जब से गोरखनाथ पीठ के महंत योगी आदित्यनाथ उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री बने हैं, लगभग तभी से अक्सर उनकी तुलना प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी से की जाती रही है। मोदी-योगी का नाम लोग कुछ इस अंदाज में लेते हैं जैसे किन्हीं सफल संगीतकारों की जोड़ी का नाम साथ-साथ लिया जाता है।
ऐसे में यह सवाल उठना लाजिमी है कि क्या योगी कभी मोदी के स्वाभाविक उत्तराधिकारी हो सकते हैं, क्या योगी कभी मोदी हो सकते हैं ?
यूपी में महंत योगी आदित्यनाथ की सरकार अगले महीने अपने कार्यकाल का आधा समय बिता लेगी।
नि:संदेह व्यक्तिगत रूप से योगी जी की कार्य के प्रति निष्ठा, समर्पण और ईमानदारी पर कोई प्रश्नचिन्ह नहीं लगा सकता परंतु उनकी कैबिनेट के कई मंत्रियों की न सिर्फ सत्यनिष्ठा संदेह के घेरे में है बल्कि उनकी ईमानदारी पर भी सवालिया निशान लग चुके हैं।
योगी कैबिनेट के विस्तार से ठीक पहले कई मंत्रियों का इस्तीफा इस ओर इशारा भी करता है, हालांकि वजहें दूसरी भी बताई जा रही हैं।
बहरहाल, वजह चाहे जो हों परंतु इसमें कोई दोराय नहीं कि लाख प्रयासों के बावजूद योगी सरकार प्रदेश की कानून-व्यवस्था में ऐसा कोई उल्लेखनीय सुधार नहीं ला पाई जिससे लोग बेखौफ हुए हों।
दावे-प्रतिदावों की बात न की जाए तो संभवत: योगी आदित्यनाथ भी इस सच्चाई से अवगत हैं कि प्रदेश की कानून-व्यवस्था पूरी तरह पटरी पर नहीं आ सकी है। सीएम योगी द्वारा नौकरशाहों को बार-बार चेतावनी देने और पूर्ववर्ती सरकारों की तरह लगातार ट्रांसफर-पोस्टिंग किए जाने से स्थिति स्पष्ट हो जाती है।
तो क्या योगी आदित्यनाथ भी उसी रटे-रटाए ढर्रे पर चल पड़े हैं, जिन पर चलकर मुलायम, माया एवं अखिलेश की सरकारें चला करती थीं और सुशासन कायम करने में नाकाम रहने के कारण सिर्फ तबादलों से तब्दीली का अहसास कराने की कोशिश करती रहती थीं।
गौर से देखें तो हाल ही में किए गए तबादले कुछ इसी तरह के संकेत दे रहे हैं।
03 अगस्त की रात योगी सरकार ने बुलंदशहर के SSP एन कोलांची को थानेदारों की तैनाती में अनियमितता बररतने पर निलंबित कर दिया। अपर मुख्य सचिव गृह अवनीश अवस्थी ने बताया कि मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ द्वारा कानून-व्यवस्था की समीक्षा के दौरान थानेदारों की तैनाती में अनियमितता की बात सामने आई थी।
गोपनीय जांच के दौरान पाया गया कि बुलंदशहर में दो थाने ऐसे थे जहां एसएसपी एन. कोलांची ने थानेदारों को सात दिन से भी कम समय के लिए तैनाती दी। एक थाना ऐसा था जिस पर मात्र 33 दिन में थानेदार को बदल दिया गया। यह डीजीपी की निर्धारित प्रक्रिया के विपरीत था।
इतना ही नहीं, कोलांची ने दो ऐसे थानेदारों को बतौर प्रभारी तैनात कर दिया जिनको पूर्व में परिनिंदा प्रविष्टि दी जा चुकी थी।
अपर मुख्य सचिव ने अपनी बात चाहे जितनी चाशनी में लपेट कर रखी हो परंतु इसका निष्कर्ष यही निकलता है कि एन. कोलांची रिश्वत लेकर थानों का चार्ज बांट रहे थे।
आईपीएस अधिकारी एन. कोलांची की ऐसी कार्यप्रणाली इससे पहले क्या योगी सरकार के संज्ञान में नहीं रही होगी, और यदि नहीं रही तो क्यों नहीं रही?
