बुधवार, 24 अक्तूबर 2018

यदि आप इस फेस्टिव सीजन में मथुरा से Hyundai की कार खरीदना चाहते हैं तो पहले यह ख़बर पढ़ लें

जी हां! यदि आप इस फेस्‍टिव सीजन यानी में मथुरा से Hyundai की कोई कार खरीदना चाहते हैं तो यह ख़बर आपके लिए ही है।
कहीं ऐसा न हो कि आप बड़े उत्‍साह से अपने अरमानों की गाड़ी घर लेकर आएं और पता चले कि गाड़ी तो घर पहुंच गई किंतु एजेंसी ‘सड़क’ पर आ चुकी है।
दरअसल, मथुरा जनपद में Hyundai कारों के एकमात्र डीलर आगरा निवासी राजीव रतन और ऋषि रतन ने कार निर्माता कंपनी को धोखे में रखकर Shiel Hyundai का सौदा किसी अन्‍य व्‍यक्‍ति के नाम कर दिया है जो कंपनी की शर्तों के मुताबिक पूरी तरह अवैध है।
बताया जाता है कि फिलहाल डीलरशिप को छिपाए रखने की वजह भी यही है कि कंपनी की आंखों में धूल झोंककर फेस्‍टिव सीजन का भरपूर लाभ उठा लिया जाए।
यही कारण है कि Shiel Hyundai में कार्यरत स्‍टाफ को भी यह कहकर गुमराह किया जा रहा है कि कंपनी की सहमति से डीलरशिप का सौदा हुआ है जबकि कोई भी मल्‍टी नेशनल कार कंपनी अपने डीलर को ऐसा करने की इजाजत कभी नहीं देती।
गौरतलब है कि फेस्‍टिव सीजन में लगभग सभी कार कंपनियां अपने उत्‍पादों पर अच्‍छी-खासी छूट देती हैं और इसका लाभ ग्राहक के साथ-साथ डीलर को भी प्राप्‍त होता है।
डीलर को इन अवसरों पर कंपनी जो टारगेट देती है, उस टारगेट को अचीव करने का बोनस भी निर्धारित होता है, और यह बोनस डीलर के खाते में जाता है।
कंपनी द्वारा दी जाने वाली छूटों में नकद डिस्‍काउंट के अलावा फ्री सर्विस की संख्‍या, गारंटी अथवा वारंटी की मियाद बढ़ा देना आदि भी शामिल होता है।
इन हालातों में अगर आपने किसी ऐसे डीलर से अपने सपनों की कार खरीदी होगी जिसके अपने भविष्‍य पर ही प्रश्‍नचिन्‍ह लगा हो तो आपको सर्विस से लेकर मेंटीनेंस तक में भारी असुविधा होने की पूरी संभवाना है।
वजह एकदम साफ है। प्रथम तो कंपनी कब और किसे डीलर बनाती है, यह उसका अपना निर्णय है। दूसरे जिसे भी वह डीलर बनाती है, जरूरी नहीं कि वह उस गाड़ी पर फेस्‍टिव सीजन में मिली छूट को गंभीरता से ले जिसे उसने अपने स्‍तर से बेचा ही नहीं है और जिसका लाभ उससे पहले वाला डीलर उठा चुका है।
हालांकि कंपनी की शर्तों के मुताबिक प्रत्‍येक डीलर पूर्व में कंपनी द्वारा ग्राहक को दी गई सुविधाएं पूरी करने के लिए बाध्‍य है किंतु हकीकत में ऐसा होता नहीं है। यहां तक कि एक शहर का डीलर दूसरे शहर से खरीदी गई अपनी ही कंपनी की गाड़ी के ग्राहक को सुविधाएं मुहैया कराने में विशेष रुचि नहीं लेता।
डीलर्स की इस हरकत से सभी कार मालिक भली-भांति परिचित होते हैं इसलिए अधिकांश लोग जहां रहते हैं वहीं से कार खरीदने को प्राथमिकता देते हैं।
सामान्‍य तौर पर मथुरा जैसे धार्मिक जनपद में लोग धनतेरस और दीवाली पर नई कार अपने घर लाना चाहते हैं और इसके लिए पहले से तैयारी भी करते हैं। जिन्‍हें फाइनेंस कराना होता है वह फाइनेंस कराकर रखते हैं और जिन्‍हें एक्‍सचेंज ऑफर के तहत शेष धनराशि नकद देकर कार लानी होती है, वह भी पूरी तैयारी रखते हैं।
मन पसंद कार के लिए लोग डीलर के पास एडवांस पैसा पहुंचा देते हैं ताकि उन्‍हें पूर्व निधारित समय पर गाड़ी की डिलीवरी मिल सके।
