बुधवार, 29 अप्रैल 2015

कोषदा बिल्‍डकॉन के प्रोजेक्‍ट ”मंदाकिनी” में 120 फ्लैट्स अवैध!

इलाहाबाद हाईकोर्ट ने दिया डेवलेपमेंट अथॉरिटी सहित कोषदा बिल्‍डकॉन को नोटिस
मथुरा। रीयल एस्‍टेट के क्षेत्र में कार्यरत कंपनी कोषदा बिल्‍डकॉन के प्रोजेक्‍ट ”मंदाकिनी” में 120 फ्लैट्स के निर्माण पर खतरे के बादल मंडराने लगे हैं। मंदाकिनी में 120 फ्लैट्स के निर्माण को अवैध बताते हुए कोषदा बिल्‍डकॉन के एक पार्टनर ने ही इलाहाबाद हाईकोर्ट की शरण ली है और अनुरोध किया है कि इन फ्लैट्स का निर्माण रुकवाया जाए और इनमें से जितने फ्लैट्स का निर्माण कराया जा चुका है, उन्‍हें ध्‍वस्‍त कराया जाए।
कोर्ट ने पार्टनर की याचिका पर उत्‍तर प्रदेश के अर्बन डेवलेपमेंट एंड हाउसिंग विभाग, मथुरा-वृंदावन विकास प्राधिकरण के अध्‍यक्ष, उपाध्‍यक्ष व सचिव तथा कोषदा बिल्‍डकॉन प्रा. लि. के डॉयरेक्‍टर श्‍याम सुंदर बंसल को नोटिस जारी कर जवाब तलब किया है। 07 अप्रैल 2015 को कोर्ट द्वारा जारी किये गये नोटिस के जवाब तथा उस पर सुनवाई के लिए अगली तारीख 12 मई 2015 तय की है।
हाईकोर्ट के न्‍यायाधीश विनोद कुमार मिश्रा तथा दिलीप गुप्‍ता ने इस मामले में काउंटर एफीडेविट फाइल करने के लिए तीन सप्‍ताह तथा रीजॉइंडर एफीडेविट फाइल करने के लिए मात्र एक सप्‍ताह का समय दिया है।
कोषदा बिल्‍डकॉन के पार्टनर जैन रियलटर्स प्रा. लि. सेक्‍टर-7 द्वारिका नई दिल्‍ली की ओर से डायरेक्‍टर अजय कुमार जैन पुत्र सुरेश चंद्र जैन द्वारा इलाहाबाद उच्‍च न्‍यायालय को दी गई जानकारी के मुताबिक कोषदा बिल्‍डकॉन के प्रोजेक्‍ट मंदाकिनी में एफएसआई ग्रुप हाउसिंग प्रोजेक्‍ट के तहत 4026 वर्ग मीटर जमीन 72 लाख रुपए में खरीदी थी।
कोषदा बिल्‍डकॉन के प्रोजेक्‍ट मंदाकिनी की कुल जमीन के इस 16 प्रतिशत हिस्‍से की रजिस्‍ट्री 31 मार्च 2011 को कराई गई थी।
जैन रियलटर्स के मुताबिक कोषदा बिल्‍डकॉन में 16 प्रतिशत जमीन की हिस्‍सेदारी हो जाने के बाद कोषदा बिल्‍डकॉन के निदेशकों ने उनके सामने इस आशय का एक प्रस्‍ताव रखा कि चूंकि उनके द्वारा प्रोजेक्‍ट निर्माण के लिए डेवलेपमेंट अथॉरिटी तथा राज्‍य सरकार से जरूरी सभी अनुमतियां ली जा चुकीं हैं इसलिए वह अपने हिस्‍से के निर्माण कार्य का ठेका भी उन्‍हें ही दे दें।
जैन रियलटर्स के अनुसार उन्‍होंने कोषदा के निदेशकों द्वारा दी गई इस मौखिक जानकारी पर भरोसा करके उन्‍हें अपने हिस्‍से के भी निर्माण कार्य का ठेका दे दिया और इसके लिए बाकायदा लिखा-पढ़ी की गई।
कोषदा मंदाकिनी वृंदावन में जब ”टावर बी” के नाम से किये जाने वाले निर्माण के बावत जैन रियलटर्स ने कोषदा के निदेशक श्‍याम सुंदर बंसल आदि से डेवलेवमेंट अथॉरिटी सहित सभी विभागों से प्राप्‍त अनुमति के कागजातों की प्रतिलिपि दिखाने व देने को कहा तो वह किसी प्रकार के ऐसे कोई कागजात नहीं दिखा पाये।
बार-बार अनुरोध किये जाने के बावजूद अनुमति संबंधी दस्‍तावेज न दिखाये जाने पर जैन रियलटर्स ने मथुरा-वृंदावन विकास प्राधिकरण से जानकारी की तो पता लगा कि कोषदा बिल्‍डकॉन ने उनके हिस्‍से की जमीन पर टावर बनाने संबंधी कोई अनुमति ली ही नहीं है और जो अनुमति ली गई है, वह सिर्फ 42 फ्लैट्स की है।
इसी प्रकार उनके टॉवर पर हैलीपैड बनाने की भी स्‍वीकृति नहीं ली गई है जबकि उन्‍हें ऐसा बताया गया था और प्रचार माध्‍यमों में भी टावर पर हैलीपैड बनाने का उल्‍लेख किया गया था।
जैन रियलटर्स ने बताया है कि इस तरह की जानकारी मिलने के बाद उन्‍होंने कोषदा बिल्‍डकॉन के निदेशकों से अवैध निर्माण कार्य तुरंत बंद करने का अनुरोध किया और कहा कि वह उनके हिस्‍से की जमीन का भौतिक कब्‍जा उन्‍हें दे दें ताकि वह उस पर निर्माण के लिए जरूरी सभी औपचारिकताएं पूरी करा सकें किंतु इस मांग को सुनकर कोषदा के निदेशक उत्‍तेजित हो गये तथा उन्‍होंने जैन रीयलटर्स के निदेशक अजय जैन को धमकी देते हुए जमीन पर भौतिक कब्‍जा देने से स्‍पष्‍ट इंकार कर दिया।
इस मामले में अजय जैन की ओर से 25 जुलाई 2013 को ‘कोषदा बिल्‍डकॉन प्रा. लि.’ के मालिकानों श्याम सुन्दर बंसल पुत्र श्री गोपाल दास बंसल निवासी-मकान नंबर 2255, भक्तिधाम भरतपुर गेट मथुरा, गौरव अग्रवाल पुत्र श्री माधव प्रसाद अग्रवाल  निवासी मण्डी रामदास मथुरा, नरेन्द्र किशन गर्ग पुत्र श्रीराम गर्ग निवासी मकान नंबर जी 6 किशना अपार्टमेंट, मसानी तिराहा, मथुरा तथा कोषदा बिल्डकॉन प्रा. लि. कोषदा हाउस तिलक द्वार, मथुरा (उप्र) के खिलाफ थाना कोतवाली वृंदावन में मुकद्दमा अपराध संख्‍या 503/13 पर धारा 380, 384, 387, 392, 406, 409, 417, 420, 423, 424, 427, 448, 451, 452, 456, 467, 506, 120 B आईपीसी के तहत एफआईआर दर्ज कराई।
इसके बाद जैन रियलटर्स को ज्ञात हुआ कि कोषदा बिल्‍डकॉन के मालिकानों ने उनकी जमीन पर किये गये अवैध निर्माण को कंपाउंड के जरिए नियमित कराने के लिए मथुरा-वृंदावन विकास प्राधिकरण में प्रार्थनापत्र दिया है।
जैन रियलटर्स ने मथुरा-वृंदावन विकास प्राधिकरण को बाकायदा पत्र लिखकर अनुरोध किया कि कोषदा के निदेशकों का आवेदन गैर कानूनी है लिहाजा उन्‍हें ऐसी कोई अनुमति न दी जाए। साथ ही जैन रीयलटर्स की जमीन पर कोषदा बिल्‍डकॉन द्वारा कराये गये अवैध निर्माण को ध्‍वस्‍त कराकर उसका खर्चा कोषदा बिल्‍डकॉन से वसूल किया जाए किंतु प्राधिकरण ने उनके अनुरोध को नजरंदाज कर दिया।
जैन रियलटर्स के मुताबिक उन्‍होंने जमीन की रजिस्‍ट्री से लेकर आपराधिक मुकद्दमे आदि से संबंधित सभी कागजातों की प्रतियां भी मथुरा-वृंदावन विकास प्राधिकरण को उपलब्‍ध कराईं किंतु कोई नतीजा नहीं निकला इसलिए अब उन्‍हें इलाहाबाद उच्‍च न्‍यायालय की शरण लेनी पड़ी ताकि उनकी तरह वो लोग कोषदा बिल्‍डकॉन की धोखाधड़ी का शिकार होने से बच सकें जो उनके झूठे प्रचार पर भरोसा करके वहां फ्लैट बुक करा चुके हैं या फिर कराने का विचार कर रहे हैं।
इस संबंध में मथुरा-वृंदावन विकास प्राधिकरण के अधिकारियों से लेकर कोषदा बिल्‍डकॉन के निदेशकों तक से उनका पक्ष जानने के लिए संपर्क करने की कोशिश की गई किंतु कोई भी अपना पक्ष रखने के लिए सामने आने को तैयार नहीं हुआ।
-लीजेण्‍ड न्‍यूज़ विशेष

