को रात कह दें तो मीडिया वही कहता है और रात को दिन बता दें तो मीडिया वह रटने लगता है।
यही कारण है कि मथुरा में अवैध निर्माण बेहिसाब बढ़ता जा रहा है क्योंकि प्रशासन, मीडिया तथा बिल्डर्स का गठजोड़ सबको खुली चुनौती देने में सक्षम है।
आज एमवीडीए के उपाध्यक्ष नागेन्द्र प्रताप हैं तथा सचिव श्याम बहादुर सिंह, कल इनकी जगह कोई दूसरे अधिकारी हो सकते हैं लेकिन न तो मीडिया बदलने वाला है और न वो कॉकस जो हर अधिकारी को अपने चंगुल में ले लेता है।
भ्रष्ट अधिकारी तो इनकी राह देखते हैं लेकिन ईमानदारी का तमगा लगाये बैठे तथा शासन तक पहुंच रखने वाले नागेन्द्र प्रताप जैसे अधिकारी भी इस कॉकस से बच नहीं पाते।
माना कि कमिश्नर ने बहुत सी शिकायतों के मद्देनजर चार अवैध निर्माण कार्यों के खिलाफ इन अधिकारियों को कार्यवाही करने पर मजबूर कर दिया लेकिन उन तमाम इमारतों का क्या जो अब भी सारे नियम-कानूनों को खुली चुनौती दे रही हैं और आमजन के व्यवस्था में भरोसे का मजाक उड़ा रही हैं। झूठे प्रचार के जरिए इन्हें खड़ा करने वाले आमजन की जेब काट रहे हैं और मीडिया इसमें उनका सहयोग कर जनता के भरोसे का खून कर रहा है।
रीयल एस्टेट और प्राधिकरण के गठजोड़ से बने इस कॉकस के हाथ फिलहाल तो कानून से भी अधिक शक्तिशाली प्रतीत होते हैं। कमिश्नर प्रदीप भटनागर भी इस तल्ख सच्चाई को भली-भांति जानते होंगे।
हो सकता है इनमें से कल कोई उन्हें अपनी ताकत का अहसास कमिश्नर साहब को भी करा दे तथा फिर सब-कुछ उसी प्रकार ढर्रे पर चलने लगे जैसा अब तक चला आ रहा था.... बेशक कमिश्नर साहब ने एक कंकड़ फैंककर उथल-पुथल मचा दी है।
यदि ऐसा होता है तो कोई आश्चर्य नहीं....आश्चर्य तो तब होगा जब कल जिन इमारतों को सील किया गया है, उनकी सील न टूट पाए और दूसरी भी ऐसी तमाम इमारतें सील कर दी जाएं।
-लीजेण्ड न्यूज़ विशेष
कमिश्नर आगरा मण्डल प्रदीप भटनागर ने अपने निरीक्षण में मथुरा के चार अवैध निर्माणों को सील करवाकर यह साबित कर दिया कि मथुरा-वृंदावन विकास प्राधिकरण में ऊपर से नीचे तक भ्रष्टाचार का बोलबाला है और यहां तैनात अधिकारी अपने-अपने तरीके से इस भ्रष्टाचार को भरपूर प्राश्रय दे रहे हैं।
यहां ध्यान देने की बात यह है कि कमिश्नर प्रदीप भटनागर को इन अवैध निर्माणों पर कार्यवाही करने के लिए मथुरा-वृंदावन विकास प्राधिकरण के अधिकारियों को लगभग खदेड़ कर भेजना पड़ा अन्यथा बेहिसाब शिकवा-शिकायतों के बावजूद ये अधिकारी अवैध निर्माण को लेकर आंखें बंद किये बैठे थे।
उल्लेखनीय है कि विकास प्राधिकरण मथुरा-वृंदावन के उपाध्यक्ष नागेन्द्र प्रताप यादव को सत्ताधारी समाजवादी पार्टी के परिवार का अंग माना जाता है और कहा जाता है कि वह शासन स्तर से कुछ भी कराने में सक्षम हैं।
इसी प्रकार सचिव श्याम बहादुर सिंह की भी मथुरा जैसे मलाईदार प्राधिकरण में पोस्टिंग तथा उपाध्यक्ष नागेन्द्र प्रताप यादव से सेटिंग यह साबित करती है कि उनकी शासन स्तर पर पहुंच कम नहीं है।
ऐसे में इन दोनों अधिकारियों को लेकर यह सवाल पैदा होना स्वाभाविक है कि फिर उक्त अधिकारी किसलिए प्राधिकरण के क्षेत्र में अवैध निर्माण पर जिंदा मक्खी निगल रहे थे और क्यों सारी शिकायतों को पी रहे थे?