ऐसे में एक स्‍वाभाविक सवाल यह पैदा होता है कि एडवांस पेमेंट, अच्‍छा लाभ और आफ्टर सेल भी विभिन्‍न माध्‍यमों से कमाई का जरिया लगातार बने रहने के बावजूद मथुरा की डीलरशिप क्‍यों खतरे में पड़ गई।
इस संबंध में जानकारी की तो पता लगा कि ऑटोमोबाइल के क्षेत्र में किसी भी डीलर के सामने आर्थिक तंगी के हालात सिर्फ तब खड़े होते हैं जब वह उस डीलरशिप से हो रही आमदनी का पैसा दूसरे कारोबार में लगाने लगता है। जैसे कि दूसरी कंपनी की डीलरशिप में या फिर जमीनें आदि को खरीदने में।
उल्‍लेखनीय है कि मथुरा में Hyundai कारों के डीलर राजीव रतन व उनके पुत्र ऋषि रतन पर आगरा में एक अन्‍य कार कंपनी की भी डीलरशिप है और इन्‍होंने जमीन आदि में भी पैसा लगाया हुआ है। इसके अलावा पड़ोसी जनपद हाथरस में भी Hyundai की डीलरशिप इन्‍हीं के पास है।
इतना सब होते हुए मथुरा में Hyundai की डीलरशिप से किसी प्रकार का आर्थिक नुकसान मिलने की संभावना नहीं बनती लिहाजा यह अनुमान लगाना आसान है कि पैसा गया कहां होगा।
मथुरा में एक मशहूर दुपहिया वाहन के डीलर ने कुछ समय पूर्व ऐसा ही कारनामा किया था और अपने स्‍तर से सौदा करके करोड़ों रुपए ले लिए थे। कंपनी को जब डीलर के कारनामे का पता लगा तो उसने डीलरशिप टर्मिनेट करके नया डीलर बना लिया लेकिन जिसने पहली डीलरशिप में पैसे लगाए थे, वह फंस गया।
प्रत्‍येक व्‍यक्‍ति का पहला सपना भले ही अपना एक घर बनाना होता है परंतु उसका दूसरा सपना एक चार पहिया वाहन भी लेना होता है। चार पहिया वाहनों में मारुति और Hyundai ऐसी कंपनियां हैं जिनकी सर्वाधिक कारें सड़क पर दौड़ती देखी जा सकती हैं।
फेस्‍टिव सीजन में तो इन कंपनी की कारों के लिए लगभग मारामारी जैसी स्‍थिति पैदा हो जाती है क्‍योंकि सभी को अपनी पसंद का कलर और मॉडल एक निर्धारित तिथि या दिन चाहिए होता है।
अभी धनतेरस में 12 और दीपावली में 14 दिन शेष हैं। यदि आप मथुरा से Hyundai की गाड़ी लेने का मन बना रहे हों तो पहले अच्‍छी तरह यह पता कर लें कि कहीं आपको आफ्टर सेल सर्विस के लिए दूसरी जगहों पर भटकना न पड़े और आप अपनी गाड़ी का भरपूर लुत्‍फ उठा सकें।
-सुरेन्‍द्र चतुर्वेदी

शुक्रवार, 19 अक्तूबर 2018

Shiel Hyundai में बड़ा घपला: Hyundai मथुरा की एकमात्र डीलरशिप खतरे में

Shiel Hyundai के नाम से मथुरा में Hyundai कारों के एकमात्र डीलर आगरा निवासी राजीव रतन और ऋषि रतन ने कंपनी की आंखों में धूल झोंकते हुए डीलरशिप का सौदा किसी दूसरे को कर दिया है जबकि नियमानुसार ऐसा करना पूरी तरह अवैध बताया जाता है।
यही नहीं, Shiel Hyundai ने अपने स्‍तर से डीलरशिप का सौदा करने की जानकारी उन बैंकों को भी देना जरूरी नहीं समझा जिनमें Shiel Hyundai के एकाउंट हैं और Shiel Hyundai ने वहां से काफी आर्थिक सुविधाएं ले रखी हैं।
बताया जाता है कि इस कारनामे को अंजाम देने के लिए Shiel Hyundai ने अपने कर्मचारियों तक को यह कहकर गुमराह किया है कि उन्‍होंने डीलरशिप का सौदा करने की इजाजत कंपनी से ले ली है।
गौरतलब है कि मूल रूप से दक्षिण कोरिया की कार निर्माता कंपनी Hyundai का भारत के कार बाजार में बड़ा दबदबा है और इसलिए मारुति के बाद Hyundai की ही सर्वाधिक कारें सड़क पर देखी जा सकती हैं।
क्‍या कंपनी ऐसी कोई इजाजत देती है ?