मंगलवार, 28 अप्रैल 2015

जे. एस. इन्‍फ्रा होम्‍स पर शिकंजा कसने की तैयारी, पुलिस-प्रशासन ने लिया संज्ञान

डस्‍टर ईनाम की घोषणा भी फर्जी, भाग्‍यशाली विजेता भी ग्रुप से जुड़े लोगों के ही परिजन
आगरा से प्रकाशित लगभग सभी प्रमुख दैनिक अखबारों में ”भ्रामक जैकेट विज्ञापन” देकर लोगों को ठगने की कोशिश करने वाले रीयल एस्‍टेट ग्रुप जे. एस. इन्‍फ्रा होम्‍स पर जिला प्रशासन ने भी अपनी निगाहें केंद्रित कर दी हैं। प्रशासन ने जे. एस. इन्‍फ्रा होम्‍स के विज्ञापनों पर संज्ञान लिया है और आवश्‍यक जांच तथा विचार-विमर्श के बाद शिकंजा कसने की तैयारी की जा रही है।
इधर जे. एस. इन्‍फ्रा होम्‍स के विज्ञापनों तथा उनकी मंशा के बारे में आज जब ”लीजेण्‍ड न्‍यूज़” ने और छानबीन की तो बड़े ही चौंकाने वाले तथ्‍य प्रकाश में आये।
उदाहरण के लिए विज्ञापन के तहत ”12 फ्लैट…12 डस्‍टर” की जिस ईनामी स्‍कीम में पांच फ्लैट बुक कराने वाले पांच भाग्‍यशाली विजेताओं का नाम दिया गया है, वह कोई और नहीं जे. एस. इन्‍फ्रा होम्‍स के ग्रुप से जुड़े हुए लोगों के परिजन ही हैं। यही कारण है कि कल यानी 26 अप्रैल की शाम इन लोगों को डस्‍टर वितरण करने जैसा कोई कार्यक्रम हुआ ही नहीं जबकि शाम साढ़े सात बजे होटल शीतल रीजेंसी में इस कार्यक्रम को करने का हवाला विज्ञापन के अंदर दिया गया था।
दरअसल, इस आशय का प्रचार लोगों को प्रलोभन देकर फंसाने के लिए किया गया। हालांकि फिलहाल यह ज्ञात नहीं हो सका है कि ग्रुप से जुड़े लोग कितने लोगों को फांसने में सफल रहे और आगे कितने लोगों को फांसे जाने का टारगेट है।
हां, यह जरूर पता लगा है कि विज्ञापन में जिन फ्लैट्स की बात की गई है वह भी उनके अपने नहीं हैं।
ग्रुप से ही जुड़े सूत्रों की मानें तो इसके लिए वृंदावन स्‍थित जिस प्रोजेक्‍ट का इस्‍तेमाल किया जा रहा है जो किसी पूर्व पटवारी तथा उसके भाई का है।
jagran-1प्रोजेक्‍ट के मालिकानों से तो इस संबंध में बात नहीं हो पाई किंतु बताया जाता है कि यहां स्‍थित फ्लैट की कीमत 31 लाख से शुरू है जिन्‍हें जे. एस. इन्‍फ्रा होम्‍स इस शर्त पर 15 लाख में बुक कर रहा है कि पूरा पेमेंट उनकी शर्तों के मुताबिक तय समय सीमा व सुविधा के अनुसार देना होगा।
गौरतलब है कि 15 लाख में फ्लैट बुक करके जिस तरह की (एसयूवी) गाड़ी डस्‍टर देने का लालच दिया जा रहा है उसकी कम से कम कीमत साढ़े आठ लाख रुपए है। ऐसे में फ्लैट की कीमत क्‍या रह जायेगी, यह अपने आप में सोचने का विषय है।
जाहिर है कि इसके साथ यह सवाल भी स्‍वत: खड़ा हो जाता है कि जिस फ्लैट को उसके असली मालिक 31 लाख में बेच रहे हैं, उसे जे. एस. इन्‍फ्रा होम्‍स कैसे 15 लाख में बेच सकता है, वह भी डस्‍टर गाड़ी ईनाम में देकर।
लीजेण्‍ड न्‍यूज़ द्वारा कल इस बारे में खबर प्रकाशित किये जाने के बाद जब कुछ लोगों ने जे. एस. इन्‍फ्रा होम्‍स के लिए काम कर रहे लोगों से पूछताछ की तो उन्‍होंने उन्‍हें यह कहकर गुमराह करने का प्रयास किया कि हम नंबर दो के पैसे को नंबर एक में करने के लिए यह खेल, खेल रहे हैं।
यदि उनकी इस बात को सच मान लिया जाए तो स्‍पष्‍ट हो जाता है कि जे. एस. इन्‍फ्रा होम्‍स से जुड़े लोगों की नीयत नेक नहीं है और न उनका इरादा ठीक है। इतना नंबर दो का पैसा कहां से आया और उसमें कौन-कौन शामिल है, इसका पता लगना जरूरी है।
आज इस बारे में होटल शीतल रीजेंसी के मालिक अमित जैन ने भी साफ किया कि हमारा जे. एस. इन्‍फ्रा होम्‍स या उससे जुड़े किसी व्‍यक्‍ति से कोई वास्‍ता नहीं है। वह प्राकृतिक आपदा के मारे किसान परिवारों को एक लाख एक रुपए की आर्थिक मदद देने के लिए होटल परिसर का इस्‍तेमाल करने जैसा प्रचार किस आधार पर कर रहे हैं, इस बावत में उनसे पूछताछ करूंगा।
अमित जैन ने भी स्‍वीकार किया कि शासन-प्रशासन के संज्ञान में लाये बिना ऐसे किसी आयोजन का किया जाना कानून-व्‍यवस्‍था के लिए मुश्‍किलें खड़ी कर सकता है और उससे हालात बिगड़ने की पूरी आशंका है।
इधर एडीएम फाइनेंस तथा पुलिस के आला अधिकारियों ने भी जे. एस. इन्‍फ्रा होम्‍स के बारे में आवश्‍यक जांच पड़ताल कर प्रभावी कार्यवाही किये जाने की बात कही है जिससे भविष्‍य में फिर कोई इस तरह का प्रयास करने की हिमाकत न कर सके।
अब देखना यह है कि इतना सब कुछ पता लगने तथा शासन व प्रशासन स्‍तर पर जानकारी हो जाने के बावजूद जे. एस. इन्‍फ्रा होम्‍स कितने लोगों को अपने जाल में फंसा पाता है और कितने लोग उसके जाल में फंसते हैं क्‍योंकि जे. एस. इन्‍फ्रा होम्‍स का कारनामा अंतत: पुलिस प्रशासन के लिए ही सिरदर्द साबित होगा। जो लोग आज उसके भ्रामक विज्ञापनों के जाल में फंसकर अपना पैसा लुटा देंगे कल वही पुलिस-प्रशासन पर एफआईआर दर्ज करके पैसा बरामद करने के लिए दबाव बनायेंगे।
-लीजेण्‍ड न्‍यूज़ विशेष

करीब नौ हजार एनजीओ के लाइसेंस रद्द किये सरकार ने

नई दिल्‍ली। भारत सरकार ने लगभग नौ हज़ार ऐसे एनजीओ (ग़ैर सरकारी संगठनों) के लाइसेंस रद्द कर दिये हैं जिन्होंने पिछले तीन वर्षों में अपने वार्षिक वित्तीय रिटर्न दाखिल नहीं किए थे.
गृह मंत्रालय के एक आदेश में कहा गया है कि कुल 10,343 एनजीओ (ग़ैर सरकारी संगठनों) को अक्टूबर, 2014 में अपने सालाना रिटर्न दाख़िल करने के लिए कहा गया था जिसमें विदेश से आई वित्तीय मदद का पूरा विवरण अनिवार्य था लेकिन सिर्फ़ 229 गैर सरकारी संगठनों ने ही गृह मंत्रालय के इस आदेश पर ‘अमल′ किया जबकि 8,975 ने अमल नहीं किया जिनके लाइसेंस सरकार ने रद्द कर दिए हैं.
ये कार्यवाही ग्रीनपीस इंडिया की विदेशी फ़ंडिंग निलंबित किए जाने और फ़ोर्ड फॉउन्डेशन को निगरानी सूची में रखे जाने के बाद की गई है.
इस आदेश के अनुसार जिन गैर सरकारी संगठनों के ख़िलाफ़ कार्यवाही हुई है उन्होंने वर्ष 2009-2010, 2010-2011 और 2011-12 में विदेशी फंडिंग समेत अपने वित्तीय रिटर्न नहीं दाख़िल किए हैं.
भारतीय रिज़र्व बैंक और सम्बंधित एनजीओ के साथ साथ गृह मंत्रालय के इस आदेश को उन सभी ज़िलाधिकारियों को भी भेज दिया गया है जिनके इलाके में इनका पंजीकरण है.
ख़ास बात ये है कि ये सभी लाइसेंस विदेशी चंदा नियमन क़ानून यानी एफसीआरए के कथित उल्लंघन करने के सम्बन्ध में रद्द किए गए हैं.
केंद्र में आसीन भाजपा नेतृत्व वाली एनडीए सरकार ने पिछले कुछ महीनों से एफसीआरए कानून पर कड़ा रुख अख्तियार कर रखा है.
ग्रीनपीस इंडिया की विदेशी फ़ंडिंग निलंबित किए जाने का मामला दोबारा अदालत पहुँच चुका है.

सोमवार, 27 अप्रैल 2015

ठगों का गिरोह तो नहीं रीयल एस्‍टेट ग्रुप “जे. एस. इन्‍फ्रा होम्‍स” ?