यह बड़ा सवाल है, क्योंकि कोई अधिकारी रातों-रात भ्रष्ट नहीं हो जाता। भ्रष्टाचार के बीज उसके अंदर बहुत पहले अंकुरित हो जाते हैं, बाद में शासन-सत्ता के सहयोग का खाद-पानी ही उन्हें इस मुकाम तक पहुंचाता है।
मात्र 10-12 घंटों में 6 हत्याएं हो जाने पर 19 अगस्त को प्रयागराज (इलाहाबाद) के एसएसपी अतुल शर्मा निलंबित कर दिए गए। अतुल शर्मा की कार्यप्रणाली से स्वयं योगी आदित्यनाथ असंतुष्ट थे और पूर्व में उन्हें चेतावनी भी दे चुके थे।
आईपीएस अधिकारी अतुल शर्मा को प्रदेश के डीजीपी ओपी सिंह ने अपनी रिपोर्ट में बाकायदा ‘निकम्मा’ अधिकारी घोषित किया है। जाहिर है कि अतुल शर्मा भी एकाएक निकम्मे नहीं हो गए होंगे, बावजूद इसके उन्हें प्रयागराज जैसे बड़े और महत्वपूर्ण जिले का प्रभार कैसे सौंप दिया गया।
अब 2010 बैच के आईपीएस अफसर सत्यार्थ अनिरुद्ध पंकज को प्रयागराज का नया एसएसपी बनाया गया है। बिहार के मूल निवासी सत्यार्थ अनिरुद्ध पंकज की कार्यप्रणाली कैसी है, वो कितने काबिल अफसर हैं, इसकी जानकारी किसी भी उस जनपद से ली जा सकती है जहां वो पूर्व में तैनात रहे हैं। शायद ही वो कभी कहीं अपनी विशेष छाप छोड़ पाए हों, तो फिर अब उन्हें प्रयागराज क्यों भेज दिया गया।
इससे पहले वह धर्मनगरी मथुरा के एसएसपी थे किंतु मात्र 5 महीनों में उन्हें मथुरा से एसटीएफ में भेज दिया गया। उनके स्थान पर पीएसी से शलभ माथुर को भेजा गया ।
20 अगस्त को यानी कल फिर 14 आईपीएस अफसरों का तबादला किया गया है।
03 अगस्त से लेकर 20 अगस्त तक किए गए ये आईपीएस अधिकारियों के तबादले तो मात्र उदाहरण हैं अन्यथा योगीराज आने के बाद कमोबेश यही स्थिति न केवल आईपीएस के बल्कि आईएएस अधिकारियों के तबादलों में भी रही है।
तो क्या मात्र तबादलों से किसी अधिकारी की कार्यक्षमता, योग्यता और नेकनीयत बदल जाती है, यदि नहीं तो आखिर सिर्फ तबादले ही क्यों ?