जाहिर है कि दोनों अधिकारियों के लगातार ऐसा करने के पीछे कोई न कोई निजी स्वार्थ जरूर रहा होगा अन्यथा प्राधिकरण के उपाध्यक्ष जिन नागेन्द्र प्रताप की गिनती ईमानदार अधिकारियों में की जाती है, वह क्यों खुद तथा अपने अधीनस्थों को भ्रष्टाचार की बुनियाद पर एक-दो नहीं अनेक इमारतें खड़ी कराते देखने के बाद भी अब तक चुप्पी साधे बैठे रहे।
गौरतलब है कि मथुरा-वृंदावन विकास प्राधिकरण ने कल कमिश्नर के आदेश पर जिन चार अवैध निर्माणों के खिलाफ कार्यवाही की है, वह तो मात्र उदाहरण भर हैं। सच तो यह है कि ऐसे अवैध निर्माणों की मथुरा, वृंदावन तथा गोवर्धन में लंबी फेहरिस्त है जबकि यह तीनों स्थान प्राधिकरण के कार्यक्षेत्र का हिस्सा हैं।
मथुरा में राष्ट्रीय राजमार्ग नंबर दो पर खड़ी की जा रही कई कॉलोनियों में पास नक्शे के इतर काफी अवैध निर्माण कराया जा चुका है और कॉलोनाइजर इस अवैध निर्माण को प्राधिकरण से अप्रूव्ड घोषित कर बेच भी चुके हैं पर प्राधिकरण के अधिकारी तमाशबीन बने हुए हैं। बताया जाता है कि इन सबको वैध कराने के लिए अधिकारियों एवं बिल्डर्स के बीच लंबे समय से बार्गेनिंग चल रही है। प्रति अवैध फ्लैट के हिसाब से करोड़ों की डील हुई है। प्राधिकरण के ही सूत्र बताते हैं कि कुछ पर मोहर लग चुकी है और कुछ पर लगना बाकी है।
यही हाल वृंदावन का है। वृंदावन में चूंकि फ्लैट, विला तथा भवनों की मांग काफी ज्यादा है इसलिए वृंदावन में अवैध निर्माण मथुरा से कहीं अधिक संख्या में चल रहा है। यहां कोई बिल्डर मल्टी स्टोरी बिल्डिंग की छत पर ही हैलीपैड की सुविधा देने का प्रचार कर रहा है तो कोई अपने प्रोजेक्ट को विश्व स्तरीय सुविधाओं से सुसज्जित करने का प्रचार करके लोगों की जेब तराश रहा है लेकिन न कोई देखने वाला है और न सुनने वाला।
आश्चर्य की बात तो यह है कि प्राधिकरण के क्षेत्र में और कृष्ण जन्मभूमि के सर्वाधिक संवेदनशील यलो व ग्रीन जोन में निर्माणाधीन इन बहुमंजिला रिहायशी इमारतों के नक्शे किस स्तर पर और कैसे पास हो रहे हैं, पास हैं भी या नहीं, हैं तो कितनी मंजिल तक के नक्शे पास हैं, इन सवालों के जवाब देने वाला कोई नहीं।
दरअसल विकास प्राधिकरण के संरक्षण में भ्रष्टाचार की बुनियाद पर इन इमारतों की लंबाई तथा इनकी संख्या बढ़ते जाने का एक प्रमुख कारण और है। यह कारण है प्राधिकरण और बिल्डर्स को यह पता होना कि मीडिया की कमजोरी क्या है।
सर्वविदित है कि मीडिया की कमजोरी हैं विज्ञापन, इसलिए विकास प्राधिकरण और बिल्डर्स अपने-अपने स्तर से मीडिया को विज्ञापन की पंजीरी बांटकर उसका मुंह बंद करते रहते हैं। चूंकि मीडिया ही उनके इस कारनामे तथा बिल्डर्स व अधिकारियों की सांठगांठ को उजागर कर सकता है लिहाजा वह मीडिया की इस कमजोरी का पूरा लाभ उठा रहे हैं।