मथुरा। “जे. एस. इन्‍फ्रा होम्‍स”  की ओर से 25 अप्रैल 2015 के दैनिक जागरण और 26 अप्रैल 2015 के हिन्‍दुस्‍तान अखबार में एक ही प्रकार के “जैकेट विज्ञापन” प्रकाशित कराये गये हैं।
मथुरा की सांसद और प्रसिद्ध अभिनेत्री हेमा मालिनी द्वारा इन दोनों तारीखों पर वृंदावन में कराये गये दो दिवसीय “मथुरा महोत्‍सव” का इन विज्ञापनों में हवाला देते हुए और वृंदावन में ही प्रस्‍तावित विश्‍व के सबसे ऊंचे मंदिर चंद्रोदय की ”प्रतिकृति” दर्शाते हुए प्रचारित किया गया है कि ”राधा-रानी ग्रीन सिटी” (राधारानी मानसरोवर मंदिर के सामने) ”छोटी सी इन्‍वेस्‍टमेंट लायेगी खुशियों की सौगात”।
”मथुरा महोत्‍सव” में पधारे हुए सभी गणमान्‍य अतिथियों, कलाकारों एवं नागरिकों का ”जे. एस. इन्‍फ्रा होम्‍स” हार्दिक स्‍वागत करता है” जैसे शब्‍दों के साथ विज्ञापन में लाल पट्टी के ऊपर अलग से लिखा गया है- ”रु. 2.40 लाख का प्‍लॉट खरीदो और रु. 2.56 लाख का बोनस वापस पाओ यानी प्‍लॉट फ्री”।
विज्ञापन में न तो कहीं यह लिखा है कि इस प्‍लॉट का आकार क्‍या होगा यानी यह कितना बड़ा होगा और न कहीं यह लिखा है कि प्‍लॉट होगा कहां।
विज्ञापन के कोने में “T&C Apply”  अर्थात ”नियम व शर्तें लागू” जरूर लिखा है, किंतु हर फ्रॉड विज्ञापन की तरह इसमें भी नियम व शर्तों का उल्‍लेख कहीं नहीं किया गया।
इस संदर्भ में जब ”लीजेण्‍ड न्‍यूज” ने विज्ञापन के तहत दिये गये ”जे. एस. इन्‍फ्रा होम्‍स” के मोबाइल नंबर 8445087799 पर बात की तो किन्‍हीं ”सैंगर साहब” ने फोन रिसीव किया।
सैंगर साहब द्वारा दी गई जानकारी के मुताबिक जे. एस. इन्‍फ्रा होम्‍स की स्‍कीम वाले इन सभी प्‍लॉट्स का साइज 60 वर्ग गज का है। इस हिसाब से जमीन की कीमत 4 हजार रुपए प्रति वर्ग गज हुई।
सैंगर साहब के अनुसार ”जे. एस. इन्‍फ्रा होम्‍स” प्‍लॉट के एकमुश्‍त दो लाख चालीस हजार रुपए जमा कराने वाले व्‍यक्‍ति को प्रति माह 1500 रुपए (पंद्रह सौ रुपए) देगा। यह पैसा प्‍लॉट खरीदने वाले के बैंक अकाउंट में दो साल तक जमा कराया जायेगा। इस तरह प्‍लॉट खरीदने वाले को दो सालों में 36 हजार रुपए प्राप्‍त होंगे। इसके साथ ही जे. एस. इन्‍फ्रा होम्‍स प्‍लॉट लेने वाले के नाम 25 महीने बाद का (पोस्‍ट डेटेड) 2, 20,000 (दो लाख बीस हजार रुपए) की रकम वाला चेक देगा।
सैंगर साहब से यह पूछे जाने पर कि 25 महीने बाद इस चेक के बैंक से पास होने की क्‍या गारंटी होगी, सैंगर साहब ने साफ कहा कि गारंटी किसी बात की नहीं है। हम तो सिर्फ मार्केटिंग के बंदे हैं। इस बारे में बात करनी है तो ”सतीश मिश्रा जी” से बात कर लीजिए, उनका नंबर विज्ञापन में “EXOTIC PROMOTERS & DEVELOPERS” के साथ लिखा है।
प्‍लॉट बेचने वाले इसी विज्ञापन के दूसरे यानी नीचे वाले हिस्‍से जे. एस. इन्‍फ्रा होम्‍स का ही एक और विज्ञापन है। इस विज्ञापन में ”मल्‍टी स्‍टोरी फ्लैट्स तथा डस्‍टर के रिबन बंधे डैमो” सहित लिखा है- 12 फ्लैट्स, 12 डस्‍टर”। ये फ्लैट्स भी डेवलेवमेंट अथॉर्टी से अप्रूव्‍ड हैं या नहीं, कहां बन रहे हैं और कितने मंजिल के बन रहे हैं, इसकी कोई जानकारी भी विज्ञापन में नहीं दी गई।
विज्ञापन के अनुसार स्‍कीम में जिन पांच भाग्‍यशाली ग्राहकों ने फ्लैट बुक किया था, उन्‍हें 26 अप्रैल को SUV डस्‍टर गाड़ियां वितरित की जानीं थीं।
भाग्‍यशाली विजेताओं के नाम लिखे हैं- मंजू चौहान, कपिल शर्मा, पंकज गौतम, मनोज कुमार तथा विजय कुमार। ये कौन हैं और कहां के हैं, इस बारे में विज्ञापन के अंदर कोई जानकारी नहीं दी गई है अलबत्‍ता ”डस्‍टर” वितरण की तारीख 26 मई 2015 की शाम साढ़े सात बजे और स्‍थान होटल शीतल रीजेंसी, मसानी रोड लिखा है।
होटल शीतल रीजेंसी पर कल देर शाम तक डस्‍टर वितरण जैसे किसी कार्यक्रम की जानकारी नहीं मिल पाई और न यह पता लगा कि भाग्‍यशाली विजेताओं को डस्‍टर वितरण किसके कर कमलों से होगा। इस बावत कोई जानकारी विज्ञापन में भी नहीं दी गई थी।
विज्ञापन में एक सूचना यह भी दी गई है कि मथुरा खंड के ”हर आत्‍म हादसाग्रस्‍त किसान परिवार को 100001 (एक लाख एक हजार) रुपए की मदद जे. एस. इन्‍फ्रा होम्‍स की ओर से 15 मई 2015 को होटल शीतल रीजेंसी में ही शाम साढ़े सात बजे प्रदान की जायेगी।
इस मामले में भी ”जे. एस. इन्‍फ्रा होम्‍स” की मंशा पर सवाल खड़े होते हैं। सवाल इसलिए खड़े होते हैं कि आपदाग्रस्‍त और आत्‍महत्‍या करने वाले किसान परिवारों की यदि इन्‍फ्रा होम्‍स को वाकई मदद करनी है तो वह जिला प्रशासन अथवा उत्‍तर प्रदेश शासन के माध्‍यम से कर सकता था। उसके लिए स्‍वयं होटल पर बुलाकर रुपया बांटने की क्‍या आवश्‍यकता है।
दूसरा सवाल यह भी पैदा होता है कि ”जे. एस. इन्‍फ्रा होम्‍स” कितने किसान परिवारों की मदद करने जा रहा है और क्‍या उसने शासन-प्रशासन से ऐसे किसान परिवारों की जानकारी कर ली है। क्‍या जिला प्रशासन से इस तरह पैसा बांटे जाने की इजाजत ली जा चुकी है।
क्‍योंकि विज्ञापन के जरिए ”जे. एस. इन्‍फ्रा होम्‍स” ने जिस तरह का प्रचार किया है, उसे पढ़कर हजारों किसान पैसा लेने पहुंच सकते हैं और ऐसे में कानून-व्‍यवस्‍था बनाये रखने की समस्‍या खड़ी हो सकती है।
इस संबंध में लीजेण्‍ड न्‍यूज़ ने एडीएम प्रशासन से जानकारी की तो उनका कहना था कि किसानों को मुआवजे बांटने का जिम्‍मा एडीएम फाइनेंस देख रहे हैं इसलिए मैं इस बारे में कोई जानकारी नहीं दे सकता।
एडीएम फाइनेंस और डीएम से बात करने का काफी प्रयास किया गया किंतु उनका नंबर लगातार व्‍यस्‍त आता रहा।
जे. एस. इन्‍फ्रा होम्‍स के बारे में जानकारी के निए गूगल का सहारा लिया तो पता लगा कि जे. एस इन्‍फ्रा नामक उत्‍तर प्रदेश के पीलीभीत जिले का एक वेलनोन रीयल एस्‍टेट ग्रुप है. इस ग्रुप के एक मालिक गंगवार का कहना है कि जे. एस. इन्‍फ्रा होम्‍स से हमारा कोई वास्‍ता नहीं है और न मथुरा-वृंदावन में हमारा कोई कारोबार है।
गूगल पर jsinfrahomes.com को खोलने पर एक Enquiry Form खुलता है जिसके नीचे दिल्‍ली का एक डॉट नंबर तथा एक मोबाइल नंबर लिखा है। इसके अलावा कोई जानकारी नहीं दी गई है।
इन नंबरों पर बात करने से ज्ञात हुआ कि उनका भी मथुरा-वृंदावन में न तो कोई प्रोजेक्‍ट है और न इस नाम से उन्‍होंने वहां के या कहीं के भी किसी व्‍यक्‍ति को काम करने के लिए अधिकृत किया हुआ है। इस जे. एस. इन्‍फ्रा होम्‍स से बात करने वाले संदीप नामक व्‍यक्‍ति ने कहा कि हम पूरे मामले की जानकारी करके पुलिस को सूचित करते हैं ताकि कोई हमारी फर्म या हमारे नाम का दुरुपयोग न कर सके।
”जे. एस. इन्‍फ्रा होम्‍स” के दैनिक जागरण तथा हिन्‍दुस्‍तान अखबारों में छपे विज्ञापन के अंदर एक्‍सुक्‍लूसिव मार्केटेड बाय- एग्‍जोटिक प्रमोटर्स एंड डेवलेपर्स कृष्‍णा 2/B- 103-104 Omaxe Eternity, Chatikra Vrindavan Road, Vrindavan (UP)।
इस प्रमोटर्स के बारे में भी केवल ”क्‍वेरी फार्म” और एक मोबाइल नंबर लिखा है। साथ ही यह भी लिखा है-
Useful information
1- Avoid scams by acting locally or paying with PayPal
2- Never pay with Western Union, Moneygram or other anonymous payment services
3- Don’t buy or sell outside of your country. Don’t accept cashier cheques from outside your country
4-This site is never involved in any transaction, and does not handle payments, shipping, guarantee transactions, provide escrow services, or offer “buyer protection” or “seller certification”
यह कुछ इसी तरह है जिस तरह अखबार मालिक अपने यहां छपने वाले विज्ञापनों से पल्‍ला झाड़ने के लिए अखबार के किसी कोने में एक छोटी सी जरूरी सूचना छाप देते हैं कि विज्ञापन के सत्‍य-असत्‍य होने की हम कोई गारंटी नहीं देते। किसी भी प्रकार के लेन-देन से पहले स्‍वयं अपने स्‍तर से पूरी जानकारी कर लें।
आश्‍चर्य की बात यह है कि छोटी-छोटी बातों पर नजर रखने का दावा करने वाला जिला प्रशासन इतने गंभीर मामले में विज्ञापन छपने के बावजूद तमाशबीन बना हुआ है। मथुरा-वृंदावन विकास प्राधिकरण चुप्‍पी साधे बैठा है जबकि करोड़ों रुपए ठगने का प्‍लॉट विज्ञापनों में प्रलोभन के माध्‍यम से न केवल खड़ा कर लिया गया है बल्‍कि अनेक लोगों को ठगा भी जा चुका है। ऐसी सूचनाएं सामने आ रही हैं।
हो सकता है कि जब तक पुलिस, प्रशासन तथा मथुरा-वृंदावन विकास प्राधिकरण इस मामले पर ध्‍यान दें तब तक ”जे. एस. इन्‍फ्रा होम्‍स” करोड़ों रुपए की ठगाई करके निकल जाए और लालच में आकर इन्‍हें पैसा देने वालों के पास रिपोर्ट दर्ज कराने के अतिरिक्‍त कुछ हाथ में न रह जाए।
तब पैसा जमा करने वाले तो अपने साथ हुई ठगी का रोना रोयेंगे और पुलिस-प्रशासन सांप के निकल जाने पर लकीर पीटने की कहावत को चरितार्थ करता रहेगा।
-लीजेण्‍ड न्‍यूज़ विशेष