यदि कोई अधिकारी काबिल एवं नेकनीयत है तो वह हर जगह अपनी योग्यता साबित करेगा, और यदि वह अकर्मण्य या भ्रष्ट है तो हर जगह विभाग का सिर नीचा करेगा व वर्दी तथा सरकार पर दाग लगवाएगा।
इन हालातों में पूछा जा सकता है कि किसी अधिकारी को योग्यता के पैमाने पर खरा उतरने के बाद भी बार-बार तबादले किसलिए झेलने पड़ते हैं और कुछ अधिकारी सार्वजनिक रूप से भ्रष्टाचारी एवं नाकाबिल साबित होने के बावजूद लगातार चार्ज पर क्यों बने रहते हैं।
अगर कोई अधिकारी काबिल, ईमानदार, कर्तव्यनिष्ठ एवं सक्षम है तो उसे हटाया क्यों जाता है और नाकाबिल, भ्रष्ट तथा निकम्मे अधिकारी अच्छी तैनाती कैसे पा जाते हैं।
यहां यह कहना कतई अप्रासांगिक होगा कि अधिकारियों की शौहरत से कोई निजाम अपरिचित रह सकता है क्योंकि यदि ऐसा है तो इसका सीधा मतलब है कि वह स्वयं उस पद के योग्य नहीं है।
सर्वविदित है कि पुलिस और प्रशासन के ही नहीं, न्याय व्यवस्था के भी अधिकारियों की शौहरत उनके तैनाती स्थल पर उनके चार्ज लेने से पहले पहुंच जाती है। यही कारण है कि अधीनस्थ अधिकारी तत्काल खुद को उनके अनुरूप ढाल लेते हैं और उसी मोड में काम करने लगते हैं।
योगी आदित्यनाथ उत्तर प्रदेश को उत्तम प्रदेश बनाने का भरसक प्रयास क्यों न कर रहे हों परंतु नतीजे बहुत अधिक उम्मीद नहीं जगाते। आंकड़ों की बाजीगरी को उठाकर एक ओर रख दिया जाए तो बिना दूरबीन के देखा जा सकता है कि ब्यूरोक्रेसी पर योगी कभी मजबूत पकड़ बना ही नहीं पाए।
इसी प्रकार उनकी कैबिनेट में आज भी कुछ लोग ऐसे हैं जो भ्रष्ट, निकम्मे और अयोग्य अधिकारियों को संरक्षण दिए हुए हैं। ये अधिकारी उनके संरक्षण में आम जनता तो क्या, सभ्रांत लोगों के साथ भी अशिष्ट व्यवहार करने से नहीं चूकते।
मायाराज से लेकर योगीराज तक में इनकी अच्छे-अच्छे पदों पर तैनाती यह साबित करने के लिए काफी है कि शासन-सत्ता के अंदर इनकी कितनी गहरी पैठ है।
योगीराज की तुलना में यदि मोदीराज को देखें तो नजारा ठीक उलटा दिखाई देगा। मोदी जी ने अपने चारों ओर ऐसे अधिकारियों का सर्किल बना रखा है जो अपनी ड्यूटी के प्रति किसी भी हद तक जाने को तत्पर नजर आते हैं।
सरकार का निर्णय कितना ही जोखिमभरा क्यों न हो, वह मोदी जी के कंधे से कंधा मिलाकर खड़े रहते हैं और कठिन से कठिन जिम्मेदारी का निर्वाह करने में नहीं हिचकते।
कश्मीर से अनुच्छेद 370 हटाने के बाद की स्थितियों में इन अधिकारियों की कर्मठता इसका ज्वलंत उदाहरण है।
बेशक योगी आदित्यनाथ की मंशा उत्तर प्रदेश को उत्तम प्रदेश बनाने की रही होगी परंतु धरातल पर देखें तो अभी उसके आसार दूर-दूर तक दिखाई नहीं दे रहे।
योगी जी के पास अब सिर्फ ढाई साल का समय शेष है। इसी दौरान उन्हें कोई इतनी बड़ी लकीर खींचनी होगी जिससे आमूल-चूल परिवर्तन की राह नजर आती हो। अन्यथा मोदी की तरह योगीराज दोहरा पाना असंभव न सही परंतु कठिन जरूर हो जाएगा।
और हां, तुकबंदी के लिए पार्टीजन योगी-मोदी की तुलना भले ही कर लें परंतु तुलनात्मक अध्ययन करने बैठेंगे तो पता लगेगा कि योगी का मोदी बनना मुमकिन नहीं है क्योंकि योगी जी अब तक जनता को वो फील नहीं करा सके हैं।
-सुरेन्द्र चतुर्वेदी
ऐसे में यह सवाल उठना लाजिमी है कि क्या योगी कभी मोदी के स्वाभाविक उत्तराधिकारी हो सकते हैं, क्या योगी कभी मोदी हो सकते हैं ?