इस बारे में जानकारी की तो पता लगा कि कोई भी मल्‍टीनेशनल कंपनी या बड़ी कंपनी डीलर को ये अधिकार नहीं देती कि वह अपने स्‍तर से डीलरशिप किसी अन्‍य के नाम ट्रांसफर कर दे अथवा उसमें किसी को पार्टनर बना ले।
दिल्‍ली में ऑटोमोबाइल डीलर एसोसिएशन (फेडरेशन ऑफ ऑटोमोबाइल डीलर्स एसोसिएशन) के पदाधिकारी जितेन्‍द्र नंदा ने बताया कि डीलर द्वारा किया गया कोई भी ऐसा कृत्‍य कंपनी की शर्तों का उल्‍लंघन है और कंपनी इसके लिए न केवल डीलरशिप टर्मिनेट करती है बल्‍कि आपराधिक केस भी दायर करा सकती है।
उन्‍होंने बताया कि डीलर अगर अपनी डीलरशिप छोड़ना चाहता है तो ज्‍यादा से ज्‍यादा इतना कर सकता है कि इस क्षेत्र के किसी अनुभवी व्‍यक्‍ति का नाम कंपनी को रिकमेंड कर दे किंतु अंतिम निर्णय कंपनी का ही होता है।
कंपनी यदि अपनी सभी औपचारिकताएं पूरी करने के बाद उस व्‍यक्‍ति को उपयुक्‍त समझती है तो पहले वाली डीलरशिप को समाप्‍त कर नए सिरे से डीलरशिप अलॉट करेगी, न कि पुरानी डीलरशिप के साथ उसका कोई संबंध रखने की इजाजत देगी।
यूं भी Hyundai जैसी विश्‍व प्रसिद्ध कार निर्माता कंपनी की डीलरशिप पाने को हमेशा कई-कई लोग लाइन में लगे रहते हैं और कंपनी भी हर बार डीलरशिप के लिए पहले से उच्‍च मानदंड निर्धारित करती है। ऐसे में इस बात का सवाल ही खड़ा नहीं होता कि Hyundai अपने किसी डीलर को डीलरशिप ट्रांसफर करने अथवा उसमें पार्टनरशिप करने की इजाजत दे।
Shiel Hyundai से इस बारे में उनका पक्ष जानने की काफी कोशिश की गई किंतु उनकी ओर से कोई कुछ बताने को तैयार नहीं हुआ। Shiel Hyundai पर मौजूद स्‍टाफ ने बताया कि राजीव रतन और ऋषि रतन दोनों बाहर हैं। हालांकि उन्‍हें फोन पर सूचित कर दिया गया है।
विश्‍वस्‍त सूत्रों से प्राप्‍त जानकारी के अनुसार Shiel Hyundai द्वारा किए जा रहे इस कारनामे में ऑटोमोबाइल क्षेत्र से ही जुड़े और दूसरी कार कंपनियों के उन डीलर्स का हाथ है जिनके नीचे फिलहाल किसी कारणवश राजीव रतन और ऋषि रतन दबे हुए हैं।
सूत्रों के मुताबिक मथुरा जैसी बड़ी आबादी वाले विश्‍व विख्‍यात धार्मिक जिले में Hyundai की एकमात्र डीलरशिप का सौदा करने की वजह राजीव रतन और ऋषी रतन के सामने अचानक आर्थिक तंगी खड़ी हो जाना है।
अब सवाल यह उठता है कि अच्‍छी-खासी संख्‍या में हर महीने Hyundai कारों के विक्रेता राजीव रतन और ऋषि रतन के सामने अचानक आर्थिक तंगी आ कैसे गई? 