गुरुवार, 23 अप्रैल 2015

किसानी और अंबानी से जुड़े दो कटु सत्‍य…यदि पढ़ना चाहें

आज के अखबारों में दो समाचार पढ़े। इनमें से एक समाचार का संबंध किसान और किसानी से है और दूसरे का विश्‍व के सबसे अधिक धनवानों में शुमार उद्योगपति अंबानी से।
पहले बात किसान वाले उस समाचार की जो आज हर अखबार की सुर्खी बना है और जिसे लेकर कल से ही राजनीति का एक से एक घिनौना रूप सामने आ रहा है।
हां, मैं बात करा हूं राजस्‍थान के दौसा निवासी उसी युवा किसान गजेन्‍द्र सिंह की जिसने कल आम आदमी पार्टी की किसान रैली के दौरान पेड़ की डाल से लटक कर आत्‍महत्‍या कर ली।
किसी राजनीतिक पार्टी की किसान रैली में कोई किसान आत्‍महत्‍या कर ले तो उस पर राजनीति होना स्‍वाभाविक है। उसमें कुछ नया नहीं है। इसलिए देश के प्रधानमंत्री से लेकर दिल्‍ली के मुख्‍यमंत्री तक और कांग्रेस से लेकर सपा, बसपा तथा माकपा तक सभी ने एक दूसरे के ऊपर अपने-अपने तीर चलाये तथा किसान की मौत का ठीकरा दूसरे के सिर फोड़ने का प्रयास किया। आप के नेताओं ने तो इसकी पूरी जिम्‍मेदारी ही दिल्‍ली पुलिस पर डाल दी।
बहरहाल, किसान मर गया और मरने से पहले एक सुसाइड नोट भी लिख गया।
मैं यहां न तो इस प्रकरण पर राजनीतिक दलों के बीच चल रहे आरोप-प्रत्‍यारोपों के दौर की बात करूंगा और ना ही किसान की मौत के कारणों का जिक्र करूंगा क्‍योंकि किसान तथा उसकी भूमि इस दौर की राजनीति का सर्वाधिक प्रिय, सस्‍ता, सुलभ, टिकाऊ एवं लोकप्रिय खेल बन चुका है लिहाजा राजनीतिज्ञ तो इसे खेलेंगे ही। कोई चेहरे पर मातमी भाव लाकर खेलेगा तो कोई उग्र होकर। कोई एंग्री यंगमैन की भूमिका में होगा तो कोई भावहीन सपाट चेहरा लेकर खड़ा होगा।
राजनीति और राजनेताओं के इस खेल को कोई रोक नहीं सकता इसलिए मुझे लगता है कि इस पर कोई विशेष या अतिरिक्‍त टिप्‍पणी करना समय की बर्बादी होगी और नेताओं की हौसला अफजाई।
इस मुद्दे पर मैं यहां दो बातों की ओर देश की जनता का ध्‍यान आकृष्‍ट करना चाहता हूं।
पहली बात तो सुसाइड करने वाले युवा किसान का सुसाइड नोट, जिसमें लिखा है कि मैं तीन बच्‍चों का पिता हूं और मेरे पिता ने मुझे इसलिए घर से बेदखल कर दिया है क्‍योंकि प्राकृतिक आपदा में मेरी सारी फसल चौपट हो गई। अब मेरे पास अपना व अपने बच्‍चों का जीवन पालने के लिए कोई रास्‍ता नहीं बचा इसलिए मैं यह कदम उठा रहा हूं।
मुझे यहां यह समझ में नहीं आया कि वह कैसा पिता है जिसने तीन बच्‍चों के बाप अपने बेटे को इसलिए घर से बेदखल कर दिया क्‍योंकि उसकी फसल ऐसी आपदा के कारण बर्बाद हो गई थी जिसमें उसका कोई दोष नहीं था। क्‍या कोई बाप इतना बेरहम हो सकता है। यहां कैसी भी किसी मजबूरी की आड़ लेकर पिता का पक्ष लेना नाजायज होगा। यदि सुसाइड करने वाले युवा किसान गजेन्‍द्र के सुसाइड नोट का कथन सत्‍य है तो सबसे पहला मुकद्दमा उसके पिता के खिलाफ ही दर्ज किया जाना चाहिए क्‍योंकि उसी ने उसे आत्‍महत्‍या जैसा कदम उठाने पर बाध्‍य किया।
अगर अपने निर्दोष, जवान और तीन बच्‍चों के पिता, बेटे के साथ कोई बाप ऐसी हरकत कर सकता है तो किसी सरकार से क्‍या उम्‍मीद रखी जा सकती है। परिवार ही यदि भावनात्‍मक संबल प्रदान करने, हौसला बनाये रखने तथा विपत्‍ति के समय साथ देने से पल्‍ला झाड़ ले तो संवेदना से सर्वथा हीन नेताओं अथवा सरकारों पर भरोसा करने का कोई मतलब नहीं रह जाता। ना ही उन पर दोषारोपण करने का कोई अधिकार रह जाता है।
परिवार से इतर अब उनकी चर्चा कर लें जो आम आदमी की किसान रैली में शामिल थे और जिनकी आंखों के सामने उस युवा किसान ने अपने गले में फंदा डालकर जान गंवा दी। कितने आश्‍चर्य की बात है कि इतना सब हो गया और रैली में बैठे सारे किसान मूकदर्शक बने रहे। हजारों की संख्‍या में मौजूद किसी किसान को आप नेताओं की संवेदनशून्‍यता के प्रति आक्रोश पैदा नहीं हुआ। समाचार चैनलों पर प्रसारित समाचारों को देखें तो गजेन्‍द्र की मौत के बावजूद रैली में बैठे किसान ‘आप’ नेताओं की भाषणबाजी पर तालियां पीट रहे थे।
ऐसे में क्‍या यह सवाल नहीं उठता कि गजेन्‍द्र की मौत के लिए जितने जिम्‍मेदार नेता हैं, उनसे कम वो किसान भी नहीं हैं जिन्‍हें अपने ही किसी भाई की आत्‍महत्‍या ने कतई विचलित नहीं किया और वो खरीदे गये लोगों की तरह अपने नेताओं की भाषणबाजी पर तालियां पीटते रहे।
यदि वह वाकई किसान थे और देश का किसान अगर अपने ही भाई-बंधुओं के प्रति इस कदर संवेदनाहीन है तो फिर उसकी इस दुर्दशा के लिए वही काफी हद तक जिम्‍मेदार है। फिर किसानों को इससे भी भयंकर स्‍थितियों का सामना करने के लिए खुद को तैयार रहना होगा। कहते हैं कि जब चलते समय अपना ही साया दिखाई न दे तो समझ लेना चाहिए कि मौत सन्‍निकट है।
अब आते हैं उस दूसरे समाचार पर जिसका ताल्‍लुक विश्‍व के सर्वाधिक धनवान लोगों में शुमार और देश के सबसे बड़े उद्योगपतियों में से एक से है। यहां में बात कर रहा हूं अनिल अंबानी की। धीरूभाई अंबानी के दूसरे पुत्र तथा मुकेश अंबानी के छोटे भाई की।
इनसे जुड़ा एक ऐसा समाचार आगरा से प्रकाशित ‘दैनिक हिन्‍दुस्‍तान’ अखबार के 15वें यानि बिजनेस पृष्‍ठ पर बहुत छोटे दो कॉलम में छपा है। समाचार बेशक बहुत छोटा है किंतु आश्‍चर्य चकित करता है और विचलित भी कराता है।
इस समाचार के अनुसार प्रधानमंत्री नरेन्‍द्र मोदी की अपील पर अमल करते हुए रिलायंस समूह के अध्‍यक्ष अनिल अंबानी ने रसोई गैस सिलेंडर पर मिलने वाली सब्‍सिडी छोड़ दी है।
अनिल अंबानी ने अपनी कंपनी की ओर से इस आशय का एक पत्र अपने कर्मचारियों को लिखा है कि सक्षम कर्मचारी स्‍वेच्‍छा पूर्वक राष्‍ट्र निर्माण की पहल में योगदान दें।
समाचार के मुताबिक अनिल अंबानी ने पत्र के अंत में यह भी लिखा है कि यह प्राकृतिक ऊर्जा के इस्‍तेमाल को बढ़ावा देने, ईंधन संरक्षण और सामाजिक उत्‍तरदायित्‍व में योगदान देने का सबसे बड़ा अवसर है।
पत्र के मजमून से अधिक मेरे दिमाग की सुई इस बात पर अटक गई कि इसका मतलब विश्‍व के सर्वाधिक धनवान उद्योगपतियों में शुमार रिलायंस समूह का अध्‍यक्ष अनिल अंबानी अब तक रसोई गैस पर ‘सब्‍सिडी’ ले रहा था और यदि मोदी जी प्रेरित नहीं करते तो आर्थिक रूप से सक्षम अपने हजारों कर्मचारियों के साथ सब्‍सिडी लेता रहता।
हो सकता है कि मोदी जी की प्रेरणा से ऐसा ही सुखद समाचार किसी दिन उनके बड़े भाई मुकेश अंबानी सहित टाटा, बिड़ला, जेपी और उनके जैसे तमाम धनवानों के बारे में भी पढ़ने को मिले।
हो सकता है कि राजनीतिक समरसता तथा सामाजिक उत्‍तरदायित्‍व निभाने की खातिर सोनिया, प्रियंका, अरुण जैतली, राजनाथ सिंह, मुलायम सिंह, मायावती, ममता बनर्जी, जयललिता, चौधरी अजीत सिंह और इनके जैसे बहुत से नेता भी यही खुशखबरी दें। राहुल गांधी से भी ऐसी उम्‍मीद की जा सकती है क्‍योंकि वह अपनी ‘मॉम’ से अलग ‘अपने घर’ में रहते हैं।
क्‍या तमाशा है और क्‍या तमाशबीन हैं। क्‍या मीडिया है और क्‍या नेता हैं। किसान की मौत पर राजनीति कर रहे हैं, लेकिन उसके सुसाइड नोट पर ध्‍यान देने तक की जरूरत नहीं समझ रहे। मौत पर संपादकीय लिख रहे हैं लेकिन सुसाइड नोट में छिपे सुसाइड के मूल तत्‍व पर एक लाइन नहीं लिखी गई।
अनिल अंबानी ने रसोई गैस पर सब्‍सिडी लेना छोड़ दिया, यह लिखा गया है लेकिन यह नहीं लिखा कि दुनिया के धनपतियों में शामिल शख्‍स अब तक कैसे रसोई गैस पर सब्‍सिडी लेता रहा और क्‍यों लेता रहा। यदि इसी को रईसी कहते हैं तो कंगाली किसे कहेंगे। अगर यही नैतिकता तथा सामाजिक उत्‍तरदायित्‍व है तो अनैतिकता व समाज के प्रति सुनियोजित अपराध की परिभाषा क्‍या है।
क्‍या वाकई वो समय आ गया है कि संवेदनशीलता, संवेदनाहीनता, सामाजिक उत्‍तरदायित्‍व, नैतिकता, अनैतिकता, किसान और राजनीति व राजनेताओं की परिभाषा नये सिरे से गढ़ी जानी चाहिए और फिर इन सभी को अंबानी व किसानी के वर्तमान दृष्‍टिकोण से परिभाषित भी किया जाना चाहिए।
यदि ऐसा नहीं किया जाता तो न किसानों की अकाल मौत के सिलसिले को रोका जा सकता है और न अंबानियों द्वारा हड़पी जा रही सब्‍सिडियों को।
आप की रैली में आत्‍महत्‍या करने वाले युवा किसान का सुसाइड नोट, वहां मौजूद किसानों का मूकदर्शक बने रहना तथा अनिल अंबानी द्वारा रसोई गैस पर अब तक ली जा रही सब्‍सिडी तो मात्र उदाहरण हैं, आगे-आगे देखिये होता है क्‍या।
अंबानी और किसानी में कोई अंतर कहीं दिखाई नहीं देगा।
-सुरेन्‍द्र चतुर्वेदी

