गुरुवार, 10 सितंबर 2020

मुकुट मुखारबिंद मंदिर घोटाला: SIT रिपोर्ट दबाने के लिए भाजपा नेता के माध्‍यम से दी गई 50 लाख रुपए की मोटी रिश्‍वत, जानिए… फिर भी सच कैसे आया सामने?

 


नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल (NGT) के आदेश पर की गई यूपी SIT की जांच को मुकुट मुखारबिंद मंदिर के घोटालेबाजों ने 50 लाख रुपए की रिश्‍वत देकर दबाने का प्रयास किया था किंतु फिर भी वो अपने मकसद में सफल नहीं हुए, आखिर क्‍यों ?

इस सवाल का जवाब जानने से पहले ये जान लें कि करीब-करीब 100 करोड़ रुपए के इस घोटाले की नींव कब रखी गई और इसके पीछे कितने शातिर दिमाग काम कर रहे थे।
कैसे हुआ खुलासा
गोवर्धन स्‍थित मुकुट मुखारबिंद मंदिर में करोड़ों रुपए के घोटाले का खुलासा सबसे पहले दसविसा (गोवर्धन) निवासी राधारमन और प्रभुदयाल शर्मा ने किया। उन्‍होंने मंदिर के रिसीवर रमाकांत गोस्‍वामी पर ठेकेदारों की मिलीभगत से करोड़ों रुपए की हेराफेरी करने का आरोप लगाया था।
एनजीओ ने प्रेस कांफ्रेस करके लगाए गंभीर आरोप
इसके बाद 13 मई 2018 को इंपीरियल पब्‍लिक फाउंडेशन नामक NGO ने बाकायदा प्रेस कांफ्रेंस करके मंदिर की संपत्ति में करोड़ों रुपए का घोटाला मंदिर के रिसीवर रमाकांत गोस्‍वामी द्वारा ही अपने गुर्गों के साथ मिलकर किए जाने की जानकारी दी।
उन्‍होंने बताया कि अपर सिविल जज प्रथम मथुरा के आदेश से मुकुट मुखारबिंद मंदिर के रिसीवर नियुक्‍त किए गए रमाकांत गोस्‍वामी ने अपने अधिकारों का दुरुपयोग कर करोड़ों रुपए की संपत्ति हड़प ली है।
इंपीरियल पब्‍लिक फाउंडेशन द्वारा जारी प्रेस विज्ञप्‍ति में बताया गया कि वर्ष 2010 में रमाकांत गोस्‍वामी ने न्‍यायालय के समक्ष इस आशय का एक प्रस्‍ताव रखा कि मुकुट मुखारबिंद मंदिर का प्रबंधतंत्र मंदिर के पैसों से एक अस्‍पताल बनवाना चाहता है।
रमाकांत गोस्‍वामी का यह प्रस्‍ताव न्‍यायालय के पीठासीन अधिकारी को “इतना पसंद आया” कि उन्‍होंने न सिर्फ मंदिर के पैसों से अस्‍पताल बनवाने का प्रस्‍ताव स्‍वीकार कर लिया बल्‍कि रिसीवर रमाकांत गोस्‍वामी को ही उसके लिए आवश्‍यक जमीन खरीदने के अधिकार भी सौंप दिए।
रमाकांत गोस्‍वामी भी यही चाहते थे इसलिए उन्‍होंने तत्‍काल एक जमीन का इकरार नामा पहले तो मात्र 40 लाख रुपयों में अपने खास मित्रों के नाम करवाया और फिर 4 महीने बाद ही उसी जमीन को उसके असली मालिक से 2 करोड़ 30 लाख रुपए में मंदिर के नाम खरीद लिया।
कारनामे को अंजाम तक पहुंचाने के लिए रमाकांत गोस्‍वामी ने अपने मित्रों को द्वितीय पक्ष दिखा दिया जबकि जमीन के असली मालिक को प्रथम पक्ष बताया।
इस तरह सिर्फ चार महीने के अंतराल में मंदिर को बड़ी चालाकी के साथ करीब एक करोड़ 90 लाख रुपए का चूना लगा दिया गया।
रमाकांत गोस्‍वामी यहीं नहीं रुके, इसके बाद उन्‍होंने मंदिर को विस्‍तार देने की आड़ में 5 अगस्‍त 2011 को अपने मित्रों से ‘खास महल’ नामक एक संपत्ति 2 करोड़ 70 लाख रुपयों में खरीद ली।
वर्ष 2011 में अपनी साजिश सफल हो जाने पर रिसीवर रमाकांत गोस्‍वामी के हौसले बुलंद हो गए अत: उन्‍होंने वर्ष 2014-15 में फिर मंदिर की ढाई करोड़ रुपयों से अधिक की धनराशि का गबन किया। इसी प्रकार वर्ष 2015-16 में पौने चार करोड़ का, 16-17 में पौने छ: करोड़ रुपयों का घोटाला किया गया।