इसके बारे में उनसे ही जुडे हुए लोग यह बताते हैं कि इसका प्रथम कारण तो पारिवारिक विवाद रहा और दूसरा कारण रहा Shiel Hyundai के पैसे को दूसरे कार्यों में लगा देना। अब ये कार्य कैसे थे और उनमें Shiel Hyundai का पैसा क्‍यों लगाया गया, इस पर भी कोई मुंह खोलने को तैयार नहीं है।
हां, ये लोग दबी जुबान से इतना जरूर बताते हैं कि जिन लोगों ने एक अच्‍छी-खासी डीलरशिप का सौदा कराया है, उनका मकसद राजीव और ऋषि रतन से किसी भी तरह अपना पैसा निकाल लेना है ताकि सांप मर जाए और लाठी भी न टूटे।
रही बात डीलरशिप के सौदे का अधिकार रखने या न रखने की, तो उसके बाद लेने व देने वाले भुगतते रहेंगे। इससे उनके ऊपर कोई फर्क पड़ने वाला नहीं है।
Shiel Hyundai के शोरूम का नक्‍शा भी विवादों में 
दूसरी ओर इस बीच यह जानकारी भी मिल रही है कि नेशनल हाईवे नंबर-2 पर नवादा क्षेत्र में जहां Shiel Hyundai का शोरूम बना है, वह Residential area है। किसी भी Residential area में कानूनन कार के किसी शोरूम का निर्माण नहीं कराया जा सकता।
मथुरा-वृंदावन विकास प्राधिकरण ने भी इसकी पुष्‍टि करते हुए बताया कि कब और किन परिस्‍थितियों में नवादा के Residential area में कार के शोरूम बना लिए गए, कहना मुश्‍किल है।
विकास प्राधिकरण से इस बारे में एक चौंकाने वाली जानकारी यह मिली कि जिस प्‍लॉट पर Shiel Hyundai का शोरूम आज खड़ा है, उस पर तो रेस्‍टोरेंट के लिए नक्‍शा पास किया गया था।
प्राधिकरण के अधिकारियों ने इस बारे में जांच के उपरांत कार्यवाही करने का भरोसा दिया है।
गौरतलब है कि राष्‍ट्रीय राजधानी दिल्‍ली से ताजनगरी आगरा को जोड़ने वाले नेशनल हाईवे नंबर दो पर स्‍थानीय डेवलपमेंट अथॉरिटी की सांठगांठ से Residential area में ऐसे और भी कई शोरूम स्‍थापित हो चुके हैं जो नियम विरुद्ध हैं किंतु आजतक उनके खिलाफ कोई कार्यवाही नहीं की गई।
सच तो यह है कि अथॉरिटी से पास नक्‍शे के इतर मामूली सा भी फेरबदल दिखाई देने पर पहुंच जाने वाले विप्रा अधिकारी ऐसे शोरूम्‍स को लेकर अब तक आंखें व कान बंद किए बैठे रहे।
यही कारण है कि राजीव और ऋषि रतन ने Hyundai की अपनी डीलरशिप का सौदा शोरूम सहित किया है क्‍योंकि वह उसकी असलियत जानते हैं, और उन्‍हें मालूम है कि रेस्‍टोरेंट में पास शोरूम कभी भी उनके गले की हड्डी बन सकता है।
बहरहाल, करोड़ों रुपए के इस खेल से फिलहाल तो Hyundai कंपनी के साथ-साथ बैंकें और एजेंसी पर कार्यरत स्‍टाफ भी अनभिज्ञ है। कंपनी और बैंकों को तो जब सच्‍चाई पता लगेगी तब वो देख लेंगे किंतु स्‍टाफ को अपना भविष्‍य अंधकारमय दिखाई देने लगा है।
-सुरेन्‍द्र चतुर्वेदी

बुधवार, 10 अक्तूबर 2018