मंगलवार, 21 अप्रैल 2015

…न ब्रूयात सत्यम् अप्रियं, बट…बोलना पड़ता है

सुप्रीम कोर्ट के पूर्व जस्‍टिस और भारतीय प्रेस परिषद के पूर्व अध्‍यक्ष मार्कण्‍डेय काटजू कितना सत्‍य बोलते हैं, इसका तो कोई पैमाना मेरे पास नहीं है किंतु इतना जरूर है कि वो सार्वजनिक रूप से जो कुछ बोलते हैं, वह समाज के एक बड़े तबके को ‘प्रिय’ नहीं लगता। अलबत्‍ता उनके अपने ब्‍लॉग का नाम ‘सत्‍यम् ब्रूयात’ है। और संस्‍कृत के जिस श्‍लोक का यह हिस्‍सा है, उसकी पहली पंक्‍ति के पूरे शब्‍द हैं-  सत्यम् ब्रूयात प्रियं ब्रूयात, न ब्रूयात सत्यम् अप्रियं।
बहरहाल, जस्‍टिस काटजू की अपने देशवासियों को लेकर की गई इस आशय की टिप्‍पणी कि ”अधिकांश भारतीय मूर्ख हैं”, कभी-कभी उचित प्रतीत होती है। हालांकि उनके अतिशयोक्‍ति पूर्ण बयानों से हर वक्‍त सहमत नहीं हुआ जा सकता।
फिलहाल बात करें दो-तीन दिनों से चल रहे उस राजनीतिक घटनाक्रम की जिसके तहत एक ओर सत्‍तापक्ष तथा दूसरी ओर विपक्ष की चकल्‍लस सड़क से लेकर संसद तक जारी है, तो साफ-साफ महसूस होता है कि मुठ्ठीभर लोग किस तरह पूरे देश को मूर्ख बना रहे हैं और देशवासी मूर्ख बन भी रहे हैं। देशवासियों की छोड़िये, वह मीडिया भी उस बहस का हिस्‍सा बना हुआ है जो पूरी तरह निरर्थक साबित हो रहा है और जिसका एकमात्र मकसद वो खेल खेलना है जिसमें न कभी उसकी हार होती है न जीत। जिसमें हारती है तो सिर्फ और सिर्फ जनता क्‍योंकि वह स्‍वतंत्रता प्राप्‍त होने से लेकर आज तक लगातार हारती रहने की आदी हो चुकी है।
हम बात कर रहे हैं उस भूमि अधिग्रहण बिल की जिसे लाई तो थी मनमोहन सिंह के नेतृत्‍व वाली यूपीए सरकार किंतु जिसे कुछ संशोधनों के साथ पास कराना चाहती है नरेंद्र मोदी के नेतृत्‍व वाली एनडीए सरकार।
अब तमाशा देखिये…कांग्रेस कहती है कि बिल में किये गये संशोधन किसान विरोधी और उद्यमियों के हित में हैं जबकि मोदी सरकार कहती है कि किसानों के हित में इससे बेहतर बिल दूसरा कोई हो ही नहीं सकता।
संसद का पहला सत्र इसी बहस की भेंट चढ़ गया और वर्तमान सत्र से ठीक पहले कांग्रेस ने करीब दो महीने की छुट्टियां बिताकर लौटे राहुल गांधी को एक मर्तबा फिर किसान रैली की आड़ लेकर आकर्षक पैक के साथ लांच किया।
अपनी इस री-लांचिंग में राहुल खूब बोले, और जमकर बोले। करीब-करीब उसी अंदाज में जिस अंदाज में वह कांग्रेस के अघोषित नेता माने जाने से लेकर बोलते रहे हैं। मोदी सरकार को निशाने पर रखा तथा यूपीए सरकार का गुणगान किया।
यह बात अलग है कि कुछ मीडिया तत्‍वों को उनमें विपश्‍यना करके लौटने से उपजा तथाकथित बदलाव नजर आया और उनकी बॉडी लैंग्‍वेज पहले के मुकाबले अधिक प्रभावशाली दिखाई दी। सोनिया और मनमोहन ने भी एक अर्से बाद अपने मुंह का अवकाश समाप्‍त किया और मोदी सरकार पर यथासंभव तीर चलाए किंतु किसी ने यह बताकर नहीं दिया कि यूपीए सरकार द्वारा तैयार किये गये भूमि अधिग्रहण बिल में मोदी सरकार ने ऐसे कौन से बदलाव कर दिये कि पूरा बिल किसानों के लिए अचानक अमृत से जहर बन गया।
इधर उनसे भी पहले मोदी जी ने अपने सांसदों की क्‍लास में भूमि अधिग्रहण बिल पर कोई समझौता न करने तथा उसकी खूबियां जनता की बीच जाकर बताने का पाठ पढ़ाया किंतु वह कौन सी खूबियां हैं जिन्‍हें सांसदों को जनता के बीच जाकर बताना है, यह नहीं बताया। अब या तो मोदी जी की कक्षा के छात्र (सांसद) सर्वज्ञ होते हुए मौनव्रत धारण किये हुए हैं अथवा मोदी जी की बात उन्‍हें मनमोहन, सोनिया तथा राहुल की तरह समझ में नहीं आ रही।
मोदी जी स्‍वयं और उनके मंत्री लगातार यह कह जरूर रहे हैं कि वह जनता के बीच जाकर नये भूमि अधिग्रहण बिल की खूबियां बतायेंगे किंतु बता कोई नहीं रहा। पता नहीं इसके लिए वह किस मुहूर्त का इंतजार कर रहे हैं।
कुल मिलाकर सत्‍ता पक्ष और विपक्ष राजनीति की बिसात पर किसान-किसान खेल रहा है किंतु कोई यह बताने को तैयार नहीं कि भूमि अधिग्रहण बिल की खूबियां हैं तो क्‍या हैं…और खामियां हैं तो कौन-कौन सी हैं। इस बिल को लेकर कोई किताब ऐसी बाजार में मिल नहीं रही, जिसे पढ़कर किसान या आम जनता यह समझ सके कि सच कौन बोल रहा है और झूठ कौन।
किसान अगर कर रहा है तो केवल इतना कि या तो तथाकथित रूप से आत्‍महत्‍या कर रहा है या फिर तथाकथित सदमे में मर रहा है। इस सबके अलावा वह कुछ कर रहा है तो कांग्रेस की किसान रैली में जाकर हरियाणा कांग्रेस की गुटबाजी का हिस्‍सा बन रहा है। कुछ किसान गुलाबी पगड़ी बांधकर हरियाणा कांग्रेस के प्रदेश अध्‍यक्ष अशोक तंवर के खिलाफ हूटिंग करने गये थे तो कुछ सतरंगी पगड़ी के साथ हरियाणा के पूर्व मुख्‍यमंत्री भूपेन्‍द्र सिंह हुड्डा की ताकत का अहसास कराने पहुंचे थे। अब इन ”पेड किसानों” का किस तरह भूमि अधिग्रहण बिल के अच्‍छे या बुरे होने से कोई ताल्‍लुक हो सकता है, यह बात शायद ही किसी को समझ में आ पाये।
यूं भी किसी राजनीतिक दल की रैली में शिरकत करने वाले लोग उसी पार्टी के अंधभक्‍त होते हैं, यह अब कोई छिपी हुई बात नहीं रह गई। दूसरे कुछ लोग अगर होते हैं तो वो जो दिहाड़ी डायटिंग तथा फ्री ट्रेवलिंग कराकर लाये ले जाये जाते हैं। ऐसे लोगों को किसान कहना, किसानों की तौहीन है। हां…इन्‍हें राजनीतिक पार्टियों के ”किसान मोहरे” कहा जा सकता है जो ”माउथ प्रचार” के जरिये अपनी पार्टी या अपने नेता का स्‍तुतिगान करते हैं। लगभग उसी अंदाज में जिस अंदाज में कभी ”भांड़” अपने राजा-महाराजाओं की विरुदावली गाया करते थे। ऐसे भांड़ों का 21 वीं सदी वाला संसदीय संस्‍करण आज भी हर राजनीतिक पार्टी के पास मौजूद है और बखूबी अपने काम को अंजाम दे रहा है। फिर चाहे वह कोई राष्‍ट्रीय पार्टी हो या क्षेत्रीय। माया, मुलायम, ममता और जयललिता से लेकर अरविंद केजरीवाल तथा अखिलेश यादव तक के पास अपने-अपने निजी भांड़ हैं।
यूं भी जिस देश में हर कोई किसी न किसी राजनीतिक दल से जुड़ा है और कमोबेश देश की पूरी आबादी दलगत राजनीति की शिकार है, उस देश में निजी सोच रखने वालों को पूछता ही कौन है। उनकी तादाद इतनी अधिक कम है कि उन्‍हें देश की आबादी का हिस्‍सा या देश का नागरिक तक मानने को कोई आसानी से तैयार नहीं होता लिहाजा उनकी आवाज़ नक्‍कारखाने की तूती बन कर रह गई है।
दलगत राजनीति के चंगुल में लोग इस कदर फंस चुके हैं कि उन्‍हें अपने परिवार के सदस्‍यों का जन्‍मदिन याद हो या न हो लेकिन पार्टी के नेता का जन्‍मदिन कभी नहीं भूलते। अपने पिता को कोई गाली देकर चला जाए, कोई फर्क नहीं पड़ता लेकिन नेताजी की शान में किसी ने गुस्‍ताख़ी कर दी तो जान देने और लेने पर आमादा हो जाते हैं।
कांग्रेस को केंद्र की सत्‍ता पर रहते किसानों के लिए कुछ अच्‍छा स्‍थाई काम करने के लिए पूरे दस साल कम पड़ गये थे और मोदी सरकार के लिए दस महीने बहुत ज्‍यादा हो गये। इस बात का जवाब क्‍या किसी के पास है?
यदि यह मान भी लिया जाए कि मोदी सरकार का भूमि अधिग्रहण बिल किसान विरोधी तथा उद्यमियों के हित में है, तो उसे सामने आने दीजिए। ठीक उसी तरह जैसे समय के साथ कॉमनवेल्‍थ गेम्‍स, टूजी स्‍पेक्‍ट्रम तथा कोलगेट घोटाले का सच सामने आ ही गया जबकि यूपीए सरकार ने इन सब को पूरी तरह झुठलाने में कोई कसर बाकी नहीं रखी थी।
चुनाव कोई कुंभ के मेले की तरह तो हैं नहीं, अगले पांच साल बाद फिर होने हैं। तब मोदी जी की सरकार का जनता खुद-ब-खुद वही हाल कर देगी जो आज कांग्रेस का कर रखा है। पांच साल के लिए उन्‍हें स्‍पष्‍ट जनादेश मिला है तो उससे पहले आप उन्‍हें सत्‍ता से च्‍युत कर नहीं सकते। फिर इतनी निम्‍न स्‍तरीय राजनीति का मतलब क्‍या है।
मतलब साफ है, कांग्रेस हो या भाजपा…सपा हो या बसपा…राजद हो या बीजद…सबके नेता जानते हैं कि मार्कण्‍डेय काटजू का कथन ही अंतिम सत्‍य है। वह उनके कथन पर राजनीति बेशक कर लें किंतु सच्‍चाई पर उन्‍हें भी तनिक शक नहीं है। वह जानते हैं कि जो जनता आज भी आसाराम बापू, नारायण साईं, स्‍वामी नित्‍यानंद तथा शिवानंद तिवारी जैसे दुराचारियों को संत मान रही है और जो लोग आज भी सहाराश्री की चिटफंड कंपनी में पैसा जमा कर रहे हैं, जिनके लिए देश में हुए खरबों के घोटाले कोई मायने नहीं रखते, जिनकी अंधभक्‍ति किसी तर्क अथवा तथ्‍य को मानने के लिए तैयार नहीं होती, उन्‍हें भेड़ की तरह हांकना कोई मुश्‍किल काम नहीं।
कोई भी राजनीतिक दल, चाहे वह क्षेत्रीय हो या राष्‍ट्रीय…सत्‍ता से बेदखल होते ही इस कवायद में लग जाता है कि अपने अंधभक्‍तों की आंखों पर चढ़े चश्‍मे का रंग हर हाल में बरकरार रखा जाए। चाहे किसी भूमि अधिग्रहण बिल के जरिये और चाहे किसान रैली के जरिए। चाहे संसद के अंदर से, चाहे संसद के बाहर बैठकर…अंधभक्‍तों का अपने पक्ष में ”ब्रेनवॉश” करते रहना जरूरी है क्‍योंकि सत्‍ता की कुंजी वही लोग हैं। इसीलिए तो भाजपा ने सत्‍ता पर काबिज होने के साथ अपने अंधभक्‍तों की संख्‍या का विश्‍व रिकॉर्ड बनाने जैसे महत्‍वपूर्ण कार्य को अंजाम तक पहुंचाया। भाजपा हो या कांग्रेस…या कोई भी अन्‍य पार्टी…सभी के नेता जानते हैं कि उनका वोटर ही उन्‍हें सत्‍ता तक पहुंचाता है, विपक्षी अंधभक्‍तों के मत उन्‍हें कभी नहीं मिलने वाले। शिखर तक पहुंचाने में दिमाग से दिवालिया दलगत राजनीति के शिकार ही निर्णायक साबित होते हैं, विचारवान बुद्धिजीवी नहीं। वह उनकी दृष्‍टि में किसी खेत की मूली नहीं हैं।
यही कारण है कि स्‍वतंत्र भारत में सत्‍ता का स्‍वाद बारी-बारी से चखा जाता रहा है। यह बात अलग है कि किसी को समय ज्‍यादा मिला और किसी को कम। किंतु सत्‍ता हमेशा ऐसे तत्‍वों के हाथ में रही जिन्‍हें फिरंगियों की कार्बन कॉपी कह सकते हैं। इतना कहने में आपत्‍ति हो तो यह जरूर कह सकते हैं कि पिछले 67 सालों में किसी सत्‍ता ने कभी ऐसा कुछ महसूस नहीं कराया जिसके आधार पर यह कहा जा सके कि वाकई यह देश स्‍वतंत्र हो चुका है और लोकतंत्र को सही-सही परिभाषित करने वाली सरकार काम कर रही है। यानि जनता के द्वारा चुनी गई, जनता के लिए, जनता की सरकार।
आज तक जितनी भी सरकारें रहीं हैं, फिर चाहे वह केंद की हों या राज्‍यों की, गठबंधन की रही हों, या स्‍पष्‍ट बहुमत वाली…एक दल की रही हों या अनेक दलों की…सबका आचरण समय के साथ रंग बदलता रहता है। विपक्ष में रहते उनके रंग-ढंग कुछ और रहते हैं तथा सत्‍ता हासिल होते ही कुछ और हो जाते हैं। गिरगिट भी फिर इनके आचरण के सामने कुछ नहीं रह जाता।
जाहिर है कि न तो कांग्रेस कुछ अजूबा कर रही है और न भाजपा या उसके साथ सत्‍ता का स्‍वाद चख रहे उसके सहयोगी दल। सब वही कर रहे हैं जो स्‍वतंत्र भारत की राजनीति अब तक करती रही है।
मार्कण्‍डेय काटजू को हम सनकी कह सकते हैं, आत्‍ममुग्‍ध कह सकते हैं, बड़बोला या अभिमानी बता सकते हैं…यह भी आरोप लगा सकते हैं कि वह मीडिया की सुर्खियों में रहने के लिए ऊट-पटांग बयान देने तथा अनर्गल बोलते रहने के आदी हैं किंतु इन सारी बातों को स्‍वीकार कर लेने के बावजूद कहीं न कहीं उनका यह कथन एकबार सोचने पर बाध्‍य अवश्‍य कर देता है कि क्‍या वाकई देश की अधिकांश जनता मूर्ख है।
खासतौर पर ऐसे समय जरूर उनका कथन विचार करने पर मजबूर कर देता है जब कोई नेता अपनी बेतुकी बातों, कुतर्कों, निरर्थक आरोप एवं प्रत्‍यारोपों, अभद्र भाषा-शैली वाले भाषणों तथा बेहूदी बयानबाजी के बावजूद तालियां बटोर लेता है तथा शत-प्रतिशत निजी स्‍वार्थों की पूर्ति यानि सत्‍ता हथियाने अथवा सत्‍ता बरकरार रखने के लिए चिलचिलाती धूप, तेज बारिश, आंधी-तूफान या कड़कड़ाती ठंड में लाखों लोगों को एकत्र कर पाता है। वो भी मात्र इसलिए कि उसे आपको मूर्ख बनाना है। यह जानते हुए कि वह आपके लिए कुछ नहीं कर सकता।
यह भी जानते हुए कि उसके पास अकूत दौलत है, बेहिसाब ताकत है, दुनिया भर में शौहरत है।
यह जानते व समझते हुए कि सड़क से संसद तक कुत्‍ते-बिल्‍लियों की भांति जन्‍मजात दुश्‍मन दिखाई देने वाले तथा एक दूसरे पर गुर्राते नजर आने वाले कैमरा ऑफ होते ही एक दूसरे की कुशलक्षेम किसी सहोदर की तरह पूछते हैं। ऑन रिकार्ड इनकी सूरत व सीरत कुछ और होती है तथा ऑफ रिकॉर्ड कुछ और।
हो सकता है कि मार्कण्‍डेय काटजू के कथन में मूर्खों की जमात का प्रतिशत आंशिक रूप से कुछ ऊपर-नीचे हो, किंतु बहुत ज्‍यादा नहीं है।
स्‍वतंत्र भारत से लेकर आज तक की राजनीति और राजनेताओं की सफलता का प्रतिशत तो यही बताता है।
यदि कभी इस बिंदु पर विचार न किया हो तो अब करके देखें, हो सकता है कि खुद आपको भी अहसास हो कि आप अब तक उसी जमात का हिस्‍सा बने हुए हैं।
-सुरेन्‍द्र चतुर्वेदी