यूपी में महंत योगी आदित्यनाथ की सरकार अगले महीने अपने कार्यकाल का आधा समय बिता लेगी।
नि:संदेह व्यक्तिगत रूप से योगी जी की कार्य के प्रति निष्ठा, समर्पण और ईमानदारी पर कोई प्रश्नचिन्ह नहीं लगा सकता परंतु उनकी कैबिनेट के कई मंत्रियों की न सिर्फ सत्यनिष्ठा संदेह के घेरे में है बल्कि उनकी ईमानदारी पर भी सवालिया निशान लग चुके हैं।
योगी कैबिनेट के विस्तार से ठीक पहले कई मंत्रियों का इस्तीफा इस ओर इशारा भी करता है, हालांकि वजहें दूसरी भी बताई जा रही हैं।
बहरहाल, वजह चाहे जो हों परंतु इसमें कोई दोराय नहीं कि लाख प्रयासों के बावजूद योगी सरकार प्रदेश की कानून-व्यवस्था में ऐसा कोई उल्लेखनीय सुधार नहीं ला पाई जिससे लोग बेखौफ हुए हों।
दावे-प्रतिदावों की बात न की जाए तो संभवत: योगी आदित्यनाथ भी इस सच्चाई से अवगत हैं कि प्रदेश की कानून-व्यवस्था पूरी तरह पटरी पर नहीं आ सकी है। सीएम योगी द्वारा नौकरशाहों को बार-बार चेतावनी देने और पूर्ववर्ती सरकारों की तरह लगातार ट्रांसफर-पोस्टिंग किए जाने से स्थिति स्पष्ट हो जाती है।
तो क्या योगी आदित्यनाथ भी उसी रटे-रटाए ढर्रे पर चल पड़े हैं, जिन पर चलकर मुलायम, माया एवं अखिलेश की सरकारें चला करती थीं और सुशासन कायम करने में नाकाम रहने के कारण सिर्फ तबादलों से तब्दीली का अहसास कराने की कोशिश करती रहती थीं।
गौर से देखें तो हाल ही में किए गए तबादले कुछ इसी तरह के संकेत दे रहे हैं।
03 अगस्त की रात योगी सरकार ने बुलंदशहर के SSP एन कोलांची को थानेदारों की तैनाती में अनियमितता बररतने पर निलंबित कर दिया। अपर मुख्य सचिव गृह अवनीश अवस्थी ने बताया कि मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ द्वारा कानून-व्यवस्था की समीक्षा के दौरान थानेदारों की तैनाती में अनियमितता की बात सामने आई थी।
गोपनीय जांच के दौरान पाया गया कि बुलंदशहर में दो थाने ऐसे थे जहां एसएसपी एन. कोलांची ने थानेदारों को सात दिन से भी कम समय के लिए तैनाती दी। एक थाना ऐसा था जिस पर मात्र 33 दिन में थानेदार को बदल दिया गया। यह डीजीपी की निर्धारित प्रक्रिया के विपरीत था।
इतना ही नहीं, कोलांची ने दो ऐसे थानेदारों को बतौर प्रभारी तैनात कर दिया जिनको पूर्व में परिनिंदा प्रविष्टि दी जा चुकी थी।
अपर मुख्य सचिव ने अपनी बात चाहे जितनी चाशनी में लपेट कर रखी हो परंतु इसका निष्कर्ष यही निकलता है कि एन. कोलांची रिश्वत लेकर थानों का चार्ज बांट रहे थे।
आईपीएस अधिकारी एन. कोलांची की ऐसी कार्यप्रणाली इससे पहले क्या योगी सरकार के संज्ञान में नहीं रही होगी, और यदि नहीं रही तो क्यों नहीं रही?