#MeToo को समर्पित टीवी, फिल्‍म और मीडिया जगत की नवरात्रियां

डिसक्लेमर: इस लेख का संबंध किसी जीवित या मृत स्‍त्री-पुरुष से नहीं है, और न इसका उद्देश्‍य किसी की भाव-नाओं को आ-हत करना है। यह विशुद्ध रूप से जनहित में #MeToo को समर्पित है लिहाजा इसके समर्पण पर जाएं, समानता पर नहीं। 
अचानक दीवाली सेल पर कुछ खास हाथ लगने की लालसा में कल दोपहर घर से निकला ही था कि एक कुषाणकालीन मित्र के हत्‍थे चढ़ गया। पहले तो वह मुझे देखकर पहचानने का प्रयास करते हुए थोड़ा सकुचाया और फिर मेरे होने की पुष्‍टि करके मुस्‍कुराया। उसके बाद दहाड़ मारकर चिल्‍लाते हुए बोला- मैं यहां कोई दीवाली की छूट के लिए नहीं आया, मैं तो तुझे ही तलाशने आया था क्‍योंकि मुझे पूरा यकीन था कि तू यहीं कहीं पाया जाएगा।
भरी जवानी से मैं जानता हूं कि तू दो ही किस्‍म के मेलों में पाया जा सकता है। पहला दीवाली मेला और दूसरा कुंभ का मेला। कुंभ का मेला 2019 में है इसलिए 2018 में तेरी तलाश पूरी हुई।
मुझे एक शब्‍द बोलने का मौका दिए बिना उसने पूछना शुरू किया- चुंगी के कॉन्वेंट स्‍कूल में को-एजुकेशन लेते वक्‍त अपने साथ जो सबसे गोल-मटोल लड़की पढ़ती थी, वह याद है ?
मैंने बमुश्‍किल 40 साल पहले की स्‍मृतियों को संजोने की कोशिश प्रारंभ की ही थी कि वह फिर शुरू हो गया- याद कर 40 साल पहले 60 किलो की वह सहपाठी पैर फिसल जाने के कारण स्‍कूल के पास वाले गंदे नाले में गिर गई थी और तूने अपने धवल वस्‍त्रों की परवाह किए बिना, जान हथेली पर रखकर उस लड़की को नाले से निकाला था। सारे साथी तमाशा देख रहे थे लेकिन तूने उस भारी-भरकम काया को निकालने के लिए नाले में यह सोचे-समझे बिना छलांग लगा दी थी कि उसका वजन तुझे भी साथ लेकर डूब सकता है।
कुषाणकालीन मित्र द्वारा इतना कुछ याद दिलाने के बाद मैं स्‍मृतियों को ठीक से सहेज भी नहीं पाया था कि वह एकबार फिर कंटीन्‍यू हुआ और बोला- 60 किलो से 200 किलों में बदल चुकी वह काया तुझे जल्‍द ही Twitter पर #MeToo के तहत लपेटने वाली है।
उसका कहना है कि नाले में से उसे निकालने का तूने जो उपक्रम किया था, वह दरअसल तेरी बदनीयती का हिस्‍सा था। तूने 40 साल पहले उसका यौन उत्‍पीड़न किया था। तूने तब उसके पूरे बदन को अपने हाथों से छुआ जबकि वह काम किसी क्रेन को बुलाकर भी कराया जा सकता था।
40 साल पहले के कथित पुण्‍यकार्य को यौन उत्‍पीड़न में कन्वर्ट होते देख एकबार तो मेरी सिट्टी-पिट्टी ही गुम हो गई, फिर जैसे-तैसे खुद को संभाला और अपने मित्र से पूछा- भाई, पहले तू मुझे उसका नाम तो बता दे। मोदी सरकार से भी अधिक ग्रोथ रेट को प्राप्‍त उस भारी भरकम काया को मैं Twitter पर भी पहचानूंगा कैसे।