शनिवार, 18 अप्रैल 2015

50 वर्ष की लाइफ वाला ओवरब्रिज 50 दिनों से पहले ही हुआ ध्‍वस्‍त

-लोकार्पण से पहले ही सड़क का एक हिस्‍सा टूटकर गिरा
-पूरे ओवरब्रिज पर जगह-जगह पड़ी दरारें
-विद्युत कार्य की आड़ में आवागमन बंद करके सेतुनिगम करा रहा है मरम्‍मत कार्य
-निगम का कोई अधिकारी मुंह खोलने को तैयार नहीं
-एकसाथ सैंकड़ों जिंदगियां कभी भी पड़ सकती हैं खतरे में
50-year life overbridge is dismantled in only 50 daysसैंकड़ों जिंदगियां गंवाने के बाद कृष्‍ण की नगरी में उसकी पावन जन्‍मस्‍थली के निकट रेलवे क्रॉसिंग पर जब ओवरब्रिज बनने का रास्‍ता साफ हुआ तो उम्‍मीद की जा रही थी कि अब न केवल लोगों की जान का जोखिम खत्‍म हो जायेगा बल्‍कि आवागमन भी सुगम होगा।
लेकिन अब जबकि गोविंद नगर स्‍थित रेलवे क्रॉसिंग पर यह ओवरब्रिज बनकर तैयार हो चुका है तो पता लग रहा है कि इसके कारण तो खतरा और बढ़ गया है तथा सैंकड़ों जिंदगियां कभी भी एकसाथ खत्‍म हो सकती हैं।
उत्‍तर प्रदेश राज्‍य सेतु निगम द्वारा बनाया गया उक्‍त ओवरब्रिज आवागमन के लिए विधिवत खोले जाने से पूर्व ही ध्‍वस्‍त होने लगा है और उसमें जगह-जगह पड़ चुकी दरारें यह बता रही हैं कि यह किसी भी दिन बड़े हादसे का कारण बन सकता है।
50-year life overbridge is dismantled in only 50 days
ओवरब्रिज के ऊपर काली पॉलीथिन डालकर मरम्‍मत कार्य करते सेतु निगम कर्मचारी
गौरतलब है कि देश के सर्वाधिक व्‍यस्‍त और सबसे अधिक तीव्र गति वाले रेल मार्ग पर बने गोविंद नगर ओवरब्रिज का लोकार्पण पिछले महीने प्रदेश के मुख्‍यमंत्री अखिलेश यादव को करना था। अखिलेश यादव मथुरा आये भी किंतु वह दूसरे कार्यक्रमों में व्‍यस्‍तता के चलते इस ओवरब्रिज का लोकार्पण नहीं कर सके लिहाजा इसे अनौपचारिक तौर पर आवागमन के लिए खोल दिया गया।
चूंकि यह ओवरब्रिज नेशनल हाईवे नंबर- 2 को कृष्‍ण की पावन जन्‍मस्‍थली से जोड़ता है और कृष्‍ण जन्‍मस्‍थली के दर्शनार्थ प्रतिदिन हजारों की संख्‍या में देशी-विदेशी लोग यात्री बसों से अथवा निजी वाहनों से आते हैं अत: इस ओवरब्रिज के खुलते ही इस पर वाहनों का आवागमन शुरू हो गया।
इस पर बेफिक्र होकर दौड़ रहे वाहन चालकों को इस बात का इल्‍म तक नहीं हुआ कि भ्रष्‍टाचार के गारे से बने करीब 50 वर्ष की लाइफ वाले इस ओवरब्रिज ने तो 50 दिन में ही सेतु निगम की असलियत बता कर रख दी।
ओवरब्रिज की सड़क का एक हिस्‍सा जहां टूटकर गिर गया वहीं कई स्‍थानों पर दरारें आ गईं। ऐसे में सेतु निगम के स्‍थानीय प्रोजेक्‍ट मैनेजर तथा अभियंताओं के माथे पर बल पड़ना स्‍वाभाविक था।
करोड़ों की लागत से बने करीब 900 मीटर लंबे इस ओवरब्रिज की खामियां तथा अपना भ्रष्‍टाचार छिपाने के लिए सेतु निगम के स्‍थानीय अधिकारियों ने आनन-फानन में ओवरब्रिज पर ”सावधान! विद्युत कार्य प्रगति पर है” का ”स्‍टॉपर” लगाकर आवागमन बंद कर दिया और जहां से ओवरब्रिज की सड़क ध्‍वस्‍त हुई थी उसकी मरम्‍मत का कार्य शुरू कर दिया।
बड़ी चालाकी के साथ टूटी हुई सड़क के ऊपर काले रंग की मोटी पॉलीथिन बिछा दी गई और उसके ऊपर बिजली के तारों के बंडल रख दिये गये ताकि किसी को शक न हो। पॉलीथिन के निकट कुछ इस अंदाज में त्रिपाल की तरह कपड़ा डालकर काम किया जाने लगा जैसे धूप से बचाव किया जा रहा हो।
दरअसल इस सब की आड़ में ओवरब्रिज के नीचे की ओर काफी बड़े हिस्‍से पर लोहे की शटरिंग लगाकर और उसे नटबोल्‍ट आदि से कसकर दुरुस्‍त करने का प्रयास किया जा रहा था।
50-year life overbridge is dismantled in only 50 days
ओवरब्रिज की सड़क पर नीचे की ओर लगाई गई शटरिंग जिसे क्‍लेंप (लाल घेरे में) से कसकर टिकाया हुआ है।
”लीजेण्‍ड न्‍यूज़” को जब सेतु निगम के इस कारनामे की जानकारी हुई तो सबसे पहले मौके पर जाकर अधिकारियों द्वारा की जा रही लीपापोती के फोटोग्राफ्स लिये और फिर पूरे मामले की जानकारी करने का प्रयास किया।
ओवरब्रिज पर मरम्‍मत कार्य करा रहे सेतु निगम के कर्मचारी द्वारा सूचित किये जाने पर कोई वीरेन्‍द्र नामक अभियंता और उनके साथ आये किन्‍हीं सिंह साहब और शर्मा जी ने अधिकृत रूप से अपना वक्‍तव्‍य देने में तो खुद को असमर्थ बताया लेकिन इतना कहा कि बेमौसम हुई बारिश के कारण ओवरब्रिज क्षतिग्रस्‍त हुआ है। हम उसे ठीक करने में लगे हैं। जल्‍द ही ठीक हो जायेगा।
यह पूछे जाने पर कि 50 वर्ष की मियाद वाला ओवरब्रिज 50 दिन से पहले ही कैसे क्षतिग्रस्‍त हो सकता है जबकि उसके निर्माण में बारिश आदि के होने का ध्‍यान तो रखा गया होगा, वह कोई उत्‍तर नहीं दे सके।
उनके द्वारा यह जरूर बताया गया कि कोई आरके सिंह इस ओवरब्रिज के प्रोजेक्‍ट मैनेजर हैं जो आगरा बैठते हैं और यहां आते-जाते रहते हैं। प्रोजेक्‍ट मैनेजर आरके सिंह का न तो उन्‍होंने कोई कॉन्‍टेक्‍ट नंबर बता कर दिया और ना बात कराना जरूरी समझा। हां, इस आशय का अनुरोध अवश्‍य करते रहे कि ज्‍यादा बड़ा मामला नहीं है, आप इसे इतनी गंभीरता से न लें।
विधिवत लोकार्पण होने से पहले ही तथा एक माह के अंदर हुए ओवरब्रिज के इस हाल की पुनरावृत्‍ति आगे नहीं होगी, इस बात की क्‍या गारंटी है और यह किसी बड़े हादसे का कारण नहीं बनेगा, इसकी जिम्‍मेदारी कौन लेगा, इन शंकाओं के बारे में सेतु निगम के इन अधिकारी व कर्मचारियों के पास कहने को कुछ नहीं था।
यहां यह जान लेना और जरूरी है कि सेतु निगम की यही टीम मथुरा में यमुना नदी पर बने पुराने पुल की मियाद खत्‍म हो जाने के कारण अब नये पुल का निर्माण कर रही है। यह पुल गोविंद नगर रेलवे क्रॉसिंग पर बने पुल से काफी लंबा बनना है और उससे कई गुना अधिक लागत में बनना है।
समाजवादी पार्टी के मुखिया मुलायम सिंह यादव संभवत: सही कहते हैं कि अधिकारियों और जनप्रतिनिधियों का ध्‍यान सिर्फ कमीशनखोरी पर है इसलिए न तो जनभावना के अनुरूप काम हो पा रहे हैं और न उत्‍तर प्रदेश सरकार की छवि सुधर पा रही है।
आश्‍चर्य की बात यह है कि सेतु निगम ने यह कारनामा तब कर दिखाया जब खुद मुख्‍यमंत्री अखिलेश यादव मथुरा जैसी विश्‍व प्रसिद्ध धार्मिक जगह के विकास कार्यों में स्‍वयं रुचि ले रहे हैं और चाहते हैं कि 2017 में होने वाले विधानसभा चुनावों के दौरान यहां कम से कम उनकी पार्टी का खाता तो खुल जाए।
एक अन्‍य आश्‍चर्य की बात यह है कि माननीय मुख्‍यमंत्री अखिलेश यादव के चाचा और सपा मुखिया मुलायम सिंह के भाई शिवपाल सिंह यादव ही सेतु निगम के चेयरमैन हैं और वो भी अक्‍सर मथुरा आते रहते हैं। किंतु लाखों लोगों की आंखों में धूल झोंककर भ्रष्‍टाचार करने में माहिर सेतु निगम के अधिकारियों को उनकी आंखों में धूल झोंकते परेशानी क्‍यों होने लगी।
50 वर्ष की लाइफ वाले ओवरब्रिज का 50 दिनों से पहले ही क्षतिग्रस्‍त हो जाने पर अन्‍य तकनीकी जानकारों का कहना है कि इसका एकमात्र कारण मानक के अनुरूप निर्माण सामग्री का इस्‍तेमाल न किया जाना और उसके अनुपात में भारी हेरफेर किया जाना ही होता है। दूसरे किसी कारण से कोई ओवरब्रिज इतने कम समय में क्षतिग्रस्‍त हो ही नहीं सकता।
अब सवाल यह पैदा होता है कि 50 साल की लाइफ वाला जो ओवरब्रिज लोकार्पण से पहले ही एक महीने के अंदर क्षतिग्रस्‍त हो गया, उसे कितने समय तक और कैसे उपयोगी बनाये रखा जा सकता है?
सवाल यह भी है कि जिस तरह लीपापोती करके और सरकार से लेकर आमजन तक की आंखों में धूल झोंककर इसे उपयोगी बनाने का प्रयास किया जा रहा है, क्‍या उस तरह यह किसी भी दिन एकसाथ सैंकड़ों लोगों की जिंदगी के लिए खतरे का कारण नहीं बन जायेगा?
सवाल बहुत हैं किंतु जवाब देने वाला कोई नहीं। सेतु निगम के अधिकारी व कर्मचारी तो अपना मुंह सिलकर बैठे हुए हैं।
अब देखना सिर्फ यह है कि सीमेंट, बजरी, लोहे और कंक्रीट के साथ भारी भ्रष्‍टाचार के गारे से गोविंदनगर रेलवे क्रॉसिंग पर बना यह ओवरब्रिज मरम्‍मत के सहारे कितने दिन चलता है और कितने बड़े हादसे का कारण बन पाता है।
-लीजेण्‍ड न्‍यूज़ विशेष