यह बड़ा सवाल है, क्योंकि कोई अधिकारी रातों-रात भ्रष्ट नहीं हो जाता। भ्रष्टाचार के बीज उसके अंदर बहुत पहले अंकुरित हो जाते हैं, बाद में शासन-सत्ता के सहयोग का खाद-पानी ही उन्हें इस मुकाम तक पहुंचाता है।
मात्र 10-12 घंटों में 6 हत्याएं हो जाने पर 19 अगस्त को प्रयागराज (इलाहाबाद) के एसएसपी अतुल शर्मा निलंबित कर दिए गए। अतुल शर्मा की कार्यप्रणाली से स्वयं योगी आदित्यनाथ असंतुष्ट थे और पूर्व में उन्हें चेतावनी भी दे चुके थे।
आईपीएस अधिकारी अतुल शर्मा को प्रदेश के डीजीपी ओपी सिंह ने अपनी रिपोर्ट में बाकायदा ‘निकम्मा’ अधिकारी घोषित किया है। जाहिर है कि अतुल शर्मा भी एकाएक निकम्मे नहीं हो गए होंगे, बावजूद इसके उन्हें प्रयागराज जैसे बड़े और महत्वपूर्ण जिले का प्रभार कैसे सौंप दिया गया।
अब 2010 बैच के आईपीएस अफसर सत्यार्थ अनिरुद्ध पंकज को प्रयागराज का नया एसएसपी बनाया गया है। बिहार के मूल निवासी सत्यार्थ अनिरुद्ध पंकज की कार्यप्रणाली कैसी है, वो कितने काबिल अफसर हैं, इसकी जानकारी किसी भी उस जनपद से ली जा सकती है जहां वो पूर्व में तैनात रहे हैं। शायद ही वो कभी कहीं अपनी विशेष छाप छोड़ पाए हों, तो फिर अब उन्हें प्रयागराज क्यों भेज दिया गया।
इससे पहले वह धर्मनगरी मथुरा के एसएसपी थे किंतु मात्र 5 महीनों में उन्हें मथुरा से एसटीएफ में भेज दिया गया। उनके स्थान पर पीएसी से शलभ माथुर को भेजा गया ।
20 अगस्त को यानी कल फिर 14 आईपीएस अफसरों का तबादला किया गया है।
03 अगस्त से लेकर 20 अगस्त तक किए गए ये आईपीएस अधिकारियों के तबादले तो मात्र उदाहरण हैं अन्यथा योगीराज आने के बाद कमोबेश यही स्थिति न केवल आईपीएस के बल्कि आईएएस अधिकारियों के तबादलों में भी रही है।
तो क्या मात्र तबादलों से किसी अधिकारी की कार्यक्षमता, योग्यता और नेकनीयत बदल जाती है, यदि नहीं तो आखिर सिर्फ तबादले ही क्यों ?