मेरी दशा और दिशा का अनुमान लगाकर मित्र कहने लगा- ज्‍यादा बनने की कोशिश मत कर, उसे अपने साथ हुए यौन अपराध का एक-एक पल याद है और तू कहता है कि तुझे उसका नाम तक याद नहीं। बेटा, राष्‍ट्रीय महिला आयोग का Twitter या whatsapp के थ्रू नोटिस मिलेगा तो सब याद आ जाएगा। उसकी सूरत भी और अपनी सीरत भी।
मित्र से यह शॉकिंग समाचार सुनकर मैं सुन्‍न अवस्‍था में वहीं से उलटे पैर लौट आया। अभी घर की लॉबी में प्रवेश किया ही था कि पत्‍नी चहक कर बोली- सुना, वो अपने टीवी वाले संस्‍कारी बाबूजी भी #MeToo के लपेटे में आ गए हैं। किसी महिला लेखक ने 20 साल पहले उन पर बलात्‍कार करने का आरोप लगाया है। ऐसा लगता है कि संस्‍कारी बाबूजी इस झटके को सह नहीं पाए, क्‍योंकि जवाब में बहकी-बहकी सी बातें कर रहे थे। कुछ-कुछ ऐसे बड़बड़ा रहे थे…हुआ होगा बलात्‍कार, लेकिन मैंने नहीं किया। मैं न इंकार कर सकता हूं और न इकरार कर रहा हूं।
मुझे तो इस उम्र में बाबूजी के इस हाल पर दया आ रही है लेकिन उन्‍हें #MeToo में लपेटने वाली लेखिका का कहना है कि 20 साल बाद तक उसे ‘मदहोशी’ में हुआ दुष्‍कर्म जब ‘पूरी तरह याद’ है तो पूरे होशो हवास में उसके साथ दुष्‍कर्म करने वाले बाबूजी कैसे भूल सकते हैं।
संस्‍कारी बाबूजी की कथित करतूत सुनाते-सुनाते पत्‍नी जी ने तुरंत यू टर्न लिया और मेरी ओर मुखातिब होकर कहने लगीं- मुझे तो लगता है कि करीब-करीब 25 साल पहले आपने जो घुटनों पर आकर मुझे प्रपोज किया था, उसमें भी आपकी नीयत ठीक नहीं थी। अगले 24 घंटों में दिमाग पर जोर डालकर सोचती हूं कि प्रपोज करने के पीछे आपकी कौन सी कुत्‍सित चाल थी। उसके बात #MeToo कैंपेन में भाग लेने पर विचार करूंगी।
अब मेरा ध्‍यान पत्‍नी द्वारा चटखारे ले-लेकर सुनाई जा रही टीवी वाले संस्‍कारी बाबूजी की कथा या व्‍यथा पर न होकर अपने मित्र द्वारा सुनाई गई कालातीत दुर-घटना तथा पत्‍नी द्वारा 25 साल पूर्व की घटना को लेकर दी गई ताजा-ताजा धमकी पर केंद्रित हो गया जिसका बम कभी भी मेरे सिर फूट सकता था।
जैसे-तैसे मैंने मंगलवार का मौनव्रत घोषित कर पूरा दिन तो काट लिया किंतु रात में बिस्‍तर पर #MeToo मेरे सामने पूरी भयावहता के साथ आ खड़ा हुआ। मैंने अपने दिमाग पर बहुत जोर डाला और यह सोचने की कोशिश की कि आखिर इंसानियत के नाते किसी सहपाठी को नाले में से निकालना यौन उत्‍पीड़न कैसे हो सकता है, किंतु मेरी अंतरात्‍मा कुछ बताती कि इससे पहले #MeToo बोल पड़ा। कहने लगा- बरखुरदार, नाले में से निकालना यौन उत्‍पीड़न की वजह नहीं बन सकता यह साबित अब तुम्‍हें करना है। तुम्‍हारी सहपाठी तो कह ही रही है कि नाले में से उसे निकालने में तुम्‍हारी नीयत ठीक नहीं थी। यह बात अलग है कि तब वह तुम्‍हारी बदनीयत को नहीं समझ पायी किंतु अब उसे सबकुछ साफ-साफ समझ में आ चुका है। उसके नाती-पोतों ने भी इस बात की पुष्‍टि कर दी है कि वह सही दिशा में जा रही है।