शुक्रवार, 10 अप्रैल 2015

नेहरू ने बोस परिवार की 20 साल करवाई थी जासूसी!

इंटेलिजेंस ब्यूरो की दो फाइल्स से साफ हुआ है कि जवाहरलाल नेहरू सरकार ने नेताजी सुभाष चंद्र बोस के परिजनों की 20 साल तक जासूसी करवाई थी। इंग्लिश न्यूज़ पेपर मेल टुडे की रिपोर्ट के मुताबिक ये फाइल्स नेशनल आर्काइव्स में हैं। इनसे पता चलता है कि 1948 से लेकर 1968 तक लगातार बोस के परिवार पर नजर रखी गई थी। इन 20 सालों में से 16 सालों तक नेहरू प्रधानमंत्री थे और आईबी सीधे उन्हें ही रिपोर्ट करती थी।
ब्रिटिश दौर से चली आ रही जासूसी को इंटेलिजेंस ब्यूरो ने बोस परिवार के दो घरों पर नजर रखते हुए जारी रखा था। कोलकाता के 1 वुडबर्न पार्क और 38/2 एल्गिन रोड पर निगरानी रखी गई थी। आईबी के एजेंट्स बोस परिवार के सदस्यों के लिखे या उनके लिए आए लेटर्स को कॉपी तक किया करते थे। यहां तक कि उनकी विदेश यात्राओं के दौरान भी साये की तरह पीछा किया जाता था।
एजेंसी यह पता लगाने की इच्छुक रहती थी कि बोस के परिजन किससे मिलते हैं और क्या चर्चा करते हैं। यह सब किस वजह से किया जाता, यह तो साफ नहीं है मगर आईबी नेताजी के भतीजों शिशिर कुमार बोस और अमिय नाथ बोस पर ज्यादा फोकस रख रही थी। वे शरत चंद्र बोस के बेटे थे, जो कि नेताजी के करीबी रहे थे। उन्होंने ऑस्ट्रिया में रह रहीं नेताजी की पत्नी एमिली को भी कई लेटर लिखे थे।
अखबार से बातचीत में नेता जी के पड़पौत्र चंद्र कुमार बोस ने कहा, ‘जासूसी तो उनकी की जाती, जिन्होंने कोई क्राइम किया हो। सुभाष बाबू और उनके परिजनों ने देश की आजादी की लड़ाई लड़ी है। कोई उन पर किसलिए नजर रखेगा?’
पूर्व सुप्रीम कोर्ट जज अशोक कुमार गांगुली ने मेल टुडे से बात करते हुए कहा, ‘हैरानी की बात यह है कि जिस शख्स ने देश के लिए सब कुछ अर्पित कर दिया, आजाद भारत की सरकार उसके परिजनों की जासूसी कर रही थी।’
बीजेपी के राष्ट्रीय प्रवक्ता एम. जे. अकबर ने अखबार से बातचीत में कहा कि इस जासूसी की एक ही वजह हो सकती है। उन्होंने कहा, ‘सरकार को पक्के तौर पर नहीं पता था कि बोस जिंदा हैं या नहीं। उसे लगता था कि वह जिंदा हैं और अपने परिजनों के संपर्क में हैं। मगर कांग्रेस परेशान क्यों थी? नेताजी लौटते तो देश उनका स्वागत ही तो करता। यही तो वजह थी डर की। बोस करिश्माई नेता थे और 1957 के चुनाव में उन्होंने कांग्रेस को कड़ी चुनौती दी होती। यह कहा जा सकता है कि अगर बोस जिंदा होते तो जो काम 1977 में हुआ, वह 15 साल पहले ही हो जाता।’
आईबी की फाइल्स को बहुत कम ही गोपनीय दस्तावेजों की श्रेणी से हटाया जाता है। ऑरिजनल फाइल्स अभी भी पश्चिम बंगाल सरकार के पास हैं। अखबार का कहना है कि ‘इंडियाज़ बिगेस्ट कवर-अप’ के लेखक अनुज धर ने इस साल जनवरी में इन फाइल्स को नेशनल आर्काइव्ज़ में पाया था। उनका मानना है कि इन फाइल्स को गलती से गोपनीय की श्रेणी से हटा दिया गया होगा।
-लीजेण्‍ड न्‍यूज़