यदि कोई अधिकारी काबिल एवं नेकनीयत है तो वह हर जगह अपनी योग्यता साबित करेगा, और यदि वह अकर्मण्य या भ्रष्ट है तो हर जगह विभाग का सिर नीचा करेगा व वर्दी तथा सरकार पर दाग लगवाएगा।
इन हालातों में पूछा जा सकता है कि किसी अधिकारी को योग्यता के पैमाने पर खरा उतरने के बाद भी बार-बार तबादले किसलिए झेलने पड़ते हैं और कुछ अधिकारी सार्वजनिक रूप से भ्रष्टाचारी एवं नाकाबिल साबित होने के बावजूद लगातार चार्ज पर क्यों बने रहते हैं।
अगर कोई अधिकारी काबिल, ईमानदार, कर्तव्यनिष्ठ एवं सक्षम है तो उसे हटाया क्यों जाता है और नाकाबिल, भ्रष्ट तथा निकम्मे अधिकारी अच्छी तैनाती कैसे पा जाते हैं।
यहां यह कहना कतई अप्रासांगिक होगा कि अधिकारियों की शौहरत से कोई निजाम अपरिचित रह सकता है क्योंकि यदि ऐसा है तो इसका सीधा मतलब है कि वह स्वयं उस पद के योग्य नहीं है।
सर्वविदित है कि पुलिस और प्रशासन के ही नहीं, न्याय व्यवस्था के भी अधिकारियों की शौहरत उनके तैनाती स्थल पर उनके चार्ज लेने से पहले पहुंच जाती है। यही कारण है कि अधीनस्थ अधिकारी तत्काल खुद को उनके अनुरूप ढाल लेते हैं और उसी मोड में काम करने लगते हैं।
योगी आदित्यनाथ उत्तर प्रदेश को उत्तम प्रदेश बनाने का भरसक प्रयास क्यों न कर रहे हों परंतु नतीजे बहुत अधिक उम्मीद नहीं जगाते। आंकड़ों की बाजीगरी को उठाकर एक ओर रख दिया जाए तो बिना दूरबीन के देखा जा सकता है कि ब्यूरोक्रेसी पर योगी कभी मजबूत पकड़ बना ही नहीं पाए।
इसी प्रकार उनकी कैबिनेट में आज भी कुछ लोग ऐसे हैं जो भ्रष्ट, निकम्मे और अयोग्य अधिकारियों को संरक्षण दिए हुए हैं। ये अधिकारी उनके संरक्षण में आम जनता तो क्या, सभ्रांत लोगों के साथ भी अशिष्ट व्यवहार करने से नहीं चूकते।
मायाराज से लेकर योगीराज तक में इनकी अच्छे-अच्छे पदों पर तैनाती यह साबित करने के लिए काफी है कि शासन-सत्ता के अंदर इनकी कितनी गहरी पैठ है।
योगीराज की तुलना में यदि मोदीराज को देखें तो नजारा ठीक उलटा दिखाई देगा। मोदी जी ने अपने चारों ओर ऐसे अधिकारियों का सर्किल बना रखा है जो अपनी ड्यूटी के प्रति किसी भी हद तक जाने को तत्पर नजर आते हैं।
सरकार का निर्णय कितना ही जोखिमभरा क्यों न हो, वह मोदी जी के कंधे से कंधा मिलाकर खड़े रहते हैं और कठिन से कठिन जिम्मेदारी का निर्वाह करने में नहीं हिचकते।
कश्मीर से अनुच्छेद 370 हटाने के बाद की स्थितियों में इन अधिकारियों की कर्मठता इसका ज्वलंत उदाहरण है।
बेशक योगी आदित्यनाथ की मंशा उत्तर प्रदेश को उत्तम प्रदेश बनाने की रही होगी परंतु धरातल पर देखें तो अभी उसके आसार दूर-दूर तक दिखाई नहीं दे रहे।
योगी जी के पास अब सिर्फ ढाई साल का समय शेष है। इसी दौरान उन्हें कोई इतनी बड़ी लकीर खींचनी होगी जिससे आमूल-चूल परिवर्तन की राह नजर आती हो। अन्यथा मोदी की तरह योगीराज दोहरा पाना असंभव न सही परंतु कठिन जरूर हो जाएगा।
और हां, तुकबंदी के लिए पार्टीजन योगी-मोदी की तुलना भले ही कर लें परंतु तुलनात्मक अध्ययन करने बैठेंगे तो पता लगेगा कि योगी का मोदी बनना मुमकिन नहीं है क्योंकि योगी जी अब तक जनता को वो फील नहीं करा सके हैं।
-सुरेन्द्र चतुर्वेदी