मीडिया इसी में खुश रहता है कि उसे बिल्डर भी विज्ञापन देता है और प्राधिकरण भी, बाकी जनता जाये भाड़ में। जनता से उसे मिलना भी क्या है। यूं भी अब अखबार और अखबार नवीसों का जनहित से कोई सीधा वास्ता रह नहीं गया। जनहितकारी होने का ढोंग वह उसी स्थिति-परिस्थिति में करते हैं जब वैसा करना उनकी बाध्यता हो जाती है। जैसे कल कमिश्नर के आदेश पर अवैध निर्माण सील करने के बाद तो खबरें प्रकाशित की गईं हैं किंतु इससे पहले मीडिया अपने मुंह पर खुद सील लगाये हुए था जबकि उसे सब-कुछ पता था।
ये बात दीगर है कि जिन इमारतों में अवैध निर्माण चल रहा है उनमें से अधिकांश शहर के उन लोगों की है जिनसे मीडिया व मीडियाकर्मी समय-समय पर ऑब्लाइज होते रहते हैं या जिनके लिए ऐसे लाइजनर सक्रिय हैं जो मीडिया को मैनेज करके रखते हैं।
कल भी जो इमारतें सील हुई हैं उनमें से दो इमारतों का स्वामित्व ऐसे तत्वों के पास है जिनकी प्रशासन तथा मीडिया में तूती बोलती है। वह दिन को रात कह दें तो मीडिया वही कहता है और रात को दिन बता दें तो मीडिया वह रटने लगता है।
यही कारण है कि मथुरा में अवैध निर्माण बेहिसाब बढ़ता जा रहा है क्योंकि प्रशासन, मीडिया तथा बिल्डर्स का गठजोड़ सबको खुली चुनौती देने में सक्षम है।
आज एमवीडीए के उपाध्यक्ष नागेन्द्र प्रताप हैं तथा सचिव श्याम बहादुर सिंह, कल इनकी जगह कोई दूसरे अधिकारी हो सकते हैं लेकिन न तो मीडिया बदलने वाला है और न वो कॉकस जो हर अधिकारी को अपने चंगुल में ले लेता है।
भ्रष्ट अधिकारी तो इनकी राह देखते हैं लेकिन ईमानदारी का तमगा लगाये बैठे तथा शासन तक पहुंच रखने वाले नागेन्द्र प्रताप जैसे अधिकारी भी इस कॉकस से बच नहीं पाते।
माना कि कमिश्नर ने बहुत सी शिकायतों के मद्देनजर चार अवैध निर्माण कार्यों के खिलाफ इन अधिकारियों को कार्यवाही करने पर मजबूर कर दिया लेकिन उन तमाम इमारतों का क्या जो अब भी सारे नियम-कानूनों को खुली चुनौती दे रही हैं और आमजन के व्यवस्था में भरोसे का मजाक उड़ा रही हैं। झूठे प्रचार के जरिए इन्हें खड़ा करने वाले आमजन की जेब काट रहे हैं और मीडिया इसमें उनका सहयोग कर जनता के भरोसे का खून कर रहा है।
रीयल एस्टेट और प्राधिकरण के गठजोड़ से बने इस कॉकस के हाथ फिलहाल तो कानून से भी अधिक शक्तिशाली प्रतीत होते हैं। कमिश्नर प्रदीप भटनागर भी इस तल्ख सच्चाई को भली-भांति जानते होंगे।
हो सकता है इनमें से कल कोई उन्हें अपनी ताकत का अहसास कमिश्नर साहब को भी करा दे तथा फिर सब-कुछ उसी प्रकार ढर्रे पर चलने लगे जैसा अब तक चला आ रहा था.... बेशक कमिश्नर साहब ने एक कंकड़ फैंककर उथल-पुथल मचा दी है।
यदि ऐसा होता है तो कोई आश्चर्य नहीं....आश्चर्य तो तब होगा जब कल जिन इमारतों को सील किया गया है, उनकी सील न टूट पाए और दूसरी भी ऐसी तमाम इमारतें सील कर दी जाएं।
-लीजेण्ड न्यूज़ विशेष
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