#MeToo के भय का साया सुबह अपने मन से झटकने की कोशिश में नित्‍य की भांति टहलने निकल पड़ा। थोड़ी दूर ही पहुंचा था कि साइकिलिंग कर रहीं पड़ोसी महिला डॉक्‍टर को जर्मन शेफर्ड डॉग से घिरा देखा। किसी सभ्‍य व सुसंस्‍कृत गृहस्‍वामी का वह इल्‍लिट्रेट कुत्ता अपने पूरे जबड़े खोलकर महिला डॉक्‍टर पर भौंक रहा था।
महिला डॉक्‍टर का चूंकि डर के मारे बुरा हाल था लिहाजा वो चिल्‍ला-चिल्‍लाकर मुझसे मदद मांगने लगीं। एकबार को मैं पिछले चौबीस घंटों से आ रहे #MeToo के भयानक स्‍वप्‍नों को भूलकर महिला डॉक्‍टर की मदद के लिए आगे बढ़ने लगा किंतु तभी दिल ने दिमाग से काम लेने को कहा। कहीं अंदर से आवाज आई, बेटा पहले 40 साल पहले कमाए गए पुण्‍य से तो निपट ले जो किसी भी समय #MeToo बोलने वाला है, उसके बाद और पुण्‍य कमा लेना। इस उम्र में यह नया पुण्‍य कमाने का प्रयास कब्र तक पीछा नहीं छोड़ेगा। बच्‍चों से श्राद्ध करवाने की बजाय यदि गंगा में प्रवाहित की गई अस्‍थियों को ‘सम्‍मन’ का सामना कराना है तो पचड़े में पड़, वरना चुपचाप खिसक ले।
दिमाग ने दिल की दहशत को समझा और यह सोचकर किनारा कर लिया कि डॉक्‍टर साहिबा को दो-चार इंजेक्‍शन ही तो लगेंगे, लेकिन मेरे पीछे जो #MeToo लग गया तो समाज इतने इंजेक्‍शन लगाएगा कि सब सुन्न कर देगा। दिल, दिमाग और शरीर सब। न निगलते बनेगा, और न उगलते।
40 साल पहले वाली क्‍लासमेट की तरह कुछ सालों बाद इन डॉक्‍टर साहिबा को भी कहीं याद आ गया कि उन्‍हें जर्मन शेफर्ड से बचाने में मेरी नीयत ठीक नहीं थी तो लेने के देने पड़ जाएंगे। यहां तो गवाह भी मैडम ही हैं और सबूत भी वही हैं।
देश में राष्‍ट्रीय महिला आयोग है, पुरुष आयोग नहीं। पुरुषों के लिए राष्‍ट्रीय तो क्‍या, कोई क्षेत्रीय आयोग भी नहीं है। पुरुषों की सुनवाई के लिए बाबा साहब ने संविधान में कोई व्‍यवस्‍था नहीं की।
क्‍या पुरुषों के लिए किसी #MeToo की कोई संभावना है, या मी लॉर्ड के सामने खड़े होना ही एकमात्र विकल्‍प है।
जो भी हो, फिलहाल तो पूरे देश में #MeToo का जोर है। टीवी, फिल्‍म और मीडिया से जुड़े लोग जितना जल्‍दी हो सके पुराने पुण्‍यों या यूं कहें कि मन, वचन और कर्म से किए गए पापों का लेखा-जोखा अपने लेखाकार से लगवा लें अन्‍यथा #MeToo तो सारे हिसाब लगवा ही लेगा। खुदा हाफिज़। जय हिंद। जय भारत।
-सुरेन्‍द्र चतुर्वेदी
Related Posts Plugin for WordPress, Blogger...