इतना सब हो जाने पर भी कोई कार्यवाही होते न देख इंपीरियल पब्‍लिक फाउंडेशन ने 05 जून 2018 को तहसील दिवस में एक शिकायती पत्र दिया, जिसके बाद जिलाधिकारी ने समस्‍त प्रकरण की जांच एसडीएम गोवर्धन नागेन्‍द्र कुमार सिंह के हवाले कर दी। इस जांच में एनजीओ द्वारा रमाकांत गोस्‍वामी पर लगाए गए सभी आरोप प्रथम दृष्‍टया सही पाये गए हैं।
गौरतलब है कि इन्‍हीं घोटालों की शिकायत इंपीरियल पब्‍लिक फाउंडेशन ने एनजीटी में भी की थी, जिसके बाद एनजीटी ने एसआईटी का गठन कर जांच कराने के आदेश दिए थे।
चारों ओर से खुद को फंसता देख रिसीवर रमाकांत गोस्‍वामी ने एक ओर जहां बड़े-बड़े विज्ञापन देकर मीडिया को चुप रखने की कोशिश की वहीं दूसरी ओर अपने राजनीतिक रसूखों के बल पर SIT की जांच को प्रभावित करने का प्रयास किया।
दी गई 50 लाख रुपयों की रिश्‍वत
घोटालेबाजों ने लगभग चार महीने पहले इसके लिए मथुरा में भाजपा के एक ऐसे पदाधिकारी से संपर्क किया जिसके गहरे संबंध और यहां तक कि रिश्‍तेदारी भी प्रदेश स्‍तरीय पदाधिकारी से है।
बताया जाता है कि एसआईटी की जांच को प्रभावित करने तथा उसे ठंडे बस्‍ते में डलवाने के लिए 50 लाख रुपए लखनऊ जाकर दिए गए और उसके बाद न सिर्फ यह मान लिया गया कि सब-कुछ समाप्‍त हो गया है बल्‍कि सार्वजनिक तौर पर इसका ढिंढोरा भी पीटा गया।
फिर भी सच कैसे आया सामने
इतना करने के बावजूद घोटालेबाज अपने मकसद में इसलिए कामयाब नहीं हुए और इसलिए अंतत: एसआईटी को अपनी जांच रिपोर्ट सार्वजनिक करनी पड़ी क्‍योंकि गोवर्धन के ही दसबिसा निवासी हरीबाबू शर्मा पुत्र मोहन लाल शर्मा ने गत दिनों इलाहाबाइ हाईकोर्ट में एक याचिका डालने की पूरी तैयारी कर उसमें प्रिंसिपल सेक्रेट्री (होम) उत्तर प्रदेश तथा डीआईजी (एसआईटी) लखनऊ को भी पार्टी बनाने के मकसद से अपने वकील सत्‍येन्‍द्र नारायाण सिंह के जरिए याचिका की कॉपी भेज दी।
दरअसल, हरीबाबू ऐसा करने के लिए तब मजबूर हुए जब उन्‍हें आरटीआई के माध्‍यम से यह जानकारी मिली कि जांच एजेंसी अपना काम पूरा करके रिपोर्ट शासन को दे चुकी है।
ये पता लगने के बाद हरीबाबू को यकीन हो गया कि घोटालेबाजों द्वारा किया गया दावा सही था कि वह एसआईटी की जांच को ठंडे बस्‍ते में डलवा चुके हैं।
अब जबकि हरीबाबू द्वारा प्रिंसिपल सेक्रेट्री (होम) उत्तर प्रदेश तथा डीआईजी (एसआईटी) को पार्टी बनाने की सूचना मिली तो हड़कंप मचना स्‍वाभाविक था लिहाजा तुरंत शासन स्‍तर से एक ओर जहां एसआईटी की जांच रिपोर्ट को सामने रख दिया गया वहीं दूसरी ओर 11 आरोपियों के खिलाफ एफआईआर कराने के आदेश भी कर दिए गए।
इस संबंध में पूछे जाने पर हरीबाबू शर्मा ने बताया कि एसआईटी की जांच रिपोर्ट के आधार पर एफआईआर दर्ज कर लिए जाने के बाद भी वह न्‍यायालय के माध्‍यम से मुकुट मुखारबिंद और दानघाटी मंदिर में हुए उन घोटालों को सामने लाने की लड़ाई लड़ते रहेंगे जो अभी दबे हुए हैं और जिन्‍हें इस गिरोह ने अंजाम दिया है।
-सुरेन्‍द्र चतुर्वेदी
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