गुरुवार, 9 अप्रैल 2015

हीरा (धोखा) है सदा के लिए

दूध, दही, घी और मावा (खोआ) ही नहीं, आभूषणों में जड़ा हीरा भी है सिंथेटिक
कहावत के तौर पर बताते हैं कि इस देश में कभी दूध-दही की नदियां बहती थीं। आशय यह है कि यहां दूध दही प्रचुर मात्रा में था। अब इसे ज्‍यामितीय विधि से बढ़ती जनसंख्‍या का दबाव कहें या गाय-भैंस जैसे दुधारू पशुओं की दिन-प्रतिदिन घटती तादाद कि दूध-दही ही नहीं, उससे बनने वाले सभी सामान का अभाव है लिहाजा सिंथेटिक यानि मिलावटी अथवा नकली उत्‍पाद की भरमार है। दूध में मिलावट का आलम तो यह है कि सुप्रीम कोर्ट तक को इसमें दखल देकर कहना पड़ा कि मिलावटी दूध की बिक्री हर हाल में रोकी जाए। इस सब के बावजूद आज भी बाजार में सिंथेटिक दूध, दही, घी, मावा (खोआ) तथा पनीर सहित दूध से बनने वाले अनेक उत्‍पाद सिंथेटिक बिक रहे हैं जबकि वो बहुत सी जानलेवा बीमारियों के कारक हैं।
खैर…यह तो बात हो गई दूध व दूसरे दुग्‍ध उत्‍पादों की, लेकिन हम आज आपको बता रहे हैं एक ऐसे बेशकीमती पदार्थ की जिसके आकर्षण से शायद ही कभी कोई अछूता रह पाया हो। जिस किसी के पास थोड़ी सी संपन्‍नता आई, वह सबसे पहले उसे पाने की चाहत रखता है। फिर वह चाहे कोई स्‍त्री हो या पुरुष।
जी हां! हम बात कर रहे हैं हीरे की। हीरा और उससे जड़े आभूषणों की। उस हीरे की जिसके लिए विज्ञापन में कहा जाता है- ”हीरा है सदा के लिए”।
अब हम आपको हीरे से जुड़ी वह सच्‍चाई बताने जा रहे हैं जिसे आप न तो जानते हैं और न जान सकते हैं। कर सकते हैं तो केवल इतना कि हीरे के आकर्षण को छोड़कर ठगाई से बच सकते हैं।
आपको यह जानकर आश्‍चर्य होगा कि दूध और दूध से बने उत्‍पादों तथा तमाम खाद्य सामग्रियों की तरह वह हीरा भी आपको सिंथेटिक ही बेचा जा रहा है जिसे असली बताकर प्रति रत्‍ती के हिसाब से आपकी जेब तराशी जाती है। कहते हैं कि असली हीरे की धार बहुत तेज होती है, किंतु सर्राफा व्‍यवसाई नकली हीरे से आपकी बेहिसाब जेब काट रहे हैं और आपको इसका अहसास तक नहीं होता। आप हीरे के आकर्षण में बंधे मोटी रकम देकर घर चले आते हैं यह सोचकर कि ”हीरा है सदा के लिए”।
लीजेण्‍ड न्‍यूज़ ने जब हीरा जड़ित आभूषणों की सच्‍चाई जाननी चाही तो चौंकाने वाला खुलासा हुआ। और यह खुलासा किसी अन्‍य ने नहीं, खुद डायमंड ट्रेड से जुड़े एक दिग्गज कारोबारी ने किया।
उसने बताया कि लगभग हर शहर में मौजूद नामचीन यानि ब्रांडेड जूलर्स से लेकर हर तरह के आभूषण बेचने वालों तक में से किसी को कभी आपने यह कहते नहीं सुना होगा कि वह सिंथेटिक डायमंड से जुड़े आभूषण बेचता है। आपने कभी सिंथेटिक डायमंड की बिक्री के लिए कोई विज्ञापन भी नहीं देखा होगा जबकि डायमंड से जुड़े जितने भी आभूषण बाजार में बिकते हैं, उनमें सिंथेटिक डायमंड ही इस्‍तेमाल हो रहा है लेकिन कीमत असल डायमंड की वसूली जाती है। उन्‍होंने बताया कि इसीलिए आज आभूषणों की बिक्री के लिए भी जूलर्स द्वारा नित नई स्‍कीम लांच की जाती हैं। कोई उसमें छूट देने की बात करता है तो कोई मेकिंग चार्ज न लेने की। बहुत से लोग ऐसी स्‍कीम के तहत महंगी-महंगी गाड़ियां ईनाम में देने का प्रलोभन दे रहे हैं। हालांकि असली डायमंड कारोबारी अपने स्‍तर से इसका विरोध कर रहे हैं क्‍योंकि इससे न सिर्फ डायमंड व्‍यवसाय का नाम बदनाम हो रहा है, बल्‍कि उनका धंधा भी प्रभावित होता है।
मात्र 15 दिन पहले ही कॉमर्स मिनिस्ट्री ने सिंथेटिक डायमंड के इस अवैध कारोबार के बारे में आगाह किया है। उसने मुंबई की एक ट्रेड एसोसिएशन से पूछा भी है कि असली और सिंथेटिक डायमंड के बीच फर्क की क्‍या पहचान है क्‍योंकि आज सिंथेटिक  डायमंड पूरे देश में बेचा जा रहा है।
कॉमर्स मिनिस्ट्री ने सिंथेटिक डायमंड के बारे में दूसरे देशों से इंपोर्ट के तौर-तरीकों की भी जानकारी मांगी है।
बताया जाता है कि सिंथेटिक डायमंड असल डायमंड की तुलना में आधी कीमत के होते हैं। सिंथेटिक डायमंड्स विदेश में लैब के अंदर बनाए जाते हैं। वहां से ये सूरत तथा मुंबई के ट्रेडर्स के पास पहुंचते हैं और फिर देशभर में।
विदेश से सिंथेटिक डायमंड आसानी के साथ आ पाने की वजह यह है कि भारत में सिंथेटिक डायमंड के लिए अलग से कोई कोड नहीं है जबकि हर कमोडिटी का एक नंबर वाला कोड होता है। यह कोड उस वक्त कस्टम डिपार्टमेंट को बताना पड़ता है जब कोई सामान विदेश से देश के अंदर लाना होता है। इसे हार्मनाइज्ड कमोडिटी डिस्क्रिप्शन ऐंड कोडिंग सिस्टम या एचएस कोड कहते हैं।
यहां यह जान लेना भी जरूरी है कि चीन में नेचुरल और सिंथेटिक डायमंड के लिए अलग-अलग कोड हैं और इसलिए भारत के असली डायमंड कारोबारी सरकार से मांग कर रहे हैं कि हमारे यहां भी ऐसा ही सिस्‍टम लागू किया जाए। साथ ही सिंथेटिक डायमंड ड्यूटी फ्री न रहे।
भारत में जो सिंथेटिक डायमंड आता है, उसे 7104 कैटेगरी में डाला जाता है। यह अलग-अलग तरह के सिन्थेटिक स्टोन की कैटेगरी है। इसके लिए अलग कोड न होने के कारण सरकार या ट्रेड एसोसिएशन के लिए यह बताना मुश्किल है कि देश में कितना सिंथेटिक डायमंड आ रहा है।
गौरतलब है कि भारत के अंदर करीब 74 प्रतिशत सिंथेटिक डायमंड सूरत में आता है और यहां से देश का करीब 94 प्रतिशत डायमंड एक्सपोर्ट किया जाता है।
डायमंड कारोबारियों से जुड़े सूत्र बताते हैं कि सिंथेटिक डायमंड को नेचुरल डायमंड में आसानी से मिलाया जा सकता है। पॉलिश होने के बाद दोनों में फर्क का पता नहीं चलता। किसी जूलरी में लगने के बाद डायमंड की जांच भी नहीं हो सकती।’
यही कारण है कि नामचीन से नामचीन सर्राफा व्‍यवसाई असली हीरे के नाम से बड़े पैमाने पर सिंथेटिक हीरे वाली जूलरी को खपा कर लोगों के साथ खुलेआम धोखाधड़ी कर रहे हैं।
चूंकि भारत के लोग अपनी कोई भी जूलरी बहुत ही विषम परिस्‍थितियों के चलते बेचना मंजूर करते हैं इसलिए वह असली कीमत देकर नकली यानि सिंथेटिक हीरे को गले लगाये रहते हैं।
ऐसे में जरूरत है तो इस बात की कि धोखाधड़ी के इस अवैध कारोबार पर लगाम लगाई जाए क्‍योंकि इससे एक ओर जहां बेईमान सर्राफा व्‍यवसाई हीरे के आकर्षण का लाभ उठाकर करोड़ों नहीं, अरबों रुपए का चूना लगा रहे हैं वहीं दूसरी ओर बेखौफ होकर ग्राहकों के भरोसे का खून किया जा रहा है।
-सुरेन्‍द्र चतुर्वेदी

गुरुवार, 2 अप्रैल 2015

रेलवे में 10 हजार करोड़ की होती है सालाना लूट: श्रीधरन

नई दिल्ली। मेट्रो मैन के नाम से मशहूर ई श्रीधरन ने कहा है कि भारतीय रेलवे को सामानों की खरीदारी में हर साल कम से कम 10 हजार करोड़ रुपए का चूना लग रहा है। श्रीधरन की रिपोर्ट में कहा गया है कि खरीद अधिकारों को विकेंद्रित करने यानी निचले स्तर तक देने से इस लूट को रोका जा सकता है।
श्रीधरन ने रेलवे के जनरल मैनेजर्स को वित्तीय अधिकार देने और अधिकारों के विकेंद्रीकरण संबंधी अपनी फाइनल रिपोर्ट में कहा है कि इस समय खरीद अधिकार सीमित होने से रेलवे का बहुत ज्यादा पैसा महज कुछ हाथों में है। इससे भ्रष्टाचार को बढ़ावा मिलता है।
श्रीधरन की अध्यक्षता वाली इस कमेटी ने अपनी रिपोर्ट में रेलवे के कई वरिष्ठ अधिकारियों की भी राय ली है। मौजूदा खरीद प्रक्रिया का विश्लेषण कर कमिटी इस नतीजे पर पहुंची है कि जवाबदेही तय करने और अधिकारों को विकेंद्रित करने से रेलवे की सालाना आय में भारी अंतर आ जाएगा। इससे हर साल सामान की खरीद में करीब 5 हजार करोड़ रुपए और कामों के ठेके देने में भी इतने ही रुपयों की बचत होगी।
कमेटी ने अपनी फाइनल रिपोर्ट 15 मार्च को दाखिल की थी। इसमें कहा गया है कि बोर्ड को कोई भी वित्तीय फैसले नहीं लेने चाहिए। खुद अपनी जरूरत के सामान की खरीदारी भी उत्तरी रेलवे से करानी चाहिए। ये अधिकार जनरल मैनेजर और निचले स्तर के अधिकारियों को दिए जाने की भी सिफारिश की गई है।
आपको बता दें कि रेलवे देश में सबसे ज्यादा खरीदारी करने वाली दूसरी सबसे बड़ी एजेंसी है। इससे ज्यादा की खरीदारी सिर्फ डिफेंस के सामान की होती है। रेलवे हर साल खरीदारी पर करीब 1 लाख करोड़ रुपए खर्च करती है, जिसमें से करीब आधी रकम से रेलवे बोर्ड खरीदारी करता है।
पिछले साल नवंबर में श्रीधरन के प्रारंभिक रिपोर्ट देने के बाद से ही रेलवे ने अधिकारों के विकेंद्रीकरण का काम शुरू कर दिया है। अब श्रीधरन कमेटी ने कहा है कि रेलवे बोर्ड का गठन रेलवे की नीतियां, योजनाएं, नियम और सिद्धांतों को बनाने, इनकी जांच करने और रेलवे को दिशानिर्देश देने को हुआ था लेकिन आज बोर्ड इनमें से कोई भी काम नहीं कर रहा है।
कमेटी ने विस्तार से विश्लेषण के लिए डीजल, कंक्रीट स्लीपर्स, 53-s सीमेंट जैसे सामनों की खरीद प्रक्रिया का भी अध्धयन किया। उनके मुताबिक, रेलवे देश में सबसे ज्यादा डीजल की खरीद करता है और पिछले 15 महीनों से इसका नया ठेका ही फाइनल नहीं हुआ है। कई चीजों के ठेके तो दशकों से फाइनल नहीं हुए हैं।
रिपोर्ट के मुताबिक, हालात इतने खराब हो गए हैं कि रेलवे के कामकाज की इस व्यवस्था को अच्छे से झकझोरने की जरूरत है, जिससे प्रभावी और बेहतर बिजनेस के फैसले लिए जा सकें। इसमें कहा गया है कि बोर्ड को फील्ड में मौजूद अपने शीर्ष अधिकारियों यानी जनरल मैनेजर्स की बिजनस की क्षमता पर ही शक है।
इसके अलावा रिपोर्ट में रेलवे की ढुलाई और यात्रियों की संख्या (हवाई और सड़क के मुकाबले) कम होने पर भी चिंता जताई गई है। रिपोर्ट के मुताबिक 1960-61 के 82 फीसदी (टन के हिसाब से) के मुकाबले आज रेलवे से केवल 30 फीसदी ढुलाई होती है। श्रीधरन ने कहा है कि शायद ही रेलवे के मुकाबले किसी और भारतीय संस्था की इतनी ज्यादा समितियों ने समीक्षा की होगी, लेकिन विडंबना यह है कि सारी सिफारिशें आज भी धूल फांक रही हैं।
-एजेंसी
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